भारत में कृषि अब भी मानसून की कृपा पर निर्भर है और भारत की लगभग 53% आबादी कृषि गतिविधियों में संलग्न है | यहाँ, किसानों और खेतिहर मजदूरों की गतिविधियाँ मानसून की तीव्रता पर निर्भर करतीं हैं, अगर मानसून अच्छा होगा तो फसल भी अच्छी होगी अन्यथा नहीं | कृषि श्रम को असंगठित क्षेत्र की श्रेणी में गिना जाता है | अतः इनकी आय भी निश्चित नहीं होती है। Show भारत की लगभग 53% आबादी कृषि गतिविधियों में संलग्न है और भारत में कृषि अब भी मानसून की कृपा पर निर्भर है। यहाँ, किसानों और खेतिहर मजदूरों की गतिविधियाँ मानसून की तीव्रता पर निर्भर करतीं हैं। अगर मानसून अच्छा होगा तो फसल भी अच्छी होगी अन्यथा नहीं | कृषि श्रम को असंगठित क्षेत्र की श्रेणी में गिना जाता है, अतः इनकी आय भी तय नहीं होती है। इसलिए वे मात्र 150 रूपए प्रति दिन की दिहाड़ी की पूर्ण अनिश्चितता के साथ एक असुरक्षित और वंचित जीवन जी रहे हैं। कृषि मजदूर ग्रामीण पदानुक्रम में सबसे शोषित और उत्पीड़ित वर्गों में से एक हैं। यह वर्ग कई प्रकार की समस्याओं का सामना अपनी निजी जिंदगी में करता है I कृषि
श्रम की समस्याएं: 2. मजदूरी और आय: भारत में कृषि मजदूरी और कृषि श्रमिकों के परिवार की आय बहुत कम है। हरित क्रान्ति के आगमन के साथ, नगद मजदूरी की दरों में वृद्धि होना शुरू हो गई | हालांकि, वस्तुओं की कीमतों में काफी वृद्धि हुई है, वास्तविक मजदूरी की दरों में उस हिसाब से वृद्धि नहीं हुई | वर्तमान में ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा के तहत मजदूरों को 150 रूपए प्रति दिन दिहाड़ी मिल रही है | 3. रोजगार और काम की परिस्थितियों : खेतिहर मजदूरों को बेरोजगारी और ठेके की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। साल के ज्यादातर समय में उन्हें बेरोजगार रहना पड़ता है क्योंकि खेतों पर कोई काम नहीं होता है और रोज़गार के वैकल्पिक स्रोत भी मौजूद नहीं होते हैं | 4. ऋणग्रस्तता: ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग प्रणाली और
वाणिज्यिक बैंकों द्वारा
स्वीकृति की जांच प्रक्रिया के अभाव में, किसान गैर संस्थागत स्रोत जैसे साहूकारों, ज़मींदारों (कुछ मामलों में तो 40% से 50% तक ब्याज़ ) से काफी उच्च दरों पर ऋण लेना पसंद करते हैं | इस तरह से बहुत अधिक दर के कारण किसान कर्ज के दुष्चक्र में फसते चले जाते हैं 5. कृषि श्रम में महिलाओं के लिए कम मजदूरी: - महिला कृषि श्रमिकों को आम तौर पर कठिन काम करने के लिए मजबूर किया जाता है और उनके पुरुष समकक्षों की तुलना में कम भुगतान किया जाता है। 6. बाल श्रम की घटनाओं का बढ़ना:– भारत में बाल श्रम की घटना काफी उच्च और अनुमानित संख्या 17.5 करोड़ से लेकर 44 करोड़ तक भिन्न हैं । यह अनुमान किया गया है कि एशिया में बाल श्रमिकों का एक तिहाई हिस्सा भारत में हैं। 7. प्रवासी श्रम में वृद्धि:- हरित क्रान्ति से सुनिश्चित सिंचाई क्षेत्रों में लाभकारी मजदूरी के रोजगारों के अवसरों में वृद्धि हुई है, जबकि विशाल बारिश अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में रोजगार के अवसर लगभग ठहर गए | सरकार द्वारा किए गए उपाय: 1. न्यूनतम मजदूरी अधिनियम:- न्यूनतम मजदूरी अधिनियम काफी समय पहले 1948 में पारित किया गया था और इसके बाद कृषि के लिए इसे लागू करने की आवश्यकता लगातार महसूस करी जा रही है | इसका मतलब यह है कि क्या अधिनियम कृषि क्षेत्र के लिए लागू नहीं हुआ है? 