हॉकी में भारत ने कितनी बार ओलंपिक स्वर्ण पदक जीता? - hokee mein bhaarat ne kitanee baar olampik svarn padak jeeta?

भारतीय राष्ट्रीय पुरुष हॉकी टीम ने कुल 8 गोल्ड मेडल जीते हैं, जिनमें से 6 लगातार (1928 से 1956 तक) जीते, इसके बाद टीम ने 2 गोल्ड मेडल (साल 1964 टोक्यो और मास्को 1980) में जीते। आइए भारतीय राष्ट्रीय हॉकी टीम के उस स्वर्णिम दौर के बारे में जानते हैं...

एम्सटर्डम 1928

भारतीय हॉकी टीम ने ओलंपिक इतिहास में अपना पहला गोल्ड मेडल साल 1928 में एम्सटर्डम ओलंपिक में जीता था। भारतीय हॉकी टीम साल 1920 एंटवर्प ओलंपिक के बाद पटरी पर आती दिखी।

इस ओलंपिक ने दुनिया के सबसे महान हॉकी खिलाड़ी को देखा, जिनका नाम था ध्यानचंद। भारत के इस महान खिलाड़ी ने टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा 14 गोल किए।

इस दौरान भारतीय हॉकी टीम ने 5 मैचों में कुल 29 गोल किए थे। नीदरलैंड के खिलाफ ध्यानचंद की हैट्रिक की बदौलत टीम ने 3-0 से जीत हासिल की और भारतीय हॉकी टीम ने पहली बार गोल्ड मेडल अपने नाम किया।

भारतीय हॉकी टीम ने 1936 बर्लिन ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतकर अपनी पहली हैट्रिक पूरी की। फोटो: Olympic Archives

लॉस एंजिल्स 1932

साल 1932 में लॉस एंजिल्स में हुए खेलों में भारतीय हॉकी टीम में कई भड़के हुए लोग दिखे, जैसे कि 'भारतीय' और 'एंग्लो-इंडियन' एक दूसरे के खिलाफ थे, यहां तक कि टीम के एक सदस्य ने भी पगड़ी पहनने से मना कर दिया था, जो आधिकारिक टीम की पोशाक थी।

हालांकि, हॉकी खिलाड़ियों ने पिच पर अपनी व्यक्तिगत लड़ाई को दूर रखा और एक टीम के रूप में बेहतरीन प्रदर्शन किया। भारतीय हॉकी टीम ने अपने पहले गेम में मेजबान टीम को 24-1 से मात दिया। इस मैच में ध्यानचंद के छोटे भाई रूपचंद ने 10 गोल किए थे।

इस आक्रामक टीम के खिलाफ फाइनल मुकाबलें में जापान के पास कोई जवाब नहीं था। खिताबी मैच में टीम इंडिया ने 11-0 से जीत हासिल की और लगातार दूसरी बार गोल्ड मेडल जीता। भारत में हॉकी के ऐसे ही कई किस्से मशहूर हैं।

बर्लिन 1936

साल 1936 में बर्लिन में भारतीय हॉकी टीम ने लगातार तीसरी बार ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीता। ये ध्यानचंद को एक तोहफा था, जिन्होंने इसके बाद संन्यास की घोषणा कर दी थी।

इस बार भी भारतीय टीम सभी टीम के ऊपर हावी रही। इस टूर्नामेंट में टीम ने 30 गोल किए और हंगरी, यूएसए, जापान और फ्रांस के खिलाफ लीग मैच में एक भी गोल नहीं खाया। सेमीफाइनल और फाइनल में ध्यानचंद और रूपचंद के शानदार प्रदर्शन की बदौलत मैच में जीत हासिल की।

फाइनल मैच में ध्यानचंद के शानदार प्रदर्शन की बदौलत भारत ने आसान जीत हासिल की। वहीं, लगातार दूसरे ओलंपिक फाइनल में इस खिलाड़ी ने हैट्रिक लगाई और जर्मनी के खिलाफ 8-1 से मैच जीता। इसके साथ ही ध्यानचंद ने गोल्ड मेडल के साथ हॉकी से विदाई ली।

हॉकी में रूप सिंह ने लॉस एंजेल्स 1932 और बर्लिन 1936 में ओलंपिक स्वर्ण जीता

लंदन 1948

दूसरे वर्ल्डवॉर के कारण साल 1940 और 1944 में ओलंपिक खेल नहीं हो पाए थे। भारतीय हॉकी टीम ने जर्मनी में 12 साल के लंबे इंतजार के बाद एक बार फिर गोल्ड से पूरा किया। इसके बाद ही भारत ने लगातार चौथा गोल्ड मेडल जीता और स्वत्रंता के बाद ये भारत का पहला गोल्ड था।

