ताप में विसर्ग के पश्चात स्वर या व्यंजन आने पर विसर्ग में परिवर्तन हुआ है । अतः यहाँ विसर्ग संधि हुई । रचना बोध .................................................................................... .................................................................................... .................................................................................... 1१8 श्रवणीय ७. छोटा जादगू र - जयशकं र प्रसाद प्रेमचदं की ‘ईदगाह’ कहानी सुनिए और प्रमुख पात्रों का परिचय दीजिए ः- कतृ ि के लिए आवश्यक सोपान ः · प्रेमचदं की कछु कहानियों के नाम पूछंे । · प्रेमचदं जी का जीवन परिचय बताएँ । · कहानी के मुख्य पात्रों के नाम श्यामपट् ट पर लिखवाएँ । · कहानी की भावपूरण् घटना कहलवाएँ । · कहानी से प्राप्त सीख बताने के लिए प्रेरित करंे । काॅर्निवाल के मदै ान मंे बिजली जगमगा रही थी । हंसॅ ी और विनोद परिचय का कलनाद गंूॅज रहा था । मैं खड़ा था । उस छोटे फुहारे के पास, जहाँ एक लड़का चपु चाप दखे रहा था । उसके गले मंे फटे करु ते के ऊपर से जन्म ः ३० जनवरी १88९ वाराणसी एक मोटी-सी सूत की रस्सी पड़ी थी और जबे में कुछ ताश के पत्ते (उ.प्र.) मृत्यु ः १5 नवबं र १९३७ थे । उसके महुँ पर गभं ीर विषाद के साथ धरै ्य की रेखा थी । मैं उसकी वाराणसी (उ.प्र.) ओर न जाने क्यों आकर्षित हुआ । उसके अभाव में भी सपं रू ्तण ा थी । परिचय ः जयशकं र प्रसाद जी हिंदी मंनै े पूछा-‘‘क्यों जी, तमु ने इसमें क्या दखे ा ?’’ साहित्य के छायावादी कवियों के चार प्रमखु स्तंभों में से एक हंै । बहुमुखी ‘‘मनैं े सब देखा है । यहाँ चड़ू ी फकंे ते हैं । खिलौनों पर निशाना लगाते प्रतिभा के धनी प्रसाद जी कवि, हैं । तीर से नंबर छदे ते हंै । मुझे तो खिलौनों पर निशाना लगाना अच्छा नाटककार, कथाकार, उपन्यासकार तथा मालूम हुआ । जादगू र तो बिलकुल निकम्मा है । उससे अच्छा तो ताश निबधं कार के रूप मंे प्रसिद्ध हैं । का खले मैं ही दिखा सकता हू,ँ टिकट लगता है ।’’ प्रमुख कृतियाँ ः झरना, आँसू, लहर आदि (काव्य) कामायनी (महाकाव्य), मंनै े कहा-‘‘तो चलो, मैं वहाँ पर तमु को ले चलँू ।’’ मंैने मन-ही- स्ंदक गपु ्त, चंद्रगुप्त, ध्ुवर स्वामिनी -मन कहा-‘भाई ! आज के तुम्हीं मित्र रहे ।’ (ऐतिहासिक नाटक), प्रतिध्वनि, आकाशदीप, इदं ्रजाल आदि (कहानी उसने कहा-‘‘वहाँ जाकर क्या कीजिएगा ? चलिए, निशाना लगाया सगं ्रह), कंकाल, तितली, इरावती जाए ।’’ (उपन्यास) । मनंै े उससे सहमत होकर कहा-‘‘तो फिर चलो, पहले शरबत पी लिया गदय् सबं धं ी जाए ।’’ उसने स्वीकार सचू क सिर हिला दिया । सवं ादात्मक कहानी ः किसी विशषे घटना मनषु ्यों की भीड़ से जाड़े की संध्या भी वहाँ गरम हो रही थी । हम दोनों की रोचक ढगं से सवं ाद रूप में प्रस्तुत ि शरबत पीकर निशाना लगाने चल े । रास्ते में ही उससे पछू ा- ‘‘तमु ्हारे और सवं ादात्मक कहानी कहलाती है । कौन हैं ?’’ प्रस्तुत कहानी में लखे क ने लड़के ‘‘माँ और बाबू जी ।’’ के जीवन संघर्ष और चातुर्यपूर्ण साहस को ‘‘उन्होंने तुमको यहाँ आने के लिए मना नहीं किया ?’’ उजागर किया है । ‘‘बाबू जी जेल में हंै ।’’ ‘‘ क्यों ?’’ ‘‘ देश के लिए ।’’ वह गर्व से बोला । ‘‘ और तमु ्हारी माँ ?’’ ‘‘ वह बीमार हंै ।’’ ‘‘ और तुम तमाशा देख रहे हो ?’’ 19 उसके मुहँ पर तिरस्कार की हॅंसी फूट पड़ी । उसने कहा-‘‘तमाशा मौलिक सृजन देखने नहीं, दिखाने निकला हूँ । कछु पैसा ले जाऊगँ ा, तो माँ को पथ्य दूँगा । मुझे शरबत न पिलाकर आपने मरे ा खले देखकर मुझे कुछ दे दिया ‘मा’ँ विषय पर स्वरचित होता, तो मुझे अधिक प्रसन्नता होती ।’’ कविता प्रस्तुत कीजिए । मंै आश्चर्य में उस तरे ह-चौदह वर्ष के लड़के को दखे ने लगा । आसपास ‘‘ हाँ, मंै सच कहता हँू बाबू जी ! मांॅ जी बीमार हंै, इसलिए मैं नहीं गया ।’’ अपने विद्यालय के ‘‘ कहाँ ?’’ किसी समारोह का ‘‘ जेल मंे । जब कुछ लोग खेल-तमाशा देखते ही ह,ंै तो मैं क्यों न सूत्र सचं ालन कीजिए । दिखाकर माँ की दवा करँू और अपना पेट भरँू ।’’ मनैं े दीर्घ निःश्वास लिया । चारों ओर बिजली के लट्टू नाच रहे थे । मन व्यग्र हो उठा । मंैने उससे कहा -‘‘अच्छा चलो, निशाना लगाया जाए ।’’ हम दोनों उस जगह पर पहुँचे, जहाँ खिलौने को गेदं से गिराया जाता था । मनंै े बारह टिकट खरीदकर उस लड़के को दिए । वह निकला पक्का निशानबे ाज । उसकी कोई गेंद खाली नहीं गई । दखे ने वाले दंग रह गए । उसने बारह खिलौनों को बटोर लिया, लके िन उठाता कसै े ? कुछ मरे े रूमाल मंे बँधे, कुछ जेब में रख लिए गए । लड़के ने कहा-‘‘बाबू जी, आपको तमाशा दिखाऊगँ ा । बाहर आइए, मैं चलता हँू ।’’ वह नौ-दो ग्यारह हो गया । मंनै े मन-ही-मन कहा-‘‘इतनी जल्दी आखँ बदल गई ।’’ मैं घूमकर पान की दकु ान पर आ गया । पान खाकर बड़ी देर तक इधर-उधर टहलता दखे ता रहा । झूले के पास लोगों का ऊपर-नीचे आना दखे ने लगा । अकस्मात किसी ने ऊपर के हिडं ोले से पकु ारा-‘‘बाबू जी !’’ मंनै े पूछा-‘‘कौन ?’’ ‘‘मैं हँू छोटा जादगू र ।’’ ः२ः कोलकाता के सुरम्य बोटनै िकल उदय् ान में लाल कमलिनी से भरी हुई एक छोटी-सी मनोहर झील के किनारे घने वृक्षों की छाया मंे अपनी मडं ली के साथ बठै ा हुआ मंै जलपान कर रहा था । बातंे हो रही थीं । इतने मंे वही छोटा जादूगार दिखाई पड़ा । हाथ में चारखाने की खादी का झोला । साफ जाघं िया और आधी बांहॅ ों का कुरता । सिर पर मेरा रूमाल सूत की रस्सी मंे बंधा हुआ था । मस्तानी चाल से झमू ता हुआ आकर कहने लगा -‘‘बाबू जी नमस्ते ! आज कहिए, तो खेल दिखाऊँ ।’’ ‘‘नहीं जी, अभी हम लोग जलपान कर रहे हंै ।’’ ‘‘फिर इसके बाद क्या गाना-बजाना होगा, बाबू जी ?’’ 20 ‘‘नहीं जी-तमु को...,’’ क्रोध से मंै कुछ और कहने जा रहा था, पठनीय श्रीमती ने कहा-‘‘दिखाओ जी, तमु तो अच्छे आए । भला, कुछ मन तो बहले ।’’ मैं चपु हो गया क्योंकि श्रीमती की वाणी मंे वह माँ की-सी मिठास पुस्तकालय/ अंतरजाल से उषा थी, जिसके सामने किसी भी लड़के को रोका नहीं जा सकता । उसने खले प्रियंवदा जी की ‘वापसी’ कहानी आरभं किया । उस दिन कारॅ ्निवाल के सब खिलौने खले में अपना अभिनय पढ़िए और सारांश सनु ाइए । करने लगे । भालू मनाने लगा । बिल्ली रूठने लगी । बदं र घड़ु कने लगा । गड़ु िया का ब्याह हुआ । गडु ड् ा वर सयाना निकला । लड़के की वाचालता संभाषणीय से ही अभिनय हो रहा था । सब हसॅं त-े हसंॅ ते लोटपोट हो गए । माँ के लिए छोटे जादगू र के मंै सोच रहा था ‘बालक को आवश्यकता ने कितना शीघ्र चतरु बना किए हुए प्रयास बताइए । दिया । यही तो ससं ार है ।’ ताश के सब पत्ते लाल हो गए । फिर सब काले हो गए । गले की सूत की डोरी टकु ड़े-टकु ड़े होकर जुट गई । लट्ट ू अपने से नाच रहे थे । मैंने कहा-‘‘अब हो चकु ा । अपना खले बटोर लो, हम लोग भी अब जाएँगे ।’’ श्रीमती ने धीर-े से उसे एक रुपया दे दिया । वह उछल उठा । मनंै े कहा-‘‘लड़के ।’’ ‘‘छोटा जादूगर कहिए । यही मेरा नाम है । इसी से मरे ी जीविका है ।’’ मंै कुछ बोलना ही चाहता था कि श्रीमती ने कहा-‘‘अच्छा, तुम इस रुपये से क्या करोगे ?’’ ‘‘पहले भर पेट पकौड़ी खाऊगँ ा । फिर एक सूती कंबल लूँगा ।’’ मेरा क्रोध अब लौट आया । मैं अपने पर बहुत क्रुद्ध होकर सोचने लगा-‘ओह ! मंै कितना स्वार्थी हूँ । उसके एक रुपये पाने पर मंै ईर्ष्ाय करने लगा था ।’ वह नमस्कार करके चला गया । हम लोग लता-कजंु दखे ने के लिए चले । ः३ः उस छोट-े से बनावटी जगं ल मंे सधं ्या सायँ -सायँ करने लगी थी । अस्ताचलगामी सरू ्य की अतं िम किरण वकृ ्षों की पत्तियों से विदाई ले रही थी । एक शातं वातावरण था । हम लोग धीर-े धीरे मोटर से हावड़ा की ओर जा रहे थे । रह-रहकर छोटा जादगू र स्मरण होता था । सचमचु वह झोंपड़ी के पास कबं ल कधं े पर डाले खड़ा था । मनंै े मोटर रोककर उससे पछू ा-‘‘तमु यहाँ कहाँ ?’’ ‘‘मरे ी माँ यहीं हंै न ? अब उसे अस्पतालवालों ने निकाल दिया है ।’’ मंै उतर गया । उस झोंपड़ी में दखे ा, तो एक स्त्री चिथड़ों मंे लदी हुई कापँ रही थी । छोटे जादगू र ने कबं ल ऊपर से डालकर उसके शरीर से चिमटते हुए कहा-‘‘माँ !’’ मरे ी आखँ ों में आसँ ू निकल पड़े । ः4ः बड़े दिन की छुट्टी बीत चली थी । मझु े अपने ऑफिस में समय से पहुँचना था । कोलकाता से मन ऊब गया था । फिर भी चलते-चलते एक बार उस उदय् ान को देखने की इच्छा हुई । साथ-ही-साथ जादगू र भी 21 दिखाई पड़ जाता, तो और भी ... मंै उस दिन अकेले ही चल पड़ा । जल्द लौट आना था । दस बज चकु े थे । मंैने दखे ा कि उस निर्मल धपू मंे सड़क के किनारे एक कपड़े पर छोटे जादूगर का रगं मंच सजा था । मोटर रोककर उतर पड़ा । वहाँ बिल्ली रूठ रही थी । भालू मनाने चला था । ब्याह की तैयारी थी, सब होते हुए भी जादगू ार की वाणी मंे वह प्रसन्नता की तरी नहीं थी । जब वह औरों को हँसाने की चषे ्टा कर रहा था, तब जसै े स्वयं कापॅं जाता था । मानो उसके रोयंे रो रहे थे । मंै आश्चर्य से देख रहा था । खले हो जाने पर पैसा बटोरकर उसने भीड़ में मुझे देखा । वह जैसे क्षण-भर के लिए स्फूर्तिमान हो गया । मनंै े उसकी पीठ थपथपाते हुए पूछा - ‘‘ आज तमु ्हारा खले जमा क्यों नहीं ?’’ ‘‘माँ ने कहा है आज तुरतं चले आना । मरे ी घड़ी समीप है ।’’ अविचल भाव से उसने कहा । ‘‘तब भी तमु खले दिखाने चले आए ।’’ मंैने कछु क्रोध से कहा । मनषु ्य के सखु -दखु का माप अपना ही साधन तो है । उसी के अनुपात से वह तुलना करता है । उसके मुँह पर वही परिचित तिरस्कार की रेखा फटू पड़ी । उसने कहा- ‘‘क्यों न आता ?’’ और कछु अधिक कहने मंे जैसे वह अपमान का अनुभव कर रहा था । क्षण-क्षण मंे मझु े अपनी भलू मालमू हो गई । उसके झोले को गाड़ी मंे फकंे कर उसे भी बठै ाते हुए मनंै े कहा-‘‘जल्दी चलो ।’’ मोटरवाला मरे े बताए हुए पथ पर चल पड़ा । मंै कुछ ही मिनटों में झोंपड़े के पास पहुँचा । जादूगर दौड़कर झोंपड़े में ‘मा-ँ मा’ँ पकु ारते हुए घुसा । मैं भी पीछे था, किंतु स्त्री के महँु से, ‘ब.े ..’ निकलकर रह गया । उसके दुर्बल हाथ उठकर गिरे । जादगू र उससे लिपटा रो रहा था, मैं स्तब्ध था । उस उज्ज्वल धपू में समग्र ससं ार जसै े जाद-ू सा मेरे चारों ओर नतृ ्य करने लगा । शब्द ससं ार विषाद (पंु.स.ं ) = दखु , जड़ता निश्चेष्टता चेष्टा (स.ं स्त्री.) = प्रयत्न हिडं ोले/हिडं ोला (पुं.स.ं ) = झूला समीप (क्रि.वि.) (स.ं ) = पास निकट, नजदीक जलपान (प.ुं सं.) = नाश्ता अनुपात (प.ंु सं.) = प्रमाण, तलु नात्मक स्थिति घुड़कना (क्रि.) = डाँटना समग्र (वि.) = सपं ूर्ण वाचालता (भाव.स.ं स्त्री.) = अधिक बोलना जीविका (स्त्री.सं.) = रोजी-रोटी महु ावरे ईर्ष्या (स्त्री.स.ं ) = द्व ेष, जलन चिथड़ा (पंु.सं.) = फटा परु ाना कपड़ा दंग रहना = चकित होना मन ऊब जाना = उकता जाना 22 पाठ के आगँ न में Acharya Jagadish Chandra Bose Indian मैं हँू यहाँ Botanic Garden - Wikipedia (१) विधानों को सही करके लिखिए ः- (क) ताश के सब पत्ते पीले हो गए थे । (ख) खले हो जाने पर चीजंे बटोरकर उसने भीड़ मंे मुझे दखे ा ।। (२) संजाल पूर्ण कीजिए ः कारॅ ्निवल मंे खड़े लड़के की विशेषताएँ (३) छोटा जादगू र कहानी मंे आए पात्र ः (4) ‘पात्र’ शब्द के दो अर्थ ः (क) ................. (ख) ................. पाठ से आगे सियारामशरण गुप्त जी दव् ारा लिखित ‘काकी’ पाठ के भावपूर्ण प्रसंग को शब्दांकित कीजिए । भाषा बिंदु रिक्त स्थानों की पूर्ति अव्यय शब्दों से कीजिए और नया वाक्य बनाइए ः १. जहाँ एक लड़का दखे रहा था । .......................................... न जाने क्यों आकर्षित हुआ । .......................................... २. मैं उसकी .......................................... ३. ! मैं सच कहता हँू बाबू जी । 4. किसी ने के हिंडोले से पुकारा। .......................................... 5. मैं बलु ाए भी कहीं जा पहुँचता हँू । .......................................... वक्ताओं की न जाने क्या दरु ्दशा होती । .......................................... ६. लखे कों .......................................... ७. ! क्या बात । उसे किताब खरीदनी थी । .......................................... 8. वह बाजार गया रचना बोध .................................................................................... .................................................................................... .................................................................................... 