बनारस में धीरे-धीरे क्या होता है? 'धीरे-धीरे' से कवि इस शहर के बारे में क्या कहना चाहता है? Show कवि के अनुसार बनारस शहर में धूल धीरे-धीरे उड़ती है, यहाँ लोग धीरे-धीरे चलते हैं, धीरे-धीरे ही यहाँ मंदिरों में घंटे बजते हैं तथा शाम भी यहाँ धीरे-धीरे होती है। कवि के अनुसार यहाँ सभी कार्य धीरे-धीरे होना इस शहर की विशेषता है। यह शहर को सामूहिक लय प्रदान करता है। धीरे-धीरे शब्दों द्वारा कवि बनारस में हो रहे बदलावों को दर्शाता है। उसके अनुसार सारी दुनिया में तेज़ी से बदलाव हो रहे हैं। इन बदलावों की रफ़्तार इतनी तेज़ है कि पुराना सब खो गया है। लोग स्वयं को इन बदलावों में झोंक रहे हैं। इससे हमारी सभ्यता और संस्कृति को नुकसान पहुँचता है। परन्तु बनारस इन बदलावों से अभी तक अछूता है। वहाँ बदलाव हो अवश्य रहे हैं परन्तु उनकी रफ़्तार बहुत कम है। इस प्रकार आज भी बनारस की संस्कृति, विरासत तथा धार्मिक मान्यताएँ वैसी की वैसी ही बनी हुई हैं। वह अपने पुराने स्वरूप को बनाए हुए है। तेज़ी के इस दौर में वह भूत तथा वर्तमान से बंधे हुए दृढ़तापूर्वक चल रहा है। बनारस में धीरे धीरे क्या क्या होता है धीरे धीरे से कवि इस शहर के बारे में क्या कहना चाहता है?कवि के अनुसार बनारस शहर में धूल धीरे-धीरे उड़ती है, यहाँ लोग धीरे-धीरे चलते हैं, धीरे-धीरे ही यहाँ मंदिरों में घंटे बजते हैं तथा शाम भी यहाँ धीरे-धीरे होती है। कवि के अनुसार यहाँ सभी कार्य धीरे-धीरे होना इस शहर की विशेषता है। यह शहर को सामूहिक लय प्रदान करता है।
धीरे धीरे होने की सामूहिक लय में क्या क्या बंधा है?धीरे-धीरे की इस सामूहिक लय में पूरा बनारस बंधा हुआ है। यह लय इस शहर को मजबूती प्रदान करती है। धीरे-धीरे की सामूहिक लय में यहाँ बदलाव नहीं हुए हैं और चीज़ें प्राचीनकाल से जहाँ विद्यमान थीं, वहीं पर स्थित हैं। गंगा के घाटों पर बंधी नाव आज भी वहीं बँधी रहती है, जहाँ सदियों से बँधी चली आ रही हैं।
बनारस में वसंत का आगमन कैसे होता है और इसका क्या प्रभाव इस शहर पर पड़ता है?बनारस में गंगा, गंगा के घाट, मंदिर तथा मंदिरों और घाटों के किनारे बैठे भिखारियों के कटोरे जिनमें वसंत उतरता है - का चित्र बनारस कविता में अंकित हुआ है।
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