इस ओलंपिक में भारत को बलबीर सिंह सीनियर के रुप में एक नया स्टार खिलाड़ी मिला। इस स्ट्राइकर ने शानदार प्रदर्शन कर अर्जेंटीना को 9-1, ऑस्ट्रिया को 8-0 और स्पेन को 2-0 से हराने में अहम भूमिका निभाई।

भारत के आजाद होने के बाद पहली बार फाइनल में मेजबान ग्रेट ब्रिटेन से टीम इंडिया का मुकाबला था। इस ऐतिहासिक मैच में 25000 से ज्यादा दर्शक शामिल हुए। इस खिताबी मैच में भारतीय टीम पर कोई दबाव नहीं था और बलबीर सिंह सीनियर के 2 गोल की बदौलत उन्होंने 4-0 से जीत हासिल की। बताते चलें कि हाल ही में गोल्ड फिल्म रिलीज हुई थी, जो लंदन ओलंपिक के ऊपर ही बनी थी।

हेलसिंकी 1952

चार साल बाद बलबीर सिंह सीनियर ने एक बार फिर जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए 3 मैच में 9 गोल किए। इनमे से 8 तो केवल सेमीफाइनल और फाइनल में आए थे। बलबीर उस समय टीम के उप-कप्तान थे।

भारतीय टीम ने पहले ऑस्ट्रेलिया को 4-0 से मात दी, इसके बाद सेमीफाइनल में ग्रेट ब्रिटेन के खिलाफ बलबीर सिंह की हैट्रिक की बदौलत 3-1 से जीत हासिल की। भारत ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन फाइनल मैच के लिए बचा के रखा था। जंहा भारतीय टीम ने नीदरलैंड को फाइनल में 6-1 से हराया। इस दौरान बलबीर सिंह सीनियर ने 5 गोल किए। कप्तान केडी बाबू ने अंतिम गोल करते हुए टीम की तरफ से आखिरी गोल किया इसी के साथ भारत ने 5वीं बार गोल्ड मेडल जीता।

In Their Own Words: Excellence is not an art but a habit

मेलबर्न 1956

भारतीय टीम का स्वर्णिम दौर साल 1956 मेलबर्न ओलंपिक में देखने को मिला, जहां उन्होंने देश से आजाद होने के बाद पहली और टोटल दूसरी बार गोल्ड की हैट्रिक बनाई। पहले मैच में टीम इंडिया ने सिंगापुर को 6-0 से हराया। इसके बाद उन्होंने अफगानिस्तान को 14-0 से करारी शिकस्त दी। वहीं, अमेरिका को तो इस टीम ने 16-0 से हराया था।

सेमीफाइनल और फाइनल मुकाबलें में भारतीय टीम के लिए हालात और चुनौतीपूर्ण होते गए, लेकिन सेमीफाइनल में जर्मनी और फाइनल में पाकिस्तान को मात दी। टीम इंडिया के लिए मुश्किल ये भी थी क्योंकि बलबीर सिंह सीनियर के दाएं हाथ में फ्रेक्चर था।

दर्द के बावजूद उन्होंने फाइनल मुकाबले में हिस्सा लिया और एक बेहतरीन कप्तान की तरह शानदार प्रदर्शन किया और अपनी टीम को 1-0 से जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई।

टोक्यो 1964

भारतीय हॉकी टीम के ओलंपिक प्रभुत्व को कट्टरपंथी पाकिस्तान ने रोम 1960 में समाप्त कर दिया था, क्योंकि बाद में उन्हें फाइनल में 0-1 से हराकर अपना पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक जीता। इसके 4 साल बाद एक बार फिर फाइनल मुकाबले में भारत का सामना पाकिस्तान से हुआ।

पिछले खेल की तरह भारतीय टीम को इस बार भी कठिन चुनौती का सामना करना पड़ा। ईस्ट जर्मनी के खिलाफ उन्हें 1-1 से ड्रॉ खेलना पड़ा। इसके अलावा उन्होंने स्पेन, मलेशिया, बेल्जियम और नीदरलैंड को बहुत कम अंतर से हराया। आखिरी मुकाबलों में भारतीय टीम ने शानदार फॉर्म में वापसी की लेकिन फाइनल में पहुंचने वाली पाकिस्तान टीम अब तक अजेय थी। वहीं, सभी फाइनल मैच में पाकिस्तान को ही जीत का दावेदार मान रहे थे।

