कक्षा 11 हिंदी अध्याय 1 नमक का दारोगा सवाल जवाब - kaksha 11 hindee adhyaay 1 namak ka daaroga savaal javaab

कक्षा 11 हिंदी में कई महत्वपूर्ण पाठ हैं, जिनमें से एक नमक का दरोगा पाठ भी महत्वपूर्ण है। हर वर्ष इस पाठ में से कई सवाल पूछे जाते हैं। यहां हम हिंदी कक्षा 11 “आरोह भाग- ” के पाठ-1 “नमक का दरोगा कक्षा″ कहानी के सार कठिन-शब्दों के अर्थ , लेखक के बारे में और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर, इन सभी के बारे में जानेंगे। चलिए जानते हैं ” Namak Ka Daroga″ कहानी के बारे में विस्तार से। 

कक्षा11विषयहिंदीपाठ संख्या1पाठ का नामनमक का दरोगा

                 ज़रूर पढ़ें: 260+ कठिन शब्द और उनके अर्थ [Most Difficult Words]

Namak Ka Daroga के प्रश्न उत्तर pdfDownload

लेखक परिचय

Namak Ka Daroga पाठ का लेखक परिचय इस प्रकार है:

Neelam Soni कहते हैं:

सितम्बर 28, 2021 को 9:39 अपराह्न पर

I want more MCQ type questions in all chapter.
Thank you☺️☺️

प्रतिक्रिया

  1. Team Leverage Edu कहते हैं:

    सितम्बर 29, 2021 को 6:54 अपराह्न पर

    बिल्कुल आप अन्य ब्लॉग्स में ऐसे ही MCQ पढ़ सकते हैं।

    प्रतिक्रिया

  • Ranjoo Chaudhary कहते हैं:

    नवम्बर 5, 2021 को 9:28 पूर्वाह्न पर

    Literally helpful notes.
    Thank you, Leverage Edu.

    प्रतिक्रिया

    1. Team Leverage Edu कहते हैं:

      नवम्बर 25, 2021 को 3:23 अपराह्न पर

      आपका शुक्रिया। ऐसे ही हमारी https://leverageedu.com/ पर बने रहिये।

      प्रतिक्रिया

  • Sachin कहते हैं:

    दिसम्बर 15, 2021 को 5:49 अपराह्न पर

    Good

    प्रतिक्रिया

    1. Team Leverage Edu कहते हैं:

      दिसम्बर 27, 2021 को 10:13 अपराह्न पर

      बहुत-बहुत आभार।

      प्रतिक्रिया

    2. Team Leverage Edu कहते हैं:

      दिसम्बर 27, 2021 को 10:14 अपराह्न पर

      आभार।

      प्रतिक्रिया

  • Sachin कहते हैं:

    दिसम्बर 15, 2021 को 5:50 अपराह्न पर

    Good nice

    प्रतिक्रिया

    1. Team Leverage Edu कहते हैं:

      दिसम्बर 27, 2021 को 10:13 अपराह्न पर

      बहुत-बहुत आभार।

      प्रतिक्रिया

    1. Neelam Soni कहते हैं:

      सितम्बर 28, 2021 को 9:39 अपराह्न पर

      I want more MCQ type questions in all chapter.
      Thank you☺️☺️

      प्रतिक्रिया

      1. Team Leverage Edu कहते हैं:

        सितम्बर 29, 2021 को 6:54 अपराह्न पर

        बिल्कुल आप अन्य ब्लॉग्स में ऐसे ही MCQ पढ़ सकते हैं।

        प्रतिक्रिया

    2. Ranjoo Chaudhary कहते हैं:

      नवम्बर 5, 2021 को 9:28 पूर्वाह्न पर

      Literally helpful notes.
      Thank you, Leverage Edu.

