भागीदारी से आप क्या समझते हैं? - bhaageedaaree se aap kya samajhate hain?

भारतीयभागीदारीअधिनियम, 1932

(1932 काअधिनियम संख्यांक 9)

[8 अप्रैल, 1932]

भागीदारीसे सम्बन्धितविधिकोपरिभाषित

औरसंशोधितकरने केलिए

अधिनियम

भागीदारी से संबंधित विधि को परिभाषित और संशोधित करना समीचीन है, अतः एतद्द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित किया जाता है :-

अध्याय 1

प्रारम्भिक

                1. संक्षिप्तनाम, विस्तारऔरप्रारम्भ-(1) यह अधिनियम भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 कहा जा सकेगा

                 [(2) इसका विस्तार  [जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय] सम्पूर्ण भारत पर है ]

                (3) यह सन् 1932 के अक्तूबर के प्रथम दिन को प्रवृत्त होगा, सिवाय धारा 69 के, जो सन् 1933 के अक्तूबर के प्रथम दिन को प्रवृत्त होगी

2. परिभाषाएं-इस अधिनियम में जब तक कि कोई बात विषय या सन्दर्भ में विरुद्ध हो-

() “फर्म का कार्य" से फर्म के सब भागीदारों या किसी भागीदार या किसी अभिकर्ता का कोई भी कार्य या लोप अभिप्रेत है जिससे फर्म के द्वारा या विरुद्ध प्रवर्तनीय कोई अधिकार उद्भूत होता हो;

() “कारबार" के अन्तर्गत हर व्यापार, उपजीविका और वृत्ति आती है;

() विहित" से इस अधिनियम के अधीन नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;

() “पर-व्यक्ति" पद से जब वह किसी फर्म या उसके किसी भागीदार के सम्बन्ध में प्रयुक्त किया गया है ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो फर्म में भागीदार नहीं है; तथा

() उन मदों के, जो इस अधिनियम में प्रयुक्त किए गए हैं, किन्तु इसमें परिभाषित नहीं हैं और भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (1872 का 9) में परिभाषित हैं, वे ही अर्थ होंगे जो उन्हें अधिनियम में समनुदिष्ट हैं

3. 1872 केअधिनियमसंख्यांक 9 केउपबन्धोंकालागू होना-भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 के अनिरसित उपबन्ध वहां तक के सिवाय, जहां तक कि वे इस अधिनियम के अभिव्यक्त उपबन्धों से असंगत हैं, फर्मों को लागू होते रहेंगे

अध्याय 2

भागीदारीकीप्रकृति

                4. “भागीदारी", “भागीदार", “फर्म" औरफर्मनाम" कीपरिभाषा-भागीदारी" उन व्यक्तियों के बीच का सम्बन्ध है, जिन्होंने किसी ऐसे कारबार के लाभों में अंश पाने का करार कर लिया है जो उन सब के द्वारा या उनमें से ऐसे किन्हीं या किसी के द्वारा जो उन सब की ओर से कार्य कर रहा है, चलाया जाता है

                वे व्यक्ति जिन्होंने एक दूसरे से भागीदारी कर ली है, व्यष्टितःभागीदार" और सामूहिक रूप सेफर्म" कहलाते हैं और जिस नाम से उनका कारबार चलाया जाता है, वहफर्म नाम" कहलाता है

                5. भागीदारीप्रास्थितिसेसृष्टनहींहोती-भागीदारी सम्बन्ध संविदा से उद्भूत होता है, प्रास्थिति से नहीं;

                और विशेषकर हिन्दू अविभक्त कुटुम्ब के सदस्य, जो उस हैसियत में कौटुम्बिक कारबार चलाते हैं, या बर्मी बौद्ध पति और पत्नी, जो उस हैसियत में कारबार चलाते हैं, ऐसे कारबार में भागीदार नहीं है

                6. भागीदारीकेअस्तित्वकेअवधारणका ढंग-यह अवधारण करने में कि व्यक्तियों का कोई समूह फर्म है या नहीं अथवा कोई व्यक्ति किसी फर्म में भागीदार है या नहीं, पक्षकारों के बीच के उस वास्तविक सम्बन्ध का ध्यान रखा जाएगा जो सब सुसंगत तथ्यों को एक साथ लेने से दर्शित होता हो

                स्पष्टीकरण 1-सम्पत्ति से उद्भूत लाभों या कुल प्रत्यागमों का उस सम्पत्ति में संयुक्त या सामान्य हित रखने वाले व्यक्तियों द्वारा अंश पाना स्वयंमेव ऐसे व्यक्तियों को भागीदार नहीं बना देता

                स्पष्टीकरण 2-किसी व्यक्ति द्वारा किसी कारबार के लाभों में से किसी अंश की या किसी कारबार में लाभ उपार्जित होने पर समाश्रित, या उपार्जित हुए लाभों के अनुसार घटने बढ़ने वाले किसी संदाय की प्राप्ति स्वयंमेव उसे उस कारबार को चलाने वालों का भागीदार नहीं बना देती;

                और विशिष्टतया-

                                () ऐसे व्यक्तियों को धन उधार देने वाले द्वारा जो किसी कारबार में लगे हुए या लगने ही वाले हों,

                                () किसी सेवक या अभिकर्ता द्वारा पारिश्रमिक के रूप में,

                                () किसी मृत भागीदार की विधवा या अपत्य द्वारा वार्षिकी के रूप में, अथवा

() कारबार के किसी पूर्वतन स्वामी या भागिक स्वामी द्वारा उस कारबार के गुडविल या अंश के विक्रय के प्रतिफलस्वरूप,

ऐसे अंश या संदाय को प्राप्ति पाने वाले को उस कारबार को चलाने वाले व्यक्तियों का स्वयंमेव भागीदार नहीं बना देती

                7. इच्छाधीनभागीदारी-जहां कि भागीदारों के बीच की संविदा द्वारा उनकी भागीदारी की अस्तित्वावधि के लिए या उनकी भागीदारी के पर्यवसान के लिए कोई उपबन्ध नहीं किया गया है, वहां वह भागीदारीइच्छाधीन भागीदारी" है

                8. विशिष्टभागीदारी-कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति का विशिष्ट प्रोद्यमों अथवा उपक्रमों में भागीदार बन सकेगा

अध्याय 3

भागीदारोंकेएकदूसरेकेप्रतिसम्बन्ध

                9. भागीदारोंकेसाधारणकर्तव्य-भागीदार सर्वाधिक सामान्य फायदे के लिए फर्म के कारबार को चलाने, एक दूसरे के प्रति विश्वासपरायण और वफादार रहने, तथा हर भागीदार या उसके विधिक प्रतिनिधि को सच्चा लेखा और फर्म पर प्रभाव डालने वाली सब बातों की पूरी जानकारी देने के लिए आबद्ध है

                10. कपटसेकारितहानिकेलिएक्षतिपूर्तिकरनेका कर्तव्य-हर भागीदार उस हर हानि के लिए फर्म की क्षतिपूर्ति करेगा जो फर्म के कारबार के संचालन में उसके कपट से फर्म को कारित हुई हो

                11. भागीदारोंकेअधिकारोंऔरकर्तव्योंकाअवधारणभागीदारोंके बीचकीसंविदाद्वाराहोगा-व्यापारअवरोधीकरार-(1) इस अधिनियम के उपबन्धों के अध्यधीन यह है कि फर्म के भागीदारों के पारस्परिक अधिकारों और कर्तव्यों का अवधारण भागीदारों के बीच की संविदा द्वारा किया जा सकेगा और ऐसी संविदा अभिव्यक्त हो सकेगी या व्यवहार चर्या से विवक्षित हो सकेगी

                ऐसी संविदा में फेरफार सब भागीदारों की सम्मति से किया जा सकेगा और ऐसी सम्मति अभिव्यक्त हो सकेगी या व्यवहार चर्या से विवक्षित हो सकेगी

                (2) भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (1872 का 9) की धारा 27 में किसी बात के होते हुए भी ऐसी संविदाएं उपबन्ध कर सकेंगी कि कोई भागीदार, जब तक वह भागीदार रहे, फर्म के कारबार के सिवाय कोई और कारबार नहीं करेगा

12. कारबारकासंचालन-भागीदारों के बीच की संविदा के अध्यधीन यह है कि-

                () हर भागीदार को कारबार के संचालन में भाग लेने का अधिकार है,

                () हर भागीदार आबद्ध है कि वह कारबार के संचालन में अपने कर्तव्यों का तत्परतापूर्वक पालन करे,

() कारबार से संसक्त मामूली बातों के बारे में उद्भूत किसी भी मतभेद का विनिश्चय भागीदारों के बहुमत से किया जा सकेगा और हर भागीदार को इससे पहले कि मामले का विनिश्चय हो अपनी राय अभिव्यक्त करने का अधिकार होगा, किन्तु कारबार की प्रकृति में कोई भी तब्दीली सब भागीदारों की सम्मति के बिना नहीं की जा सकेगी, तथा

() हर भागीदार को फर्म की बहियों में से किसी भी बही तक पहुंच का और उसका निरीक्षण और उसकी नकल करने का अधिकार है

13. पारस्परिकअधिकारऔरदायित्व-भागीदारों के बीच की संविदा के अध्यधीन यह है कि-

                () भागीदार कारबार के संचालन में भाग लेने के लिए पारिश्रमिक पाने का हकदार नहीं है,

