बालक की कितनी अवस्था होती है? - baalak kee kitanee avastha hotee hai?

बालक की कितनी अवस्था होती है? - baalak kee kitanee avastha hotee hai?
बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएँ

  • विकास से आपका क्या अभिप्राय है? 
  • बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन कौन-सी हैं?
    • 1. जन्म से पूर्व की अवस्था-
    • 2. शैशवावस्था-
    • 3. पूर्व बाल्यावस्था —
    • 4. उत्तर बाल्यावस्था –
    • 5. किशोरावस्था –
    • 6. प्रौढ़ावस्था —
    • Important Links
  • Disclaimer

विकास से आपका क्या अभिप्राय है? 

बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएँ | Bal Vikas ki Vibhinn Avastha-विभिन्न मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि विकास भिन्न-भिन्न अवस्थाओं का लांघने वाली एक प्रक्रिया है। बच्चों के सम्बन्ध में किये गये विभिन्न प्रकार के अध्ययनों से भी यह स्पष्ट होता है कि भिन्न भिन्न आयु में बच्चों में विशिष्ट प्रकार के विकास होते हैं। यही कारण है कि एक विशेष अवस्था में होने वाले विकास को हम इस अवस्था से पहले और बाद की अवस्थाओं में होने वाले विकास से अलग कर सकते हैं। विकास की प्रत्येक अवस्था की अपनी विशिष्ट व्यवहार शैली होती है। हालांकि यह सत्य है कि विकास की इन विभिन्न अवस्थाओं के बीच कोई ऐसी निश्चित रेखा नहीं है, जो इनको एक-दूसरे से अलग कर सकती है। फिर भी बच्चों के बारे में किये गये विभिन्न अध्ययनों के आधार पर यह पता चलता है कि बच्चों की विकास प्रणाली को विभिन्न विकासात्मक अवस्थाओं में बांटा जा सकता है। विकासात्मक अवस्थाओं की शुरुआत गर्भधारण के समय से शुरू होती है तथा व्यक्ति जब तक परिपक्वावस्था को प्राप्त नहीं कर लेता है, तब तक चलती रहती है तथा विकास की गति इन भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में मन्द या तीव्र बनी रहती है। मुख्य रूप से बच्चों की विकासात्मक प्रणाली की निम्नलिखित बहुत-सी अवस्थायें पाई जाती हैं, जिनमें एक विशिष्ट प्रकार का विकास बच्चे की उम्र विशेष में दिखाई देता है।

बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन कौन-सी हैं?

विकास की विभिन्न अवस्थाएँ-व्यक्ति के विकास की प्रक्रिया के सम्बन्ध में विद्वान एकमत नहीं हैं। अलग-अलग विद्वानों ने विकास की विभिन्न अवस्थाओं के सम्बन्ध में अलग-अलग विचार प्रकट किये हैं। विकास की विभिन्न अवस्थाओं के वर्गीकरण के बारे में कुछ महत्त्वपूर्ण विद्वानों के विचार इस प्रकार से

1. रॉस ने विकास की प्रमुख रूप से चार निम्नलिखित अवस्थायें बतलायी हैं

(i) शैशवास्था- 1 से 3 वर्ष तक

(ii) प्रारंभिक बाल्यवस्था - 3 से 6 वर्ष तक

(iii) उत्तर बाल्यावस्था 6 से 12 वर्ष तक

(iv) किशोरावस्था - 12 से 18 वर्ष तक

2. शैले ने विकास की प्रक्रिया को निम्नलिखित अवस्थाओं में बांटा है-

(i) शैशवास्था जन्म से लेकर 5 वर्ष तक

(ii) बाल्यावस्था-6 से लेकर 12 वर्ष तक

(iii) किशोरावस्था-12 से लेकर 18 वर्ष तक

3. कालसनिक ने विकास की प्रक्रिया का निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकरण किया है-

