भारतीय कृषि समस्या
भारत अपना कृषि प्रधान देश है जहां लगभग 70% जनसंख्या कृषि पर निर्भर है परंतु कृषि की दिशा संतोषजनक नहीं है। जनसंख्या की अनियंत्रित वृद्धि ने कृषि को बुरी तरह प्रभावित किया किया है। हालांकि स्वतंत्रता के पश्चात कृषि विकास के लिए अनेक कार्य हुए हैं इसके बावजूद भारतीय कृषि में अनेक समस्याएं हैं वह नीचे हम लोग समझेंगे निम्न तरह की है
नंबर 1 प्रति व्यक्ति भूमि की उपलब्धता कम होना
भारत में जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ रही है फलस्वरूप प्रति व्यक्ति उपलब्ध भूमिका औसत निरंतर कम होता जा रहा है। 1951 में अवसाद जीरो पॉइंट 75 हेक्टेयर प्रति व्यक्ति था 1961 में 0.30 प्रतिशत 1971 में 0.29 और 1985 में जीरो पॉइंट 15 हेक्टेयर प्रति व्यक्ति हो गया है। विश्व का यह औसत 4.5 प्रति व्यक्ति है इस दृष्टिकोण से भारत में प्रति व्यक्ति भूमि की आवश्यकता अत्यंत कम है।
नंबर दो कृषि भूमि का असंतुलित वितरण
भारत में कृषि भूमि का वितरण असमान है खेतों के छोटे आकार व विक्रय होने के कारण आधुनिक विधि से कृषि करना एक समस्या मूलक है।
स्वतंत्रता के बाद भूमि सुधार तथा चकबंदी कार्यक्रम चलाने जाने के बाद भी 1% धनी किसानों जमीदारों के पास कुल भूमि का 20% है। देश में 10% किसानों के पास समस्त भूमि का 50% है और देश के 89% किसानों के पास कुल भूमि का मात्र 30% है। इस प्रकार एक किसान के पास औसतन 0 पॉइंट 1 हेक्टेयर भूमि है और यह भी अनेक छोटे-छोटे खेतों में बाटी हुई है।
नंबर 3 फसलों की न्यून उत्पादन
भारतीय कृषि की मुख्य समस्या फसलों की न्यून या कम उत्पादन है। देश में फसलों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन विश्व के कई देशों से कम है जैसा कि नीचे लिखे तथ्यों से स्पष्ट है
गेहूं भारत में गेहूं की प्रति हेक्टेयर आवश्यक उपाध्य 18 पॉइंट 7 क्विंटल है जबकि डेनमार्क तथा नीदरलैंड में यही औसत क्रमशाह 41 पॉइंट सिक्स है तथा 40 पॉइंट 4 क्विंटल है।
कपास की प्रति हेक्टेयर उप आज भारत में मात्र 1.9 क्विंटल है जो कि सोवियत रूस के 8 पॉइंट 4 तथा संयुक्त अरब गणराज्य के 7.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से काफी कम है। विश्व का अवसत 3 पॉइंट 4 क्विंटल है।
नंबर 4 वर्षा की अनिश्चितता
वर्षा की अनिश्चितता मूलता है प्रकृति जन समस्या है। भारतीय कृषि विशेषकर खरीफ फसलें मानसूनी वर्षा पर निर्भर है। मानसून के आने तथा लौटने में अनिश्चित रहती है। कभी-कभी मानसून काल के बीच में लंबा अवर्षण काल भी आ जाता है।
इससे कृषि फसलों का उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित होता है। रवि की फसल पर मौसमी दशाओं का बहुत प्रभाव पड़ता है शीतकालीन वर्षा समय पर होने से गेहूं की फसल अच्छी रहती है। जिस वर्षा नहीं होती उस वर्ष रबी की फसल प्रभावित
भारतीय कृषि मुख्यतः मानसून पर आश्रित हैं। जब कभी मानसूनी वर्षा नहीं हो पाती तब देश के अधिकांश क्षेत्रों में सूखे की स्थिति हो जाती है जहां कहीं सिंचाई की सुविधाएं पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होती है वही फसल का उत्पादन होता है। देश की कुल कृषि भूमि के मात्र 44 पॉइंट 83 प्रतिशत भाग में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है। शेष 55 पॉइंट 17 प्रतिशत भाग आज भी मानसून पर निर्भर है। इस प्रकार भारत में सिंचाई के साधनों की कमी है सिंचाई के साधन के लिए नहर की दौड़ करना चाहिए।
जोताइ का छोटा आकार
भारतीय कृषि के समक्ष एक प्रमुख समस्या यह है कि अधिकांश किसानों के जोत खेत का आकार बहुत छोटा है। भारत में जोत के औसत आकार 2 हेक्टेयर से कम है जबकि यह औसत न्यूजीलैंड में 184 संयुक्त राज्य राष्ट्र अमेरिका में 58 ब्रिटेन में 24 पॉइंट 5 एवं हालैंड में 26 हेक्टेयर है।
नंबर 7 किसानों में गरीबी व अशिक्षा की कमी
भारतीय कृषि के समक्ष सबसे गंभीर समस्या किसानों की गरीबी एवं अशिक्षा है। देश में अधिकांश कृषकों के पास आधुनिक कृषि के लिए विनियोग क्षमता उन्नत बीज सिंचाई की सुविधा उर्वरक यंत्र एवं राज रासायनिक दवाइयों की कमी है। यह कृषा के खेत में किसी प्रकार बीज डाल देते हैं
तथा साधारण निराई गुड़ाई के पश्चात जो भी उपज मिल जाए उसी से संतुष्टि कर लेते हैं। यही यदि किसी तरह उपयुक्त साधन उपलब्ध हो जाए तो कृषक शिक्षा के अभाव में इन साधनों का समुचित उपयोग नहीं कर पाते फलस्वरूप उत्पादन अत्यंत कम होता है।
और कई समस्याएं
उपयुक्त समस्याओं के अतिरिक्त कुछ और भी अनेक समस्याएं भारतीय कृषि के समक्ष विद्यमान हैं जिसमें पशुओं की दयनीय दशा पूंजी की अपर्याप्त था भूमि की उर्वरा शक्ति खराबी विक्रय व्यवस्था का ठीक ना होना आदि प्रकार की समस्याएं किसानों को सहना पड़ता है तो दोस्तों भारतीय कृषि की समस्याएं यही है तो अब हमें उम्मीद है कि आप लोगों को यह जानकारी पसंद आई होगी और आसानी से समझ में आ गई होगी यदि समझ में आ गई हो तो कमेंट बॉक्स में जरूर बताइए और यदि कोई समस्या हो तो कमेंट बॉक्स के थ्रू ही बताना है और उस कमेंट का रिप्लाई आपको जरूर मिलेगी धन्यवाद |
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