() भागीदार उपार्जित लाभ में समानतः अंश पाने के हकदार हैं और फर्म को हुई हानियों में समानतः       अभिदाय करेंगे,

() जहां कि कोई भागीदार अपनी लगाई हुई पूंजी पर ब्याज पाने का हकदार है, वहां ऐसा ब्याज केवल लाभों में से ही संदेय होगा,

() कोई भी भागीदार जो ऐसी पूंजी के अतिरिक्त, जिसे लगाने का करार उसने उस कारबार के प्रयोजनों के लिए किया है, कोई संदाय या अधिदाय करता है, उस पर छह प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज पाने का हकदार है,

() भागीदार द्वारा निम्नलिखित में किए गए संदायों या उपगत दायित्वों की बाबत फर्म उसकी क्षतिपूर्ति करेगी-

                (त्) उस कारबार का मामूली और उचित संचालन; तथा  

(त्त्) हानि से फर्म की संरक्षा करने के प्रयोजन से आपात में ऐसा कार्य करना जैसा मामूली प्रज्ञा वाले व्यक्ति द्वारा अपने मामले में वैसी ही परिस्थितियों में किया जाता है; तथा

() भागीदार उस हानि के लिए फर्म की क्षतिपूर्ति करेगा जो फर्म के कारबार के संचालन में जानबूझकर उसके द्वारा की गई उपेक्षा से फर्म को कारित हुई हो

14. फर्मकीसम्पत्ति-भागीदारों के बीच की संविदा के अध्यधीन यह है कि फर्म की सम्पत्ति के अन्तर्गत फर्म के स्टाक में मूलतः लाई गई या फर्म द्वारा या फर्म के लिए या फर्म के कारबार के प्रयोजनार्थ और अनुक्रम में क्रय द्वारा या अन्यथा अर्जित सब सम्पत्ति और सम्पत्ति में के अधिकार और हित आते हैं और इसके अन्तर्गत कारबार का गुडविल भी आता है

जब तक कि तत्प्रतिकूल आशय प्रतीत हो, फर्म के धन से अर्जित सम्पत्ति और सम्पत्ति में के अधिकार और हित फर्म के लिए ही अर्जित समझे जाते हैं

15. फर्मकीसम्पत्तिकाउपयोजन-भागीदारों के बीच की संविदा के अध्यधीन यह है कि फर्म की सम्पत्ति भागीदारों द्वारा अनन्यतः कारबार के प्रयोजनों के लिए धारित और उपयोजित की जाएगी

16. भागीदारोंद्वाराउपार्जितवैयक्तिकलाभ-भागीदारों के बीच की संविदा के अध्यधीन यह है कि-

() यदि कोई भागीदार फर्म के किसी संव्यवहार से या फर्म की सम्पत्ति या कारबारी सम्बन्ध या फर्म नाम के उपयोग से अपने लिए कोई लाभ व्युत्पन्न करता है तो वह उस लाभ का लेखा-जोखा फर्म को देगा और उस लाभ का संदाय फर्म को करेगा;

() यदि कोई भागीदार फर्म के बराबर की ही प्रकृति का और प्रतियोगी कोई कारबार चलाता है, तो वह उस कारबार में अपने को हुए सब लाभों का लेखा-जोखा फर्म को देगा और उन सब लाभों का फर्म को संदाय करेगा

17. भागीदारोंकेअधिकारऔर कर्तव्य-फर्ममेंतब्दीलीहोनेकेपश्चात्-फर्मकीअवधिकेअवसानकेपश्चात्, और-जहांकिअतिरिक्तउपक्रमकिएगएहों-भागीदारों के बीच की संविदा के अध्यधीन यह है कि-

() जहां कि फर्म के गठन में कोई तब्दीली घटित होती है, वहां पुनर्गठित फर्म में भागीदारों के पारस्परिक अधिकार और कर्तव्य यावत्शक्य वैसे ही बने रहते हैं जैसे वे उस तब्दीली के अव्यवहित पूर्व थे;

() जहां कि नियत अवधि के लिए गठित फर्म उस अवधि के अवसान के पश्चात् कारबार चलाती रहती है, वहां भागीदारों के पारस्परिक अधिकार और कर्तव्य जहां तक कि वे इच्छाधीन भागीदारी की प्रसंगतियों से संगत हों वैसे ही बने रहते हैं जैसे वे अवसान के पूर्व थे; तथा

() जहां कि एक या एक से अधिक प्रोद्यम या उपक्रम चलाने के लिए गठित फर्म अन्य प्रोद्यम या उपक्रम चलाती है, वहां उन अन्य प्रोद्यमों या उपक्रमों के बारे में भागीदारों के वे ही पारस्परिक अधिकार और कर्तव्य होते हैं जो मूल प्रोद्यमों या उपक्रमों के बारे में हों

अध्याय 4

पर-व्यक्तियों से भागीदारों के सम्बन्ध

                18. भागीदारफर्मका अभिकर्ता-इस अधिनियम के उपबंधों के अध्यधीन यह है कि भागीदार फर्म के कारबार के प्रयोजनों के लिए फर्म का अभिकर्ता होता है

19. भागीदारकाफर्मकेअभिकर्ताकेनातेविवक्षितप्राधिकार-(1) धारा 22 के उपबंधों के अध्यधीन यह है कि              भागीदार का ऐसा कार्य, जो उस किस्म के कारबार को, जैसा फर्म चलाती है, प्रायिक रीति में चलाने के लिए किया गया है, फर्म को आबद्ध करता है

                फर्म को आबद्ध करने का भागीदार का प्राधिकार जो इस धारा द्वारा प्रदत्त है, उसकाविवक्षित प्राधिकार" कहलाता है

(2) व्यापार की किसी तत्प्रतिकूल प्रथा या रूढ़ि के अभाव में, भागीदार का विवक्षित प्राधिकार उसे सशक्त नहीं करता है कि वह-

                () फर्म के कारबार से सम्बन्धित विवाद को माध्यस्थम् के लिए निवेदित करे,

                () फर्म की ओर से बैंक में स्वयं अपने नाम में खाता खोले,

                () फर्म द्वारा किए गए किसी दावे या दावे के किसी भाग का समझौता करे या उसे त्याग दे,

                () फर्म की ओर से फाइल किए गए किसी वाद या कार्यवाही का प्रत्याहरण करे,

                () फर्म के विरुद्ध किसी वाद या कार्यवाही में कोई दायित्व स्वीकृत करे,

                () फर्म की ओर से स्थावर सम्पत्ति अर्जित करे,

                () फर्म की स्थावर सम्पत्ति अन्तरित करे, अथवा

                () फर्म की ओर से भागीदारी में सम्मिलित हो

20. भागीदारकेविवक्षितप्राधिकारकाविस्तारऔरनिर्बन्धन-फर्म के भागीदार भागीदारों के बीच की संविदा द्वारा किसी भी भागीदार के विवक्षित प्राधिकार का विस्तारण या निर्बन्धन कर सकेंगे

ऐसे किसी निर्बंधन के होते हुए भी, भागीदार द्वारा फर्म की ओर से किया गया कोई भी कार्य जो उसके विवक्षित प्राधिकार में आता है, फर्म को आबद्ध करता है, जब तक कि वह व्यक्ति जिसके साथ वह भागीदार व्यौहार कर रहा है उस निर्बन्धन को जानता हो या यह ज्ञान या विश्वास रखता हो कि वह भागीदार, भागीदार है

21. भागीदारकाआपातमेंप्राधिकार-भागीदार का आपात में यह प्राधिकार है कि वह हानि से फर्म की संरक्षा करने के प्रयोजन से ऐसे सब कार्य करे जैसे मामूली प्रज्ञा वाले व्यक्ति द्वारा अपने निजी मामले में वैसी ही परिस्थितियों में कार्य करते हुए किए जाते और ऐसे कार्य फर्म को आबद्ध करते हैं

22. फर्मकोआबद्धकरनेकेलिएकार्यकरनेका ढंग-इसलिए कि वह फर्म को आबद्ध करे, फर्म की ओर से भागीदार या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य या निष्पादित लिखित फर्म नाम में या किसी ऐसे अन्य प्रकार से, जिससे फर्म को आबद्ध करने का आशय अभिव्यक्त या विवक्षित होता हो, किया जाएगा या निष्पादित की जाएगी

23. भागीदारद्वारास्वीकृतियोंकाप्रभाव-भागीदार द्वारा फर्म के मामलों से सम्पृक्त स्वीकृति या व्यपदेशन फर्म के विरुद्ध साक्ष्य है, यदि वह कारबार के मामूली अनुक्रम में किया गया हो

24. कार्यकारीभागीदारकोदीगईसूचनाका प्रभाव-जो भागीदार फर्म के कारबार में अभ्यासतः कार्य करता रहता है, उसे फर्म के मामलों से सम्बन्धित किसी बात की सूचना फर्म को दी गई सूचना का प्रभाव रखती है सिवाय उस दशा के, जब कि उस भागीदार द्वारा या उसकी सम्मति से फर्म से कपट किया गया हो

25. फर्मकेकार्योंकेलिएभागीदारकादायित्व-हर भागीदार, फर्म के ऐसे सब कार्यों के लिए जो उसके भागीदार रहते हुए किए जाते हैं, अन्य सब भागीदारों के साथ संयुक्ततः दायी है और पृथक्तः भी

