पाषाण युग (७०००–३००० ई.पू.)
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कांस्य युग (३०००–१३०० ई.पू.)
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लौह युग (१२००–२६ ई.पू.)
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मध्य साम्राज्य (२३० ई.पू.–१२०६ ईसवी)
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देर मध्ययुगीन युग (१२०६–१५९६ ईसवी)
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प्रारंभिक आधुनिक काल (१५२६–१८५८ ईसवी)
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औपनिवेशिक काल (१५०५–१९६१ ईसवी)
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श्रीलंका के राज्य
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राष्ट्र इतिहास
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क्षेत्रीय इतिहास
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विशेष इतिहास
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भारत का विभाजन माउण्टबेटन योजना के आधार पर निर्मित भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के आधार पर किया गया। इस अधिनियम में कहा गया कि 15 अगस्त 1947 को भारत व पाकिस्तान अधिराज्य नामक दो स्वायत्त्योपनिवेश बना दिए जायेंगें ब्रिटिश सरकार सत्ता सौंप देगी।[1] स्वतंत्रता के साथ ही 14 अगस्त को पाकिस्तान अधिराज्य (बाद में जम्हूरिया ए पाकिस्तान) और 15 अगस्त को संघ (बाद में भारत गणराज्य) की संस्थापना की गई। इस घटनाक्रम में मुख्यतः ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रान्त को पूर्वी पाकिस्तान और भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में बाँट दिया गया और इसी तरह ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रान्त को पश्चिमी पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त और भारत के पंजाब राज्य में बाँट दिया गया। इसी दौरान ब्रिटिश भारत में से सीलोन (अब श्रीलंका) और बर्मा (अब म्यांमार) को भी अलग किया गया, लेकिन इसे भारत के विभाजन में नहीं शामिल किया जाता है। इसी तरह 1971 में पाकिस्तान के विभाजन और बांग्लादेश की स्थापना को भी इस घटनाक्रम में नहीं गिना जाता है। नेपाल और भूटान इस दौरान स्वतन्त्र राज्य थे और इस बँटवारे से प्रभावित नहीं हुए।
15 अगस्त 1947 की आधी रात को भारत और पाकिस्तान कानूनी तौर पर दो स्वतन्त्र राष्ट्र बने।[2] लेकिन पाकिस्तान की सत्ता परिवर्तन की रस्में 14 अगस्त को कराची में की गईं ताकि आखिरी ब्रिटिश वाइसराॅय लुइस माउण्टबैटन, करांची और नई दिल्ली दोनों जगह की रस्मों में हिस्सा ले सके। इसलिए पाकिस्तान में स्वतन्त्रता दिवस 14 अगस्त और भारत में 15 अगस्त को मनाया गया।
भारत के विभाजन से करोड़ों लोग प्रभावित हुए। विभाजन के दौरान हुई हिंसा में करीब 10 लाख[3] लोग मारे गए और करीब 1.45 करोड़ शरणार्थियों ने अपना घर-बार छोड़कर बहुमत सम्प्रदाय वाले देश में शरण ली।
पृष्ठभूमि[संपादित करें]
भारत के ब्रिटिश शासकों ने हमेशा ही भारत में "फूट डालो और राज्य करो" की नीति का अनुसरण किया। उन्होंने भारत के नागरिकों को संप्रदाय के अनुसार अलग-अलग समूहों में बाँट कर रखा। उनकी कुछ नीतियाँ हिन्दुओं के प्रति भेदभाव करती थीं तो कुछ मुसलमानों के प्रति। 20वीं सदी आते-आते मुसलमान हिन्दुओं के बहुमत से डरने लगे और हिन्दुओं को लगने लगा कि ब्रिटिश सरकार और भारतीय नेता मुसलमानों को विशेषाधिकार देने और हिन्दुओं के प्रति भेदभाव करने में लगे हैं। इसलिए भारत में जब आज़ादी की भावना उभरने लगी तो आज़ादी की लड़ाई को नियंत्रित करने में दोनों संप्रदायों के नेताओं में होड़ रहने लगी।
