इंद्रप्रस्थ का नाम दिल्ली कब पड़ा? - indraprasth ka naam dillee kab pada?

भव्य भारत की राजधानी दिल्ली कब और किसने बसाई यह बात पक्की कोई नहीं बता सकता है लेकिन आज हम आपको दिल्ली के बारे में ऐसी बहुत कुछ जानकारी इस ब्लॉग के माध्यम से देंगे जो आपने पहली बार सुनी होगी. यह विरासती शहर दिल्ही क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा सिटी है और जनसँख्या के लिहाज़ से यह भारत का दूसरे नंबर का बड़ा सिटी है. दिल्ही को पुराने समय म ढेलड़ी नगर भी कहा जाता था. कहते है महाभारत में जिस प्राचीन नगरी इन्द्रप्रस्थ का जिक्र है वह यही आज की दिल्ली है. 19 वीं शताब्दी के आरंभ तक दिल्ली में इंद्रप्रस्थ नामक एक गाँव भी था. पृथ्वीराज चौहान के कवी मित्र चंद बरदाई की रचना पृथवीराज रासो में तोमर वंशी जाट राजा अनंगपाल को दिल्ली का संस्थापक बताया गया है, जो पृथ्वीराज नाना थे.  ऐसा माना जाता है कि उसने ही ‘लाल-कोट’ का निर्माण करवाया था और लौह-स्तंभ दिल्ली लाकर इसे स्थापित किया था. आर्किओलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के द्वारा कराये गये खुदाई में जो भित्तिचित्र मिले हैं, अनुमान है की इसकी आयु ईसा से करीब एक हजार वर्ष पूर्व का या इससे भी पुराना महाभारत कालीन हो इअसा लग रहा है. कुछ इतिहासकार का मानना है की पुराने दुर्ग के आस-पास का विस्तार ही इन्द्रप्रस्थ था. 1966 मे सम्राट अशोक का एक शिलालेख श्रीनिवासपुरी में पाया गया था जो 273 – 300 ई पू का है. यह शिलालेख और प्रसिद्ध लौह-स्तम्भ के रूप में जाना जाता है वह अब क़ुतुब-मीनार में देखा जा सकता है. संभवतः इस स्तंभ को गुप्तकाल (सन 400 -600) में बनाया गया था. संभवतः जाट तोमर राजा, अनंगपाल द्वितीय (1051-1081) इसे मध्य भारत के उदयगिरि नामक स्थान से लाए थे. इतिहास कहता है कि 10वीं-11वीं शताब्दी के बीच लोह स्तंभ को दिल्ली में स्थापित किया गया था और उस समय दिल्ली में जाट तोमर राजा अनंगपाल द्वितीय का शाशन था. वही लोह स्तंभ को दिल्ली में लाया था जिसका उल्लेख पृथ्वीराज रासो में भी मिल रहा है.

इस नगर का नाम “दिल्ली” कैसे पड़ा

दिल्ही नाम का कोई निश्चित सन्दर्भ नहीं मिलता है लेकिन यह माना जाता है कि यह एक प्राचीन भील राजा “ढिल्लु” के नाम पर से बना है. कुछ इतिहासकारों का अनुमान है कि यह “देहलीज़” का एक अपभ्रंश रूप है. जिसका हिंदी में अर्थ होता है ‘चौखट’, जो कि सम्भवतः सिन्धु-गंगा समभूमि के प्रवेश-द्वार होने का सूचक है. एक और अनुमान के अनुसार इस नगर का प्रारम्भिक नाम “ढिलिका” या “ढीली” था, जो धीरे धीरे दिल्ही हो गया.