26. भागीदारकेसदोषकार्यों केलिएफर्मकादायित्व-जहां कि किसी फर्म के कारबार के मामूली अनुक्रम में या अपने भागीदारों के प्राधिकार से कार्य करते हुए भागीदार के सदोष कार्य या लोप किसी पर व्यक्ति को हानि या क्षति कारित होती है या कोई शास्ति उपगत होती है, वहां फर्म उसके लिए उसी विस्तार तक दायी है जहां तक कि वह भागीदार है

27. भागीदारोंद्वारादुरुपयोजनकेलिएफर्मका दायित्व-जहां कि-

() भागीदार अपने दृश्यमान प्राधिकार में अन्दर कार्य करते हुए किसी पर व्यक्ति से धन या सम्पत्ति प्राप्त करता है और उसका दुरुपयोजन करता है, अथवा

() फर्म अपने कारबार के अनुक्रम में किसी पर व्यक्ति से धन या सम्पत्ति प्राप्त करती है और भागीदारों में से कोई उस धन या सम्पत्ति का, जबकि वह फर्म की अभिरक्षा में है, दुरुपयोजन करता है,

वहां फर्म की हानि की प्रतिपूर्ति करने के लिए दायी है

                28. व्यपदेशन-(1) जो कोई मौखिक या लिखित शब्दों द्वारा या आचरण द्वारा यह व्यपदेशन करता है या जानकर यह व्यपदेशन किया जाने देता है कि वह किसी फर्म में भागीदार है, वह उस फर्म के भागीदार के नाते ऐसे किसी भी व्यक्ति के प्रति दायी है जिसने ऐसे किसी व्यपदेशन के भरोसे उस फर्म को प्रत्यय दिया है, चाहे वह व्यक्ति जिसने अपने भागीदार होने का व्यपदेशन किया है   या जिसके भागीदार होने का व्यपदेशन किया गया है यह ज्ञान रखता हो या नहीं कि वह व्यपदेशन ऐसे प्रत्यय देने वाले व्यक्ति तक पहुंचा है

(2) जहां कि किसी भागीदार की मृत्यु के पश्चात् वही कारबार पुराने फर्म नाम से चालू रखा जाता है, वहां उस नाम का या मृतक भागीदार के नाम का उस कारबार के भागरूप उपयोग किए जाते रहना स्वयंमेव उस मृतक भागीदार के विधिक प्रतिनिधि या उसकी सम्पदा को फर्म के ऐसे कार्य के लिए, जो उसकी मृत्यु के पश्चात् किया गया हो, दायी नहीं बना देगा

29. भागीदारकेहितकेअन्तरितीकेअधिकार-(1) किसी भागीदार द्वारा फर्म में अपने हित का आत्यन्तिक रूप से या बन्धक द्वारा, या ऐसे हित पर अपने द्वारा किसी भार के सृजन द्वारा किया गया अन्तरण अन्तरिती को फर्म के चालू रहने तक यह हक नहीं देता कि वह फर्म के कारबार के संचालन में हस्तक्षेप करे या लेखा अपेक्षित करे या फर्म की बहियों का निरीक्षण करे, किन्तु वह अन्तरिती को केवल यह हक देता है कि वह अन्तरक भागीदार के लाभों का अंश प्राप्त करे तथा भागीदारों द्वारा माना गया लाभों का लेखा अन्तरिती प्रतिगृहीत करेगा

(2) यदि फर्म विघटित कर दी जाती है या अन्तरक-भागीदार, भागीदार नहीं रह जाता, तो अन्तरिती शेष भागीदारों के मुकाबले फर्म की आस्तियों में से वह अंश जिसका अन्तरक-भागीदार हकदार है, पाने का और इस प्रयोजन से कि उस अंश को अभिनिश्चित किया जाए फर्म के विघटित होने की तारीख से लेखा लेने का हकदार है

30. अप्राप्तवयोंकोभागीदारीकेफायदोंमें सम्मिलितकरना-(1) वह व्यक्ति, जो उस विधि के अनुसार, जिसके वह अध्यधीन है, अप्राप्तवय है, फर्म में भागीदार नहीं हो सकेगा, किन्तु सब तत्समय भागीदारों की सम्मति से उस भागीदारी के फायदों में सम्मिलित किया जा सकेगा

(2) ऐसे अप्राप्तवय का अधिकार है कि वह फर्म की सम्पत्ति और लाभों का ऐसा अंश पाए जैसे का करार किया गया हो और फर्म के लेखाओं में किसी भी लेखे तक उसकी पहुंच हो सकेगी और वह उनमें से किसी का भी निरीक्षण और नकल कर सकेगा

(3) ऐसे अप्राप्तवय का अंश फर्म के कार्यों के लिए दायी है किन्तु वह अप्राप्तवय ऐसे किसी कार्य के लिए वैयक्तिक रूप से दायी नहीं है

(4) ऐसा अप्राप्तवय फर्म की सम्पत्ति या लाभों में के अपने अंश के लेखे के लिए या संदाय के लिए भागीदारों पर वाद नहीं ला सकेगा सिवाय जब कि वह फर्म से अपना सम्बन्ध विच्छेद करता हो और ऐसी दशा में उसके अंश की रकम का अवधारण ऐसे मूल्यांकन द्वारा किया जाएगा जो यावत्सम्भव धारा 48 में अन्तर्विष्ट नियमों के अनुसार किया गया हो :

परन्तु ऐसे वाद में फर्म के विघटन का निर्वाचन, सब भागीदार एक साथ कार्य करते हुए, या फर्म का विघटन करने का हकदार कोई भी भागीदार, दूसरे भागीदारों को सूचना देकर कर सकेगा और तदुपरि न्यायालय उस वाद में ऐसे कार्यवाही करेगा मानो वह वाद विघटन के लिए और भागीदारों के बीच परिनिर्धारण के लिए हो और अप्राप्तवय के अंश की रकम को भागीदारों के अंशों के साथ-साथ अवधारित किया जाएगा

(5) उसके प्राप्तवय हो जाने की तारीख और उसे यह ज्ञान कि वह भागीदारी के फायदों में सम्मिलित कर लिया गया है अभिप्राप्त हो जाने की तारीख में से जो भी पश्चात् की तारीख हो उसके छह मास के अन्दर किसी भी समय ऐसा व्यक्ति यह लोक सूचना दे सकेगा कि उसने फर्म में भागीदार होने का निर्वाचन या होने का निर्वाचन कर लिया है और ऐसी सूचना उसकी फर्म विषयक स्थिति का अवधारण करेगी :

परन्तु यदि वह ऐसी सूचना देने में असफल रहता है तो वह उक्त छह मास के अवसान होते ही फर्म में भागीदार हो जाएगा

(6) जहां कि कोई व्यक्ति एक अप्राप्तवय के तौर पर फर्म की भागीदारी के फायदों में सम्मिलित कर लिया गया है, वहां इस तथ्य को उस व्यक्ति को ऐसे सम्मिलित किए जाने का ज्ञान उसके प्राप्तवय हो जाने से छह मास के अवसान के पश्चात् किसी विशिष्ट तारीख तक नहीं था, साबित करने का भार उस तथ्य का प्राख्यान करने वाले व्यक्तियों पर होगा

 (7) जहां कि ऐसा व्यक्ति भागीदार हो जाता है, वहां-

() अप्राप्तवय के नाते उसके अधिकार और दायित्व उस तारीख तक बने रहते हैं जिस तारीख को वह भागीदार होता है किन्तु वह उन सब फर्म के कार्यों के लिए जो भागीदारी के फायदों में उसके सम्मिलित किए जाने के समय से किए गए हैं, पर-व्यक्तियों के प्रति वैयक्तिक रूप से दायी भी हो जाता है, तथा

() फर्म की सम्पत्ति और लाभों में उसका अंश वह अंश होगा जिसका वह अप्राप्तवय के तौर पर हकदार था

                (8) जहां कि ऐसा व्यक्ति भागीदार होने का निर्वाचन करता है, वहां-

() उसके अधिकार और दायित्व उसके द्वारा लोक सूचना दिए जाने की तारीख तक वे ही बने रहेंगे जो अप्राप्तवय के इस धारा के अधीन हैं;

() उसका अंश सूचना की तारीख के पश्चात् किए गए फर्म के किन्हीं भी कार्यों के लिए दायी नहीं होगा; तथा

() सम्पत्ति और लाभों में के अपने अंश के लिए वह भागीदारों पर उपधारा (4) के अनुसार वाद लाने का हकदार होगा

                (9) उपधाराओं (7) और (8) की कोई भी बात धारा 28 के उपबन्धों पर प्रभाव डालेगी

अध्याय 5

अन्दरआनेवालेऔरबाहरजानेवाले भागीदार

                31. भागीदारकाप्रविष्टकियाजाना-(1) भागीदारों के बीच की संविदा और धारा 30 के उपबन्धों के अध्यधीन यह है कि कोई भी व्यक्ति सब वर्तमान भागीदारों की सम्मति के बिना फर्म में भागीदार के तौर पर प्रविष्ट नहीं किया जाएगा

                (2) धारा 30 के उपबन्धों के अध्यधीन यह है कि जो व्यक्ति फर्म में भागीदार के तौर पर प्रविष्ट किया गया है तद्द्वारा वह उसके भागीदार होने से पूर्व किए गए किसी भी फर्म के कार्य के लिए दायी नहीं हो जाता

                32. भागीदारकानिवृत्तहोना-(1) भागीदार-

                                () अन्य सब भागीदारों की सम्मति से,

                                () भागीदारों के अभिव्यक्त करार के अनुसार, या

() जहां कि भागीदारी इच्छाधीन है, वहां अन्य सब भागीदारों को अपने निवृत्त होने के आशय की लिखित    सूचना द्वारा,