सन् 1906 में ढाका में बहुत से मुसलमान नेताओं ने मिलकर मुस्लिम लीग की स्थापना की। इन नेताओं का विचार था कि मुसलमानों को बहुसंख्यक हिन्दुओं से कम अधिकार उपलब्ध थे तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस हिन्दुओं का प्रतिनिधित्व करती थी। मुस्लिम लीग ने अलग-अलग समय पर अलग-अलग मांगें रखीं। 1930 में मुस्लिम लीग के सम्मेलन में प्रसिद्ध उर्दू कवि मुहम्मद इक़बाल ने एक भाषण में पहली बार मुसलमानों के लिए एक अलग राज्य की माँग उठाई।[तथ्य वांछित] 1935 में सिंध प्रांत की विधान सभा ने भी यही मांग उठाई। इक़बाल और मौलाना मुहम्मद अली जौहर ने मुहम्मद अली जिन्ना को इस मांग का समर्थन करने को कहा।[तथ्य वांछित] इस समय तक जिन्ना हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्ष में लगते थे, लेकिन धीरे-धीरे उन्होने आरोप लगाना शुरू कर दिया कि कांग्रेसी नेता मुसलमानों के हितों पर ध्यान नहीं दे रहे। लाहौर में 1940 के मुस्लिम लीग सम्मेलन में जिन्ना ने साफ़ तौर पर कहा कि वह दो अलग-अलग राष्ट्र चाहते हैं। उन्होंने कहा:
"हिन्दुओं और मुसलमानों के धर्म, विचारधाराएँ, रीति-रिवाज़ और साहित्य बिलकुल अलग-अलग हैं।.. एक राष्ट्र बहुमत में और दूसरा अल्पमत में, ऐसे दो राष्ट्रों को साथ बाँध कर रखने से असंतोष बढ़ कर रहेगा और अंत में ऐसे राज्य की बनावट का विनाश हो कर रहेगा।"हिन्दू महासभा जैसे हिन्दू संगठन भारत के बंटवारे के प्रबल विरोधी थे, लेकिन मानते थे कि हिन्दुओं और मुसलमानों में मतभेद हैं। 1937 में इलाहाबाद में हिन्दू महासभा के सम्मेलन में एक भाषण में विनायक दामोदर सावरकर ने कहा था - आज के दिन भारत एक राष्ट्र नहीं है, यहाँ पर दो राष्ट्र हैं-हिन्दू और मुसलमान।[4] कांग्रेस के अधिकतर नेता पंथ-निरपेक्ष थे और संप्रदाय के आधार पर भारत का विभाजन करने के विरुद्ध थे। महात्मा गांधी का विश्वास था कि हिन्दू और मुसलमान साथ रह सकते हैं और उन्हें साथ रहना चाहिए। उन्होंने विभाजन का घोर विरोध किया।
उन्होंने कहा: "मेरी पूरी आत्मा इस विचार के विरुद्ध विद्रोह करती है कि हिन्दू और मुसलमान दो विरोधी मत और संस्कृतियाँ हैं। ऐसे सिद्धांत का अनुमोदन करना मेरे लिए ईश्वर को नकारने के समान है।"[तथ्य वांछित] बहुत सालों तक गांधी और उनके अनुयायियों ने कोशिश की कि मुसलमान कांग्रेस को छोड़ कर न जाएं और इस प्रक्रिया में हिन्दू और मुसलमान गरम दलों के नेता उनसे बहुत चिढ़ गए।
अंग्रेजों ने योजनाबद्ध रूप से हिन्दू और मुसलमान दोनों संप्रदायों के प्रति शक को बढ़ावा दिया। मुस्लिम लीग ने अगस्त 1946 में सिधी कार्यवाही दिवस मनाया और कलकत्ता में भीषण दंगे किये जिसमें करीब 5000 लोग मारे गये और बहुत से घायल हुए। ऐसे माहौल में सभी नेताओं पर दबाव पड़ने लगा कि वे विभाजन को स्वीकार करें ताकि देश पूरी तरह युद्ध की स्थिति में न आ जाए।
विभाजन की प्रक्रिया[संपादित करें]
भारत के विभाजन के ढांचे को '3 जून प्लान' या माउण्टबैटन योजना का नाम दिया गया। भारत और पाकिस्तान के बीच की सीमारेखा लंदन के वकील सर सिरिल रैडक्लिफ ने तय की। हिन्दू बहुमत वाले इलाके भारत में और मुस्लिम बहुमत वाले इलाके पाकिस्तान में शामिल किए गए। 18 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम पारित किया जिसमें विभाजन की प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया गया। इस समय ब्रिटिश भारत में बहुत से राज्य थे जिनके राजाओं के साथ ब्रिटिश सरकार ने तरह-तरह के समझौते कर रखे थे। इन 565 राज्यों को आज़ादी दी गयी कि वे चुनें कि वे भारत या पाकिस्तान किस में शामिल होना चाहेंगे। अधिकतर राज्यों ने बहुमत धर्म के आधार पर देश चुना। जिन राज्यों के शासकों ने बहुमत धर्म के अनुकूल देश चुना उनके एकीकरण में काफ़ी विवाद हुआ (देखें भारत का राजनैतिक एकीकरण)। विभाजन के बाद पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र में नए सदस्य के रूप में शामिल किया गया और भारत ने ब्रिटिश भारत की कुर्सी संभाली।[5]
