चमार जाति का गुरु कौन है? - chamaar jaati ka guru kaun hai?

चमार के देवता, किस भगवान को पूजते हैँ चमार

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Last Updated on 29/10/2022 by Sarvan Kumar

चमार दक्षिण एशिया में पाया जाने वाला एक व्यवसायिक जाति समुदाय है. इनका पारंपरिक व्यवसाय चमड़े के जूते-चप्पल तैयार करना रहा है. भारत में इनकी बहुतायत आबादी है. साथ ही पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश में भी इस समुदाय के लोग निवास करते हैं. इस समुदाय के लोग अलग-अलग धर्मों को मानते हैं. इसी क्रम में आइए जानते हैं चमार के देवता कौन हैं.

चमार के देवता

चमार जाति समूह के लोग विभिन्न धर्मों का पालन करते हैं जैसे कि हिंदू धर्म, इस्लाम, सिख धर्म, ईसाई धर्म, रविदासिया धर्म और बौद्ध धर्म आदि. इस्लाम का अनुसरण करने वाले चमार (मोची) मुख्य रूप से पाकिस्तान और बांग्लादेश में निवास करते हैं. यह मूल रूप से हिंदू चमार थे जो 14 वीं से 16 वीं शताब्दी ईस्वी के मध्य में धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बन गए.भारत में मुस्लिम मोची मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश और पंजाब में निवास करते हैं. इसी प्रकार से इस समुदाय के कुछ सदस्य धर्म परिवर्तित करके सिख बन गए. रामदासिया ऐतिहासिक रूप से एक सिख हिंदू उप-समूह है जिसकी उत्पत्ति हिंदू चमार जाति से मानी जाती है. इनमें से कुछ मिशनरियों के संपर्क में आकर ईसाई बन गए. इस समुदाय के कुछ सदस्य मिशनरियों के संपर्क में आने के बाद ईसाई बन गए. भारत में निवास करने वाले अधिकांश चमार हिंदू हैं और हिंदू देवी-देवताओं में गहरी आस्था रखते हैं. इनमें से अधिकांश शिव और भागवत संप्रदाय के हैं. यह भगवान शिव और भगवान विष्णु के विभिन्न रूपों जैसे कि राम और कृष्ण आदि की पूजा करते हैं. यह देवता के रूप में बिरोबा (Biroba) और खंडोबा (Khandoba) की पूजा करते हैं जिन्हें भगवान शिव का अवतार माना जाता है. भारत में कई जाति समूहों के अपने व्यक्तिगत देवता भी होते हैं. चमार बाबा बाली और गड्डा की पूजा करते हैं.

इनमें से कुछ मध्य काल के महान संत रविदास की आध्यात्मिक शिक्षाओं का पालन करते हैं और रविदासिया के नाम से जाने जाते हैं. रविदास पंथ के लोग संत रविदास जी को सद्गुरु के रूप में पूजते हैं. सतनामी पंथ को मानने वाले गुरु घासीदास और गुरु बालक दास के शिक्षाओं का पालन करते हैं. जानकारों का मानना है कि सतनामी पंथ संत रविदास और कबीर दास की शिक्षाओं पर आधारित है.1956 में, दलित विधिवेत्ता भीमराव रामजी अम्बेडकर (1891-1956) ने दलित बौद्ध आंदोलन की शुरुआत की, जिससे दलितों के हिंदू धर्म से बौद्ध धर्म में कई बड़े पैमाने पर धर्मांतरण हुए. हाल के वर्षों में, चमार समुदाय के कुछ समूहों ने बौद्ध धर्म अपना लिया है. इनमें से कई बाबासाहेब आंबेडकर को भगवान के रूप में मानने लगे हैं.


References:

•Chander, Rajesh K I. (2019). Combating Social Exclusion: Intersectionalities of Caste, Class, Gender and Regions. Studera Press. p. 64. ISBN 978-93-85883-58-3.

•British Untouchables: A Study of Dalit Identity and Education
By Paul Ghuman

•Jan Gonda (1970). Visnuism and Sivaism: A Comparison. Bloomsbury Academic. ISBN 978-1-4742-8080-8.

•Lamb 2002, p. 52.

•Gary Tartakov (2003). Rowena Robinson (ed.). Religious Conversion in India: Modes, Motivations, and Meanings. Oxford University Press. pp. 192–213. ISBN 978-0-19-566329-7.

•Christopher Queen (2015). Steven M. Emmanuel (ed.). A Companion to Buddhist Philosophy. John Wiley & Sons. pp. 524–525. ISBN 978-1-119-14466-3.

•https://journals.sagepub.com/doi/10.1177/2277436X19845444

चमार जाति का गुरु कौन है? - chamaar jaati ka guru kaun hai?

 

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चमार जाति का गुरु कौन है? - chamaar jaati ka guru kaun hai?