निवृत्त हो सकेगा

                (2) निवृत्त होने वाला भागीदार अपने निवर्तन से पहले किए गए फर्म के कार्यों के लिए किसी पर-व्यक्ति के प्रति किसी दायित्व से ऐसे करार द्वारा, जो ऐसे पर-व्यक्ति और पुनर्गठित फर्म के भागीदारों के साथ उसने किया हो, उन्मोचित किया जा सकेगा और ऐसा करार ऐसे पर-व्यक्ति को उस निवर्तन का ज्ञान होने के पश्चात् की उसकी और पुनर्गठित फर्म के बीच की व्यवहार-चर्या से विवक्षित हो सकेगा

(3) फर्म से किसी भागीदार के निवृत्त होने पर भी, जब तक कि निवृत्त होने की लोक सूचना दे दी गई हो, वह और भागीदार उनमें से किसी के द्वारा भी किए गए ऐसे कार्य के लिए, जो उस निवर्तन के पहले किए जाने पर फर्म का कार्य होता, पर-व्यक्तियों के प्रति भागीदारों के तौर पर दायी बने रहते हैं :

परन्तु निवृत्त भागीदार किसी ऐसे पर-व्यक्ति के प्रति दायी नहीं होगा जो फर्म के साथ यह जानते हुए व्यवहार करता है कि वह भागीदार था

(4) उपधारा (3) के अधीन सूचनाएं निवृत्त होने वाले भागीदार द्वारा या पुनर्गठित फर्म के किसी भी भागीदार द्वारा दी जा सकेगी

33. भागीदार कानिष्कासन-(1) भागीदारों के बीच की संविदा द्वारा प्रदत्त शक्तियों के सद्भावपूर्वक प्रयोग में के सिवाय भागीदार फर्म में से भागीदारों की किसी भी बहुसंख्या द्वारा निष्कासित नहीं किया जा सकेगा

(2) धारा 32 की उपधाराओं (2), (3) और (4) के उपबन्ध निष्कासित भागीदार को उसी प्रकार लागू होंगे मानो वह निवृत्त भागीदार हो

34. भागीदारकादिवाला-(1) जहां कि फर्म का कोई भागीदार दिवालिया न्यायनिर्णीत कर दिया जाता है, वहां वह उस तारीख से जिसको न्यायनिर्णयन का आदेश हुआ हो भागीदार नहीं रहेगा चाहे तद्द्वारा फर्म विघटित हो या हो

(2) जहां कि किसी भागीदार के दिवालिया न्यायनिर्णित किए जाने पर फर्म भागीदारों के बीच की संविदा के अधीन विघटित नहीं होती, वहां ऐसे न्यायनिर्णीत भागीदार की सम्पदा फर्म के किसी ऐसे कार्य के लिए, और फर्म उस दिवालिए के किसी ऐसे कार्य के लिए दायी नहीं है जो उस तारीख के पश्चात् किया गया हो जिस तारीख को न्यायनिर्णयन का आदेश दिया गया है

35. मृतभागीदारकीसम्पदाकादायित्व-जहां कि किसी भागीदार की मृत्यु द्वारा भागीदारों के बीच की संविदा के अधीन फर्म विघटित नहीं होती, वहां मृत भागीदार की सम्पदा फर्म के किसी ऐसे कार्य के लिए, जो उसकी मृत्यु के पश्चात् किया गया हो, दायी नहीं है

36. बाहरजानेवालेभागीदारकोप्रतियोगीकारबारचलानेका अधिकार-व्यापारअवरोधीकरार-(1) बाहर जाने वाले भागीदार फर्म के कारबार का प्रतियोगी कारबार चला सकेगा, और वह ऐसे कारबार का विज्ञापन कर सकेगा, किन्तु तत्प्रतिकूल संविदा के अध्यधीन वह-

                () फर्म नाम का उपयोग कर सकेगा,

                () अपने को फर्म का कारबार चलाने वाला व्यपदिष्ट कर सकेगा,

() उन व्यक्तियों से जो उसकी भागीदारी का अन्त हो जाने के पूर्व फर्म से व्यौहार करते थे अपने साथ व्यौहार करने की याचना करेगा

                (2) कोई भागीदार अपने भागीदारों के साथ यह करार कर सकेगा कि भागीदार रहने पर वह किसी विनिर्दिष्ट कालावधि तक या विनिर्दिष्ट स्थानीय सीमाओं के भीतर फर्म के कारबार के सदृश कोई कारबार नहीं चलाएगा और यदि अधिरोपित निर्बन्धन युक्तियुक्त हों, तो भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (1872 का 9) की धारा 27 में किसी बात के होते हुए भी ऐसा करार विधिमान्य होगा

                37. कुछदशाओंमेंबाहरजानेवालेभागीदारकापश्चात्वर्तीलाभों मेंअंशपानेकाअधिकार-जहां कि फर्म का कोई सदस्य मर गया हो, या अन्यथा भागीदार रह गया हो और उत्तरजीवी या बने रहे भागीदार अपने और बाहर जाने वाले भागीदार या उसकी सम्पदा के बीच लेखाओं का अन्तिम परिनिर्धारण किए बिना फर्म की सम्पत्ति से कारबार चलाते रहें, वहां बाहर जाने वाला भागीदार या उसकी सम्पदा, तत्प्रतिकूल संविदा के अभाव में उक्त भागीदार या उसके प्रतिनिधियों के विकल्प पर या तो उन लाभों का, जो उसके भागीदार रह जाने के पश्चात् हुए हों ऐसा अंश जो फर्म की सम्पत्ति में के उसके अंश के उपयोग के कारण हुआ माना जा सके या फर्म की सम्पत्ति में के उसके अंश की रकम पर छह प्रतिशत ब्याज पाने की हकदार होगी :

                परन्तु जहां कि भागीदारों के बीच की संविदा के द्वारा उत्तरजीवी या बने रहे भागीदारों को मृत या बाहर जाने वाले भागीदार का हित खरीद लेने का विकल्प किया गया हो और उस विकल्प का सम्यक् रूप से प्रयोग किया गया हो वहां, यथास्थिति, मृत भागीदार की सम्पदा अथवा बाहर वाले भागीदार या उसकी सम्पदा को लाभों का कोई अपर या अन्य अंश पाने का हक होगा किन्तु यदि कोई भागीदार उस विकल्प का प्रयोग करने की धारणा से कार्य करते हुए सब तात्त्विक पहलुओं में उसके निबन्धनों का अनुवर्तन करे, तो वह इस धारा के पूर्वगामी उपबन्धों के अधीन लेखा देने का दायी होगा

                38. चलतप्रत्याभूतिकाफर्ममेंतब्दीलीहोनेसेप्रतिसंहरण-फर्म को या फर्म के संव्यवहारों के बारे में पर-व्यक्ति को दी गई चलत प्रत्याभूति, तत्प्रतिकूल करार के अभाव में, उस तारीख से, जिसको फर्म के गठन में कोई तब्दीली हुई हो, फर्म के भावी संव्यवहारों के बारे में प्रतिसंहृत हो जाती है

अध्याय 6

फर्मकाविघटन

                39. फर्मकाविघटन-फर्म के सब भागीदारों के बीच भागीदारी का विघटन फर्म का विघटन" कहलाता है

40. करारद्वाराविघटन-फर्म सब भागीदारों की सम्मति से या भागीदारों के बीच की संविदा के अनुसार विघटित की जा सकेगी

41. वैवश्यकविघटन-फर्म विघटित हो जाती है-

                () सब भागीदारों के या एक के सिवाय अन्य सब भागीदारों के दिवालिया न्यायनिर्णीत हो जाने से, अथवा

() किसी ऐसी घटना के घटित होने से, जिससे फर्म का कारबार चलना या भागीदारों का उसे भागीदारी में चलाना विधिविरुद्ध हो जाए :

                परन्तु जहां कि फर्म द्वारा एक से अधिक पृथक् प्रोद्यम या उपक्रम चलाए जा रहे हों, वहां किसी एक या अधिक की अवैधता मात्र फर्म के विधिपूर्ण प्रोद्यमों और उपक्रमों के बारे में फर्म का विघटन कारित नहीं करेगी

                42. किन्हींआकस्मिकताओंकेघटितहोनेपरविघटन-भागीदारों के बीच की संविदा के अध्यधीन यह है कि फर्म विघटित हो जाती है :-

                                () यदि वह किसी नियत अवधि के लिए गठित की गई हो, तो उस अवधि के अवसान से,

() यदि वह एक या अधिक प्रोद्यमों या उपक्रमों को चलाने के लिए गठित की गई हो तो उसके या उनके पूर्ण हो जाने से,

() किसी भागीदार की मृत्यु हो जाने से, और

() किसी भागीदार के दिवालिया न्यायनिर्णीत किए जाने से

                43. इच्छाधीनभागीदारीकासूचनाद्वाराविघटन-(1) जहां कि भागीदारी इच्छाधीन है, वहां भागीदार द्वारा फर्म का विघटन अन्य सब भागीदारों को फर्म विघटित करने के अपने आशय की लिखित सूचना दिए जाने द्वारा किया जा सकेगा

                (2) फर्म उस तारीख से, जो उस सूचना में विघटन की तारीख दी हुई है या यदि कोई तारीख नहीं दी हुई है, तो उस तारीख से, उसको सूचना संसूचित की गई है, विघटित हो जाती है

