भारत में लोकतंत्र की क्या भूमिका है? - bhaarat mein lokatantr kee kya bhoomika hai?

दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों में से एक कहे जाने वाले भारत में लोकतंत्र कमज़ोर पड़ रहा है, स्वीडन स्थित एक संस्था 'वी- डेम इंस्टीट्यूट' ने अपनी रिपोर्ट में कुछ ऐसे ही संकेत दिए हैं.

वी- डेम इंस्टीट्यूट की '2020 की लोकतंत्र रिपोर्ट' केवल भारत के बारे में नहीं है. इस रिपोर्ट में दुनियाभर के कई देश शामिल हैं, जिनके बारे में ये रिपोर्ट दावा करती है कि वहाँ लोकतंत्र कमज़ोर पड़ता जा रहा है.

इस रिपोर्ट को तैयार करने वाली स्वीडन के गोटेनबर्ग विश्वविद्यालय से जुड़ी संस्था वी- डेम इंस्टीट्यूट के अधिकारी कहते हैं कि भारत में लोकतंत्र की बिगड़ती स्थिति की उन्हें चिंता है. रिपोर्ट में 'उदार लोकतंत्र सूचकांक' में भारत को 179 देशों में 90वाँ स्थान दिया गया है और डेनमार्क को पहला.

भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका 70वें स्थान पर है जबकि नेपाल 72वें नंबर पर है. इस सूची में भारत से नीचे पाकिस्तान 126वें नंबर पर है और बांग्लादेश 154वें स्थान पर.

इस रिपोर्ट में भारत पर अलग से कोई चैप्टर नहीं है, लेकिन इसमें कहा गया है कि मीडिया, सिविल सोसाइटी और मोदी सरकार में विपक्ष के विरोध की जगह कम होती जा रही है, जिसके कारण लोकतंत्र के रूप में भारत अपना स्थान खोने की क़गार पर है.

वी- डेम इंस्टीट्यूट के अधिकारी कहते हैं कि इस रिपोर्ट को तैयार करते समय वैश्विक मानक और स्थानीय जानकारियों का ध्यान रखा गया है. इंस्टीट्यूट का दावा है कि उनकी ये रिपोर्ट बाक़ी रिपोर्टों से अलग है क्योंकि ये जटिल डेटा पर आधारित है.

रिपोर्ट पर एक नज़र डालते ही समझ में आता है कि इसमें डेटा, डेटा एनालिटिक्स, ग्राफ़िक्स, चार्ट और मैप का भरपूर इस्तेमाल किया गया है.

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स्टाफ़न लिंडबर्ग

लोकतंत्र के इंडिकेटर्स पर भारत

संस्था के निदेशक स्टाफ़न लिंडबर्ग ने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में कहा, "ये मैं या पश्चिमी देशों में बैठे गोरे लोग भारत या दूसरे देशों में लोकतंत्र की दशा पर नहीं बोल रहे हैं. हमारे साथ 3,000 से अधिक विशेषज्ञों का एक नेटवर्क जुड़ा है, जिनमें से भारत में काम करने वाले पढ़े-लिखे लोग भी हैं, जो सिविल सोसाइटी और राजनीतिक पार्टियों को जानते हैं. उनकी विशेषज्ञता पक्की है."

वो आगे कहते हैं कि उनके सहयोगी किसी भी एक देश में 400 इंडिकेटर्स को लेकर लोकतंत्र की सेहत को परखने की कोशिश करते हैं. इनमें से प्रमुख इंडिकेटर्स हैं- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मीडिया की स्वतंत्रता, सिविल सोसाइटी की स्वतंत्रता, चुनावों की गुणवत्ता, मीडिया में अलग-अलग विचारों की जगह और शिक्षा में स्वतंत्रता.

लिंडबर्ग कहते हैं, "इनमें से कई लोकतंत्र के स्तंभ हैं, जो भारत में कमज़ोर पड़ते जा रहे हैं. मोदी के सत्ता में आने से दो साल पहले इनमें से कुछ इंडिकेटर्स में गिरावट आनी शुरू हो चुकी थी, लेकिन वास्तव में इसमें नाटकीय गिरावट मोदी के 2014 में सत्ता में आने के बाद से आने लगी."

