बैडमिंटन को ओलंपिक में कब शामिल किया गया था? - baidamintan ko olampik mein kab shaamil kiya gaya tha?

बैडमिंटन से जुड़े महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान के प्रश्न और उत्तर पढने के लिए आप बिलकुल सही जगह पर आये हैं। Badminton GK in Hindi के इस पोस्ट में आप ये सभी जानकारियां पढ़ सकते हैं।

बैडमिंटन से जुड़े समान्य ज्ञान प्रश्न – Badminton GK in Hindi

1. बैडमिंटन खेल के अविष्कारक कौन है
इसके अविष्कारक का नाम किसी को नही पता। कहा जाता है की इसकी खोज भारत के पुणे शहर में हुई थी और इसलिए उस समय इस खेल को पूना के नाम से जाना जाता था। बाद में यह 1870 में ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा विदेश तक पहुँच गया। 1873 में ब्यूफोर्ट के ड्यूक ने इंग्लैंड में बैडमिंटन खेल की शुरुआत की इसलिए उन्हें बैडमिंटन का जनक कहा जाता है, खेल का नाम उसके निवास स्थान बैडमिंटन हाउस से प्राप्त हुआ।

2. बैडमिंटन खेलने वाले मैदान को क्या कहा जाता है?
बैडमिंटन कोर्ट।

3. विश्व स्तर पर प्रथम स्थान हासिल करने वाले पहले भारतीय बैडमिंटन खिलाडी कौन है?
प्रकाश पादुकोण।

4. ऑल इंडिया बैडमिंटन चॅंपियन मे दो बार खेलने वाले भारतीय खिलाड़ी का नाम क्या है?
प्रकाश पादुकोण।

5. ऑल इंग्लेंड बैडमिंटन चॅंपियनशिप्स सिंगल्स फाइनल में दो बार पहुँचने वाले एकमात्र भारतीय खिलाड़ी कौन है?
प्रकाश पादुकोण।

6. बैडमिंटन में विश्व में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाली पहली भारतीय महिला खिलाडी कौन है?
सायना नेहवाल।

7. बैडमिंटन कोर्ट का आकार कितना होता है?
डबल्स के लिए 44 X 20 फीट और सिंगल्स के लिए 44 X 17 फीट

8. बैडमिंटन के नेट की ऊंचाई कितनी होती है?
5 फीट।

9. एक शटलकॉक में कितने पंख होते हैं?
एक शटलकॉक में 16 पंख लगाये जाते हैं।

10. बैडमिंटन रैकेट की लंबाई कितनी होती है?
26 इंच।

11. बैडमिंटन को एशियाई खेलों में पहली बार कब शामिल किया गया था?
1974 में पहली बार तेहरान में बैडमिंटन को एशियाई खेलों में शामिल किया गया।

12. कौन से वर्ष में बैडमिंटन को ओलिंपिक खेल में शामिल किया गया?
1992 में।

13. पुराने से समय में बैडमिंटन को किन-किन नामो से जाना जाता था?

  • शटलकॉक
  • पूना
  • बैटलडोर

14. सबसे पुराना बैडमिंटन क्लब कौन सा है?
New castle badminton club, इसका निर्माण आर्मस्ट्रांग कॉलेज में 24 जनवरी 1900 में किया गया था।

15. अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन संघ का गठन कब किया गया था?
1934 में।

16. बैडमिंटन मे कितने प्लेयर होते हैं?
2 या 4 खिलाडी, सिंगल्स में एक-एक खिलाडी दोनों तरफ होते हैं और डबल्स में एक टीम में दो खिलाडी होते हैं।

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17. साइना नेहवाल ने बैडमिंटन क्यों चुना?
साइना नेहवाल की बायोग्राफी से पता चलता है की पहले वे हैदराबाद में कराटे सीखा करतीं थीं लेकिन एक दिन करतब दिखाने के लिए कराते टीचर ने यह तय किया छात्रों के हाथों के ऊपर से एक मोटरसाइकिल गुजारी जायेगी। लेकिन यह सायना के माता-पिता इसके लिए तैयार नही हुए और उन्होंने कराटे सीखने से मना कर दिया इसके बाद से उनके बैडमिंटन की सफ़र की शुरुआत हुई।

18. बैडमिंटन ओलिंपिक में सिल्वर मैडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाडी कौन हैं?
पी. वी. सिन्धु।

19. ऑस्ट्रेलिया में राष्ट्रमंडल खेलों (Commonwealth Games) में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी कौन हैं?
सईद मोदी।

20. 2001 में ऑल इंग्लैंड ओपन चैंपियनशिप किसने जीता?
पुलेला गोपीचंद।

21. 2015 में पद्मश्री पुरूस्कार प्राप्त करने वाली सबसे कम उम्र की बैडमिंटन खिलाडी कौन है?
पी.वी. सिन्धु।

22. भारत ओपन ग्रांड प्रिक्स गोल्ड टूर्नामेंट किस स्टेडियम में आयोजित किया गया था?
बाबु बनारसी दास इंडोर स्टेडियम।

23. इंडिया ओपन सुपर सीरीज़ बैडमिंटन टूर्नामेंट 2015 में किस खिलाड़ी ने महिला एकल खिताब जीता?
सायना नेहवाल।

24. बैडमिंटन में सबसे ज्यादा ओलंपिक मैडल जीतने वाला देश कौन सा है?
बैडमिंटन ओलिंपिक में अब तक सबसे अधिक 41 मैडल चीन ने जीते हैं, इसके बाद इंडोनेशिया का नाम आता है जिसने इस खेल में अब तक 19 पदक जीते हैं।

25. भारत ने अब तक बैडमिंटन में कितने ओलिंपिक मैडल जीते हैं?
भारत ने अब तक कुल दो पदक जीते हैं जिसमे से एक कांस्य (ब्रोंज) पदक सन 2012 (लन्दन) में सायना नेहवाल द्वारा और एक रजत (सिल्वर) पदक सन 2016 (रियो) में पी.वी सिन्धु द्वारा जीता गया है।

26. दक्षिण कोरिया ने बैडमिंटन में अब तक कितने ओलंपिकपदक जीते हैं?
19 पदक।

आपको बैडमिंटन के बारे में ये सामान्य ज्ञान Badminton GK in Hindi कैसे लगे हमें जरुर बताएं।

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बैडमिंटन की शुरुआत 19वीं सदी के मध्य में ब्रिटिश भारत में मानी जा सकती है, उस समय तैनात ब्रिटिश सैनिक अधिकारियों द्वारा इसका सृजन किया गया था। प्रारंभिक तस्वीरों में अंग्रेज बल्ले और शटलकॉक के अंग्रेजों के पारंपरिक खेल में नेट को जोड़ते दिखायी देते हैं। ब्रिटिश छावनी शहर पूना में यह खेल खासतौर पर लोकप्रिय रहा, इसीलिए इस खेल को पूनाई के नाम से भी जाना जाता है। शुरू में, हवा या गीले मौसम में उच्च वर्ग ऊन के गोले से खेलना पसंद करते थे, लेकिन अंततः शटलकॉक ने बाजी मार ली। इस खेल को सेवानिवृत्ति के बाद वापस लौटने वाले अधिकारी इंग्लैंड ले गए, जहां इसे विकसित किया गया और नियम बनाये गए।

बैडमिंटन को ओलंपिक में कब शामिल किया गया था? - baidamintan ko olampik mein kab shaamil kiya gaya tha?

सन् 1860 के आस-पास, लंदन के एक खिलौना व्यापारी इसहाक स्प्राट ने बैडमिंटन बैटलडोर-एक नया खेल नामक एक पुस्तिका प्रकाशित की लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि उसकी कोई प्रति नहीं बच पायी।

नया खेल निश्चित रूप से सन् 1873 में ग्लूस्टरशायर स्थित ब्यूफोर्ट के ड्यूक के स्वामित्ववाले बैडमिंटन हाउस में शुरू किया गया था। उस समय तक, इसे “बैडमिंटन का खेल" नाम से जाना जाता था और बाद में इस खेल का आधिकारिक नाम बैडमिंटन बन गया।

सन् 1887 तक, ब्रिटिश भारत में जारी नियमों के ही तहत इंग्लैंड में यह खेल खेला जाता रहा। बाथ बैडमिंटन क्लब ने नियमों का मानकीकरण किया और खेल को अंग्रेजी विचारों के अनुसार ढाला गया। 1887 में बुनियादी नियम

बनाये गए। सन् 1893 में, इंग्लैंड बैडमिंटन एसोसिएशन ने आज के नियमों जैसे ही, इन विनियमों के अनुसार नियमों का पहला सेट प्रकाशित किया और उसी साल 13 सितम्बर को इंग्लैंड के पोर्ट्माउथ स्थित 6 वैवी ग्रोव के “डनबर" नामक भवन में आधिकारिक तौर पर बैडमिंटन की शुरूआत की। 1899 में, उन्होंने ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैम्पियनशिप भी शुरू की, जो विश्व की पहली बैडमिंटन प्रतियोगिता बनी।

अंतर्राष्ट्रीय बैडमिंटन महासंघ (IBF) (जो अब विश्व बैडमिंटन संघ के नाम से जाना जाता है) सन् 1934 में स्थापित किया गया, कनाडा, डेन्मार्क, इंग्लैंड, फ्रांस, नीदरलैंड, आयरलैंड, न्यूजीलैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स इसके संस्थापक बने। भारत सन् 1936 में एक सहयोगी के रूप में शामिल हुआ। बीडब्ल्यूएफ अब अंतर्राष्ट्रीय बैडमिंटन खेल को नियंत्रित करता है और खेल को दुनिया भर में विकसित करता है।

हालांकि इसके नियम इंग्लैंड में बने, लेकिन यूरोप में प्रतिस्पर्धी बैडमिंटन पर पारंपरिक रूप से डेमार्क का दबदबा है। इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया और मलेशिया उन देशों में हैं जो लगातार पिछले कुछ दशकों से विश्व स्तर के खिलाड़ी पैदा कर रहे हैं और अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में हावी हैं, इनमें चीन भी शामिल है, हाल के वर्षों में जिसका सबसे अधिक दबदबा रहा है।

