कवि ने आत्मकथ्य कविता में संसार को क्या कहा है? - kavi ne aatmakathy kavita mein sansaar ko kya kaha hai?

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  • जयशंकर प्रसाद आत्मकथ्य ( Aatmkathya )
      • Class: 10th
      • Kshitij Part 2
      • पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और सार
      • आत्मकथ्य क्षितिज भाग – 2
      • NCERT Class 10th Hindi
    • कवि परिचय जयशंकर प्रसाद
    • आत्मकथ्य कविता का सार
  • आत्मकथ्य भावार्थ तथा व्याख्या
    • NCERT Solutions Kshitij Chapter – 4 Jai Shankar Parsad
    • अन्य परीक्षोपयोगी महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर ( CCE पद्धत्ति पर आधारित )
      • NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 2
      • अध्याय / 
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Class: 10th

Kshitij Part 2

पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और सार

आत्मकथ्य क्षितिज भाग – 2

NCERT Class 10th Hindi


कवि परिचय जयशंकर प्रसाद

इनका जन्म सन 1889 में वाराणसी में हुआ था। काशी के प्रसिद्ध क्वींस कॉलेज में वे पढ़ने गए परन्तु स्थितियां अनुकूल ना होने के कारण आँठवी से आगे नही पढ़ पाए। बाद में घर पर ही संस्कृत, हिंदी, फारसी का अध्ययन किया। छायावादी काव्य प्रवृति के प्रमुख कवियों में ये एक थे। इनकी मृत्यु सन 1937 में हुई।

प्रमुख कार्य

काव्य-कृतियाँ – चित्राधार, कानन-कुसुम, झरना, आंसू, लहर, और कामायनी।
नाटक – अजातशत्रु, चन्द्रगुप्त, स्कंदगुप्त, ध्रुवस्वामिनी।
उपन्यास – कंकाल, तितली और इरावती।
कहानी संग्रह – आकाशदीप, आंधी और इंद्रजाल।


आत्मकथ्य कविता का सार

कवि का जीवन दुखों से भरा है। उसके जीवन में प्रिय-प्रेम भी स्वप्न की तरह मधुर एवं क्षणिक रहा। प्रिय-प्रेम की स्मृतियाँ ही उसे सांत्वना देती हैं। इसलिए संसार उसे निस्सार और नीरस लगता है। वह अपनी मनोदशा के अनुरूप ही पत्तियों को मुरझाता, गिरता और ढेर बनकर नष्ट होता देखता है। अपने जीवन में कुछ भी विशेष अथवा सुखद न होने के कारण वह अपनी कथा नहीं कहना चाहता। जीवन के बनने और बिगड़ने के क्रम को देखकर भी जब लोग एक-दूसरे के दुखों को न समझकर मजाक उड़ाते हैं तो कवि भी अपनी कथा को दबाकर रखना चाहते हैं और दुखों से भरी अपनी अति सामान्य कथा किसी को नहीं सुनाते।

आत्मकथ्य भावार्थ तथा व्याख्या

(1)

मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी अपनी यह,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपने व्यंग्य मलिन उपहास
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।

शब्दार्थ :

  • मधुप = भौंरा, मन रूपी भौंरा,
  • अनंत = अंतहीन, जिसका अंत न हो,
  • नीलिमा = नीले आकाश का विस्तार,
  • असंख्य = अनगिनत,
  • व्यंग्य-मलिन = खराब ढंग से निंदा करना,
  • उपहास = मज़ाक,
  • दुर्बलता = कमज़ोरी,
  • गागर = घड़ा, मटका,
  • रीती = खाली।

व्याख्या – इस कविता में कवि ने अपने अपनी आत्मकथा न लिखने के कारणों को बताया है। कवि कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति का मन रूपी भौंरा प्रेम गीत गाता हुआ अपनी कहानी सुना रहा है। झरते पत्तियों की ओर इशारा करते हुए कवि कहते हैं कि आज असंख्य पत्तियाँ मुरझाकर गिर रही हैं यानी उनकी जीवन लीला समाप्त हो रही है। इस प्रकार अंतहीन नील आकाश के नीचे हर पल अनगिनित जीवन का इतिहास बन और बिगड़ रहा है। इस माध्यम से कवि कह रहे हैं की इस संसार में हर कुछ चंचल है, कुछ भी स्थिर नही है। यहाँ प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे के मज़ाक बनाने में लगे हैं, हर किसी को दूसरे में कमी नजर आती है। अपनी कमी कोई नही कहता, यह जानते हुए भी तुम मेरी आत्मकथा जानना चाहते हो। कवि कहता है कि यदि वह उन पर बीती हुई कहानी । सुनाते हैं तो लोगों को उससे आनंद तो मिलेगा, परन्तु साथ ही वे यह भी देखेंगे की कवि का जीवन सुख और प्रसन्नता से बिलकुल ही खाली है।

विशेष

(i) खड़ी बोली में लिखित इस काव्यांश में कुछ तत्सम शब्दों की छटा दिखाई देती है। जैसे – मधुप, अनंत-नीलिमा, व्यंग्य-मलिन, जीवन-इतिहास आदि।

(ii) गुन-गुना, कर कह, कौन कहानी में अनुप्रास अलंकार है।

(iii) गागर रीती में रूपक अलंकार है।

(iv) इसमें छायावादी दृष्टिकोण है।

(v) प्रतीकों के माध्यम से कवि ने अपनी भावनाओं को सुंदर ढंग से स्पष्ट किया है, जैसे- झरते पत्ते।

(2)

किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले-
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
यह विडंबना! अरी सरलते हँसी तेरी उड़ाऊँ मैं।
भलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
अरे खिल-खिलाकर हँसतने वाली उन बातों की।
मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।

शब्दार्थ :