      प्रतिक्रिया

      1. Team Leverage Edu कहते हैं:

        नवम्बर 25, 2021 को 3:23 अपराह्न पर

        आपका शुक्रिया। ऐसे ही हमारी https://leverageedu.com/ पर बने रहिये।

        प्रतिक्रिया

    View Comments (9)

    उत्तर- इस कहानी में मुंशी वंशीधर मुझे सर्वाधिक प्रभावित करते हैं, क्योंकि वे ईमानदार, कर्तव्य परायण, कठोर, बेमुरौवत और धर्मनिष्ठ व्यक्ति थे। उनके घर की आर्थिक दशा बहुत खराब थी पर फिर भी उनका ईमान नहीं डगमगाया। उनके पिता ने उन्हें ऊपरी आय पर नजर रखने की नसीहत दी, पर वे सत्य के मार्ग पर अडिग खड़े रहे। आज देश को ऐसे कर्मियों की जरूरत है जो बिना लालच के सत्य के मार्ग पर अडिग खड़े रहें जो परिणाम का बेखौफ़ होकर सामना कर सकें।

    प्रश्न 2: ‘नमक का दरोगा’ कहानी में पंडित अलोपीदीन के व्यक्तित्व के कौन-से दो पहलू (पक्ष) उभरकर आते हैं?

    उत्तर- पंडित अलोपीदीन के दो पहलू सामने आते हैं-

    (क) लक्ष्मी के उपासक-पंडित अलोपीदीन लक्ष्मी के उपासक हैं। वे लक्ष्मी को सर्वोच्च मानते हैं। उन्होंने अदालत में सबको खरीद रखा है। वे कुशल वक्ता भी हैं। वाणी व धन से उन्होंने सबको वश में कर रखा है। इसी कारण वे नमक का अवैध धंधा करते हैं। वंशीधर द्वारा पकड़े जाने पर वे अदालत में धन के बल पर स्वयं को रिहा करवा लेते हैं और वंशीधर को नौकरी से हटवा देते हैं।
    (ख) ईमानदारी के कायल-कहानी के अंत में इनका उज्ज्वल रूप सामने आता है। वे वंशीधर की ईमानदारी के कायल हैं। ऐसा व्यक्ति उन्हें सरलता से नहीं मिल सकता था। वे स्वयं उनके घर पहुँचे और उसे अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर बना दिया। उन्हें अच्छा वेतन व सुविधाएँ देकर मान-सम्मान बढ़ाया। उनके स्थान पर आम व्यक्ति तो सदा बदला लेने की बात ही सोचता रहता।cc

    प्रश्न 3: कहानी के लगभग सभी पात्र समाज की किसी-न-किसी सच्चाई को उजागर करते हैं। निम्नलिखित पात्रों के संदर्भ में पाठ से उस अंश को उदधृत करते हुए बताइए कि यह समाज की किस सच्चाई को उजागर करते हैं-

    (क) वृदध मुंशी

    (ख) वकील

    (ग) शहर की भीड़

    उत्तर-

    (क) वृद्ध मुंशी – “बेटा! घर की दुर्दशा देख रहे हो। ऋण के बोझ से दबे हुए हैं। लड़कियाँ हैं, वह घास-फूस की तरह बढ़ती चली जाती हैं। मैं कगारे पर का वृक्ष हो रहा हूँ, न मालूम कब गिर पड़े। अब तुम्हीं घर के मालिक-मुख्तार हो। नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मज़ार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्धि नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती है, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊँ। इस विषय में विवेक की बड़ी आवश्यकता है। मनुष्य को देखो, उसकी आवश्यकता को देखो और अवसर को देखो, उसके उपरांत जो उचित समझो, करो। गरजवाले आदमी के साथ कठोरता करने में लाभ ही लाभ है। लेकिन बेगरज़ को दाँव पर पाना जरा कठिन है। इन बातों को निगाह में बाँध लो। यह मेरी जन्मभर की कमाई है।
    यह संदर्भ समाज की इस सच्चाई को उजागर करता है कि कमजोर आर्थिक दशा के कारण लोग धन के लिए अपने बच्चों को भी गलत राह पर चलने की सलाह दे डालते हैं।