पुस्तक लेखन में कई लिखित व अलिखित स्रोतों से मदद ली गई है; मैं उन सभी विज्ञ लेखकों के प्रति अपना आभार प्रकट करता हूँ। आशा करता हूँ कि पुस्तक पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।


बैडमिंटन

बैडमिंटन रैकेट से खेला जानेवाला एक खेल है, जो दो विरोधी खिलाड़ियों (एकल) या दो विरोधी जोड़ों (युगल) द्वारा नेट से विभाजित एक आयताकार कोर्ट में आमने-सामने खेला जाता है। खिलाड़ी अपने रैकेट से शटलकॉक को मारकर के अपने विरोधी पक्ष के कोर्ट के आधे हिस्से में गिराकर प्वाइंट्स प्राप्त करते हैं। एक रैली तब समाप्त हो जाती है जब शटलकॉक मैदान पर गिर जाता है। प्रत्येक पक्ष शटलकॉक के उस पार जाने से पहले उस पर सिर्फ एक बार वार कर सकता है। about badminton in hindi

शटलकॉक (या शटल) चिड़ियों के पंखों से बना प्रक्षेप्य है, जिसकी अनोखी उड़ान भरने की क्षमता के कारण यह अधिकांश रैकेट खेलों की गेंदों की तुलना में अलग तरह से उड़ा करती है। खासतौर पर, पंख कहीं ज्यादा ऊंचाई तक खिंची जा सकती हैं, जिस कारण गेंद की तुलना में शटलकॉक कहीं अधिक तेजी से अवत्वरण करता है। अन्य रैकेट के खेलों की तुलना में शटलकॉक की शीर्ष गति बहुत अधिक होती है। चूंकि शटलकॉक की उड़ान हवा से प्रभावित होती है, इसीलिए बैडमिंटन प्रतिस्पर्धा इनडोर में ही खेलना अच्छा होता है। कभी-कभी मनोरंजन के लिए बगीचे या समुद्र तट पर भी खुले में बैडमिंटन खेला जाता है।

सन् 1992 से, पांच प्रकार के आयोजनों के साथ बैडमिंटन एक ओलम्पिक खेल रहा है-पुरुषों और महिलाओं के एकल, पुरुषों और महिलाओं के युगल और मिश्रित युगल, जिसमें प्रत्येक जोड़ी में एक पुरूष और एक महिला होती है। खेल के उच्च स्तर पर, खेल उत्कृष्ट शारीरिक फिटनेस की मांग करता है-खिलाड़ियों को एरोबिक क्षमता, दक्षता, शक्ति, गति और दुरूस्तता की आवश्यकता होती है। यह एक तकनीकी खेल भी है, इसमें अच्छे संचालन समन्वय और परिष्कृत रैकेट जुम्बिशों के विकास की जरुरत होती है।


बैडमिंटन इतिहास और विकास

बैडमिंटन की शुरुआत 19वीं सदी के मध्य में ब्रिटिश भारत में मानी जा सकती है, उस समय तैनात ब्रिटिश सैनिक अधिकारियों द्वारा इसका सृजन किया गया था। प्रारंभिक तस्वीरों में अंग्रेज बल्ले और शटलकॉक के अंग्रेजों के पारंपरिक खेल में नेट को जोड़ते दिखायी देते हैं। ब्रिटिश छावनी शहर पूना में यह खेल खासतौर पर लोकप्रिय रहा, इसीलिए इस खेल को पूनाई के नाम से भी जाना जाता है। शुरू में, हवा या गीले मौसम में उच्च वर्ग ऊन के गोले से खेलना पसंद करते थे, लेकिन अंततः शटलकॉक ने बाजी मार ली। इस खेल को सेवानिवृत्ति के बाद वापस लौटनेवाले अधिकारी इंग्लैंड ले गए, जहां इसे विकसित किया गया और नियम बनाये गए।

सन् 1860 के आस-पास, लंदन के एक खिलौना व्यापारी इसहाक स्प्राट ने बैडमिंटन बैटलडोर-एक नया खेल नामक एक पुस्तिका प्रकाशित की, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि उसकी कोई प्रति नहीं बच पायी।

नया खेल निश्चित रूप से सन् 1873 में ग्लूस्टरशायर स्थित ब्यूफोर्ट के ड्यूक के स्वामित्ववाले बैडमिंटन हाउस में शुरू किया गया था। उस समय तक, इसे “बैडमिंटन का खेल" नाम से जाना जाता था और बाद में इस खेल का आधिकारिक नाम बैडमिंटन बन गया।

सन् 1887 तक, ब्रिटिश भारत में जारी नियमों के ही तहत इंग्लैंड में यह खेल खेला जाता रहा। बाथ बैडमिंटन क्लब ने नियमों का मानकीकरण किया और खेल को अंग्रेजी विचारों के अनुसार ढाला गया। 1887 में बुनियादी नियम बनाये गए। सन् 1893 में, इंग्लैंड बैडमिंटन एसोसिएशन ने आज के नियमों जैसे ही, इन विनियमों के अनुसार नियमों का पहला सेट प्रकाशित किया और उसी साल 13 सितम्बर को इंग्लैंड के पोर्ट्समाउथ स्थित 6 वैवर्ली ग्रोव के “डनबर" नामक भवन में आधिकारिक तौर पर बैडमिंटन की शुरूआत की। 1899 में, उन्होंने ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैम्पियनशिप भी शुरू की, जो विश्व की पहली बैडमिंटन प्रतियोगिता बनी।

अंतर्राष्ट्रीय बैडमिंटन महासंघ (IBF) (जो अब विश्व बैडमिंटन संघ के नाम से जाना जाता है) सन् 1934 में स्थापित किया गयाय कनाडा, डेन्मार्क, इंग्लैंड, फ्रांस, नीदरलैंड, आयरलैंड, न्यूजीलैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स इसके संस्थापक बने। भारत सन् 1936 में एक सहयोगी के रूप में शामिल हुआ। बीडब्ल्युएफ अब अंतर्राष्ट्रीय बैडमिंटन खेल को नियंत्रित करता है और खेल को दुनिया भर में विकसित करता है।

हालांकि इसके नियम इंग्लैंड में बने, लेकिन यूरोप में प्रतिस्पर्धी बैडमिंटन पर पारंपरिक रूप से डेमार्क का दबदबा है। इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया और मलेशिया उन देशों में हैं जो लगातार पिछले कुछ दशकों से विश्व स्तर के खिलाड़ी पैदा कर रहे हैं और अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में हावी हैं, इनमें चीन भी शामिल है, हाल के वर्षों में जिसका सबसे अधिक दबदबा रहा है।


खेल के कोर्ट का आयाम

कोर्ट आयताकार होता है और नेट द्वारा दो हिस्सों में विभाजित किया जाता है। आम तौर पर कोर्ट एकल और युगल दोनों खेल के लिए चिह्नित किये जाते हैं, हालांकि नियम सिर्फ एकल के लिए कोर्ट को चिह्नित करने की अनुमति देता है। युगल कोर्ट एकल कोर्ट से अधिक चौड़े होते हैं, लेकिन दोनों की लंबाई एक समान होती हैं। अपवाद, जो अक्सर नए खिलाड़ियों को भ्रम में डाल देता है कि युगल कोर्ट की सर्व-लंबाई आयाम छोटा होता है।

बैडमिंटन को ओलंपिक में कब शामिल किया गया था? - baidamintan ko olampik mein kab shaamil kiya gaya tha?

कोर्ट की पूरी चौड़ाई 6.1 मीटर (20 फुट) और एकल की चौड़ाई इससे कम 5.18 मीटर (17 फुट) होती है। कोर्ट की पूरी लंबाई 13.4 मीटर (44 फुट) होती है। सर्विस कोर्ट एक मध्य रेखा द्वारा कोर्ट की चौडाई को विभाजित करके चिन्हित होते हैं। नेट से 1.98 मीटर (6 फुट 6 इंच) की दूरी पर शॉर्ट सर्विस रेखा द्वारा और बाहरी ओर तथा पिछली सीमाओं द्वारा यह चिह्नित होता है। युगल में, सर्विस कोर्ट एक लंबी सर्विस रेखा द्वारा भी चिह्नित होती है, जो पिछली सीमा से 0.78 मीटर (2 फुट 6 इंच) की दूरी पर होती है।

नेट किनारों पर 1.55 मीटर (5 फीट 1 इंच) और बीच में 1.524 मीटर (5 फीट) ऊंचा होता है। नेट के खम्बे युगल पार्श्वरेखाओं पर खड़े होते हैं, तब भी जब एकल खेला जाता है।

बैडमिंटन के नियमों में कोर्ट के ऊपर की छत की न्यूनतम ऊंचाई का कोई उल्लेख नहीं है। फिर भी, ऐसा बैडमिंटन कोर्ट अच्छा नहीं माना जायेगा अगर ऊंचा सर्व छत को छू जाय।


उपकरण नियम

नियम निर्दिष्ट करता है कि कौन-सा उपकरण इस्तेमाल किया जा सकता है। विशेष रूप से, रैकेट और शटलकॉक के डिजाइन और आकार को लेकर नियम सीमाबद्ध हैं। सही गति के लिए शटलकॉक के परीक्षण का भी नियम में प्रावधान हैं-

  1. शटलकॉक की जांच के लिए फुल अंडरहैण्ड स्ट्रोक का उपयोग करें जो शटलकॉक को पिछली बाउंड्री रेखा तक ले जाता है। शटलकॉक को एक ऊपरी कोण पर और समानांतर दिशा में साइड लाइन की ओर मारना चाहिए।
  2. सही गति का एक शटलकॉक अन्य पिछली बाउंड्री लाइन से कम-से-कम 530 मिमी और 990 मिमी से ज्यादा दूर नहीं गिरेगा।