  • विडंबना = छलना, उपहास का विषय,
  • प्रवंचना = धोखा,
  • उज्ज्वल गाथा = सुंदर कहानी,
  • मुसक्या कर = मुसकराकर।

व्याख्या – कवि कहते हैं कि उनका जीवन स्वप्न के समान एक छलावा रहा है। जीवन में जो कुछ वो पाना चाहते हैं वह सब उनके पास आकर भी दूर हो गया। यह उनके जीवन की विडंबना है। वे अपनी इन कमज़ोरियों का बखान कर जगहँसाई नही करा सकते। वे अपने छले जाने की कहानी नहीं सुनाना चाहता। जिस प्रकार सपने में व्यक्ति को अपने मन की इच्छित वस्तु मिल जाने से वह प्रसन्न हो जाता है, उसी प्रकार कवि के जीवन में भी पएक बार प्रेम आया था परन्तु वह स्वपन की भांति टूट गया। उनकी सारी आकांक्षाएँ महज मिथ्या बनकर रह गयी चूँकि वह सुख का स्पर्श पाते-पाते वंचित रह गए। इसलिए कवि कहते हैं कि यदि तुम मेरे अनुभवों के सार से अपने जीवन का घड़ा भरने जा रहे हो तो मैं अपनी उज्जवल जीवन गाथा कैसे सुना सकता हूँ।

विशेष

(i) काव्यांश की भाषा खड़ी बोली है, जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों का पुट है।

(ii) इसमें नवीन उपमाओं और रूपकों का सुंदर समावेश हुआ है।

(iii) इसमें छायावादी गुण और रहस्यवाद की झलक मिलती है।

(3)

जिसके अरूण-कपोलों की मतवाली सुन्दर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?
छोटे से जीवन की कैसे बड़े कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्मकथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।

शब्दार्थ :

  • अरुण = लाल
  • कपोल = गाल,
  • अनुरागिनी = प्रेम करने वाली
  • उषा = भोर
  • स्मृति = याद
  • पाथेय = संबल, सहारा
  • पंथा = राह, रास्ता, मार्ग
  • कंथा = अंतर्मन, गुदड़ी
  • मौन = चुप्पी, न बोलना।

व्याख्या : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अपने सुंदर सपनों का उल्लेख करते हैं और कहते हैं कि उनके जीवन में भी कुछ सुंदर सुखद पल आए थे। आज वही यादें उनके वर्तमान जीवन के लिए मानो संबल बन गई हैं। कवि कहते हैं कि उन्होंने भी प्रेम के अनगिनत सपने संजोए थे, किंतु वे सपने केवल सपने बनकर ही रह गए। वास्तविक जीवन में उन्हें वह सुख मिल न सका जिसे वे प्राप्त करना चाह रहे थे। कवि कहते हैं कि मेरी प्रेयसी के सुंदर लाल गालों की मस्ती भरी छाया में भोर की लालिमा मानो अपनी माँग भरती थी, ऐसी रूपसी की छवि अब मेरा पाथेय बनकर रह गई है क्योंकि उसे मैं वास्तव जीवन में पा न सका। मेरे प्यार के वे क्षण मिलन से पूर्व ही छिटक कर दूर हो गए। इसलिए मेरे जीवन की कथा को पर्त दर पर्त खोल कर यानी जानकर तुम क्या करोगे। कवि अपने जीवन को अत्यंत छोटा समझकर किसी को उसकी कहानी सुनाना नहीं चाहते। इसमें कवि की सादगी और विनय का भाव स्पष्ट होता है। वे दूसरों के जीवन की कथा सुनने और जानने में ही अपनी भलाई समझते हैं। वे कहते हैं कि अभी मेरे जीवन की घटनाओं को कहानी के रूप में कहने का समय नहीं आया है। अतीत के साये में वे अभी सो रही हैं। अत: उनको अभी शांति से सोने दो यानी मेरे अतीत को मत कुरेदो। मेरे अतीत जीवन की घटनाओं को मौन कहानी के रूप में रहने दो, इसी में सबकी भलाई है।

विशेष

(i) प्रस्तुत काव्यांश संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली में रचित है।

(ii) भाषा प्रतीकात्मक है।

(iii) स्मृति-पाथेय में रूपक अलंकार है।

(iv) इसमें छायावादी शैली की स्पष्ट झलक मिलती है।

(v) ‘थकी सोई है मेरी मौन व्यथा’ में मानवीकरण अलंकार है।

(vi) इसमें कवि का यथार्थवाद झलकता है। कवि दुखी-निराश होकर भी अपने अतीत की सुखद स्मृतियों के सहारे अपने वर्तमान जीवन को गुजार देना चाहते हैं।


कठिन शब्दों के अर्थ

1. मधुप-मन रूपी भौंरा
2. अनंत नीलिमा-अंतहीन विस्तार
3. व्यंग्य मलिन-खराब ढंग से निंदा करना
4. गागर-रीती-खाली घड़ा 5. प्रवंचना-धोखा
6. मुसक्या कर – मुस्कुरा कर
7. अरुण-कोपल – लाल गाल
8. अनुरागिनी उषा – प्रेम भरी भोर
9. स्मृति पाथेय – स्मृति रूपी सम्बल
10. पन्था – रास्ता
11. कंथा-अंतर्मन


NCERT Solutions Kshitij Chapter – 4 Jai Shankar Parsad


प्रश्न 1 – कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है ?