    (ख) वकील – वकीलों ने यह फैसला सुना और उछल पड़े। पंडित अलोपीदीन मुसकुराते हुए बाहर निकले। स्वजनबांधवों ने रुपयों की लूट की। उदारता का सागर उमड़ पड़ा। उसकी लहरों ने अदालत की नींव तक हिला दी। जब वंशीधर बाहर निकले तो चारों ओर से उनके ऊपर व्यंग्यबाणों की वर्षा होने लगी। चपरासियों ने झुक-झुककर सलाम किए। किंतु इस समय एक-एक कटुवाक्य, एक-एक संकेत उनकी गर्वाग्नि को प्रज्वलित कर रहा था। कदाचित् इस मुकदमे में सफ़ल होकर वह इस तरह अकड़ते हुए न चलते। आज उन्हें संसार का एक खेदजनक विचित्र अनुभव हुआ। न्याय और विद्वता, लंबी-चौड़ी उपाधियाँ, बड़ी-बड़ी दाढ़ियाँ और ढीले चोंगे एक भी सच्चे आदर के पात्र नहीं हैं।
    इस संदर्भ में ज्ञात होता है कि वकील समाज में झूठ और फ़रेब का व्यापार करके सच्चे लोगों को सजा और झूठों के पक्ष में न्याय दिलवाते हैं।

    (ग) शहर की भीड़ – दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जागती थी। सवेरे देखिए तो बालक-वृद्ध सबके मुँह से यही बात सुनाई देती थी। जिसे देखिए, वही पंडित जी के इस व्यवहार पर टीका-टिप्पणी कर रहा था, निंदा की बौछारें हो रही थीं, मानो संसार से अब पापी का पाप कट गया। पानी को दूध के नाम से बेचनेवाला ग्वाला, कल्पित रोजनामचे भरनेवाले अधिकारी वर्ग, रेल में बिना टिकट सफ़र करनेवाले बाबू लोग, जाली दस्तावेज़ बनानेवाले सेठ और साहूकार, यह सब-के-सब देवताओं की भाँति गरदने चला रहे थे। जब दूसरे दिन पंडित अलोपीदीन अभियुक्त होकर कांस्टेबलों के साथ, हाथों में हथकड़ियाँ, हृदय में ग्लानि और क्षोभभरे, लज्जा से गरदन झुकाए अदालत की तरफ़ चले, तो सारे शहर में हलचल मच गई। मेलों में कदाचित् आँखें इतनी व्यग्र न होती होंगी। भीड़ के मारे छत और दीवार में कोई भेद न रहा। शहर की भीड़ निंदा करने में बड़ी तेज़ होती है। अपने भीतर झाँक कर न देखने वाले दूसरों के विषय में बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। दूसरों पर टीका-टिप्पणी करना बहुत ही आसान काम है।

    प्रश्न 4: निम्न पंक्तियों को ध्यान से पढ़िए-
    नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मजार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढ़ना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता हैं और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत हैं जिससे सदैव प्यास बुझती हैं। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्ध नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती हैं, तुम स्वय विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊ।

    (क) यह किसकी उक्ति है?

    (ख) मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद क्यों कहा गया है?

    (ग) क्या आप एक पिता के इस वक्तव्य से सहमत हैं?

    उत्तर-

    (क) यह उक्ति वंशीधर के पिता की है।
    (ख) मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद कहा गया है, क्योंकि यह भी महीने में एक बार ही दिखाई देता है। इसके बाद यह घटता चला जाता है और अंत में वह समाप्त हो जाता है। वेतन भी एक बार पूरा आता है और खर्च होते-होते महीने के अंत तक समाप्त हो जाता है।
    (ग) मैं पिता के इस वक्तव्य से सहमत नहीं हूँ। पिता का कर्तव्य पुत्र को सही रास्ते पर चलाना होता है, परंतु यहाँ पिता स्वयं ही भ्रष्टाचार के रास्ते पर चलने की सलाह दे रहा है।

    प्रश्न 5: ‘नमक का दरोगा’ कहानी के कोई दो अन्य शीर्षक बताते हुए उसके आधार को भी स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर-
    1. धर्म की जीत/सत्य की विजय
    2. कर्तव्यनिष्ठ दारोगा
    आधार – धर्म की जीत/सत्य की विजय शीर्षक का आधार है कि धन के आगे धर्म झुका नहीं और अंत में पंडित अलोपीदीन ने भी धर्म के द्वार पर जाकर माथा टेक दिया।
    2. कर्तव्यनिष्ठ दारोगा-वंशीधर जैसा सत्यव्रत लेने वाले युवक जो पिता के कहने और घर की दशा को देखकर भी धन के लालच में नहीं आया। उसी के चारों ओर पूरी कहानी घूमती है।