स्कोरिंग प्रणाली और सर्विस

बुनियादी बातें

हर खेल 21 प्वाइंट पर खेला जाता है, जहां खिलाड़ी एक रैली जीत कर एक प्वाइंट स्कोर करता है (यह उस पुरानी व्यवस्था से अलग है, जिसमें खिलाड़ी सिर्फ अपने सर्व जीतकर ही अंक पा सकते थे)। तीन खेल में सर्वोत्तम का एक मैच होता है।

रैली के आरंभ में, सर्वर और रिसीवर अपने-अपने सर्विस कोर्ट में एक-दूसरे के तिरछे खड़े होते हैं। सर्वर शटलकॉक को इस तरह हिट करता है कि यह रिसीवर के सर्विस कोर्ट में जाकर गिरे। यह टेनिस के समान है, सिवाय इसके कि बैडमिंटन सर्व कमर की ऊंचाई के नीचे से हिट किया जाना चाहिए और रैकेट शाफ्ट अधोमुखी होना चाहिए, शटलकॉक को बाउंस करने की अनुमति नहीं है और बैडमिंटन में खिलाड़ियों को अपने सर्व कोर्टों के अंदर खड़े रहना पड़ता है, जबकि ऐसा टेनिस में नहीं होता है।

जब सर्विंग पक्ष एक रैली हार जाता है, तब सर्व प्रतिद्वंद्वी या प्रतिद्वंद्वियों को मिल जाया करता है (पुरानी व्यवस्था के विपरीत, युगल में "सेकंड सर्व" नहीं होता है)।

एकल में, सर्वर का स्कोर सम होता है तब वह अपने दाहिने सर्विस कोर्ट में और जब उसका स्कोर विषम होता है तब वह अपने बाएं सर्विस कोर्ट में खड़ा होता है।

युगल में, अगर सर्विंग पक्ष एक रैली जीत जाता है, तो वही खिलाड़ी सर्व करना जारी रखता है, लेकिन उसे सर्विस कोर्ट बदलना पड़ता है ताकि वह बारी-बारी से हरेक प्रतिद्वंद्वी के लिए कार्य करता है। अगर विरोधी रैली जीत जाते हैं और उनका नया स्कोर सम है, तब दाहिने सर्विस कोर्ट का खिलाड़ी सर्व करता है, अगर विषम है तो बाएं सर्विस कोर्ट का खिलाड़ी सर्व करता है। पिछली रैली के आरंभ में उनकी जगह के आधार पर ही खिलाड़ियों के सर्विस कोर्ट निर्धारित होते हैं, न कि रैली के अंत में जहां वे खड़े थे। इस प्रणाली का एक परिणाम यह है कि हर बार एक साइड को सर्विस का मौका मिलता है, ऐसे खिलाड़ी को सर्वर बनने का अवसर मिलता है जिसने पिछली बार सर्व नहीं किया था।


विवरण

जब सर्वर सर्व करता है, तब शटलकॉक विरोधियों के कोर्ट में शार्ट सर्विस लाइन के पार जाना चाहिए वरना इसे चूक मान लिया जाएगा।

अगर स्कोर 20-ऑल तक पहुंच चुका है, तो खेल जारी रहता है जबतक कि एक पक्ष दो अंक (जैसे कि 24-22) की बढ़त नहीं ले लेता, अधिकतम 30 अंक तक ऐसा ही चलता रह सकता है (30-29 जीत का स्कोर है)।

मैच के आरंभ में, एक सिक्का उछाला जाता है। इसमें जीतनेवाले यह तय कर सकते हैं कि वे पहले सर्व करेंगे या रिसीव करेंगे, या वे कोर्ट के किस छोर से पहले खेलना चाहेंगे। उनके विरोधियों को बचे हुए का ही चयन करना पड़ता है। कम औपचारिक सेटिंग्स में, सिक्का उछालने के बजाय अक्सर ही एक शटलकॉक को हिट करके ऊपर हवा में उड़ाया जाता है, कॉर्क का सिरा जिस ओर इंगित करता है वो पक्ष सर्व करेगा।

बाद के खेल में, पिछले खेल के विजेता पहले सर्व करते हैं। इन्हें रबर्स भी कहा जा सकता है। अगर एक टीम एक खेल जीत जाती है तो वे एक बार फिर खेलते हैं और अगर वह एक बार फिर से जीत जाती है तो वह उस मैच को ही जीत लेती हैं, लेकिन यदि वह हार गयी तो उन्हें मैच में जीत-हार के लिए एक और मैच खेलना पड़ता है। किसी भी युगल खेल की पहली रैली के लिए, सर्विंग जोड़ी फैसला कर सकती है कि कौन पहले सर्व करेगा और रिसीविंग जोड़ी फैसला कर सकती है कि कौन पहले रिसीव करेगा। दूसरे खेल की शुरुआत में खिलाड़ियों को अपना छोर बदलना होता है, अगर मैच तीसरे खेल तक पहुंचता है, तब गेम के आरंभ में और फिर जब अग्रणी जोड़ी का स्कोर 11 अंक तक पहुंचता है तब, उन्हें दो बार अपने छोर बदलने पड़ते हैं।

सर्वर और रिसीवर को सीमा रेखा छुए बिना अपने सर्विस कोर्ट में रहना पड़ता है, जब तक कि सर्वर शटलकॉक को स्ट्राइक नहीं करता। अन्य दो खिलाड़ी अपनी इच्छा अनुसार कहीं भी खड़े रह सकते हैं, तब तक जब तक कि वे विरोधी सर्वर या रिसीवर की नजर से दूर हैं।


गलतियां (फॉल्ट)

खिलाड़ी शटलकॉक को स्ट्राइक करके और उसे विरोधी पक्ष के कोर्ट की सीमा के अंदर गिराकर एक रैली जीते जाते हैं (एकल-साइड ट्रामलाइंस बाहर हैं, लेकिन पिछली ट्राम अंदर, युगल-साइड ट्रामलाइंस अंदर हैं, लेकिन पिछली ट्रामलाइन बाहर (सिर्फ सर्विस के लिए))। खिलाड़ी तब भी एक रैली जीत जाता है जब विरोधी कोई गलती करता है। बैडमिंटन में सबसे आम गलती या फॉल्ट है जब खिलाड़ी शटलकॉक को वापस भेजने और विरोधी कोर्ट में गिराने में विफल होता है, लेकिन और भी अन्य तरीके से खिलाड़ियों से गलती हो सकती है।

कई गलतियां विशेष रूप से सर्विस से संबंधित हैं। सर्विंग खिलाड़ी की गलती होगी अगर संपर्क के समय शटलकॉक उसकी कमर से ऊपर हो (उसकी निचली पसली के पास), या संघात के वक्त उसके रैकेट का सिर अधोमुखी न हो। यह विशेष नियम 2006 में संशोधित हुआ-पहले, सर्वर के रैकेट को इस हद तक अधोमुखी होना होता था कि रैकेट के सिर को उस हाथ से नीचे रहना जरूरी था जिससे रैकेट को पकड़ा गया है, और अब. समस्तर के नीचे कोई भी कोण स्वीकार्य है।

न तो सर्वर और न ही रिसीवर एक पैर उठा सकते हैं जब तक कि सर्वर शटलकॉक को स्ट्रक न करे। सर्वर को शुरू में शटलकॉक के आधार (कॉर्क) पर भी हिट करना होगा, हालांकि वह बाद में उसी स्ट्रोक के एक भाग के रूप में पंखवाले हिस्से पर भी हिट कर सकता है। एस-सर्व या सीडेक सर्व के नाम से ख्यात एक अत्यंत प्रभावी सर्विस शैली को प्रतिबंधित करने के लिए यह कानून बनाया गया। इस शैली के जरिए सर्वर शटलकॉक की उड़ान में अव्यवस्थित स्पिन पैदा किया करते थे।

नेट के पार वापस भेजने के पहले हर पक्ष शटलकॉक को सिर्फ एक ही बार स्ट्राइक कर सकता है, लेकिन एक एकल स्ट्रोक संचलन के दौरान कोई खिलाड़ी शटलकॉक को दो बार संपर्क कर सकता है (कुछ तिरछे शॉट्स में होता है)। बहरहाल, कोई खिलाड़ी शटलकॉक को एक बार हिट करने के बाद फिर किसी नयी चाल के साथ उसे हिट नहीं कर सकता. या वह शटलकॉक को थाम या स्लिंग नहीं कर सकता है।

अगर शटलकॉक छत को हिट करता है तो यह फॉल्ट होगा।


लेट्स

अगर लेट्स होता है तो रैली बंद कर दी जाती है और स्कोर में बगैर कोई परिवर्तन के फिर से खेली जाती है। कुछ अनपेक्षित बाधा के कारण लेट्स हो सकते हैं, मसलन शटलकॉक के कोर्ट में गिर जाने पर (संलग्न कोर्ट के खिलाड़ियों द्वारा हिट कर दिया गया हो) या छोटे हॉल के ऊपरी भाग से शटल छू जाए तो इसे लेट्स कहा जा सकता है।

जब सर्व किया गया तब अगर रिसीवर तैयार नहीं है, उसे लेट्स कहा जाएगाय फिर भी, अगर रिसीवर शटलकॉक वापस करने का प्रयास करता है, तो मान लिया जाएगा कि वह तैयार हो गया।