उत्तर:- कवि आत्मकथा लिखने से इसलिए बचना चाहते है, क्योंकि –
1. आत्मकथा लिखने के लिए अपने मन की दुर्बलताओं, कमियों का उल्लेख करना पड़ता है।
2. अपनी सरलता के कारण कवि ने कई बार धोखा खाया है इसलिए वह अपने व्यक्तिगत जीवन को उपहास का कारण नहीं बनाना चाहता।
3. जीवन में बहुत सारी पीडादायक घटनाएँ हुई हैं, उन्हें याद करने से घाव फिर से हरे हो जाएंगे।
4. कवि अपने व्यक्तिगत अनुभवों को दुनिया के समक्ष व्यक्त नहीं करना चाहता।

प्रश्न 2  – आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में ‘अभी समय भी नहीं’ कवि ऐसा क्यों कहता है ?

उत्तर:- कवि को लगता है कि आत्मकथा लिखने का अभी उचित समय नहीं हुआ है, क्योंकि –
1. कवि का जीवन दुःख और अभावों से भरा है। मुश्किल से कवि को अपनी पुरानी वेदना से मुक्ति मिली है, आत्मकथा लिखकर कवि अपने मन में दबी असफलताओं को याद करके पुन: दु:खी नहीं होना चाहता है।
2. कवि को ऐसा लगता है कि उसे अभी ऐसी कोई बड़ी उपलब्धि नहीं मिली है जिसे वह लोगों के सामने प्रेरणा स्वरुप रख सके।

प्रश्न 3 – स्मृति को ‘पाथेय’ बनाने से कवि का क्या आशय है ?

उत्तर:- ‘पाथेय’ अर्थात् रास्ते का भोजन या सहारा। ‘पाथेय’ यात्रा में यात्री को सहारा देता है।सुखद स्मृति को पाथेय बनाने से कवि का आशय स्मृति के सहारे जीवन जीने से है। कवि की प्रेयसी उससे दूर हो गई है। कवि के मन-मस्तिष्क पर केवल उसकी मधुर स्मृति ही है। इन्हीं स्मृतियों को कवि अपने जीने का सहारा बनाना चाहता है।

प्रश्न 4 – भाव स्पष्ट कीजिए –

(क) मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया। आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।

उत्तर:- कवि कहना चाहता है कि जिस प्रेम के कवि सपने देख रहे थे वो उन्हें कभी प्राप्त नहीं हुआ। कवि ने जिस सुख की कल्पना की थी वह उसे कभी प्राप्त न हुआ और उसका जीवन हमेशा उस सुख से वंचित ही रहा। इस दुनिया में सुख छलावा मात्र है। हम जिसे सुख समझते हैं वह अधिक समय तक नहीं रहता है, स्वप्न की तरह जल्दी ही समाप्त हो जाता है।

(ख) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में। अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।

उत्तर:- कवि अपनी प्रेयसी के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहता है कि प्रेममयी भोर वेला भी अपनी मधुर लालिमा उसके गालों से लिया करती थी। कवि की प्रेमिका का मुख सौंदर्य ऊषाकालीन लालिमा से भी बढ़कर था।

प्रश्न 5 – ‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की’ – कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?

उत्तर:- कवि यह कहना चाहता है कि अपनी प्रेयसी के साथ चाँदनी रातों में बिताए गए वे सुखदायक क्षण किसी उज्ज्वल गाथा की तरह ही पवित्र है जो कवि के लिए अपने अन्धकारमय जीवन में आगे बढ़ने का एकमात्र सहारा बनकर रह गया। ऐसी स्मृतियों को वह सबके सामने प्रस्तुत कर अपनी हँसी नहीं उड़ाना चाहता है। अत: वह अपने जीवन की व्यक्तिगत मधुर स्मृतियों को किसी के साथ बाँटना नहीं चाहता बल्कि अपने तक ही सीमित रखना चाहता है।

प्रश्न 6 – ‘आत्मकथ्य’ कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।

उत्तर:- ‘जयशंकर प्रसाद’ द्वारा रचित कविता ‘आत्मकथ्य’ की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
1-प्रस्तुत कविता में कवि ने खड़ी बोली हिंदी भाषा का प्रयोग किया है – “यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास।”
2-अपने मनोभावों में सजीवता लाने के लिए कवि ने ललित, सुंदर एवं नवीन बिंबों का प्रयोग किया है जैसे –
“जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में। अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।”
3-कवि ने नवीन शब्दों का प्रयोग किया है –
“यह विडंबना ! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊ में। भूले अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाउँ मैं।” ।
यहाँ-विडंबना, प्रवंचना जैसे नवीन शब्दों का प्रयोग किया गया है जिससे काव्य में सुंदरता आई है।
4 – छायावाद की प्रमुख विशेषता – मानवीकरण मानवेतर पदार्थों को मानव की तरह सजीव बनाकर प्रस्तुत किया गया है – जैसे – थकी सोई है मेरी मौन व्यथा। अरी सरलता तेरी हँसी उडाऊँ मैं।
5-अलंकारों के प्रयोग से काव्य सौंदर्य बढ़ गया है –
• खिल-खिलाकर, आते-आते में पुनरुक्ति अलंकार का प्रयोग किया गया है।
• अरुण – कपोलों में रुपक अलंकार है।
• मेरी मौन, अनुरागी उषा में अनुप्रास अलंकार है।

प्रश्न 7 – कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है ?

