झीलों और नदियों को प्रदूषण से बचाने के लिए हमें क्या करना चाहिए? - jheelon aur nadiyon ko pradooshan se bachaane ke lie hamen kya karana chaahie?

जल प्रदूषण भारत में व्याप्त सबसे बड़े संकटों में से एक है। इसका सबसे बड़ा स्रोत है, बिना ट्रीटमेंट किया सीवेज का पानी। यह साफ दिखता है। इसे देखने के लिए ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं है। प्रदूषण के कई अन्य स्त्रोत भी हैं। जैसे- खेतों से आता पानी, छोटे और अनियंत्रित उद्योगों से आने वाला पानी। हालात इतने गंभीर हैं कि भारत में कोई भी ऐसा जल स्रोत नहीं बचा है, जो जरा भी प्रदूषित न हो। हकीकत तो यह है कि देश के 80 प्रतिशत से ज्यादा जल स्त्रोत बहुत ज्यादा प्रदूषित हो चुके हैं। इनमें भी वह जल स्त्रोत ज्यादा प्रदूषित हैं, जिनके आसपास बड़ी संख्या में आबादी रहती है। गंगा और यमुना भारत की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक है।

भारत में जल प्रदूषण के कारण

भारत में जल प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण शहरीकरण और उसकी अनियंत्रित दर है। पिछले एक दशक में शहरीकरण की दर बहुत तेज गति से बढ़ी है या हम ऐसा भी कह सकते हैं कि इस शहरीकरण ने देश के जल स्त्रोतों पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है। इसकी वजह से लंबी अवधि के लिए कई पर्यावरणीय समस्याएं पैदा हो गई हैं। इनमें जल आपूर्ति की कमी, पानी के प्रदूषित होने और उसके संग्रहण जैसे पहलू प्रमुख हैं। इस संबंध में प्रदूषित पानी का निपटान और ट्रीटमेंट एक बहुत बड़ा मुद्दा है। नदियों के पास कई शहर और कस्बे हैं, जिन्होंने इन समस्याओं को बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

इन इलाकों में अनियंत्रित शहरीकरण से सीवेज का पानी बह रहा है। शहरी इलाकों में नदियों, तालाबों, नहरों, कुओं और झीलों के पानी का इस्तेमाल घरेलू और औद्योगिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए होता है। हमारे घरेलू इस्तेमाल का 80 प्रतिशत पानी खराब हो जाता है। ज्यादातर मामलों में पानी का ट्रीटमेंट अच्छे से नहीं होता और इस तरह जमीन की सतह पर बहने वाले ताजे पानी को प्रदूषित करता है।

यह प्रदूषित जल सतह से गुजरकर भूजल में भी जहर घोल रहा है। एक अनुमान के मुताबिक एक लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में 16,662 मिलियन लीटर खराब पानी एक दिन में निकलता है। आश्चर्य इस बात का है कि इन शहरों के 70 प्रतिशत लोगों को सीवेज की सुविधा मिली हुई है। गंगा नदी के किनारों पर बसे शहरों और कस्बों में देश का करीब 33 प्रतिशत खराब पानी पैदा होता है।

भारत में जल प्रदूषण के बढ़ते स्तर के प्रमुख कारण निम्नानुसार हैं:

1- औद्योगिक कूड़ा

2- कृषि क्षेत्र में अनुचित गतिविधियां

3- मैदानी इलाकों में बहने वाली नदियों के पानी की गुणवत्ता में कमी

4- सामाजिक और धार्मिक रीति-रिवाज, जैसे पानी में शव को बहाने, नहाने, कचरा फेंकने

5- जहाजों से होने वाला तेल का रिसाव

6- एसिड रैन (एसिड की बारिश)

7- ग्लोबल वार्मिंग

8- यूट्रोफिकेशन

9- औद्योगिक कचरे के निपटान की अपर्याप्त व्यवस्था

10- डीनाइट्रिफिकेशन

भारत में जल प्रदूषण के प्रभावः

जिस जल स्त्रोत का पानी जरा-भी प्रदूषित होता है, उसके आसपास रहने वाले प्रत्येक जीवन पर जल प्रदूषण का किसी न किसी हद तक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। एक निश्चित स्तर पर प्रदूषित पानी फसलों के लिए भी नुकसानदेह साबित होता है। इससे जमीन की उर्वरक क्षमता कम होती है। कुल मिलाकर कृषि क्षेत्र और देश को भी प्रभावित करता है। समुद्र का पानी प्रदूषित होता है तो उसका बुरा असर समुद्री जीवन पर भी होता है। जल प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण पानी की क्वालिटी में गिरावट होती है। इसके सेवन से कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं।