                44. न्यायालय द्वाराविघटन-किसी भागीदार के वाद पर न्यायालय निम्नलिखित में से किसी भी आधार पर फर्म को विघटित कर सकेगा, अर्थात् :-

() यह कि कोई भागीदार विकृतचित्त हो गया है, जिस दशा में उस व्यक्ति के, जो विकृतचित्त हो गया है, वाद मित्र द्वारा वाद वैसे ही लाया जा सकेगा जैसे किसी दूसरे भागीदार द्वारा;

() यह कि कोई भागीदार, जो वाद लाने वाले भागीदार से भिन्न हो, भागीदार के तौर पर अपने कर्तव्यों का पालन करने में किसी प्रकार स्थायी रूप से असमर्थ हो गया है;

() यह कि कोई भागीदार, जो वाद लाने वाले भागीदार से भिन्न हो, ऐसे आचरण का दोषी है जिससे कारबार की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए उस कारबार के चलाने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना सम्भाव्य है;

() यह कि कोई भागीदार, जो वाद लाने वाले भागीदार से भिन्न हो, ऐसे करारों का भंग जानबूझकर या बार-बार करता है जो फर्म के कामकाज के प्रबन्ध या फर्म के कारबार के संचालन से संबंधित हों या अन्यथा उस कारबार से सम्बन्धित बातों में अपना ऐसा आचरण रखता है कि उसके साथ भागीदारी में वह कारबार करना दूसरे भागीदारों के लिए युक्तियुक्ततः साध्य नहीं है;

() यह कि किसी भागीदार ने, जो वाद लाने वाले भागीदार से भिन्न हो, फर्म में का अपना संपूर्ण हित किसी पर-व्यक्ति को किसी प्रकार से अन्तरित कर दिया है, या अपने अंश को सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) की प्रथम अनुसूची के आदेश 21 के नियम 49 के अधीन भारित हो जाने दिया है अथवा अपने द्वारा शोध्य भू-राजस्व की बकाया की या भू-राजस्व की बकाया के रूप में वसूली किन्हीं शोध्यों की वसूली में बिक जाने दिया है;

                                () यह कि फर्म का कारबार हानि उठाए बिना नहीं चलाया जा सकता; अथवा

() किसी अन्य ऐसे आधार पर, जिसने इस बात को न्यायसंगत और साम्यापूर्ण बना दिया हो कि फर्म विघटित कर दी जाए

                45. विघटनकेपश्चात्किएगएभागीदारोंकेकार्यों केलिएदायित्व-(1) फर्म का विघटन हो जाने पर भी, जब तक विघटन की लोक सूचना दे दी जाए, भागीदार उनमें से किसी के द्वारा किए गए किसी ऐसे कार्य के लिए, जो विघटन से पहले किया जाने पर फर्म का कार्य होता पर-व्यक्तियों के प्रति भागीदार के नाते दायी बने रहेंगे :

                परन्तु जो भागीदार मर जाता है या दिवालिया न्यायनिर्णीत कर दिया जाता है, या जो भागीदार, उसका भागीदार होना फर्म के साथ व्यवहार करने वाले व्यक्ति को ज्ञात होते हुए, फर्म से निवृत्त हो जाता है, उसकी सम्पदा उसके भागीदार रहने की तारीख के पश्चात् किए गए कार्यों के लिए इस धारा के अधीन दायी होगी

                (2) उपधारा (1) के अधीन सूचनाएं किसी भी भागीदार द्वारा दी जा सकेंगी

                46. विघटनकेपश्चात्कारबारकापरिसमापनकराने काभागीदारोंकाअधिकार-फर्म के विघटन पर हर भागीदार या उसके प्रतिनिधि को अन्य सब भागीदारों या उनके प्रतिनिधियों के विरुद्ध यह हक है कि वह फर्म की सम्पत्ति को फर्म के ऋणों और दायित्वों के संदाय में उपयोजित कराए और अधिशेष को भागीदारों या उनके प्रतिनिधियों में उनके अधिकारों के अनुसार वितरित कराए

                47. परिसमापनकेप्रयोजनोंकेलिएभागीदारोंका सततप्राधिकार-हर एक भागीदार का फर्म को आबद्ध करने का प्राधिकार और भागीदारों के अन्य पारस्परिक अधिकार और बाध्यताएं फर्म का विघटन हो जाने पर भी फर्म के विघटन के पश्चात् वहां तक बने रहते हैं जहां तक कि वे फर्म के कामकाज के परिसमापन के लिए और आरम्भ किए गए किन्तु विघटन के समय अधूरे रह गए संव्यवहारों को पूरा करने के लिए आवश्यक हों, किन्तु अन्यथा नहीं :

                परन्तु फर्म किसी ऐसे भागीदार के कार्यों द्वारा, जो दिवालिया न्यायनिर्णीत कर दिया गया है, किसी दशा में भी आबद्ध नहीं है किन्तु यह परन्तुक किसी ऐसे व्यक्ति के दायित्व पर प्रभाव नहीं डालता जिसने उस न्यायनिर्णयन के पश्चात् अपने को इस दिवालिया का भागीदार होना व्यपदिष्ट किया है या जानते हुए व्यपदिष्ट किया जाने दिया है

                48. भागीदारोंकेबीचलेखापरिनिर्धारणकाढंग-विघटन के पश्चात् फर्म के लेखा परिनिर्धारण में भागीदारों द्वारा किए गए करार के अध्यधीन, निम्नलिखित नियमों का अनुपालन किया जाएगा-

() हानियां जिनके अन्तर्गत पूंजी की कमियां भी आती हैं, प्रथमतः लाभों में से तत्पश्चात् पूंजी में से और अन्त में, यदि आवश्यक हो, भागीदारों द्वारा व्यष्टितः उसी अनुपात में संदत्त की जाएगी जिनमें वे लाभों का अंश पाने के लिए   हकदार थे,

() फर्म की आस्तियां जिनके अन्तर्गत पूंजी की कमी को पूरा करने के लिए भागीदारों द्वारा अभिदत्त की गई रकम भी आती है, निम्नलिखित प्रकार और क्रम से उपयोजित की जाएंगी,-

                (i) फर्म पर व्यक्तियों के ऋणों का संदाय करने में,

(ii) हर एक भागीदार को फर्म द्वारा उसे शोध्य उन अधिदायों का जो पूंजी से सुभिन्न हों, अनुपाती संदाय करने में,

(iii) हर एक भागीदार को पूंजी लेखे जो कुछ शोध्य हो उसका अनुपाती संदाय करने में, तथा

(iv) अवशिष्ट, यदि कुछ रहे, तो वह भागीदारों में उस अनुपात में, जिसमें वे लाभों का अंश पाने के हकदार थे, बांट दिया जाएगा

                49. फर्मकेऋणोंऔरपृथक्ऋणोंकासंदाय-जहां कि फर्म द्वारा शोध्य संयुक्त ऋण हैं और किसी भागीदार द्वारा शोध्य पृथक् ऋण भी है, वहां फर्म की सम्पत्ति का उपयोजन प्रथमतः फर्म के ऋणों के संदाय में किया जाएगा और यदि कुछ अधिशेष रहे तो उसमें का हर एक भागीदार का अंश उसके पृथक् ऋणों के संदाय में उपयोजित किया जाएगा या उसको दे दिया जाएगा किसी भी भागीदार की पृथक् सम्पत्ति का उपयोजन पहले उसके पृथक् ऋणों के संदाय में और, यदि कुछ अधिशेष रहे, तो फर्म के ऋणों के संदाय में किया जाएगा

                50. विघटनकेपश्चात्उपार्जितवैयक्तिकलाभ-भागीदारों के बीच की संविदा के अध्यधीन यह है कि धारा 16 के खंड () के उपबन्ध उन संव्यवहारों को लागू होंगे जिनका उपक्रम किसी भागीदार की मृत्यु के कारण फर्म का विघटन हो जाने के पश्चात् और उसके सब कामकाज का पूर्ण रूप से परिसमापन होने के पूर्व, किसी उत्तरजीवी भागीदार द्वारा या किसी मृत भागीदार के प्रतिनिधियों द्वारा किया गया हो :

                परन्तु जहां कि किसी भागीदार या उसके प्रतिनिधि ने फर्म का गुडविल खरीद लिया है, वहां इस धारा की कोई भी बात फर्म नाम के उपयोग में लाने के उसके अधिकार पर प्रभाव नहीं डालेगी

                51. समयपूर्वविघटनमेंप्रीमियमकी वापसी-जहां कि किसी भागीदार ने भागीदारी में किसी नियत अवधि के लिए प्रवेश करते समय कोई प्रीमियम दिया है और उस अवधि का अवसान होने के पूर्व ही वह फर्म किसी भागीदार की मृत्यु के सिवाय किसी अन्य कारण से, विघटित हो जाती है, वहां वह भागीदार उस प्रीमियम के या उसके ऐसे भाग का प्रतिसंदाय पाने का हकदार होगा जो उन निबन्धनों को, जिन पर वह भागीदार बना था, और उस समय की लम्बाई को, जिसके दौरान वह भागीदार रहा, ध्यान में रखते हुए युक्तियुक्त हो, जब तक कि-

                                () विघटन मुख्यतया उसके अपने अवचार के कारण हुआ हो, अथवा

() विघटन ऐसे करार के अनुसरण में हुआ हो जिसमें उस प्रीमियम या उसके किसी भाग के वापस करने के विषय में कोई उपबन्ध अन्तर्विष्ट नहीं है