उत्तर:- कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे वह अपनी प्रेयसी नायिका के माध्यम से व्यक्त किया है। कवि कहता है कि नायिका स्वप्न में उसके पास आते-आते मुस्कुरा कर भाग गई। कवि कहना चाहता है कि जिस प्रेम के वे सपने देख रहे थे वो उन्हें कभी प्राप्त नहीं हुआ। कवि ने जिस सुख की कल्पना की थी वह उसे कभी प्राप्त न हुआ और उसका जीवन हमेशा उस सुख से वंचित ही रहा। इस दुनिया में सुख छलावा मात्र है। हम जिसे सुख समझते हैं वह अधिक समय तक नहीं रहता है, स्वप्न की तरह जल्दी ही समाप्त हो जाता है।


रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 1 – इस कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की जो झलक मिलती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर:- इस कविता को पढ़कर प्रसाद जी के व्यक्तित्व की ये विशेषताएँ हमारे सामने आती हैं – सरल और भोले -प्रसाद जी एक सीधे-सादे व्यक्तित्व के इंसान थे। उनके जीवन में दिखावा नहीं था। उनके मित्रों ने उनके साथ छल किया फिर भी वे भोलेपन में जीते रहें।

गंभीर और मर्यादित – वे अपने जीवन के सुख-दुख को लोगों पर व्यक्त नहीं करना चाहते थे, अपनी दुर्बलताओं को अपने तक ही सीमित रखना चाहते थे। अपनी दुर्बलताओं को समाज में प्रस्तुत कर वे स्वयं को हँसी का पात्र बनाना नहीं चाहते थे। विनयशील – प्रसाद जी का स्वयं को दर्बलताओं से भरा सरल दर्बल इनसान कहना उनकी विनम्रता प्रकट करता हैं।

प्रश्न 2 – आप किन व्यक्तियों की आत्मकथा पढना चाहेंगे और क्यों ?

उत्तर:- हमें महान, प्रसिद्ध और कर्मठ लोगों की आत्मकथा पढ़कर उनसे शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। हमें देशभक्त, क्रान्तिकारी, लेखक, कलाकार आदि की आत्मकथाएँ पढ़नी चाहिए। उनकी जीवन-गाथा पढ़कर हमें यह जानने मिलेगा की उन्होंने सफलता कैसे प्राप्त की ? सफलता की राह में आगे बढ़ते हुए उन्हें कौन-सी विपत्तियों का सामना करना पड़ा और कैसे उस पर विजय पाई।

प्रश्न 3 – कोई भी अपनी आत्मकथा लिख सकता है। उसके लिए विशिष्ट या बड़ा होना जरूरी नहीं। हरियाणा राज्य के गुड़गाँव में घरेलू सहायिका के रुप में काम करने वाली बेबी हालदार की आत्मकथा बहुतों के द्वारा सराही गई। आत्मकथात्मक शैली में अपने बारे में कुछ लिखिए।
उत्तर:- मेरा नाम तवांग है। मैं चौदह साल का हूँ। मैं देहात में अपने माता पिता और बड़े भाई के साथ रहता हूँ। हमारा जीवन बड़ा ही कष्टमय है। मेरे गाँव में किसी भी प्रकार की कोई मूलभूत सुविधा (बिजली, पानी, स्कूल, अस्पताल आदि) न होने के करण यहाँ का जीवन बड़ा ही कष्टप्रद है। हमारे गाँव में बच्चों के लिए नजदीक में कोई विद्यालय न होने के कारण हमें करीब चार से पाँच किलोमीटर पैदल जाना पड़ता है। मुझे पढाई के साथ खेत में माता पिता का हाथ भी बटाँना पड़ता है। हमारा पूरा परिवार कृषि पर ही केन्द्रित होने के कारण हम सभी को खेतों में भरपूर मेहनत करनी पड़ती है। मैं और मेरे मित्र सुबह बड़ी जल्दी उठकर नदी से पानी भरकर लाते हैं, उसके पश्चात् विद्यालय के लिए निकल पड़ते है। रोज विद्यालय से घर के रास्ते में एक मंदिर पड़ता है। मैं और मेरे मित्र रोज उस मंदिर में जाते हैं। हमारी रास्ते भर शरारतें चलती रहती है। शाम के समय विद्यालय से लौटते समय हमें जंगल से सूखी लकड़ियाँ बटोरकर लानी पड़ती है और हमारे पशुओं के लिए हरा चारा भी लाना होता है।
मेरे जीवन का यह लक्ष्य है कि मैं उच्च शिक्षा प्राप्त कर अपने गाँव की तस्वीर बदलूँगा और अपने माता-पिता के सपनों को सच करूँगा। मेरे माता-पिता मुझे एक काबिल डॉक्टर बनाना चाहते हैं। गाँव में पास में अस्पताल न होने के कारण सभी को बीमारी के समय काफ़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। इसलिए मैं इसलिए भरपूर मेहनत कर रहा हूँ।


अन्य परीक्षोपयोगी महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर ( CCE पद्धत्ति पर आधारित )

(I) निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए –

[CBSE 2010 (Term-I)]

मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी, मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी। इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती। तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे- यह गागर रीती।

प्रश्न 1 – कवि ने मधुप किसे कहा है?

उत्तर :कवि ने मधुप को मन रूपी भौरे के रूप में कल्पित किया है जो प्रेमगीत गुनगुनाता हुआ अपनी कोई कहानी सुनाता है।

प्रश्न 2 – मुरझाकर गिर रहीं पत्तियों की कवि ने किस रूप में कल्पना की है?

उत्तर : मुरझाकर गिर रही पत्तियों की कवि ने जीवन की निराशाओं और दुखों के रूप में कल्पना की है। इसके माध्यम से उन्होंने जीवन की नश्वरता की ओर संकेत किया है।

प्रश्न 3 – ‘व्यंग मलिन उपहास’ कौन करता रहता है और क्यों?

उत्तर : संपूर्ण जगत में प्रत्येक व्यक्ति एक-दूसरे का मज़ाक उड़ाने में व्यस्त है। प्रत्येक व्यक्ति को दूसरे में कमी नज़र आती है और उस कमी या अभाव का वह बुरी तरह से मज़ाक उड़ाता है। वह अपनी कमी कभी नहीं देखता।

प्रश्न 4 – गागर रीती का निहित भावार्थ क्या है?