‘दिल्ली’ या ‘दिल्लिका’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम उदयपुर में प्राप्त शिलालेखों पर पाया गया, जिसका समय 1170 ईसवी निर्धारित किया गया. शायद 1316 ईसवी तक यह हरियाणा की राजधानी बन चुकी थी. दिल्ली या दिल्ही नाम के पीछे एक कहानी यह भी है की… भील जाति के ढिल्लों गोत्र से संबंधित शाशक ने इस नगर को मध्यकाल में फिर से बसाया था. ढिल्लों के ऊपर से ही ढिल्ली और समय के रहते दिल्ली हो गया. जो दक्षिण-पश्चिम बॉर्डर के पास स्थित था. जो वर्तमान में महरौली के पास है. यह शहर मध्यकाल के सात शहरों में सबसे पहला था. इसे योगिनीपुरा के नाम से भी जाना जाता है, जो योगिनी (एक् प्राचीन देवी) के शासन काल में था. लेकिन इसको महत्त्व तब मिला जब 12वीं शताब्दी में राजा अनंगपाल तोमर ने अपना तोमर राजवंश लालकोट से चलाया, जिसे बाद में अजमेर के चौहान राजा ने जीतकर इसका नाम किला राय पिथौरा रखा.

दिल्ही शहर आज से पहले सात बार उजड़ा और बसा

माना जाता है कि आज का आधुनिक दिल्ही शहर आज से पहले सात बार उजड़ा और बसा है. इस नाम के पीछे का कुछ अवशेष आज भी देखा जा सकते हैं.

इसमें सबसे पहले (1) लालकोट, सीरी का किला एवं किला राय पिथौरा : तोमर वंश के सबसे प्राचीन क़िले लाल कोट के समीप कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा अंतरण किया गया

(2) सिरी का क़िला, 1303 में अलाउद्दीन ख़िलज़ी द्वारा निर्मित

(3) तुग़लक़ाबाद, गयासुद्दीन तुग़लक़ (1321-1325) द्वारा निर्मित

(4) जहाँपनाह क़िला, मुहम्मद बिन तुग़लक़ (1325-1351) द्वारा निर्मित

(5) फ़िरोज़ शाह कोटला, फ़िरोजशाह तुग़लक़ (1351-1388) द्वारा निर्मित

(6) पुराना क़िला (शेरशाह सूरी) और हुमायूँ दोनों उसी स्थान पर हैं जहाँ पौराणिक इंद्रप्रस्थ होने का प्रबल अनुमान है.

(7) शाहजहानाबाद, मुग़ल शाहजहाँ (1638-1649) द्वारा निर्मित,

इसी में लाल क़िला और चाँदनी चौक भी शामिल हैं. 17 वीं सदी के मध्य में मुग़ल शाहजहाँ ने 7 वीं बार दिल्ली बसायी जिसे शाहजहानाबाद के नाम से पुकारा जाता था. इन सातो ने हर बार बसी हुई मूल दिल्ही को उजाड़ कर अपने नाम से नया नगर बसाया. पुरानी दिल्ही के कुछ अवशेष आज भी पुरानी दिल्ली के रूप में इतिहास के धरोहर अब भी सुरक्षित बचे हुए हैं जिनमें लाल क़िला सबसे प्रसिद्ध है. शाहजहाँ ने अपनी राजधानी आगरा में (1638) स्थानांतरित की तब तक पुरानी दिल्ली मुग़ल की राजधानी रही. फिर औरंगजेब ने 1658 में अपने अब्बू शाहजहाँ को गद्दी से खदेड़कर खुद को शालीमार बाग़ में सम्राट घोषित किया था. 1857 में अंग्रेजो के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन को पूरी तरह दबाने के लिए अंग्रेजों ने आखरी मुग़ल बहादुरशाह ज़फ़र को रंगून भेज दिया और उसके बाद भारत पूरी तरह से अंग्रेजो के अधीन हुआ. अंग्रेजो ने प्रारंभ में कोलकाता से शासन संभाला परंतु 1911 में अपनी राजधानी को दिल्ली स्थानांतरित कर दिया. इसके बाद दिल्ही नगर के पुर्ननिर्माण की प्रक्रिया में पुराने दिल्ही के कुछ अवशेषों को तोड़-मोड़ दिया गया.

