केप्लेर के तीनो नियमों का दो ग्रहीय कक्षाओं के माध्यम से प्रदर्शन
(1) कक्षाएँ दीर्घवृत्ताकार हैं एवं उनकी नाभियाँ पहले ग्रह के लिये (focal points) ƒ1 and ƒ2 पर हैं तथा दूसरे ग्रह के लिये ƒ1 और ƒ2हैं। सूर्य नाभिक बिन्दु ƒ1 पर स्थित है।
(2) ग्रह (१) के लिये दोनो छायांकित (shaded) सेक्टर A1और A2 का
क्षेत्रफल समान है तथा ग्रह (१) के लिये सेगमेन्ट A1 को पार करने में लगा समय उतना ही है जितना सेगमेन्ट A2 को पार करने में लगता है।
(3) ग्रह (१) एवं ग्रह (२) को अपनी-अपनी कक्षा की परिक्रमा करने में लगे कुल समय a13/2 : a23/2 के अनुपात में हैं।
खगोल विज्ञान में केप्लर के ग्रहीय गति के तीन नियम इस प्रकार हैं - सभी ग्रहों की कक्षा की कक्षा दीर्घवृत्ताकार होती है तथा सूर्य इस कक्षा के नाभिक (focus) पर होता है।
- ग्रह को सूर्य से जोड़ने वाली रेखा समान समयान्तराल में समान क्षेत्रफल तय करती है।
- ग्रह द्वारा सूर्य की परिक्रमा के कक्षीय अवधि का वर्ग, अर्ध-दीर्घ-अक्ष (semi-major axis) के घन के समानुपाती होता है।
- किसी ग्रह की कक्षीय अवधि का वर्ग उसकी कक्षा के अर्ध-प्रमुख अक्ष के घन के सीधे आनुपातिक है।
इन तीन नियमों की खोज जर्मनी के गणितज्ञ एवं खगोलविद योहानेस केप्लर (Johannes Kepler 1571–1632) ने की थी। और सौर मंडल के ग्रहों की गति के लिये वह इनका उपयोग करते थे। वास्तव में ये नियम किन्ही भी दो आकाशीय पिण्डों की गति का वर्णन करते हैं जो एक-दूसरे का चक्कर काटते हैं।
केप्लर द्वारा उपयोग में लाए गए आंकडे[संपादित करें]
केप्लर ने अपने तृतीय नियम के लिए निम्नलिखित सारणी में दर्शाए गए आंकड़ों का उपयोग किया था।
केप्लर द्वारा प्रयुक्त आंकड़े (1618)बुध | 0.389 | 87.77 | 7.64 |
शुक्र | 0.724 | 224.70 | 7.52 |
पृथ्वी | 1 | 365.25 | 7.50 |
मंगल | 1.524 | 686.95 | 7.50 |
बृहस्पति | 5.2 | 4332.62 | 7.49 |
शनि | 9.510 | 10759.2 | 7.43 |
उपरोक्त पैटर्न को देखते हुए केप्लर ने लिखा:[1]
"पहले मुझे लगा कि मैं स्वप्न देख रहा हूँ… लेकिन यह पूर्णतः असंदिग्ध और सुनिश्चित है कि दो ग्रहों के आवर्त काल के बीच जो अनुपात है वही अनुपात उनकी सूर्य से माध्य दूरियों के (3/2)वें घात के अनुपात के बराबर है।
केप्लर द्वारा १६१९ में रचित Harmonies of the World से अनूदित
नीचे की सारणि में उपरोक्त आंकड़ों के आधुनिक अनुमानित मान दिए गए हैं:
आधुनिक आंकड़े (Wolfram Alpha Knowledgebase 2018)बुध | 0.38710 | 87.9693 | 7.496 |
शुक्र | 0.72333 | 224.7008 | 7.496 |
पृथ्वी | 1 | 365.2564 | 7.496 |
मंगल | 1.52366 | 686.9796 | 7.495 |
बृहस्पति | 5.20336 | 4332.8201 | 7.504 |
शनि | 9.53707 | 10775.599 | 7.498 |
युरेनस | 19.1913 | 30687.153 | 7.506 |
नेप्चून | 30.0690 | 60190.03 | 7.504 |
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ Caspar, Max (1993). Kepler. New York: Dover.