[CBSE 2010 (Term-I)]

उत्तर : गागर रीती के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि उनकी वेदनाओं से भरी जिंदगी में प्राप्ति का स्थान रीती है। वेदनाओं की अनुभूति अवश्य हुई है लेकिन सुख-शांति की प्राप्ति नहीं हुई अर्थात उनके अनुभवों का जीवन रूपी घड़ा खाली है।

प्रश्न 5 – प्रस्तुत काव्यांश किस युग की रचना है?

उत्तर : यह काव्यांश आधुनिक काल के छायावादी युग की रचना है।

प्रश्न 6 – ‘अनंत नीलिमा में असंख्य जीवन इतिहास’ का लाक्षणिक अर्थ स्पष्ट कीजिए?

उत्तर : ‘अनंत नीलिमा में असंख्य जीवन इतिहास’ का लाक्षणिक अर्थ है – इस संसार में प्राणी जन्म लेकर मर गए। उन सबका जीवन इतिहास इस विस्तृत आकाश में आज भी स्थित है। आकाश इस बात का साक्षी है कि प्राणियों ने हमेशा एक दूसरे का मज़ाक उड़ाया।

(II) निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए

[CBSE 2010 (Term-I)]

किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले– अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले। यह विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं। भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं। उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की। अरे खिल-खिला कर हँसते होने वाली उन बातों की। मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया। आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।

प्रश्न 1 – कवि को जीवन कैसा लगता है?

उत्तर : कवि को अपना जीवन स्वप्न के समान एक छलावा मात्र लगता है।

प्रश्न 2 – आलिंगन में आते-आते कौन मुसकरा कर भाग गया?

उत्तर : कवि के जीवन में प्रेम सुख एक बार आया था, किंतु स्वपन की भाँति वह भी टूट गया। उस सुख का स्पर्श पाते-पाते भी वे वंचित रह गए। वही प्रेम रूपी सुख उनके आलिंगन में आते-आते मुसकरा कर भाग गया।

प्रश्न 3 – ‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की’कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहते हैं?

[CBSE 2010 (Term-I)]

उत्तर : कवि का प्रेम स्वप्न की तरह मादक था। उनका प्रेम विकसित न हो सका। प्रिय प्रेम की मधुर स्मृतियों में वे बार-बार खो जाते हैं, परंतु उनकी इस गहरी संवेदना को समझने वाला कोई सहृदय उन्हें कभी नहीं मिला। वे उपहास उड़ाने वाले अपने आस-पास के लोगों को इसके लिए उपयुक्त नहीं मानते। अतः चाँदनी रात की प्रिय के साथ हुई उज्ज्वल गाथाएँ उनके हृदय में ही छिपी हैं। वे उन्हें किसी को नहीं सुनाते। वे उनकी उज्ज्वलता को बनाए रखने में ही अपना सुख देखते हैं।

(III) निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए –

[CBSE 2010 (Term-I)]

जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में। अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में। उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की। सीवन को उधेड कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की? छोटे से जीवन की कैसे बडी कथाएँ आज कहँ? ज़्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ? सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा? अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।

प्रश्न 1-  इसमें पथिक और पाथेय क्या है? वह कैसा है?

उत्तर : इसमें पथिक कवि स्वयं हैं और उनकी रूपसी प्रेयसी की स्मृति ही उनका पाथेय है। वह थका है।

प्रश्न 2 – “सीवन को उधेड़कर देखने’ से कवि का क्या अभिप्राय है?

उत्तर : इसका अभिप्राय है कि कवि के जीवन की कथा को पर्त दर पर्त खोलकर देखना या जानना। कवि कहना चाहता है कि कोई उसके दुख को भुला क्यो महसूस करेगा?

प्रश्न 3 – ‘छोटे से जीवन की’ से कवि का क्या अभिप्राय है?

उत्तर : ‘छोटे से जीवन की’ से कवि का अभिप्राय उन सुंदर एवं सुखद पलों से है जो उनके जीवन में स्वप्न की भाँति कुछ क्षण के लिए आए थे।

प्रश्न 4 – ‘थकी सोई है मेरी मौन व्यथा’ में कौन-सा अलंकार है?

उत्तर : थकी सोई है मेरी व्यथा में मानवीकरण अलंकार है।

प्रश्न 5 – कवि मौन क्यों रहना चाहते हैं? वह अपनी आत्मकथा क्यों लिखना चाहता है?

उत्तर : कवि अपने अतीत जीवन के अनुभवों को किसी से कहना नहीं चाहते क्योंकि वे उन्हें मज़ाक का विषय बनाना नहीं चाहते। अतः उसे मौन गाथा के रूप में रहने देना चाहते हैं। वह अपनी आत्मकथा नहीं लिखना चाहता क्योकि उसकी आत्मकथा सुन कर लोग केवल हसेगे।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए

प्रश्न 1 – छोटे से जीवन और बड़ी कथाएँ का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : कवि स्वयं को अत्यंत सामान्य व्यक्ति मानते हैं। इस कारण अपने जीवन को अत्यंत छोटा कहते हैं। वह अपनी सामान्य ज़िंदगी में घटी अनेक घटनाओं को बड़ी कथाएँ मानते हैं; किंतु उन्हें वे जगजाहिर नहीं करना चाहते।

प्रश्न 2 – कवि अपनी आत्मकथा कब लिखना चाहते है?

उत्तर : कवि का चित्त शांत है। उनके मन की व्यथाएँ सोई हुई हैं अतः आत्मकथा लिखने का यह उचित समय नहीं है। जब व्यथाएँ व्यक्त होने के लिए व्याकुल होंगी, तभी आत्मकथा लिखने का उचित अवसर होगा।

प्रश्न 3 – कविता में कवि कौन-से सुख की बात कर रहे हैं?