हकीकत तो यह है कि भारत में, खासकर ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य के निम्न स्तर का एक बड़ा कारण जल प्रदूषण ही है। प्रदूषित पानी की वजह से कॉलरा, टीबी, दस्त, पीलिया, उल्टी-दस्त जैसी बीमारियां हो सकती हैं। भारत में पेट के विकारों से पीड़ित 80 प्रतिशत मरीज प्रदूषित पानी पीने की वजह से बीमार हुए हैं।

भारत में जल प्रदूषण का समाधान

जल प्रदूषण का सबसे अच्छा समाधान है, इसे न होने देना। इसका सबसे प्रमुख समाधान है मिट्टी का संरक्षण। मिट्टी के कटाव की वजह से भी जल प्रदूषित होता है। ऐसे में, यदि मिट्टी का संरक्षण होता है तो हम कुछ हद तक पानी का प्रदूषण रोक सकते हैं। हम ज्यादा से ज्यादा पौधे या पेड़ लगाकर मिट्टी के कटाव को रोंक सकते हैं। खेती के ऐसे तरीके अपना सकते हैं, जो मिट्टी की उर्वरता की चिंता करें और उसे बिगाड़ने के बजाय सुधारें। इसके साथ ही जहरीले कचरे के निपटान के सही तरीकों को अपनाना भी बेहद महत्वपूर्ण है। शुरुआत में, हम ऐसे उत्पादों का इस्तेमाल न करें या कम करें जिनमें उन्हें नुकसान पहुंचाने वाले जैविक यौगिक शामिल हों। जिन मामलों में पेंट्स, साफ-सफाई और दाग मिटाने वाले रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है, वहां पानी का सुरक्षित निपटान बेहद जरूरी है। कार या अन्य मशीनों से होने वाले तेल के रिसाव पर ध्यान देना भी बेहद जरूरी है।

यह कहा जाता है कि – कारों या मशीनों से निकलने वाला- तेल का रिसाव भी जल प्रदूषण के प्रमुख कारकों में से एक है। इस वजह से कारों और मशीनों की देखभाल करना बेहद जरूरी है। नियमित रूप से यह देखा जाए कि तेल का रिसाव तो नहीं हो रहा। काम पूरा होने के बाद -खासकर जिन फैक्टरियों और कारखानों में तेल का इस्तेमाल होता है- खराब तेल को साफ करन या सुरक्षित निपटान या बाद में इस्तेमाल के लिए रखने में सावधानी बरतनी जरूरी है। यहां हम नीचे कुछ तरीके बता रहे हैं, जिनके जरिए इस समस्या को दूर किया जा सकता हैः

1- पानी के रास्ते और समुद्री तटों की सफाई

2- प्लास्टिक जैसे जैविक तौर पर नष्ट न होने वाले पदार्थों का इस्तेमाल न करें

3- जल प्रदूषण को कम करने के तरीकों पर काम करें

प्राचीन काल से ही भारत नदियों का देश रहा है, भारत की भूमि में नदियाँ ऐसे बिछी हैं जैसे मानो शरीर में नसें, नसों में बहने वाला खून तथा नदियों में बहने वाला पानी दोनों ही जीवन के लिए उपयोगी होते हैं। नदियों ने ही विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं को अपने गोद में रखकर पाला था, जिनकी गौरव गाथाएं आज भी इतिहास बड़े गर्व से गाता है।

सैकड़ों सभ्यताओं की जन्मदात्री, ऋषि-मुनियों कि अराध्य देवी, जीव-जन्तु तथा वनस्पतियों के जीवन का आधार होने के बाद भी वर्तमान समय में नदियों का जो हाल है, वो मानव के लज्जाहीन एवं एहसान फरामोश होने के साथ-साथ भविष्य से अनभिज्ञ होने का भी संकेत देता है।

नदियों में बढ़ रहे प्रदूषण पर छोटे और बड़े निबंध (Short and Long Essay on Increasing Pollution in Rivers in Hindi, Nadiyon mein Badh rahe Pradushan par Nibandh Hindi mein)