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
- गुरुत्वाकर्षण
- न्यूटन का सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त
ग्रहों की गति संबंधी केप्लर के नियम
केप्लर ने सौर परिवार में सूर्य के
चारों ओर परिक्रमा करने वाले ग्रहों की गति संबंधी निम्नलिखित तीन नियम दिए, जो निम्न प्रकार से हैं।
(1) कक्षाओं का नियम
(2) क्षेत्रीय चाल का नियम
(3) परिक्रमण काल का नियम
1. प्रथम नियम (कक्षाओं का नियम)
प्रत्येक ग्रह सूर्य के परितः दीर्घ वृत्ताकार पथ पर गति करते हैं तथा सूर्य उस दीर्घ वृत्त के किसी एक फोकस पर होता है। विभिन्न ग्रहों की कक्षाएं भिन्न-भिन्न होती हैं। यह केप्लर का प्रथम नियम है इसे कक्षाओं का नियम (law of orbits) भी कहते हैं।
2. द्वितीय नियम (क्षेत्रीय चाल का नियम)
किसी ग्रह को सूर्य से मिलाने वाली रेखा बराबर समय अंतरालों में बराबर क्षेत्रफल पार करती है। अर्थात प्रत्येक ग्रह की क्षेत्रीय चाल नियत रहती है इसे केप्लर का द्वितीय नियम कहते हैं। एवं इसे क्षेत्रीय चाल का नियम (law of areal velocity) भी कहते हैं।
अतः चित्र द्वारा स्पष्ट होता है। कि जब ग्रह, सूर्य के नजदीक होता है तो उसकी चाल अधिकतम होती है। और जब ग्रह, सूर्य से दूर चला जाता है तो ग्रह की चाल न्यूनतम होती है। प्रस्तुत चित्र में ग्रह की कक्षा को ही दर्शाया गया है।
यदि कोई ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हुए एक निश्चित समयांतराल में कक्षा के बिंदु A से B बिंदु तक जाता है एवं उतनी ही समयांतराल में बिंदु C से D बिंदु तक जाता है तब इस नियम के
अनुसार
∆ASB का क्षेत्रफल = ∆CSD का क्षेत्रफल
3. तृतीय नियम (परिक्रमण काल का नियम)
सूर्य के परितः किसी भी ग्रह का परिक्रमण काल का वर्ग उस ग्रह की दीर्घवृत्ताकार कक्षा के अर्द्ध दीर्घ अक्ष की तृतीय घात के
अनुक्रमानुपाती होता है। इसे केप्लर का तृतीय नियम कहते हैं। तथा इसे परिक्रमण काल का नियम (law of periods) भी कहते हैं।
माना किसी ग्रह का सूर्य के चारों ओर परिक्रमण काल T है तथा इसकी दीर्घ वृत्ताकार कक्षा का अर्द्ध दीर्घ अक्ष a है तो इस नियम के अनुसार
\footnotesize \boxed { T ∝ a^3 }
केप्लर के नियम से न्यूटन के निष्कर्ष
केप्लर के दूसरे नियम के अनुसार, किसी ग्रह का क्षेत्रफलीय वेग नियत रहता है तब दीर्घ वृत्ताकार कक्षा में ग्रह का वेग नियत होगा। अतः ग्रह पर केंद्र (सूर्य)
की ओर एक अभिकेंद्र बल F लगता है तो
अभिकेंद्र बल F = \large \frac{mv^2}{r}
यहां m द्रव्यमान, v ग्रह का रेखीय वेग है तथा r वृत्ताकार कक्षा की त्रिज्या है।
यदि T ग्रह का आवर्तकाल हो तब
v = \large \frac{2πr}{T}
(चूंकि v = rω ⇒ 2πrn ⇒ \large \frac{2πr}{T} )
v का मान रखने पर अभिकेंद्र बल
F = \large \frac{m}{r} (\frac{2πr}{T})^2
F =
\large \frac{4π^2mr}{T^2}
F = \large \frac{m × 4π^2r}{kr^3} (चूंकि T ∝ a3 ⇒ ka3 से)
F = \large (\frac{4π^2}{k}) (\frac{m}{r^2})
अतः F ∝ \large \frac{m}{r^2}
पढ़ें… 11वीं भौतिक नोट्स | 11th class physics notes in Hindi
इस प्रकार केप्लर के नियम से न्यूटन ने तीन निष्कर्ष निकाले
- ग्रह पर एक बल कार्य करता है जिसकी दिशा सूर्य की ओर होती है।
- यह बल ग्रह तथा सूर्य के बीच की औसत दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है। (F ∝ \large \frac{1}{r^2} )
- यह बल ग्रह के द्रव्यमान के अनुक्रमानुपाती होता है। (F ∝ m)
इस प्रकार हम देखते हैं कि केप्लर के नियम से न्यूटन ने तीन निष्कर्ष
निकाले।
ध्यान दें –
यह तीनों निष्कर्ष F ∝ \large \frac{m}{r^2} सूत्र से ही बनाए गए हैं कोई अपने मन से नहीं है यहां प्रयोग किया गया बल अभिकेंद्र बल है।
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केप्लर के नियम प्रश्न उत्तर
1. केप्लर के कितने नियम हैं?
Ans. तीन
2. केप्लर के नियम से न्यूटन में कितने निष्कर्ष निकाले?
Ans. तीन
3. केप्लर के प्रथम नियम को कहा जाता है?
Ans. कक्षाओं का नियम