उत्तर : कविता में कवि अपने प्रेम सुख की बातें कर रहें हैं। सपने में प्रिय का आना, उसका आलिंगन में आते-आते मुसकरा कर दूर भाग जाना, उसके लाल-लाल गाल सब उनके प्रिय की ओर संकेत करते हैं।

प्रश्न 4 – कवि की विडंबना क्या है?

उत्तर :कवि की विडंबना यह है कि जीवन में जो कुछ सुख वे पाना चाहते थे वह सब उनके पास आकर मानो दूर हो गया और जीवन स्वप्न के समान एक छलावा भर बना रहा।

प्रश्न 5 – कवि ने मधुप किसे कहा है?

उत्तर :कवि ने व्यक्ति के मन को मधुप कहा है।

प्रश्न 6 – पत्तियों के मुरझा कर गिरने का क्या आशय है?

उत्तर : पत्तियों के मुरझा कर गिरने से कवि का अभिप्राय है कि जिस प्रकार पत्तियाँ सूखकर-मुरझाकर गिरती हैं, उसी तरह उस अंतहीन नीले आकाश के नीचे अनगिनत जीवन की लीलाएँ भी समाप्त हो जाती हैं।

प्रश्न 7 – व्यंग मलिन उपहास कौन करता है?

उत्तर : यहाँ प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे का मज़ाक उड़ाता है अर्थात लोग एक दूसरे के दुखों को न समझ कर उनका मज़ाक उड़ाते हैं।


लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए

प्रश्न 1 – कवि अपनी प्रेयसी की किन स्मृतियों में खो जाते है?

उत्तर : कवि अपनी प्रेयसी की स्मृतियों में डूबते हुए बताते हैं कि उनकी प्रेयसी के सुंदर लाल गालों की मस्ती भरी लालिमा में अनुरागिनी भोर की लालिमा मानो अपनी माँग भरती थी। ऐसी प्रेयसी की स्मृति अब उनका पाथेय बनकर रह गई है। उनके जीवन में भी कुछ सुखद क्षण
आए थे। उन्होंने भी प्रेम के अनगिनत सपने सँजोए थे।

प्रश्न 2 – कवि ने सीवन को कथा से ही क्यों जोड़ा? वह उसे उधेड़ने से किसे रोकते हैं और क्यों?

उत्तर : कवि ने सीवन को कथा से इसलिए जोड़ा क्योंकि जैसे सीवन को खोलते ही धीरे-धीरे सारी सीवन खुलती चली जाती है उसी तरह कथा भी शुरू होते ही क्रमानुसार आगे बढ़ती जाती है। वह मनुष्य को उसे उधेड़ने से रोकते हैं क्योंकि वे सुख का स्पर्श पाते-पाते भी वंचित रह गए थे। यदि वे अब उनको याद करेंगे तो यादों के पर्त दर पर्त खुलते ही जाएँगे, कवि अपने जीवन की कहानी किसी को भी सुनाना नहीं चाहते।

प्रश्न 3 – कवि की व्यथा मौन होकर क्यों सोई है, कवि उसे जगाना क्यों नहीं चाहता?

उत्तर : कवि अपने जीवन की घटनाएँ किसी को सुनाना नहीं चाहते क्योंकि उनके जीवन की घटनाओं को कहानी के रूप में कहने का समय अभी नहीं आया है। वे अभी अतीत के साये में सो रही हैं। वे अपने अतीत को कुरेदना नहीं चाहते। उनकी कथा वेदना भरी है, नीरस । है। लोग एक-दूसरे के दुखों का मज़ाक उड़ाते हैं। अपनी | कमी कोई नहीं देखता। इसी कारण अपने जीवन की व्यथा कहकर लोगों से उसका मज़ाक नहीं उड़वाना चाहते। इसलिए वे अपनी व्यथा को मौन रखना चाहते हैं।

प्रश्न 4 – कवि अपनी सरलता को क्यों बचाकर रखना चाहते है ?

उत्तर :कवि अपने भोलेपन के कारण लोगों द्वारा छले गए हैं। उनके मित्रों ने उनके साथ छल कपट किया है, उन्हें धोखा दिया है। वे अपनी छले जाने की कहानी कह कर उनका मज़ाक नहीं उड़वाना चाहते। लोगों द्वारा उड़ाया गया उनका मज़ाक उनके लिए लिए असहनीय होगा।इसीलिए वे अपने भोलेपन को बचाकर रखना चाहते हैं।

प्रश्न 5 – प्रसाद जी की जीवन-यात्रा कविता के आधार पर लिखिए।

उत्तर : प्रसाद जी स्वयं को एक सामान्य मनुष्य मानते हैं। उन्होंने जीवन में अनेक कष्ट सहे। उन्होंने अपना जीवन सरलता और भोलेपन से जिया। उनकी यही सरलता उनके लिए भूल बन गई। उनके अपनों से उन्हें धोखे मिले। उनका प्रेम भी सफल नहीं हो सका। दांपत्य सुख का केवल सपना ही देखा। जीवन-पथ पर कोई सच्चा साथी न मिल सका।

प्रश्न 6 –कवि जयशंकर प्रसाद ने आत्मकथा न लिखने के लिए क्या-क्या कारण गिनाए हैं? किन्ही तीन का उल्लेख करें।

अथवा

आत्मकथा कविता में कवि जयशंकर प्रसाद ने अपनी कथा न कहने के क्या कारण बताए?

