पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम, 1960 Show (1960 का अधिनियम संख्यांक 59) [26 दिसम्बर, 1960] पशुओं को अनावश्यक पीड़ा या यातना पहुंचाने के निवारणार्थ और उस प्रयोजन के लिए पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण सम्बन्धी विधि का संशोधन करने के लिए अधिनियम भारत गणराज्य के ग्यारहवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित किया जाता है :- अध्याय 1 प्रारम्भिक 1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ-(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम, 1960 है । (2) इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय सम्पूर्ण भारत पर है । (3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे, और विभिन्न राज्यों के लिए तथा इस अधिनियम के विभिन्न उपबन्धों के लिए विभिन्न तारीखें नियत की जा सकती हैं । 2. परिभाषाएं-इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,- (क) पशु" से अभिप्रेत है वह जीवित प्राणी जो मनुष्य से भिन्न है ; [(ख) बोर्ड" से धारा 4 के अधीन स्थापित और धारा 5क के अधीन समय-समय पर यथा पुनर्गठित बोर्ड अभिप्रेत है ;] (ग) “बंधुआ पशु" से अभिप्रेत है कोई पशु (जो पालतू पशु न हो) जो चाहे स्थायी रूप से अथवा अस्थायी रूप से बंधुआ हालत में हो या परिरोध में हो, या जिसे बंधुआ हालत अथवा परिरोध में से उसके निकल भागने में रुकावट डालने या निकल भागने की रोकथाम करने के प्रयोजनार्थ कोई साधित्र या यन्त्र लगाकर रखा गया हो, या जिसे बांध कर रखा गया हो, या जो विकलांग कर दिया गया हो या विकलांग हो गया प्रतीत होता हो ; (घ) “पालतू पशु" से ऐसा पशु अभिप्रेत है जो साधाया हुआ है, या जो मनुष्य के काम आने के लिए किसी प्रयोजन की पूर्ति के निमित्त पर्याप्त रूप से साधाया गया है या साधाया जा रहा है, या जो, भले ही वह न तो इस प्रकार साधाया गया हो और न साधाया जा रहा हो और न ही उसका इस प्रकार साधाया जाना आशयित हो, वस्तुतः पूर्णतः या अंशतः सधाया हुआ है या हो गया है ; (ङ) “स्थानीय प्राधिकारी" से नगरपालिका समिति, जिला बोर्ड या अन्य ऐसा प्राधिकारी अभिप्रेत है, जिसमें किसी विनिर्दिष्ट स्थानीय क्षेत्र में किन्हीं मामलों का नियंत्रण और प्रशासन विधि द्वारा तत्समय निहित है ; (च) “स्वामी" के अन्तर्गत, जब कि उसका प्रयोग किसी पशु के प्रति निर्देश से किया गया हो, न केवल स्वामी किन्तु कोई ऐसा अन्य व्यक्ति भी है जिसके कब्जे में या जिसकी अभिरक्षा में वह पशु, चाहे स्वामी की सहमति से या उसके बिना, तत्समय हो ; (छ) “फूका" या “डूमदेव" के अन्तर्गत दुधारू पशु की योनि में वायु या किसी अन्य पदार्थ को इस उद्देश्य से प्रविष्ट करने की प्रक्रिया है जिससे कि उस पशु से दूध का कोई स्राव निकाला जा सके ; (ज) “विहित" से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है ; (झ) “मार्ग" के अन्तर्गत कोई ऐसा रास्ता, सड़क, गली, चौक, आंगन, वीथि, पथ या खुला स्थान आता है, चाहे वह आम रास्ता हो या न हो, जिस तक जनता की पहुंच हो । 3. उन व्यक्तियों के कर्तव्य जिनके भार-साधन में पशु है- ऐसे प्रत्येक व्यक्ति का, जिसकी देख-रेख या भारसाधन में कोई पशु है, यह कर्तव्य होगा कि वह ऐसे पशु का कल्याण सुनिश्चित करने तथा उसे अनावश्यक पीड़ा या यातना पहुंचाने का निवारण करने के लिए सभी समुचित उपाय करे । अध्याय 2 [भारतीय पशु-कल्याण बोर्ड] 4. कल्याण बोर्ड की स्थापना-(1) साधारणतया पशु-कल्याण के संवर्धन के लिए तथा विशिष्टतया अनावश्यक पीड़ा या यातना से पशुओं की संरक्षा करने के प्रयोजनार्थ केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र, एक बोर्ड की स्थापना करेगी, जो [भारतीय पुश-कल्याण बोर्डट कहलाएगा । (2) बोर्ड शाश्वत उत्तराधिकार और सामान्य मुद्रा वाला एक निगमित निकाय होगा और उसे, इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, सम्पत्ति के अर्जन, धारण और व्ययन करने की शक्ति होगी और जो अपने नाम से वाद ला सकेगा तथा उस पर वाद लाया जा सकेगा । 5. बोर्ड का गठन-(1) बोर्ड में निम्नलिखित व्यक्ति होंगे, अर्थात् :- (क) भारत सरकार का वन महानिरीक्षक, पदेन ; (ख) भारत सरकार का पशुपालन आयुक्त, पदेन ; [(खक) दो व्यक्ति, जो क्रमशः गृह और शिक्षा से सम्बन्धित केन्द्रीय सरकार के मंत्रालयों का प्रतिनिधित्व करेंगे, केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किए जाएंगे ; (खख) एक व्यक्ति, जो भारतीय वन्य प्राणी बोर्ड का प्रतिनिधित्व करेगा, केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा ; (खग) तीन व्यक्ति, जो केन्द्रीय सरकार की राय में, पशु-कल्याण कार्य में सक्रिय रूप से लगे हैं या लगे रहे हैं और सुविख्यात लोकोपकारक हैं, केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट किए जाएंगे ;] (ग) एक व्यक्ति, जो पशु चिकित्सा व्यवसायियों के किसी ऐसे संगम का प्रतिनिधित्व करेगा, जिसका केन्द्रीय सरकार की राय में बोर्ड में प्रतिनिधित्व होना चाहिए और वह व्यक्ति विहित रीति से उस संगम द्वारा निर्वाचित किया जाएगा ; (घ) दो व्यक्ति, जो आधुनिक देशी चिकित्सा प्रणाली के व्यवसायियों का प्रतिनिधित्व करेंगे, केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट किए जाएंगे ; [(ङ) एक-एक व्यक्ति, जो ऐसे दो नगर निगमों में से, जिनका केन्द्रीय सरकार की राय में बोर्ड में प्रतिनिधित्व होना चाहिए प्रत्येक का प्रतिनिधित्व करेगा, विहित रीति से उक्त निगमों में से प्रत्येक के द्वारा निर्वाचित किए जाएंगे ;] (च) एक-एक व्यक्ति, जो उन तीनों संगठनों में से प्रत्येक का, जो पशु-कल्याण कार्यों में सक्रिय रूप से रुचि रखने वाले हों और जिनका, केन्द्रीय सरकार की राय में बोर्ड में प्रतिनिधित्व होना चाहिए, प्रतिनिधित्व करेगा ; और ये व्यक्ति विहित रीति से उक्त प्रत्येक संगठन द्वारा चुने जाएंगे ; (छ) एक-एक व्यक्ति, जो उन तीनों सोसाइटियों में से प्रत्येक का, जो पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण करने के कार्य से संबंधित हों और जिनका केन्द्रीय सरकार की राय में बोर्ड में प्रतिनिधत्व होना चाहिए, प्रतिनिधित्व करेगा ; और ये व्यक्ति विहित रीति से चुने जाएंगे ; (ज) तीन व्यक्ति जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट किए जाएंगे ; (झ) छह संसद् सदस्य, जिनमें से चार लोक सभा द्वारा निर्वाचित किए जाएंगे और दो राज्य सभा द्वारा निर्वाचित किए जाएंगे । (2) उपधारा (1) के खंड (क) [या खंड (ख) या खंड (खक)ट में निर्दिष्ट व्यक्तियों में से कोई भी व्यक्ति बोर्ड की किसी भी बैठक में हाजिर होने के लिए किसी अन्य व्यक्ति को प्रतिनियुक्त कर सकेगा । [(3) केन्द्रीय सरकार बोर्ड के सदस्यों में से एक सदस्य को बोर्ड का अध्यक्ष और बोर्ड के एक अन्य सदस्य को बोर्ड का उपाध्यक्ष नामनिर्दिष्ट करेगी ।] [5क. बोर्ड का पुनर्गठन-(1) केन्द्रीय सरकार, इस दृष्टि से कि बोर्ड का अध्यक्ष और अन्य सदस्य एक ही तारीख तक पद धारण करें और उनकी पदावधियां उसी तारीख को समाप्त हों, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, बोर्ड का पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण (संशोधन) अधिनियम, 1982 के प्रवृत्त होने के पश्चात्, यथाशक्य शीघ्र, पुनर्गठन कर सकेगी । (2) उपधारा (1) के अधीन पुनर्गठित बोर्ड, उपधारा (1) के अधीन अपने पुनर्गठन की तारीख से प्रत्येक तीसरे वर्ष के अवसान पर समय-समय पर पुनर्गठित किया जाएगा । (3) उपधारा (1) के अधीन पुनर्गठित बोर्ड के सदस्यों में वे सभी व्यक्ति सम्मिलित किए जाएंगे जो उस तारीख के ठीक पहले, जिसको ऐसा पुनर्गठन प्रभावशील होना है, बोर्ड के सदस्य हैं, किन्तु ऐसे व्यक्ति उस अवधि के, अनवसित भाग के लिए ही जिसके लिए वे, यदि ऐसा पुनर्गठन न किया गया होता तो, पद धारण करते, पद धारण करेंगे और उनके बोर्ड के सदस्य न रह जाने के परिणामस्वरूप पैदा होने वाली रिक्तियां इस प्रकार पुनर्गठित बोर्ड की अवशिष्ट कालावधि के लिए आकस्मिक रिक्तियों के रूप में भरी जाएंगी : परन्तु इस उपधारा की कोई भी बात किसी ऐसे व्यक्ति के सम्बन्ध में लागू नहीं होगी जो पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण (संशोधन) अधिनियम, 1982 की धारा 5 के खण्ड (क) के उपखंड (ii) द्वारा धारा 5 की उपधारा (1) में किए गए संशोधन के फलस्वरूप बोर्ड का सदस्य नहीं रह जाता है ।] [6. बोर्ड के सदस्यों का कार्यकाल और उनकी सेवा की शर्तें-(1) वह अवधि जिसके लिए बोर्ड का धारा 5क के अधीन पुनर्गठन किया जा सकेगा, पुनर्गठन की तारीख से तीन वर्ष होगी और इस प्रकार पुनर्गठित बोर्ड का अध्यक्ष और अन्य सदस्य उस अवधि के अवसान तक पद धारण करेंगे जिसके लिए बोर्ड का इस प्रकार पुनर्गठन किया गया है । (2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी,- (क) पदेन सदस्य की पदावधि तब तक बनी रहेगी जब तक वह उस पद को धारण किए रहता है जिसके आधार पर वह ऐसा सदस्य है ; (ख) व्यक्तियों के किसी निकाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए धारा 5 के खण्ड (ग), खण्ड (ङ), खण्ड (च), खण्ड (छ) खण्ड (ज) या खण्ड (झ) के अधीन निर्वाचित या चुने गए सदस्य की पदावधि जैसे ही वह सदस्य उस निकाय का, जिसने उसे निर्वाचित किया था या जिसकी बाबत वह चुना गया था, सदस्य नहीं रह जाता है, समाप्त हो जाएगी ; (ग) किसी आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए नियुक्त, नामनिर्दिष्ट, निर्वाचित या चुने गए सदस्य की पदावधि उस सदस्य की अवशिष्ट पदावधि के लिए होगी जिसके स्थान पर वह नियुक्त, नामनिर्दिष्ट या निर्वाचित किया गया है या चुना गया है ; (घ) केन्द्रीय सरकार किसी सदस्य को, उसके प्रस्थापित हटाए जाने के विरुद्ध हेतुक दर्शित करने का उसे उचित अवसर देने के पश्चात् उन कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएंगे, किसी भी समय हटा सकेगी और ऐसे हटाए जाने से हुई कोई रिक्ति खण्ड (ग) के प्रयोजन के लिए आकस्मिक रिक्ति मानी जाएगी । (3) बोर्ड के सदस्य ऐसे भत्ते, यदि कोई हों, पाएंगे जिनके लिए बोर्ड केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन के अधीन रहते हुए, इस निमित्त बनाए गए विनियमों द्वारा उपबन्ध करे । (4) बोर्ड द्वारा किए गए किसी भी कार्य या कार्यवाही को केवल इसी कारण प्रश्नगत नहीं किया जाएगा कि बोर्ड में कोई रिक्ति थी अथवा उसके गठन में कोई त्रुटि थी तथा विशिष्टतया और पूर्वगामी भाग की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, उस अवधि की समाप्ति, जिसके लिए बोर्ड का धारा 5क के अधीन पुनर्गठन किया गया है और उस धारा के अधीन उसके आगे पुनर्गठन के बीच की कालावधि के दौरान, बोर्ड के पदेन सदस्य बोर्ड की सभी शक्तियों का प्रयोग और कृत्यों का निर्वहन करेंगे ।] 7. बोर्ड के सचिव तथा अन्य कर्मचारी-(1) केन्द्रीय सरकार *** बोर्ड का सचिव नियुक्त करेगी । (2) ऐसे नियमों के अधीन रहते हुए, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त बनाए जाएं, बोर्ड उतने अन्य अधिकारी और कर्मचारी नियुक्त कर सकेगा जितने उसकी शक्तियों का प्रयोग और उसके कृत्यों का निर्वहन करने के लिए आवश्यक हों और ऐसे आधिकारियों और कर्मचारियों की सेवा के निबन्धनों और शर्तों को, केन्द्रीय सरकार के पूर्वानुमोदन से, अपने द्वारा बनाए गए विनियमों द्वारा, अवधारित कर सकेगा । 8. बोर्ड की निधियां-बोर्ड की निधियों में वे अनुदान जो सरकार द्वारा उसे समय-समय पर दिए गए हों और किसी स्थानीय प्राधिकारी या अन्य व्यक्ति द्वारा उसे दिए गए अंशदान, संदान, अभिदान, वसीयत-सम्पत्ति, दान और इसी प्रकार की प्राप्तियां सम्मिलित होंगी । 9. बोर्ड के कृत्य-बोर्ड के निम्नलिखित कृत्य होंगे- (क) पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण करने के लिए भारत में प्रवृत्त विधि का बराबर अध्ययन करते रहना और ऐसी किसी विधि में समय-समय पर किए जाने वाले संशोधनों के सम्बन्ध में सरकार को सलाह देना ; (ख) इस अधिनियम के अधीन नियम बनाने के संबंध में केन्द्रीय सरकार को इस दृष्टि से सलाह देना कि पशुओं के प्रति अनावश्यक पीड़ा या यातना का साधरणतया और, विशिष्टतया तब जब वे एक स्थान से दूसरे स्थान को ले जाए जा रहे हों या जब उनका उपयोग करतब दिखाने वाले पशुओं के रूप में किया जा रहा हों या जब वे बंधुआ हालत में या परिरोध में रखे गए हों, निवारण किया जा सके ; (ग) सरकार को याकिसी स्थानीय प्राधिकारी या अन्य व्यक्ति को यह सलाह देना कि यानों के डिजाइनों का सुधार इस प्रकार किया जाए जिससे कि भार ढ़ोने वाले पशुओं पर बोझ कम किया जा सके ; (घ) सायबानों, चरहियों और वैसी ही चीजों के निर्माण को प्रोत्साहन देकर अथवा उनकी व्यवस्था करके तथा पशुओं के लिए पशु चिकित्सा सहायता की व्यवस्था करके [पशुओं की बेहतरी] के लिए ऐसे सभी उपाय करना जिन्हें बोर्ड ठीक समझे ; (ङ) वधशालाओं के डिजाइन तैयार करने अथवा उन्हें बनाए रखने अथवा पशुओं के इस प्रकार वध के सम्बन्ध में, कि पशुओं के प्रति वध-पूर्व प्रक्रमों में अनावश्यक शारीरिक या मानसिक पीड़ा या यातना को जहां तक संभव हो समाप्त किया जा सके और पशुओं का, जहां कहीं आवश्यक हो, यथासंभव दयालु ढंग से वध किया जा सके, सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकारी अथवा किसी अन्य व्यक्ति को सलाह देना ; (च) यह सुनिश्चित करने के लिए कि ऐसे पशुओं को, जिनकी जरूरत नहीं रह गई है, या तो तत्क्षण, या पीड़ा अथवा यातना के प्रति उन्हें संज्ञाहीन बना कर, स्थानीय प्राधिकारियों द्वारा, जब कभी वैसा करना आवश्यक हो, नष्ट कर दिया जाए, सभी ऐसे उपाय करना जिन्हें बोर्ड उचित समझे ; (छ) [पिंजरापोलों, बचावगृहों, पशुआश्रयों, पशुवनों और वैसे ही अन्य स्थानों के, जहां पशु और पक्षी बूढ़े और बेकार हो जाने पर, या जब उन्हें संरक्षण की आवश्यकता हो तब, शरण पा सकें, निर्माण या स्थापना को] वित्तीय सहायता प्रदान करके अथवा अन्यथा, प्रोत्साहन देना ; (ज) पशुओं के प्रति अनावश्यक पीड़ा या यातना के निवारण के प्रयोजनार्थ अथवा पशु-पक्षियों की संरक्षा के लिए स्थापित संगमों या निकायों के साथ सहयोग करना और उनके कार्य का समन्वय करना ; (झ) किसी स्थानीय क्षेत्र में कार्य कर रहे पशु-कल्याण संगठनों को वित्तीय तथा अन्य सहायता देना, अथवा किसी स्थानीय क्षेत्र में किन्हीं ऐसे पशु-कल्याण संगठनों के निर्माण को प्रोत्साहन देना जो बोर्ड के सामान्य अधीक्षण और मार्गदर्शन में कार्य करेंगे ; (ञ) सरकार को चिकित्सीय देख-रेख और परिचर्या की उन बातों के बारे में सलाह देना जिनकी व्यवस्था पशु अस्पतालों में की जाए और जब कभी बोर्ड पशु-अस्पतालों को वित्तीय तथा अन्य सहायता देना आवश्यक समझे तब ऐसी सहायता देना ; (ट) पशुओं के प्रति दयालुतापूर्ण बर्ताव करने की शिक्षा देना और पशुओं को अनावश्यक पीड़ा या यातना पहुंचाने के विरुद्ध, तथा व्याख्यानों, पुस्तकों, पोस्टरों, चलचित्र, प्रदर्शनों तथा अन्य वैसी ही बातों से पशु-कल्याण कार्यों को बढ़ावा देने के लिए, लोकमत तैयार करना ; (ठ) पशु-कल्याण कार्यों अथवा पशुओं के प्रति अनावश्यक पीड़ा या यातना के निवारण से संबंधित बातों के बारे में सरकार को सलाह देना । 