लिंडबर्ग ने बताया, "मेरे विचार में पिछले पाँच से आठ सालों में स्थिति अधिक बिगड़ गई है. भारत अब लोकतंत्र न कहलाए जाने वाले देशों की श्रेणी में आने के बिल्कुल क़रीब है. हमारे इंडिकेटर्स बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में सरकार के प्रति मीडिया का पक्ष लेने का सिलसिला काफ़ी बढ़ गया है. सरकार की ओर से पत्रकारों को प्रताड़ित करना, मीडिया को सेंसर करने की कोशिश करना, पत्रकारों की गिरफ़्तारी और मीडिया की ओर से सेल्फ़ सेंसरशिप की घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं."

लेकिन ज़रा समझें कि लोकतंत्र है क्या और क्यों ये अहम है. लोकतंत्र में आम जनता मतदान करके अपने प्रतिनिधियों को चुनती है, जिसके बाद बहुमत हासिल करने वाली पार्टी सरकार बनाती है.

प्रसार भारती के पूर्व चेयरमैन और दक्षिणपंथी समझे जाने वाले थिंक टैंक विवेकानंद फ़ाउंडेशन में लोकतंत्र के विशेषज्ञ ए सूर्य प्रकाश कहते हैं, "लोकतंत्र के आठ गुण होने चाहिए. अभिव्यक्ति की आज़ादी, सेक्युलरिज़्म या पंथनिरपेक्षता, धर्म और राज्य में विभाजन, गणतांत्रिक सरकार यानी राजशाही सरकार नहीं, समानता का अधिकार यानी क़ानून के सामने सब बराबर, जीने और व्यक्तिगत अधिकारों की आज़ादी और वोट देने का अधिकार."

सूर्य प्रकाश के अनुसार दुनिया भर में सबसे अधिक विविधता भारत के लोकतंत्र में है. इस रिपोर्ट में डेनमार्क के लोकतंत्र को पहले नंबर पर रखा गया है, जिस पर सूर्य प्रकाश कहते हैं, "डेनमार्क का संविधान कहता है कि होली बाइबिल पर आधारित इवैन्जेलिकल लूथेरियन चर्च डेनमार्क का स्थापित चर्च होगा, जिसे देश का सहयोग मिलेगा. हमारे संविधान को देखिए, जिसकी प्रस्तावना में हमने धर्मनिरपेक्षता को शामिल किया है. वो लोग क्या बात करते हैं, हमारे साथ उनकी कोई तुलना है ही नहीं."

सूर्य प्रकाश कहते हैं कि भारत आज भी एक विशाल लोकतंत्र है, विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र. उन्हें वी-डेम की रिपोर्ट पर थोड़ी आपत्ति है.

वो कहते हैं, "बिना दोष के कोई देश नहीं है. कुछ न कुछ कमी सभी में है. पूरा दोष नरेंद्र मोदी की सरकार पर डालने का मतलब ये है कि हमारे संविधान की इन्हें समझ ही नहीं है. अगर ये समझेंगे तो पता चलेगा कि 28 राज्यों में से आधे में अलग-अलग पार्टियाँ सत्ता में हैं. मैं एक दिन जोड़ रहा था कि 28 राज्यों में 42 पार्टियाँ सत्ता में हैं और केंद्र सरकार भी एक गठबंधन है."

ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अक्सर भारत के लोकतंत्र की चर्चा करते रहते हैं. पिछले महीने दुनियाभर के निवेशकों की एक सभा से उन्होंने कहा था कि भारत निवेश के लिए सबसे सही जगह है क्योंकि भारत एक लोकतंत्र हैं.

अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से लेकर पश्चिमी देशों के कई नेताओं ने भारत के लोकतंत्र की सराहना की है.

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नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ दिल्ली में हुए प्रदर्शन में पहुंचे अनुराग कश्यप

लोकतंत्र में निरंतर गिरावट?

ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन में लोकतंत्र के विशेषज्ञ निरंजन साहू वी-डेम की रिपोर्ट पर कहते हैं, "डेटा पर आधारित वी-डेम की रिपोर्ट काफ़ी हद तक लोकतंत्र में निरंतर गिरावट, ख़ासकर भारत में उदारवाद के लगातार कम होने के संकेत की पुष्टि करती है. ये बोलने की आज़ादी, मीडिया की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने और विरोधी आवाज़ों को दबाने के प्रति सरकार की असहनशीलता में नज़र आती है."