(i) गर्भाधान से लेकर जन्म समय तक- पूर्व जन्म काल

(ii) नवशैशव जन्म से लेकर 3 या 4 सप्ताह तक

(iii) आरंभिक शैशव-1 से लेकर 15 महीने तक।

(iv) अंतर शैशव- 15 से लेकर 30 महीने तक

(v) पूर्व बाल्यावस्था - 2 से लेकर 5वर्ष तक।

(vi) मध्य बाल्यावस्था -6 से लेकर 12 वर्ष तक

(vii) किशोरावस्था - 12 से लेकर 21 वर्ष तक

4. ई.वी. हरलॉक ने विकास की अवस्थाएँ निम्न प्रकार से दी हैं-

(i) जन्म-पूर्व की अवस्था - गर्भाधान से जन्म तक का समय अर्थात् 280

(ii) शैशवावस्था - जन्म से लेकर 2 सप्ताह

(iii) शिशुकाल - 2 वर्ष तक

(iv) बाल्यकाल 2 से 11 या 12 वर्ष तक ।

(a) पूर्व बाल्यकाल - 6 वर्ष तक।

(b) उत्तर बाल्यकाल - 7 से 12 वर्ष तक ।

(v) किशोरावस्था -11 से 13 वर्ष से लेकर 20-21 वर्ष तक की अवधि।

(a) प्राक्किशोरावस्था- लड़कियों में 11-13 वर्ष तक लड़कों में एक वर्ष पश्चात् ।

(b) पूर्व-किशोरावस्था

(c) किशोरावस्था उपरोक्त वर्गीकरणों को ध्यान में रखते हुए विकास की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है-

1. जन्म से पूर्व की अवस्था-

विकास की यह अवस्था गर्भधारण से लेकर बालक के जन्म लेने तक की अवस्था है। माता के रजकण डिम्ब तथा पिता के शुक्राणु की जैसे ही निषेचन क्रिया होती है, वैसे ही भ्रूण का विकास प्रारंभ हो जाता है। इस अवस्था में भ्रूण नौ महीने तक तेज गति से माता के गर्भ में विकसित होता रहता है। इस अवस्था के सूक्ष्म निषेचित कोष को नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता। बाद में यह सूक्ष्म निषेचित कोष पूर्ण विकसित बच्चे का रूप धारण कर लेता है। विकास की इस अवस्था को मुख्य रूप में तीन निम्नलिखित श्रेणियों में बाँटा जा सकता है-

(i) डिम्ब अवस्था-

इस अवस्था को बीजावस्था भी कहते हैं। डिम्ब अवस्था की अवधि गर्भाधारण से लेकर दो सप्ताह तक होती है।

(ii) भ्रूण-अवस्था-

यह अवस्था दो से लेकर आठ महीने तक होती है। इस अवस्था में जीव भ्रूण कहलाता है। इस अवधि में भ्रूण में अनेक प्रकार के बाह्य तथा आंतरिक अंगों का विकास होता है। दो महीने के अंत तक भ्रूण की आकृति मानव का रूप धारण कर लेती है।

(iii) गर्भस्थ शिशु अवस्था-

विकास की यह अवस्था आठ सप्ताह से लेकर जन्म काल तक की होती है। इस अवस्था के अंतर्गत भ्रूण अवस्था में जिन बाह्य व आंतरिक अंगों का विकास होता है, वह निरंतर चलता है तथा जीव की सभी ज्ञानेन्द्रियों का विकास भी इसी अवस्था में शुरू हो जाता है।

2. शैशवावस्था-

 शैशवावस्था भावी जीवन संरचना की आधारशिला होती है। व्यक्ति की अभिवृद्धि तथा विकास में शैशवावस्था का निर्णायक महत्त्व होता है।

गुडेनफ के शब्दों में-व्यक्ति का जितना भी मानसिक विकास होता है, उसका आधा तीन वर्ष की आयु तक हो जाता हैं।

ऐडलर के मत से- बालक के जन्म के कुछ माह बाद ही यह निश्चित किया जा सकता है कि जीवन में उसका क्या स्थान है।

स्ट्रांग के अनुसार - जीवन के प्रथम दो वर्षों में बालक अपनी भावी जीवन का शिलान्यास करता है। यद्यपि किसी आयु में उसमें परिवर्तन हो सकता है, पर प्रारम्भिक प्रवृत्तियाँ एवं प्रतिमान सदैव बने रहते

यह अवस्था बालक के जन्म से लेकर दो वर्ष तक चलती है। जन्म के बाद पहले दो सप्ताह तक शिशु अपनी बाहरी वातावरण के साथ पूर्ण रूप से समायोजन स्थापित कर लेता है। इस अवधि के अंतर्गत विकास की गति बहुत कम होती है। दो सप्ताह के पश्चात् शिशु के विकास की प्रक्रिया बहुत अधिक तीव्र हो जाती हैं। इस अवधि में बालकों में संवेदी तथा मांसपेशीय कौशलों का विकास होता जाता है। दूसरे वर्ष के अंत तक बच्चों में पर्याप्त मात्रा में क्रियात्मक कौशलों का विकास होता जाता है। इस अवस्था के दौरान बालक अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरों पर आश्रित रहता है। परिणामस्वरूप वह स्वयं उठने, बैठने, खेलने, चलने जैसी क्रियायें करना शुरू कर देता है।