    प्रश्न 6: कहानी के अंत में अलोपीदीन के वंशीधर को मैनेजर नियुक्त करने के पीछे क्या कारण हो सकते हैं? तर्क सहित- उत्तर दीजिए। आप इस कहानी का अंत किस प्रकार करते?

    उत्तर- कहानी के अंत में अलोपीदीन ने वंशीधर को मैनेजर नियुक्त कर दिया। इसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं-

    (क) अलोपीदीन स्वयं भ्रष्ट था, परंतु उसे अपनी जायदाद को सँभालने के लिए ईमानदार व्यक्ति की जरूरत थी। वंशीधर उसकी दृष्टि में योग्य व्यक्ति था।
    (ख) अलोपीदीन आत्मग्लानि से भी पीड़ित था। उसे ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति की नौकरी छिनने का दुख था। मैं इस कहानी का अंत इस प्रकार करता-ग्लानि से भरे अलोपीदीन वंशीधर के पास गए और वंशीधर के समक्ष ऊँचे वेतन के साथ मैनेजर पद देने का प्रस्ताव रखा। यह सुन वंशीधर ने कहा-यदि आपको अपने किए पर ग्लानि हो रही है तो अपना जुर्म अदालत में कबूल कर लीजिए। अलोपीदीन ने वंशीधर की शर्त मान ली। अदालत ने सारी सच्चाई जानकर वंशीधर को नौकरी पर रखने का आदेश दिया। वंशीधर सेवानिवृत्ति तक ईमानदारीपूर्वक नौकरी करते रहे। सेवानिवृत्ति के उपरांत अलोपीदीन ने वंशीधर को अपने समस्त कार्यभार के लिए मैनेजर नियुक्त कर लिया।

    पाठ के आस-पास

    प्रश्न 1: दारोगा वंशीधर गैरकानूनी कार्यों की वजह से पंडित अलोपीदीन को गिरफ्तार करता है, लेकिन कहानी के अंत में इसी पंडित अलोपीदीन की सहृदयता पर मुग्ध होकर उसके यहाँ मैनेजर की नौकरी को तैयार हो जाता है। आपके विचार से वंशीधर का ऐसा करना उचित था? आप उसकी जगह होते तो क्या करते?

    उत्तर- वंशीधर स्वयं सत्यनिष्ठ था, वह कहीं भी नौकरी करे अपने काम को निष्ठा से करेगा यह उसका प्रण था। अलोपीदीन या पुलिस विभाग कितना भ्रष्ट है, उससे उसे कोई मतलब नहीं था। यह उचित भी है, हम स्वयं को नियंत्रण में रखकर कहीं भी नौकरी करें हमारा मन पवित्र हो, हमें अपने कर्तव्य का ध्यान हो यही सबसे ज्यादा जरूरी है। यदि हम उसकी जगह होते तो वही करते जो उसने किया। कीचड़ में ही कमल रहता है।

    प्रश्न 2: नमक विभाग के दारोगा पद के लिए बड़ों-बड़ों का जी ललचाता था। वर्तमान समाज में ऐसा कौन-सा पद होगा जिसे पाने के लिए लोग लालायित रहते होंगे और क्यों?

    उत्तर- आज समाज में आई.ए.एस., आई.पी.एस., आई.एफ.एस., आयकर, बिक्री कर आदि की नौकरियों के लिए लोग लालायित रहते हैं, क्योंकि इन सभी पदों पर ऊपर की आमदनी के साथ-साथ पद का रोब भी मिलता है। ये देश के नीति निर्धारक भी होते हैं।

    प्रश्न 4: ‘पढ़ना-लिखना सब अकारथ गया।’ वृद्ध मुंशी जी दवारा यह बात एक विशिष्ट संदर्भ में कही गई थी। अपने निजी अनुभवों के आधार पर बताइए-

    (क) जब आपको पढ़ना-लिखना व्यर्थ लगा हो।

    (ख) जब आपको पढ़ना-लिखना सार्थक लगा हो।

    (ग) ‘पढ़ना’-लिखना’ को किस अर्थ में प्रयुक्त किया गया होगा साक्षरता अथवा शिक्षा? (क्या आप इन दोनों को समान मानते हैं?)

