क्रिस्टल क्षेत्र विभाजन को प्रभावित करने वाले कारक क्या हैं? - kristal kshetr vibhaajan ko prabhaavit karane vaale kaarak kya hain?

विषयसूची

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  • 1 क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत क्या है यह संयोजकता बंध सिद्धांत से कैसे भिन्न है?
  • 2 रिक्तियां क्या है?
  • 3 वैलेंस बांड क्या है?
  • 4 संयोजकता बंध सिद्धांत क्या है समझाइए?

क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत क्या है यह संयोजकता बंध सिद्धांत से कैसे भिन्न है?

इसे सुनेंरोकेंक्रिस्टल क्षेत्र सिद्धान्त ताप में वृद्धि के साथ चुम्बकीय गुणों की व्याख्या करता है। संयोजकता बंध सिद्धान्त चुम्बकीय परिवर्तन की व्याख्या नहीं करता। 2. CFT संकुलों के रंगों की व्याख्या करता है VBT संकुलों के रंग की व्याख्या नहीं करता।

रिक्तियां क्या है?

इसे सुनेंरोकेंक्रिस्टल जालक में परमाणुओं के मध्य पाए जाने वाले रिक्त स्थानों को रिक्‍तियां कहते हैं।

क्रिस्टल क्षेत्र क्या है?

इसे सुनेंरोकेंक्रिस्टल फील्ड थ्योरी ( सीएफटी ) आसपास के आवेश वितरण (आयन पड़ोसियों) द्वारा निर्मित एक स्थिर विद्युत क्षेत्र के कारण इलेक्ट्रॉन कक्षीय अवस्थाओं, आमतौर पर डी या एफ ऑर्बिटल्स के पतन का वर्णन करता है ।

क्रिस्टल क्षेत्र विघटन क्या है?

इसे सुनेंरोकेंक्रिस्टल क्षेत्र विभाजन उर्जा को प्रभावित करने वाले कारक संकुल यौगिक के निर्माण के समय धातु आयन के d कक्षकों में उपस्थित electrons एवं लिगेंड के दाता परमाणुओं के मध्य प्रतिकर्षण के कारण क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन होता है। धातु आयन के d कक्षक भिन्न उर्जा के दो सेटों में t2g एवं eg में विभाजित हो जाते है।

वैलेंस बांड क्या है?

इसे सुनेंरोकेंVBT – valence bond theory (संयोजकता बंध सिद्धांत) इस धातु धनायन के पास लिगेंड को जोड़ने के लिए रिक्त s,p,d कक्षक उपलब्ध होते है। यह रिक्त कक्षक आपस में मिलकर संकरित कक्षकों का निर्माण करते है। इन रिक्त संकरित कक्षको में लिगेंड अपना एकांकी इलेक्ट्रोन युग्म प्रदान करके धातु आयन के साथ बंध बना लेता है।

संयोजकता बंध सिद्धांत क्या है समझाइए?

इसे सुनेंरोकेंसंयोजकता बंध सिद्धांत क्या है -VBT Theory in Hindi. अणु में इलेक्ट्रॉन आणविक कक्षा के बजाय परमाणु कक्षा पर कब्जा कर लेते हैं। और यह परमाणु कक्षा बांड के गठन से बड़ा और मजबूत हो जाता हैं। संयोजकता बंध सिद्धांत को अंग्रेजी में Valence Bond Theory कहा जाता है।

क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत के अनुसार उपसहसंयोजक यौगिक में रंग का क्या कारण है?

इसे सुनेंरोकेंक्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत के आधार पर उपसहसंयोजक यौगिकों में रंग और चुम्बकीय व्यवहार का वर्णन करना। उपसहसंयोजक यौगिकों में समायवता का वर्णन करना। प्राथमिक या आयननीय संयोजकता ऋणात्मक आयनों के द्वारा संतुष्ट होती है और धातु की आक्सीकरण अवस्था के अनुरूप होती है।

चतुष्फलकीय संकुलों में क्रिस्टल क्षेत्र विभाजन का परिमाण अष्टफलकीय संकुलों की तुलना में कम होता है क्यों?