10. विनियम बनाने की बोर्ड की शक्ति-बोर्ड अपने कार्यों को सम्पन्न करने तथा अपने कृत्यों को क्रियान्वित करने के लिए, केन्द्रीय सरकार के पूर्वानुमोदन के अधीन रहते हुए, ऐसे विनियम बना सकेगा जैसे वह ठीक समझे । अध्याय 3 साधारणतया पशुओं के प्रति क्रूरता 11. पशुओं के प्रति क्रूरता का व्यवहार-(1) यदि कोई व्यक्ति- (क) किसी पशु को पीटेगा, ठोकर मारेगा, उस पर अत्यधिक सवारी करेगा, उस पर सवारी करके उसे अत्यधिक हांकेगा, उस पर अत्यधिक बोझ लादेगा, उसे यंत्रणा देगा, या अन्यथा उसके साथ ऐसे बर्ताव करेगा या करवाएगा जिससे उसे अनावश्यक पीड़ा या यातना होती है, या स्वामी होते हुए किसी पशु के प्रति इस प्रकार का बर्ताव करने देगा; अथवा (ख) [किसी कार्य श्रम में, या किसी अन्य प्रयोजन के लिए किसी ऐसे पशु को लगाएगा जो अपनी आयु या किसी रोग,] अंग-शैथिल्य, घाव, फोडे़ के कारण अथवा किसी अन्य कारण से इस प्रकार लगाए जाने के अनुपयुक्त है, या स्वामी होते हुए ऐसे किसी अनुपयुक्त पशु को इस प्रकार लगाए जाने देगा ; अथवा (ग) [किसी पशु को] जानबूझकर तथा अनुचित रूप से कोई क्षतिकारक औषधि या क्षतिकारक पदार्थ देगा या [किसी पशु को] जानबूझकर और अनुचित रूप से ऐसी कोई औषधि या पदार्थ, खिलवाएगा या खिलवाने का प्रयास करेगा ; अथवा (घ) किसी पशु को किसी यान में, या यान पर, या अन्यथा ऐसी रीति से या ऐसी स्थिति में प्रवहित करेगा या ले जाएगा जिससे कि उसे अनावश्यक पीड़ा या यातना पहुंचती है ; अथवा (ङ) किसी पशु को किसी ऐसे पिंजरे या अन्य पात्र में रखेगा या परिरुद्ध करेगा, जिसकी ऊंचाई, लम्बाई और चौड़ाई इतनी पर्याप्त न हो कि पशु को उसमें हिल-डुल सकने का उचित स्थान प्राप्त हो सके ; अथवा (च) किसी पशु को अनुचित रूप से छोटी या अनुचित रूप से भारी किसी जंजीर या रस्सी में किसी अनुचित अवधि तक के लिए बांधकर रखेगा ; अथवा (छ) स्वामी होते हुए, किसी ऐसे कुत्ते को, जो अभ्यासतः जंजीर में बंधा रहता है या बन्द रखा जाता है, उचित रूप से व्यायाम करने या करवाने की उपेक्षा करेगा ; अथवा (ज) [किसी पशु का] स्वामी होते हुए ऐसे पशु को पर्याप्त खाना, जल या आश्रय नहीं देगा ; अथवा (झ) उचित कारण के बिना, किसी पशु को ऐसी परिस्थिति में परित्यक्त कर देगा जिससे यह संभाव्य हो कि उसे भुखमरी या प्यास के कारण पीड़ा पहुंचे ; अथवा (ञ) किसी ऐसे पशु को, जिसका वह स्वामी है, जानबूझकर किसी मार्ग में छोड़ कर घूमने देगा जब कि वह पशु किसी सांसर्गिक या संक्रामक रोग से ग्रस्त हो, या किसी रोगग्रस्त या विकलांग पशु को, जिसका वह स्वामी है, उचित कारण के बिना, किसी मार्ग में मर जाने देगा ; अथवा (ट) किसी ऐसे पशु को बिक्री के लिए प्रस्तुत करेगा, या बिना किसी उचित कारण के अपने कब्जे में रखेगा, जो अंगविच्छेद, भुखमरी, प्यास, अतिभरण या अन्य दुर्व्यवहार के कारण पीड़ाग्रस्त हो ; अथवा [(ठ) किसी पशु का अंगविच्छेद करेगा या किसी पशु को (जिसके अन्तर्गत आवारा कुत्ते भी हैं) हृदय में स्ट्रीक्नीन-अन्तःक्षेपण की पद्धति का उपयोग करके या किसी अन्य अनावश्यक क्रूरढंग से मार डालेगा ; अथवा] [(ड) केवल मनोरंजन करने के उद्देश्य से,- (i) किसी पशु को ऐसी रीति से परिरुद्ध करेगा या कराएगा (जिसके अन्तर्गत किसी पशु का किसी व्याघ्र या अन्य पशु वन में चारे के रूप में बांधा जाना भी है) कि वह किसी अन्य पशु का शिकार बन जाए ; अथवा (ii) किसी पशु को किसी अन्य पशु के साथ लड़ने के लिए या उसे सताने के लिए उद्दीप्त करेगा ; अथवा]
(ढ) पशुओं की लड़ाई के लिए या किसी पशु को सताने के प्रयोजनार्थ, किसी स्थान को *** सुव्यवस्थित करेगा, बनाए रखेगा उसका उपयोग करेगा, या उसके प्रबन्ध के लिए कोई कार्य करेगा या किसी स्थान को इस प्रकार उपयोग में लाने देगा या तदर्थ प्रस्ताव करेगा, या ऐसे किसी प्रयोजन के लिए रखे गए या उपयोग में लाए गए किसी स्थान में किसी अन्य व्यक्ति के प्रवेश के लिए धन प्राप्त करेगा ; अथवा (ण) गोली चलाने या निशानेबाजी के किसी मैच या प्रतियोगिता को, जहां पशुओं को बंधुआ हालत से इसलिए छोड़ दिया जाता है कि उन पर गोली चलाई जाए या उन्हें निशाना बनाया जाए, बढ़ावा देगा या उसमें भाग लेगा, [तो वह प्रथम अपराध की दशा में, जुर्माने से, जो दस रुपए से कम नहीं होगा किन्तु जो पचास रुपए तक का हो सकेगा और द्वितीय या पश्चात्वर्ती अपराध की दशा में, जो पिछले अपराध के किए जाने के तीन वर्ष की अवधि के भीतर किया जाता है, जुर्माने से, जो पच्चीस रुपए से कम नहीं होगा किन्तु जो एक सौ रुपए तक का हो सकेगा, या कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, अथवा दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।] (2) उपधारा (1) के प्रयोजनों के लिए किसी स्वामी के बारे में यह तब समझा जाएगा कि उसने अपराध किया है जब वह ऐसे अपराध के निवारण के लिए समुचित देखे-रेख और पर्यवेक्षण करने में असफल रहा हो : परन्तु जहां स्वामी केवल इसी कारण क्रूरता होने देने के लिए दोषसिद्ध किया जाता है कि वह ऐसी देख-रेख और पर्यवेक्षण करने में असफल रहा है वहां वह जुर्माने के विकल्प के बिना कारावास का दायी नहीं होगा । (3) इस धारा की कोई भी बात निम्नलिखित को लागू नहीं होगी- (क) विहित रीति से ढोरों के सींग निकालना, या किसी पशु को बधिया करना या उसे दागना या उसकी नाक में रस्सी डालना ; अथवा (ख) आवारा कुत्तों को प्राणहर कक्षों में या 2[किन्हीं अन्य ढंगों से, जो विहित किए जाएंट नष्ट करना ; अथवा (ग) तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के प्राधिकार के अधीन किसी पशु का उन्मूलन करना या उसे नष्ट करना ; अथवा (झ) कोई विषय, जो अध्याय 4 में वर्णित है ; अथवा (ङ) मनुष्यों के भोजन के रूप में किसी पशु को नष्ट करने या नष्ट करने की तैयारी के दौरान किसी कार्य का किया जाना या कोई कार्य-लोप, यदि ऐसे नाश या ऐसी तैयारी के समय उसे अनावश्यक पीड़ा या यातना न पहुंची हो । 12. फूका या डूमदेव करने के लिए शास्ति-यदि कोई व्यक्ति किसी गाय या अन्य दुधारू [पशु पर “फूका" या “डूमदेव" नाम क्रिया या दुग्ध स्रवण को बढ़ाने के लिए कोई अन्य ऐसी क्रिया (जिसके अन्तर्गत किसी पदार्थ का अन्तःक्षेपण भी है) करेगा जो उस पशु के स्वास्थ्य के लिए हानिकर है] या अपने कब्जे में या नियंत्रणाधीन ऐसे किसी पशु पर ऐसी क्रिया करने देगा तो वह जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या करावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा, और जिस पशु पर ऐसी क्रिया की गई है वह सरकार को समपहृत हो जाएगा । 