भारत पहुंचने वाला पहला नाम कौन था? - bhaarat pahunchane vaala pahala naam kaun tha?

इसे सुनेंरोकें(1) 20 मई, 1498 ई. में वास्कोडिगामा ने भारत के पश्चिमी तट पर स्थित कालीकट बन्दरगाह पहुंचकर भारत एवं यूरोप के बीच नए समुद्री मार्ग की खोज की. (2) 1505 ई. में फ्रांसिस्को द अल्मोडा भारत में प्रथम पुर्तगाली वायसराय बनकर बनकर आया.

भारत में फ्रांसीसी असफल क्यों रहे?

इसे सुनेंरोकेंफ्रांसीसियों ने व्यापारिक राज्य की तुलना में व्यापार को गौण समझा । अतः फ्रांसीसी कम्पनी की आर्थिक स्थिति खराब हो गई । कम्पनी का सारा धन युद्धों में बेकार चला गया । फ्रांसीसी सरकार यूरोप और अमेरिका में व्यस्त रहने के कारण डूप्ले की योजनाओं का समर्थन नहीं कर सकी ।

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भारत में फ्रांस की हार के क्या कारण हैं?

इसे सुनेंरोकेंफलस्वरूप फ्रांस की शक्ति केवल विभाजित ही नहीं हुई, वरन् वह भारत की फ्रांसीसी कम्पनी को पर्याप्त सहायता भो नहीं दे सका। यूरोप में भी उसके शत्रुओं की संख्या अधिक हो गई थी। इसी के परिणामस्वरूप फ्रांस न केवल भारत में ही असफल हुआ, अपितु औपनिवेशक विस्तार में भी वह अंग्रेजों का मुकाबला न कर सका।

भारत में सबसे पहले आने वाले और सबसे बाद जाने वाले कौन थे?

इसे सुनेंरोकेंभारत में सबसे पहले आने वाले और सबसे बाद में जाने वाला पुर्तगाली (Portuguese) थे। Note : 1498 ई. में वास्को डि गामा के भारत आगमन के साथ भारत में सर्वप्रथम विदेशी यूरोपियों के रूप में पुर्तगालियों का आगमन हुआ था।

भारत में सबसे पहला अंग्रेज कौन आया?

इसे सुनेंरोकेंमाना जाता है कि भारत पहुंचने वाला पहला ब्रिटिश व्यक्ति थॉमस स्टीफंस नाम का एक अंग्रेजी जेसुइट पुजारी और मिशनरी था, जो अक्टूबर, 1579 में गोवा पहुंचा था।

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भारत में अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच संघर्ष के क्या कारण थे?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर – अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के मध्य संघर्ष के कारण अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के मध्य । संघर्ष का प्रमुख कारण उनकी आपसी व्यापारिक स्पर्धा थी। दोनों ही कम्पनियों की आकांक्षा थी कि वे भारत के विदेशी व्यापार पर एकाधिकार स्थापित कर लें।

भारत में फ्रांसीसी कब आए?

इसे सुनेंरोकेंभारत आने वाले अंतिम यूरोपीय व्यापारी फ्रांसीसी थे। फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1664 ई में लुई सोलहवें के शासनकाल में भारत के साथ व्यापार करने के उद्देश्य से की गयी थी। फ्रांसीसियों ने 1668 ई में सूरत में पहली फैक्ट्री स्थापित की और 1669 ई में मसुलिपत्तनम में एक और फैक्ट्री स्थापित की।

भारत में फ्रांसीसी की पराजय के क्या कारण थे?

इसे सुनेंरोकेंकर्नाटक का तीसरा युद्ध ( 1758-63 ) Karnata 3rd War लगभग 2 मास की यात्रा के पश्चात्‌ अप्रैल 1758 में वह भारत पहुंचा। इसी बीच अंग्रेज सिराजुद्दौला को पराजित कर बंगाल पर अपना अधिकार स्थापित कर चुके थे। इसके कारण अंग्रेजों को अपार धन मिला जिससे वे फ्रांसीसियों को दक्कन में पराजित करने में सफल हुए।

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स्टेटस जनरल की कुल सदस्य संख्या कितनी थी?

इसे सुनेंरोकेंनिर्वाचित प्रतिनिधियों की संख्या लगभग 1,200 थी, जिनमें से आधे ने थर्ड एस्टेट का गठन किया। फर्स्ट और सेकेंड एस्टेट्स में प्रत्येक में 300 थे।

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पणजी/कोच्ची. आज ही के दिन यानी 8  जुलाई 1497 को पुर्तगाली नाविक वास्को डी गामा भारत की खोज में निकला था। वह 20 मई 1498 को केरल के कोझीकोड जिले के कालीकट(काप्पड़ गांव) पहुंचा था। यहीं से कुछ दूर कोच्ची में वास्को की कब्र है। यहां से तीन बार वे पुर्तगाल गए और आये। वास्को के इंडिया आने के बाद पुर्तगाली भी भारत में आये और गोवा में अपने साम्राज्य स्थापित किया। वास्को डी गामा पहुंचे केरल...

