ईश्वर और प्रकृति में क्या अंतर है - eeshvar aur prakrti mein kya antar hai

एक सवाल आप सबसे है। आपमें से कितनों ने ईश्वर को देखा है? मैं जानता हूं कि अधिकतर लोग नहीं में जवाब देंगे। अब दूसरा सवाल करता हूं। आपमें से कितनों ने प्रकृति को देखा है? प्रकृति यानी जल, जंगल और जमीन। निस्संदेह, सबके सब हां में जवाब देंगे।

तो फिर यह प्रकृति क्या है? ईश्वर का रूपक ही तो है। भगवान को भांपने का जरिया है। भगवान शिव की जटाओं से गंगा निकलती है, वह प्रकृति ही तो है। देव पर्वतों पर रहते हैं। पर्वत प्रकृति ही तो है। जंगल से नाना प्रकार की वनस्पतियां और अन्न-अनाज की प्राप्ति होती है। वह अन्नपूर्णा प्रकृति ही तो है। साफ है, इस मृत्युलोक और परलोक के बीच ईश्वर का साक्षात एहसास प्रकृति है। वह हर क्षण ईश्वर के होने का प्रमाण देती है।

जब हम भयंकर गरमी की तपिश से झुलस रहे होते हैं, तब बारिश की फुहार बनकर वह आती है। जब हम जल-प्रलय के आसन्न संकट से ग्रसित होते हैं, तब सूरज की तेज किरणें बनकर वह छा जाती है। और जब हमारे अंदर का शैतान जाग उठता है, तो वह संहारक के रूप में होती है। वह किसी भी ‘अति’ का प्रतिरोध है और सृष्टि रचयिता के होने की गवाही है। वह जन्म का संकेत है, तो मरण का सूचक भी।

धर्म में प्रकृति को शरीर से अलग करके नहीं देखा गया। कोई भेद नहीं रखा गया। रामायण में कहा गया है-

छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।

प्रभु श्रीराम कहते हैं- पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु, इन पांच तत्वों से यह शरीर रचा गया है।

लेकिन इन पंचतत्वों का आपने क्या किया? रासायनिक खादों, कचरों और उर्वरकों से आपने मिट्टी प्रदूषित कर दी। शिव की जटाओं से निकलने वाली गंगा मैदानी भागों में आते-आते गंदी हो जाती है। जिसे हमारे मन के पापों को धोने के लिए रचा गया, वह दुनिया भर की गंदगी ढो रही है। दैहिक, दैविक और भौतिक अग्नि पर तो अब बस ही नहीं रहा। आकाश को ध्वनि प्रदूषण से छीजा जा चुका है और लगता है कि आने वाले वर्षों में यह रॉकेट और अंतरिक्षीय उपकरणों का घर बन जाएगा। वायु की स्थिति से हम सब वाकिफ ही हैं।

मानवीय कर्मों ने सिर्फ प्रकृति का नहीं, बल्कि अपने शरीर और ईश्वर का नुकसान पहुंचाया है। आज यह प्रकृति कह रही है- हमें न मारो, हम तुम्हारा जीवन हैं। आइए, इस पर्यावरण दिवस पर संकल्प लें – हम अपनी प्रकृति को बचाएंगे, हम पर्यावरण की रक्षा करेंगे।

भगवान और प्रकृति में क्या अंतर है?

प्रकृति की बिना पुरुष अधूरा है और पुरुष के बिना प्रकृति। कुदरत ईश्वर के आधीन है ईश्वर और परम- ईश्वर भी अलग अलग है। परमेश्वर सभी अन्नत ब्रह्मांड के मालिक है। ईश्वर कुछ ब्रह्मांड के मालिक है और प्रकृति ईश्वर के अधीन है।

ईश्वर कौन है कहां रहता है?

*ईश्‍वर न धरती पर है और न आकाश में लेकिन वह सर्वत्र होकर भी अकेला है। *सृष्टि से पहले भी वही था और सृष्टि के बाद भी वही एकमात्र होगा। *ईश्‍वर सभी की आत्मा में है और सभी की आत्मा ही ईश्वर है, लेकिन वह कभी किसी को महसूस नहीं होता। उसके लिए आत्मवान होना जरूरी है।

गीता में ईश्वर को क्या कहा गया है?

बेशक पंदरहवें अध्याय के 17-18 श्लोकों में परमात्मा, उत्तम पुरुष, पुरुषोत्तम तथा ईश्वर शब्दों से ऐसे ही ईश्वर का उल्लेख आया है जो प्रकृति एवं पुरुष के ऊपर - दोनों से निराला और उत्तम - बताया गया है।

ईश्वर की परिभाषा क्या है?

परमेश्वर वह सर्वोच्च परालौकिक शक्ति है जिसे इस संसार का सृष्टा और शासक माना जाता है। हिन्दी में परमेश्वर को भगवान, परमात्मा या परमेश्वर भी कहते हैं। अधिकतर धर्मों में परमेश्वर की परिकल्पना ब्रह्माण्ड की संरचना से जुड़ी हुई है।

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