क्रिस्टल जालक बिंदु दोष क्या है यह कितने प्रकार के होते हैं? - kristal jaalak bindu dosh kya hai yah kitane prakaar ke hote hain?

  • आदर्श ठोस किसे कहते है:
    • (1) बिंदु दोष : 
    • (2) रेखीय दोष :

आदर्श ठोस किसे कहते है:

परम शून्य ताप पर अर्थात 0 (k) केल्विन ताप पर ठोस के अवयवी कण नियमित क्रम में व्यवस्थित रहते है इन्हे आदर्श ठोस कहते है।

सामान्य ताप पर ठोस के अवयवी कण नियमित क्रम में नहीं रहते अर्थात ठोस में अपूर्णताऐं या दोष होते है।

ये दो प्रकार के होते है :  

1. बिंदु दोष

2. रेखीय दोष

(1) बिंदु दोष : 

जालक बिंदु के चारों ओर परमाणुओं की आदर्श व्यवस्था में विचलन से उत्पन्न दोष को बिंदु दोष कहते है।

(2) रेखीय दोष :

जालक बिंदु को मिलाने वाली पंक्तियों की आदर्श व्यवस्था में विचलन से उत्पन्न दोष को रेखीय दोष कहते हैं।

बिंदु दोष : 

बिंदु दोष तीन प्रकार के होते है।

(a) स्ट्राइकियोमिट्री दोष

(b) नॉन स्ट्राइकियोमिट्री दोष

(c) अशुद्धता दोष

आइये बिंदु दोष के इन तीनो प्रकार के दोषो के बारे में विस्तार से पढ़ते है।

(a) स्ट्राइकियोमिट्री दोष  : इन दोषों में यौगिक की स्ट्राइकियोमिट्री बनी रहती है।

ये दोष चार प्रकार के होते है।

(१) रिक्तिका दोष :

इस दोष में कुछ स्थानों पर अवयवी कण अपने स्थान से हट जाते है तथा उनके स्थान पर रिक्तिकाएँ बन जाती है।

इस दोष के कारण घनत्व में कमी आ जाती है।

(२) अन्तराकाशीय दोष :

इस दोष में कुछ अवयवी कण अन्तराकाशी स्थान में आ जाते है।

इस दोष के कारण घनत्व में वृद्धि हो जाती है।

नोट : उपरोक्त दोनों दोष नोन आयनिक यौगिकों में पाये जाते है , ये ताप के प्रभाव से उत्पन्न होते है अतः इन्हे ऊष्मा गतिकी दोष भी कहते है।

नोट : आयनिक यौगिकों में निम्न दोष पाए जाते है|

(३) शॉटकी दोष :

इस दोष में जितने धनायन अपने स्थान से हटते है उतने ही ऋणायन भी अपने स्थान से हट जाते हैं।

इस दोष के कारण घनत्व में कमी हो जाती है।

वे आयनिक यौगिक जिनमे धनायन ऋणायन के आकार लगभग समान होता है उनमे यह दोष होता है।

इसे रिक्तिका दोष  भी कहते हैं।

उदाहरण : NaCl , CsCl , AgBr  आदि।

(४) फ्रैंकल दोष :

इस दोष में धनायान अपने स्थान से हटकर अंतराकाशी स्थान में चला जाता है।

इस दोष के कारण दोष के घनत्व में परिवर्तन नहीं होता।

वे आयनिक यौगिक जिनमे धनायन व ऋणायन के आकार में अधिक अंतर होता है उनमे यह दोष पाया जाता है।

इस दोष के कारण परावैधुतांक कम हो जाता है।

उदाहरण : AgCl , AgBr , AgI , ZnS आदि।

नोट : AgBr में शॉटकी व फ्रैंकल दोनों दोष पाए जाते हैं।

(b) नॉन स्ट्राइकियोमिट्री दोष  : 

वे त्रुटि युक्त क्रिस्टल संरचनायें जिनमे धनायन व ऋणायन की संख्याओं का अनुपात यौगिक के रासायनिक सूत्र के अनुरूप नहीं होता , उनमे नॉन स्ट्राइकियोमिट्री दोष  होते हैं।

उदाहरण : FeO  में Fe व O का अनुपात 1:1 न होकर 0.93 से 0.96 : 1 होता है।

ये दोष दो प्रकार के होते है।

(१) धातु आधिक्य दोष :

यह दो प्रकार का होता हैं।

(अ) ऋणायन के अभाव से :

