UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi गद्य गरिमा Chapter 1 भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? (भारतेन्दु हरिश्चन्द्र) are part of UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi . Here we have given UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi गद्य गरिमा Chapter 1 भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? (भारतेन्दु हरिश्चन्द्र). Show
लेखक का साहित्यिक परिचय और भाषा-शैली प्रश्न 1. लै ब्योढा ठाढे भये, श्री अनिरुद्ध सुजान। पाँच वर्ष की आयु में माता के वात्सल्य तथा दस वर्ष की आयु में पिता के प्यार से वंचित होने वाले भारतेन्दु की आरम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। इन्होंने घर पर ही हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, बँगला आदि भाषाओं का अध्ययन किया। तेरह वर्ष की अल्पायु में मन्नो देवी नामक युवती के साथ इनका विवाह हो गया। भारतेन्दु जी यात्रा के बड़े शौकीन थे। इन्हें जब भी समय मिलता, ये यात्रा के लिए निकल जाते थे। ये बड़े उदार और दानी पुरुष थे। अपनी उदारता और दानशीलता के कारण इनकी आर्थिक दशा शोचनीय हो गयी और ये ऋणग्रस्त हो गये। परिणामस्वरूप श्रेष्ठि-परिवार में उत्पन्न हुआ यह महान् साहित्यकार ऋणग्रस्त होने के कारण, क्षयरोग से पीड़ित हो 35 वर्ष की अल्पायु में ही सन् 1885 ई० में दिवंगत हो गया।साहित्यिक सेवाएँ: प्राचीनता के पोषक और नवीनता के उन्नायक, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र हिन्दी खड़ी बोली के ऐसे साहित्यकार हुए हैं, जिन्होंने साहित्य के विभिन्न अंगों पर साहित्य-रचना करके हिन्दी-साहित्य को समृद्ध बनाया। इन्होंने कवि, नाटककार, इतिहासकार, निबन्धकार, कहानीकार और सम्पादक के रूप में हिन्दी-साहित्य की महान् सेवा की है। नाटकों के क्षेत्र में इनकी देन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। भारतेन्दु जी से पूर्व खड़ी बोली गद्य के क्षेत्र में अलग-अलग दो शैलियाँ प्रचलित थीं। एक शैली में अरबी-फारसी के शब्दों की अधिकता थी तो दूसरी में संस्कृत के तत्सम शब्दों की प्रधानता। भारतेन्दु जी ने इन शैलियों के मध्य मार्ग का अनुसरण करके हिन्दी गद्य को ऐसा व्यवस्थित स्वरूप दिया, जिसमें
व्यावहारिक उर्दू और फारसी के शब्दों के साथ-साथ प्रचलित संस्कृत और अंग्रेजी के शब्दों का भी प्रयोग था।। भारतेन्दु जी की साहित्य-रचना का काल भारत की परतन्त्रता का युग था।उस समय देश की सामाजिक और राजनीतिक दशा अत्यन्त दयनीय वे शोचनीय थी। इसलिए इन्होंने अपने साहित्य में समाज और देश की दयनीय स्थिति का चित्रण करके, देश की प्रगति के लिए लोगों का आह्वान किया। इनके नाटकों में समाज-सुधार, देशप्रेम, राष्ट्रीय चेतना और देशोद्धार के स्वर मुखरित हुए हैं। भारतेन्दु जी ने साहित्य के विभिन्न अंगों अर्थात् विविध विधाओं की पूर्ति की। इन्होंने हिन्दी गद्य के क्षेत्र में नवयुग का सूत्रपात किया और नाटक, निबन्ध, कहानी, इतिहास आदि विषयों पर साहित्य-रचना की। अपने निबन्धों में इन्होंने तत्कालीन सामाजिक, साहित्यिक और राजनीतिक परिस्थितियों का चित्रण किया। इतिहास, पुराण, धर्म, भाषा आदि के अतिरिक्त इन्होंने संगीत आदि पर निबन्ध-रचना की तथा सामाजिक रूढ़ियों पर व्यंग्य भी किये। काव्य के क्षेत्र में भारतेन्दु जी ने कविता को राष्ट्रीयता की ओर मोड़ा। इनके काव्य की मुख्य भाषा ब्रज भाषा और गद्य की प्रमुख भाषा खड़ी बोली थी। भारतेन्दु जी ने एक यशस्वी सम्पादक के रूप में कवि वचन सुधा’ (1868 ई०) और ‘हरिश्चन्द्र मैगजीन (1873 ई०) पत्रिकाओं का सम्पादन किया, जिससे हिन्दी गद्य के विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ। आठ अंकों के उपरान्त ‘हरिश्चन्द्र मैगजीन’ का नाम बदलकर ‘हरिश्चन्द्र चन्द्रिका हो गया। इस प्रकार भारतेन्दु जी ने व्यावहारिक हिन्दी भाषा को अपनाकर, विविध विषयों पर स्वयं निबन्ध लिखकर और अन्य लेखकों को लिखने के लिए प्रेरित करके हिन्दी साहित्य की महान् सेवा की और एक नये युग का सूत्रपात किया। कृतियाँ: नाटक: निबन्ध-संग्रह: इतिहास: कविता-संग्रह: यात्रा वृत्तान्त: जीवनी: भाषा और शैली (अ) भाषागत विशेषताएँ भाषा के समन्वित रूप का प्रयोग: लोकोक्तियों और मुहावरों का प्रयोग: (ब) शैलीगत विशेषताएँ: (1) वर्णनात्मक शैली: (2) भावात्मक शैली: (3) विवेचनात्मक शैली: (4) हास्य-व्यंग्यात्मक शैली: (5) गवेषणात्मक शैली: (6) विवरणात्मक