23 लेखनीय 8. जिंदगी की बड़ी जरूरत है हार ...! - प्रा. सतं ोष मडकी किसी सफल साहित्यकार का साक्षात्कार लेने हेतु चर्चा करते हुए प्रश्नावली तयै ार कीजिए :- कृति के लिए आवश्यक सोपान ः · साहित्यकार से मिलने का समय और अनुमति लेने के लिए कहें । · उनके बारे मंे जानकारी एकत्रित करने के लिए प्रेरित करें । · साक्षात्कार संबधं ी सामग्री उपलब्ध कराएँ । · विद्य ार्थियों से प्रश्न निर्मिति करवाएँ । रुला तो देती है हमेशा हार, परिचय पर अदं र से बुलदं बनाती है हार । किनारों से पहले मिले मझधार जन्म ः २5 दिसबं र १९७६ सोलापुर जिंदगी की बड़ी जरूरत है हार .... ! (महाराष्ट्र) परिचय ः श्री मडकी इंजीनियरिगं कॉलेज फलू ों के रास्तों को मत अपनाओ , में सहप्राध्यापक हैं । आपको हिंदी, मराठी और वकृ ्षों की छाया से रहो परे । भाषा से बहुत लगाव है । रास्ते काटँ ों के बनाएँगे निडर रचनाएँ ः गीत और कविताए,ँ शोध और तपती धपू ही लाएगी निखार ।। निबंध आदि । जिदं गी की बड़ी जरूरत है हार .... ! पद्य संबंधी सरल राह तो कोई भी चले, दिखाओ पर्वत को करके पार । नवगीत ः प्रस्तुत कविता में कवि ने यह आएगी हौसलों मंे ऐसी ताकत, बताने का प्रयास किया है कि जीवन सहोगे तकदीर का हर प्रहार ।। मंे हार एवं असफलता से घबराना नहीं जिंदगी की बड़ी जरूरत है हार .... ! चाहिए । जीवन में हार से प्रेरणा लते े हुए आगे बढ़ना चाहिए । 2२4 * उजालोंं की आस तो जायज है, * पद् यांश पर आधारित कतृ ियाँ पर अँधेरों को अपनाओ तो एक बार । (१) सही विकल्प चनु कर वाक्य फिर से बिन पानी के बजं र जमीन पे, लिखिए ः- बरसाओ महे नत की बूँदों की फहु ार ।। (क) कवि ने इसे पार करने के लिए कहा जिंदगी की बड़ी जरूरत है हार .... ! ह-ै नदी/पर्वत/सागर (ख) कवि ने इसे अपनाने के लिए कहा जीत का आनंद भी तभी होगा, जब हार की पीड़ा सही हो अपार । ह-ै अँधरे ा/उजाला/सबरे ा आँसू के बाद बिखरती मुस्कान, (२) लय-संगीत निर्माण करने वाली दो और पतझड़ के बाद मजा देती है बहार ।। जिदं गी की बड़ी जरूरत है हार .... ! * शब्दजोड़ियाँ लिखिए । (३) ‘जिंदगी की बड़ी जरूरत है हार’ आभार प्रकट करो हर हार का, जिसने जीवन को दिया सँवार । इस विषय पर अपने विचार लिखिए । हर बार कुछ सिखाकर ही गई, शब्द ससं ार सबसे बड़ी गरु ु है हार ।। जिंदगी की बड़ी जरूरत है हार .... ! बुलदं (वि.फा.) = ऊँचा, उच्च मझधार (स्त्री.) = धारा के बीच मे,ं मध्यभाग में हौसला (पुं.) = उत्कंठा, उत्साह बंजर (पु.ं वि) = ऊसर, अनपु जाऊ फहु ार (स्त्री.सं.) = हलकी बौछार/वर्षा ‘करत-करत अभ्यास के जड़मति कल्पना पल्लवन श्रवणीय होत सजु ान’ इस विषय पर भाषाई सौंदर्यवाले वाक्यों, सवु चन, दोहे यू टय् बू से मैथिलीशरण गुप्त की आदि का उपयोग करके निबंध/ कविता ‘नर हो न निराश करो मन कहानी लिखिए । काे’ सुनिए और उसका आशय अपने शब्दों मंे लिखिए । पठनीय संभाषणीय रामवकृ ्ष बने ीपरु ी द्वारा लिखित ‘गेंहँू बनाम गुलाब’ पाठ्येतर किसी कविता की उचित आरोह-अवरोह निबधं पढ़िए और उसका आकलन कीजिए । 2२5 के साथ भावपूर्ण प्रस्तुति कीजिए । पाठ के आगँ न में (१) ‘हर बार कछु सिखाकर ही गई, सबसे बड़ी गुरु है (5) उचित जोड़ मिलाइए ः- हार’इस पकं ्ति दव् ारा आपने जाना ............. अ आ (२) कविता के दसू रे चरण का भावार्थ लिखिए । i) इन्हंे अपनाना नहीं - तकदीर का प्रहार (३) ऐसे प्रश्न तैयार कीजिए जिनके उत्तर निम्नलिखित ii) इन्हंे पार करना - वकृ ्षों की छाया iii) इन्हंें सहना - तपती धपू शब्द हों ः- iv) इससे परे रहना - पर्वत (क) फूलों के रास्ते (ख) जीत का आनंद मिलगे ा - फलू ों के रास्ते (ग) बहार (६)आकृति परू ्ण कीजिए ः (घ) गुरु कवि ये करने के लिए कहते हंै (4) संजाल परू ्ण कीजिए ः हार हमंे देती है भाषा बिदं ु निम्नलिखित अशुदध् वाक्यों को शुदध् करके फिर से लिखिए ः- अशदु ध् वाक्य शदु ्ध वाक्य १. वृक्षों का छाया से रहे परे । १. २. पतझड़ के बाद मजा दते ा है बहार । २. ३. फलू के रास्ते को मत अपनाअो । ३. 4. किनारों से पहले मिला मझधार । 4. 5. बरसाओं मेहनत का बदँू ों का फहु ार । 5. ६. जिसने जीवन का दिया सवँ ार । ६. रचना बोध .................................................................................... .................................................................................... .................................................................................... 26 १. गागर में सागर दसू री इकाई -बिहारी किसी सतं कवि के पद/दोहों का आनंदपूर्वक रसास्वादन करते हुए श्रवण कीजिए ः- कृति के लिए आवश्यक सोपान ः श्रवणीय · संत कवियों के नाम पूछें । · उनकी पसदं के सतं कवि का चनु ाव करने के लिए कहें । · पसंद के सतं कवि के पद/दोहों का सी.डी. से रसास्वादन करते हुए श्रवण करने के लिए कहंे । · कोई पद/दोहा सनु ाने के लिए प्रोत्साहित करें । परिचय या अनुरागी चित्त की, गति समुझै नहिं कोइ । जन्म ः सन १5९5 के लगभग ग्वालियर ज्यों-ज्यों बड़ु ै स्याम रगं , त्यों-त्यों उज्जलु होइ ।। में हुआ । मतृ ्यु ः १६६4 में हुई । बिहारी ने नीति और ज्ञान के दोहांे के साथ - घरु-घरु डोलत दीन ह्व,ै जन-ु जनु जाचतु जाइ । साथ प्रकृति चित्रण भी बहुत ही सदुं रता दियैं लोभ-चसमा चखन,ु लघु पुनि बड़ों लखाइ ।। के साथ प्रस्ुतत किया है । प्रमखु कतृ ियाँ ः बिहारी की एकमात्र कनक-कनक तैं सौ गनु ी, मादकता अधिकाइ । रचना सतसई है । इसमंे ७१९ दोहे उहिं खाए बौराइ जगु, इहिं पाए बौराइ ।। सकं लित हं।ै सभी दोहे सुंदर और सराहनीय हैं । गनु ी-गनु ी सबके कहंै, निगुनी गनु ी न होतु । सुन्यौ कहँू तरु अरक् तै, अर्क समान उदोतु पदय् संबधं ी नर की अरु नल नीर की, गति एकै करि जोइ । दोहा ः इसका प्रथम और तृतीय चरण १३- जै तो नीचौ हव् ै चल,ै ते तौ ऊँचौ होइ ।। १३ तथा द् वितीय और चतुर्थ चरण ११-११ मात्राओं का होता है । अति अगाधु अति औथरौ, नदी कूप सरु बाइ । सो ताकौ सागरु जहा,ँ जाकी प्यास बुझाइ ।। प्रस्तुत दोहों मंे कविवर बिहारी ने व्यावहारिक जगत की कतिपय नीतियांे से बुरौ बुराई जो तज,ै तौ चितु खरौ सकातु । अवगत कराया है । ज्यौं निकलकं मयकं ु लखि, गनंै लोग उतपातु ।। समै-समै संुदर सबै, रूप-करु ूप न कोइ । मन की रुचि जते ी जित,ै तित तेती रुचि होइ ।। बौराइ (स्त्री.