इस दोष के कारण ऋणायन अपने स्थान से हट जाते है तथा उस स्थान पर इलेक्ट्रॉन आ जाते है।  जिस स्थान पर इलेक्ट्रॉन रहते है उसे F केंद्र कहते है।  अर्थात रंग उत्पन्न करने वाला केंद्र , इस दोष के कारण NaCl हल्का पीला , KCl बैंगनी होता हैं।

नोट : जब नमक को सोडियम वाष्प के संपर्क में लाया जाता है तो उसकी सतह पर सोडियम परमाणु आ जाते है जबकि NaCl में से क्लोराइड आयन हटकर सोडियम के संपर्क में आ जाता है।  सोडियम अपना इलेक्ट्रॉन त्यागकर Na+ आयन बना लेता है।  यह इलेक्ट्रॉन उस स्थान पर आ जाता है जहाँ से क्लोराइड आयन हटता है।

(ब) अतिरिक्त धनायन के कारण :

अतिरिक्त धनायन के अंतराकाशी स्थान में जाने से ZnO सफ़ेद रंग का होता है।  जब इसे गर्म करते है तो कुछ Zn2+ आयन अंतराकाशी स्थान में आ जाते है।  ठोस की विधुत उदासीनता को बनाये रखने के लिए कुछ इलेक्ट्रॉन भी अंतराकाशी  स्थान में आ जाते है जिससे ZnO का रंग पीला हो जाता है।

(२) धातु न्यूनता दोष :

इस दोष में कुछ धनायन अपने स्थान से हट जाते है।  ठोस की विधुत उदासीनता को बनाये रखने के लिए अन्य धातु आयन अपनी ऑक्सीकरण अवस्था को बढ़ा देते है।

नोट : संक्रमण तत्वों के यौगिकों में यह दोष पाया जाता है।

(c) अशुद्धता दोष :

जब NaCl में SrCl2 की अशुद्धि मिली होती है तो कुछ Na+ आयन के स्थान पर Sr+ आयन आ जाते है।  ठोस की विधुत उदासीनता को बनाये रखने के लिए उतने ही Na+ आयन हट जाते है।

  • ठोसों में दोष
    • बिंदु दोष
      • बिंदु दोष के प्रकार
    • 1. स्टोइकियोमीट्री दोष
      • (a) शाॅटकी दोष
      • (b) फ्रेंकल दोष
      • (c) रिक्तिका दोष
      • (d) अंतराकाशी दोष
    • 2. नाॅन-स्टोइकियोमीट्री दोष
      • (i) धातु आधिक्य दोष
      • (ii) धातु न्यूनता दोष

ठोसों में दोष

क्रिस्टल में अल्प अपूर्णताएं अवश्य पाई जाती हैं इन अपूर्णताओं को ही ठोसों में दोष (defects in solid in Hindi) कहते हैं।
ठोसों में दोष दो प्रकार के पायें जाते हैं।
(1) बिंदु दोष
(2) रेखीय दोष

बिंदु दोष

क्रिस्टल में किसी परमाणु के चारों ओर की आदर्श व्यवस्था में उत्पन्न दोष को बिंदु दोष (point defects in Hindi) कहते हैं।

बिंदु दोष के प्रकार

बिंदु दोष दो प्रकार के होते हैं-
(1) स्टोइकियोमीट्री दोष (रससमीकरण दोष)
(2) नाॅन-स्टोइकियोमीट्री दोष (अरससमीकरण दोष)

1. स्टोइकियोमीट्री दोष

वह दोष जिसके कारण क्रिस्टल में उपस्थित धनायनों तथा ऋणायनों का अनुपात परिवर्तित नहीं होता है। इस प्रकार के दोष को स्टोइकियोमीट्री दोष (stoichiometric defects in Hindi) कहते हैं।
स्टोइकियोमीट्री दोष निम्न प्रकार के होते हैं-
(a) शाॅटकी दोष
(b) फ्रेंकल दोष
(c) रिक्तिका दोष
(d) अंतराकाशी दोष

(a) शाॅटकी दोष

यह दोष साधारण आयनिक ठोसों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
इस दोष में धनायन और ऋणायन अपने स्थान से हट जाते हैं। अर्थात् आयनिक यौगिकों के क्रिस्टल में जब विपरीत आयन सामान्य जालक स्थलों से अनुपस्थित हो जाते हैं। तो क्रिस्टल में रिक्तिकाएं उत्पन्न हो जाती हैं। इन रिक्तियों को ही शॉटकी दोष (Schottky defects in hindi) कहते हैं। शॉटकी दोष में धनायन और ऋणायन लगभग समान आकार के होते हैं। चित्र से स्पष्ट है।