     

    उत्तर-

    (क) मेरा एक साथी अनपढ़ था। उसने व्यापार करना प्रारंभ किया और शीघ्र ही बहुत धनी और समाज का प्रतिष्ठित आदमी बन गया। मैंने पढ़ाई में ध्यान दिया तथा प्रथम श्रेणी में डिग्रियाँ लेने के बावजूद आज भी बेरोजगार हूँ। नौकरी के लिए मुझे उसकी सिफारिश करवानी पड़ी तो मुझे अपनी पढ़ाई-लिखाई व्यर्थ लगी।
    (ख) पढ़ने-लिखने के बाद जब मैं कॉलेज में प्रोफेसर हो गया तो बड़े-बड़े अधिकारी, व्यापारी अपने बच्चों के दाखिले के लिए मेरे पास प्रार्थना करने आए। उन्हें देखकर मुझे अपनी पढ़ाई-लिखाई सार्थक लगी।
    (ग) ‘पढ़ना-लिखना’ को शिक्षा के अर्थ में प्रयुक्त किया था, क्योंकि साक्षरता का अर्थ अक्षरज्ञान से लिया जाता – है। शिक्षा विषय के मर्म को समझाती है।

    प्रश्न 5: ‘लड़कियाँ हैं, वह घास-फूस की तरह बढ़ती चली जाती हैं।’ वाक्य समाज में लड़कियों की स्थिति की किस वास्तविकता को प्रकट करता है?
    उत्तर- इस कथन से तत्कालीन समाज में लड़कियों के प्रति उपेक्षा का भाव प्रकट होता है। जिस प्रकार खेत में उगी व्यर्थ घास फूस को उखाड़ने में बेकार की मेहनत लगती है, उसी प्रकार तत्कालीन समाज में लड़कियों को पाल-पोसकर ब्याह करना बेकार की बेगार मानी जाती थी, पर आज हमारे समाज में ऐसा नहीं है।

    प्रश्न 6: ‘इसलिए नहीं कि अलोपीदीन ने क्यों यह कर्म किया, बल्कि इसलिए कि वह कानून के पंजे में कैसे आए। ऐसा मनुष्य जिसके पास असाध्य साधन करनेवाला धन और अनन्य वाचालता हो, वह क्यों कानून के पंजे में आए। प्रत्येक मनुष्य उनसे सहानुभूति प्रकट करता था।’ अपने आस-पास अलोपीदीन जैसे व्यक्तियों को देखकर आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी? उपर्युक्त टिप्पणी को ध्यान में रखते हुए लिखें।

    उत्तर-  अलोपीदीन जैसे व्यक्ति को देखकर मुझे कुढ़न-सी महसूस होगी। ऐसे व्यक्ति कानून को मखौल बनाते हैं। इन्हें सजा अवश्य मिलनी चाहिए। मुझे उन लोगों पर भी गुस्सा आता है जो उनके प्रति सहानुभूति जताते हैं।

    प्रश्न 7: समझाइए तो ज़रा-

    1. नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर की मज़ार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए।

    2. इस विस्तृत ससार में उनके लिए धैर्य अपना मित्र, बुद्ध अपनी पथ-प्रदर्शक और आत्मावलबन ही अपना सहायक था।

    3. तर्क ने भ्रम को पुष्ट किया।

    4. न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं, इन्हें वह जैसे चाहती हैं, नचाती हैं।