इस दौरान पाकिस्तान के मुनीर अहमद डार ने अपने पैर के साथ पेनल्टी कॉर्नर से एक शॉट को रोक दिया, जिससे भारतीय हॉकी टीम को पेनल्टी स्ट्रोक मिला, जिसे मोहिंदर लाल ने गोल में बदल दिया।

भारतीय हॉकी टीम के गोलकीपर शंकर लक्ष्मण ने पाकिस्तानियों के हमलों से टीम को बचाया। सातवें ओलंपिक स्वर्ण सुनिश्चित करने के लिए भारतीय खिलाड़ियों ने अपना शत प्रतिशत लगा दिया था और पाकिस्तान के खिलाफ हार के सिलसिले को तोड़ते हुए एक बार फिर गोल्ड अपने नाम किया।

मास्को 1980

गोल्ड मेडल के बिना 3 ओलंपिक खेलने के बाद भारतीय टीम का इंतजार साल 1980 मास्को में खत्म हुआ। साल 1968 और 1972 में उन्होंने कांस्य पदक जीता तो साल 1976 के ओलंपिक में टीम 7वें स्थान पर रही।

साल 1980 में भी टीम काफी दबाव में थी और उनका सफर भी इतना आसान नहीं था। भारतीय टीम ने तंजानिया को 18-0 से हराया और उसके बाद क्यूबा को 13-0 से शिकस्त दी। भारतीय टीम को भी पता था कि उनका मुकाबला इन टीमों से नहीं था।

पोलैंड और स्पेन जैसे मजबूत टीम के खिलाफ टीम ने 2-2 से ड्रॉ किया, यह टीम को सेमीफाइनल में पहुंचाने के लिए काफी था। इसके बाद टीम इंडिया ने रूस को 4-2 से हराया।

फाइनल में भारत का सामना स्पेन से था, जो जबरदस्त फॉर्म में थी और भारत को कड़ी टक्कर दे रही थी। खैर मोहम्मद शाहिद के अच्छे प्रदर्शन की बदौलत भारत मैच में बना रहा। इस दौरान शाहिद ने मैच में कई गोल करने में मदद की और अंत में एक गोल कर अपनी टीम को 4-3 से जीत दिलाने में अपनी अहम भूमिका निभाई। यह भारत का 8वां और अंतिम गोल्ड मेडल था।

हॉकी में ओलंपिक में भारत ने कितनी बार स्वर्ण पदक जीता?

भारतीय टीम की इस खास जीत के कई कारण थे। इस जीत ने भारत का खेल पर एक अभूतपूर्व वर्चस्व कायम किया जिसके बाद भारतीय टीम ने लगातार छह ओलंपिक स्वर्ण पदक जीते। भारतीय हॉकी टीम ने एम्स्टर्डम 1928, लॉस एंजिल्स 1932, बर्लिन 1936, लंदन 1948, हेलसिंकी 1952 और मेलबर्न 1956 में गोल्ड मेडल अपने नाम किया।

हॉकी में कितने स्वर्ण पदक जीते?

ओलंपिक में आठ स्वर्ण, एक रजत और तीन कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय पुरुष हॉकी टीम अब तक राष्ट्रमंडल खेलों में एक बार भी स्वर्ण पदक नहीं जीत सकी है। इन खेलों में हॉकी को 1998 में शामिल किया गया था। राष्ट्रमंडल खेलों की हॉकी में ऑस्ट्रेलिया का ही वर्चस्व रहा है। अब तक उसने सभी छह स्वर्ण पदक जीते हैं।

भारत ने हॉकी में स्वर्ण पदक कब जीता?

वर्ष 1928 के एम्सटर्मड ओलंपिक में पहला स्वर्ण पदक प्राप्त किया और ओलिंपिक खेलों में वर्ष 1928 से वर्ष 1956 तक लगातार छह स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया था। अन्य दो स्वर्ण वर्ष 1964 में टोक्यो और वर्ष 1980 में मॉस्को ओलंपिक में मिले।

भारत ने ओलंपिक स्वर्ण कब जीता?

ओलंपिक Archived 2021-08-04 at the Wayback Machine (ओलम्पिक खेल) में भारत ने सर्वप्रथम 1900 में, एकमात्र खिलाड़ी नार्मन प्रिजार्ड (एंग्लो इण्डियन) के साथ भाग लिया, जिसने एथलेटिक्स में दो रजत पदक जीते 1920 के ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक खेलों में देश ने पहली बार एक टीम भेजी और उसके बाद से हर ग्रीष्मकालीन खेलों में भाग लिया है।