3. पूर्व बाल्यावस्था —

विकास की यह अवस्था 2 वर्ष से लेकर 6 या 7 वर्ष तक चलती है। इस अवस्था में बालक का विकास शैशवावस्था की भांति तीव्रता से नहीं होता है। पूर्व बाल्यावस्था में बालक बोलने सम्बन्धी कौशलों तथा अन्य क्रियात्मक कौशलों जैसे-गेंद फेंकना, चलना, दौड़ना और ठोकर मारना आदि क्रियायें सीख जाता है। तीन वर्ष की आयु में बालक वयस्कों की भाषा का प्रयोग करना सीख जाता है, व लगभग समायोजन करना भी सीख जाता है। इस अवस्था में बालक प्रश्न पूछना एवं उत्तर देना भी सीख जाता है।

4. उत्तर बाल्यावस्था –

यह अवस्था 6-7 वर्ष से लेकर 10-11 वर्ष तक की होती है। इस अवस्था में बालकों में पूर्ण आत्मविश्वास व विभिन्न कौशलों का विकास होता है। विकास के इस अवस्था की मुख्य विशेषता बालक का समाजीकरण है। इस अवस्था में बालक विद्यालय जाना प्रारंभ कर देता है और अपने संगी साथियों के साथ रहकर जीवन की वास्तविकताओं से परिचित होने लगता है। बालक की संगी साथियों के साथ विशेष लगाव होने के कारण इस अवस्था में बालक में सुझाव ग्रहणशीलता, अधिक पाई जाती है। इस अवस्था के अंतर्गत बालक पढ़ना, लिखना तथा अपने साथियों के साथ प्यार व प्रतियोगिता की भावना को ग्रहण करना सीख लेता है।

5. किशोरावस्था –

किशोरावस्था अर्थात Adolescence का अर्थ है To grow maturity अर्थात् परिपक्वता की ओर बढ़ना। यह अवस्था 11-12 वर्ष से लेकर 21 वर्ष तक मानी जाती हैं इस अवस्था की शुरुआत वयःसन्धि अवस्था से आरंभ हो जाती है। विकास की इस अवस्था में बालकों में विकास बहुत तीव्र गति से होता है। लड़कों की आवाज भारी हो जाती है एवं प्रजनन संस्थान में भी तेजी से परिपक्वता आ जाती है। विकास की इस अवस्था में किशोर एवं किशोरियों में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण बढ़ जाता है, तथा तीव्र परिवर्तनों के कारण उनके मन में काफी तनाव उत्पन्न हो जाता है और उनमें संवेदनशीलता काफी बढ़ जाती है। इस अवस्था में माता-पिता का सफल व सही निर्देशन किशोर के भावी जीवन के निर्धारण की नींव का काम करता है। किशोरावस्था की मुख्य विशेषता किशोरों में पहचान पाने की इच्छा का उत्पन्न होना है। विकास की यह अवस्था किशोरों की सबसे नाजुक अवस्था हैं इस अवस्था के दौरान किशोरों में तर्कशक्ति तथा चिंतन शक्ति का विकास हो जाता है।

6. प्रौढ़ावस्था —

विकास की यह अवस्था 12 वर्ष से लेकर 40 वर्ष तक की अवस्था है। इस अवस्था तक पहुंचते-पहुंचते व्यक्ति पूर्णरूप से परिपक्वता को प्राप्त कर लेता है। व्यक्तियों में परिपक्वता को प्राप्त करने में वैयक्तिक विभिन्नता पाई जाती है अर्थात् कुछ व्यक्ति पूर्ण रूप से परिपक्वता को शीघ्र प्राप्त कर लेते हैं, कुछ देर से प्रौढ़ावस्था में व्यक्ति पर भिन्न प्रकार की जिम्मेदारियों, कर्तव्यों तथा उपलब्धियों को प्राप्त करने का भार बढ़ जाता है। जिन व्यक्तियों को अपने माता-पिता व परिवार के अन्य सदस्यों से संपूर्ण प्रेम मिलता है, वे विभिन्न प्रकार के उत्तरदायित्वों व कर्तव्यों का निर्वाह अच्छी प्रकार से कर पाते हैं। जबकि पर्याप्त स्नेह व प्रेम से वंचित रहने वाले व्यक्तियों का अपने जीवन के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण विकसित हो जाता है।

अतः उपरोक्त अवस्थाओं के वर्णन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि विकास एक निरंतर व सतत् चलने वाली प्रक्रिया जो जीवन भर चलती रहती है।