    5. दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जागती थी।

    6. खद एंसी समझ पर पढ़ना-लिखना सब अकारथ गया।

    7. धम ने धन को पैरों तल कुचल डाला।

    8. न्याय के मैदान में धर्म और धन में युद्ध ठन गया।

    उत्तर-

    1. नौकरी में पद को महत्व न देकर उस से होने वाली ऊपर की कमाई पर ध्यान देना चाहिए।

    2. इस संसार में व्यक्ति के जीवन संघर्ष में धैर्य, बुद्ध, आत्मावलंबन ही क्रमश: मित्र, पथप्रदर्शक व सहायक का काम करते हैं। हर व्यक्ति अकेला होता है। उसे स्वयं ही कुछ पाना होता है।

    3. मनुष्य के मन में भ्रम रहता है। अनेक स्थितियों में फैंसे होने पर जब व्यक्ति तर्क करता है तो सारे भ्रम दूर हो जाते हैं या संदेह पुष्टि हो जाती है।

    4. इसका अर्थ है कि धन से न्याय व नीति को भी प्रभावित किया जाता है। धन से मर्जी का न्याय लिया जा सकता है तथा नीतियाँ भी अपने हक की बनवाई जा सकती हैं। ये सब धन के संकेतों पर नाचने वाली कठपुतलियाँ हैं।

    5. यह संसार के स्वभाव पर तीखी टिप्पणी है। संसार में लोग कुछ करें या न करें, दूसरे की निंदा करते हैं। हालाँकि निंदा करने वाले को अपनी कमी का ध्यान नहीं रहता।

    6. यह बात बूढ़े मुंशी ने कही थी। उन्हें वंशीधर द्वारा रिश्वत के मौके को ठुकराने का दुख है। इस नासमझी के कारण वह उसकी पढ़ाई-लिखाई को निरर्थक मानता है।

    7. धर्म मानव की दिशा निर्धारित करता है। सत्यनिष्ठा के कारण वंशीधर ने अलोपीदीन द्वारा चालीस हजार रुपये की पेशकश को ठुकरा दिया। उसके धर्म ने धन को कुचल दिया।

    8. यहाँ अदालतों की कार्य शैली पर व्यंग्य है। अदालतें न्याय का मंदिर कही जाती हैं, परंतु यहाँ भी सब कुछ बिकाऊ था। धन के कारण न्याय के सभी शस्त्र सत्य को असत्य सिद्ध करने में जुट गए। सत्य की तरफ अकेला वंशीधर था। अत: वहाँ धन व धर्म में युद्ध-सा हो रहा था।

    भाषा की बात

    प्रश्न 1: भाषा की चित्रात्मकता, लोकोक्तियों और मुहावरों का जानदार उपयोग तथा हिंदी-उर्दू के साझा रूप एवं बोलचाल की भाषा के लिहाज़ से यह कहानी अदभुत है। कहानी में से ऐसे उदाहरण छाँट कर लिखिए और यह भी बताइए कि इनके प्रयोग से किस तरह कहानी का कथ्य अधिक असरदार बना है?

    उत्तर- इस कहानी में ऐसे अनेक उदाहरण हैं –

    दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जागती थी।
    वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है…
    ऊपरी आय तो बहता स्रोत है।
    पीर का मज़ार है… आदि।

    प्रश्न 2: कहानी में मासिक वेतन के लिए किन-किन विशेषणों का प्रयोग किया गया है? इसके लिए आप अपनी ओर से दो-दो विशेषण और बताइए। साथ ही विशेषणों के आधार को तर्क सहित पुष्ट कीजिए।

    उत्तर- कहानी में मासिक वेतन के लिए निम्नलिखित विशेषणों का प्रयोग किया गया है-पूर्णमासी का चाँद। हमारी तरफ से विशेषण हो सकते हैं-एक दिन का सुख या खून-पसीने की कमाई।

    प्रश्न 3:

    (क) बाबू जी अशीवाद!

    (ख) सरकारी हुक्म!