13. यातनाग्रस्त पशुओं को नष्ट करना-(1) जहां कि किसी पशु का स्वामी धारा 11 के अधीन किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जाता है वहां, यदि न्यायालय का समाधान हो गया है कि पशु को जीवित रखना क्रूरता होगी तो, न्यायालय के लिए यह वैध होगा कि वह यह निदेश दे कि उस पशु को नष्ट कर दिया जाए और उस प्रयोजन के लिए उसे किसी उपयुक्त व्यक्ति को सौंप दिया जाए, तथा जिस व्यक्ति को वह पशु इस प्रकार सौंपा जाए वह, उसे अनावश्यक यातना दिए बिना, अपनी उपस्थिति में यथासंभवशीघ्र नष्ट कर देगा या करवा देगा तथा न्यायालय यह आदेश दे सकेगा कि उस पशु को नष्ट करने में जो भी उचित व्यय हुआ है वह उसके स्वामी से वैसे ही वसूल कर लिया जाए मानो वह जुर्माना हो : परन्तु यदि स्वामी उसके लिए अपनी अनुमति नहीं देता है तो इस धारा के अधीन कोई भी आदेश, उस क्षेत्र के भारसाधक पशु चिकित्सा अधिकारी के साक्ष्य के बिना, नहीं दिया जाएगा । (2) जब किसी मजिस्ट्रेट, पुलिस आयुक्त या जिला पुलिस अधीक्षक के पास यह विश्वास करने का कारण हो कि किसी पशु के संबंध में धारा 11 के अधीन कोई अपराध किया गया है तो वह उस पशु के तुरन्त नष्ट किए जाने का निदेश दे सकेगा यदि उसे जीवित रखना उसकी राय में क्रूरता हो । (3) कांस्टेबल की पंक्ति से ऊपर का कोई पुलिस अधिकारी या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत कोई व्यक्ति, जो किसी पशु को इतना रुग्ण या इतने गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त या ऐसी शारीरिक स्थिति में पाता है कि उसकी राय में उसे क्रूरता के बिना हटाया नहीं जा सकता है तो वह, यदि स्वामी अनुपस्थित है या उस पशु को नष्ट करने के लिए अपनी सहमति देने से इंकार करता है तो, तुरन्त उस क्षेत्र के भारसाधक पशु चिकित्सा अधिकारी को, जिसमें वह पशु पाया गया हो, आहूत कर सकेगा और यदि पशु चिकित्सा अधिकारी यह प्रमाणित करता है कि वह पशु घातक रूप से क्षतिग्रस्त है या इतने गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त है या ऐसी शारीरिक स्थिति में है कि उसे जीवित रखना क्रूरतापूर्ण होगा तो, यथास्थिति, वह पुलिस अधिकारी या प्राधिकृत व्यक्ति, मजिस्ट्रेट के आदेश प्राप्त करने के पश्चात्, उस [क्षतिग्रस्त पशु को ऐसी रीति से, जो विहित की जाए, नष्ट कर सकेगा या नष्ट करा सकेगा ।] (4) पशु को नष्ट करने के संबंध में मजिस्ट्रेट के किसी आदेश के खिलाफ कोई भी अपील नहीं होगी । अध्याय 4 पशुओं पर प्रयोग 14. पशुओं पर प्रयोग-इस अधिनियम की कोई भी बात शरीर-क्रियात्मक ज्ञान या ऐसे ज्ञान को, जो जीवन को बचाने या दीर्घ बनाने के लिए, या यातना न्यून करने या मनुष्यों, पशुओं अथवा पौधों को लगने वाले किसी रोग की रोकथाम के लिए उपयोगी हो, नई खोज द्वारा, समुन्नत करने के प्रयोजनार्थ प्रयोगों के किए जाने को (जिनके अन्तर्गत पशुओं पर शल्य-क्रिया संबंधी प्रयोग भी हैं) विधिविरुद्ध नहीं बनाएगी । 15. पशुओं पर प्रयोगों संबंधी नियंत्रण और पर्यवेक्षण के लिए समिति-(1) यदि बोर्ड की सलाह पर किसी भी समय केन्द्रीय सरकार की यह राय हो कि पशुओं पर प्रयोगों के नियंत्रण और पर्यवेक्षण के लिए ऐसा करना आवश्यक है तो, वह, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, एक समिति का गठन कर सकेगी जिसमें उतने पदधारी और अशासकीय व्यक्ति होंगे जितने वह उस समिति में नियुक्त करना ठीक समझे । (2) केन्द्रीय सरकार समिति के सदस्यों में से एक को उसका अध्यक्ष नामनिर्दिष्ट करेगी । (3) समिति को अपने कर्तव्यों के पालन के संबंध में अपनी प्रक्रिया विनियमित करने की शक्ति होगी । (4) समिति की निधियों में, उसे सरकार द्वारा समय-समय पर दिए गए अनुदान तथा किसी व्यक्ति द्वारा दिए गए अंशदान, संदान, अभिदान, वसीयत-सम्पत्ति, दान और इसी प्रकार की प्राप्तियां सम्मिलित होंगी । [15क. उपसमितियां-(1) समिति की किसी शक्ति का प्रयोग करने या उसके किसी कर्तव्य का निर्वहन करने के लिए या किसी ऐसे विषय पर, जो समिति निर्देशित करे, जांच करने या रिपोर्ट और सलाह देने के लिए समिति उतनी उपसमितियां गठित कर सकेगी जितनी वह उचित समझे । (2) उपसमिति केवल समिति के सदस्यों से गठित होगी ।] 16. समिति का कर्मचारिवृन्द-केन्द्रीय सरकार के नियंत्रण के अधीन रहते हुए, समिति अपनी शक्तियों का प्रयोग तथा अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए अपने को समर्थ बनाने के निमित्त उतने अधिकारियों तथा अन्य कर्मचारियों को नियुक्त कर सकेगी जितने आवश्यक हों और ऐसे अधिकारियों तथा अन्य कर्मचारियों के पारिश्रमिक तथा उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें अवधारित कर सकेगी । 17. समिति के कर्तव्य और पशुओं पर किए जाने वाले प्रयोगों के संबंध में नियम बनाने की समिति की शक्ति-(1) समिति का यह कर्तव्य होगा कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए कि पशुओं पर किए जाने वाले प्रयोगों से पूर्व, उनके दौरान, या उनके पश्चात् उन्हें अनावश्यक पीड़ा या यातना न पहुंचे ऐसे सभी उपाय करे, जो आवश्यक हों, और उस प्रयोजन के लिए वह भारत के राजपत्र में अधिसूचना द्वारा और पूर्व प्रकाशन की शर्त के अधीन रहते हुए, ऐसे प्रयोगों के किए जाने के संबंध में ऐसे नियम बना सकेगी जिन्हें वह ठीक समझे । [(1क) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम निम्नलिखित विषयों के लिए उपबन्ध कर सकेंगे, अर्थात् :- (क) पशुओं पर प्रयोग करने वाले व्यक्तियों या संस्थाओं का रजिस्ट्रीकरण ; (ख) वे रिपोर्टें और अन्य जानकारी जो पशुओं पर प्रयोग करने वाले व्यक्तियों और संस्थाओं द्वारा समिति को भेजी जाएंगी ।] (2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, समिति द्वारा बनाए गए नियम इस प्रकार के होंगे जो निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति सुनिश्चित कर सकें, अर्थात् :- (क) उन दशाओं में, जिनमें प्रयोग किसी संस्था द्वारा किए जाएं, उनकी जिम्मेदारी उस संस्था के भारसाधक व्यक्ति की होगी, और उन दशाओं में, जिनमें प्रयोग संस्था के बाहर किन्हीं व्यक्तियों द्वारा किए जाएं, वे व्यक्ति उस निमित्त अर्हित हों और प्रयोग उनकी पूरी-पूरी जिम्मेदारी पर किए जाएं ; (ख) प्रयोग सम्यक् सतर्कता और सहृदयता के साथ किए जाएं और शल्य-क्रिया वाले प्रयोग यथासंभव पर्याप्त शक्ति के संज्ञाहारी के प्रभावाधीन किए जाएं जिससे कि पशुओं को पीड़ा का अनुभव न हो ; (ग) ऐसे पशु, जो संज्ञाहारियों के प्रभावाधीन प्रयोग के क्रम में इतने क्षत हो जाएं कि उनके ठीक होने के पश्चात् भी उन्हें गंभीर यातना बनी रहे, जब वह संज्ञाहीन ही हों तभी, साधारणतया नष्ट कर दिए जाएं ; (घ) जहां कहीं, उदाहरणार्थ चिकित्सा संबंधी स्कूलों, अस्पतालों, कालेजों जैसे स्थानों में, पशुओं पर प्रयोगों का परिवर्जन कर सकना संभव हो वहां उस दशा में ऐसा ही किया जाए जब पुस्तकें, माडल, फिल्म और अन्य वैसी ही शिक्षण-प्रयुक्तियां समान रूप से पर्याप्त हों ; (ङ) बडे़-बडे़ पशुओं पर प्रयोग न किए जाएं यदि गिनी-पिग, शशक, मेंढक और चूहे जैसे छोटे-छोटे पशुओं पर प्रयोग करके वही परिणाम प्राप्त करना संभव हो ; (च) जहां तक संभव हो, हस्तकौशल प्राप्त करने के प्रयोजन के लिए ही प्रयोग न किए जाएं ; (छ) प्रयोग किए जाने के लिए आशयित पशुओं की, प्रयोगों से पूर्व और पश्चात् दोनों ही समय, समुचित रूप से देख-रेख रखी जाए ; (ज) पशुओं पर किए गए प्रयोगों के संबंध में समुचित अभिलेख रखे जाएं । (3) इस धारा के अधीन नियम बनाने में, समिति का मार्गदर्शन ऐसे निदेशों द्वारा होगा, जो केन्द्रीय सरकार (उन उद्देश्यों के अनुरूप जिनके लिए समिति स्थापित की गई है) उसे दे और केद्रीय सरकार को ऐसे निदेश देने के लिए इसके द्वारा प्राधिकृत किया जाता है । (4) समिति द्वारा बनाए गए सभी नियम संस्थाओं के बाहर प्रयोग करने वाले सभी व्यक्तियों तथा ऐसे व्यक्तियों पर आबद्धकर होंगे जो उन संस्थाओं के भारसाधक हैं जिनमें प्रयोग किए जाते हैं । 