कचरा संग्रहण एवं निपटानकचरा: हम प्रतिदिन ढ़ेर सारा कचरा उत्पन्न करते हैं। जो चीज हमारे किसी काम की नहीं होती है उसे कचरा कहते हैं। घर से निकले हुए अपशिष्ट या कूड़े कचरे में सब्जियों और फलों के छिलके, बचा हुआ भोजन, कागज, प्लास्टिक और कई अन्य पदार्थ होते हैं। हमारे घरों और आसपास स्वच्छता रखने के लिए कचरे का सही निपटान जरूरी होता है। Show
कचरे का निपटानहम अक्सर सड़क के किनारे रखे कूड़ेदान में कचरा डालते हैं। कुछ शहरों में सफाई कर्मचारी हर घर से कचरा इकट्ठा करते हैं। उसके बाद सफाई कर्मचारी उस कचरे को किसी ढ़लाव पर डाल देते हैं। Chapter Listभोजन के स्रोत भोजन के घटक तंतु से वस्त्र वस्तुओं के समूह पदार्थों का पृथक्करण परिवर्तन पौधे को जानिए शरीर में गति सजीव विशेषता गति एवं मापन प्रकाश विद्युत परिपथ चुम्बक जल वायु कचरा संग्रहणकचरे के ढ़लाव से नगरपालिका का ट्रक कचरा उठाकर ल्रे जाता है। इस कचरे को भराव स्थल पर पहुँचा दिया जाता है। भराव स्थल अक्सर रिहायशी इलाके से दूर बनाये जाते हैं। कचरे में दो प्रकार के पदार्थ होते हैं: उपयोगी और अनुपयोगी। उपयोगी पदार्थ का पुन:चक्रण करके नये सामान बनाये जा सकते हैं। अनुपयोगी पदार्थ को भराव स्थल पर डाल दिया जाता है और फिर मिट्टी से ढ़क दिया जाता है। इस कचरे को कम से कम 20 वर्षों के लिए छोड़ दिया जाता है। उसके बाद ही भराव स्थल पर कोई निर्माण कार्य किया जा सकता है। ऐसे स्थानों पर अक्सर पार्क बनाये जाते हैं। दिल्ली का मिलेनियम पार्क ऐसे ही किसी भराव स्थल पर बना हुआ है। कम्पोस्टकचरे में दो प्रकार के पदार्थ होते हैं: जैव निम्नीकरणीय और जैव अनिम्नीकरणीय। जो पदार्थ सूक्ष्म जीवों द्वारा विगलित हो जाते हैं उन्हें जैव निम्नीकरणीय पदार्थ कहते हैं। सजीवों स्रोतों से मिलने वाले अपशिष्ट जैव निम्नीकरणीय होते हैं। ऐसे पदार्थों से कम्पोस्ट बनाया जा सकता है। किसान अक्सर खेती के अपशिष्ट, पत्तियों, फसलों की डंठलो और गोबर से कम्पोस्ट बनाते हैं। इसके लिए जमीन पर एक गड्ढ़ा खोदा जाता है। इस गड्ढ़े की तली में एक जाली या रेत की एक परत बिछाई जाती है। उसके बाद कचरे की परतें बिछाई जाती हैं। लगभग दो महीने के बाद, कचरा मिट्टी जैसे पदार्थ में बदल जाता है, जिसे कम्पोस्ट कहते हैं। कम्पोस्ट एक बहुत अच्छी खाद का काम करता है, जिससे मिट्टी अधिक उपजाऊ बनती है। वर्मीकम्पोसट या कृमिकम्पोस्ट: लाल केंचुए कम्पोस्ट बनने की प्रक्रिया को तेज कर देते हैं। जब केंचुओं की सहायता से कम्पोस्ट बनता है तो इसे वर्मीकम्पोस्ट कहते हैं। कचरा कम करने के तरीकेकचरा कम करने के लिए हम कुछ कदम उठा सकते हैं। इसके लिये हमें तीन R के सिद्धांत का पालन करना होगा। इसका मतलब है: कम उपयोग, पुन: उपयोग और पुन:चक्रण।
ये है कचरा निपटान का सही तरीका, कमाई भी होगी और सफाई भीअगर शहरी निकाय किसी सहकारी संस्था को कूड़ा निस्तारण का काम सौंप दें तो न सिर्फ इस पर आने वाला बड़ा खर्च बचेगा, बल्कि कूड़ा उठाने में होने वाली लापरवाही भी काफी हद तक दूर हो जाएगी। शिल्प कुमार। बढ़ते शहरीकरण ने हमारे जीवन स्तर को ऊंचा उठाने और उसे व्यवस्थित करने की दिशा में भले ही महती भूमिका निभाई हो, लेकिन उससे हमारे समक्ष कई चुनौतियां भी उत्पान हुई हैं। कूड़े के बढ़ते ढेर मौजूदा शहरी व्यवस्था प्रबंधन को आईना दिखाने के लिए