अपने पहले बच्चे की परवरिश के समय हम इतने पारंगत नहीं होते | जब आप अपने बच्चे की पसंद और नापसंद के बारे में सीखते हैं तब आप एक माता-पिता के रूप में विकसित होते हैं । वह कब भूखी है? या रात में उसे किस तरह से सोना पसंद है? फिर जैसे-जैसे वह बड़ी होती है, आप और अधिक सीखते रहते हैं - क्या वह शर्मीले स्वभाव की है जो हमेशा आपकी गोद में बैठना सुविधाजनक समझती है? या वह खेलते ही खेलते बहार चली जाती है और अपने आप ही सब कुछ ख़ोज लेती है? तो, यहाँ आपकी भूमिका क्या है? माता-पिता की भूमिका क्या है? Show
ज्ञानी पुरुष दादाश्री कहते है कि, अपने साथ खुद के संस्कार तो लेकर ही आता है बच्चा। लेकिन उसमें आपको हेल्प करके उन संस्कारों को रंग देने की ज़रूरत है। जैसे की सेब या नारंगी का बिज बोते ही उसी का पेड उत्पन्न होता है| वैसा ही बालक के साथ होता है | वह अपने साथ अपना बीज कर्म लेकर आता है। ऐसा कुछ नहीं है कि, नारंगी सेब से बेहतर है। सभी के अपने व्यक्तित्व कि एक पहचान होती है और जब सही तरीके से पोषण दिया जाएगा तो वह खूबसूरती से खिलेंगे। ज़रा आसपास देखेंगे तो और आपको कई सफल लोग मिलेंगे, जो या तो अंतर्मुखी या बहिर्मुखी हैं। कोई एसा नियम नहीं है जैसे एक दूसरे से बेहतर या दुसरे से ज़्यादा सुखी है। चलिये हम बच्चें के विकास में एक माँ की भूमिका और एक पिता की भूमिका को समझें| माता-पिता का कर्तव्य समझेंपरम पूज्य दादा भगवान कहते हैं:
माता-पिता के रूप में अपने कर्तव्य को पूरा करने के कुछ व्यावहारिक तरीके निचे दर्शाए गए हैं: 1. प्रत्येक द्रष्टिकोण से अपने जीवन को सुधारे सही जीवन केसे जिए, यह बात माता-पिता को समझनी चाहिए। पैसो के पीछे जीवन व्यर्थ नहीं करना चाहिए | अपनी सेहत का ख्याल रखिये । अपने स्वास्थ्य, धन और बच्चों की परवरिश के प्रति जाग्रत रहें । जीवन की प्रत्येक परिस्थिति को सुधारने का प्रयत्न करे | हररोज़ दिन के आखिर में अपने बच्चों के साथ शांति से बैठ कर बातचीत करे । बच्चों को थोड़ा उत्साह देने की ज़रूरत है। उनके पास पहले से ही सांस्कृतिक मूल्य हैं, लेकिन बस उन्हें उत्साह देने की आवश्यकता है। 2. माता-पिता के अपने बीच जिम्मेदारियों को साझा करे आदर्श रूप से, माता-पिता के बीच बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों पर चर्चा करें और उन्हें विभाजित करें। चौदह वर्ष की आयु तक, एक बच्चे को माँ के प्यार और ध्यान की अधिक आवश्यकता होती है। उसे देखभाल करने दें और दैनिक दिनचर्या का निर्णय लें। पिता को आम तौर पर जीवन के अहम फैसलों में शामिल होना पड़ता है जैसे कि आपके बच्चे को किस स्कूल में दाखिला दिलवाना है, किस क्षेत्र में आगे बढ़ाना है आदि। पंद्रह साल की उम्र के बाद पिता को बच्चे के विकास में मुख्य भूमिका निभाने दें। पिता की यह भूमिका बच्चे के विकास में महत्वपूर्ण साबित होती है | पेरेंटिंग का सर्वागीं द्रष्टिकोण : जिम्मेदार पेरेंटिंग की व्यापक भूमिकाज़रूरत से ज्यादा ध्यान केन्द्रित न करेबच्चे के विकास में माता-पिता की यह एक महत्वपूर्ण भूमिका है। जब बच्चे कम उम्र के हो तभी से उन्हें कुछ घरेलू काम दें और आपके व्यवसाय के काम में मदद करने के लिए कहें, इससे उन्हें अपने पास जो कुछ भी है उसकी किंमत पता चलेगी और अपनी जिम्मेदारी के प्रति जाग्रत होंगे । कई माँ-बाप अपने बच्चों को ज़रूरत से ज़्यादा की निर्देश और नियम देते हैं या फिर ज्यादा ओवरप्रोटेक्टिव हो कर अपने बच्चे को लाड़-प्यार देते है | बच्चो के प्रति ज़रूरत से ज़्यादा ध्यान देने से उनका दम घुटने लगता है। उन्हें निष्फलता का सामना करने दे; थोड़ी नुकसानी देखने दे और इन सभी से ही उनका विकास संभव है| बच्चें को हिम्मत से जीवन का सामना करना सिखाएंकोष से