यहाँ मैं निबंध के माध्यम से आप लोगों को नदी प्रदूषण के बारे में कुछ जानकारियां दूँगा, मुझे पूर्ण आशा है कि इनके माध्यम से आप नदियों के प्रदूषित होने के कारण, उनके निवारण तथा उसके प्रभाव को भलि- भाँति समझ सकेंगे।

नदियों में बढ़ रहे प्रदूषण पर छोटा निबंध – 300 शब्द

प्रस्तावना

नदी जल प्रदूषण से हमारा तात्पर्य, घरों से निकलने वाला कूड़ा-कचरा, उद्योगों से निकलने वाले रासायनिक अपशिष्टों, नदी में चलने वाले वाहन के अपशिष्टों एवं उनके ऱासायनिक रिसाव आदि का जल में मिलकर उसको दूषित करने से है। नदियों के दूषित जल में आक्सीजन की कमी हो जाती है जिसके कारण यह जलीय जीवों के साथ-साथ जैव विविधता के लिए भी अत्यधिक घातक सिद्ध होता है। इसमें उपस्थित विभिन्न औद्यौगिक रासायन सिंचाई के माध्यम से कृषि भूमि की उर्वरा क्षमता को भी घटा देते हैं।

नदियों के प्रदूषण के कारण

नदी प्रदूषण के लिए वर्तमान समय में निम्नलिखित कारक उत्तरदायी है-

  • घरों से निकलने वाला गंदा पानी छोटे-छोटे नालियों के सहारे नालों में जाकर मिलता है और ये नाले घरों का सारा गंदा पानी इक्ट्ठा करके नदियों में गिरा देते हैं।
  • उद्योगों से निकलने वाले कूड़े-कचरे एवं रासायनिक अपशिष्टों का निपटारा भी इन्हीं नदियों में ही किया जाता है।
  • अम्लीय वर्षा, पर्यावरण प्रदूषण के कारण जब वायुमण्डल में सल्फर डाइआक्साइड (SO2) तथा नाइट्रोजन डाइआक्साइड (NO2) की मात्रा बढ़ जाती है तो ये वायुमण्डल में उपस्थित जल कि बूंदो के साथ अभिक्रिया करके अम्ल का निर्माण करती है तथा वर्षा के बूंदो के साथ धरातल पर गिरती है और नदी तथा झीलों आदि के जल को प्रदूषित कर देती है। इत्यादि
  • नदियों को प्रदूषित होने से बचाने के उपाय

नदियों को प्रदूषित होने से बचाने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहिए

  • कृषि, घरों, तथा उद्योगों के बेकार पानी को एकत्रित करके उनके पुनरूपयोग को बढ़ावा देना चाहिए।
  • वायु प्रदूषण को नियंत्रित करके अम्ल वर्षा में कमी लाई जा सकती है जिसके फलस्वरूप नदी प्रदूषण में भी कमी आयेगी।
  • उद्योगों का निर्माण उचित स्थान पर तथा उनके अपशिष्टों के लिए उचित प्रबंध होना चाहिए।

निष्कर्ष

नदियों का समस्त जीवित प्राणियों के जीवन में अपना एक महत्व है। मानव इसके जल का उपयोग सिंचाई एवं विद्युत उत्पादन में, पशु-पक्षी इसके जल का उपयोग पीने में तथा जलीय जीव इसका उपयोग अपने आवास आदि के रुप में करते हैं। परन्तु वर्तमान समय में नदियों के जल को प्रदूषित होने से, इसका उपयोग करने वाले जीवों के जीवन में काफी बदलाव आया है। जैसे- सिंचाई से भूमि की उर्वरा क्षमता में ह्रास एवं इसके उपयोग से बिमारियों में वृद्धि आदि। नदियों की उपयोगिता को देखते हुए अगर कोई उचित कदम नहीं उठाया गया तो इनका बढ़ता प्रदूषण मानव सभ्यता पर बिजली बनकर गिरेगा और सब कुछ जलाकर राख कर देगा।