पर्याप्त हैं। समस्या इतनी विकराल है कि पुराने कूड़े से हम जब तक निबट भी नहीं पाते हैं तब तक नए कूड़े का ढेर खड़ा हो जाता है। अकेले दिल्ली को ही लें। यहां रोजाना करीब नौ हजार टन कूड़े का ढेर पैदा हो जाता है, जिसका निपटान नहीं हो पा रहा है। कूड़े के निपटारे की उचित व्यवस्था नहीं हो पाने की समस्या से दिल्ली ही नहीं, देश के तमाम शहर जूझ रहे हैं। अब वक्त आ गया है कि इस भयावह समस्या के निदान के लिए अपने देश के पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक का समुचित इस्तेमाल करते हुए कूड़े के उचित निपटान की व्यवस्था की ओर ध्यान दिया जाए। 2011 की जनगणना के मुताबिक पूरे देश में करीब 4041 शहरी निकाय हैं। अभी स्थानीय निकायों के कर्मचारी कूड़े को ले जाकर डंपिंग ग्राउंड में डाल देते हैं। कूड़े के उचित निस्तारण की कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण डंपिंग ग्राउंड कूड़े का पहाड़ बन जाता है। इन कूड़े के ढेर पर आवारा पशु और पक्षी भोजन की तलाश में मंडराते नजर आते हैं। फिर बचा हुआ कूड़ा सड़ता रहता है, इससे कई प्रकार के जीवाणु-विषाणु और बदबू फैलते हैं। जिसकी वजह से डंपिंग ग्राउंड के आसपास के कई किलोमीटर के इलाके रहने लायक नहीं रह जाते हैं। ऐसे मिलेगी मदद अगर ‘स्थानीय शहरी निकाय’ किसी सहकारी संस्था को घरों, होटलों, रेस्टोरेंटों, ढाबों, फल-सब्जी मंडियों, अस्पतालों, पार्कों और सड़कों से कूड़ा इकट्ठा करके उसके उचित निस्तारण का काम सौंप दें तो इससे न सिर्फ शहरी निकायों की इस मद में खर्च होने वाली बड़ी रकम बचेगी, बल्कि कूड़ा उठाने में होने वाली लापरवाही पर लगाम भी लगेगी। सवाल यह है कि आखिर यह कार्य होगा कैसे? इस कार्य के लिए शहरी निकाय द्वारा सहकारी संस्था या निजी कंपनी को शहर के बाहर बंजर, रेतीली या पथरीली यानी खेती के लिए अनुपयुक्त जमीन को लंबी अवधि के लिए कूड़ा निस्तारण के लिए नि:शुल्क लीज पर उपलब्ध कराना होगा। छोटे शहरी निकाय शहर से दूर एक या दो तथा बड़े निकाय अपनी आवश्यकता के अनुसार ऐसी जगहों को चिन्हित कर सकते हैं जहां उक्त शहर के कूड़े का निस्तारण हो सके। कमाई भी होगी और सफाई भी फिर बात उठती है कि आखिर सहकारी संस्था के कर्मचारी कैसे कूड़े से कमाई कर सकेंगे। इसके लिए स्थानीय शहरी निकाय व्यवस्था द्वारा सहकारी संस्थाओं को ट्रेंड करना होगा। इससे न सिर्फ वे कूड़े का निस्तारण प्रभावी ढंग से कर सकेंगे, बल्कि इससे अपनी आय भी बढ़ा सकेंगे। इस व्यवस्था के तहत सहकारी संस्था के कर्मचारी घरों, होटलों, रेस्टोरेंटों, ढाबों को दो-दो थैले देंगे, जिनमें से एक जैविक कचरे के लिए होगा, जबकि दूसरा अजैविक कचरे के लिए। घरों से सप्ताह में दो से लेकर तीन बार, जबकि होटलों, ढाबों और रेस्टोरेंटों से संस्था के लोग प्रतिदिन जाकर कूड़ा उठाएंगे। फिर संस्था के लोग कूड़े से भरे बैग लेकर उनकी जगह पर दूसरे खाली बैग दे देंगे। इसी प्रकार सब्जी, फल या फूल मंडी, रेस्टोरेंटों, अस्पतालों वगैरह से भी कूड़ा उठाएंगे। ये सारा कचरा इकट्ठा करने के बाद शहरी निकाय द्वारा कूड़ा निपटारे के लिए उपलब्ध कराई गई भूमि तक पहुंचा दिया जाएगा। यहां फिर अजैविक कचरे की छंटाई होगी। उसमें से प्लास्टिक, लोहा, टिन, कांच आदि को अलग-अलग करके उन्हें कबाड़ के रूप में बेच दिया जाए। इन्हें पुन: रिसाइकल करने वाली