सं.) = पागल होना, बौराना शब्द ससं ार निगनु ी (वि.) = जिसमे गुण नहीं अर्क (प.ुं सं.) = रस, सरू ्य अगाधु (वि.) = अगाध उदोतु (प.ु सं.) = प्रकाश सरु (पं.ु स)ं = सरोवर अरु (अव्य.) = और निकलकं (वि.) = निष्कलंक, दोषरहित मयकं ु (पु.ं स.ं ) = चदं ्रमा उतपातु (प.ुं स.ं ) = आफत, मसु ीबत 27 पठनीय अन्य नीतिपरक दोहों का अपने लेखनीय परू ्वज्ञान तथा अनुभव के साथ मलू ्यांकन करंे एवं उनसे सहसबं धं अपने अनुभववाले किसी विशषे प्रसगं को स्थापित करते हुए वाचन कीजिए । प्रभावी एवं क्रमबद्ध रूप में लिखिए । कल्पना पल्लवन आसपास ज्ञानपीठ परु स्कार प्राप्त हिंदी साहित्यकारों की जानकारी पुस्तकालय, अंतरजाल आदि ‘निदं क नियरे राखिए’ इस पंक्ति के बारे के द्वारा प्राप्त कर चर्चा करंे तथा उनकी में अपने विचार लिखिए । हस्तलिखित पुस्तिका तयै ार कीजिए । मैं हँू यहाँ पाठ के आगँ न में https://youtu.be/Y_yRsbfbf9I (१) ‘नर की अरु नल नीर की ...............’ इस दोहे दव् ारा प्राप्त सदं शे स्पष्ट कीजिए । २) शब्दों के शदु ध् रूप लिखिए ः पाठ से आगे (क) घरु = (ख) उज्जलु = दोहे प्रस्तुतीकरण प्रतियोगिता मंे अर्थ सहित दोहे प्रस्तुत कीजिए । भाषा बिदं ु निम्नलिखित महु ावरों, कहावतों मंे गलत शब्दों के - स्थान पर सही शब्द लिखकर उन्हें पनु ः लिखिए ः- १. टोपी पहनना १. .............................................. २. गीत न जाने आँगन टढ़े ा २. .............................................. ३. अदरक क्या जाने बदं र का स्वाद । ३. .............................................. 4. कमर का हार 4. .............................................. 5. नाक की किरकिरी होना 5. .............................................. ६. गेहँू गीला होना ६. .............................................. ७. अब पछताए होत क्या जब बदं र चुग गए खते । ७. .............................................. 8. दिमाग खोलना । 8. .............................................. रचना बोध .................................................................................... .................................................................................... .................................................................................... 2२8 २. मंै बरतन माँजँूगा - हमराज भट्ट ‘बालसखा’ मौलिक सृजन ‘नम्रता होती है जिनके पास, उनका ही होता दिल मंे वास ।’ इस विषय पर अन्य सवु चन तयै ार कीजिए ः- कृति के लिए आवश्यक सोपान ः · ‘नम्रता’ आदर भाव पर चर्चा करवाएँ । · विद्यार्थियों को एक दसू रे का व्यवहार/स्वभाव का निरीक्षण करने के लिए कहें । · ‘नम्रता’ विषय पर सुवचन बनवाएँ । बचपन में कोर्स से बाहर की कोई पुस्तक पढ़ने की आदत नहीं परिचय थी । कोई पत्र-पत्रिका या किताब पढ़ने को मिल नहीं पाती थी । गरु ु जी के डर से पाठ्यक्रम की कविताएँ मैं रट लिया करता था । कभी अन्य हमराज भट्ट की बालसुलभ कुछ पढ़ने की इच्छा हुई तो अपने से बड़ी कक्षा के बच्चों की पसु ्तकें रचनाएँ बहुत प्रसिदध् हैं । आपकी पलट लिया करता था । पिता जी महीने मंे एक-दो पत्रिका या किताब कहानियाँ, निबधं , ससं ्मरण विविध अवश्य खरीद लाते थे कितं ु वह उनके ही स्तर की हुआ करती थी । इसे पत्र-पत्रिकाओं मंे महत्त्वपूर्ण स्थान पलटने की हमें मनाही हुआ करती थी । अपने बचपन मंे तीव्र इच्छा पाते रहते हैं । होते हुए भी कोई बालपत्रिका या बच्चों की किताब पढ़ने का सौभाग्य मझु े नहीं मिला । गद्य संबंधी आठवीं पास करके जब नौवीं कक्षा में भरती होने के लिए मझु े गावँ आत्मकथात्मक कहानी ः इसमंे से दरू एक छोटे शहर भेजने का निश्चय किया गया तो मरे ी खशु ी का स्वयं या कहानी का कोई पात्र पारावार न रहा । नई जगह, नए लोग, नए साथी, नया वातावरण, घर ‘म’ंै के माध्यम से परू ी कहानी का के अनुशासन से मुक्त, अपने ऊपर एक जिम्मेदारी का एहसास, स्वयं आत्म चित्रण करता है । खाना बनाना, खाना, अपने बहुत से काम खदु करने की शुरुआत-इन बातों का चिंतन भीतर-ही-भीतर आह्ल ादित कर देता था । माँ, दादी प्रस्तुत पाठ मंे लेखक ने और पड़ोस के बड़ों की बहुत सी नसीहतों और हिदायतों के बाद मैं समय की बचत, समय के उचित पहली बार शहर पढ़ने गया । मरे े साथ गाँव के दो साथी और थे । हम उपयोग एवं अध्ययनशीलता जैसे तीनों ने एक साथ कमरा लिया और साथ-साथ रहने लगे । गुणों को दर्शाया है । हमारे ठीक सामने तीन अध्यापक रहते थे-पुरोहित जी जो हमें हिदं ी पढ़ाते थे; खान साहब बहुत विद्वान और संवदे नशील अध्यापक थे । यों वह भगू ोल के अध्यापक थे किंतु ससं ्कृत छोड़कर वे हमें सारे विषय पढ़ाया करते थे । तीसरे अध्यापक विश्वकर्मा जी थे जो हमें जीव-विज्ञान पढ़ाया करते थे । गावँ से गए हम तीनों विदय् ार्थियों में उन तीनों अध्यापकों के बारे में पहली चर्चा यह रही कि वे तीनों साथ-साथ कसै े रहते और बनात-े खाते हंै । जब यह ज्ञान हो गया कि शहर में गावँ ों जसै ा ऊचँ -नीच, जात-पातँ का भेदभाव नहीं होता, तब उन्हीं अध्यापकों के बारे में एक दसू री चर्चा हमारे बीच होने लगी । 