अगर शटलकॉक टेप को हिट करता है तो वह लेट्स नहीं होगा (सर्विस के वक्त भी)।


बैडमिंटन रैकेट्स

बैडमिंटन रैकेट हल्के होते हैं, अच्छे किस्म के रैकेट का वजन तार सहित 79 और 91 ग्राम के बीच होता है। ये कई अलग सामग्रियों कार्बन फाइबर मिश्रण (ग्रैफाइट प्रबलित प्लास्टिक) से लेकर ठोस इस्पात तक, विभिन्न तरह के पदार्थों के संवर्धन से बनाये जा सकते हैं। कार्बन फाइबर वजन अनुपात में एक उत्कृष्ट शक्ति प्रदान करता है, जो कठोर है और गतिज ऊर्जा का स्थानांतरण बहुत बढ़िया देता है। कार्बन फाइबर मिश्रण से पहले, रैकेट हल्के धातुओं जैसे एल्यूमिनियम में बनता था। इससे पहले रैकेट लकड़ी के बनते थे। सस्ते रैकेट अब भी अक्सर इस्पात जैसे धातु के बनते हैं, लेकिन अत्यधिक मात्र में लकड़ी लगने और इसकी कीमत के कारण अब सामान्य बाजार के लिए लकड़ी के रैकेट नहीं बनते हैं। आजकल, अधिक से अधिक टिकाऊपन देने के लिए नैनो मैटेरिअल जैसे फुल्लेरेने और कार्बन नैनोट्यूब को भी रैकेट बनाने में शामिल किया जा रहा हैं।

रैकेट डिजाइन में बहुत सारी विविधताएं हैं, हालांकि नियमन रैकेट का साइज और उसके आकार की सीमा तय कर दी गयी है। अलग-अलग खिलाड़ियों के खेल के अंदाज के लिए विभिन्न तरह के रैकेट होते हैं। पारंपरिक ऊपरी हिस्सा अंडाकार वाले रैकेट अभी भी उपलब्ध हैं, लेकिन एक सममात्रिक आकार का रैकेट तेजी से आम हो रहा है। वे ज्यादातर खिलाड़ियों में बहुत लोकप्रिय हैं।


तार

बैडमिंटन तार पतले होते हैं, बहुत अच्छे प्रदर्शन वाले तार 0.65 से 0.73 मिमी मोटाई की रेंज में होते हैं। मोटा तार अधिक टिकाऊ होता है, लेकिन ज्यादातर खिलाड़ी पतले तार पसंद करते हैं। पेशेवर के बजाए शौकिया खिलाड़ी आमतौर पर तार कम कसाव में रखते हैं, खास तौर से 18 और 25 पौंड-बल (110 न्यू.) के बीच होता है। पेशेवर के तार का कसाव लगभग 25 और 36 पौंड-बल (160 न्यू.) के बीच।

अक्सर यह तर्क दिया जाता है, तार का कसाव नियंत्रण को उन्नत बनाता है, जबकि कम कसाव शक्ति में वृद्धि करता है। इसके लिए जो युक्ति दी जाती है वह आमतौर कच्चे यांत्रिक तर्क के तौर पर लागू होते हैं, जैसे कि कम कसाववाले तार का आधार अधिक उछाल देने वाला होता है और इसलिए अधिक शक्ति प्रदान करता है। दरअसल यह गलत है, वास्तव में, एक उच्च कसाववाले तार के कारण शटल रैकेट से फिसल सकता है और इसीलिए शॉट ठीक से मार पाना मुश्किल होता है। एक विकल्प यह सुझाता है कि ताकत के लिए सर्वोत्तम कसाव खिलाड़ी पर निर्भर करता है- सर्वाधिक ताकत के लिए उच्च कसाव से खिलाड़ी अपने रैकेट को अधिक तेजी से और अधिक सटीक तौर पर लहरा सकता है। किसी भी विचार के लिए न तो कड़े यांत्रिक विश्लेषण की जरुरत है और न ही इसके या दूसरे के पक्ष में स्पष्ट सबूत हैं। एक खिलाड़ी के लिए सबसे प्रभावी तरीका है कि एक अच्छे कसाववाले तार का वह प्रयोग करे।


ग्रिप

पकड़ या ग्रिप की पसंद खिलाड़ी को अपने रैकेट के मुठे की मोटाई में वृद्धि और पकड़ के लिए आरामदायक सतह के चुनाव करने की अनुमति देती है। अंतिम परत चढ़ाने से पहले खिलाड़ी एक या अनेक ग्रिप के साथ रैकेट का मुट्ठा तैयार कर सकता है।

खिलाड़ी ग्रिप की विभिन्न प्रकार की सामग्री के बीच चुनाव कर सकते हैं। ज्यादातर PU सिंथेटिक ग्रिप या टॉवेलिंग ग्रिप का ही चलन है। ग्रिप की पसंद निजी प्राथमिकता का मामला है। अक्सर खिलाड़ियों के लिए पसीना एक समस्या है, इस मामले में, ग्रिप या हाथ में एक ड्राइंग एजेंट लगाया जा सकता है, स्वेटबैंड्स का इस्तेमाल हो सकता है, खिलाड़ी दूसरे किस्म का ग्रिप मैटेरिअल चुन सकता है या ग्रिप को बार-बार बदल सकता है।

मुख्य प्रकार के दो ग्रिप हैं-रिप्लेसमेंट ग्रिप और ओवरग्रिप्स। रिप्लेसमेंट ग्रिप मोटा होता है और अक्सर इसका इस्तेमाल मुट्ठे की माप में वृद्धि में किया जाता है। ओवरग्रिप्स पतले (1 मिमी से कम) होते हैं और अक्सर इसका इस्तेमाल अंतिम परत के रूप में किया जाता है। बहरहाल, बहुत सारे खिलाड़ी अंतिम परत के रूप में रिप्लेसमेंट ग्रिप का उपयोग करना पसंद करते हैं। टॉवेलिंग ग्रिप हमेशा रिप्लेसमेंट ग्रिप होते हैं। रिप्लेसमेंट ग्रिप चिपकने वाला होता है, जबकि ओवरग्रिप्स टेप के शुरू में चिपकने वाले केवल छोटे पैच होते हैं और कसाव के आधार पर इसे लगाया जाना चाहिए। ओवरग्रिप्स उन खिलाड़ियों के लिए और अधिक सुविधाजनक हैं जो अक्सर ग्रिप बार-बार बदलते हैं, क्योंकि बगैर खराब हुए वे अंतर्निहित सामग्री को जल्दी-जल्दी बदल सकते हैं।

शटलकॉक (अक्सर संक्षेप में शटल और सामान्यतः चिड़िया रूप में भी जाना जाता है) एक खुला शंकु आकार का ऊंचा उड़नेवाला प्रक्षेप्य है-कॉर्क के आधार में सोलह अतिव्यापी अंत:स्थापित पंखों से शंकु बनाया जाता है। कॉर्क को महीन चमड़े या सिंथेटिक सामग्री से ढंक दिया जाता है।

चूंकि पंखों के शटल आसानी से टूट जाते हैं, इसीलिए अक्सर शौकिया खिलाड़ियों द्वारा अपनी लागत को कम करने के लिए सिंथेटिक शटल का इस्तेमाल किया जाता है। ये नायलॉन शटल या तो प्राकृतिक कॉर्क या कृत्रिम फोम बेस और प्लास्टिक के घेरे से बनाये जाते हैं।

इसके अतिरिक्त, नायलॉन शटलकॉक तीन किस्मों के होते हैं, हरेक किस्म अलग तरह के तापमान के लिए होते हैं। ये तीन किस्म के होते हैं, हरा (धीमी गति जो आपको एक अतिरिक्त 40% समय/शॉट लंबाई देगा), नीला (मध्यम गति) और लाल (तेज गति) के लिए। इसलिए कॉर्क के चारों तरफ चिपकी रंगीन पट्टी रंग और गति की ओर संकेत करती है। ठंडे तापमान में तेज शटल का उपयोग किया जाता है और गर्म मौसम में धीमें को चुना जाता है।


जूते

बैडमिंटन जूते वजन में हल्के रबर के तले या मिलते-जुलते हाई ग्रिप के साथ नॉन-मार्किंग सामग्री से बने होते हैं।

दौडनेवाले जूतों की तुलना में, बैडमिंटन जूते थोड़ा पार्श्विक अवलंबन वाले होते हैं। उच्च स्तर का पार्श्विक अवलंबन गतिविधियों के लिए वहां उपयोगी है, जहां पार्श्व गति अवांछनीय और अप्रत्याशित है। बहरहाल, बैडमिंटन में शक्तिशाली पार्श्व गति की आवश्यकता होती है। बैडमिंटन में पैर की सुरक्षा में एक उच्च निर्मित पार्श्विक अवलंबन सक्षम नहीं होगा, इसके बजाए, ऐसी जगह पर जहां जूते को अवलंबन नहीं मिल पाता यह विपत्तिजनक रूप से गिरने का सबब बन जाएगा और खिलाड़ी के टखने अचानक भार के लिए तैयार न हों तो यह मोच का कारण बन सकता है। इस कारण, बैडमिंटन खिलाड़ियों को सामान्य प्रशिक्षु या धावक जूतों के बजाए बैडमिंटन जूतों का चुनाव करना चाहिए, क्योंकि सटीक बैडमिंटन जूतों में एक बहुत ही पतला-सा तला, व्यक्ति के गुरुत्वाकर्षण के केंद्र को कम करने वाला होता है और इसलिए चोट की कम गुंजाइश होती है। हर तरह के धक्के में खिलाड़ियों को सुरक्षित और उचित कदमों के उपयोग के साथ घुटने और पैरों के संरेखण को भी सुनिश्चित करना चाहिए। यह न केवल सुरक्षा के लिए चिंता का विषय है, कोर्ट में प्रभावी तरीके से गति बनाये रखने के लिए उचित कदमों का उपयोग भी मायने रखता है।