कोच्ची में लगी वास्को डी गामा  का स्टेच्यू

- लिस्बन से यात्रा शुरू कर वे मोजाम्बिक पहुंचे। यहां के सुल्तान की मदद से 20 मई 1498 को वे कालीकट के तट पर पहुंच गए।
- कालीकट के राजा ने उनसे कारोबार करने की संधि की। 1502 को वास्को डी गामा फिर भारत आए और कोच्चि के राजा से व्यापार करने का समझौता किया।
- इसके तहत मसालों का कारोबार बनाए रखने की संधि हुई। 1524 में वास्को डी गामा तीसरी बार भारत पहुंचे और यहीं उनकी 24 मई 1524 को मौत हो गई।
- पहले उन्हें कोच्चि में ही दफनाया गया। बाद में 1538 में कब्र खोदी गई और वास्को डी गामा के अवशेषों को पुर्तगाल ले जाया गया। लिस्बन में आज भी उस जगह एक स्मारक है जहां से वास्को डी गामा पहली भारत यात्रा शुरू की थी। 


170 लोगों लेकर निकले, लेकिन पहुंचे सिर्फ 55
- वह यूरोप से भारत सीधी यात्रा करने वाले जहाजों के कमांडर थे, जो केप ऑफ गुड होप, अफ्रीका के दक्षिणी कोने से होते हुए भारत के समुद्री तट तक पहुंचे थे।
- उनकी इस यात्रा में 170 नाविकों के दल के साथ चार जहाज लिस्बन से रवाना हुए। भारत यात्रा पूरी होने पर मात्र 55 आदमी ही दो जहाजों के साथ वापिस पुर्तगाल पहुंच सके।
- वह मोजाम्बिक, मोम्बासा, मालिन्दी होते हुए भारत के कालीकट बंदरगाह पहुंचे। \'इंडियाज साइंटिफिक हेरिटेज\' नाम की बुक में सुरेश सोनी ने पुरातत्वविद डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर के हवाले से लिखा है कि वास्को डी गामा भारत एक खोजी व्यापारी की ही तरह आये थे, मगर एक गुजराती व्यापारी का पीछा करते हुए वह यहां पहुंचे।

क्या हुआ इंडिया आने का फायदा
- वास्को डी गामा का इस खोज ने पश्चिमी देशों के लिए भारत के दरवाजे खोल दिए।
- इस खोज से साथ वास्को डी गामा अपने साथ ईसाई-मुस्लिम संघर्ष भी साथ लेकर आए, जिसके चलते कालीकट राज्य को पुर्तगाल के साथ सैन्य संघर्ष करना पड़ा।
- अपनी इस खोज पूरी होने के बाद वास्को डी गामा को पुर्तगाल में राजकीय सम्मान दिया गया और उसे राजकीय उपाधि भी दी गई। 

काली मिर्च ले गये और हरी मिर्च दे गये
- वास्को डी गामा भारत से काली मिर्च पुर्तगाल ले जाते थे। उस समय तक भारत में हरी मिर्च की खेती नहीं होती थी।

- भारत में हरी मिर्च को पुर्तगाली ही 16वीं सदी में लेकर आए। आज भारत हरी मिर्च (मलयालम में मुलाकू) का सबसे बड़ा उत्पादक भी है।

भारत पहुंचने वाला पहला पुर्तगाली यात्री कौन था?

यूरोपीय शक्तियों में पुर्तगाली कंपनी ने भारत में सबसे पहले प्रवेश किया। भारत के लिये नए समुद्री मार्ग की खोज पुर्तगाली व्यापारी वास्कोडिगामा ने 17 मई, 1498 को भारत के पश्चिमी तट पर अवस्थित बंदरगाह कालीकट पहुँचकर की। वास्कोडिगामा का स्वागत कालीकट के तत्कालीन शासक जमोरिन (यह कालीकट के शासक की उपाधि थी ) द्वारा किया गया।

भारत आने वाला दूसरा पुर्तगाली कौन था?

वास्कोडिगामा के बाद भारत आने वाला दूसरा पुर्तगाली यात्री पेड्रो अल्ब्रेज कैब्राल था। जो 1500 ईसवी में यहां आया। वास्कोडिगामा भी दूसरी बार 1502 में यहां आया। पूर्वी जगत के काली मिर्च और मसालों के व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त करने के उद्देश्य से पुर्तगालियों ने 1503 में कोचीन में अपने पहले दुर्ग की स्थापना की।

पुर्तगाली यात्री कौन था?

वास्को दा गामा ने यूरोप से एशिया भारत के समुद्री मार्ग की खोज के छह साल बाद, यानी, 1505 में, भारत में पुर्तगाली की शक्ति फ्रांसेस्को डी अल्मेडा की नियुक्ति के साथ कोच्चि में पहले पुर्तगाली वाइसराय के रूप में शुरू हुई।

पुर्तगाली भारत छोड़कर कब गए?

वास्को डी गामा 1498 में भारत आए और इसके 12 वर्षों के भीतर पुर्तगालियों ने गोवा पर कब्ज़ा जमा लिया. 1510 से शुरू हुआ पुर्तगाली शासन गोवा के लोगों को 451 सालों तक झेलना पड़ा. 1961 में 19 दिसंबर को उन्हें आज़ादी मिली यानी भारत के आज़ाद होने के करीब साढ़े 14 साल बाद.