संपत्ति का बंटवारा[संपादित करें]
ब्रिटिश भारत की संपत्ति को दोनों देशों के बीच बाँटा गया लेकिन यह प्रक्रिया बहुत लंबी खिंचने लगी। गांधीजी ने भारत सरकार पर दबाव डाला कि वह पाकिस्तान को धन जल्दी भेजे जबकि इस समय तक भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरु हो चुका था और दबाव बढ़ाने के लिए अनशन शुरु कर दिया। भारत सरकार को इस दबाव के आगे झुकना पड़ा और पाकिस्तान को धन भेजना पड़ा।२२ अक्टूबर १९४७ को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउण्टबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को ५५ करोड़ रुपये की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गांधी जी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी। नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी के इस काम को उनकी हत्या करने का एक कारण बताया।[तथ्य वांछित]
दंगे[संपादित करें]
बहुत से विद्वानों का मत है कि ब्रिटिश सरकार ने विभाजन की प्रक्रिया को ठीक से नहीं संभाला। क्योंकि स्वतन्त्रता की घोषणा पहले और विभाजन की घोषणा बाद में की गयी, देश में शान्ति कायम रखने की जिम्मेवारी भारत और पाकिस्तान की नयी सरकारों के सर पर आई। किसी ने यह नहीं सोचा था कि बहुत से लोग इधर से उधर जायेंगे। लोगों का विचार था कि दोनों देशों में अल्पमत सम्प्रदाय के लोगों के लिए सुरक्षा का प्रबन्ध किया जायेगा। लेकिन दोनों देशों की नयी सरकारों के पास हिंसा और अपराध से निपटने के लिए आवश्यक प्रबन्ध नहीं था। फलस्वरूप दंगा हुआ और बहुत से लोगों की जाने गईं और बहुत से लोगों को घर छोड़कर भागना पड़ा। अंदाज़ा लगाया जाता है कि इस दौरान लगभग 5 लाख से 30 लाख लोग मारे गये, कुछ दंगों में, तो कुछ यात्रा की मुश्किलों से।
आलोचकों का मत है कि आजादी के समय हुए नरसंहार व अशान्ति के लिये अंग्रेजों द्वारा समय पूर्व सत्ता हस्तान्तरण करने की शीघ्रता व तात्कालिक नेतृत्व की अदूरदर्शिता उत्तरदायी थी।[6]
जन स्थानान्तरण[संपादित करें]
विभाजन के दौरान पंजाब में एक ट्रेन पर शरणार्थी
विभाजन के बाद के महीनों में दोनों नये देशों के बीच विशाल जन स्थानांतरण हुआ। पाकिस्तान में बहुत से हिन्दुओं और सिखों को बलात् बेघर कर दिया गया। लेकिन भारत में गांधीजी ने कांग्रेस पर दबाव डाला और सुनिश्चित किया कि मुसलमान अगर चाहें तो भारत में रह सकें। सीमा रेखाएं तय होने के बाद लगभग 1.45 करोड़ लोगों ने हिंसा के डर से सीमा पार करके बहुमत संप्रदाय के देश में शरण ली। भारत की जनगणना 1951 के अनुसार विभाजन के एकदम बाद 72,26,000 मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान गये और 72,49,000 हिन्दू और सिख पाकिस्तान छोड़कर भारत आए।[तथ्य वांछित] इसमें से 78 प्रतिशत स्थानांतरण पश्चिम में, मुख्यतया पंजाब में हुआ।
यह सामान वाहक तारावती नामक एक महिला का था जो अविभाजित औपनिवेशिक भारत में गुजरात में रहती थी
अन्तरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में विभाजन[संपादित करें]
अगस्त, 1947 में भारत और पाकिस्तान में सत्ता का हस्तान्तरण ब्रिटेन द्वारा उपनिवेशवादी शासन को खत्म करने की दिशा में पहला महत्त्वपूर्ण कदम था, जिसके साथ उसकी अन्तरराष्ट्रीय शक्ति के दूरगामी परिणाम जुड़े थे।