29 होता यह था कि विश्वकर्मा सर रोज सबु ह-शाम बरतन माजँ ते * सचू नानुसार कृतियाँ कीजिए ः हुए दिखाई देते । खान साहब या परु ोहित जी को हमने कभी बरतन (१) संजाल पूर्ण कीजिए धोते नहीं देखा । विश्वकर्मा जी उम्र मंे सबसे छोटे थे । हमने सोचा कि शायद इसीलिए उनसे बरतन धलु वाए जाते हंै और स्वयं दोनों विश्वकर्मा जी को गरु ु जी खाना बनाते ह;ंै लेकिन वे बरतन माजँ ने के लिए तैयार होते किताबी कीड़ा क्यों हंै ? हम तीनों मंे तो बरतन माजँ ने के लिए रोज ही लड़ाई हुआ कहने के कारण करती थी । मुश्किल से ही कोई बरतन धोने के लिए राजी होता । (२) डाँटना इस अर्थ मंे आया हुआ मुहावरा लिखिए । * विश्वकर्मा सर को और शौक था-पढ़ने का । मैं उन्हें जब (३) परिच्छेद पढ़कर प्राप्त होने वाली भी दखे ता, पढ़ते हुए देखता । गजब के पढ़ाकू थे वे । एकदम प्रेरणा लिखिए । किताबी कीड़ा । धूप संके रहे हैं तो हाथों मंे किताब खलु ी है । टहल रहे हैं तो पढ़ रहे हैं । स्कूल मंे भी खाली पीरियड में उनकी मजे पर आसपास कोई-न-कोई पसु ्तक खलु ी रहती । विश्वकर्मा सर को ढढॅूं ़ना हो तो वे पुस्तकालय में मिलंेगे । वे तो खाते समय भी पढ़ते थे । दूसरे शहर-गावँ मंे रहने वाले अपने मित्र को विदय् ालय के उन्हंे पढ़ते दखे कर मैं बहुत ललचाया करता था । उनके कमरे अनभु व सनु ाइए । मंे जाने और उनसे पुस्तकंे माँगने का साहस नहीं होता था कि कहीं घड़ु क न दें कि कोर्स की किताबें पढ़ा करो । बस, उन्हें पढ़ते देखकर, उनके हाथों में रोज नई-नई पुस्तकंे देखकर मैं ललचाकर रह जाता था । कभी-कभी मन करता कि जब बड़ा होऊँगा तो गुरु जी की तरह ढेर सारी किताबें खरीद लाऊगँ ा और ठाट से पढ़ूगंॅ ा । तब कोर्स की किताबें पढ़ने का झंझट नहीं होगा । * एक दिन धुले बरतन भीतर ले जाने के बहाने मैं उनके कमरे में चला गया । देखा तो पूरा कमरा पुस्तकांे से भरा था । उनके कमरे मंे अालमारी नहीं थी इसलिए उन्होंने जमीन पर ही पसु ्तकों की ढरे ियाँ बना रखी थीं । कुछ चारपाई पर, कछु तकिए के पास और कुछ मजे पर करीने से रखी हुई थीं । मैंने बरतन एक ओर रखे और स्वयं उस पुस्तक प्रदर्शनी में खो गया । मझु े गरु ु जी का ध्यान ही नहीं रहा जो मरे े साथ ही खड़े मझु े देखकर मंद-मंद मसु करा रहे थ े । मैंने एक पुस्तक उठाई और इत्मीनान से उसका एक-एक पृष्ठ पलटने लगा । गरु ु जी ने पूछा, ‘‘पढ़ोगे ?’’ मेरा ध्यान टटू ा । ‘‘जी पढ़ूॅगं ा ।’’ मैंने कहा । उन्होंने तत्काल छाटँ कर एक पतली पुस्तक मझु े दी और कहा, ‘‘इसे पढ़कर लौटा देना और दसू री ले जाते रहना ।’’ मेरे हाथ जसै े कोई बहुत बड़ा खजाना लग गया हो । वह पसु ्तक मैनं े एक ही रात मंे पढ़ डाली । उसके बाद गुरु जी से लेकर पसु ्तकें पढ़ने का मरे ा क्रम चल पड़ा । मरे े साथी मझु े चिढ़ाया करते थे कि मैं इधर-उधर की पुस्तकों 30 से समय बरबाद करता हँू किंतु वे मझु े पढ़ते रहने के लिए प्रोत्साहित पठनीय किया करते थे । वे कहते, ‘‘जब कोर्स की पसु ्तक पढ़ते-पढ़ते ऊब जाओ तब झट कोई बाहरी रुचिकर पसु ्तक पढ़ा करो । विषय बदलने नीतिपरक पसु ्तकंे पढ़िए । पाठ्यपुस्तक के से दिमाग में ताजगी आ जाती है ।’’ अलावा अपने सहपाठियों एवं स्वयं द्वारा पढ़ी हुई पसु ्तकों की सचू ी बनाइए । इस प्रयोग से पढ़ने में मेरी भी रुचि बढ़ गई और विषय भी याद रहने लगे । वे स्वयं मुझे ढँढ़ू -ढँूढ़कर किताबंे दते े । पुस्तक के बारे लेखनीय में बता देते कि अमकु पुस्तक में क्या-क्या पठनीय है । इससे पुस्तक को पढ़ने की रुचि और बढ़ जाती थी । कई पत्रिकाएँ उन्होंने लगवा ‘कोई काम छोटा या बड़ा नहीं रखी थीं, उनमें बाल पत्रिकाएँ भी थीं । उनके साथ रहकर बारहवीं होता’ इस पर एक प्रसंग लिखकर कक्षा तक मैनं े खूब स्वाध्याय किया । उसे कक्षा मंे सुनाइए । धीरे-धीरे हम मित्र हो गए थे । अब मंै निःसकं ोच उनके कमरे श्रवणीय में जाता और जिस पुस्तक की इच्छा होती, पढ़ता और फिर लौटा देता । आकाशवाणी से प्रसारित होने वाला एकांकी सुनिए । उनका वह बरतन धोने का क्रम ज्यों-का-त्यों बना रहा । अब उनके साथ मरे ा सकं ोच बिलकलु दरू हो गया था । एक दिन मनंै े उनसे पछू ा, ‘‘सर ! आप कवे ल बरतन ही क्यों धोते हंै ? दोनों गरु ु जी खाना बनाते हैं और आपसे बरतन धलु वाते हैं । यह भदे भाव क्यों ?’’ वे थोड़ा मुस्काए और बोल,े ‘‘कारण जानना चाहोगे ?’’ मंनै े कहा, ‘‘जी ।’’ उन्होंने पछू ा, ‘‘भोजन बनाने में कितना समय लगता है ?’’ मनंै े कहा, ‘‘करीब दो घंटे ।’’ ‘‘और बरतन धोने में ? मैंने कहा, ‘‘यही कोई दस मिनट ।’’ ‘‘बस यही कारण है ।’’ उन्होंने कहा और मुस्कुराने लगे । मेरी समझ में नहीं आया तो उन्होंने विस्तार से समझाया, ‘‘देखो ! कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता । मैं बरतन इसलिए धोता हूँ क्योंकि खाना बनाने में पूरे दो घटं े लगते हैं और बरतन धोने मंे सिर्फ दस मिनट । ये लोग रसोई में दो घंटे काम करते है,ं स्टोव का शोर सुनते हैं और धआु ँ अलग से सूघँ ते हैं । मंै दस मिनट में सारा काम निबटा देता हँू और एक घंटा पचास मिनट की बचत करता हँू और इतनी देर पढ़ता हँू । जब-जब हम तीनों में काम का बँटवारा हुआ तो मैंने ही कहा कि मंै बरतन माजँ ूँगा । वे भी खशु और मंै भी खुश ।’’ उनका समय बचाने का यह तर्क मेरे दिल को छू गया । उस दिन के बाद मंैने भी अपने साथियों से कहा कि मैं दोनों समय बरतन धोया करगँू ा । वे खाना पकाया करें । वे तो खुश हो गए और मुझे मरू ्ख समझने लग,े जसै े हम विश्वकर्मा सर को समझते थे लेकिन मंै जानता था कि मरू ्ख कौन है । 31 पाठ के आगँ न में शब्द ससं ार (१) कारण लिखिए ः- एहसास (प.ुं सं.) = आभास, अनुभव (क) मित्रों दव् ारा मरू ्ख समझे जाने पर भी लखे क महोदय खुश नसीहत (स्त्री.स.ं ) = उपदशे /सीख हिदायत (स्त्री.सं.) = निर्देश, सचू ना थे क्योंकि .......... कौर (प.ु स)ं = ग्रास, निवाला (ख) पुस्तकों की ढेरियाँ बना रखी थीं क्योंकि ............. इत्मीनान (पंु.अ.) = विश्वास, आराम (२) ‘अध्यापक के साथ विद्य ार्थी का रिश्ता’ विषय पर मुहावरा स्वमत लिखिए । (३) सजं ाल पूर्ण कीजिए ः घड़ु क दने ा = जोर से बोलकर डराना, डाँटना खान साहब पाठ से आगे ‘स्वयं अनशु ासन’ पर कक्षा में चर्चा कीजिए तथा इससे सबं धं ित तक्तियाँ बनाइए । भाषा बिदं ु रचना की दृष्टि से वाक्य पहचानकर अन्य एक वाक्य लिखिए ः (१) जब पाठ्यक्रम की पुस्तक पढ़ते-पढ़ते ऊब जाओ तब झट कोई बाहरी रुचिकर पुस्तक पढ़ा करो । (२) ------------------------------------------ (१) इसे पढ़कर लौटा देना और दूसरी वाक्य (१) धीरे-धीरे हम मित्र हो गए थ।े ले जाते रहना । पहचानिए (२)----------------------- (२) ----------------------- रचना बोध .................................................................................... .................................................................................... .................................................................................... 32 ३. ग्रामदवे ता - डॉ. रामकुमार वर्ाम (पठनार)थ् हे ग्रामदवे ता नमस्कार ! परिचय सोन-े चॉंदी से नहीं किंतु तमु ने मिट्टी से किया प्यार जन्म ः १5 सितंबर १९०5 सागर (म.