पांडवों का इन्द्रप्रस्थ और दिल्ही का क्या सम्बन्ध है?

यह नगरी महाभारत काल से पांडवों की  हाथो बसाई प्रिय नगरी इन्द्रप्रस्थ के रूप में जानी जाती थी. पांडवो की और से स्वयं भगवान् श्री कृष्ण ने जब हस्तिनापुर में कौरव दुर्योधन से पांडवों के लिए सिर्फ पांच गांव मांगे थे, दुर्योधन ने  मना कर दिया उसमे पश्चात श्री कृष्ण के कहने पर युधिष्ठिर सहित पांच पांडवों ने खंडवाप्रस्थ जोकि बंजर और बेकार थी वहां अपनी नयी नगरी की स्थापना की. इस नवनिर्मित राजधानी को बनाने के लिए श्रीक्रष्ण नें इन्द्र को बुलावा भेजा, पांडवों की मदद के लिए इन्द्र नें विश्वकर्मा को भेजा. विश्वकर्मा नें अपने अथाक प्रयासों से इस नगर को बनाया और इसे इन्द्रप्रस्थ यानी (इन्द्र का शहर) नाम दिया. यह वही दिल्ही है जो कभी इंद्रप्रस्थ हुवा करता था.

दिल्ली पर कभी एक लड़की ने किया था शाशन (सलतनत काल)

1192 में जब पृथ्वीराज चौहान को मोहम्मद ग़ोरी के द्वारा धोखे से पराजित कर दिया उसके बाद 1206 से दिल्ली सल्तनत लगभग मुस्लिमो के शाशन में चलने लगी थी. इन सुल्तानों में पहले सुल्तान कुतुब-उद-दीन ऐबक था उसने कुतुब मीनर बनवाना बनवाया. इसके बाद उसने कुव्वत-ए-इस्लाम नाम की मस्जिद भी बनाई जो शायद सबसे पहली थी. इसके निर्माण के चार साल बाद घोड़े से गिरकर 1210 में कुतुबुद्दीन ऐबक की मौत हो गई थी. उनकी मौत के बाद दामाद इल्तुतमिश गद्दी पर बैठा. उसने 26 साल दिल्ली पर राज किया था. इल्तुतमिश को अपने बेटों पर भरोसा नहीं होने के कारन बेटी ने संभाली दिल्ली की गद्दी. इल्तुतमिश अपने बेटों का नालायक समझता था, ऐसे में उन्हें पूरा भरोसा अपनी बेटी रजिया पर था. जिसके बाद इल्तुतमिश ने अपनी बेटी को पूरा साम्राज्य सौंप देने का निर्णय लिया. भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार होने जा रहा था जब कोई महिला इतने बड़े साम्राज्य की कमान संभालने जा रही थी. जब इल्तुतमिश की मौत हुई तो उनकी बेटी ने दिल्ली की कमान संभाली. इल्तुतमिश की ख्वाहिश के मुताबिक, उनकी बेटी रजिया ने महिलाओं के (परिवेश) कपड़े पहनना छोड़ दिया, जिसके बाद चोगा-टोपी पहना और हाथी पर सवार हो गई. इस शुभ घड़ी पर दिल्ली झूम उठी थी. रजिया सुल्तान में वो सभी गुण थे जो उस वक्त के सुल्तानों में जरूरी माने जाते थे. रजिया ज्यादा समय तक राज को संभल नहीं पायी. उसने सिर्फ साढ़े तीन साल तक ही राज किया. तुर्क सरदारों के मुकाबले गैर तुर्क और हिंदुस्तानी सामंतों की एक वफादार टोली तैयार करने की कोशिश उस पर भारी पड़ी थी. तुर्क अमीरों ने खुली बगावत की और  बगावत में रजिया काम आ गई. उसके बाद ख़िलजी ने 1290 से 1320 तक, 1321 से 1388 तक तुग़लक़ नाम का मुस्लिम वंश शाशक बने. जो तुर्क मुस्लिम थे. उसके बाद 1414 से 1451 तक सैयद राजवंश, फ़िर उसके बाद 1451 से लोधी राजवंश चला जिसने सन 1526 तक दिल्ली पर राज किया. कहते है दौलत खान लोधी के बुलावे पर बाबर जो एक मुगल था उसने हिन्दुस्तान पर चढाई कर दी और लोदी वंश का पतन सन 1526 पानीपत की लडाई में कर दिया था. 1526 बाबर (जहीरूद्दीन मोहम्मद) के बाद 1530 में हुमांयु (नसीरुद्दीन अहमद) ने बागडोर संभाली. इसके बाद मुग़लों ने हिंदुस्तान के मेवाड़ के महाराणा प्रताप के डर से सिर्फ मेवाड़ को छोड़कर कई प्रान्त पर अपना क्रूर पंजा फैलाया.

