कारक हिन्दी व्याकरण का प्रमुख अंग है, इसे संज्ञा (पद-परिचय) के अंतर्गत पढ़ा जाता है, कारक 4-5 या उससे उपर के बच्चों को पढाया जाता है, लेकिन कई प्रतियोगी परीक्षाओं में भी इससे सम्बंधित प्रश्न आते हैं। तो आज हम जानेंगे कि कारक किसे कहते हैं और कारक के कितने भेद होते हैं?
कारक किसे कहते हैं
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य का सम्बन्ध अन्य शब्दों के साथ स्थापित हो उसे कारक कहते हैं। जैसे-राम ने रावण को वाण से मारा।
कारक की परिभाषा
दुसरे शब्दों में इसे यह भी कहा जा सकता है कि वाक्यांश के शब्दों में सम्बन्ध स्थापित करने वाले चिह्न को कारक चिह्न कहा जाता हैं। जैसे-राम ने रोटी खायी। इस वाक्य में राम और रोटी के बीच ‘ने’ सम्बन्ध स्थापित कर रहा है, अतः यहाँ ‘ने’ कारक चिह्न है।
कारक के कितने भेद होते हैं
हिन्दी व्याकरण में आठ प्रकार के कारक होते हैं।
कर्ता | ने | काम करने वाला |
कर्म | को, ए | क्रिया से प्रभावित होने वाला |
करण | से, के द्वारा | क्रिया का साधन |
सम्प्रदान | को,के लिए, ए | जिसके लिए क्रिया की सम्पन्न की जाए |
अपादान | से (अलग होने का भाव) | अलगाव, तुलना, आरम्भ, सिखने आदि का बोधक |
सम्बन्ध | का, की, के, ना, नी, ने, रा, री, रे | अन्य पदों से पारस्परिक सम्बन्ध |
अधिकरण | में, पर | क्रिया का आधार (स्थान, समय, अवसर) आदि का बोधक |
संबोधन | ऐ !, हे !, अरे !, अजी !, ओ ! | किसी को पुकारने या बुलाने का बोधक |
कर्ता कारक-
वाक्यांश के जिस रूप से क्रिया करने वाले का पता चले, कर्ता कारक कहलाता हैं। इसका विभक्ति चिह्न ‘ने’ है। जैसे- राम ने खाना मारा। श्याम घर गया। उपर्युक्त उदाहरण में हमें कर्ता राम के बारे में पता चल रहा है, यहाँ राम ने का प्रयोग किया गया है, अतः यहाँ कर्ता कारक है।
कर्म कारक-
क्रिया को प्रभावित करने वाले शब्द में कर्म कारक होता है, इसका विभक्ति चिह्न ‘को’ है। जैसे- राम ने रावण को मारा। उपर्युक्त उदाहरण में रावण, क्रिया से प्रभावित हो रहा है।
करण कारक-
जिस साधन के द्वारा कर्ता अपनी क्रिया पूर्ण करता है, उसे करण कारक कहते हैं। इसका विभक्ति चिह्न से और के द्वारा होता है। जैसे- राजा ने बाण से हिरण का शिकार किया। राम ने मोबाइल के द्वारा श्याम से बात की। उपर्युक्त उदाहरण में बाण और मोबाइल वह साधन हैं जिसकी मदद से क्रिया पूर्ण हुयी है, अतः यहाँ करण कारक है।
सम्प्रदान कारक-
जिसके लिए क्रिया सम्पन्न की जाती है, वह सम्प्रदान कारक होता है। इसका विभक्ति चिह्न को,के लिए, ए होता है। जैसे- राम को पैसे दे दो। मोहन अपने बच्चों के लिए भोजन लाया। उपर्युक्त उदाहरण में राम और बच्चों के लिए क्रिया हुयी है, अतः यहाँ सम्प्रदान कारक है।
अपादान कारक-
जब वाक्यांश से अलग होने का भाव अथवा तुलना होता है तो वहाँ अपादान कारक होता है। इसका विभक्ति चिह्न से है। जैसे- वह दिवार से कूद गया। राम श्याम से बेहतर गाता है। उपर्युक्त उदाहरण में दिवार से अलग होने का भाव निकल रहा है, और दुसरे उदाहरण में राम और श्याम में तुलना की गयी है, अतः यहाँ अपादान कारक है।
सम्बन्ध कारक-
जब वाक्यांश के अन्य पदों से पारस्परिक सम्बन्ध होता है तो सम्बन्ध कारक होता है। इसका विभक्ति चिह्न का, की, के, ना, नी, ने, रा, री, रे है। जैसे- यह सोहन की किताब है। उपर्युक्त उदाहरण में सोहन के किताब की बात की गयी है, इससे पता चलता है कि सोहन का किताब से सम्बन्ध है।
अधिकरण कारक-
संज्ञा या सर्वनाम के उस स्वरूप को अधिकरण कारक कहते है, जो क्रिया के आधार को सूचित करता है। इसका विभक्ति चिह्न (में, पर) होता है। जैसे- आइसक्रीम फ्रिज में रखी है। चाकू मेज पर रखा है। उपर्युक्त उदाहरण में में और पर संज्ञा के आधार को दर्शातें हैं तो यहाँ अधिकरण कारक है।
संबोधन कारक-
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से किसी को बुलाने या संबोधित करने का भाव उत्पन्न होता है तो वहाँ संबोधन कारक होता है। इसका विभक्ति चिह्न ऐ !, हे !, अरे !, अजी !, ओ ! होता है। जैसे- अरे ! यह क्या था? हे राम ! यह क्या हो गया। हे ईश्वर! हमारी रक्षा करो।
लेख के बारे में-
आज इस आर्टिकल में हमने पढ़ा कि, कारक किसे कहते हैं और कारक के कितने भेद होते हैं? इससे पहले हम हिन्दी व्याकरण में संज्ञा, वचन, लिंग, शब्द तथा वाक्य विचार के बारे में पढ़ चुके हैं। इस आर्टिकल के विषय में अपनी राय दें, और कमेन्ट करके बताएं की आप किस टॉपिक के बारे में जानना चाहते हैं।