[CBSE 2010 (Term – I)]

उत्तर :लेखक ने आत्मकथा न लिखने के निम्नलिखित कारण बताए हैं

1. उनका जीवन अनेक दुखों से भरा था। लोग दूसरों के दुखों का मज़ाक बनाते हैं।

2. एक सामान्य व्यक्ति की तरह ही उनके जीवन की कथा है। उसमे कुछ भी महान नहीं था। न तो उनका जीवन प्रेरक है और न ही कुछ रोचक।

3. लेखक अपने जीवन की अति सामान्य कथा को दूसरों को बताकर अपनी सरलता का मज़ाक नहीं बनाना चाहते।

प्रश्न 7 – ‘आत्मकथ्य’ कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की जो झलक मिलती है, वह उनकी ईमानदारी और साहस का प्रमाण है, स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : आत्मकथ्य कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की जो झलक मिलती है, वह उनकी ईमानदारी और साहस का ही दूसरा रूप है। अपनी अंतर्मुखी प्रकृति के कारण अपने अनुभवों को स्वयं तक ही रखना उन्हें उचित लगता है। दूसरे लोगों की स्वाभाविक प्रवृत्ति को बताकर (औरों के दुख में हँसी-मज़ाक करना) कवि ने वास्तव में साहस का परिचय दिया है। उन्होंने अपने को अत्यंत सामान्य व्यक्ति समझा। वे अत्यंत संवेदनशील रहे। प्रकृति में अपने मनोभावों को देखना और कविता में परिणत करना उनका स्वभाव था। उन्होंने पूरी ईमानदारी और
साहस से अपने अनुभवों को व्यक्त किया है।

प्रश्न 8 – ‘आत्मकथ्य’ कविता में किसका प्रतीक है? वह कौन-सी कथा कहता है?

[CBSE 2010 (Term – I)]

उत्तर : आत्मकथ्य कविता में मधुप (भौंरा) मन का प्रतीक है। वह अपने प्रेम की कहानी कहता है। और प्रियजन की याद दिलाता है।

प्रश्न 9 – ‘आत्मकथ्य’ कविता में गागर रीती’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए?

[CBSE 2010 (Term – I)]

उत्तर : आत्मकथ्य कविता में ‘गागर रीती’ का अर्थ है कि वेदनाओं से भरी कवि की जिंदगी रूपी गागर बिलकुल खाली है क्योंकि उसकी जिंदगी में खुशियों के क्षण आए और चले गए।। उसे प्राप्ति नहीं हुई। उसका साड़ा जीवन एक की और खाली रहा है।

प्रश्न 10 –‘मधुष गुनगुनाकर कह जाता कौन कहानी यह अपनी’ में रेखांकित शब्दों में कौन-सा अलंकार है? क्यों है? स्पष्ट कीजिए।

[CBSE 2010 (Term – I)]

उत्तर : ‘मधुष गुनगुनाकर कह जाता कौन कहानी यह अपनी’ में अनुप्रास अलंकार है क्योंकि यहाँ ‘गुन गुना’ ‘कर कह’ ‘कौन कहानी’ ‘कहानी यह’ में क्रमशः ‘ग’ ‘क’ ‘क’ ओर ‘ह’ की आवृत्ति हुई है।

प्रश्न 11 – ‘आत्मकथ्य’ कविता की विशेषताएँ लिखिए।

[CBSE 2010 (Term – 1)]

उत्तर : ‘आत्म कथ्य’ कविता छायावादी युग की खड़ी बोली में लिखी गई कविता है। इसमें संगीतमयता तथा चित्रात्मकता देखते बनती है अनुप्रास रूपक तथा अलंकारो का प्रयोग हुआ है। इसमें कवि के जीवन दुखद स्मृति का मार्तिक चित्र किया गया है। इस कविता के माध्यम से कवि के शांत गंभीर तथा ईमानदार जीवन की झलक मिलती है।। इसके साथ ही साथ इस कविता में जीवन की नीरसता एवं असारता का वर्णन किया गया है।

प्रश्न 12 – ‘आत्मकथ्य’ कविता में आई पंक्ति ‘थकी सोई है मेरी मौन व्यथा’ का आशय स्पष्ट कीजिए।

[CBSE 2010 (Term – 1)]

उत्तर : ‘थकी सोई है मेरी मौन व्यथा’ का आशय है कि कवि ने अपने जीवन में अनेक वेदनाओं को सहा है जिससे उसे बहुत पीड़ा मिली है। वेदनाओं और पीड़ा को सहते सहते कवि थक चुका है तथा अब वह मौन हो गया है। उसकी वेदना और व्यथा अब भूतकाल का विषय बन चुकी है। वह अपने अतीत के कष्ट को किसी से कहना नहीं चाहता।

प्रश्न 13 – आत्मकथ्य कविता में कवि अपनी व्यथा को मौन ही क्यों रखना चाहता था?

[CBSE 2010 (Term – I)]

उत्तर : ‘आत्मकथ्य’ कविता में कवि अपनी व्यथा को मौन इसलिए रखना चाहता है क्योंकि कवि ने अपने छोटे से जीवन अनेक वेदनाएँ सही है। अनेक कष्ट सहे। इस विषय में उसकी जीवन रूपी गागर बिलकुल खाली है। कवि को जीवन में प्रेम की प्राप्ति नहीं हुई। यदि वह अपने दु:ख भरे अतीत के बारे में लोगों को बता देगे तो लोग उनका मजाक ही उड़ाएंगे। उसकी सरलता की खिल्ली उड़ाएँगे।

प्रश्न 14 – ‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाँऊ’ यह कथन किसका है? इसका क्या कारण है?