2. बंधुआ श्रम का उन्मूलन:- आजादी के बाद से, बंधुआ मजदूर की बुराई को समाप्त करने के लिए प्रयास किये गए हैं क्योंकि यह शोषक, अमानवीय और सामाजिक न्याय के सभी मानदंडों का उल्लंघन है | भारत के संविधान में मौलिक अधिकारों के अध्याय में यह कहा गया है कि मनुष्यों में व्यापार और उन्हें भीख मांगने के लिए मजबूर करना निषिद्ध है और कानून के तहत सजा के पात्र हैं | 3. आवास साइटों का प्रावधान:- कृषि श्रमिकों के लिए गांवों में घर के लिए निर्माण स्थल प्रदान करने के लिए कई राज्यों में क़ानून पारित किया गया है। 4. रोजगार उपलब्ध कराने के लिए विशेष योजनाएं- जवाहर ग्राम समृद्धि योजना (JGSY), और राष्ट्रीय खाद्य के लिए कार्य योजना (NFFWP), महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम मनरेगा , काम के बदले अनाज योजना I 5. विकास के लिए विशेष एजंसियां - विशेष एजेंसियाँ-। लघु कृषक विकास एजेंसी (SFDA) और सीमांत किसान और कृषि श्रमिक विकास एजेंसी (MFAL) – का गठन 1970-71 में देश के कृषि श्रमिकों की समस्याओं को हल करने के लिए किया गया था | 6. ऋण योजनायें:- व्यावसायिक बैंकों द्वारा अपनी ऋण नीतियां इस प्रकार नहीं बनाई गई थी जिससे कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्रों को पर्याप्त ऋण सुविधाएं उपलब्ध हो
सकें। अतः इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु इन क्षेत्रों में ग्रामीण बैंकों की स्थापना आवश्यक थी। इनकी ऋण नीतियां एवं ऋण योजनाएं निम्न हैं— सुझाव :- भारत में कृषि श्रमिकों की समस्याएं क्या है?ऋणग्रस्तता:- भारतीय कृषि श्रमिकों को कम मजदूरी मिलती है। वे वर्ष में कई महीने बेरोजगार रहते हैं। इस कारण उनकी निर्धनता बढ़ जाती है। और अपने सामाजिक कार्यों के लिए जैसे विवाह जन्म आदि पर वे महाजनों से ऋण लेते हैं।
भारतीय कृषि की सबसे बड़ी समस्या क्या है?ये हैं भारतीय किसानों की मूल समस्याएं. भूमि पर अधिकार देश में कृषि भूमि के मालिकाना हक को लेकर विवाद सबसे बड़ा है। ... . फसल पर सही मूल्य किसानों की एक बड़ी समस्या यह भी है कि उन्हें फसल पर सही मूल्य नहीं मिलता। ... . अच्छे बीज ... . सिंचाई व्यवस्था ... . मिट्टी का क्षरण ... . मशीनीकरण का अभाव ... . भंडारण सुविधाओं का अभाव ... . परिवहन भी एक बाधा. भारत में भूमिहीन श्रमिकों की समस्या क्या है?देश के अधिकांश गांवों में कटीर उद्योग-धन्धे नष्ट हो गये हैं, अतः कृषि कार्य की समाप्ति के बाद भूमिहीन मजदूर बेकार बैठा रहता है। सहायक उद्योग धन्धों की कमी होने के कारण उसे कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। बाढ़, अकाल, महामारी, फसल के नष्ट हो जाए की स्थिति में इन मजदूर को अपना जीवन निर्वाह करना दुष्कर हो जाता है।
भारत में कृषि श्रमिकों की समस्याओं को बताइए इन्हें कैसे दूर किया जा सकता है?असंतुलित समाज व्यवस्था. न्यूनतम मजदूरी अधिनियम न्यूनतम मजदूरी अधिनियम काफी समय पहले 1948 में पारित किया गया था। ... . बंधुआ श्रम का उन्मूलन ... . आवास साइटों का प्रावधान ... . रोजगार उपलब्ध कराने के लिए विशेष योजनाएं ... . विकास के लिए विशेष एजंसियां ... . ऋण योजनायें. |