फोरहैंड और बैकहैंड

बैडमिंटन में बहुत सारे बुनियादी स्ट्रोक हैं और प्रभावी ढंग से प्रदर्शन के लिए खिलाड़ियों को बहुत ही उच्च स्तर के कौशल की आवश्यकता है। सभी स्ट्रोक या तो फोरहैंड या बैकहैंड से खेले जा सकते हैं। एक खिलाड़ी का फोरहैंड साइड उसके खेलने वाले हाथ का ही साइड होता है-दाएं हाथ के खिलाड़ी के लिए फोरहैंड साइड उसका दाहिना साइड होता है और बैकहैंड साइड उसका बायां साइड होता है। प्रमुख हथेली से फोरहैंड स्ट्रोक दाहिने हाथ के सामने से मारा जाता है (जैसे हथेली से मारा जाये), जबकि बैकहैंड स्ट्रोक दाहिने हाथ के पीछे से मारा जाता है (जैसे हाथ के जोड़ों से मारा जाये)। खिलाड़ी अक्सर फोरहैंड साइड की ओर से बैकहैंड मारने के साथ कुछ स्ट्रोक खेलते हैं और इसका उल्टा भी।

सामने के कोर्ट और मध्य कोर्ट में, या तो फोरहैंड या फिर बैकहैंड साइड से समान प्रभावी तरीके से ज्यादातर स्ट्रोक खेले जा सकते हैं, लेकिन कोर्ट के पिछले भाग से खिलाड़ी अपने फोरहँड से जितना संभव हो उतने स्ट्रोक खेलने का प्रयास करता है, प्रायः बैकहैंड ओवरहेड के बजाए सिर के पास से फोरहैंड ओवरहेड (फोरहैंड “बैकहैंड की तरफ से") खेलना पसंद करता है। एक बैकहैंड ओवरहेड खेलने के दो मुख्य नुकसान हैं। सबसे पहले, खिलाड़ी अपने विरोधियों की ओर अपनी पीठ जरूर करता है, इससे वह उन्हें और कोर्ट को नहीं देख पाता है। दूसरे, बैकहैंड ओवरहेड्स उतनी ताकत के साथ नहीं मारा जा सकता जितना कि फोरहैंडः कंधे के जोड़ के कारण मारने की कार्रवाई सीमित हो जाती है, जो बैकहैंड के बजाए फोरहैंड ओवरहेड संचालन के बहुत बड़े रेंज की अनुमति देता है। खेल में अधिकांश खिलाड़ी और कोच बैकहैंड क्लियर को कठिन बुनियादी स्ट्रोक मानते हैं, क्योंकि शटलकॉक कोर्ट की पूरी लंबाई में यात्रा करे इसके लिए पर्याप्त शक्ति बटोरने के क्रम में सटीक तकनीक की जरुरत होती है। उसी कारण से, बैकहैंड स्मैश कमजोर हो जाते हैं।


शटलकॉक और रिसीविंग खिलाड़ी की स्थिति

स्ट्रोक का चुनाव इस बात पर निर्भर करता है कि शटलकॉक नेट के कितने नजदीक है, कहीं यह नेट की ऊंचाई से ऊपर तो नहीं है और विरोधी की वर्तमान स्थिति कहां है-अगर वे नेट की ऊंचाई के ऊपर शटलकॉक तक पहुंच सकते हैं तो खिलाड़ी बेहतर हमले की स्थिति में होते हैं। फोरकोर्ट में, एक ऊंचा शटलकॉक नेट किल से मिलेगा, इसे नीचे की ओर तेजी से हिट करते हुए रैली को तुरंत जीतने की कोशिश की जाएगी। इसी कारण यह बेहतर है कि इस स्थिति में शटलकॉक को नेट पर ही गिरने दिया जाए। मिडकोर्ट में, ऊंचा शटलकॉक आमतौर पर एक शक्तिशाली स्मैश बना दिया जाता है, यह नीचे की ओर हिट करता है और इससे एक संपूर्ण जीत या एक कमजोर जवाब की उम्मीद की जाती है। कसरती कूद स्मैश, जहां खिलाड़ी नीचे की ओर स्मैश कोण के लिए ऊपर की ओर उछलता है, यह एलीट पुरुषों के डबल्स खेल का एक आम और शानदार तत्व है। रिअरकोर्ट में, शटलकॉक को नीचे की ओर आने देने के बजाए खिलाड़ी उस समय मारने के लिए बेकरार होता है जब वह उनके ऊपर होता है। यह ओवरहेड आघात उन्हें कई तरह के स्मैश, क्लियर्स (शटलकॉक को ऊंचाई से और विरोधी कोर्ट के पीछे मारना) और ड्रॉपशॉट्स (ताकि शटलकॉक विरोधियों के फोरकोर्ट में धीरे से नीचे गिरे) खेलने की अनुमति देता है। अगर शटलकॉक थोड़ा नीचे आता है, तो स्मैश असंभव है और संपूर्ण लंबाई, ऊंचा क्लियर मुश्किल है।


शटलकॉक की उर्ध्वाधर स्थिति

जब शटलकॉक नेट की ऊंचाई से खासा नीचे है, तो खिलाड़ियों के पास ऊपर की तरफ मारने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहता है। लिफ्ट्स जहां विरोधियों के कोर्ट के पीछे ले जाने के लिए शटलकॉक ऊपर की तरफ मारा जाता है, कोर्ट के किसी भी हिस्से से खेला जा सकता है। अगर खिलाड़ी लिफ्ट नहीं करता है, उसके पास शटलकॉक को धीरे से नेट की ओर कर देने का ही विकल्प शेष रह जाता है-फोर कोर्ट में यह नेट शॉर्ट कहलाता है, मिड कोर्ट में यह अक्सर पुश या ब्लॉक कहलाता है।

जब शटलकॉक नेट की ऊंचाई के करीब होता है, खिलाड़ी ड्राइव्स हिट कर सकते हैं, जोकि सपाट और विरोधियों के मिडकोर्ट तथा रिअर कोर्ट में तेजी से नेट के ऊपर से जाता है। मिडकोर्ट के सामने शटलकॉक को ले जाते हुए पुश और भी सपाट हिट कर सकता है। ड्राइव्स और पश मिडकोर्ट या फोरकोर्ट से खेले जा सकते हैं और इसका उपयोग अक्सर डब्ल्स में होता है-ऐसा वे शटलकॉक को लिफ्ट करने या स्मैश से बचाव की कोशिश के बजाए वे हमले को फिर से प्राप्त करने के लिए करते हैं। एक सफल पुश या ड्राइव्स के बाद, विरोधी अक्सर शटलकॉक को लिफ्ट करने के लिए मजबूर हो जाएंगे।


अन्य कारक

स्मैश से बचाव करने के दौरान, खिलाड़ी के पास तीन बुनियादी विकल्प होते हैं-लिफ्ट, ब्लॉक, या ड्राइव। एकल में, नेट में ब्लॉक बहुत ही सामान्य जवाबी कार्यवाही है। युगल में, एक लिफ्ट सबसे सुरक्षित विकल्प है, लेकिन आमतौर पर यह विरोधियों को लगातार स्मैश की अनुमति देता है, ब्लॉक और ड्राइव मुकाबला करने के स्ट्रोक हैं, पर स्मैश करनेवाले के साझेदार द्वारा बीच में रोका जा सकता है। बहुत सारे खिलाड़ी दोनों फोरहैंड और बैकहैंड साइड में स्मैश को लौटाने के लिए बैंकहैंड हिट करते हैं, क्योंकि सीधे शरीर पर आते हुए स्मैश के लिए फोरहँड के बजाए बैकहैंड कहीं अधिक प्रभावी होता है।

सर्विस नियम द्वारा प्रतिबंधित है और यह अपने ही किस्म के स्ट्रोक का चुनाव करने के लिए व्यूह पेश करता है। टेनिस के विपरीत, सर्वर का रैकेट सर्व देने के दौरान नीचे की दिशा में निशाना साधते हुए होना चाहिए। सामान्यतया

शटल ऊपर की ओर मारा जाना चाहिए ताकि वह नेट पर से गुजारे। सर्वर फोरकोर्ट में लो सर्व (जैसे पुश) का, या सर्विस कोर्ट के पीछे में लिफ्ट का, या एक सपाट ड्राइव सर्व का चुनाव कर सकता है। लिफ्ट सर्व या तो हाई सर्व होना चाहिए, जहां शटलकॉक इतना ऊपर उठ जाए कि वह लगभग खड़ी दिशा में कोर्ट के पीछे जाकर गिरे, या फ्लिक सर्व, जहां शटलकॉक कम ऊंचाई पर उठे लेकिन जल्द ही गिर जाए।


चालबाजी

एक बार खिलाड़ी को इन बुनियादी स्ट्रोक में महारत हासिल कर लेते हैं, तब वे शटलकॉक को कोर्ट के किसी भी हिस्से में पूरी ताकत से और धीरे से जैसा जरुरी हो, हिट के सकते हैं। बुनियादी बातों के अलावा, तथापि, बैडमिंटन उन्नत स्ट्रोक लगाने के कौशल के लिए अच्छी क्षमता प्रदान करता है जो प्रतिस्पर्धात्मक लाभ देता हैं। क्योंकि बैडमिंटन खिलाड़ियों को जल्दी से जल्दी हो सके कम-से-कम दूरी को तय करना पड़ता है, इसका उद्देश्य विरोधी को कई बहुत ही उन्नत स्ट्रोक देना होता है, ताकि या तो वह इस चाल में पड़ जाए कि एक अलग स्ट्रोक खेला गया है, या वह सही मायने में शटल की दिशा देखने तक अपनी गति धीमा करने को मजबूर हो जाए। बैडमिंटन में अक्सर इन दोनों तरीके से “चालबाजी" का प्रयोग किया जाता है। जब खिलाड़ी वास्तव में चालबाजी करता है, अक्सर वह उसी दम प्वाइंट खो देगा क्योंकि वह शटलकॉक तक पहुंचने के लिए अपने दिशा उतनी जल्दी नहीं बदल सकता। अनुभवी खिलाड़ी चाल के प्रति जागरूक होंगे और बहुत जल्द ही कदम बढ़ाने के प्रति सचेत होंगे, लेकिन चालबाजी के प्रयास फिर भी उपयोगी होते हैं, क्योंकि यह विरोधी को अपनी गति को धीमा करने को मजबूर कर देते हैं। कमजोर खिलाड़ी जो स्ट्रोक मारनेवाला होता है, अनुभवी खिलाड़ी उस स्ट्रोक से लाभ उठाने के मकसद से उसके शटलकॉक को हिट करने से पहले ही चल पड़ता है।