[CBSE 2010 (Term – I)]

उत्तर : ‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ’ यह कथन कवि जयशंकर प्रसाद का है। उनके जीवन की गाथा एक सरल सज्जन एवं सत्पुरुष की कहानी है। उनका प्रेम निश्छल और स्वप्न के समान ‘मादक था किंतु वह विकसित नहीं हो पाया क्योंकि उसकी संवेदना को समझने वाला कोई नहीं मिला। उनके साथ छल हुआ। अतः वे कहते हैं कि वे अपने जीवन के प्रेम और सुखमय पलों का वर्णन कैसे करें।

प्रश्न 15 – ‘आत्मकथ्य’ कविता में कवि के दर्शन एक निराश, हतप्रभ, और व्यथित हृदय के रूप में होते हैं, कैसे? स्पष्ट कीजिए।

[CBSE 2010 (Term – I)]

उत्तर : आत्मकथ्य कविता में कवि के दर्शन एक निराश, हत प्रभ और व्यथित हृदय के रूप में होते हैं क्योंकि उनके जीवन की अनेक मधुर स्मृतियाँ है जो एक एक नष्ट हो गई। उसका प्रेम स्थायी नहीं रहा क्योंकि उसकी संवेदनाओं को समझने वाला कोई नहीं मिला। प्रेम के नाम पर उनके साथ धोखा हुआ है।

प्रश्न 16 – ‘आत्मकथ्य’ कविता के माध्यम से जयशंकर प्रसाद क्या कहना चाहते हैं?

उत्तर :‘आत्मकथ्य’ कविता के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि उनका जीवन कठिनाइयों और दुखों से भरा है। वे अपने भोलेपन के कारण लोगों द्वारा छले गए है। उन्हें अपने ही लोगों ने धोखा दिया है। परंतु वे अपना भोलापन नहीं छोड़ना चाहते। उनके जीवन में कुछ ही क्षण सुख-शांति लेकर आए थे। यदि उन्होंने आत्मकथा लिखी तो उन्हें उन सब को लिखना पड़ेगा। उन्हें लिखकर वह जगहँसाई नहीं करवाना चाहते। वे अपनी गाथा सुनाने के स्थान पर औरों की गाथा सुनना ज्यादा पसंद करते हैं।

प्रश्न 17 – ‘आत्मकथ्य‘ नामक कविता में कवि ने संसार की नीरसता और असारता को किस प्रकार प्रकट किया है?

उत्तर : ‘आत्मकथ्य’ नामक कविता में कवि ने संसार की नीरसता और असारता को प्रकृति में समाई नीरसता और जीवन में व्याप्त दुख एवं वेदना के माध्यम से प्रकट की है। पत्तियों के झडकर नष्ट होने में कवि जीवन समाप्त होने के भाव देखते हैं। अपने जीवन में कुछ भी विशेष अथवा सुखद न होने के कारण वे अपनी कथा नहीं कहना चाहते। जीवन के बनने और बिगड़ने के क्रम को देखकर भी जब लोग एक दूसरे के दुखों को न समझकर मज़ाक उड़ाते हैं तो कवि अपनी कथा को दबाकर ही रखना चाहते हैं।

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 2

अध्याय / 

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लेखक 

अध्याय का नाम 

अध्याय – 1 सूरदास  पद
अध्याय – 2
तुलसीदास  राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद
अध्याय – 3 देव  सवैया और कवित्त
अध्याय – 4
जयशंकर प्रसाद  आत्मकथ्य
अध्याय – 5  सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला  उत्साह और अट नहीं रही
अध्याय – 6 
नागार्जुन  यह दंतुरहित मुस्कान और फसल
अध्याय – 7
गिरिजाकुमार माथुर  छाया मत छूना
अध्याय – 8 
ऋतुराज  कन्यादान
अध्याय – 9
मंगलेश डबराल  संगतकार
अध्याय – 10
स्वयं प्रकाश  नेताजी का चश्मा
अध्याय – 11
राम वृक्ष बेनीपुरी  बालगोबिन भगत
अध्याय – 12
यशपाल  लखनवी अंदाज़
अध्याय – 13
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना  मानवीय करुणा की दिव्या चमक
अध्याय – 14
मनु भंडारी  एक कहानी यह भी
अध्याय – 15
महावीर प्रसाद द्विवेदी  स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन
अध्याय – 16
यतींद्र मिश्र  नौबतखाने में इबादत
अध्याय – 17 भदंत आनंद कौशल्यायन  संस्कृति

आत्मकथ्य कविता का संदेश क्या है?

उत्तर-आत्मकथ्य अभ्यास प्रश्न उत्तर – कवि इस कथन के माध्यम से यह कहना चाहता है कि उसका अतीत अत्यंत मोहक रहा है। तब वह अपनी प्रेयसी के साथ मधुर चाँदनी में बैठकर खूब बातें करता था तथा खिलखिलाकर हँसता था। अब उस गाथा को सुना पाना उसके लिए संभव नहीं है।

आत्मकथ्य कविता का मूल भाव क्या है?

आलिंगन में आते – आते मुसक्या कर जो भाग गया। उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियां कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित आत्मकथ्य कविता से ली गई है। उक्त पंक्तियों का भाव यह है कि कवि भी दूसरे लोगों के जैसा सुखमय तथा आनंदरूपी जीवन व्यतीत करना चाहता था पर उसे वह सुख नहीं मिल सका जिसकी वह कल्पना कर रहा था।

आत्मकथा कविता में कवि क्या कहना चाहता है?

Answer: आत्मकथा लिखने के लिए अपने मन कि दुर्बलताओं, कमियों का उल्लेख करना पड़ता है। कवि स्वयं को इतना सामान्य मानता है कि आत्मकथा लिखकर वह खुद को विशेष नहीं बनाना चाहता है, कवि अपने व्यक्तिगत अनुभवों को दुनिया के समक्ष व्यक्त नहीं करना चाहता। क्योंकि वह अपने व्यक्तिगत जीवन को उपहास का कारण नहीं बनाना चाहता

आत्मकथ्य कविता के कवि कौन है?

आत्मकथ्य शीर्षक कविता छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित है। इसमें कवी अपने मनोभावों की अभिव्यक्ति करता है। कभी संसार की असारता और निरसता पर विचार करता है। जीवन दुखों से भरा है।