रिपोर्ट में मीडिया की कम होती आज़ादी पर काफ़ी ज़ोर है. सूर्य प्रकाश ने भारत के संविधान और इसके लोकतंत्र पर किताबें भी लिखी हैं.

वे कहते हैं, "रिपोर्ट कहती है कि भारत में मीडिया की जगह सिकुड़ती जा रही है. पिछले आठ-दस सालों में हमारे देश में क्या हुआ है इसका इन्हें अंदाज़ा ही नहीं है. रजिस्ट्रार ऑफ़ न्यूज़पेपर्स हर साल आँकड़े जारी करते हैं, जिसके अनुसार 2014 में दैनिक अख़बारों का सर्कुलेशन 14 करोड़ था, जो 2018 में बढ़कर 24 करोड़ हो गया. देश में 800 टीवी चैनल हैं, जिनमें 200 न्यूज़ चैनल हैं. लोगों के घरों में टीवी देखने वाले 14 करोड़ थे, जो 2018 में बढ़कर 20 करोड़ हो गए. इंटरनेट कनेक्शन पाँच सालों में 15 करोड़ से 57 करोड़ हो गया है. अगर तानाशाही हो, तो मीडिया का इस तरह से विस्तार कैसे हो सकता है?"

अपने तर्क को आगे बढ़ाते हुए सूर्य प्रकाश रिपोर्ट तैयार करने वालों से पूछते हैं, "ये लोग शाम को हमारे शाउटिंग ब्रिगेड (टीवी चैनलों पर चिल्ला कर बहस करने वाले पैनलिस्ट) को नहीं देखते हैं क्या? हर टीवी चैनल पर रोज़ शाम को दोनों तरफ़ से तेज़ बहस होती है. लोकतांत्रिक व्यवस्था न हो, तो ऐसा नहीं हो सकता. सोशल मीडिया पर एक दिन मैंने देखा कि मोदी सबसे ख़राब प्रधानमंत्री का हैशटैग ट्रेंड कर रहा है. अगर आपको बोलने की आज़ादी नहीं है और एक स्वस्थ लोकतंत्र न हो, तो क्या ये हैशटैग सोशल मीडिया पर चल सकेगा?"

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फोन पर प्रधानमंत्री मोदी का भाषण सुनते लोग

सूर्य प्रकाश मानते हैं कि पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में कुछ ट्वीट्स को लेकर गिरफ्तारियाँ हुई हैं, लेकिन उनका तर्क ये है कि इसमें मोदी सरकार को क्यों घसीटा जाता है. क़ानून व्यवस्था राज्य सरकार के हाथ में है. क्या ये इन्हें नहीं मालूम.

वी-डेम की स्थापना 2014 में हुई थी और इसने 2017 से लोकतंत्र पर हर साल एक वैश्विक रिपोर्ट जारी करना शुरू किया है. संस्था के डायरेक्टर के अनुसार उनकी संस्था डेटा के हिसाब से अपने क्षेत्र में दुनिया की सबसे बड़ी संस्था है.

रिपोर्ट में लोकतंत्र के ख़ास स्तंभ यानी मीडिया, मानवाधिकार और न्यायतंत्र की स्वतंत्रता में गिरावट पर ज़ोर दिया गया है. मीडिया वालों और सिविल सोसाइटी के कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ राजद्रोह से लेकर मानहानि तक की बढ़ती मुक़दमेबाज़ी का भी इसमें ज़िक्र है.

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कोविड महामारी के दौर में पैगंबर मोहम्मद के जन्मदिवस के मौके पर श्रीनगर की हज़रत बल दरगाह पहुंचे मुसलमान श्रद्धालु

तो क्या लोकतंत्र में खोट है?

ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के निरंजन साहू रिपोर्ट से सहमति जताते हुए कहते हैं, "एक ज़माना था, जब न्यायपालिका और चुनाव आयोग जैसी भारत की स्वतंत्र संस्थाओं के सरकार और शक्तिशाली नेताओं के दबाव में ना आने के लिए विश्व भर में भारत की प्रशंसा हुआ करती थी. अब ऐसा नहीं है. इन संस्थानों को सरकारी सोच के अनुरूप लाने के लिए लगातार प्रयास जारी हैं. आज एक्टिविस्ट और विपक्षी नेताओं को महीनों तक बिना ज़मानत के हिरासत में रखा जाता है, न्यायपालिका अपना मुँह मोड़ लेती है. इस तरह जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण तंत्र ग़ायब हो गए हैं."

उन्होंने बताया, "धार्मिक और राजनीतिक ध्रुवीकरण बढ़ रहा है, जो ज़्यादातर सोशल मीडिया की ओर से संचालित होता है और जिसका सत्ताधारी दल राजनीतिक फ़ायदा उठाते हैं. लोकतांत्रिक मूल्यों और स्वतंत्रता के संदर्भ में इसके बड़े नकारात्मक प्रभाव होते हैं. इससे देश में राजनीतिक माहौल ज़हरीला हो रहा है. अल्पसंख्यकों और विरोधी दलों के नेताओं को कमज़ोर और खलनायक या राष्ट्रविरोधी के रूप में दिखाया जा रहा है."

पहले की अन्य रिपोर्टों में भी भारत में लोकतंत्र पर सवाल उठाए गए हैं. 'ऑटोक्रेटाइज़ेशन सर्जेज़-रेजिस्टेंस ग्रोज़" नाम से जारी की गई वी-डेम इंस्टीट्यूट की ये ताज़ा रिपोर्ट अकेली नहीं है. पिछले कुछ सालों में इस तरह की रिपोर्टें कई संस्थाओं ने जारी की हैं.

अमरीका स्थित चर्चित संस्था 'फ़्रीडम हाउस' ने 2019 की घटनाओं पर आधारित जारी अपनी रिपोर्ट 'लोकतंत्र और बहुलवाद पर हमला' में कहा कि वैश्विक स्वतंत्रता में लगातार 14वें साल गिरावट आई है.

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जनवरी 2020 में पश्चिम बंगाल यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी का विरोध किया गया

भारत पर टिप्पणी करते हुए इस रिपोर्ट में कहा गया है, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी की सरकार के तहत लोकतांत्रिक मानदंडों से होती दूरी चीन और भारत के बीच मूल्यों पर आधारित अंतर को मिटा सकती है. भारत को फ़्री रेटिंग मिली है और इसने पिछले वर्ष सफल चुनाव कराए हैं, लेकिन भाजपा ने देश की बहुलता और व्यक्तिगत अधिकारों के लिए अपनी प्रतिबद्धता से ख़ुद को दूर कर लिया है, जिसके बिना लोकतंत्र लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकता."

साल 2017 में Civicus नाम की संस्था ने एक रिपोर्ट जारी की. इसे 'भारत: सिविल सोसाइटी पर बढ़ते हमलों से लोकतंत्र को ख़तरा' टाइटल से जारी किया गया था.

रिपोर्ट में एक टिप्पणी कुछ इस तरह से थी- हालाँकि, भारत की आज़ादी के बाद से सिविल सोसाइटी आवश्यक भूमिका निभा रही है, लेकिन इसकी जगह तेज़ी से ख़त्म होती जा रही है. जबसे 26 मई 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव जीता है, लोकतंत्र की गुणवत्ता और लोकतांत्रिक विरोध में भाग लेने की जगह कम हुई है. आने वाले सालों में सिविल सोसाइटी के कार्यकर्ता और संस्थाएँ, जो सत्ताधारियों की आलोचना करते हैं, अधिकारियों की ओर से टारगेट किए जा सकते हैं."

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'भारत में लोकतंत्र कामयाब नहीं होगा'

वी-डेम की रिपोर्ट के मुताबिक़ जी-20 के सभी प्रमुख देश और दुनिया के सभी क्षेत्र अब 'निरंकुशता की तीसरी लहर' से गुज़र रहे हैं, जिसकी लपेट में भारत, ब्राज़ील, अमरीका और तुर्की जैसी अर्थव्यवस्थाएँ आ चुकी हैं.

