झने की देन पाठ मेंचाय पीनेकी क्या विधि बताई गई है? - jhane kee den paath menchaay peenekee kya vidhi bataee gaee hai?

जापान में चाय पीने की विधि को चानोयू कहते हैं। जिसका अर्थ होता है टीसेरेमनी। चाय बनाने वाला चजीन कहलाता है| जापान में चाय भी एक खास जगह पिलाई जाती है। वहां पारंपरिक सजावट होती है। वहां बहुत शांति और गरिमा के साथ चाय पिलाई जाती है। यहां पर अतिथियों का स्वागत किया जाता है| अंगीठी सुलगाकर चायदानी रखी जाती है। चाय का बर्तन लाना और फिर उसे तौलिए से पोछना और चाय को बर्तनों में डालना आदि सभी क्रियाएं गरिमापूर्ण ढंग से होती हैं। टीसेरेमनी की खास बात ये भी होती है कि यहां सिर्फ 3 लोगों को प्रवेश दिया जाता है। इसका कारण यह है कि भागदौड़ भरी जिंदगी से लोगों को दो पल आराम से बिताने को मिल जाते हैं|

अथवा

रूढ़ियां जब बोझ बनने लगती हैं तो उनसे छुटकारा पाना जरूरी हो जाता है। कोई भी नियम एक अनूठे सामाजिक परिवेश एवं एक विशिष्ट दौर की देन होता है। लोगों का मानसिक और सामाजिक ढांचा परिवर्तनशील होता है। जो बात एक खास समय में उचित लगती है, वही बात अलग परिवेश में अपनी सार्थकता खो देती है। वक्त के साथ-साथ प्रथाएँ एवं रीति रिवाज कुछ समय के पश्चात अप्रासंगिक हो जाते हैं और तब वे उस दौर के लोगों को बोझ लगने लगते हैं और इसे ही रूढी कहा जाता है| ऐसे में जब रीति रिवाज अप्रासंगिक और मानव के लिए हानिकारक हो जाए उसके पश्चात भी उन्हें समाज अथवा परिवार के द्वारा किसी व्यक्ति पर थोपा जाना बोझ लगने लगता है| इसी को फिर रूढ़ियों का नाम दिया जाता है। ऐसे में पुराने नियमों को तोड़ना ही एकमात्र उपाय बचता है क्योंकि कोई भी रीति रिवाज निरंतर नहीं चल सकता| इसीलिये जब रीति-रिवाज उपयोगी न रहें, बोझ बनने लगें तो उन्हें तोड़ना ही बेहतर है|