बकरी के पेट में अफारा हो तो क्या करना चाहिए - bakaree ke pet mein aphaara ho to kya karana chaahie

प्रमुख रोग, पहचान एवं उपचार

Contents

  • 1 बकरियों में होने वाले प्रमुख रोग, पहचान एवं उपचार
    • 1.1 बकरी का निमोनिया रोग
      • 1.1.1 रोग से बचाव एवं उपचार
    • 1.2 बकरियों का अफारा रोग
      • 1.2.1 रोग से बचाव एवं उपचार
    • 1.3 बकरियों का ओरफ या मुँहा रोग 
      • 1.3.1 रोग से बचाव एवं उपचार
    • 1.4 बकरियों का मुंहपका खुरपका रोग
      • 1.4.1 रोग से बचाव एवं उपचार
    • 1.5 बकरियों का दस्त (छैर) रोग
      • 1.5.1 रोग से बचाव एवं उपचार
    • 1.6 बकरियों का थनैला रोग 
      • 1.6.1 रोग से बचाव एवं उपचार

बकरियों में होने वाले प्रमुख रोग, पहचान एवं उपचार

देश के ज्यादातर किसान कृषि के साथ-साथ पशुपालन भी करते हैं. जिससे उनकी अतिरिक्त आय होती है. इन्हीं पशुपालन में सबसे ज्यादा बकरी पालन प्रचलित है. क्योंकि इसमें लागत भी कम में अधिक मुनाफा हो जाता है.

इसीलिए बकरी को गरीबों  की गाय भी कहा गया है. लेकिन बकरी पालन में किसानों को सबसे ज्यादा हानि बकरी रोगों के कारण उठानी पड़ती है. इसीलिए गांव किसान आज अपनी लेख में बकरी के प्रमुख रोगों (Major diseases of goats)  उनकी पहचान और रोगों के नियंत्रण के बारे में पूरी जानकारी देगा जिससे बकरी पालन में होने वाली नुकसान को कम किया जा सके. तो आइए जानते हैं, बकरी को होने वाले प्रमुख रोगों की पूरी जानकारी-

बकरी का निमोनिया रोग

बकरी का निमोनिया रोग काफी घातक होता है. इस रोग के होने से बकरी ने कपकपी, नाक से तरल पदार्थ का रिसाव ,मुंह खोलकर सांस लेना एवं खांसी बुखार जैसे लक्षण दिखाई पड़ते हैं.

रोग से बचाव एवं उपचार

निमोनिया रोग से बचाव के लिए ठंड के मौसम में बकरियों को बंद जगह या बाड़े में रखना चाहिए. इसके अलावा बकरियों को एंटीबायोटिक 3 से 5 मिली को 3 से 5 दिन तक, खांसी के लिए टेफलोन पाउडर 6 से 12 ग्राम प्रतिदिन 3 दिन तक देने से लाभ मिल जाता है.

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बकरियों का अफारा रोग

अफारा रोग होने पर बकरियों का पेट का बायां हिस्सा फूल जाता है. इसको दबाने पर ढोल की तरह यह बचता है. इसके अलावा बकरियों को पेट दर्द, पेट पर पैर मारने और सांस लेने में तकलीफ हो जाती है.

रोग से बचाव एवं उपचार

अफारा रोग होने पर बकरियों का चारा पानी तुरंत बंद कर देना चाहिए.एक चम्मच लेकर खाने का सोडा या टिम्पोल पाउडर 15 से 20 ग्राम तक दे देना चाहिए.इसके अलावा एक चम्मच तारपीन का तेल व डेढ़ सौ से 200 मिली मीठा तेल पिलाना चाहिए.

बकरियों का ओरफ या मुँहा रोग 

मुँहा होने पर बकरियों के होठों पर खूब सारे छाले व मुंह में श्लेष्मा पर या कभी-कभी खुरों पर भी छाले हो जाते हैं. इससे बकरी लंगड़ा कर भी चलने लगती है.

रोग से बचाव एवं उपचार

मुँहा रोग होने पर बकरियों के मुंह में दिन में दो बार लाल दवा या फिनाइल या डेटोल आदि के हल्के घोल को बनाकर धोना चाहिए. इसके अलावा बकरियों के खुरो और मुंह पर लोरेक्सन या बेटाडीन लगाना चाहिए.

बकरियों का मुंहपका खुरपका रोग

बकरियों में मुंहपका खुरपका रोग होने पर इनके मुंह में और पैरों में छाले हो जाते हैं. जो घाव में परिवर्तित हो जाते हैं. इसके उपरांत बकरी के अत्यधिक लार निकलती है. व बकरी लंगड़ा कर चलती है. इसके अलावा उसके बुखार भी आ जाता है. और दूध देने की मात्रा भी कम हो जाती है.

रोग से बचाव एवं उपचार

बकरियों में इस रोग के लक्षण अगर दिखाई पड़े. तो सबसे पहले उन्हें अन्य बकरियों से अलग बांधे. इसके अलावा रोगी बकरी तो पैरों व मुंह के घावों को लाल दवा या डेटॉल के हलके घोल से धोना चाहिए.

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बकरियों का दस्त (छैर) रोग

बकरियों में दस्त रोग लगने पर यह थोड़े-थोड़े अंतराल पर तरल के रूप में मल निकालती रहती हैं. जिससे बकरियों में कमजोरी आ जाती है.

रोग से बचाव एवं उपचार

बकरियों में दस्त रोग लगने पर नेबलोन पाउडर 15 से 20 ग्राम 3 दिन तक इन्हें देना चाहिए. इसके अलावा यदि बकरियों को दस्त के साथ खून भी आ रहा हो, तो वोक्तरिन  गोली आधी सुबह और शाम दें. लेबलोन पाउडर के साथ या पाबाडीन गोली देना लाभकारी होता है.

बकरियों का थनैला रोग 

बकरियों में थनैला रोग होने पर इसके थनों पर सूजन आ जाती है. इसके अलावा दूध में फटे दूध के थक्के और बुखार भी आ जाता है.

रोग से बचाव एवं उपचार

बकरियों में अपने ना लोक से बचाव के लिए साफ सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए. इसके अलावा थनैला रोग होने पर बकरी के थानों में इंजेक्शन से एंटीबायोटिक डाल देना चाहिए.या बकरी के थानों पेदेस्तरिन ट्यूब पूरे थन पूरी तरह डाल देना चाहिए. ऐसा 3 से 5 दिन लगातार करना चाहिए.

बकरी पेट में अफारा हो तो क्या करना चाहिए?

इससे पेट फूलने की समस्या दूर होती है.

बकरी का पेट फूलने पर क्या दिया जाता है?

रोग को तीव्र अवस्था में पशु चिकित्सक से तत्काल सम्पर्क कर उपचार कराना चाहियें।.
इसके अन्तर्गत 2-5 प्रतिशत सोड़ा बाईकार्बोनेट का इन्जेक्शन शिरा में दिया जाता हैं।.
रूमन की शल्य क्रिया करके अतिरिक्त अनाज की मात्रा को निकाला जा सकता हैं।.
रोग की मध्य अवस्था में बकरी को खाने वाला सोड़ा 50 ग्राम सुबह व शाम देना चाहियें।.

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