स्लाइसिंग और शॉटहैंडेड हिटिंग एक्शन दो मुख्य तकनीकी उपकरण हैं जो चालबाजी करने में सहूलियत देते हैं। स्लाइसिंग शटलकॉक को रैकेट के सामने की ओर से कोण बनाते हुए मारने से संबंधित है, जिससे यह शरीर और

बाजुओं द्वारा सुझाये गये संचलन के बजाए अलग दिशा में जाता है। स्लाइसिंग से शटलकॉक बाजुओं द्वारा दिखायी गयी गति के बजाए बहुत ही धीमे भी जाता है। उदाहरण के लिए, एक अच्छा क्रॉसकोर्ट स्लाइस्ड ड्रॉपशॉर्ट जो शटलकॉक की क्षमता और दिशा दोनों ही विरोधी को ठगते हुए जोर से मारने की कार्यवाही का उपयोग करेगा जो सीधे क्लियर या स्मैश होता है। एक बहुत ही परिष्कृत स्लाइसिंग कार्यवाही हिट करने के दौरान शटलकॉक को घूमाने के लिए इसके चारों ओर तार से ब्रशिंग करने से जुड़ा है। इसका इस्तेमाल नेट से होकर बहुत ही तेजी से गुजरते हुए गहराई में ले जाते हुए शटल के प्रक्षेप पथ में वृद्धि करने के लिए किया जा सकता है, उदाहरण के लिए, स्लाइस्ड लो सर्व सामान्य लो सर्व की तुलना में थोड़ा जल्दी यात्रा कर सकता है, फिर भी उसी जगह गिरता है। शटलकॉक स्पिनिंग नेटशॉर्ट की भी रचना करता है (जो टंबलिंग नेटशॉर्ट के नाम से भी जाना जाता है) जिसमें शटलकॉक स्थिर होने से पहले अपने आप कई बार घूमती (लुढ़कती है) है, कभी कभी शटलकॉक लुढ़कने के बजाए औंधा रह जाता है। स्पिनिंग नेटशॉर्ट का प्रमुख लाभ यह है कि जब तक शटलकॉक का लुढ़कना बंद नहीं हो जाता है विरोधी उसे लेना नहीं चाहेगा, क्योंकि पंखो में मारने का नतीजा अप्रत्याशित स्ट्रोक होता है। स्पिनिंग नेटशॉर्ट ऊंचे दर्जे के एकल खिलाड़ी के लिए विशेष महत्त्व का होता है।

आधुनिक रैकेट का हल्कापन खिलाड़ी को कई स्ट्रोक के लिए आखिरी संभावित क्षण तक शक्तिशाली या हल्का स्ट्रोक मारने के विकल्प को बनाये रखने के लिए शॉर्ट हिटिंग कार्रवाई के इस्तेमाल करने की अनुमति देता है। उदाहरण के लिए, एकल खिलाड़ी नेटशॉर्ट के लिए अपने रैकेट को पकड़े रख सकता है, लेकिन इसके बाद शटलकॉक को वापस करने के लिए उथले लिफ्ट के बजाए फ्लिक कर देता है। इससे बड़े हिट से लिफ्ट करने के बजाए पूरे कोर्ट को कवर करते हुए स्विंग कराना विरोधी के लिए कठिन काम होता है। चालबाजी के लिए एक शॉर्ट हिटिंग कार्रवाई उपयोगी नहीं होता है-खिलाड़ी के पास जब बड़े आर्म स्विंग का समय नहीं होता तब यह उसे शक्तिशाली स्ट्रोक मारने की अनुमति देता है। ऐसे तकनीकों में मजबूत ग्रिप बहुत मायने रखता है और इसे अक्सर फिगर पॉवर के रूप में वर्णित किया जाता है। संभ्रांत खिलाड़ी एक हद तक फिगर पावर को विकसित करते हैं ताकि वे कुछ शक्तिशाली स्ट्रोक, जैसे कि रैकेट को 10 सेंमी से कम स्विंग कराकर नेट किल, मार सकें।

सॉफ्ट स्ट्रोक खेलने के लिए हिटिंग कार्रवाई के धीमे हो जाने से पहले शक्तिशाली स्ट्रोक के द्वारा चालबाजी के इस स्टाइल को उलट देना भी संभव है। रिअरकोर्ट में सामान्यतया चालबाजी की पिछली शैली बहुत आम है (उदाहरण के लिए, ड्रॉपशॉर्ट खास तरह का स्मैश है), जबकि बादवाली शैली फोरकोर्ट और मिडकोर्ट में (उदाहरण के लिए लिफ्ट खास तरह का नेटशॉर्ट है) बहुत आम है। चालबाजी स्लाइसिंग और शॉर्ट हिटिंग कार्रवाई तक सीमित नहीं है। जहां खिलाड़ी दूसरी दिशा में मारने से रैकेट को बचाने से पहले एक दिशा में रैकेट का प्रारंभिक संचालन करता है वहां वह डबल मोशन का भी इस्तेमाल कर सकता है। आमतौर पर यह क्रॉसकोर्ट कोण के इस्तेमाल का सुझाव देता है, लेकिन स्ट्रोक को सीधा या इसके उलट खेलता है। ट्रिपल मोशन भी संभव है, लेकिन असली खेल में यह बहुत ही विरल होता है। रैकेट के ऊपरी हिस्से का नकली इस्तेमाल डबल मोशन का एक विकल्प है, जहां प्रारंभिक गति जारी रहते हुए भी हिट के दौरान रैकेट घूम जाता है। इससे दिशा में हल्का-सा बदलाव आता है, लेकिन इसमें ज्यादा समय की आवश्यकता नहीं होती है।


बैडमिंटन में रणनीति

बैडमिंटन में जीत के लिए, खिलाडियों को सही स्थिति में विभिन्न तरह के स्ट्रोक की जरुरत होती है। इसका रेंज शक्तिशाली कूद कर स्मैश करने से लेकर नेट से वापसी के लिए सूक्ष्म लुढकाने तक है। अक्सर रैलियों का अंत स्मैश से होता है, लेकिन स्मैश को स्थापित करने के लिए तीव्र स्ट्रोक की जरुरत है। उदाहरण के लिए, शटलकॉर्क को उठाने के लिए नेटशॉर्ट विरोधी को मजबूर कर सकता है, जो स्मैश का अवसर प्रदान करता है। अगर नेटशॉर्ट तंग और लुढकनेवाला है तो विरोधी का लिफ्ट कोर्ट के पीछे तक पहुंच जाएगा, जो वापसी के लिए अनुवर्ती स्मैश को बहुत कठिन बना देता है।

चालबाजी भी महत्त्वपूर्ण है। विशेषज्ञ खिलाड़ी के कई तरह के स्ट्रोक तैयार करते हैं. जो एक जैसे दिखते हैं और गति या स्टोक की दिशा के बारे में अपने विरोधियों को धोखे में डालने के लिए वे स्लाइसिंग का उपयोग करते हैं। यदि कोई प्रतिद्वंद्वी स्ट्रोक का अनुमान लगाने की कोशिश करता है, तो वह गलत दिशा में चला जा सकता है और ठीक समय पर शटलकॉक तक पहुंचने के लिए अपने शरीर की गति को बदलने में असमर्थ हो सकता है।


युगल

दोनों जोडी जब कभी संभव हो नीचे की ओर स्मैश करके लाभ उठाने और हमले को बरकरार रखने की कोशिश करेगा। जब भी संभव हो, जोड़ी आदर्श का व्यूह बनाएंगे, एक खिलाड़ी रिअरकोर्ट से नीचे की ओर से हिट करता है और उसका साझेदार मिडकोर्ट में लिफ्ट को छोड़ कर सभी स्मैश को बीच में ही रोकते हुए लौटाने के साथ करता है। अगर रिअरकोर्ट का हमलावर ड्रॉपशॉर्ट खेलता है, उसका साझेदार फोरकोर्ट में जाते हुए नेट का खतरा लेते हुए फोरकोर्ट की ओर बढ़ेगा। अगर जोड़ी हिट नहीं कर सकती है तो हमले का लाभ उठाने की कोशिश में वे सपाट स्ट्रोक का उपयोग करेंगे। अगर जोड़ी शटलकॉक को लिफ्ट या क्लियर करने को मजबूर कर दी जाती है तो उन्हें बचाव करना चाहिए। वे रिअर मिडकोर्ट में वे विरोधी के स्मैश का मुकाबला करने के लिए अपने कोर्ट की पूरी चौड़ाई को कवर करने के लिए पास-पास रहने की स्थिति को अपनाएंगे। युगल खेल में, खिलाड़ी आमतौर पर बीच मैदान में दो खिलाड़ियों के बीच भ्रम और टकराव का लाभ उठाने के लिए स्मैश करता है।

उच्च स्तर के खेल में, बैकहैंड सर्व इस हद तक लोकप्रिय हो गया है कि पेशेवर खेल में फोरहैंड सर्व लगभग दिखाई ही नहीं देता है। विरोधी को हमले से लाभ उठाने से रोकने की कोशिश में सीधे लो सर्व का बहुत अधिक इस्तेमाल होने लगा है। विरोधी को पहले से ही लो सर्व की उम्मदी रखने और निर्णायक रूप से हमला करने से रोकने के लिए फ्लिक सर्व का इस्तेमाल किया जाता है।

उच्च स्तर के खेल में युगल रैली बहुत ही तेज होता है। उच्च अनुपात में पूरी ताकत से कूद कर स्मैश करने के साथ पुरुषों का युगल बैडमिंटन का सबसे आक्रामक रूप है।