                52. अधिकार, जहांकिभागीदारीकीसंविदा कपटयादुर्व्यपदेशनकेकारणविखंडितकरदीगईहै-जहां कि भागीदारी सृष्ट करने वाली संविदा उसके पक्षकारों में से किसी के कपट या दुर्व्यपदेशन के आधार पर विखंडित कर दी जाती है, वहां विखण्डित करने का हक रखने वाला पक्षकार अन्य किसी अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना निम्नलिखित का हकदार होगा-

() फर्म के अंश क्रय करने के निमित्त अपने द्वारा दी गई किसी राशि के लिए और अपने द्वारा अभिदत्त किसी पूंजी के लिए फर्म के उस अधिशेष या आस्तियों पर, जो फर्म के ऋणों के संदाय के पश्चात् अवशिष्ट हो धारणाधिकार का या उनके प्रतिधारण के अधिकार का,

() फर्म के ऋणों मद्धे अपने द्वारा किए गए किसी संदाय के बारे में फर्म के लेनदारों की पंक्ति में रखे जाने का, तथा

() फर्म के सब ऋणों की बाबत क्षतिपूर्ति उस भागीदार या उन भागीदारों से पाने का जो उस कपट या दुर्व्यपदेशन के दोषी हों

                53. फर्मनामयाफर्मकीसम्पत्तिकोउपयोगमें लानेसेअवरुद्धकरनेकाअधिकार-फर्म के विघटित हो जाने के पश्चात्, हर भागीदार या उसका प्रतिनिधि, भागीदारों के बीच की किसी तत्प्रतिकूल संविदा के अभाव में, किसी भी अन्य भागीदार को या उसके प्रतिनिधि को, तब तक के लिए फर्म नाम में समरूप कारबार करने से या फर्म की किसी सम्पत्ति को अपने निजी फायदे के लिए उपयोग में लाने से अवरुद्ध कर सकेगा, जब तक फर्म के कामकाज का पूरी तरह परिसमापन नहीं हो जाता :

                परन्तु जहां कि किसी भागीदार या उसके प्रतिनिधि ने फर्म का गुडविल खरीद लिया है, वहां इस धारा की कोई भी बात फर्म नाम के उपयोग में लाने के उसके अधिकार पर प्रभाव नहीं डालेगी

                54. व्यापारअवरोधी करार-फर्म के विघटन पर या विघटन के पूर्वानुमान पर भागीदार यह करार कर सकेंगे कि उनमें से कुछ या वे सब किसी विनिर्दिष्ट कालावधि के या विनिर्दिष्ट स्थानीय सीमाओं के भीतर फर्म के कारबार के सदृश कारबार नहीं चलाएंगे और यदि अधिरोपित निर्बन्धन युक्तियुक्त हों, तो भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (1872 का 9) की धारा 27 में किसी बात के होते हुए भी ऐसा करार विधिमान्य होगा

                55. विघटनकेपश्चात् गुडविलकाविक्रयगुडविलकेक्रेताऔरविक्रेताकेअधिकारव्यापारअवरोधी करार-(1) विघटन के पश्चात् फर्म के लेखा परिनिर्धारण में गुडविल, भागीदारों के बीच की संविदा के अध्यधीन रहते हुए, आस्तियों में सम्मिलित किया जाएगा और वह या तो पृथक् रूप से या फर्म की अन्य सम्पत्ति के साथ-साथ बेचा जा सकेगा

(2) जहां कि फर्म का गुडविल विघटन के पश्चात् बेचा जाता है, वहां भागीदार क्रेता के कारबार का प्रतियोगी कारबार चला सकेगा और वह ऐसे कारबार का विज्ञापन कर सकेगा, किन्तु अपने और क्रेता के बीच के करार के अध्यधीन वह निम्नलिखित कर सकेगा-

                () फर्म नाम का उपयोग में लाना,

                () यह व्यपदिष्ट करना कि वह फर्म का कारबार चला रहा है, अथवा

                () जो व्यक्ति फर्म के विघटन से पूर्व फर्म से व्यौहार करते थे उनसे अपने साथ व्यवहार करने की याचना

(3) कोई भी भागीदार फर्म के गुडविल के विक्रय पर क्रेता से यह करार कर सकेगा कि ऐसा भागीदार किसी विनिर्दिष्ट कालावधि के या स्थानीय सीमाओं के भीतर फर्म के कारबार के सदृश कोई कारबार नहीं चलाएगा, और यदि अधिरोपित निर्बन्धन युक्तियुक्त हो तो भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (1872 का 9) की धारा 27 में किसी बात के होते हुए भी ऐसा करार विधिमान्य होगा

अध्याय 7

फर्मोंकारजिस्ट्रीकरण

                56. इसअध्यायके लागूहोनेसेछूटदेनेकीशक्ति- [किसी राज्य की राज्य सरकारट शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा यह निदेश दे सकेगी कि इस अध्याय के उपबन्ध  [उस राज्यट को या उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट उसके किसी भाग को लागू नहीं होंगे

57. रजिस्ट्रारों कीनियुक्ति-(1) राज्य सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए फर्मों के रजिस्ट्रार नियुक्त कर सकेगी और उन क्षेत्रों को परिभाषित कर सकेगी जिनमें वे अपनी शक्तियों का प्रयोग और अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे

(2) हर रजिस्ट्रार भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थ में लोक सेवक समझा जाएगा

                58. रजिस्ट्रीकरणकेलिएआवेदन-(1) फर्म का रजिस्ट्रीकरण उस क्षेत्र के रजिस्ट्रार को, जिसमें उस फर्म के कारबार का कोई स्थान स्थित है या स्थित किया जाना प्रस्थापित है, विहित प्ररूप में और विहित फीस सहित ऐसा कथन जिसमें निम्नलिखित कथित हों, डाक द्वारा भेज कर या परिदत्त करके किसी भी समय कराया जा सकेगा-

                                () फर्म नाम,

                                () फर्म के कारबार का स्थान या मुख्य स्थान,

                                () उन अन्य स्थानों के नाम जिनमें फर्म कारबार चलाती है,   

                                () वह तारीख जिसको हर एक भागीदार फर्म में शामिल हुआ,

                                () भागीदारों के पूरे नाम और स्थायी पते, तथा

                                () फर्म की अस्तित्वावधि

                यह कथन सब भागीदारों द्वारा या उनके ऐसे अभिकर्ताओं द्वारा जो इस निमित्त विशेषतया प्राधिकृत हों हस्ताक्षरित किया जाएगा

                (2) कथन को हस्ताक्षरित करने वाला हर एक व्यक्ति विहित प्रकार से उसे सत्यापित भी करेगा

                (3) फर्म नाम में निम्नलिखित शब्दों में से किसी का भी, अर्थात् :-

                “क्राउन", “एम्परर", “एम्प्रेस", “एम्पायर", “एम्पीरियल", “किंग", “क्वीन", “रायल", या ऐसे शब्दों का, जिनसे *** सरकार *** की मंजूरी, अनुमोदन या प्रतिश्रय अभिव्यक्त या विवक्षित होता हो, उपयोग किया जाएगा सिवाय  [जबकि राज्य सरकार] ने फर्म नाम के भाग-स्वरूप ऐसे शब्दों के उपयोग के लिए  [अपनी] सम्मति लिखित आदेश द्वारा *** दे दी हो

                59. रजिस्ट्रीकरण-जब कि रजिस्ट्रार का समाधान हो जाए कि धारा 58 के उपबन्धों का सम्यक् रूप से अनुवर्तन हो गया है, तब वह फर्मों का रजिस्टर नामक रजिस्टर में उस कथन की प्रविष्टि अभिलिखित करेगा और उस कथन को फाइल कर देगा

                60. फर्मनाममें औरकारबारकेमुख्यस्थानमेंहुएपरिवर्तनोंकाअभिलेख-(1) जब कि किसी रजिस्ट्रीकृत फर्म के फर्म नाम में या कारबार के मुख्य स्थान की स्थिति में कोई परिवर्तन किया जाए, तब विहित फीस के साथ रजिस्ट्रार के पास एक ऐसा कथन भेजा जा सकेगा जिसमें उस परिवर्तन का विनिर्देश हो और जो धारा 58 के अधीन अपेक्षित प्रकार से हस्ताक्षरित और सत्यापित हो

                (2) जबकि रजिस्ट्रार का यह समाधान हो जाए कि उपधारा (1) के उपबन्धों का सम्यक् रूप से अनुवर्तन हो गया है तब वह फर्म रजिस्टर में उस फर्म संबंधी प्रविष्टि को उस कथन के अनुसार संशोधित करेगा और धारा 59 के अधीन फाइल किए गए फर्म संबंधी कथन के साथ उसे फाइल कर देगा

                61. शाखाओंकेबन्दकरनेऔरखोलनेकाटिप्पणितकियाजाना-जबकि कोई रजिस्ट्रीकृत फर्म किसी ऐसे स्थान पर अपना कारबार बन्द या चलाना आरम्भ करे जो उसके कारबार का मुख्य स्थान हो तब उस फर्म का कोई भी भागीदार या अभिकर्ता उसकी प्रज्ञापना रजिस्ट्रार को भेज सकेगा या जो फर्म रजिस्टर में उस फर्म संबंधी प्रविष्टि में ऐसी प्रज्ञापना का टिप्पण कर लेगा और धारा 59 के अधीन फाइल किए गए फर्म संबंधी कथन के साथ उस प्रज्ञापना को फाइल कर देगा