प्र.)। हे ग्रामदेवता नमस्कार ! मतृ ्यु ः १९९० परिचयः डॉ. रामकुमार वर्मा आधनु िक जन कोलाहल से दरू हिदं ी साहित्य के सुप्रसिद्ध कवि, एकांकी- कहीं एकाकी सिमटा-सा निवास नाटककार, लखे क और आलोचक हैं । रवि -शशि का उतना नहीं प्रमखु कृतियाँ ः वीर हमीर, चित्तौड़ की कि जितना प्राणों का होता प्रकाश । चितं ा, निशीथ, चित्ररखे ा आदि (काव्य सगं ्रह), रेशमी टाई, रूपरंग, चार ऐतिहासिक श्रमवैभव के बल पर करते एकांकी आदि (एकांकी सगं ्रह) एकलव्य, हो जड़ मंे चते न का विकास उत्तरायण आदि (नाटक) । दानों-दानाें से फूट रहे सौ-सौ दानों के हरे हास । पद् य सबं धं ी यह है न पसीने की धारा, कविता ः रस की अनुभूति कराने वाली, यह गगं ा की है धवल धार । सुंदर अर्थ प्रकट करने वाली, हृदय की हे ग्रामदेवता नमस्कार ! कोमल अनभु तू ियों का साकार रूप कविता है । जो है गतिशील सभी ॠतु में गर्मी, वर्षा हो या कि ठडं , इस कविता में वर्मा जी ने कषृ कों जग को देते हो परु स्कार को ग्रामदेवता बताते हुए उनके परिश्रमी, देकर अपने को कठिन दंड । त्यागी एवं परोपकारी किंतु कठिन जीवन को रखे ांकित किया है । 33 झोंपड़ी झुकाकर तुम अपनी श्रवणीय ऊँचे करते हो राजद्व ार । हे ग्रामदवे ता नमस्कार !´ ´ ´ ´ ग्रामीण जीवन पर आधारित विविध भाषाओं के लोकगीत सुनिए और सनु ाइए । तमु जन-गन-मन अधिनायक हो, पठनीय सभं ाषणीय तमु हसँ ो कि फलू े-फले देश, आओ, सिंहासन पर बठै ो कविवर निराला जी की यह राज्य तुम्हारा है अशषे । ‘वह तोड़ती पत्थर’ कविता पढ़िए तथा उसका उर्वरा भमू ि के नए खते भाव स्पष्ट कीजिए । के नए धान्य से सजे वशे , तमु भू पर रह कर भमू ि भार ‘प्राकृतिक सौंदर्य का सच्चा धारण करते हो मनजु शषे । आनदं आचँ लिक (ग्रामीण) लेखनीय क्तषे ्र मंे ही मिलता ह’ै , चर्चा अपनी कविता से आज तमु ्हारी विमल आरती लँू उतार किसी ऐतिहासिक स्थल कीजिए । हे ग्रामदवे ता नमस्कार ! की सुरक्षा हते ु आपके शब्द ससं ार दव् ारा किए जाने वाले प्रयत्नों के बारे मंे लिखिए । हास (प.ुं ) = हँसी धवल (वि.) = शभु ्र आसपास अशषे (वि.) = बाकी न हो उर्वरा (वि.) = उपजाऊ ‘किसी कषृ क से प्रत्यक्ष वार्तालाप मनजु (प.ु स.ं ) = मानव करते हुए उसका महत्त्व बताइए ः- विमल (वि.) = धवल मुहावरा आरती उतारना = आदर करना/स्वागत करना पाठ से आगे कल्पना पल्लवन ‘सबकी प्यारी, सबसे न्यारी मेरे दशे की ‘ऑरगैनिक’ (सेंद्रिय) खेती की जानकारी प्राप्त धरती’ इस पर अपने विचार लिखिए । कीजिए और अपनी कक्षा में सनु ाइए । रचना बोध .................................................................................... .................................................................................... .................................................................................... 3३4 4. साहित्य की निष्कपट विधा ह-ै डायरी मौखिक ‘दनै दं िनी लिखने के लाभ’ विषय पर चर्चा में अपने मत व्यक्त कीजिए । - कुबरे कुमावत कतृ ि के लिए आवश्यक सोपान ः · दनै ंदिनी के बारे में प्रश्न पूछंे । · दनै ंदिनी में क्या-क्या लिखते हैं; बताने के लिए कहंे । · अपनी गलती अथवा असफलता को कसै े लिखा जाता ह,ै इसपर चर्चा कराएँ । · किसी महान विभूति की डायरी पढ़ने के लिए कहंे । डायरी हिदं ी गद्य साहित्य की सबसे अधिक परु ानी परंतु दिन परिचय प्रतिदिन नई होती चलने वाली विधा है । हिंदी की आधुनिक गद्य विधाओं मंे अर्थात उपन्यास, कहानी, निबंध, नाटक,आत्मकथा आदि आधुनिक साहित्यकारों मंे की तुलना में इसे सबसे अधिक पुरानी माना जा सकता है और इसके कबु रे कमु ावत एक जाना-माना प्रमाण भी हैं । यह विधा नई इस अर्थ मंे है कि इसका सबं ंध मनषु ्य के नाम है । आपके विचारात्मक एवं दनै ंदिन जीवनक्रम के साथ घनिष्ठता से जुड़ा हुआ है । इसे अपनी वर्णनात्मक निबधं बहुत प्रसिदध् भाषा मंे हम दनै दं िनी, दैनिकी अथवा रोजनिशी पूरे अधिकार के साथ हंै । आपके निबंध, कहानियाँ विविध कहते हंै परतं ु इसे आजकल डायरी कहने पर विवश हंै । डायरी का पत्र-पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशित मतलब है जिसमंे तारीखवार हिसाब-किताब, लने -दने के ब्योरे आदि होती रहती हंै । दर्ज किए जाते ह ैं । डायरी का यह अत्यंत सामान्य और साधारण परिचय है । आम जनता को डायरी के विशिष्ट स्वरूप की दरू -दरू तक गद् य सबं धं ी जानकारी नहीं ह ै । वचै ारिक निबधं ः वचै ारिक निबंध में हिंदी गदय् साहित्य के विकास; उन्नति एवं उत्कर्ष मंे दैनदं िनी विचार या भावों की प्रधानता होती है। का योगदान अतुल्य है । यह विडंबना ही है कि उसकी अब तक हिदं ी प्रत्येक अनचु ्छेद एक-दुसरे से जुड़े में उपके ्षा ही होती आई है । कोई इसे पिछड़ी विधा तो कोई इसे अद् र्ध होते हैं। इसमें विचारों की शंृर्खला बनी साहित्यिक विधा मानता है । एक विद्वान तो यहाँ तक कहते हैं कि रहती है। डायरी कुलीन विधा नहीं है । साहित्य और उसकी विधाओं के संदर्भ में कलु ीन-अकुलीन का भदे करना साहित्यिक गरिमा के अनकु लू नहीं प्रस्तुत पाठ में लखे क ने है । सभी विधाएँ अपनी-अपनी जगह पर अत्यधिक प्रमाण मंे मनुष्य ‘डायरी’ विधा के लखे न की प्रक्रिया, के भावजगत, विचारजगत और अनुभूतिजगत का प्रतिनिधित्व करती महत्त्व आदि को स्पष्ट किया है । हंै । वस्तुतः मनषु ्य का जीवन ही एक सुदं र किताब की तरह है और यदि इस जीवन का अंकन मनषु ्य जस का तस किताब रूप मंे करता जाए तो इसे किसी भी मानवीय दृष्टिकोण से श्लाघ्यनीय माना जा सकता है । डायरी में मनुष्य अपने अंतर्जीवन एवं बाह्यजीवन की लगभग सभी स्थितियों को यथास्थिति अंकित करता है । जीवन के अंतर्वद् ंद्व, वर्जनाओं, पीड़ाओं, यातनाओं, दीर्घ अवसाद के क्षणों एवं अनके विरोधाभासों के बीच सघं र्ष में अपने आपको स्वस्थ, मकु ्त एवं प्रसन्न रखने की प्रक्रिया है डायरी । इसलिए अपने स्वरूप मंे डायरी प्रकाशन 3३5 योजना का भाग नहीं होती और न ही लखे कीय महत्त्वाकाकं ्षा का रूप श्रवणीय होती है । साहित्य की अन्य विधाओं के पीछे उनका प्रकाशन और तत्पश्चात प्रतिष्ठा प्राप्त करने की मंशा होती है । वे एक कतृ ्रिम आवशे डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी मंे लिखी जाती हंै और सावधानीपरू ्वक लिखी जाती हैं । साहित्य की की जीवनी में से कोई लगभग सभी विधाओं के सृजनकर्म के पीछे उसे प्रकाशित करने का प्रेरणादायी घटना पढ़िए और उदद् शे ्य मलू होता है । डायरी में यह बात नहीं है । हिदं ी मंे आज लगभग सनु ाइए । एक सौ पचास के आसपास डायरियाँ प्रकाशित हंै और इनमंे से अधिकाशं डायरीकारों के दहे ांत के पश्चात प्रकाश मंे आई हंै । कुछ तो अपने अकं ित लेखनीय कालानुक्रम के सौ वर्ष बाद प्रकाशित हुई हैं । किसी पठित गदय् /पदय् के डायरी के लिए विषयवस्तु का कोई बधं न नहीं है । मनषु ्य की आशय को स्पष्ट करने के अनुभूति एवं अनुभव जगत से सबं धं ित छोटी से छोटी एवं तुच्छ बात, लिए पी.