    (ग) दातागंज के।

    (घ) कानपुर

    दी गई विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ एक निश्चित संदर्भ में निश्चित अर्थ देती हैं। संदर्भ बदलते ही अर्थ भी परिवर्तित हो जाता है। अब आप किसी अन्य संदर्भ में इन भाषिक अभिव्यक्तियों का प्रयोग करते हुए समझाइए।

    उत्तर-
    (क) बाबूजी, आशीर्वाद! – अलोपीदीन को अपने धन और मान पर इतना घमंड था कि वे किसी पदाधिकारी को भी कुछ नहीं मानते थे। नमस्कार कहने के बजाए आशीर्वाद कह रहे थे।
    (ख) सरकारी हुक्म! – वंशीधर हुक्म का पालन करने में किसी भी स्थिति में पीछे हटना या ज्यादा बात करना नहीं चाहते थे।
    (ग) दातागंज के! – अलोपीदीन जैसे प्रतिष्ठित के लिए इतना परिचय काफ़ी था।
    (घ) कानपुर! – जब चोरी पकड़ी जा रही थी तो यथा संभव संक्षिप्त उत्तर ही देना उचित
    था। इन सभी अभिव्यक्तियों को बोलने के लहजे से बदला जा सकता है। अतः मौखिक अभ्यास करें।

    बोधात्मक प्रशन

    प्रश्न 1: ‘नमक का दरोगा’ पाठ का प्रतिपाद्य बताइए।

    उत्तर- ‘नमक का दरोगा’ प्रेमचंद की बहुचर्चित कहानी है, जिसमें आदर्शान्मुख यथार्थवाद का एक मुकम्मल उदाहरण है। यह कहानी धन के ऊपर धर्म की जीत है। ‘धन’ और ‘धर्म’ को क्रमश: सद्वृत्ति और असद्वृत्ति, बुराई और अच्छाई, असत्य और सत्य कहा जा सकता है। कहानी में इनका प्रतिनिधित्व क्रमश: पंडित अलोपीदीन और मुंशी वंशीधर नामक पात्रों ने किया है। ईमानदार, कर्मयोगी मुंशी वंशीधर को खरीदने में असफल रहने के बाद पंडित अलोपीदीन अपने धन की महिमा का उपयोग कर उन्हें नौकरी से हटवा देते हैं, लेकिन अंत में सत्य के आगे उनका सिर झुक जाता है। वे सरकारी विभाग से बखास्त वंशीधर को बहुत ऊँचे वेतन और भत्ते के साथ अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर नियुक्त करते हैं और गहरे अपराध से भरी हुई वाणी में निवेदन करते हैं- ‘परमात्मा से यही प्रार्थना है कि वह आपको सदैव वही नदी के किनारे वाला बेमुरौवत, उद्दंड, किंतु धर्मनिष्ठ दरोगा बनाए रखे।’

    प्रश्न 2. वंशीधर के पिता ने उसे कौन-कौन-सी नसीहतें दीं?

    उत्तर- वंशीधर के पिता ने उसे निम्नलिखित बातों की नसीहतें दीं-

    (क) ओहदे पर पीर की मज़ार की तरह नज़र रखनी चाहिए।
    (ख) मज़ार पर आने वाले चढ़ावे पर ध्यान रखो।
    (ग) जरूरतमंद व्यक्ति से कठोरता से पेश आओ ताकि धन मिल सके।
    (घ) बेगरज आदमी से विनम्रता से पेश आना चाहिए, क्योंकि वे तुम्हारे किसी काम के नहीं।
    (ङ) ऊपर की कमाई से समृद्ध आती है।

    प्रश्न 3. ‘नमक का दरोगा’ कहानी ‘धन पर धर्म की विजय’ की कहानी है। प्रमाण दवारा स्पष्ट’कीजिए।

    उत्तर- पडित अलोपीदीन धन का उपासक था। उसने हमेशा रिश्वत देकर अपने कार्य करवाए। उसे लगता था कि धन के आगे सब कमज़ोर हैं। वंशीधर ने गैरकानूनी ढंग से नमक ले जा रही गाड़ियों को पकड़ लिया। अलोपीदीन ने उसे भी मोटी रिश्वत देकर मामला खत्म करना चाहा, परंतु वंशीधर ने उसकी हर पेशकश को ठुकराकर उसे गिरफ्तार करने का आदेश दिया। अलोपीदीन के जीवन में पहली बार ऐसा हुआ जब धर्म ने धन पर विजय पाई।