18. प्रवेश तथा निरीक्षण करने की शक्ति-यह सुनिश्चित करने के प्रयोजनार्थ कि समिति द्वारा बनाए गए नियमों का अनुपालन किया जाता है समिति अपने अधिकारियों में से किसी को या किसी अन्य व्यक्ति को लिखित रूप में इस बात के लिए प्राधिकृत कर सकेगी कि वह किसी संस्था या स्थान का, जहां प्रयोग किए जा रहे हों, निरीक्षण करे और ऐसे निरीक्षण के परिणाम की उसे रिपोर्ट दे, और इस प्रकार प्राधिकृत अधिकारी या व्यक्ति,- (क) ऐसे किसी समय, जिसे वह उचित समझता है, किसी ऐसी संस्था या स्थान में, जहां पशुओं पर प्रयोग किए जा रहे हों, प्रवेश कर सकेगा और उसका निरीक्षण कर सकेगा ; और (ख) किसी व्यक्ति से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह पशुओं पर किए गए प्रयोगों के बारे में अपने द्वारा रखा गया कोई अभिलेख प्रस्तुत करे । 19. पशुओं पर प्रयोगों का प्रतिषेध करने की शक्ति-यदि धारा 18 के अधीन किए गए किसी निरीक्षण के परिणामस्वरूप, समिति को दी गई किसी अधिकारी या अन्य व्यक्ति की रिपोर्ट पर, या अन्यथा, उस समिति का यह समाधान हो जाता है कि धारा 17 के अधीन उसके द्वारा बनाए गए नियमों का किसी ऐसे व्यक्ति या संस्था द्वारा अनुपालन नहीं किया जा रहा है जो पशुओं पर प्रयोग कर रहा है तो समिति, उस व्यक्ति या संस्था को उस मामले में सुनवाई कर अवसर देने के पश्चात्, आदेश द्वारा, उस व्यक्ति या संस्था को ऐसा कोई प्रयोग करने के लिए, या तो किसी विनिर्दिष्ट अवधि तक के लिए, या अनिश्चित काल के लिए, प्रतिषिद्ध कर सकेगी, अथवा उस व्यक्ति या संस्था को, ऐसी विशेष शर्तों के अधीन रहते हुए, जिन्हें अधिरोपित करना समिति ठीक समझे, ऐसे प्रयोग करने की अनुज्ञा दे सकेगी । 20. शास्तियां-यदि कोई व्यक्ति,- (क) धारा 19 के अधीन समिति द्वारा किए गए किसी आदेश का उल्लंघन करेगा ; अथवा (ख) उस धारा के अधीन समिति द्वारा अधिरोपित किसी शर्त को भंग करेगा, तो वह जुर्माने से, जो दो सौ रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा और यदि वह उल्लंघन या शर्त-भंग किसी संस्था में हुआ है तो उस संस्था के भारसाधक व्यक्ति को उस अपराध का दोषी समझा जाएगा और तदनुसार वह दंडनीय होगा । अध्याय 5 करतब दिखाने वाले पशु 21. “प्रदर्शन" और “प्रशिक्षण" की परिभाषा-इस अध्याय में, “प्रदर्शन" से किसी ऐसे खेल-तमाशे में प्रदर्शन अभिप्रेत है जिसमें टिकट बेच कर जनता को प्रवेश दिया जाता है, और “प्रशिक्षण" से ऐसे किसी प्रदर्शन के प्रयोजनार्थ प्रशिक्षण अभिप्रेत है, और “प्रदर्शक" तथा “प्रशिक्षक" पदों के क्रमशः तत्सम अर्थ हैं ।
22. करतब दिखाने वाले पशुओं के प्रदर्शन और प्रशिक्षण पर निर्बन्धन-कोई भी व्यक्ति,- (i) करतब दिखाने वाले किसी पशु का तब तक प्रदर्शन नहीं करेगा या उसे प्रशिक्षण नहीं देगा जब तक कि वह व्यक्ति इस अध्याय के उपबन्धों के अनुसार रजिस्ट्रीकृत न हो ; (ii) किसी ऐसे पशु का, जिसे केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसे पशु के रूप में विनिर्दिष्ट करे जिसे करतब दिखाने वाले पशु के रूप में न तो प्रदर्शित किया जाएगा और न ही प्रशिक्षित किया जाएगा, करतब दिखाने वाले पशु के रूप में न तो प्रदर्शन करेगा और न उसे प्रशिक्षण देगा । 23. रजिस्ट्रीकरण की प्रक्रिया-(1) करतब दिखाने वाले किसी पशु का प्रदर्शन करने या उसे प्रशिक्षण देने की इच्छा रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को, जब तक कि वह ऐसा व्यक्ति न हो जो इस अध्याय के अधीन न्यायालय द्वारा किए गए किसी आदेश के आधार पर रजिस्ट्रीकृत होने का हकदार न हो, विहित प्राधिकारी को विहित रूप में आवेदन किए जाने तथा विहित फीस अदा किए जाने पर, इस अधिनियम के अधीन रजिस्टर किया जाएगा । (2) इस अध्याय के अधीन रजिस्ट्रीकरण के लिए आवेदन में, पशुओं के बारे में और जिस करतब में पशुओं का प्रदर्शन किया जाना है या जिस करतब के लिए उन्हें प्रशिक्षण दिया जाना है उसकी साधारण प्रकृति के बारे में, ऐसी विशिष्टियां दी जाएंगी जो विहित की जाएं, और इस प्रकार दी गई विशिष्टियां विहित प्राधिकारी द्वारा रखे गए रजिस्टर में दर्ज की जाएंगी । (3) विहित प्राधिकारी प्रत्येक व्यक्ति को, जिसका नाम उसके द्वारा रखने गए रजिस्टर में दर्ज है, रजिस्ट्रीकरण का विहित प्ररूप में एक प्रमाणपत्र देगा जिसमें रजिस्टर में दर्ज विशिष्टियां होंगी । (4) इस अध्याय के अधीन रखा गया प्रत्येक रजिस्टर, विहित फीस अदा करने पर, निरीक्षण के लिए हर उचित समय पर उपलब्ध रहेगा और विहित फीस अदा करने पर कोई भी व्यक्ति उसकी प्रतियां पाने तथा उसमें से उद्धरण लेने का हकदार होगा । (5) कोई भी व्यक्ति, जिसका नाम रजिस्टर में दर्ज है, किसी न्यायालय द्वारा इस अधिनियम के अधीन किए गए किसी आदेश के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, अपने बारे में रजिस्टर में दर्ज प्रविष्टियां परिवर्तित कराने का, उस प्रयोजन के लिए आवेदन करने पर, हकदार होगा, और जहां ऐसी कोई विशिष्टियां इस प्रकार परिवर्तित की जाती हैं वहां विद्यमान प्रमाणपत्र रद्द कर दिया जाएगा और नया प्रमाणपत्र जारी किया जाएगा । 24. करतब दिखाने वाले पशुओं के प्रदर्शन के प्रशिक्षण को प्रतिषिद्ध या निर्बन्धित करने की न्यायालय की शक्ति-(1) जहां किसी पुलिस अधिकारी द्वारा, या धारा 23 में निर्दिष्ट विहित प्राधिकारी द्वारा लिखित रूप में प्राधिकृत किसी अधिकारी द्वारा, किए गए किसी परिवाद पर किसी मजिस्ट्रेट के समाधानप्रद रूप में यह साबित कर दिया जाता है कि करतब दिखाने वाले किसी पशु का प्रशिक्षण या प्रदर्शन अनावश्यक पीड़ा या यातना के साथ किया गया है और उसे प्रतिषिद्ध या कुछ शर्तों पर ही अनुज्ञात किया जाना चाहिए वहां, न्यायालय ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध, जिसके बारे में परिवाद किया गया है, प्रशिक्षण या प्रदर्शन का प्रतिषेध करते हुए, या उसके सम्बन्ध में ऐसी शर्तें अधिरोपित करते हुए, आदेश दे सकेगा जो उस आदेश में विनिर्दिष्ट की जाएं । (2) कोई भी न्यायालय, जिसके द्वारा इस धारा के अधीन कोई आदेश किया जाता है, उस आदेश के किए जाने के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र उसकी एक प्रति उस विहित प्राधिकारी को भिजवाएगा जिसके द्वारा वह व्यक्ति, जिसके विरुद्ध आदेश दिया गया है, रजिस्टर किया गया है, और आदेश की विशिष्टियां उस व्यक्ति द्वारा धारित प्रमाणपत्र पर पृष्ठांकित कराएगा और वह व्यक्ति, पृष्ठांकन के प्रयोजनों के लिए न्यायालय द्वारा प्रमाणपत्र के इस प्रकार अपेक्षित किए जाने पर, प्रमाणपत्र पेश करेगा, तथा वह विहित प्राधिकारी, जिसे इस धारा के अधीन आदेश की कोई प्रति भेजी जाए, उस रजिस्टर में आदेश की विशिष्टियां दर्ज करेगा । 