पी.टी (P.P.T.) के प्रसंग, विचार या दृश्य आदि उसकी विषयवस्तु बन सकते हैं और यह मदु द् े बनाइए । डायरी मंे तभी आ सकता है जब डायरीकार का अपने जीवन एवं परिवशे के प्रति दृष्टिकोण उदार एवं तटस्थ हो तथा अपने आपको व्यक्त करने आसपास की भावना बेलाग, निष्कपट, एवं सच्ची हो । डायरी साहित्य की सबसे अधिक स्वाभाविक, सरल एवं आत्मप्रकटीकरण की सादगी से यकु ्त अंतरजाल से कोई अनूदित विधा है । यह अभिव्यक्ति की प्रक्रिया से गजु रती धीर-े धीरे और क्रमशः कहानी ढढ़ँू कर रसास्वादन अग्रसारित होने वाली विधा है । डायरी में जो जीवन है वह सावधानीपूर्वक करते हुए वाचन कीजिए । रचा हुआ जीवन नहीं है । डायरी में वह कसाव नहीं होता जो अन्य विधाओं मंे देखा जा सकता है । डायरी से पारदर्शक व्यक्तित्व की पहचान होती है जिसमंे सब कुछ निःसंकोच उभरकर आता है । डायरी विधा के रूप ससं ्थान का मलू आधार उसकी दनै िक कालानकु ्रम योजना है । अगं ्रेजी में ‘क्रोनोलॉजिकल ऑर्डर’ कहा जाता है । इसके अभाव मंे डायरी का कोई रूप नहीं है परतं ु यह फर्जी भी हो सकता है । हिदं ी मंे कछु उपन्यास, कहानियाँ और नाटक इसी फर्जी कालानरु ूप में लिखे गए ह,ंै यहाँ कवे ल डायरी शलै ी का उपयोग मात्र हुआ है । दनै दं िन जीवन के अनके प्रसगं , भाव, भावनाए,ँ विचार आदि डायरीकार इसी कालानकु ्रम में अकं ित करता ह,ै परतं ु इसके पीछे डायरीकार की निष्कपट स्वीकारोक्तियों का स्थान सर्वाधिक है । बाजारों मंे जो कापियाँ मिलती हंै उनमें छिपा हुआ कालानकु ्रम है । इसमंे हम अपने दनै दं िन जीवन के अनके व्यावहारिक ब्योरों को दर्ज करते हैं परतं ु यह विवचे ्य डायरी नहीं है । बाजारों मंे मिलने वाली डायरियों के मलू में एक कलै डें र वर्ष छपा हुआ ह।ै यह कलै डंे रनमु ा डायरी शषु ्क, नीरस एवं व्यावहारिक प्रबधं नवाली डायरी है जिसका मनषु ्य के जीवन एवं भावजगत से दरू -दरू तक सबं धं नहीं होता। हिंदी में अनके डायरियाँ ऐसी हंै जो प्रायः यथावत अवस्था में प्रकाशित हुई हंै । इनमंे आप एक बड़ी सीमा तक डायरीकार के व्यक्तित्व को निष्कपट,पारदर्शक रूप में दखे सकते हंै । डायरी को बले ाग 36 आत्मप्रकाशन की विधा बनाने मंे महात्मा गाधं ी का योगदान सर्वोपरि मौलिक सृजन है । उन्होंने अपने अनुयायियों एवं कार्यकर्ताओं को अपने जीवन को नतै िक दिशा देने के साधन रूप मंे नियमित दनै ंदिन लिखने का सुझाव ‘डायरी लेखन मंे व्यक्ति का दिया तथा इसे एक व्रत के रूप मंे निभाने को कहा । उन्होंने अपने व्यक्तित्व झलकता ह’ै इस कार्यकर्ताओं को आतं रिक अनशु ासन एवं आत्मशुद् धि हते ु डायरी विधान की सार्थकता स्पष्ट लिखने की प्रेरणा दी । गजु राती मंे लिखी गई बहुत सी डायरियाँ आज कीजिए । हिदं ी में अनवु ादित हैं । इनमें मनु बहन गाधं ी, महादवे देसाई, सीताराम सके सरिया, सुशीला नैयर, जमनालाल बजाज, घनश्याम बिड़ला, संभाषणीय श्रीराम शर्मा, हीरालाल जी शास्त्री आदि उल्लेखनीय हंै । पसु ्तकालय से राहुल निष्कपट आत्मस्वीकृतियकु ्त प्रविष्टियों की दृष्टि से हिंदी मंे आज सासं ्कृत्यायन की डायरी अनके डायरियाँ प्रकाशित हैं जिनमंे अंतरगं जीवन के अनके दृश्यों एवं के कुछ पन्ने पढ़कर उस स्थितियों की प्रस्तुति है । इनमंे डॉ. धीरदे ्र वर्मा, शिवपजू न सहाय, पर चर्चा कीजिए । नरदवे शास्त्री वेदतीर्थ, गणेश शकं र विदय् ार्थी, रामेश्वर टांटिया, रामधारी सिहं ‘दिनकर’, मोहन राकशे , मलयज, मीना कुमारी, बालकवि पाठ से आगे बैरागी आदि की डायरियाँ उल्लेखनीय हैं । कुछ निष्कपट प्रविष्टियाँ काफी मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी हंै । मीना कुमारी अपनी डायरी में एक हिंदी में अनुवादित उल्लेखनीय जगह लिखती हैं - ‘‘जिदं गी के उतार-चढ़ाव यहाँ तक ले आए कि डायरी लखे कों के नामों की सचू ी कहानी लिखूंॅ । यह कहानी, जो कहानी नहीं है, मेरा अपना आप है । तैयार कीजिए । आज जब... उसने मझु े छोड़ दिया तो जी चाह रहा है, सब उगल दूँ ।’’ मलयज अपनी डायरी मंे २९ दिसबं र, 5९ को लिखते हैं-‘‘शायद सब कुछ मंैने भावना के सत्य में ही पाया है । कुछ नहीं होता, मंै ही सब कल्पित कर लिया करता हूँ । सकं ेत मिलते है,ं परू ा चित्र खड़ा कर लते ा हँू ।’’ डॉ. धीरंदे ्र वर्मा अपनी डायरी में १९/११/१९२१ के दिन लिखते हैं-‘‘राष्ट्रीय आंदोलन मंे भाग न लेने के कारण मरे े हृदय में कभी-कभी भारी संग्राम होने लगता है । जब हम पढ़े-लिखे व समझदार लोगों ने ही कायरता दिखाई है तब औरों से क्या आशा की जा सकती है । सच तो यह है कि भले घरों के पढ़-े लिखे लोगों ने बहुत ही कायरता दिखाई हंै ।’’ अपने जीवन की सच्ची, निष्काय, पारदर्शी छवि को रखने में डायरी साहित्य का उत्कृष्ट माध्यम है । डायरी जीवन का अतं र्दर्शन है । अतं रंगता के अभाव मंे डायरी, डायरीकार की निजी भावनाओं, विचारों एवं प्रतिक्रियाओं के दव् ारा अकं ित उसके अपने जीवन एवं परिवेश का दस्तावजे है । एक अच्छी, सच्ची एवं सादगीयुक्त डायरी के लिए डायरीकार का सच्चा, साहसी एवं ईमानदार होना आवश्यक है । डायरी अपनी रचना प्रक्रिया में मनषु ्य के जीवन में जहाँ आतं रिक अनुशासन बनाए रखती ह,ै वहीं मनौवैज्ञानिक संतुलन बनाने का भी कार्य करती है । 37 शब्द ससं ार निष्कपट (वि.) = छलरहित, सीधा मंशा (स्त्री.अ.) = इच्छा मनोवैज्ञानिक (भा.सं.) = मन में उठने वाले विचारों बेलाग (वि.) = बिना आधार का का विवचन करने वाला फर्जी (वि.