निकलने वाली तितली का संघर्ष उसे दुनिया का सामना करने के लिए मजबूत बनाता है; अन्यथा वह अशक्त हो जाएगी | याद रखें कि एक बच्चे की बहुत अधिक देखभाल करने से वह भी अशक्त हो सकता है। थोड़ा सा प्रतिरोध, संघर्ष, एक बच्चे की प्रतिभा को विकसित करने के लिए एक आशीर्वादरूप साबित होती है। विपरीत परिस्थितियों के बीच में ही एक बच्चा सफलता की चोटियों तक पहुंचने के लिए एक नया मार्ग प्रस्थापित करता है। बच्चे को जीवनमें आनेवाली असफलता का साहसपूर्वक सामना करना सिखाये । हमेशा किसी भी चुनौती का सामना करने से पहले बच्चे को प्रेरित करें, और किसी भी निष्फलता के लिए उनकी कभी आलोचना न करें। इसके बजाय, उनसे पूछें कि उन्होंने अगली बार क्या सबक सीखा या वे इसे कैसे ठीक करेंगे। एक आँख में प्यार और दूसरी आँख में सख्तीकई बार माता-पिता द्वारा उकसाने के कारण बच्चे गलत रास्ते पर चले जाते हैं। इसलिए, हर चीज में सामान्यता लाएं। एक आँख में प्यार बनाए रखें, और दूसरे में सख्ती। कठोरता दूसरे व्यक्ति को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाती है; क्रोध के कारण बहुत नुकसान होता है। कठोरता का मतलब क्रोध नहीं है, वह सिर्फ क्रोध का निम्न प्रकार है। आपको सब कुछ करना है, लेकिन नाटकीय रूप से। नाटक किसे कहते है? अर्थात शांति की जंजीर को खिंच के फिर क्रोध दिखाना। कब प्रोत्साहित करना है और कब नहींमाता-पिता की भूमिका एक तरह से चुनौतीभरी है। एक पिता खुश हो जाता है जब उसका बेटा उसकी मूंछों को ज़ोर से खींचता है। वह कहते है, "देखो इसे, यह मेरी मूंछ कैसे खींच रहा है!" | यदि आप बच्चे को उसकी इच्छानुसार करने देंगे और उनसे कुछ न कहेंगे, तो बच्चा कभी नहीं जान पाएगा कि वह गलत कर रहा है। बच्चा प्रत्येक परिस्थिति में दुसरो की प्रतिक्रिया देखकर ज्ञान ग्रहण कर लेता है। यदि और कुछ नहीं, तो बस थोड़ी सी चुटकी दें ताकि बच्चे को पता चल जाए कि वह कुछ गलत कर रहा है। इससे यह समझ प्राप्त होगी कि वह जो व्यवहार कर रहा है, वह गलत है।’ इसके लिए सजा देने की आवश्यता नहीं है; बस एक छोटी सी चुटकी काफी है। तो उसे पता होना चाहिए कि जब भी वह मूंछों को खींचेगा, तो बदले में उसे एक चुटकी मिलेगी। यदि आप उसे यह कहते है कि , "बहुत अच्छा, मेरे पास एक उत्कृष्ट पुत्र है," तो उसे प्रोत्साहन मिलता है और फिर वह हर बार और भी अधिक खींचेगा! हर बार जब वह कुछ गलत करता है, तो उसे समझाएं कि यह गलत है। यह गलत है, इस बात का उसे एहसास दिलाए। अन्यथा, वह एसा मानेगा कि वह जो कुछ कर रहा है वही सही है। इससे वह गलत रास्ते पर चला जाता है। इसलिए, आपको बच्चे को समझाना चाहिए। जब कुछ अच्छा कार्य करता है, तो आपको उसकी प्रशंसा करनी चाहिए और उसे पीठ पीछे थपथपा कर शाबाशी देनी चाहिए| तब उसके अहंकार को प्रोत्साहन मिलता है। इससे, वह एक बार फिर अच्छा काम करेगा। एक छोटे बच्चे का अहंकार सुषुप्त अवस्था में होता है। अहंकार मौजूद है, लेकिन वह सुषुप्त अवस्था में रहता है। बच्चे के बड़े होने पर यह अंकुरित होता है। एक बच्चा तभी अच्छा होगा जब तक आप उसके अहंकार को अनावश्यक रूप से पानी नहीं पिलाते। यदि उसके अहंकार को आपकी और से पोषण नहीं मिलता है, तो बच्चा उत्कृष्ट मूल्यों (संस्कार) के साथ विकसित हो जाएगा। नियंत्रण नहीं; दिल से प्यार बरसायेयह माता-पिता की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है। जब आप अपने बच्चों से बात करते हैं, तब आपका अंदाज़ मालिकीभाव रहित होना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि कोई बच्चा ६0% से परिणाम प्राप्त करता है और जब पिता को दिखाता है, तब पिता को कहना चाहिए कि यह अच्छा है कि आपने परीक्षा पास कर ली है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। मैं