ब्रिटिश शासन काल 1857 से 1947 का दिल्ही

लास्ट मुगल बहादुर शाह जफ़र के बाद सन 1857 में ब्रिटिश शासन के हुकुमत में शासन चलने लगा, 1857 में ही कलकत्ता को ब्रिटिश भारत की राजधानी घोषित कर दिया गया लेकिन 1911 में फ़िर से दिल्ली को ब्रिटिश भारत की राजधानी बनाया गया. इस दौरान नई दिल्ली क्षेत्र भी बनाया गया. 1947 में भारत की आजादी के बाद इसे अधिकारिक रूप में भारत की राजधानी घोषित कर दिया गया. 1947 में भारत के स्वतंत्र होने के बाद दिल्ली ने विकास के अनेक चरणों को प्राप्त किया.

न्यू दिल्ही (New Delhi) कैसे अस्तित्व में आया?

भारत की राजधानी और एक केंद्र-शासित प्रदेश है. इसमें नई दिल्ली सम्मिलित है जो भारत की राजधानी है. दिल्ली राजधानी होने के नाते केंद्र सरकार की तीनों इकाइयों, कार्यपालिका, संसद और न्यायपालिका के मुख्यालय नई दिल्ली और दिल्ली में स्थित हैं. हिन्दी, पंजाबी, और अंग्रेज़ी यहाँ बोली जाने वाली मुख्य भाषाएँ हैं. इसके दक्षिण पश्चिम में अरावली पहाड़ियां और पूर्व में यमुना नदी है, जिसके किनारे यह बसा है. यह प्राचीन समय में गंगा के मैदान से होकर जाने वाले वाणिज्य पथों के रास्ते में पड़ने वाला मुख्य पड़ाव था. यह भारत का अति प्राचीन नगर है. इसके इतिहास का प्रारम्भ सिन्धु घाटी सभ्यता से जुड़ा हुआ है. हरियाणा के आसपास के क्षेत्रों में हुई खुदाई से इस बात के प्रमाण मिले हैं. यहाँ कई प्राचीन एवं मध्यकालीन इमारतों तथा उनके अवशेषों को देखा जा सकता हैं. 1911 में अंग्रेज सरकार ने फैसला किया कि राजधानी को कोलकाता से वापस दिल्ली लाया जाए. इसके लिए पुरानी दिल्ली के दक्षिण में एक नए नगर का निर्माण प्रारम्भ हुआ. जिसका नाम रखा नई दिल्ली. स्वतंत्रता के बाद दिल्ली में विभिन्न प्रदेशों से लोगों का आगमन हुआ, इससे दिल्ली के स्वरूप में आमूल परिवर्तन हुआ. विभिन्न प्रान्तो, धर्मों एवं जातियों के लोगों के दिल्ली में बसने के कारण दिल्ली का शहरीकरण तो हुआ ही साथ ही यहाँ एक मिश्रित संस्कृति ने भी जन्म लिया. आज दिल्ली भारत का एक प्रमुख राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं वाणिज्यिक केन्द्र है. शहर के बड़े और मुख्य हिस्सों को ब्रिटिश आर्किटेक्ट्स एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर द्वारा डिजाइन किया गया था. सही मायने में दिल्ली हमारे देश के भूत, भविष्य, और वर्तमान परिस्थितियों का साक्ष्य हैं. तोमर शासक अनंगपाल को दिल्ली की स्थापना का श्रेय जाता है.