नदियों में बढ़ रहे प्रदूषण पर बड़ा निबंध – 600 शब्द

प्रस्तावना

प्राचीन काल से अब तक मानव तथा अन्य स्थलीय एवं जलीय जीवों के लिए नदियों का महत्व बढ़ता ही गया और साथ-साथ इनके जलों का प्रदूषित होना भी जारी रहा। आज स्थिति यह है कि प्राचीन काल में जिन नदियों को जीवन का आधार समझा जाता था वो अब धीरे-धीरे रोगों का आधार बनती जा रही हैं और यह सब उनमें बढ़ रहे प्रदूषण के कारण है।

नदी प्रदूषण को अगर परिभाषित करना हो तो हम कह सकते हैं कि नदी जल में घरेलू कूड़ा-कचरा, औद्यौगिक रसायनों तथा जलीय वाहन के अपशिष्टों आदि का मिलना ही नदी जल प्रदूषण कहलाता है।

नदी जल प्रदूषण के प्रकार

नदी जल प्रदूषण को निम्नलिखित तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. भौतिक जल प्रदूषण- जब जल का स्वाद, गन्ध तथा उष्मीय गुण परिवर्तित हो जाए तो इस प्रकार का प्रदूषण भौतिक जल प्रदूषण कहलाता है।
  2. रासायनिक जल प्रदूषण- जब जहाजों तथा उद्योगों आदि के अपशिष्ट एवं रासायनिक पदार्थ जल में मिल जाते हैं तो इस प्रकार के प्रदूषण को रासायनिक प्रदूषण कहते हैं।
  3. जैविक जल प्रदूषण- जब जल के दूषित होने के लिए हानिकारक सुक्ष्म जीव उत्तरदायी हों तब इस प्रकार के प्रदूषण को जैविक जल प्रदूषण कहते हैं।

नदी प्रदूषण के कारण

नदी प्रदूषण निम्नलिखित दो स्रोतों से होता है –

1प्राकृतिक स्रोत

  • बरसात के मौसम में विभिन्न प्रकार के भू-खण्डों से होते हुए वर्षा का जल अपने साथ अनेक प्रकार के प्राकृतिक पदार्थों (जैसे- खनिज, लवण, ह्यूमस, पौधों की पत्तियाँ तथा जीवित प्राणियों के मल-मूत्र आदि) को लाता है जो जल में मिलकर उसको प्रदूषित कर देते हैं।
  • अम्लीय वर्षा में बारिश के बूंदों के साथ बरसने वाला अम्ल नदियों के जल में मिलकर उसे प्रदूषित कर देता है।

2- मानवीय स्रोत

इसके अन्तर्गत नदी प्रदूषण के वो कारक आते हैं जो मानवीय गतिविधियों द्वारा उत्पन्न होते हैं। जैसे-

  • घरेलू बहिःस्राव नालों के माध्यम से नदी में गिरते हैं और उसके जल को प्रदूषित कर देते हैं।
  • उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों का निपटारा भी नदियों में ही किया जाता है।
  • खेतों में प्रयोग होने वाले रासायन वर्षा के समय बहकर नदियों में मिल जाते हैं, जिससे नदी प्रदूषण बढ़ता है।
  • जहाजों से जो तेल का रिसाव होता है वह भी नदी को प्रदूषित करता है।
  • सामाजिक एवं धार्मिक रीति-रिवाज भी नदी प्रदूषण के लिए उत्तरदायी हैं।

जैसे- मृत्यु के बाद शव को पानी में बहाना, मूर्तियों का विसर्जन, स्नान आदि।

  • यूट्रोफिकेशन (सुपोषण), इसका तात्पर्य है जल को पोषक तत्वों से परिपूर्ण करना। इस क्रिया में पौधों एवं शैवालों का जल में विकास होता है तथा बायोमास की उपस्थिति इसमें पहले से ही होती है। ये सभी मिलकर जल में घुलनशील आक्सीजन को अवशोषित करने लगते हैं, जिससे जलीय पारिस्थितिकी तंत्र पर खतरा मंडराने लगता है।

नदी जल प्रदूषण के रोकथाम व उपाय

वर्तमान में पूरा विश्व प्रदूषित जल की चपेट में है, चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है, जनता तथा सरकारें मिलकर इससे लड़ने को प्रयासरत हैं। हालांकि इसे पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जा सकता परन्तु कुछ उपायों के माध्यम से इसपर अंकुश जरूर लगाया जा सकता है, जो निम्नलिखित है-

