जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग चन्दन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग 1 - jo raheem uttam prakrti, ka kari sakat kusang chandan vish vyaapat nahin lipate rahat bhujang 1

जो रहीम उत्तम प्रकृति

जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।

चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग॥

रहीम कहते हैं कि जो व्यक्ति अच्छे स्वभाव का होता है,उसे बुरी संगति भी बिगाड़ नहीं पाती। जैसे ज़हरीले साँप चन्दन के वृक्ष से लिपटे रहने पर भी उस पर कोई ज़हरीला प्रभाव नहीं डाल पाते।

स्रोत :

  • पुस्तक : रहीम ग्रंथावली (पृष्ठ 85)
  • रचनाकार : रहीम
  • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
  • संस्करण : 1985

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

Don’t remind me again

OKAY

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

Don’t remind me again

OKAY

जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत कुसंग चंदन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग इसका अर्थ क्या होगा?

जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंगचंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंगरहीम कहते हैं कि जो व्यक्ति अच्छे स्वभाव का होता है,उसे बुरी संगति भी बिगाड़ नहीं पाती। जैसे ज़हरीले साँप चन्दन के वृक्ष से लिपटे रहने पर भी उस पर कोई ज़हरीला प्रभाव नहीं डाल पाते।

उत्तम प्रकृति के लोगों पर कुसंग का क्या प्रभाव पड़ता है?

जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग। चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग।। अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं कि जो अच्छे स्वभाव के मनुष्य होते हैं, उनको बुरी संगति भी नहीं बिगाड़ पाती। जिस प्रकार ज़हरीले सांप सुगंधित चन्दन के वृक्ष से लिपटे रहने पर भी उस पर कोई जहरीला प्रभाव नहीं डाल पाते।

उत्तम स्वभाव वाले मनुष्य पर किसका प्रभाव नहीं पड़ता है?

मनुष्य का स्वभाव यदि श्रेष्ठ है तो उस पर बुरे लोगों का साथ कोई प्रभाव नहीं डालता। कवि बताना चाहता है कि कमजोर चरित्र के व्यक्ति ही दूसरों से प्रभावित होते हैं। दूसरे दोहे में कुपुत्र के आचरण का वर्णन है जिसके कारण परिवार को दूसरों के सामने लज्जित होना पड़ता है।