फा.) = नकली संतलु न (प.ंु स)ं = दो पक्षों का बल बराबर रखना कसाव (पु.ं सं.) = कसने की स्थिति कायरता (भाव.स.ं ) = भीरुता, डरपोकपन विवेच्य (वि.) = जिसकी विवचे ना की जाती है । दनै ंदिनी (स्त्री.स.ं ) = दनै िकी सर्वोपरि (वि.) = सबसे ऊपर गरिमा (सं.स्त्री.) = महिमा, महत्त्व वर्जना (क्रि.) = रोक लगाना महु ावरा दूर-दरू तक संबंध न होना = कुछ भी संबधं न होना पाठ के आँगन मंे (२) उत्तर लिखिए ः- ‘क्रोनॉलॉजिकल’ ऑर्डर इसे कहा जाता है - (१) सजं ाल परू ्ण कीजिए ः- डायरी विधा का निरालापन (३) (क) अर्थ लिखिए ः- अवसाद - दस्तावेज- (ख) लिगं परिवर्तन कीजिए ः- लखे क - विदव् ान - भाषा बिंदु निम्न वाक्यों में से कारक पहचानकर तालिका मंे लिखिए ः- कारक चिह्न कारक नाम (१) किसी ने आज तक तेरे जीवन की कहानी नहीं लिखी । (२) मेरी माता का नाम इति और पिता का नाम आदि है । (३) वे सदा स्वाधीनता से विचरते आए हंै । (4) अवसर हाथ से निकल जाता है । (5) अरे भाई ! मंै जाने के लिए तैयार हूँ । (६) अपने समाज मंे यह सबका प्यारा बनेगा । (७) उन्होंने पसु ्तक को ध्यान से दखे ा । (8) वक्ता महाशय वक्तृत्व दने े को उठ खड़े हुए । रचना बोध .................................................................................... .................................................................................... .................................................................................... 3३8 सभं ाषणीय 5. उम्मीद - कमलशे भटट् ‘कमल’ विदय् ालय के काव्य पाठ में सहभागी होकर अपनी पसंद की कोई कविता प्रस्तुत कीजिए ः- कृित के लिए आवश्यक सोपान ः · काव्य पाठ का आयोजन करवाएँ । · विदय् ार्थयि ों को उनकी पसंद की कोई कविता चुनने के लिए कहें । वही कविता चुनने के कारण पछू ें । · कविता प्रस्तुति की तयै ारी करवाएँ । · सभी विदय् ार्यिथ ों काे सहभागी कराएँ । वो खुद ही जान जाते हंै बुलंदी आसमानों की परिचय परिंदों को नहीं तालीम दी जाती उड़ानों की जन्म ः १३ फरवरी १९5९ जफरपुर, (उ.प्र) जो दिल में हौसला हो तो कोई मजं िल नहीं मुश्किल परिचय ः कमलेश भट् ट ‘कमल’ गजल, बहुत कमजोर दिल ही बात करते हैं थकानों की कहानी, हाइक,ू साक्षात्कार, निबंध, समीक्षा आदि विधाओं में रचना करते हैं । वे जिन्हें है सिर्फ मरना ही, वो बशे क खदु कशु ी कर लंे पर्यावरण के प्रति गहरा लगाव रखते हैं । कमी कोई नहीं वर्ना है जीने के बहानों की नदी, पानी सब कुछ उनकी रचनाओं के विषय हंै । महकना और महकाना है केवल काम खुशबू का प्रमखु कृतियाँ ः नखलिस्तान, मंगल टीका कभी खुशबू नहीं मोहताज हाेती कद्रदानों की (कहानी सगं ्रह) मंै नदी की सोचता ह,ँू शखं , सीप, रते , पानी (गजलसगं ्रह), अमलतास हमंे हर हाल मंे तूफान से महफजू रखती हंै (हाइकू सकं लन) अजब-गजब (बाल छतंे मजबूत होती हंै उम्मीदों के मकानों की कविताएँ) तुईम (बाल उपन्यास) । ´´´´ पदय् सबं ंधी गजल ः यह एक ही बहर और वजन के अनसु ार लिखे गए ‘शरे ों’ का समहू है । गजल के पहले शरे को ‘मतला’ और अतं िम शेर को ‘मकता’ कहते हंै । प्रत्येक शेर एक-दसू रे से स्वततं ्र होते हैं । प्रस्तुत गजलों मंे गजलकार ने अपनी मंजिल की तरफ बलु ंदी से बढ़ने, जिजीविषा बनाए रखन,े अपने पर भरोसा करने, सच्चाई पर डटे रहने आदि के लिए प्रेरित किया है । 39 कोई पक्का इरादा क्यों नहीं है पठनीय तझु े खदु पर भरोसा क्यों नहीं है ? बने हंै पाँव चलने के लिए ही रवींद्रनाथ टैगोर जी की किसी तू उन पावँ ों से चलता क्यों नहीं है ? अनवु ादित कविता/कहानी का बहुत संतषु ्ट है हालात से क्यों आशय समझते हुए वाचन कीजिए । तरे े भीतर भी गसु ्सा क्यों नहीं है ? तू झठू ों की तरफदारी मंे शामिल श्रवणीय तझु े होना था सच्चा, क्यों नहीं है ? मिली है खदु कुशी से किसको जन्नत हिंदी-मराठी भाषा के प्रमखु तू इतना भी समझता क्यों नहीं है ? गजलकारों की गजलें यू टय् बू / सभी का अपना है यह मुल्क आखिर टीवी/ कवि सम्मेलनों मंे सुनिए सभी को इसकी चितं ा क्यों नहीं है ? और सुनाइए । किताबों में बहुत अच्छा लिखा है लिखे को कोई पढ़ता क्यों नहीं है ? शब्द संसार लेखनीय आठ से दस पंक्तियों के पठित गदय् ाशं का अनवु ाद एवं लिप्यंतरण कीजिए । बलु दं ी (भा.सं.) = शिखर, ऊचँ ाई महफजू (वि.) = सुरक्षित परिंदा (प.ु सं.) = पक्षी, पछं ी इरादा (पं.ु सं.) = फसै ला, विचार तालीम (स्त्री.स.ं ) = शिक्षा हालात (स्त्री.सं.) = परिस्थिति हौसला (पं.ु स.ं ) = साहस तरफदारी (भा.सं.स्त्री.) = पक्षपात मोहताज (वि.) = वंचित जन्नत (स्त्री.स.ं ) = स्वर्ग कद्रदान (वि.फा.) = प्रशसं क, गुणग्राहक मुल्क (पुं.सं.) = दशे , वतन किसी काव्य सगं ्रह से कोई कविता पढ़कर उसका आशय निम्न मुदद् ों के आधार पर स्पष्ट कीजिए । आसपास कवि का नाम कविता का विषय कंदे ्रीय भाव 440० पाठ के आगँ न में कल्पना पल्लवन (१) उत्तर लिखिए ः ‘मैं चिड़िया बोल रही हूँ’ विषय पर कविता से मिलने वाली प्रेरणा ः- स्वयसं ्फूर्त लेखन कीजिए । (क) ........................................... (ख) ........................................... (२) ‘किताबों में बहुत अच्छा लिखा ह,ै लिखे को कोई पढ़ता क्यों नहीं’ इन पकं ्तियों दव् ारा कवि सदं ेश देना चाहते हैं ..... (३) कविता में आए अर्थ पूर्ण शब्द अक्षर सारणी से खोजकर तयै ार कीजिएः- दि को म ह फू ज का ह हीं द्र ह र्फ म र ता न पाठ से आगे भी ब फ म जो र ली अ दा हा ना ले थ जी म वू हिंदी गजलकारों के नाम तथा उनकी प्रसिद्ध गजलों की सूची बनाइए । बु की मु त बा मो मी हों मं लं श श्कि ह ई स हूँ जि दा दी ता ल ला द न ल री ज ला त खु श नू भाषा बिदं ु अर्थ की दृष्टि से वाक्य परिवर्तित करके लिखिए ः- नम्रता कॉलेज में पढ़ती है । विस्मयार्थक ंसभावनार्थक विधानार्थक प्रश्नार्थक आज्ञार्थक अर्थ की दृष्टि से निषेधार्थक रचना बोध .................................................................................... .................................................................................... .................................................................................... 441१ |