बूढ़ी पृथ्वी का दुख कविता की कवयित्री कौन है? - boodhee prthvee ka dukh kavita kee kavayitree kaun hai?

                
                                                                                 
                            

क्या तुमने कभी सुना है


सपनों में चमकती कुल्हाड़ियों के भय से
पेड़ों की चीत्कार?

कुल्हाड़ियों के वार सहते
किसी पेड़ की हिलती टहनियों में
दिखाई पड़े हैं तुम्हें
बचाव के लिए पुकारते हज़ारों-हज़ार हाथ?

क्या होती है, तुम्हारे भीतर धमस
कटकर गिरता है जब कोई पेड़ धरती पर?

सुना है कभी
रात के सन्नाटे में अंधेेरे से मुंह ढांप
किस कदर रोती हैं नदियां

इस घाट अपने कपड़े और मवेशियां धोते
सोचा है कभी कि उस घाट
पी रहा होगा कोई प्यासा पानी
या कोई स्त्री चढ़ा रही होगी किसी देवता को अर्घ्य?

कभी महसूस किया कि किस कदर दहलता है
मौन समाधि लिए बैठा पहाड़ का सीना
विस्फोट से टूटकर जब छिटकता दूर तक कोई पत्थर?
सुनाई पड़ती है कभी भरी दुपहरिया में
हथौड़ों की चोट से टूटकर बिखरते पत्थरों की चीख

खून की उल्टियां करते
देखा है कभी हवा को, अपने घर के पिछवाड़े?
थोड़ा-सा वक़्त चुराकर बतियाता है कभी
कभी शिकायत न करने वाली
गुमसुम बूढ़ी पृथ्वी से उसका दुख?

अगर नहीं, तो क्षमा करना!
मुझे तुम्हारे आदमी होने पर सन्देह है

साभार- नगाड़े की तरह बजते हैं शब्द
भारतीय ज्ञानपीठ

4 years ago

बूढ़ी पृथ्वी का दुख कविता की कवियित्री कौन है?

निर्मला पुतुल की करुण कविता 'बूढ़ी पृथ्वी का दुख'

बूढ़ी पृथ्वी का दुख कविता का मुख्य संदेश क्या है?

अर्थ-कवयित्री निर्मला पुतुल ने वैसे लोगों का ध्यान पेड़-पौधों की ओर आकृष्ट किया है जो निर्ममतापूर्वक पेड़ काटते जा रहे हैं। कवयित्री लोगों से यह जानना चाहती है कि क्या आपने कभी स्वप्न में चमकती हुई कुल्हाडियों के भय से काँपते हुए पेड़ों की चीख-पुकार को सुना है।

बूढ़ी पृथ्वी का दुख कविता में कवयित्री के अनुसार हमें किसकी चीत्कार महसूस करनी चाहिए और क्यों?

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पृथ्वी कहते हैं कविता के कवि कौन है?

उत्तर: कीट्स ने अपनी कविता 'पृथ्वी की कविता' में कहा है कि पृथ्वी की कविता कभी समाप्त नहीं होती है। जब सूरज गर्म होता है, पक्षी बेहोश हो जाते हैं और वे ठंडे पेड़ों में छिप जाते हैं। कवि नए घास के मैदानों को पार करते हुए हेज से हेज तक दौड़ते हुए टिड्डे की आवाज सुनता है।