इसे सुनेंरोकेंचतुष्फलकीय तथा अष्टफलकीय क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन की तुलना— (i) एक अष्टफलकीय क्षेत्र में 6 लिगेण्ड धातु की ओर पहुँचते हैं जबकि एक चतुष्फलकीय क्षेत्र में केवल चार ही लिगेण्ड केन्द्रीय धातु पर पहुचेंगे। अतः अष्टफलीकय क्षेत्र की तुलना में चतुष्फलकीय क्षेत्र का विभाजन 4/6 = 2/3 ही होगा।

Q.2 क्रिस्टल क्षेत्र विभाजन या विस्फुटन ऊर्जा क्या है ? इसे प्रभावित करने वाले कारकों को संक्षेप में लिखिए।

अथवा 

क्रिस्टल तंत्र विपाटन ऊर्जा (C.E.S.E.) को प्रभावित करने वाले कारकों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।

उत्तर- स्थिर विद्युत् क्षेत्र में धातु आयन के d कक्षक, लिगैण्ड रूपी बिन्दु आवेश के प्रभाव से पृथक् हो जाते हैं और उनकी ऊर्जा में परिवर्तन हो जाता है। यह बिखराव विस्फुटन कहलाती है तथा ऊर्जा में परिवर्तन विस्फुटन ऊर्जा कहलाती है। इस प्रक्रिया में विभिन्न लिगैण्डों के प्रभाव से विभिन्न तरंगदैर्घ्य का प्रकाश अवशोषण होता है, जो स्पेक्ट्रम द्वारा ज्ञात होता है। 

धातु के d कक्षकों का त्रिविम विन्यास के कारण उनमें ऊर्जा परिवर्तन भिन्न-भिन्न होता है। फलस्वरूप t2g कक्षक(तीन) और eg कक्षक (दो) इस प्रकार अलग-अलग ऊर्जा क्षेत्र में आ जाते हैं। 

विस्फुटन ऊर्जा को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं- 

(अ) धातु आयन की प्रकृति, 
(ब) लिगैण्ड की प्रकृति, 
(स) संकुल की ज्यामिति । 

(अ) धातु आयन की प्रकृति -

(i) समान धातु पर आवेशों की भिन्नता- धातु आयन में आवेश की वृद्धि से आयन का आकार छोटा हो जाता , इससे अधिक आवेश युक्त धनायन लिगैण्ड को अधिक ध्रुवित कर सकता है, फलस्वरूप दोनों आयनों के निकट आने - अधिक विपाटन हो जाता है अर्थात् 10D, में वृद्धि हो जाती है। जैसे-
[Fe(H2O)6]++, Fe++  10Dq के मान 10400 cm-1 
[Fe(H2O)6]++, Fe+++  10Dq के मान 13700 cm-1 

(ii) भिन्न धातु आयनों पर भिन्न आवेश- 10D, के मान आवेश के परिमाण के समानुपाती होता है। दो भिन्न धातु पर आवेशों की संख्या भिन्न किन्तु इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान होता है अर्थात् अधिक आवेश वाले धातु आयनों के लिए 10D, का मान अधिक होता है। जैसे-

[V(H2O)6]++  10Dq = 12400 cm-1
[Ga(H2O)6]+++  10Dq = 17400 cm-1 

(iii) भिन्न धातु आयनों पर समान आवेश-जब दो भिन्न धातु आयन समान आवेश रखते हैं, तो एक ही संक्रमण श्रेणी होने पर उनमें उपस्थित d इलेक्ट्रॉनों की संख्या भिन्न होगी। d इलेक्ट्रॉनों की संख्या जैसे -

[CO(H2O)6]++  10Dq के मान 9300 cm-1 

[Ni(H2O)6]++  10Dq के मान 8500 cm-1

(ब) लिगैण्ड की प्रकृति - केन्द्रीय धातु आयन के d कक्षकों को विभिन्न लिगैण्ड विभिन्न प्रमाण में विस्फुटित करते हैं । केन्द्रीय धातु आयन के d कक्षकों का विस्फुटन करने वाले लिगैण्ड तथा अपेक्षाकृत कम विस्फुटन करने वाले लिगैण्ड दुर्बल लिगैण्ड कहे जाते हैं। CN- आयन A का अधिक मान देने से प्रबल लिगैण्ड तथा CI आयन A का कम मान देने से दुर्बल लिगैण्ड कहा जाता है। लिगैण्डों को उनकी विस्फुटन क्षमता (splitting power) के क्रम में रखे जाने पर यह श्रेणी स्पेक्ट्रो रसायन श्रेणी कहलाती है। कुछ लिगैण्डों का उनकी बढ़ती हुई विस्फोटन ऊर्जा A (क्षमता) के अनुसार क्रम है। 
I- < Br- Cl- <F- <OH- <C2O4-- <H2O <Gly < ED.A4- etc. 