भारत का यह विभाजन अठारहवीं सदी में यूरोप, एशिया, अफ्रीका और मध्य पूर्व में किए गए अनेक विभाजनों में से एक है। प्रायः अधिकांश विभाजनों में जिस तरह विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच जितनी हिंसा हुई, उससे कहीं अधिक हिंसा इस विभाजन में हुई। साम्राज्यशाही ब्रिटेन द्वारा किया गया भारत का यह विभाजन उसके द्वारा किए गए चार विभाजनों में से एक है। उसने आयरलैंड, फिलिस्तीन और साइप्रस के भी विभाजन कराए। उसने इन विभाजनों का कारण यह बताया कि अलग-अलग समुदायों के लोग एक साथ मिलकर नहीं रह सकते। जबकि इन विभाजनों के पीछे केवल धार्मिक और नस्ली कारण नहीं थे, बल्कि ब्रिटेन के सामरिक और राजनीतिक हित भी शामिल थे, जिनके आधार पर समझौतों के समय उसने अपनी रणनीति बनाई और चालें चलकर विभाजन कराए। वस्तुतः, ब्रिटेन की इन्हीं चालों की वजह से ये चारों विभाजन हुए।
साहित्य और सिनेमा में भारत का विभाजन[संपादित करें]
भारत के विभाजन और उसके साथ हुए दंगे-फ़साद पर कई लेखकों ने उपन्यास और कहानियाँ लिखी हैं, जिनमें से मुख्य हैं,
- झूठा सच- यशपाल
- तमस - भीष्म साहनी
- पिंजर - अमृता प्रीतम
- ट्रेन टु पाकिस्तान- खुशवंत सिंह
- मिडनाइट्स चिल्ड्रन (आधी रात की सन्तानें)- सलमान रुशदी
कितने पाकिस्तान (कमलेश्वर) पिंजर को फिल्म और तमस को प्रसिद्ध दूरदर्शन धारावाहिक के रूप में रूपांतरित किया गया है। इसके अलावा गरम हवा, दीपा महता की अर्थ (ज़मीन), कमल हसन की हे राम और 'गदर - एक प्रेम कथा' भी भारत के विभाजन पर आधारित हैं।
इन्हें भी देखे[संपादित करें]
- माउण्टबैटन योजना
- पाकिस्तान का विभाजन
- कश्मीर समस्या
- भारत का राजनीतिक एकीकरण
- वृहद भारत
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ सुभाष कश्यप-भारत का संविधान पृ-22
- ↑ "भारत विभाजन के लिए मुसलमान दोषी नहीं, तो फिर कौन?". मूल से 27 दिसंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 दिसंबर 2018.
- ↑ "TIME Essay HURRYING MIDNIGHT". मूल से 17 अगस्त 2000 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 जुलाई 2007.
- ↑ V.D. Savarkar, Samagra Savarkar Wangmaya Hindu Rasthra Darshan (Collected works of V.D.Savarkar) Vol VI, Maharashtra Prantik Hindusabha, Poona, 1963, पृष्ठ 296
- ↑ टॉमस आरगीसी, Nations, States, and Secession: Lessons from the Former Yugoslavia, मेडटरेनियन क्वॉटरली, Volume 5 Number 4 Fall 1994, पृ. 40–65, ड्यूक यूनिवर्सिटी प्रेस
- ↑ "अंग्रेजों द्वारा समय पूर्व सत्ता हस्तांतरण करने की शीघ्रता व तात्कालिक नेतृत्व की अदूरदर्शिता आजादी के समय हुए नरसंहार व अशांति के लिये उत्तरदायी थी". मूल से 19 अगस्त 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 अगस्त 2018.
टीका-टिप्पणी[संपादित करें]
ग्रन्थ और निबंधसूची[संपादित करें]
- Select Research Bibliography on the Partition of India, Compiled by Vinay Lal, Department of History, UCLA; University of California at Los Angeles list
- A select list of Indian Publications on the Partition of India (Punjab & Bengal); University of Virginia list
- South Asian History: Colonial India — University of California, Berkeley Collection of documents on colonial India, Independence, and Partition
- Indian Nationalism — Fordham University archive of relevant public-domain documents
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
- भारत विभाजन के प्रमुख कारण
- भारत विभाजन की त्रासदी