शाॅटकी दोष

(b) फ्रेंकल दोष

सन 1930 ई० में वैज्ञानिक फ्रेंकल ने इस दोष के बारे में बताया।
यह दोष उस समय उत्पन्न होता है जब एक आयन अपनी जालक स्थिति को त्यागकर अंतराकाशी स्थिति को ग्रहण कर लेता है। तो क्रिस्टल में उत्पन्न दोष को फ्रेंकल दोष (Frankel defects in hindi) कहते हैं।
फ्रेंकल दोष का क्रिस्टल के घनत्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। चित्र में दर्शाया गया है।

फ्रेंकल दोष

(c) रिक्तिका दोष

जब क्रिस्टल में कुछ जालक स्थल रिक्त हो जाते हैं तब क्रिस्टल में रिक्तिका दोष (vacancy defects in hindi) उत्पन्न हो जाता है। यह दोष पदार्थ के घनत्व को कम कर देता है।

(d) अंतराकाशी दोष

जब कुछ अवयवी कण (परमाणु, अणु या आयन) अंतराकाशी स्थल पर पहुंच जाते हैं तो क्रिस्टल में एक दोष उत्पन्न हो जाता है। जिसे अंतराकाशी दोष (interstitial defects in hindi) कहते हैं। इस दोष से पदार्थ का घनत्व बढ़ जाता है।

अंतराकाशी दोष

अंतराकाशी स्थल, चार अवयवी कणों के बीच का स्थान होता है।

2. नाॅन-स्टोइकियोमीट्री दोष

जब क्रिस्टल में उपस्थित धनायनों तथा ऋणायनों की संख्या का अनुपात परिवर्तित हो जाता है तो क्रिस्टल में एक दोष उत्पन्न हो जाता है‌ जिसे नाॅन-स्टोइकियोमीट्री दोष कहते हैं।
यह दोस्त दो प्रकार के होते हैं।
(i) धातु आधिक्य दोष
(ii) धातु न्यूनता दोष

(i) धातु आधिक्य दोष

यह दोष क्रिस्टल में तब उत्पन्न होता है जब क्रिस्टल का एक ऋणायन अपनी स्थिति को त्यागकर एक छिद्र का निर्माण करता है और छिद्र में एक इलेक्ट्रॉन प्रवेश करता है। ताकि क्रिस्टल की विद्युत उदासीनता पर कोई प्रभाव न पड़े, तो इस प्रकार के दोष को धातु आधिक्य दोष कहते हैं।

(ii) धातु न्यूनता दोष

यह दोष तब उत्पन्न होता है जब धनायन अपनी जालक स्थिति में अनुपस्थित रहता है। और ऊंचे ऑक्सीकरण अवस्था में स्थित किसी पास के धातु आयन आवेश को संतुलित करता है। जिससे क्रिस्टल की विद्युत उदासीनता पर कोई प्रभाव न पड़े, तो क्रिस्टल के इस दोष को धातु न्यूनता दोष कहते हैं।

जालक दोष कितने प्रकार के होते हैं?

जालक दोष या तो रेखीय (line) या तलीय (plane) होते हैं

क्रिस्टलीय दोष कितने प्रकार के होते हैं?

क्रिस्टलीय ठोस के प्रकार क्रिस्टलीय ठोसों को उनमें परिचालित अंतराआण्विक बलों की प्रकृति के आधार पर चार संवर्गो में वर्गीकृत किया जा सकता है- आण्विक, आयनिक, धात्विक और सहसंयोजक।

क्रिस्टल बिंदु दोष क्या है?

क्रिस्टल में यह दोष अवयवी कण (धनायन अथवा ऋणायन अथवा परमाणु) के अपने नियमित स्थान से लुप्त हो जाने अथवा अपने निश्चित स्थान को छोड़कर क्रिस्टल जालक में अन्य स्थान पर चले जाने के कारण उत्पन्न होता है। इसे बिंदु दोष कहते है।

जालक दोष से आप क्या समझते?

एक ठोस जालक में जब धनायन अपने स्थान को छोड़कर अन्तराकाशी स्थल को ग्रहण कर लेता है तो जालक दोष कहलाता है-

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