NCR (National Capital Region) कैसे और क्यों बनाया गया?

उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान के कई शहर शामिल करके दिल्ली-एनसीआर (नेशनल केपिटल रीजन) बनाया गया है. एनसीआर में लगभग 4 करोड़ 70 लाख से ज्यादा आबादी है. एनसीआर में दिल्ली का क्षेत्रफल 1,484 स्क्वेर किलोमीटर है. देश की राजधानी एनसीआर का 2.9 % भाग कवर करती है. एनसीआर के तहत आने वाले क्षेत्र में उत्तर प्रदेश के मेरठ, गाजियाबाद, गौतम बुद्ध नगर (नोएडा), बुलंदशहर, शामली, बागपत, हापुड़ और मुजफ्फरनगर, और हरियाणा के फरीदाबाद, गुड़गांव, मेवात, रोहतक, सोनीपत, रेवाड़ी, झज्जर, पानीपत, पलवल, महेंद्रगढ़, भिवाड़ी, जिंद और करनाल जैसे जिले शामिल हैं. राजस्थान से दो जिले भरतपुर और अलवर एनसीआर में शामिल किए गए हैं. दिल्ली उत्तर-दक्षिण में अधिकतम 51.9 कि॰मी॰ यानि की 32 मील है और पूर्व-पश्चिम में अधिकतम चौड़ाई 48.48 कि॰मी॰ यानि की 30 मील है. यह उत्तर में समतल कृषि मैदानों और दक्षिण में शुष्क अरावली पर्वत श्रृंखला है. दिल्ली के दक्षिण में बड़ी प्राकृतिक झीलें हुआ करती थीं, जो अब अत्यधिक खनन के कारण सूखती चली गईं हैं. इनमें से एक है बड़खल झील. यमुना नदी शहर के पूर्वी क्षेत्रों को अलग करती है. ये क्षेत्र यमुना पार कहलाते हैं, वैसे ये नई दिल्ली से बहुत से पुलों द्वारा अच्छी तरह से कनेक्टेड है. दिल्ली की लाइफलाइन मेट्रो  दो पुलों द्वारा यमुना नदी को पार करती है. दिल्ली समुद्रतल से 1000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है. 1985 में बने कानून के तहत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) की स्थापना की गई थी. दिल्ली के आसपास के विस्तार में जमीन के इस्तेमाल पर नियंत्रण करना और इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप करना इसका मकसद था. केंद्र सरकार का शहरी विकास मंत्रालय नेशनल कैपिटल रीजन प्लानिंग बोर्ड के जरिए इन सम्मिलित सभी जिलों को विकास योजनाओं में सीधे नियंत्रित करता है. दिल्ली की जीवनरेखा यमुना नदी हिन्दू धर्म में अति पवित्र नदियों में से एक है.

दिल्ही के यह स्थान आपकी दिल्ही यात्रा को यादगार बना सकता है

लक्ष्मी नारायण मंदिर

बिड़ला मंदिर के नाम से जाना जाता यह मंदिर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को समर्पित है. इसका निर्माण 1938 में उद्योग  बिड़ला के द्वारा किया गया है और इसका उद्घाटन महात्मा गांधी ने किया था.

छतरपुर मंदिर

यह मंदिर दिल्ली के प्रसिद्ध मंदिरों में एक है. दक्षिण भारतीय शैली में बना यह मंदिर गुंड़गांव-महरौली रोड पर स्थित है. यह मंदिर मां दुर्गा को समर्पित है.