25. परिसर में प्रवेश करने की शक्ति-(1) धारा 23 में निर्दिष्ट विहित प्राधिकारी द्वारा लिखित रूप में प्राधिकृत कोई भी व्यक्ति और कोई पुलिस अधिकारी, जो उप-निरीक्षक से नीचे की पंक्ति का न हो,- (क) किसी भी ऐसे परिसर में, जिसमें करतब दिखाने वाले पशुओं को प्रशिक्षित या प्रदर्शित किया जाता हो अथवा उन्हें प्रशिक्षण या प्रदर्शन के लिए रखा जाता हो, किसी भी उचित समय पर प्रवेश कर सकेगा और उसका तथा उसमें पाए गए ऐसे किसी भी पशु का निरीक्षण कर सकेगा ; और (ख) किसी भी व्यक्ति से, जिसके बारे में उसके पास यह विश्वास करने का कारण हो कि वह करतब दिखाने वाले पशुओं का प्रशिक्षक या प्रदर्शक है, यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह अपना रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र पेश करे । (2) उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट कोई भी व्यक्ति या पुलिस अधिकारी, करतब दिखाने वाले पशुओं के सार्वजनिक तमाशे के दौरान, स्टेज पर या उसके पीछे जाने के लिए, इस धारा के अधीन अधिकृत नहीं होगा । 26. अपराध-यदि कोई व्यक्ति,- (क) जो इस अध्याय के अधीन रजिस्ट्रीकृत नहीं है, करतब दिखाने वाले किसी पशु का प्रदर्शन करेगा या उसे प्रशिक्षण देगा ; अथवा (ख) इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत होते हुए, करतब दिखाने वाले किसी ऐसे पशु का, जिसकी बाबत, या ऐसी रीति से, जिसकी बाबत, वह रजिस्ट्रीकृत नहीं है, प्रदर्शन करेगा या उसे प्रशिक्षण देगा ; अथवा (ग) किसी ऐसे पशु का, करतब दिखाने वाले पशु के रूप में प्रदर्शन करेगा या उसे प्रशिक्षण देगा जो धारा 22 के खंड (ii) के अधीन जारी की गई अधिसूचना के कारण उक्त प्रयोजन के लिए प्रयोग में नहीं लाया जाना है; अथवा (घ) प्रवेश और निरीक्षण के बारे में, इस अधिनियम के अधीन शक्तियों का प्रयोग करने में, धारा 25 में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति या पुलिस अधिकारी को बाधा पहुंचाएगा या जानबूझकर टालमटोल करेगा ; अथवा (ङ) ऐसे निरीक्षण से बचने की दृष्टि से किसी पशु को छिपाएगा ; अथवा (च) इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत व्यक्ति होते हुए, इस अधिनियम के अधीन अपना प्रमाणपत्र पेश करने के लिए इस अधिनियम के अनुसरण में सम्यक् रूप से अपेक्षित किए जाने पर, बिना उचित कारण के वैसा करने में असफल रहेगा ; अथवा (छ) जब कि वह इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत होने का हकदार नहीं है तब ऐसे रजिस्ट्रीकरण के लिए आवेदन देगा, तो वह दोषसिद्ध किए जाने पर जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या दोनों से, दंडनीय होगा । 27. छूट-इस अध्याय की कोई भी बात,- (क) वास्तविक सैनिक या पुलिस प्रयोजनों के लिए पशुओं के प्रशिक्षण को, अथवा इस प्रकार प्रशिक्षित किन्हीं पशुओं के प्रदर्शन को, लागू नहीं होगी ; अथवा (ख) किसी चिड़ियाघर में या किसी ऐसी सोसाइटी या संगम द्वारा रखे गए पशुओं को लागू नहीं होगी जिसका मुख्य उद्देश्य शैक्षणिक या वैज्ञानिक प्रयोजनों के लिए पशुओं का प्रदर्शन करना है । अध्याय 6 प्रकीर्ण 28. धर्म द्वारा विहित वध की रीति के सम्बन्ध में व्यावृत्ति-इस अधिनियम की कोई भी बात किसी समुदाय के धर्म द्वारा अपेक्षित रीति से किसी पशु के वध को अपराध नहीं बनाएगी । 29. सिद्धदोष व्यक्ति को, पशु के स्वामित्व से वंचित करने की न्यायालय की शक्ति-(1) यदि यह पाया जाता है कि किसी पशु का स्वामी इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का दोषी है तो न्यायालय, उस अपराध के लिए उसे सिद्धदोष ठहराए जाने पर, यदि न्यायालय ठीक समझे तो, किसी अन्य दंड के साथ-साथ यह आदेश भी कर सकेगा कि जिस पशु की बाबत अपराध किया गया था वह सरकार के प्रति समपहृत कर लिया जाए और इसके अतिरिक्त, पशु के व्ययन के सम्बन्ध में ऐसा आदेश भी कर सकेगा जिसे वह परिस्थितियों में ठीक समझे । (2) उपधारा (1) के अधीन कोई भी आदेश तब तक नहीं किया जाएगा जब तक कि इस अधिनियम के अधीन किसी पूर्वतन दोषसिद्धि के बारे में साक्ष्य द्वारा अथवा स्वामी के चरित्र के बारे में या अन्यथा पशु के प्रति बर्ताव के बारे में यह दर्शित नहीं कर दिया जाता कि यदि उस पशु को स्वामी के पास छोड़ दिया जाएगा तो उसके प्रति और भी अधिक क्रूरता होना संभाव्य है । (3) उपधारा (1) के उपबन्धों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, न्यायालय यह आदेश भी दे सकेगा कि इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराया गया व्यक्ति किसी भी किस्म के पशु को, या आदेश में विनिर्दिष्ट किसी प्रकार या नस्ल के पशु को, जैसा भी न्यायालय ठीक समझे, अभिरक्षा में रखने से स्थायी रूप से अथवा ऐसी अवधि के दौरान, जो आदेश द्वारा नियत की जाए, प्रतिषिद्ध होगा । (4) उपधारा (3) के अधीन कोई भी आदेश तब तक नहीं किया जाएगा जब तक- (क) किसी पूर्वतन दोषसिद्धि के बारे में साक्ष्य द्वारा अथवा उक्त व्यक्ति के चरित्र के बारे में, या अन्यथा उस पशु के प्रति बर्ताव के बारे में, जिसके सम्बन्ध में उसे दोषसिद्ध किया गया है, यह दर्शित न किया गया हो कि उक्त व्यक्ति की अभिरक्षा में के पशु के प्रति क्रूरता की जानी सम्भाव्य है ; (ख) उस परिवाद में, जिस पर दोषसिद्धि हुई थी, यह उल्लेख न किया गया हो कि परिवादी का आशय यह अनुरोध करना है कि अपराधी के दोषसिद्ध किए जाने पर उसे यथापूर्वोक्त आदेश दिए जाएं ; और (ग) वह अपराध, जिसके लिए दोषसिद्धि हुई थी, ऐसे क्षेत्र में न किया गया हो जिसमें किसी ऐसे पशु को रखने के लिए, जिसकी बाबत दोषसिद्धि हुई थी, तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन अनुज्ञप्ति लेना आवश्यक है । (5) तत्समय प्रवृत्त किसी विधि में किसी प्रतिकूल बात के होते हुए भी, किसी भी व्यक्ति को, जिसकी बाबत उपधारा (3) के अधीन कोई आदेश किया गया है, उस आदेश के उपबन्धों के प्रतिकूल किसी पशु को अपनी अभिरक्षा में रखने का अधिकार नहीं होगा और यदि वह आदेश के उपबन्धों का उल्लंघन करेगा तो वह जुर्माने से, जो एक सौ रुपए तक का हो सकेगा, या कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या दोनों से, दंडनीय होगा । (6) कोई भी न्यायालय, जिसने उपधारा (3) के अधीन कोई आदेश दिया है, स्वप्रेरणा से या इस निमित्त उसे किए गए आवेदन पर, किसी भी समय उस आदेश का विखंडन या उपान्तरण कर सकेगा । 30. कतिपय दशाओं में दोष के बारे में उपधारणा-यदि कोई व्यक्ति धारा 11 की उपधारा (1) के खंड (ठ) के उपबन्धों के प्रतिकूल किसी बकरी, गाय या उसकी सन्तति का वध करने के अपराध से अरोपित किया गया है और यह साबित हो जाता है कि जिस समय अपराध का किया जाना अभिकथित है उस समय उस व्यक्ति के कब्जे में ऐसे किसी पशु की, जो इस धारा में निर्दिष्ट है, सिर की खाल के किसी भाग से संलग्न कोई खाल थी तो, जब तक प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए, यह उपधारणा की जाएगी कि उस पशु का वध क्रूरता से किया गया था । 