  • घरेलू अपशिष्टों एवं गंदे जल को नालों में बहाने पर प्रतिबंध तथा जल संरक्षण तकनीक के द्वारा इसके पुनः उपयोग को बढ़ावा देना।
  • नदी प्रदूषण के लिए जिम्मेदार औद्योगिक इकाईयों के लिए कड़े नियम बने एवं उनका कठोरता से पालन हो।
  • पर्यावरण प्रदूषण को कम करके।
  • सामाजिक एवं धार्मिक रूढ़ियों पर आघात करके।
  • जैविक खेती को प्रोत्साहित करके, इत्यादि

नदी प्रदूषण का जलीय जीवों व आस पास के लोगों के जीवन पर प्रभाव

नदियों के जल में उपस्थित प्रदूषण के कारण मछलियाँ रोग ग्रसित हो जाती है जिसके कारण अधिकांश मछलियाँ मर जाती है। यहीं हाल जल में पाए जाने वाले अन्य जीवों एवं वनस्पतियों का भी होता है। नदियों का बढ़ता प्रदूषण जलीय पारिस्थितिकी के संतुलन को बिगाड़ रहा है, जिससे जुड़े रोजगार एवं करोड़ों उपभोक्ता भी प्रभावित हो रहे हैं। किसी का रोजगार खतरे में है तो किसी का स्वास्थ्य खतरे में है।

दूसरी तरफ ध्यान दें तो पता चलेगा की नदी प्रदूषण से किसान भी परेशान है, क्योंकि नदी के जल से सिंचाई करने पर उसमें उपस्थित रासायनिक प्रदूषकों के कारण मिट्टी की उर्वरा क्षमता भी प्रभावित होती है। जिसके कारण उत्पादन में कमी आती है और किसानों की परेशानियों में वृद्धि होती है। अप्रत्यक्ष रूप से ही सही नदी प्रदूषण ने सभी जीवित प्राणियों को प्रभावित किया है।

नदी प्रदूषण को रोकने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम

समय-समय पर भारत सरकार ने नदियों के सफाई के लिए कदम उठाए हैं, जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण कदम निम्नलिखित हैं-

  • पर्यावरण और वन मंत्रालय के द्वारानदी प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए एक राष्ट्रीय जल गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क की स्थापना की गई है, जिसके तहत देश भर के विभिन्न नदियों एवं जल निकायों पर निगरानी के लिए 1435 निगरानी केंद्र बनाये गए हैं।
  • नमामि गंगे परियोजना

इस परीयोजना की शुरुआत वर्ष 2014 में गंगा नदी के प्रदूषण को कम करने के उद्देश्य से की गई थी। इस परियोजना का क्रियान्वयन गंगा कायाकल्प मंत्रालय, केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय तथा नदी विकास मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा है।

  • स्वच्छ गंगा परियोजना

2014 में नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा लागू की गई स्वच्छ गंगा परियोजना, कार्य योजना आदि के आभाव असफल रहीं।

निष्कर्ष

उपरोक्त तमाम बातें वनस्पतियों, जीव-जन्तुओं तथा मानव जीवन में नदियों के महत्व को उजागर करती हैं एवं साथ ही इनके सम्मान पर चल रहे प्रदूषण रूपी तलवार की भी व्याख्या करती हैं। जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि मानव ने अपने विकास के लिए जो भी कदम उठाए हैं उसने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नदियों के जल को प्रदूषित किया है। धीरे-धीरे लोग इसके प्रति जागरुक हो रहे हैं, सरकारों ने भी नदी प्रदूषण से लड़ने के लिए कमर कस लिया है। परन्तु ऐसा लगता है कि ये सारे प्रयास कागजों तक ही सीमित है, वास्तविकता से इनका कोई नाता नहीं है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked Questions on Increasing Pollution in Rivers)

प्रश्न.1 केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) का मुख्यालय कहाँ स्थित है?

उत्तर- नई दिल्ली (New Delhi)

प्रश्न.2 जल प्रदूषण को कैसे मापा जाता है?

उत्तर- हवाई रिमोट सेंसिंग द्वारा। (Aerial Remote Sensing)

प्रश्न.3 भारत के केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का गठन कब हुआ था?

उत्तर- सितम्बर, 1974

प्रश्न.4 विश्व की सबसे प्रदूषित नदी कौन सी है?

उत्तर- सीतारुम नदी (Citarum River), इंडोनेशिया

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