बहाई मंदिर

बहाई प्रार्थना केंद्र जिसे लोटस टेम्पल या कमल मंदिर भी कहा जाता है. यह मंदिर भारत के अलावा पनामा, कंपाला, इल्लिनॉइस, फ्रैंकफर्ट, सिडनी और वेस्ट समोआ में भी हैं. तालाब और बगीचों के बीच यह मंदिर ऐसे लगता है जसे पानी में कमल तैर रहा हो.

स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर

2005 में निर्मित भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और वास्तुकला का एक प्रतीक, स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर भगवान स्वामीनारायण को समर्पित है. यमुना नदी के तट पर स्थित मंदिर हिंदू धर्म और इसकी संस्कृति को दर्शाता है.

दिल्ली का इंद्रप्रस्थ पार्क

इंद्रप्रस्थ पार्क दिल्ली में बाहरी रिंग रोड पर स्थित है. इसे मिलेनियम इंद्रप्रस्थ पार्क के रूप में भी जाना जाता है. चिल्ड्रन पार्क और एक एम्पीथिएटर, फूड कोर्ट और शांति स्तूप के साथ सुसज्जित है.

राजघाट दिल्ली की फेमस जगह

राजघाट दिल्ली में जनपथ से 4 किमी दूर स्थित है. 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद इनका अंतिम संस्कार इस स्थान पर किया गया था. यहाँ पर आप गुरुवार को छोड़कर सुबह 9:30 से शाम 5:30 बजे के बीच विज़िट कर सकते है.

दिगंबर जैन मंदिर

1526 में निर्मित दिल्ली का सबसे पुराना जैन मंदिर लाल किला और चांदनी चौक के सामने स्थित है. जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का यह मंदिर बहुत ही प्राचीन और सुन्दर है.

लाल किला

अष्टभुजाकार लाल किला शाहजहां ने बनवाया था ऐसा कहा जाता है. लेकिन बहुत से इतिहासकारो का दृढ मानना है की यह लाल किला पृथ्वीराज चौहान के नाना और तोमर शाशक अनंगपाल ने बनवाया था. उत्तर में यह किला सलीमगढ़ किले से जुड़ा हुआ है. लाहौरी गेट के अलावा हाथीपोल इसका प्रवेश द्वारा है. इसी किले पर स्वतंत्रता दिवस के दिन भारत के प्रधानमंत्री राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं. समय समय की बात है, कोई प्रधानमंत्री बुलेटप्रूफ शीशे की केबिन से तो कोई खुले में दहाड़ लगता है.

पुराना किला

इस किले के निर्माण के लिए कई मत है….  इतिहासकारों के अनुसार इसी इमारत से गिरने की वजह से हुमायूं की मृत्यु हुई थी. हाल ही में भारतीय पुरातत्व विभाग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस स्थान पर पुराना किला बना है उस स्थान पर इंद्रप्रस्थ बसा हुआ था इंद्रप्रस्थ महाभारत काल में पांडवों की राजधानी था. इसमें प्रवेश करने के तीन दरवाजे हैं.

जंतर मंतर

इसका निर्माण सवाई जय सिंह द्वितीय ने 1724 में करवाया था. यह इमारत प्राचीन भारत की वैज्ञानिक उन्नति की मिसाल है. जय सिंह ने ऐसी वेधशालाओं का निर्माण जयपुर, उज्जैन, मथुरा और वाराणसी में भी किया था. दिल्ली का जंतर-मंतर समरकंद की वेधशाला से प्रेरित है. कहा जाता है की मोहम्मद शाह के शासन काल में हिन्दू और मुस्लिम खगोलशास्त्रियों में ग्रहों की स्थित को लेकिर बहस छिड़ गई थी. इसे खत्म करने के लिए सवाई जय सिंह ने जंतर-मंतर का निर्माण करवाया था. ग्रहों की गति नापने के लिए यहां विभिन्न प्रकार के उपकरण लगाए गए हैं. सम्राट यंत्र सूर्य की सहायता से वक्त और ग्रहों की स्थिति की जानकारी देता है. मिस्र यंत्र वर्ष के सबसे छोटे ओर सबसे बड़े दिन को नाप सकता है. राम यंत्र और जय प्रकाश यंत्र खगोलीय पिंडों की गति के बारे में बताता है.