31. अपराधों की संज्ञेयता-दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का 5) में किसी बात के होते हुए भी, धारा 11 की उपधारा (1) के खंड (ठ), खंड (ढ), खंड (ण) या धारा 12 के अधीन दंडनीय अपराध उस संहिता के अर्थ में संज्ञेय अपराध होगा । 32. तलाशी और अभिग्रहण की शक्तियां-(1) यदि किसी पुलिस अधिकारी के पास, जो उपनिरीक्षक की पंक्ति से नीचे का नहीं है, या इस निमित्त राज्य सरकार द्वारा प्राधिकृत किसी व्यक्ति के पास यह विश्वास करने का कारण है कि धारा 30 में निर्दिष्ट किसी ऐसे पशु के सम्बन्ध में धारा 11 की उपधारा (1) के खंड (ठ) के अधीन कोई अपराध किसी स्थान में किया जा रहा है या किया ही जाने वाला है या किया गया है या किसी व्यक्ति के कब्जे में ऐसे पशु की ऐसी खाल है जिससे सिर की खाल का कोई भाग संलग्न है तो वह ऐसे स्थान या किसी भी स्थान में, जिसके बारे में उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि वहां ऐसी कोई खाल है, प्रवेश कर सकेगा और तलाशी ले सकेगा और ऐसी कोई खाल या वस्तु या चीज, जो ऐसा अपराध करने में प्रयुक्त की गई हो या की जानी आशयित हो, अभिगृहीत कर सकेगा । (2) यदि किसी पुलिस अधिकारी के पास, जो उपनिरीक्षक की पंक्ति से नीचे का नहीं है, या इस निमित्त राज्य सरकार द्वारा प्राधिकृत किसी व्यक्ति के पास यह विश्वास करने का कारण है कि उसकी अधिकारिता की सीमाओं के भीतर किसी पशु पर फूका या [डूमदेव या धारा 12 में निर्दिष्ट प्रकृति की कोई क्रिया की गई है या की जा रही हैट तो वह उस स्थान में प्रवेश कर सकेगा जिसमें उसे उस पशु के होने का विश्वास है और वह उस पशु को अभिगृहीत कर सकेगा और उसे उस क्षेत्र के, जिसमें वह पशु अभिगृहीत किया गया है, भारसाधक पशु चिकित्सा अधिकारी के पास परीक्षा के लिए ले जाएगा । 33. तलाशी वारण्ट-(1) यदि किसी प्रथम या द्वितीय वर्ग के मजिस्ट्रेट या उप खण्ड मजिस्ट्रेट या पुलिस आयुक्त या जिला पुलिस अधीक्षक के पास, लिखित इत्तिला पर और ऐसी जांच के पश्चात्, जैसी वह ठीक समझे, यह विश्वास करने का कारण हो कि किसी स्थान में इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किया गया है या किया जा रहा है या किया ही जाने वाला है तो वह या तो स्वयं उस स्थान में प्रवेश करके तलाशी ले सकेगा या अपने अधिपत्र द्वारा किसी पुलिस अधिकारी को, जो उपनिरीक्षक की पंक्ति से नीचे का न हो, उस स्थान में प्रवेश करने और तलाशी लेने के लिए प्राधिकृत कर सकेगा । (2) तलाशियों से सम्बन्धित दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का 5) के उपबन्ध, जहां तक वे लागू किए जा सकते हैं, इस अधिनियम के अधीन तलाशियों को लागू किए जाएंगे । 34. परीक्षा के लिए अभिग्रहण की सामान्य शक्ति-कांस्टेबल की पंक्ति से ऊपर का कोई पुलिस अधिकारी या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत कोई व्यक्ति, जिसके पास यह विश्वास करने का कारण हो कि किसी पशु के सम्बन्ध में इस अधिनियम के विरुद्ध काई अपराध किया गया है या किया जा रहा है, यदि उसकी राय में परिस्थितियों से ऐसा अपेक्षित है तो, उस पशु को अभिगृहीत कर सकेगा और उसे किसी निकटवर्ती मजिस्ट्रेट द्वारा या किसी ऐसे पशु चिकित्सा अधिकारी जो विहित किया जाए, परीक्षा के लिए ले जाएगा ; और ऐसा पुलिस अधिकारी या प्राधिकृत व्यक्ति उस पशु को अभिगृहीत करते समय उसके भारसाधक व्यक्ति से परीक्षा स्थल तक उसके साथ चलने की अपेक्षा कर सकेगा । 35. पशुओं का उपचार और देख-रेख-(1) राज्य सरकार, साधारण या विशेष आदेश द्वारा, ऐसे पशुओं के उपचार और उनकी देख-रेख के लिए, जिनके सम्बन्ध में इस अधिनियम के विरुद्ध अपराध किए गए हैं रुग्णावास स्थापित कर सकेगी और मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किए जाने के समय तक के लिए किसी पशु का उसमें निरोध प्राधिकृत कर सकेगी । (2) वह मजिस्ट्रेट जिसके समक्ष इस अधिनियम के विरुद्ध किए गए अपराध के लिए अभियोजन संस्थित किया गया है, यह निदेश दे सकेगा कि सम्बद्ध पशु की तब तक रुग्णावास में देख-रेख और उचार किया जाए जब तक वह अपना सामान्य कार्य करने योग्य न हो जाए या अन्यथा उन्मोचल के योग्य न हो जाए, या यह निदेश दे सकेगा कि वह पिंजरापोल में भेज दिया जाए, या यदि उस क्षेत्र का, जिसमें वह पशु पाया जाए, भारसाधक पशु चिकित्सा अधिकारी या ऐसा अन्य पशु चिकित्सा अधिकारी, जिसे इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किया जाए, यह प्रमाणित करता है कि वह लाइलाज है या उसे क्रूरता किए बिना हटाया नहीं जा सकता तो उसे नष्ट कर दिया जाए । (3) किसी रुग्णावास में उपचार और देख-रेख के लिए भेजा गया पशु उस स्थान से, जब तक कि मजिस्ट्रेट यह निदेश नहीं देता कि उसे पिंजरापोल में भेज दिया जाए या नष्ट कर दिया जाए, उस क्षेत्र का, जिसमें रुग्णावास स्थित है, भारसाधक पशु चिकित्सा अधिकारी या अन्य ऐसा पशु चिकित्सा अधिकारी, जो इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किया जाए, यह प्रमाणपत्र नहीं दे देता कि वह उन्मोचित किए जाने के योग्य है, छोड़ा नहीं जाएगा । (4) किसी पशु को किसी रुग्णावास या पिंजरापोल तक ले जाने का, और रुग्णावास में उसके पोषण और उपचार का खर्च पशु के स्वामी द्वारा, जिला मजिस्ट्रेट या प्रेसिडेंसी नगरों में पुलिस आयुक्त द्वारा विहित की जाने वाली दरों के मापमान के अनुसार संदेय होगा : परन्तु उस पशु के उपचार के लिए कोई भी प्रभार संदेय नहीं होगा, यदि पशु के स्वामी की निर्धनता के कारण मजिस्ट्रेट वैसा आदेश दे । (5) उपधारा (4) के अधीन किसी पशु के स्वामी द्वारा संदेय रकम उसी रीति से वसूल की जा सकेगी जिस रीति से भू-राजस्व की बकाया वसूल की जाती है । (6) यदि स्वामी उतने समय के भीतर, जितना मजिस्ट्रेट विहित करे, उस पशु को हटाने से इंकार करता है या उसकी उपेक्षा करता है तो मजिस्ट्रेट निदेश दे सकेगा कि वह पशु बेच दिया जाए और बिक्री से प्राप्त धन को उस खर्च का संदाय करने में उपयोजित किया जाए । (7) बिक्री से प्राप्त ऐसे धन का अतिशेष, यदि कोई हो, बिक्री की तारीख से दो मास के भीतर स्वामी द्वारा आवेदन किए जाने पर, उसे दे दिया जाएगा । 36. अधियोजनों के परिसीमा-इस अधिनियम के विरुद्ध किसी अपराध के लिए अभियोजन उस अपराध के किए जाने की तारीख से तीन मास के अवसान के पश्चात् संस्थित नहीं किया जाएगा । 37. शक्तियों का प्रत्यायोजन-केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, यह निदेश दे सकेगी कि इस अधिनियम के अधीन उसके द्वारा प्रयोक्तव्य सभी या कोई भी शक्तियां, ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, जिन्हें अधिरोपित करना वह ठीक समझे, किसी राज्य सरकार द्वारा भी प्रयोक्तव्य होंगी । 