                62. भागीदारोंकेनामोंऔर पतोंमेंतब्दीलियोंकाटिप्पणितकियाजाना-जबकि रजिस्ट्रीकृत फर्म का कोई भागीदार अपने नाम या स्थायी पते में कोई परिवर्तन करे, तब फर्म के किसी भी भागीदार या अभिकर्ता द्वारा रजिस्ट्रार को उस परिवर्तन की प्रज्ञापना भेजी जा सकेगी और रजिस्ट्रार उससे उसी प्रकार बरतेगा जैसा धारा 61 में उपबन्धित है

                63. फर्ममेंतब्दीलियोंऔरउसकेविघटनका अभिलेखनअप्राप्तवयकेप्रत्याहरणकाअभिलेखन-(1) जबकि किसी रजिस्ट्रीकृत फर्म के गठन में कोई तब्दीली हो तब अन्दर जाने वाला, बना रहने वाला या बाहर जाने वाला कोई भी भागीदार और जबकि किसी रजिस्ट्रीकृत फर्म का विघटन हो, तब कोई भी व्यक्ति, जो विघटन से अव्यवहित पहले भागीदार रहा हो, या किसी ऐसे भागीदार या व्यक्ति का इस निमित्त विशेषतया प्राधिकृत अभिकर्ता रजिस्ट्रार को ऐसी तब्दीली या विघटन की तारीख का विनिर्देश करते हुए उसकी सूचना देगा और रजिस्ट्रार फर्मों के रजिस्टर में उस फर्म संबंधी प्रविष्टि में उस सूचना का अभिलेखन करेगा और सूचना को धारा 59 के अधीन फाइल किए गए फर्म संबंधी कथन के साथ फाइल कर देगा

                (2) जब कि कोई अप्राप्तवय जो किसी फर्म में भागीदारी के फायदों में सम्मिलित कर लिया गया हो, प्राप्तवय हो जाए और भागीदार बनने का या बनने का निर्वाचन कर ले और फर्म उस समय रजिस्ट्रीकृत फर्म हो तब वह या इस निमित्त विशेषतया प्राधिकृत उसका अभिकर्ता रजिस्ट्रार को यह सूचना दे सकेगा कि वह भागीदार बन गया है या नहीं बना है और रजिस्ट्रार उस सूचना से उसी प्रकार बरतेगा जैसा उपधारा (1) में उपबन्धित है

                64. भूलोंकापरिशोधन-(1) रजिस्ट्रार को यह शक्ति हर समय होगी कि फर्मों के रजिस्टर में की किसी प्रविष्टि को जो किसी भी फर्म से संबंधित हो इस अध्याय के अधीन फाइल की गई उस फर्म संबंधी दस्तावेजों के अनुरूप बनाने के लिए किसी भी भूल का परिशोधन करे

                (2) उन सब पक्षकारों के आवेदन पर जिन्होंने इस अध्याय के अधीन फाइल की गई फर्म संबंधी किसी दस्तावेज को हस्ताक्षरित किया है, रजिस्ट्रार ऐसी किसी भी भूल का परिशोधन कर सकेगा जो ऐसी दस्तावेज में या फर्मों के रजिस्टर में किए गए उसके अभिलेख या टिप्पणी में हो

                65. न्यायालयकेआदेशसेरजिस्टरकासंशोधन-रजिस्ट्रीकृत फर्म से संबंधित किसी भी मामले का विनिश्चय करने वाला न्यायालय यह निदेश दे सकेगा कि रजिस्ट्रार फर्मों के रजिस्टर में ऐसी फर्म से संबंधित प्रविष्टि में ऐसा कोई भी संशोधन करे, जो उसके विनिश्चय के परिणामस्वरूप और रजिस्ट्रार तदनुसार उस प्रविष्टि का संशोधन करेगा

66. रजिस्टरऔरफाइलकीगईदस्तावेजोंकानिरीक्षण-(1) फर्मों का रजिस्टर, ऐसी फीस के संदाय पर, जो विहित की जाए, किसी भी व्यक्ति द्वारा निरीक्षण के लिए खुला रहेगा

(2) इस अध्याय के अधीन फाइल किए गए सब कथन, सूचनाएं और प्रज्ञापनाएं ऐसी शर्तों के अध्यधीन और ऐसी फीस के संदाय पर, जैसी विहित की जाएं, निरीक्षण के लिए खुली रहेंगी

67. प्रतियोंकादियाजाना-किसी भी व्यक्ति को उसके आवेदन पर रजिस्ट्रार ऐसी फीस के संदाय पर, जो विहित की गई हो, फर्म के रजिस्टर में की किसी भी प्रविष्टि या उसके किसी भी भाग की अपने हस्ताक्षर से प्रमाणित प्रति देगा

68. साक्ष्य केनियम-(1) फर्मों के रजिस्टर में अभिलिखित या टिप्पणित कोई भी कथन, प्रज्ञापना या सूचना उसमें कथित किसी भी तथ्य का निश्चायक सबूत उस व्यक्ति के विरुद्ध होगी, जिसके द्वारा या जिसकी ओर से ऐसा कथन, प्रज्ञापना या सूचना हस्ताक्षरित की गई थी

(2) फर्मों के रजिस्टर में की किसी फर्म से संबंधित किसी भी प्रविष्टि की प्रमाणित प्रति उस फर्म के रजिस्ट्रीकरण के तथ्य के तथा उसमें अभिलिखित या टिप्पणित किसी भी कथन, प्रज्ञापना या सूचना की अन्तर्वस्तु के सबूत में पेश की जा सकेगी

69. रजिस्ट्रीकरानेकाप्रभाव-(1) कोई भी वाद जो किसी संविदा से उद्भूत या इस अधिनियम द्वारा प्रदत्त किसी अधिकार को प्रवृत्त कराने के लिए लाया जाए किसी फर्म के भागीदार के नाते वाद लाने वाले किसी भी व्यक्ति द्वारा या की ओर से उस फर्म के विरुद्ध या किसी ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध जिसका उस फर्म में भागीदार होना या रहा होना अभिकथित हो, किसी भी न्यायालय में संस्थित नहीं किया जाएगा जब तक कि वह फर्म रजिस्ट्रीकृत हो और वाद लाने वाला व्यक्ति फर्मों के रजिस्टर में उस फर्म के भागीदार के तौर पर दर्शित हो या दर्शित रह चुका हो

(2) कोई भी वाद जो किसी संविदा से उद्भूत किसी अधिकार को प्रवृत्त कराने के लिए लाया जाए फर्म द्वारा या की ओर से किसी भी न्यायालय में किसी पर-व्यक्ति के विरुद्ध संस्थित किया जाएगा जब तक कि वह फर्म रजिस्ट्रीकृत हो और वाद लाने वाले व्यक्ति फर्मों के रजिस्टर में फर्म के भागीदारों के तौर पर दर्शित हों या दर्शित रह चुके हों

(3) उपधाराओं (1) और (2) के उपबन्ध किसी संविदा से उद्भूत किसी अधिकार को प्रवृत्त कराने के लिए लाए जाने वाले मुजराई के दावे या अन्य कार्रवाई को भी लागू होंगे, किन्तु निम्नलिखित पर प्रभाव डालेंगे,-

() किसी फर्म के विघटन के लिए या किसी विघटित फर्म का लेखा लेने के लिए, वाद लाने के किसी अधिकार के या किसी विघटित फर्म की सम्पत्ति प्राप्त करने के किसी भी अधिकार या शक्ति के प्रवर्तन पर, अथवा

() किसी दिवालिया भागीदार की सम्पत्ति को प्राप्त करने की किसी शासकीय समनुदेशिती, रिसीवर या न्यायालय की प्रेसिडेंसी नगर दिवाला अधिनियम, 1909 (1909 का 3) या प्रान्तीय दिवाला अधिनियम, 1920 (1920 का 5) के अधीन शक्तियों पर

                (4) यह धारा निम्नलिखित को लागू होगी-

() ऐसी फर्मों को या फर्मों के भागीदारों को, जिनके कारबार का कोई स्थान  [उन राज्यक्षेत्रों मेंट नहीं है 1[जिन पर इस अधिनियम का विस्तार है, या जिनके कारबार के स्थान  [उक्त राज्यक्षेत्रोंट के ऐसे क्षेत्रों में स्थित है जिनकोट  [धारा 56 के अधीन की गई अधिसूचना के कारण यह अध्याय लागू नहीं है, अथवा

() मूल्य में सौ रुपए से अनधिक के किसी भी ऐसे वाद या मुजराई के दावे को, जो प्रेसिडेंसी नगरों में प्रेसिडेंसी लघुवाद न्यायालय अधिनियम, 1882 (1882 का 15) की धारा 19 में विनिर्दिष्ट किस्म का, या प्रेसिडेंसी नगरों के बाहर प्रान्तीय लघुवाद न्यायालय अधिनियम, 1887 (1887 का 9) की द्वितीय अनुसूची में विनिर्दिष्ट किस्म का हो अथवा निष्पादन में की किसी भी कार्यवाही या अन्य कार्यवाही को जो ऐसे वाद या दावे से आनुषंगिक या उद्भूत हो