एकल

एकल कोर्ट युगल कोर्ट की तुलना में संकरा होता है, लेकिन लंबाई में एक समान, सर्व में एकल और युगल में बैक बॉक्स बाहर होता है, क्योंकि पूरे कोर्ट को कवर करने के लिए एक व्यक्ति जरूरी होता है, एकल रणनीति विरोधी को जितना संभव हो सके उतना चलने के लिए बाध्य करने पर आधारित होती है, इसका मतलब यह है कि एकल स्ट्रोक आमतौर पर कोर्ट के कोने से जुड़ा होता है। ड्राप्सशॉर्ट और नेटशॉर्ट के साथ लिफ्ट और क्लियर के संयोजन से खिलाड़ी कोर्ट की पूरी लंबाई का फायदा उठाता है। युगल की तुलना में एकल में स्मैश कम ही देखने में आता है, क्योंकि खिलाड़ी स्मैश करने की आदर्श स्थिति में कम ही होते हैं और अगर स्मैश वापस लौट कर आता है तो स्मैश करनेवाले को अक्सर चोट लग जाती है।

एकल में, खिलाड़ी ज्यादातर फोरहँड हाई सर्व के साथ रैली की शुरूआत करेगा। लगातार लो सर्व या तो फोरहैंड या फिर बैकहैंड का भी उपयोग होता है। फ्लिक सर्व कम ही होता है और ड्राइव सर्व तो विरल ही है।

उच्च स्तर के खेल में, एकल में उल्लेखनीय फिटनेस की जरूरत होती है। युगल के बहुत ही अक्रामकता के विपरीत, एकल धैर्यवान स्थितिजन्य दांव का खेल है।


मिश्रित युगल

मिश्रित युगल में सामने की ओर महिला और पीछे की ओर पुरूष के साथ दोनों जोड़ी आक्रामकता को बरकरार रखने की कोशिश करती है। इसका कारण यह है पुरूष खिलाडियों जो काफी मजबत होते हैं और इसलिए वे जो स्मैश करते हैं वह बहुत ही शक्तिशाली होता हैं। नतीजतन, मिश्रित युगल में रणनीतिक जागरूकता और सूक्ष्मतर स्थितिजन्य खेल की बहुत जरुरत होती है। चालाक विरोधी महिला को पीछे की तरफ और पुरुष को आगे की ओर आने के लिए मजबूर करते हुए उनकी आदर्श स्थिति को बदलने की कोशिश करेगा। इस खतरे से बचने के लिए, मिश्रित खिलाड़ी को अपने शॉट का चुनाव करने में चौकन्ना और व्यवस्थित होना होगा।

उच्च स्तर के खेल में, संरचना आमतौर पर लचीली होती है-चोटी की महिला खिलाड़ी रियरकोर्ट से पूरी ताकत के साथ खेलने में सक्षम होती है और जब इसकी जरुरत हो तो वह खुशी-खुशी ऐसा कर लेगी। बहरहाल, जब मौका मिलता है, महिला को समाने की तरफ रखकर जोड़ी फिर से मानक मिश्रित आक्रामक स्थिति में जाएगी।


बाएं हाथ का एकल

बाएं हाथ के खिलाड़ी को दाहिने हाथ के खिलाड़ी के खिलाफ एक स्वाभाविक लाभ मिल जाता है। ऐसा इसलिए कि दुनिया में ज्यादातर दाहिने हाथ के खिलाड़ी हैं (आप उनके साथ खेलने के आदी नहीं हैं)। अगर आप बाएं हाथ

से खेलते हैं, फोरहैंड और बैकहैंड बदल जाता है, इसलिए आपके दाहिने ओर के कोर्ट में एक शॉट (दाहिने हाथ के खिलाड़ी का बैंकहैंड) का परिणाम आपके खिलाफ एक बहुत ही शक्तिशाली स्मैश होगा। इस कारण बाएं हाथ के खिलाड़ियों का झुकाव उनके फोरहैंड की तरफ अधिक-से-अधिक शॉट डालने का होगा और फलस्वरूप उनका बैंकहैंड पूरी तरह से प्रशिक्षित नहीं होता है। इसलिए, बाएं हाथ के खिलाड़ी की मुख्य कमजोरी उसका बैकहैंड होता है। यह जानने के बाद, बाएं हाथ के एक खिलाड़ी को अपने ज्यादातर शॉट्स कोर्ट के बाएं ओर खेलने की कोशिश करनी चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि दाहिने हाथ के व्यक्ति का फोरहँड होने के बावजूद, शॉट की वापसी भी आपके फोरहैंड की ओर होगी (एक समानांतर शॉट की तुलना में एक क्रॉस-कोर्ट शॉट को खेलना बहुत मुश्किल होता है।) यह सुनिश्चित करेगा कि आप स्मैशिंग जारी रख सकते हैं। यह कहा जाता है कि बाएं हाथवालों के स्मैशेस बेहतर होते हैं। यह आंशिक रूप से सही है क्योंकि बाएं हाथ का खिलाड़ी दुर्लभ कोण बनाने में सक्षम होता है (एक हल्के कोण वाले शॉट के बजाय कोर्ट की बायीं ओर एक सामानांतर शॉट) और इसलिए भी कि शटलकॉक पर पंख इस तरह लगे हुए होते हैं जो बाएं हाथ के खिलाड़ी की मदद करते हैं (बाएं हाथ के खिलाड़ी के फोरहैंड से किये स्लाइस से शटलकॉक की गति ज्यादा हो जाती है, इस कारण कहीं अधिक शक्तिशाली स्मैश बनता है)। हालांकि, एक बाएं हाथ का खिलाड़ी खुद उलझन में पड़ जाएगा, जब वह एक समकक्ष साथी के साथ खेल रहा हो।


बाएं हाथ/दाहिने हाथ की युगल जोड़ी

उन्नत स्तर के खेल में बाएं हाथ/दाहिने हाथ की युगल जोड़ी बहुत ही आम है। इसकी वजह यह है कि इन्हें दाहिने हाथ/दाहिने हाथ या बाएं हाथ/बाएं हाथ की युगल जोड़ी पर एक विशिष्ट लाभ प्राप्त होता है। सबसे उल्लेखनीय लाभ यह है कि कोर्ट का कोई भी साइड कमजोर नहीं होता है। इससे विरोधी टीम को यह सोचने में अधिक समय लगता है कि कौन-सी साइड बैकहैंड है और शटलकॉक को वहां भेजना है, क्योंकि एक सामान्य दाहिनी/दाहिनी जोड़ी के विरूद्ध आप आमतौर पर लगभग हमेशा कोर्ट के आपकी दाहिनी ओर ही भेजते हैं, जबकि LH/RH (बायीं/दाहिनी) जोड़ी रैली के दौरान अपने कमजोर पक्ष में परिवर्तन कर लिया करती है। बाएं हाथ के खिलाडी को स्मैश करने में भी एक अन्य लाभ मिलता है। चिड़िया के पंख के शटलकॉक में एक प्राकृतिक स्पिन होता है, इसलिए जब बाएं हाथ से शटलकॉक को हल्के से तिरछे शॉट लगाते हैं तब आप प्राकृतिक स्पिन का लाभ उठाते हुए उसे ड्रैग करके तेज स्मैश करते हैं। जब एक दाहिने हाथ का खिलाड़ी अपने बैकहैंड से शॉट को स्लाइस करता है तब एक ही प्रभाव पड़ता है। इसका एक बहुत अच्छा उदाहरण टैन बून हेओंग हैं, जो एक बाएं हाथ के खिलाड़ी हैं, जिनके नाम 421 किमी/घंटा का विश्व रिकॉर्ड है।


शासकीय निकाय

विश्व बैडमिंटन संघ (बीडब्ल्युएफ) खेल का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त शासकीय निकाय है। बीडब्ल्युएफ के साथ जुड़े पांच क्षेत्रीय परिसंघ हैं-

  • एशिया : बैडमिंटन एशिया परिसंघ (BAC)
  • अफ्रीका : अफ्रीका का बैडमिंटन परिसंघ (BCA)
  • अमेरिका : बैडमिंटन पैन एम (उत्तर अमेरिका और दक्षिण अमेरिका एक ही परिसंघ के हैं, BPA)
  • यूरोप : बैडमिंटन यूरोप (BE)
  • ओसेनिया : बैडमिंटन ओसेनिया (BO)


प्रतियोगिताएं

आदमियों के युगल मैच-ब्लू लाइन बैडमिंटन कोर्ट के लिए होते हैं। दूसरे रंग की लाइनों का प्रयोग अन्य खेल निरूपित करने के लिए प्रयोग किया जाता है-यह जटिलता बहु-प्रयोग स्पोर्ट्स हॉल्स में आम बात है। 

बीडब्ल्युएफ थॉमस कप, प्रीमियर मैन्स इवेंट और उबर कप, सहित महिलाओं के लिए भी इसी तरह की कई अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं का आयोजन करता है। ये प्रतियोगिताएं हर दो साल में एक बार होती हैं। 50 से भी ज्यादा राष्ट्रीय टीमें महाद्वीपीय परिसंघ के फाइनल में स्थान पाने के लिए क्वालिफाइंग टूर्नामेंट में भाग लेती हैं। अंतिम टूर्नामेंट में 12 टीमें शामिल होती है, वर्ष 2004 के बाद आठ टीमों से इसमें वृद्धि की गयी है।

सुदिरमान कप, की शुरुआत 1989 में हुई, यह मिक्स्ड टीम इवेंट हर दो साल में एक बार आयोजित होती है। प्रत्येक देश प्रदर्शन के आधार पर सात ग्रुप में विभाजित होता है। टूर्नामेंट जीतने के लिए, किसी देश को सभी पांच शाखाओं (पुरुषों के एकल और युगल, महिला एकल और युगल और मिश्रित युगल) में अच्छा प्रदर्शन करना होता है। फुटबॉल एसोसिएशन (सॉकर) की तरह, हर ग्रुप में संवर्धन और निर्वासन प्रणाली इसकी एक खासियत है।