38. नियम बनाने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, और पूर्व प्रकाशन की शर्त के अधीन रहते हुए, बना सकेगी । (2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, केन्द्रीय सरकार निम्नलिखित सभी या किन्हीं भी विषयों का उपबंध करने के लिए नियम बना सकेगी, अर्थात् :- (क) बोर्ड के सदस्यों की सेवा [की शर्तेंट, उन्हें संदेय भत्ते और वह रीति जिससे वे अपनी शक्तियों का प्रयोग और अपने कृत्यों का निर्वहन कर सकेंगे ; [(कक) वह रीति जिससे नगर निगमों का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्तियों का धारा 5 की उपधारा (1) के खण्ड (ङ) के अधीन निर्वाचन किया जाना है ;] (ख) किसी पशु द्वारा ले जाया या ढोया जाने वाला अधिकतम भार (जिसमें उस पर सवारी करने वालों का भार भी सम्मिलित है) ; (ग) पशुओं के अतिभरण की रोकथाम के लिए पालन की जाने वाली शर्तें ; (घ) वह अवधि जिसके दौरान और वे घंटे, जिनके बीच किसी भी वर्ग के पशुओं को भार ढोने के लिए प्रयुक्त नहीं किया जाएगा ; (ङ) किसी लगाम के दहाने या जुए का ऐसा प्रयोग प्रतिषिद्ध करना जिससे कि पशुओं के प्रति क्रूरता होती हो ; [(ङक) धारा 11 की उपधारा (3) के खण्ड (ख) में निर्दिष्ट आवारा कुत्तों के नष्ट किए जाने की अन्य पद्धतियां; (ङख) वे पद्धतियां जिनसे ऐसे पशु को, जिसे बिना क्रूरता के नहीं हटाया जा सकता है, धारा 13 की उपधारा (3) के अधीन नष्ट किया जा सकेगा ;] (च) नालबन्दी का कारबार करने वाले व्यक्तियों के लिए अनुज्ञप्ति और रजिस्ट्रीकरण की ऐसे प्राधिकारी द्वारा अपेक्षा करना जो विहित किया जाए, और उस प्रयोजन के लिए फीस उद्गृहीत करना ; (छ) बिक्री या निर्यात के प्रयोजनों के लिए या किसी अन्य प्रयोजन के लिए पशुओं को पकड़ने के सम्बन्ध में बरती जाने वाली पूर्वावधानी, तथा वे विभिन्न उपकरण और युक्तियां, जिनका ही उस प्रयोजन के लिए उपयोग किया जा सकेगा ; और इस प्रकार पकड़े जाने के लिए अनुज्ञप्ति तथा ऐसी अनुज्ञप्तियों के लिए फीस का उद्ग्रहण ; (ज) रेल, सड़क, अन्तर्देशीय जलमार्ग, समुद्र या वायु द्वारा पशुओं के परिवहन के सम्बन्ध में बरती जाने वाली पूर्वावधानी और वह रीति जिससे तथा वे पिंजरे या अन्य पात्र, जिनमें उनका इस प्रकार परिवहन किया जा सकेगा ; (झ) उन परिसरों के स्वामियों या भारसाधक व्यक्तियों से, जिनमें पशु रखे जाते हैं या दुहे जाते हैं, ऐसे परिसरों को रजिस्टर करवाने की, परिसरों की चहारदीवारियों या चारों ओर के वातावरण के सम्बन्ध में निर्धारित शर्तों का अनुपालन करने की, यह अभिनिश्चित करने के प्रयोजन के लिए कि क्या उनमें इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किया गया है या किया जा रहा है उनका निरीक्षण करने देने की, और ऐसे परिसरों में इस अधिनियम की धारा 12 की प्रतियां उस भाषा या उन भाषाओं में, जो उस क्षेत्र में सामान्यतः समझी जाती हों, प्रदर्शित करने की, अपेक्षा करना ; (ञ) वह प्ररूप जिसमें अध्याय 5 के अधीन रजिस्ट्रीकरण के लिए आवेदन किए जा सकेंगे, वे विशिष्टियां जो उसमें अर्न्तीष्ट होंगी, ऐसे रजिस्ट्रीकरण के लिए संदेय फीस और वे प्राधिकारी जिन्हें ऐसे आवेदन किए जा सकेंगे ; [(ञक) वे फीसें जो उन व्यक्तियों या संस्थाओं के रजिस्ट्रीकरण के लिए, जो पशुओं पर प्रयोग कर रहे हैं, या किसी अन्य प्रयोजन के लिए, धारा 15 के अधीन गठित समिति द्वारा प्रभारित की जा सकेंगी ;] (ट) वे प्रयोजन, जिनके लिए इस अधिनियम के अधीन वसूल किए गए जुर्माने उपयोजित किए जा सकेंगे, और इन प्रयोजनों के अन्तर्गत रुग्णावासों, पिंजरापोलों और पशु चिकित्सा के अस्पतालों का बनाए रखना जैसे प्रयोजन भी हैं ; (ठ) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाना है या विहित किया जाए । (3) यदि कोई व्यक्ति इस धारा के अधीन बनाए गए किसी नियम का उल्लंघन करेगा या उल्लंघन का दुष्प्रेरण करेगा तो वह जुर्माने से, जो एक सौ रुपए तक का हो सकेगा, या कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा । । । । । । [38क. नियमों और विनियमों का संसद् के समक्ष रखा जाना-केन्द्रीय सरकार द्वारा या धारा 15 के अधीन गठित समिति द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम और बोर्ड द्वारा बनाया गया प्रत्येक विनियम बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा । यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन, यथास्थिति, उस नियम या विनियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं, तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि, यथास्थिति, वह नियम या विनियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा । किन्तु नियम या विनियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।] 39. धारा 34 के अधीन प्राधिकृत व्यक्तियों का लोक सेवक होना-धारा 34 के अधीन राज्य सरकार द्वारा प्राधिकृत प्रत्येक व्यक्ति भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थ में लोक सेवक समझा जाएगा । 40. संरक्षण-इस अधिनियम के अधीन सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिए आशयित किसी बात के लिए कोई वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही किसी व्यक्ति के विरुद्ध, जो भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थ में लोक सेवक है या समझा जाता है, न होगी । 41. 1890 के अधिनियम सं० 11 का निरसन-जहां कि धारा 1 की उपधारा (3) के अधीन किसी अधिसूचना के अनुसरण में इस अधिनियम का कोई उपबंध किसी राज्य में प्रवृत्त होता है वहां, पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम, 1890 (1890 का 11) का ऐसा कोई उपबंध, जो इस प्रकार प्रवृत्त होने वाले उपबन्ध का तत्स्थानी है, तदुपरि निरसित हो जाएगा । ______ पशु क्रूरता में कौन सी धारा लगती है?भारत में पशुओं के खिलाफ क्रूरता को रोकने के लिए साल 1960 में पशु क्रूरता निवारण अधिनियम लाया गया था। साथ ही इस ऐक्ट की धारा-4 के तहत साल 1962 में भारतीय पशु कल्याण बोर्ड का गठन किया गया। इस अधिनियम का उद्देश्य पशुओं को अनावश्यक सजा या जानवरों के उत्पीड़न की प्रवृत्ति को रोकना है।
पशु क्रूरता अधिनियम की धारा 11 क्या है?पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 की धारा 11 की परिभाषा:-
अगर कोई पशु का मालिक स्वयं के पशु को आवारा छोड़ देता है या उसका इलाज नहीं करवाता है या उसे भूखा-प्यासा रखता है या बीमार होने पर उसे भगा देता है या पागल होने पर कुत्ते जैसे जानवरों को मरवा देता है तब ऐसा व्यक्ति पशु क्रूरता के अपराध का दोषी होगा।
पशु कानून क्या होता है?पशुओं को अनावश्यक पीड़ा या यातना देने के निवारण के लिए और इस प्रयोजन के लिए पशुओं के प्रति क्रूरता संबंधित विधि (कानून) का संशोधन करना होगा। 1. (1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम 1960 है। (2) इसका विस्तार जम्मू और कश्मीर राज्य के सिवाय सम्पूर्ण भारत पर है ।
सरकार ने जंगली जानवरों के संबंध में क्या कानून बनाया है?जानवरों पर हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1972 में भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम पारित किया था। इसका मकसद वन्य जीवों के अवैध शिकार, मांस और खाल के व्यापार पर रोक लगाना था। इसमें वर्ष 2003 में संशोधन किया गया जिसका नाम भारतीय वन्य जीव संरक्षण (संशोधित) अधिनियम 2002 रखा दिया गया।
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