चांदनी चौक

दिल्ली आने वाले सभी टूरिस्ट चांदनी चौक की विज़िट अवश्य करते है. पुराने समय में तुर्की, चीन और हॉलैंड के व्यापारी यहां व्यावपार करने आते थे. यह पुराने समय में प्रमुख व्यीवसायिक केंद्र था. इसका डिजाइन शाहजहां की पुत्री जहांआरा बेगम ने बनवाई थी. चांदनी चौक की गालिया बहुत ही संकीर्ण हैं, लेकिन बहुत ही सुन्दर है.

कुतुब मीनार

कुतुब मीनार का निर्माण 1199 में हुवा था. लाल और हल्के पीले पत्थर से बनी इस इमारत पर कुरान की आयतें लिखी हैं. कुतुबमीनार मूल रूप् से सात मंजिल का था लेकिन अब यह पांच मंजिल का ही रह गया है. कुतुब मीनार की कुल ऊँचाई 72.5 मी. है और इसमें 379 सीढ़ियां हैं. कुतुब मीनार परिसर में और भी कई इमारते हैं. मस्जिद के पास ही चौथी शताब्दी में बना लौहस्तंभ भी है जो पर्यटकों को खूब आकर्षित करता है.

कनॉट प्लेस

यह एक व्यापारिक  केंद्र है. इसका नाम ब्रिटेन के शाही परिवार के सदस्य ड्यूक ऑफ कनॉट के नाम पर से रखा गया था. इस मार्केट का डिजाइन डब्यू एच निकोल और टॉर रसेल ने बनाया था. यह मार्केट अपने समय की भारत की सबसे बड़ी मार्केट थी.

इंडिया गेट

राजपथ पर स्थित इंडिया गेट का निर्माण प्रथम विश्व युद्ध और अफगान युद्ध में मारे गए 90000 भारतीय सैनिकों की याद में कराया गया था. 160 फीट ऊंचा इंडिया गेट दिल्ली का पहला दरवाजा माना जाता है. जिन सैनिकों की याद में यह बनाया गया था उनके नाम इस इमारत पर उकेरे हुए हैं. इसके अंदर अखंड अमर जवान ज्योति भी जलती रहती है. 1921 में इसकी नींव ड्यूक ऑफ कनॉट ने रखी थी और इसे कुछ साल बाद तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इर्विन ने राष्ट्र को समर्पित किया था. अमर जवान ज्योति की स्थापना 1971 के भारत-पाक युद्ध में भाग लेने वाले सैनिकों की याद में की गई थी. इंडिया गेट दिल्ली की महत्वपूर्ण इमारतों में से एक है. अगर आप दिल्ही आते है तो इंडिया गेट की मुलाकात अवश्य कीजियेगा.

दिल्ही का वातावरण

दिल्ली का वायु प्रदूषण बहुत ही गंभीर होता जा रहा है. दिल्ही का एयर पॉल्यूशन इंडेक्स (AQI) आम तौर पर जनवरी से सितंबर के बीच मध्यम (101-200) पाया जाता है, और फिर ओक्टोबर, नवम्बर, दिसम्बर यह तीन महीनों में बहुत खराब (301-400), गंभीर (401-500) या यहां तक कि खतरनाक (500+) के स्तर को भी पार कर जाता है. वर्तमान केजरीवाल सरकार के अनुसार अक्टूबर से दिसंबर के बीच सबसे ज्यादा पॉल्यूशन का कारण हिन्दू के सबसे बड़े त्यौहार दिवाली के फटाके से होता है. युगो से चली आ रही दीपावली की परंपरा को इस तरह पॉल्यूशन के साथ जोड़ना हिन्दू संस्कृति को बदनाम करने का कृत्य ही माना जाता है.