                70. मिथ्याविशिष्टियांदेनेकेलिएशास्ति-कोई भी व्यक्ति जो इस अध्याय के अधीन किसी ऐसे कथन, संशोधक-कथन, सूचना या प्रज्ञापना को हस्ताक्षरित करेगा, जिसमें कोई ऐसी विशिष्टि अन्तर्विष्ट है, जिसका मिथ्या होना वह जानता है, या जिसके सत्य होने का वह विश्वास नहीं करता अथवा जिसमें ऐसी विशिष्टियां हैं जिनका अपूर्ण होना वह जानता है या जिनके पूर्ण होने का वह विश्वास नहीं करता वह कारावास से, जो तीन मास तक का हो सकेगा, या जुर्माने से या दोनों से दण्डनीय होगा

                71. नियमबनानेकीशक्ति- [राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसे नियम बना सकेगी] जो वह फीस विहित करेंगे जो फर्मों के रजिस्ट्रार को भेजी जाने वाली दस्तावेजों के साथ भेजी जाएगी या उन दस्तावेजों के निरीक्षण के लिए, जो फर्मों के रजिस्ट्रार की अभिरक्षा में हों या फर्मों के रजिस्टर में की प्रतियों के लिए संदेय होगी :

                परन्तु ऐसी फीसें अनुसूची 1 में विनिर्दिष्ट अधिकतम फीसों से अधिक होंगी

                (2) राज्य सरकार ऐसे नियम  [भी] बना सकेगी जो-

                                () धारा 58 के अधीन दिए जाने वाले कथन और उसके सत्यापन का प्ररूप विहित करेंगे,

() यह अपेक्षित करेंगे कि धाराओं 60, 61, 62 और 63 के अधीन कथन, प्रज्ञापनाएं और सूचनाएं विहित प्ररूप में हों और उनका प्ररूप विहित करेंगे,

() फर्मों के रजिस्टर का प्ररूप और वह ढंग जिस ढंग से फर्मों संबंधी प्रविष्टियां उसमें की जानी हैं तथा वह ढंग जिस ढंग से ऐसी प्रविष्टियां संशोधित की जानी हैं, या उनमें टिप्पण किए जाने हैं, विहित करेंगे,

() विवादों के उद्भूत होने पर रजिस्ट्रार द्वारा अनुवर्तनीय प्रक्रिया विनियमित करेंगे,

() रजिस्ट्रार द्वारा प्राप्त दस्तावेजों का फाइल किया जाना विनियमित करेंगे,

() मूल दस्तावेजों के निरीक्षण के लिए, शर्तें विहित करेंगे,

() प्रतियों का दिया जाना विनियमित करेंगे,

() रजिस्टरों और दस्तावेजों की छंटाई विनियमित करेंगे,

() फर्मों के रजिस्टर की अनुक्रमणिका का रखा जाना और उसका प्ररूप उपबन्धित करेंगे, तथा

() साधारणतया इस अध्याय के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए होंगे

                (3) इस धारा के अधीन बनाए गए सब नियम पूर्व प्रकाशन की शर्त के अध्यधीन होंगे

                 [(4) इस धारा के अधीन राज्य सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाए जाने पर यथाशीघ्र राज्य विधान-मंडल के समक्ष रखा जाएगा ]

अध्याय 8

अनुपूरक

                72. लोकसूचनादेनेकाढंग-इस अधिनियम के अधीन लोक सूचना-

() जहां कि वह किसी रजिस्ट्रीकृत फर्म से किसी भागीदार की निवृत्ति या निष्कासन से, या किसी रजिस्ट्रीकृत फर्म के विघटन से या किसी रजिस्ट्रीकृत फर्म में ऐसे व्यक्ति के, जिसे भागीदार के फायदे में अप्राप्तवय के तौर पर सम्मिलित कर लिया गया था प्राप्तवय होने पर भागीदार बन जाने के या बनने के निर्वाचन से, सम्बन्धित है, वहां फर्मों के रजिस्ट्रार को धारा 63 के अधीन सूचना देकर और शासकीय राजपत्र में और देशी भाषा के कम से कम एक ऐसे समाचारपत्र में, जिसका परिचालन उस जिले में हो, जिसमें उस फर्म का जिसमें वह सूचना सम्बन्धित है, कारबार का स्थान या मुख्य स्थान है, प्रकाशन द्वारा दी जाती है, तथा

() किसी भी अन्य दशा में, शासकीय राजपत्र में और देशी भाषा के कम से कम एक ऐसे समाचारपत्र में जिसका परिचालन उस जिले में हो, जहां फर्म के कारबार का स्थान या मुख्य स्थान है, प्रकाशन द्वारा दी जाती है

                73. [निरसन  ]-निरसन अधिनियम, 1938 (1938 का 1) की धारा 2 तथा अनुसूची द्वारा निरसित

                74. व्यावृत्तियां-इस अधिनियम की या एतद्द्वारा किए गए किसी निरसन में की कोई भी बात निम्नलिखित पर प्रभाव डालेगी और प्रभाव डालने वाली समझी जाएगी-

() इस अधिनियम के प्रारम्भ से पहले ही अर्जित, प्रोद्भूत या उपगत कोई भी अधिकार, हक, हित, बाध्यता या दायित्व, अथवा

() ऐसे किसी भी अधिकार, हक, हित, बाध्यता या दायित्व के बारे में या किसी भी ऐसी बात के बारे में जो इस अधिनियम के प्रारम्भ से पूर्व की गई या सहन की गई हो, कोई विधिक कार्यवाही या उपचार, अथवा

() इस अधिनियम के प्रारम्भ होने से पूर्व की गई या सहन की गई कोई भी बात, अथवा

() भागीदार सम्बन्धी कोई भी अधिनियमिति जो इस अधिनियम द्वारा अभिव्यक्त रूप से निरसित नहीं की गई है, अथवा

() भागीदारी से सम्बन्धित दिवाले का कोई भी नियम, अथवा

() विधि का कोई भी नियम जो इस अधिनियम से असंगत हो

अनुसूची 1

अधिकतम फीस

[धारा 71 कीउपधारा (1) देखिए]

दस्तावेज या कार्य जिसके विषय में फीस देय है

अधिकतम फीस

धारा 58 के अधीन कथन

तीन रुपए

धारा 60 के अधीन कथन

एक रुपया

धारा 61 के अधीन प्रज्ञापना

एक रुपया

धारा 62 के अधीन प्रज्ञापना

एक रुपया

धारा 63 के अधीन सूचना

एक रुपया

धारा 64 के अधीन आवेदन

एक रुपया

दस्तावेज या कार्य जिसके विषय में फीस देय है

अधिकतम फीस

धारा 66 की उपधारा (1) के अधीन फर्मों के रजिस्टर का निरीक्षण        

रजिस्टर की एक जिल्द के निरीक्षण के लिए आठ आना

धारा 66 की उपधारा (2) के अधीन फर्म सम्बन्धी दस्तावेजों का निरीक्षण

एक फर्म से सम्बन्धित समस्त दस्तावेजों के निरीक्षण के लिए आठ आना

फर्मों के रजिस्टर में से प्रतियां

प्रति सौ शब्द या उसके भाग के लिए चार आना

अनुसूची 2-[अधिनियमितियांनिरसित ]-निरसन अधिनियम, 1938 (1938 का 1) की धारा 2 तथा अनुसूची द्वारा निरसित

___________

भागीदारी से क्या आशय है?

भागीदारी या साझेदारी (partnership) व्यावसायिक संगठन का एक स व्यक्तियों का पारस्परिक संबंध है, जिसमें लाभ कमाने के उद्देश्य से एक व्यावसायिक उद्यम का गठन किया जाता है। वे व्यक्ति जो एक साथ मिलकर व्यवसाय करते है, उन्हें व्यक्तिगत रूप से 'साझेदारी' (पार्टनरशिप) और सामूहिक रूप से 'फर्म' कहा जाता है।

भागीदारी का अधिकार क्या है?

फर्म में तब्दीलियों ओर उसके विघटन का अभिलेखन (1) जब कि किसी रजिस्ट्रीकृत फर्म के गठन में कोई तब्दीली हो तब अन्दर जाने वाला, बना रहने वाला या बाहर जाने वाला कोई भी भागीदार और जब कि किसी रजिस्ट्रीकृत फर्म का विघटन हो, तब कोई भी व्यक्ति, जो विघटन से अव्यवहित पहले भागीदार रहा हो, या किसी ऐसे भागीदार या व्यक्ति का इस ...

पार्टनरशिप कितने प्रकार की होती है?

उपयोगी कड़ियाँ
हैदराबाद में पंजीकरण और स्टाम्प शुल्क शुल्क
पूंजीगत लाभ कर की गणना करें
अधिभोग प्रमाणपत्र
नोटरीकृत या पंजीकृत समझौता
भारत में ई-स्टैम्पिंग
7/12 दस्तावेज़ निकालें
Partnership Deed क्या होता है? जानिए इसका फार्मेट, पंजीकरण की प्रक्रिया ...www.magicbricks.com › blog › partnership-deednull

साझेदारी फर्म से आप क्या समझते हैं?

ऐसी स्थिति में वर्तमान साझेदारी का विघटन होता है, किंतु फर्म उसी नाम से अपने क्रियाकलापों को जारी रखती है। दूसरे शब्दों में यह साझेदारी का विघटन है न कि फर्म का | साझेदारी अधिनियम 1932 की धारा 39 के अनुसार सभी साझेदारों के मध्य साझेदारी के विघटन को फर्म का विघटन कहते हैं

संबंधित पोस्ट

Toplist

नवीनतम लेख

टैग