भारत में औपनिवेशिक नीति का अच्छा प्रभाव पड़ा सत्य है या असत्य - bhaarat mein aupaniveshik neeti ka achchha prabhaav pada saty hai ya asaty

सत्य असत्य बताइए भारत में औपनिवेशिक नीति का अच्छा प्रभाव पड़ा सत्य है कि असत्य?...


भारत में औपनिवेशिक नीति का अच्छा प्रभाव पड़ा सत्य है या असत्य - bhaarat mein aupaniveshik neeti ka achchha prabhaav pada saty hai ya asaty

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नमस्कार आपका सवाल है कि सत्य है सत्य बताएं भारत में औपनिवेशिक नीति का अच्छा प्रभाव पड़ा यह सत्य है कि आ सकते हैं तो कोई भी अपने काम होता है तो उसके जो प्रभाव है जो उसके कुछ एक प्रभाव अच्छे भी पढ़ते हैं और उसके कुछ एक प्रभाव बुरे भी पढ़ते हैं तो उपनिवेश है जो उसका ही तो प्रभाव अच्छे भी पड़े तो की उपनिवेश एक नीति किसे कहेंगे एक देवता दूसरे देश में किसी भी बात के संपर्क अगर हम किसी के संपर्क में नहीं आएंगे अगर हम किसी भी चीज का प्रचार-प्रसार नहीं होगा तो उसे कैसे उसके जो फायदे और नुकसान का हमें पता चलेगा उपनिवेश अगर किसी व्यक्ति का शोषण होता है तो वह उसके लिए नुकसानदायक होता है वही चीज अगर किसी के बहुत से व्यक्तियों के फायदे के लिए हो तो वह चीज है क्या अच्छी होती है तो उपनिवेश हमें कि अगर कोई हमारे लिए चीज का जिसकी वजह से लोगों में अच्छा प्रचार प्रसार हुआ तो वह चीज है जो फायदेमंद हुई तो इस प्रकार से जो यह अर्धसत्य इसको कह सकती है ना यह सत्य है और यह ने इसको ऐसा कह सकती जब भी कोई भी चीज हो किसी भी चीज का जो इस्पेक्टर जो अलग-अलग पड़ता है नेट में स्थान और परिस्थिति के अनुसार उस चीज को उसके अकॉर्डिंग देखा जा सकता है कि उसके ने उसे कितना नुकसान हुआ है यह से कितना फायदा हुआ है अभी वह चीज है जो किसी के लिए जो हम उसके बारे में जो अपनी राय दें धन्यवाद

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भारत में औपनिवेशिक नीति का अच्छा प्रभाव पड़ा सत्य है या असत्य - bhaarat mein aupaniveshik neeti ka achchha prabhaav pada saty hai ya asaty

1 जवाब

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  • सत्य का स्वरूप स्पष्ट करते हुए बताइए कि हम सत्य से दूर क्यों भागते हैं - satya ka swaroop spasht karte hue bataiye ki hum satya se dur kyon bhagte hain
  • सही अर्थ में नीति का नियमों का वह समूह जिसके द्वारा व्यक्ति का अंत करण सत्य है सत्य का ज्ञान कराता है इसके कथन में विद्वान कौन है - sahi arth me niti ka niyamon ka vaah samuh jiske dwara vyakti ka ant karan satya hai satya ka gyaan karata hai iske kathan me vidhwaan kaun hai

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20 मई 1498 को वास्को डी गामा के कालीकट पहुंचने के साथ ही भारत के यूरोपीय उपनिवेशीकरण का ग्रहण आरम्भ हो गया।

औपनिवेशिक भारत, भारतीय उपमहाद्वीप का वह भूभाग है जिसपर यूरोपीय साम्राज्य था।

पुर्तगालियों के उपनिवेशडच के उपनिवेश ( डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी देखें)अंग्रेजों द्वारा उपनिवेशीकरण (क) ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी का शासन (१८५७ तक)(ख) प्रत्यक्ष ब्रिटिश राज फ्रांसीसी उपनिवेशडेनमार्क के उपनिवेश

भारत बहुत दिनों तक इंग्लैंड का उपनिवेश रहा है। सन 1600 ई में स्थापित यह कम्पनी मुगल शासन उत्तराधिकार बनी। प्रारंभ का उद्देश्य व्यापार करना तथा मुंबई कोलकाता और मद्रास के बंदरगाह से होकर शेष भारत में इसका संपर्क रहता था। धीरे-धीरे कंपनी की प्रादेशिक मौत की इच्छा प्रबल होती गई और और शीघ्र विवाह भारत में एक प्रमुख यूरोपीय शक्ति बन गई थी । सन 1773 से 1858 ई. तक का युग ऐसा रहा जिसे हम दोहरी सरकार का काल कहते हैं।कंपनी के साथ साथ ब्रिटिश संसद में भारतीय प्रशासनिक विषयों में अधिक रुचि लेने लगे। बंगाल में दीवानी अधिकार प्राप्त करने के समय से लेकर सन् 1857 ईसवीं तक कंपनी शासन ने अपने आप को एक ऐसी स्थिति में पाया, जिसे मुगलकालीन प्रशासन उसके अपने साम्राज्यवादी उद्देश्य के अनुरूप नहीं था और भारत जैसे देश में अंग्रेजी प्रशासन की विशेषताएं उत्पन्न करना एक कठिन कार्य था।सन् 1858 से 1947 तक क्राउन की सरकार ने संवैधानिक सीमा में रहते हुए संसदीय संस्थाओं को विकसित करने का अनेक प्रयत्न किया। जिसके फलस्वरूप भारतीय प्रशासन को भी राजनीतिक और आर्थिक सुधारों की दृष्टि से एक नया प्रयोग क्षेत्र माना जाने लगा। रेगुलेटिंग एक्ट से प्रारंभ होने वाले संवैधानिक विकास के चरण जिस महत्वपूर्ण बरसों से गुजरे हैं उसमें 1813, 1833, 1858, 1861, 1893, 1909, 1919 और 1935 महत्वपूर्ण हैं। सन् 1858 में क्राउन द्वारा सत्ता हस्तगत कर लिए जाने पर लंदन में गिरी सरकार की स्थापना हुई और महारानी विक्टोरिया ने उदारवादी घोषणा द्वारा अपनी भावी सुधारों की ओर संकेत किया। 1761 के अधिनियम ने भारत के प्रांतीय और कार्यकारिणी को संगठित बनाया तथा इसके द्वारा आधुनिक प्रांतीय विधान मंडलों की नीव पड़ी। 1858 से 1862 ईसवीं तक की उदारवादी मांगों के फलस्वरुप एक समिति व्यवस्था का जन्म हुआ जिसमें अप्रत्यक्ष चुनाव का वादा किया।

1 858 के पूर्व प्रशासनिक व्यवस्था:- भारतीय संवैधानिक तथा प्रशासनिक व्यवस्था के विकास में 1773 के अधिनियम का विशेष महत्त्व है। इस अधिनियम के पूर्व भारत में कोई केंद्रीय सत्ता नहीं। ईस्ट इंडिया कंपनी किस शासन शक्तियां तीन स्थानों मुंबई बंगाल और मद्रास में केंद्रित थी।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • ब्रिटिश राज

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

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