दिल्ही का खान-पान और दिल्ही में कहाँ रुके?

दिल्ही में आप हर तरह की डिश का स्वाद ले सकते है, क्यूंकि दिल्ही में मूल निवासी से ज्यादा बाहर से आकर बसे हुवे लोगो के कारन हर तरह का टेस्ट मिलता है. यहाँ पर पंजाबी, राजस्थानी और साऊथ इंडियन डिश आसानी से मिल जाती है. और सभी तरह के फास्टफूड भी वैलेबल है. दिल्ही में ठहरने के लिए आपको हर जगह आपके बजट के अनुसार रूम, होटल, रिसोर्ट मिल जाएगी.

दिल्ही कैसे पहुंचे?

दिल्ही आने के लिए, आप इंडिया के किसी भी सिटी से ट्रैन अवेलेबल है. अगर आप फ्लाइट से आना चाहे तो इंडिया की किसी भी सिटी से आपको बहुत ही आसानी से फ्लाइट मिल जाएगी. इतना ही नहीं, दिल्ही दुनिया के सभी बड़े शहर के एयर कनेक्टिविटी वाला मेट्रो शहर है. अगर आप बाय रोड दिल्ही आना चाहे तो दिल्ही से मेरठ 81 की.मि. दुरी पर है, रोहतक 74 की.मि., आगरा 202 की.मि., जयपुर 268 की.मि., लखनऊ 480 की.मि., चंडीगढ़ 312 की.मि., और मथुरा सिर्फ 146 की.मि. की दुरी पर स्थित है. दिल्ही स्टेट हाइवे और नेशनल हाइवे से वेलकनेक्टेड है.

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Author: Kirankumar J. Kakadiya

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इंद्रप्रस्थ दिल्ली कब बना?

दिल्ली का पहला ज़िक्र महाभारत में मिलता है जहां 'इंदरपथ' यानि इंद्रप्रस्थ के रुप में पांडवों पहली बार दिल्ली को बसाया। माना जाता है कि उस जगह आज पुराने किले के खंडहर हैं। इसके बाद इसका नाम दिल्ली (100 ईसा पूर्व) पड़ा। भारतीय महाकाव्य महाभारत में प्राचीन इन्द्रप्रस्थ, की राजधानी के रूप में जाना जाता है।

इंद्रप्रस्थ से पहले दिल्ली का क्या नाम था?

खांडवप्रस्थ : आज का दिल्ली प्राचीनकाल का इंद्रप्रस्थ थाइंद्रप्रस्थ से पहले यह खांडवप्रस्थ था, जहां एक भव्य नगर बसा हुआ था। नगर के बीचोबीच एक महल था और नगर के चारों और वन था जिसे खांडव वन कहते थे। यमुना नदी के किनारे बसे खांडवप्रस्थ को एक प्राचीन राजा ने बसाया था

इंद्रप्रस्थ का नाम दिल्ली कैसे पड़ा?

दिल्ली के ही पुराने नाम इंद्रप्रस्थ को पांडवों की बसाई नगरी कहा जाता है, जो उनकी राजधानी थी। जानें दिल्ली के नाम से लेकर दिल्ली की खास बातें.. कुछ इतिहासकार कहते हैं कि तोमरवंश के एक राजा धव ने इलाके का नाम ढीली रख दिया था क्योंकि किले के अंदर लोहे का खंभा ढीला था और उसे बदला गया था। यह ढीली शब्द बाद में दिल्ली हो गया।

इंद्रप्रस्थ का पुराना नाम क्या है?

दिल्ली का प्राचीन नाम इंद्रप्रस्थ था, जो हस्तिनापुर की राजधानी थी। इसके बाद इसको यमपुरी भी कहा गया।

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