इकाइयां खरीद लेंगी। इससे भी सहकारी संस्था को कमाई हो सकेगी। इसके अलावा पॉलिथीन से पेट्रोल या पेट्रोलियम पदार्थ बनाए जा सकते हैं। पुराने टायरों का इस्तेमाल सड़कों को बनाने में किया जा सकता है। सहकारी संस्था इन सामग्रियों को बेचकर आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकती हैं। मिथेन गैस और खाद बनाकर भी होगी कमाई रही बात जैविक कचरे की तो उसमें जरूरी बैक्टीरिया और एंजाइम मिलाकर मीथेन गैस और जैविक खाद का उत्पादन किया जा सकता है। ऐसी तकनीक अब सुलभ हैं। इस तरह से प्राप्त जैविक खाद उच्च गुणवत्ता वाली होती है जिसका इस्तेमाल खेती और बागवानी में किया जा सकता है। वहीं मीथेन गैस राज्य बिजली बोर्ड या बिजली बनाने वाली इकाइयां खरीद सकती हैं। इससे भी सहकारी संस्था को कमाई हो सकती है। वैसे मीथेन गैस बनाने या जैविक खाद तैयार करने की तकनीक इंडियन ऑयल और आइआइटी के पास है। सहकारी संस्थाओं को या तो इनसे तकनीकी मदद दिलाई जा सकती है या फिर शहरी निकाय खुद आगे बढ़कर सहकारी संस्थाओं को इनसे सहयोग दिला सकते हैं। इस तरीके से उत्पादित खाद को शहरी निकायों का बागवानी विभाग, वन विभाग, कृषि विभाग, कृषि विश्वविद्यालय, विभिन्न महाविद्यालय या वे अन्य संस्थाएं भी खरीद सकती हैं जहां बागवानी से जुड़े कार्य होते हों। शहरी लोग भी अपने किचेन गार्डन या बागवानी के लिए इसे खरीद सकते हैं। वैसे आज बाजार में ऐसी खाद पचास से पचपन रुपये किलो बिकती है। शहरी निकाय अगर इस तरह सोचें तो न सिर्फ शहरों को कचरे से मुक्ति मिलेगी, बल्कि सहकारी संस्थाओं के जरिये हजारों नौजवानों को उचित रोजगार के अवसर भी मिलेंगे, तब ही हम सरकार के स्वच्छ भारत अभियान का सपना साकार कर सकेंगे। (लेखक उत्तराखंड भाजपा कार्यकारिणी के सदस्य हैं) Edited By: Digpal Singh कचरे का निपटान कैसे किया जाता है?लगभग अगले 20 वर्षों तक इस पर कोई भवन निर्माण नहीं किया जाता। कचरे के उपयोगी अवयव के निपटान के लिए भराव क्षेत्रों के पास कंपोस्ट बनाने वाले क्षेत्र विकसित किए जाते हैं।
कचरे के प्रबंध के लिए हम क्या क्या कर सकते हैं?सस्टेनेबल विकास : कचरा प्रबंधन को सस्टेनेबल विकास का महत्वपूर्ण अवयव माना जाता है। सस्टेनेबल विकास का तात्पर्य पर्यावरण फ्रेंडली और दीर्घकालीन विकास से है। कचरा प्रबंधन के उपभोग और पुन: उपभोग से एक चक्र बनता है जो प्राकृतिक संसाधनों पर हमारी निर्भरता को कुछ हद तक कम करता है और उनके दोहन में कमी लाता है।
2 आप कचरा निपटान की समस्या कम करने में क्या योगदान कर सकते हैं किन्हीं दो तरीकों का वर्णन कीजिए?Solution : कचरा निपटान की समस्या कम करने में हम निम्न योगदान कर सकते - <br> (i) जैव निम्नीकरणीय एवं अजैव निम्नीकरणीय अपशिष्ट पदार्थों को अलग -अलग करके समाप्त करना। <br> (ii) अजैव निम्नीकरणीय अपशिष्ट पदार्थों का पुनःचक्रण (Recycling) के बाद पुनःउपयोग (Reuse) करना चाहिए। जैसे-प्लास्टिक, धातुएँ आदि।
कचरा निपटान परिभाषा क्या है?इसके अलावा, जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि से विशाल मात्रा में कचरा उत्पन्न होता है जिसके कारण लैंडफिल अपनी सीमा से अधिक फैल गए हैं। ये अधिभार लैंडफिल गंभीर समस्याएँ उत्पन्न कर रहे हैं जिसमें पर्यावरणीय, स्वास्थ्य, वायु, जल तथा मृदा, प्रदूषण और भूमण्डलीय तापन शामिल हैं।
|