(स) संकुल की ज्यामिति - अष्टफलकीय संकुल की अपेक्षा समचतुष्फलक संकुल के लिए 10D, का मान कम होता है, जबकि समतल वर्गाकार संकुल के लिए यह मान अधिक होता है । इस प्रकार के मान विभिन्न ज्यामितियों के लिए निम्न क्रम में पाये जाते हैं.
समतल वर्गाकार > अष्टफलकीय > समचतुष्फलकीय


Q 3. क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धान्त द्वारा संकुल यौगिकों के रंगीन गुण को समझाइए।

उत्तर- संकुल यौगिकों पर श्वेत प्रकाश डालने पर श्वेत प्रकाश का कुछ भाग संकुल द्वारा शोषित हो जाता है। यह शोषित प्रकाश 10 Dq अर्थात् क्रिस्टल क्षेत्र स्थायीकरण ऊर्जा के बराबर होता है। यदि संकुल द्वारा अवशोषण दृश्य क्षेत्र में होता है, तो संकुल के रंग की घोषणा करना संभव होता है। 

स्पेक्ट्रम का दृश्य क्षेत्र 4000A से 7000A तरंगदैर्घ्य के मध्य होता है। अवशोषण के अतिरिक्त शेष रंग ही संकुल का रंग होता है, जैसे -

(i) [Ti(H2O)6]+++ के लिए दृश्य क्षेत्र में 10Dq का मान लगभग 20000 cm-1 है। इसका अर्थ है कि यह संकुल नीला-हरा रंग शोषित करेगा। 

(ii) हाइड्रेटेड कॉपर (II) सल्फेट (CuSO4.5H2O) में [Cu(H2O)6]2+ आयन होता है, इसलिए यह नीला (Blue) होता है, क्योंकि यह पीले (Yellow) रंग के प्रकाश को अवशोषित करता है.

(iii) टेट्राऐमीन कॉपर (II) सल्फेट [Cu(NH3)6]2+ का रंग बैंगनी होता है, क्योंकि यह पीले - हरे प्रकाश को अवशोषित करता है।

क्रिस्टल क्षेत्र विभाजन क्या है?

क्रिस्टल क्षेत्र विभाजन उर्जा को प्रभावित करने वाले कारक संकुल यौगिक के निर्माण के समय धातु आयन के d कक्षकों में उपस्थित electrons एवं लिगेंड के दाता परमाणुओं के मध्य प्रतिकर्षण के कारण क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन होता है। धातु आयन के d कक्षक भिन्न उर्जा के दो सेटों में t2g एवं eg में विभाजित हो जाते है।

कौन से कारक क्रिस्टल क्षेत्र स्थिरीकरण ऊर्जा को प्रभावित करते हैं?

उत्तर– क्रिस्टल क्षेत्र स्थायीकरण ऊर्जा– लिगैण्ड एक बिन्दु आवेश के रूप में धातु आयन की ओर आकर्षित होकर स्थिर आकर्षण बल द्वारा बंध जाते हैं, d-कक्षक लिगैण्ड की उपस्थिति में विपाटित हो जाते हैं, जिसमें e का वितरण हुण्ड के नियम से होता है, इस प्रक्रिया में मुक्त ऊर्जा ''क्रिस्टल क्षेत्र स्थायीकरण ऊर्जा' कहलाती है।

क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत की सीमाएं क्या है?

VBT सिद्धांत की सीमाएं यह सिद्धांत बाह्य कक्षक संकुल यौगिक तथा आन्तरिक कक्षक संकुल यौगिक के बनने की व्याख्या नहीं कर सका। इस सिद्धांत के द्वारा संकुल यौगिको के रंग एवं स्पेक्ट्रम की व्याख्या नहीं की जा सकती है। यह सिद्धांत विकृत संरचना वाले संकुल यौगिकों की संरचना की व्याख्या नहीं कर सका।

क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत के अनुप्रयोग एवं सीमाऐं क्या है विस्तार पूर्वक?

संकुल यौगिक का रंग क्रिस्टल क्षेत्र विभाजन उर्जा (△0) की मात्रा पर निर्भर करता है अत: इसको निम्न कारक प्रभावित करते है। 2. आवेश स्थानांतरण स्पेक्ट्रम (charge transfer spectra ) : इस प्रकार के स्थानान्तरण में electron लिगेंड़ो के आण्विक कक्षकों से धातु आयन के आण्विक कक्षकों में गमन करता है