आपसे उम्मीद करता हूँ कि आप ८५% प्राप्त करें और एक अच्छे इंजीनियर बनें ', फिर यह बात को यही छोड़ दें। उसे बार बार यह याद मत दिलाते रहें कि आपने उसे अच्छे अंक लाने के लिए कहा था। यदि आप बार बार इस बात से परेशान करेंगे, तो वह आपकी बातों को नजरअंदाज कर देगा। कुछ महीनों के बाद, जब आप उसके परिणाम देखते हैं, यदि वह ७५% हो जाता है, तब अपने बच्चे को यह कहते हुए प्रोत्साहित करें कि , “आपके अंक बढ़ गए हैं। आपके पास आगे बढ़ने के लिए उत्कृष्ट क्षमता है। यदि आप अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं, तो मुझे यकीन है, आप बहोत आगे तक पहुंच सकेंगे। मुझे विश्वास है कि आप ८५% से ९0% प्राप्त कर सकते हैं , और बात को वही छोड़ दें। बच्चे को प्रोत्साहित करना महत्वपूर्ण है। जब भी वे गलती करते हैं, तो इसे बहुत प्यार से समझाएं। आपको बच्चे से इस विषय पर बात ज़रूर करे, लेकिन उन्हें केसे कहा जाए उसका भी एक तरहिका होता है । वे अपने दरवाज़े खुद बंद करे इससे पहले आपको बोलना बंद कर देना चाहिए। यदि आप उस हद तक प्रतीक्षा करेंगे कि जहाँ वे खुद दरवाज़ा बंद करे, तो आपके शब्द व्यर्थ जाएंगे। बात करते समय अहंकार रहित शब्द का प्रयोग करें, खासकर बड़े बच्चों के साथ। मैत्री बनाए रखें
स्वयं को सुधारेयह माता-पिता की सबसे अहम् और सूक्ष्मतम भूमिका है। शुद्ध प्रेम आपके भीतर तभी उत्पन्न होगा जब आप शुद्ध होंगे, अर्थात् क्रोध, मान, माया, लोभ आदि से मुक्त होंगे तभी। यदि आप में सुधार होगा, तो आपकी हाज़िरी से ही सब कुछ सुधर जाएगा। जो पहले खुद को सुधारता है वह फिर दूसरों को सुधार सकता है। सुधार हुआ एसा कब कहा जा सकता है? जब आप डांटते हैं, तब भी बच्चा आपके डांटने के बाद प्यार को मेह्सुस करे। आप डांट सकते हैं, लेकिन यही चीज़ अगर आप प्यार से करे तो दूसरे व्यक्ति में सुधार होगा। यदि माता-पिता अच्छे हैं, तो बच्चे भी अच्छे होंगे, वे समझदार होंगे। करें, अपनेआप थोड़ा अंतर तप करे, लेकिन बच्चों को नैतिक मूल्यों से समृद्ध बनाएं। बच्चों के जीवन में मां की क्या भूमिका होती है?माँ अपने बच्चों की पहली 'शिक्षिका' और 'परिवार' बच्चों की पहली 'पाठशाला' होती है। दुनिया में हर व्यक्ति के अनेकों रिश्ते होते हैं और हर रिश्ते को हमसे कुछ पाने की आस होती है लेकिन 'माँ' का ही एक ऐसा रिश्ता है जो जीवनपर्यन्त सिर्फ देना जानती है, लेना नहीं।
बच्चों के शारीरिक विकास में माता पिता की क्या भूमिका है?माता-पिता का दायित्व है कि घर की भौतिक दशा, जलवायु, प्रकाश ह सभी तत्वों का ध्यान रखें जिससे कि बच्चों का शारीरिक विकास सन्तुलित और अपेक्षित रूप में हो सके। (ii) जो बच्चे शैशवावस्था अथवा बाल्यावस्था में अक्सर बीमार पड़ते रहते हैं, उनका शारीरिक विकास उचित रूप से नहीं हो पाता।
परिवार में माता पिता की क्या भूमिका होती है?पिता एक उम्मीद, एक आस, एक हिम्मत और विश्वास है । पिता संघर्ष की आँधियों में हौसलों की दीवार की तरह है जो परेशानियों से लड़ने के लिए हौसला देता है । पिता परिवार की जिम्मेदारियों से लदी उस रथ का सारथी है जो परिवार में सबको बराबर का हक़ दिलाता है । हमारी भारतीय संस्कृति में माता-पिता दोनों का स्थान सर्वोच्च है ।
बालक की शिक्षा में परिवार की क्या भूमिका है?परिवार बालक के लिये प्रथम पाठशाला के रूप में माना जाता है। बालक जब पैदा होता है तब उसको पूर्ण संरक्षण देने का दायित्व परिवार के अन्य बड़े सदस्यों का होता है। परिवार में रहकर बालक शारीरिक रूप से विकास करता है और मानवोचित गुणों को अपनाने की क्रिया को सीखता है। बालक का स्थायी विकास भी परिवार में ही रहकर होता है।
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