रविदास की जीवनी

रविदास भारत के एक महान संत, कवि, समाज-सुधारक और ईश्वर के अनुयायी थे। ईश्वर के प्रति अपने असीम प्यार और अपने चाहने वाले, अनुयायी, सामुदायिक और सामाजिक लोगों में सुधार के लिये अपने महान कविता लेखनों के जरिये संत रविदास ने विविध प्रकार की आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश दिये।

संत कुलभूषण कवि संत शिरोमणि रविदास उन महान सन्तों में अग्रणी थे जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान किया। इनकी रचनाओं की विशेषता लोक-वाणी का अद्भुत प्रयोग रही है जिससे जनमानस पर इनका अमिट प्रभाव पड़ता है। प्राचीनकाल से ही भारत में विभिन्न धर्मों तथा मतों के अनुयायी निवास करते रहे हैं। इन सबमें मेल-जोल और भाईचारा बढ़ाने के लिए सन्तों ने समय-समय पर महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ऐसे सन्तों में शिरोमणि रविदास का नाम अग्रगण्य है।

रविदास चमार जाति के थे। आज भी कई लोग चमार जाति वालो से दुरी बनाये रहते है, परन्तु वो लोग ये समझते नहीं की चमार किसे कहते है। चमार उसे कहते है जिसे चमड़े की अच्छी परख होती है। जैसे चौबे उसे कहते है जो चारो वेदों का ज्ञान रखता हो। हिंदी में पीएचडी जिसने की उसे डॉ. की उपाधि मिल जाती है। उसी प्रकार यह सभी जाति है। यह जाति एक उपाधि है ऐसा समजिये।

संत रविदास जी का जन्म, माता पिता का नाम

रैदास नाम से विख्यात संत रविदास का जन्म सन् १३८८ में बनारस में हुआ था। लेकिन इनके जन्म को लेकर बहुत मदभेद है, कुछ लोग के अनुसार सन् १३९८ तो कुछ सन् १४५९ में कहते है। गुरू रविदास जी का जन्म काशी में हुआ था। जिसे आज वाराणसी के नाम से जाना जाता है। उनके पिता का नाम संतो़ख दास (रग्घु) और माता का नाम कलसा देवी है। रैदास ने साधु-सन्तों की संगति से पर्याप्त व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया था। जूते बनाने का काम उनका पिता व्यवसाय था और उन्होंने इसे सहर्ष अपनाया। वे अपना काम पूरी लगन तथा परिश्रम से करते थे।

प्रारम्भ से ही रविदास जी बहुत परोपकारी तथा दयालु थे और दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव था। साधु-सन्तों की सहायता करने में उनको विशेष आनन्द मिलता था। वे उन्हें कभी कभी मूल्य लिये बिना जूते भेंट कर दिया करते थे। उनके स्वभाव के कारण उनके माता-पिता उनसे क्रोधी रहते थे। कुछ समय बाद उन्होंने रविदास तथा उनकी पत्नी को अपने घर से बहार दिया। रविदास जी पड़ोस में ही अपने लिए एक अलग ईमारत बनाकर तत्परता से अपने व्यवसाय का काम करते थे और शेष समय ईश्वर-भजन तथा साधु-सन्तों के सत्संग में व्यतीत करते थे।

संत रविदास जी के गुरु कौन थे?

संत रविदास व संत कबीर के गुरु भाई थे क्योंकि उनके भी गुरु स्वामी रामानन्द थे। अर्थात संत कबीर और संत रविदास के गुरु एक थे रामानन्द।

संत रविदास जयंती

भारत में खुशी और बड़े उत्साह के साथ माघ महीने के पूर्ण चन्द्रमा दिन पर हर साल संत रविदास की जयंती या जन्म दिवस को मनाया जाता है। जबकि, वाराणसी में लोग इसे किसी उत्सव या त्योहार की तरह मनाते है। २०१८ (६४१st) - ३१ जनवरी (बुधवार)

रैदास के प्रसिद्ध पद

प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी॥
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा॥
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती॥
प्रभु जी, तुम मोती, हम धागा जैसे सोनहिं मिलत सोहागा॥

रैदास के प्रसिद्ध दोहे

जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।
रैदास कनक और कंगन माहि जिमि अंतर कछु नाहिं।
तैसे ही अंतर नहीं हिन्दुअन तुरकन माहि।।
हिंदू तुरक नहीं कछु भेदा सभी मह एक रक्त और मासा।
दोऊ एकऊ दूजा नाहीं, पेख्यो सोइ रैदासा।।

चमार के गुरु कौन है?

संत रविदास जी ने स्वामी रामानंद जी को कबीर साहेब जी के कहने पर गुरु बनाया था, जबकि उनके वास्तविक आध्यात्मिक गुरु कबीर साहेब जी ही थे।

चमार का असली नाम क्या है?

'चमार' शब्द को संस्कृत भाषा के 'चर्मकार' का अपभ्रंश माना जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ 'चमड़े से सम्बन्धित काम करने वाला' होता है। चमार जाति का मुख्य पेशा चमड़े की जीवन उपयोगी वस्तुएं बनाना था जैसे कि जूते, मशक, नगाड़ा, बेल्ट, बख्तर, लेकिन कुछ चमारों ने कपड़ा बुनने का धंधा भी अपना लिया एवं ख़ुद को जुलाहा चमार बुलाने लगे।

चमार को क्या बोलते हैं?

तुच्छ । चमार ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ चर्मकार] [स्त्री॰ चमारिन, चमारी] एक नीच जाति जो चमड़े का काम बनाती है । २. उक्त जाति का व्यक्ति ।

भारत में चमार जाति की जनसंख्या कितनी है?

इनकी जनसंख्या लगभग 2.8 करोड़ है जो मुख्य आवादी का 12 प्रतिशत है।