‘परिस्थिति के सामने हार न मानकर उसे सहर्ष स्वीकार करने में ही जीवन की सार्थकता है’, स्पष्ट कीजिए। जीवन में सुख-दुख का चक्र निरंतर चलता रहता है। जिस प्रकार मनुष्य सुख के क्षणों को आनंदित होकर स्वीकार करता है, उसी प्रकार विकट परिस्थिति को भी सहर्ष स्वीकार कर उसका सामना करना चाहिए। प्रतिकूल परिस्थितियों में रोने से या हार मानने से मनुष्य को जीवन में केवल दुख और पीड़ा ही सहनी पड़ती है। अपने जीवन को सुखमय बनाने के लिए उसे विकट परिस्थितियों में धैर्य के साथ काम लेना चाहिए। परेशानियों को सुलझाने का प्रयास करना चाहिए। कुछ परिस्थितियाँ बहुत ही दर्दनाक होती हैं, किंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि व्यक्ति जीना ही छोड़ दे। उन परिस्थितियों का सामना करने के लिए उसे अपने आप को और अधिक सक्षम बनाना चाहिए। जीवन की सार्थकता भी इसी में है। |