वी-डेम इंस्टीट्यूट के निदेशक स्टाफ़न लिंडबर्ग कहते हैं, "भारत में जो हो रहा है, वो विश्व में जारी एक रुझान का हिस्सा है, जो चिंता का विषय है. भारत में बढ़ रही निरंकुशता दुनिया की निरंकुशता के रास्ते का अनुसरण कर रही है."

वो इस रुझान से चिंतित हैं. वो आगे कहते हैं, "चिंता की बात ये है कि दुनिया के जिन लोकतांत्रिक देशों में ये रुझान शुरू होता है, उनमें से 80 प्रतिशत तानाशाही में परिवर्तित हो गए हैं."

तो क्या खोट लोकतंत्र में है? निरंजन साहू कहते हैं, "इसमें कुछ सच्चाई है, लेकिन रिपोर्ट इस बात की तरफ़ इशारा करती है कि पूरी उदार लोकतांत्रिक व्यवस्था को धराशायी समझना सही नहीं होगा. पोलैंड, तुर्की, भारत, ब्राज़ील, हंगरी और यहाँ तक कि अमरीका जैसे देशों में अधिनायकवाद के साथ निरंकुशता के बढ़ते रुझान के बारे में कोई संदेह नहीं है. फिर भी, ये कहना होगा कि ये रुझान पिछले दशकों में भी मौजूद था."

ये भी रुझान देखा गया है कि आजकल तख़्ता पलटने या सैन्य हुकूमत बनाने और आपातकाल लागू करने की ज़रूरत नहीं पड़ती. तानाशाह संविधान, क़ानून और लोकतंत्र के सभी प्रावधानों का इस्तेमाल करके ही सत्ता पर आते हैं और देर तक टिके रहने के लिए क़ानून का दुरुपयोग करते हैं. स्टाफ़न लिंडबर्ग तुर्की की मिसाल देते हैं और कहते हैं कि राष्ट्रपति अर्दोआन ने संसद का इस्तेमाल करके दो बार संविधान बदल दिया.

सूर्य प्रकाश मानते हैं कि कोरोना महामारी के दौर में कुछ देशों के लोकतंत्र में खोट दिखा. भारत के संदर्भ में उनका कहना था कि भारत के कुछ राज्यों में लोकतंत्र में समस्या है और कुछ ग़लत गिरफ्तारियाँ भी हुई हैं, लेकिन उनका दृढ़ विश्वास है कि लोकतंत्र की जड़ें मज़बूत हैं और सत्ता में कोई भी पार्टी आए, लोकतंत्र की बुनियादी जड़ें हिला नहीं सकती.

वो कहते हैं, "मुझे नहीं लगता कि हम आगे चल कर अपना लोकतंत्र और संविधान खो देंगे, क्योंकि इस संविधान के मूल्य से हम सब जुड़े हैं."

लोकतंत्र की मुख्य भूमिका क्या है?

लोकतंत्र एक प्रकार का शासन व्यवस्था है, जिसमे सभी व्यक्ति को समान अधिकार होता हैं। एक अच्छा लोकतंत्र वह है जिसमे राजनीतिक और सामाजिक न्याय के साथ-साथ आर्थिक न्याय की व्यवस्था भी है। देश में यह शासन प्रणाली लोगो को सामाजिक, राजनीतिक तथा धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करती हैं।

दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश कौन सा है?

दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र क्या है? दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत है।

लोकतंत्र क्या है Drishti IAS?

लोकतंत्र सरकार की एक ऐसी प्रणाली है, जिसमें नागरिक सीधे सत्ता का प्रयोग करते हैं या एक शासी निकाय जैसे कि संसद बनाने के लिये आपस में प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं। इसे 'बहुमत का शासन' भी कहा जाता है। इसमें सत्ता विरासत में नहीं मिलती। जनता अपना नेता स्वयं चुनती है।

लोकतांत्रिक सरकार के मुख्य लक्षण क्या है?

Solution : लोकतांत्रिक सरकार के आवश्यक लक्षण <br> (i) लोकतांत्रिक सरकार का चयन जनता द्वारा सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के द्वारा किया जाता है। (ii) <br> लोकतांत्रिक सरकार में जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों की सरकार होती है <br> (iii) लोकतांत्रिक सरकार अपने कार्यों के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी होती है।