शैली: (7) विचारात्मक शैली: साहित्य में स्थान: गद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 1: (ii) रेखांकित अंश की व्याख्या: भारतेन्दु जी कहते हैं कि यह देश का बड़ा दुर्भाग्य है कि भारतवासियों में विविध प्रकार से गुणी तथा सभी प्रकार की योग्यता रखने वाले लोग हैं, परन्तु वे सही नेतृत्व के अभाव में अभी तक अपनी उन्नति नहीं कर सके हैं। हमारे देश के लोगों को लगाड़ी की संज्ञा दी जा सकती है। जैसे रेलगाड़ी में ऊँचे किराये तथा सामान्य किराये के डिब्बे लगे रहते हैं, परन्तु इंजन के अभाव में वे सभी अपनी जगह स्थिर रहते हैं, आगे नहीं बढ़ पाते; उसी प्रकार भारत के लोगों में भी उच्च और मध्यम श्रेणी के विद्वान्, वीर एवं शक्ति-सम्पन्न सभी प्रकार की प्रतिभाओं से सम्पन्न लोग हैं, परन्तु नेतृत्वहीनता के कारण वे अपनी उन्नति के लिए स्वयं कोई भी कार्य नहीं कर पाते। यदि भारतीयों को सही मार्गदर्शक की सत्प्रेरणा प्राप्त हो जो उन्हें उनके बल, पौरुष और ज्ञान का स्मरण दिला सके, तो वे कठिन-से-कठिन और बड़े-से-बड़े कार्य को भी आसानी से कर सकते हैं। मात्र एक नेता के अभाव में उसकी सारी शक्ति, ज्ञान और योग्यता व्यर्थ हो जाती है। (iii) लेखक ने देश के लोगों को रेलगाड़ी की संज्ञा दी है क्योंकि जिस प्रकार से रेलगाड़ी में ऊँचे किराए तथा सामान्य किराए के डिब्बे लगे रहते हैं किन्तु सभी इंजन के अभाव में अपनी जगह स्थिर रहते हैं उसी प्रकार देश के लोगों की स्थिति है। वे भी नेतृत्वहीनता के कारण उन्नति नहीं कर सकते। (iv) “का चुप साधि रहा बलवाना” लोकोक्ति के माध्यम से लेखक यह स्पष्ट करना चाहता है कि देश के लोग हनुमान जी की तरह हैं। जामवंत ने जिस प्रकार हनुमान जी को उनकी शक्ति का स्मरण कराया और वे समुद्र लाँघ गए, उसी प्रकार भारत के लोगों को प्रेरणादायी, सफल नेतृत्व की आवश्यकता है। (v) उपर्युक्त गद्यांश का आशय यह है हमारे देश के लोग प्रतिभावान एवं सभी प्रकार की योग्यता रखने वाले हैं, किन्तु उन्हें वे अपनी प्रतिभा से अनभिज्ञ हैं। यदि उनको कोई सही मार्गदर्शक मिल जाए तो वे क्या नहीं कर सकते! अर्थात् वे सब कुछ कर सकते हैं। प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से लेखक देशवासियों को स्वावलम्बी बनने की प्रेरणा प्रदान करता है। प्रश्न
2: (iii) लेखक ने जापान के निवासियों को जापानी टट्टुओं की संज्ञा दी है क्योंकि वे अधिक शक्तिशाली नहीं होते, फिर भी अपनी उन्नति के लिए वे प्रयत्नशील हैं। (v) “उस समय हिन्दू काठियावाड़ी खाली खड़े-खड़े टाप से मिट्टी खोदते हैं।” पंक्ति के माध्यम से भारतेन्दु जी भारतीयों की अकर्मण्यता और उदासीन-प्रवृत्ति से क्षुब्ध होकर कहते हैं कि संसार के सभी छोटे-बड़े देश उन्नति की दौड़ में निरन्तर आगे बढ़ते जा रहे हैं और हम भारतवासी अपने स्थान पर खड़े-खड़े पैरों से मिट्टी खोद रहे हैं। अमेरिकन, अंग्रेज, फ्रांसीसी आदि तुर्की घोड़ों की तरह तीव्र गति से प्रगति की दौड़ में एक-दूसरे से आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, किन्तु भारत के लोग निरन्तर पिछड़ते जा रहे हैं। इनका मानसिक और सामाजिक स्तर जो वर्षों पहले था, वही अब भी है। ये आज भी कुरीतियों और अन्धविश्वासों में जकड़े हुए हैं, इसीलिए स्वावलम्बी नहीं हैं। प्रश्न 3: प्रश्न 4: We hope the UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi गद्य गरिमा Chapter 1 भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? (भारतेन्दु हरिश्चन्द्र) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi गद्य गरिमा Chapter 1 भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? (भारतेन्दु हरिश्चन्द्र), drop a comment below and we will get back to you at the earliest. भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है प्रश्न उत्तर?UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi गद्य गरिमा Chapter 1 भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?. भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है पाठ का?धर्म में, घर के काम में, बाहर के काम में, रोजगार में, शिष्टाचार में, चाल चलन में, शरीर में, बल में, समाज में, युवा में, वृद्ध में, स्त्री में, पुरुष में, अमीर में, गरीब में, भारतवर्ष की सब आस्था, सब जाति,सब देश में उन्नति करो। सब ऐसी बातों को छोड़ो जो तुम्हारे इस पथ के कंटक हों।
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