  • विकास के प्रमुख सिद्धांत-Principles of Development in Hindi

Important Links

  • श्रवण बाधित बालक का अर्थ तथा परिभाषा
  • श्रवण बाधित बालकों की विशेषताएँ Characteristics at Hearing Impairment Children in Hindi
  • श्रवण बाधित बच्चों की पहचान, समस्या, लक्षण तथा दूर करने के उपाय
  • दृष्टि बाधित बच्चों की पहचान कैसे होती है। उनकी समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
  • दृष्टि बाधित बालक किसे कहते हैं? परिभाषा Visually Impaired Children in Hindi
  • दृष्टि बाधितों की विशेषताएँ (Characteristics of Visually Handicap Children)
  • विकलांग बालक किसे कहते हैं? विकलांगता के प्रकार, विशेषताएँ एवं कारण बताइए।
  • समस्यात्मक बालक का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, कारण एवं शिक्षा व्यवस्था
  • विशिष्ट बालक किसे कहते हैं? यह कितने प्रकार के होते हैं?
  • प्रतिभाशाली बालकों का अर्थ व परिभाषा, विशेषताएँ, शारीरिक विशेषता
  • मानसिक रूप से मन्द बालक का अर्थ एवं परिभाषा
  • अधिगम असमर्थ बच्चों की पहचान
  • बाल-अपराध का अर्थ, परिभाषा और समाधान
  • वंचित बालकों की विशेषताएँ एवं प्रकार
  • अपवंचित बालक का अर्थ एवं परिभाषा
  • समावेशी शिक्षा का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ और महत्व
  • एकीकृत व समावेशी शिक्षा में अन्तर
  • समावेशी शिक्षा के कार्यक्षेत्र
  • संचयी अभिलेख (cumulative record)- अर्थ, परिभाषा, आवश्यकता और महत्व, 
  • समावेशी शिक्षा (Inclusive Education in Hindi)
  • समुदाय Community in hindi, समुदाय की परिभाषा,
  • राष्ट्रीय दिव्यांग विकलांग नीति 2006
  • एकीकृत व समावेशी शिक्षा में अन्तर
  • प्रथम विश्व युद्ध (first world war) कब और क्यों हुआ था?
  • 1917 की रूसी क्रान्ति - के कारण, परिणाम, उद्देश्य तथा खूनी क्रान्ति व खूनी रविवार
  • फ्रांस की क्रान्ति के  कारण- राजनीतिक, सामाजिक, तथा आर्थिक
  • द्वितीय विश्व युद्ध 1939-1945 (2nd world war)- के कारण और परिणाम
  • अमेरिकी क्रान्ति क्या है? तथा उसके कारण ,परिणाम अथवा उपलब्धियाँ
  • औद्योगिक क्रांति का अर्थ, कारण एवं आविष्कार तथा उसके लाभ
  • धर्म-सुधार आन्दोलन का अर्थ- तथा इसके प्रमुख कारण एवं परिणाम 

Disclaimer

Disclaimer:Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us:

बच्चों की कितनी अवस्थाएं होती हैं?

छह वर्ष का बालक जन्म से लेकर पाँच वर्ष की अवस्था शैशव अवस्था कही जाती है। छह वर्ष की अवस्था से ही बाल्यकाल माना गया है। ... .
किशोरपूर्वावस्था यह अवस्था 10 से 13 वर्ष की अवस्था है। आधुनिक मनोविज्ञान के अनुसार यह अवस्था भावों के अंतर्हित होने की अवस्था कहलाती है। ... .
किशोरावस्था मुख्य लेख किशोरावस्था.

2 से 6 वर्ष तक की अवस्था को क्या कहते हैं?

इसलिए, यह स्पष्ट हो जाता है कि दो वर्ष से छह वर्ष की उम्र को बाल्यावस्था कहा जाता है।

अवस्था कितने प्रकार के हैं?

अवस्था.
१.१ अर्थ.
१.२ उदाहरण.
१.३ संधि.
१.४ प्रकाशितकोशों से अर्थ १.४.१ शब्दसागर.

विकास की चार अवस्थाएं कौन कौन सी है?

मानव विकास की अवस्थाएं.
मानव विकास की अवस्थाओं को निम्नलिखित भागों में बांटा गया है-.
गर्भावस्था.
शैशवावस्था – जन्म से 5/6 वर्ष.
बाल्यावस्था – 6 से 12 वर्ष.
किशोरावस्था – 12 से 18 वर्ष.
प्रौढ़ावस्था – 18 वर्ष से ऊपर.