1972 और 1988 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में बैडमिंटन व्यक्तिगत स्पर्धा एक प्रदर्शन इवेंट था। 1992 के बार्सिलोना ओलंपिक में यह एक ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेल बन गया। विश्व के 32 सर्वोच्च स्थान प्राप्त बैडमिंटन खिलाड़ियों ने इस प्रतियोगिता में भाग लिया और प्रत्येक देश ने तीन खिलाड़ियों को इसमें भाग लेने के लिए भेजा। विश्व स्तरीय प्रतियोगिता में विश्व के केवल 64 सर्वोच्च स्थान प्राप्त खिलाड़ी और प्रत्येक देश से अधिकतम तीन इसमें भाग ले सकते हैं।

बीडब्ल्युएफ विश्व कनिष्ठ बैडमिंटन प्रतियोगिता 19 वर्ष से कम आयु के खिलाड़ियों के लिये आयोजित की जाती है। ये सभी पहले स्तर की प्रतियोगिताएँ हैं।

2007 के शुरू में, बीडब्ल्युएफ ने भी एक नए प्रतियोगिता संरचना की शुरुआत की। बीडबल्युएफ सुपर सीरीज इस स्तर दो के टूर्नामेंट में 32 खिलाड़ियों (पिछली सीमा से आधा) के साथ दुनिया भर में 12 ओपन टूर्नामेंट आयोजित किये जायेंगे। खिलाड़ी जो अंक प्राप्त करेंगे, उससे यह तय होगा कि साल के अंत में वे सुपर सीरीज फाइनल में खेल सकेंगे या नहीं।

पेबतावसन स्तर के टूर्नामेंट में ग्रैंड प्रिक्स गोल्ड और ग्रैंड प्रिक्स इवेंट शामिल होंगे। शीर्ष खिलाड़ी वर्ल्ड रैकिंग प्वाइंट प्राप्त कर सकते हैं और जो उन्हें बीडब्ल्युएफ सुपर सीरीज ओपन टूर्नामेंट में खेलने के लिए सक्षम कर सकता है। इनमें क्षेत्रीय प्रतियोगिताएं एशिया का (एशियाई बैडमिंटन प्रतियोगिता) और यूरोप का (यूरोपीय बैडमिंटन प्रतियोगिता) शामिल हैं, जो पैन अमेरिका बैडमिंटन प्रतियोगिता के साथ ही साथ दुनिया के बेहतरीन खिलाड़ियों को पैदा करता है।

चौथे स्तर का टूर्नामेंट, जो इंटरनेशनल चौलेंज, अंतर्राष्ट्रीय सीरीज और फ्यूचर सीरीज के रूप में जाना जाता है, जूनियर खिलाड़ियों को भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करता है।


कीर्तिमान

  • बैडमिंटन में सबसे शक्तिशाली स्ट्रोक स्मैश है, जो तेजी से नीचे की तरफ विरोधियों के मिड कोर्ट में मारा जाता है। स्मैश किये गए शटलकॉक की अधिकतम गति दूसरे किसी अन्य रैकेट खेल के प्रक्षेप्य से कहीं अधिक होती है। खिलाड़ी के रैकेट से छूटने के तत्काल बाद इस गति की रिकॉर्डिंग को शटलकॉक की प्रारंभिक गति से मापा जाता है।
  • 2009 जापान ओपन में पुरुष युगल में मलेशिया के खिलाड़ी न बून योग ने 421 किमी/प्रति घंटे (262 मील प्रति घंटे) की गति का आधिकारिक विश्व कीर्तिमान बनाया था।


रैकेट वाले अन्य खेलों से तुलना

बैडमिंटन की तुलना अक्सर टेनिस से की जाती है। गैर विवादास्पद तुलना की एक सूची इस प्रकार है-

  • टेनिस में, खिलाड़ी के हिट करने से पहले गेंद एक बार उछल सकती है, बैडमिंटन में रैली तभी खत्म हो जाती है जब शटलकॉक जमीन को छू ले।
  • टेनिस में, सर्व इस हद तक हावी होता है कि सर्व करनेवाला खिलाड़ी अपनी ज्यादातर सर्विस खेल को जीतने की उम्मीद रखता है, सर्विस में ब्रेक का गेम में बड़ा महत्त्व है, जहां सर्विस करने वाला खेल हार जाता है, जबकि बैडमिंटन में, सर्विंग पक्ष और रिसिविग पक्ष दोनों के लिए रैली जीतने का लगभग बराबर का मौका होता है।
  • टेनिस में, सर्वर को सही सर्व के लिए दो बार प्रयत्न की अनुमति मिलती है, बैडमिंटन में, सर्वर को केवल एक ही प्रयत्न की अनुमति है।
  • टेनिस में अगर गेंद नेट टेप को हिट करे तो लेट ऑन सर्विस का मौका मिलता है, बैडमिंटन में, लेट ऑन सर्विस का प्रावधान नहीं है।
  • टेनिस कोर्ट बैडमिंटन कोर्ट से बड़ा होता है।
  • टेनिस रैकेट बैडमिंटन रैकेट से चार गुना वजनदार होता है 10-12 औंस (लगभग 284-340 ग्राम) बनाम 70-105 ग्राम। टेनिस गेंद से शटलकॉक से ग्यारह गुना अधिक भारी होता है, 57 ग्राम बनाम 5 ग्राम।
  • टेनिस का सबसे तेज दर्ज स्ट्रोक एंडी रॉड्रिक 153 मील/घंटा (246 किमी/घंटा) का सर्व है, बैडमिंटन का सबसे तेज दर्ज स्ट्रोक टैन बून यांग 261 मील/घंटा (420 किमी/घंटा) का स्मैश है।


गति की तुलना और कसरती आवश्यकताएं

स्मैश गति जैसी सांख्यिकी 261 मील/घंटा (420 किमी/घंटा), उससे अधिक, फुर्तीले बैडमिंटन उत्साहियों की अन्य तुलनाएं अधिक विवादास्पद हैं। उदाहरण के लिए, अक्सर यह दावा किया जाता है कि बैडमिंटन सबसे तेजी से चलने वाला रैकेट का खेल है। हालांकि रैकेट के खेलों में सबसे तेज आरंभिक गति का रिकॉर्ड बैडमिंटन के नाम है, अन्य प्रक्षेप्य जैसे कि टेनिस गेंदों की तुलना में वास्तविक रूप से शटलकॉक का अवमंदन काफी तेज होता है। इसके अलावा, इस योग्यता शटलकॉक के दूरी तय किए जाने के द्वारा काबिल विवेचित होना चाहिए, एक को मिटा दिया शटलकॉक एक की सेवा के दौरान एक टेनिस गेंद से एक कम दूरी की यात्रा करता है। सबसे तेज रैकेट के खेल के रूप में बैडमिंटन का दावा भी प्रतिक्रिया समय की आवश्यकताओं के आधार पर हो सकता है, लेकिन यकीनन टेबल टेनिस में इससे तेज प्रतिक्रिया समय भी आवश्यकता है।

इस बात के पक्ष में काफी मजबूत तर्क है कि टेनिस की तुलना में बैडमिंटन कहीं अधिक शारीरिक क्षमता की मांग करता है. लेकिन खेलों की अपनी अलग-अलग मांगों को देखते हुए इस तरह की तुलना को निष्पक्ष बनाना मुश्किल होता है। कुछ अनौपचारिक अध्ययनों से संकेत मिलता है कि बैडमिंटन को टेनिस खिलाड़ियों से अधिक एरोबिक क्षमता की जरुरत है, लेकिन इस विषय पर बहुत कड़े शोध नहीं किए गए हैं।


निम्नलिखित तुलना में और अधिक संतुलित रवैया सुझाया गया है, हालांकि ये भी विवाद के विषय हैं-

  • टेनिस की तुलना में, बैडमिंटन में, विशेष रूप से एकल में बहुत अधिक एरोबिक क्षमता की आवश्यकता है, बैडमिंटन एकल में स्क्वैश बराबर एरोबिक क्षमता के स्तर की आवश्यकता होती है, हालांकि स्क्वैश में थोड़ा और अधिक एरोबिक आवश्यकता हो सकती है।
  • बैडमिंटन की तुलना में टेनिस में ऊपरी शरीर और मूल बल की अधिक आवश्यकता होती है।
  • बैडमिंटन में टेनिस की तुलना में पैरों के बल की बहुत ही अधिक आवश्यकता होती है और किसी भी अन्य रैकेट खेल की तुलना में बैडमिंटन पुरुष युगल में लगातार कई तरह से उछल-कूद कर स्मैश करने की जरुरत की वजह से शायद और भी बहुत अधिक पैरों के बल की आवश्यकता है।
  • टेनिस के बजाए और कुछ हद तक स्क्वैश से भी अधिक, बैडमिंटन में बहुत अधिक कसरती होने की जरुरत है क्योंकि इसमें खिलाड़ियों को बहुत ही ऊंचाई या दूरी तक कूदना पड़ता है।
  • टेनिस या स्क्वैश की तुलना में बैडमिंटन में कहीं अधिक तेज प्रतिक्रिया समय की आवश्यकता होती है, हालांकि टेबल टेनिस में इससे भी कहीं तेज प्रतिक्रिया समय की जरुरत हो सकती है। बैडमिंटन में पुरुषों के डबल्स में जब एक शक्तिशाली स्मैश को लौटाया जाता है तो बहुत ही तेज प्रतिक्रिया की जरुरत होती हैं।


तकनीक की तुलना

बैडमिंटन और टेनिस की तकनीक काफी अलग हैं। शटलकॉक का हल्कापन और बैडमिंटन रैकेट के टेनिस खिलाड़ियों की तुलना में बैडमिंटन खिलाड़ी को कलाई और उंगलियों का उपयोग ज्यादा करने की अनुमति देता है, टेनिस में आम तौर पर कलाई स्थिर रहता है और कलाई घुमाने से चोट लग सकती है। इसी एक ही कारण से, बैडमिंटन खिलाड़ी रैकेट के छोटे स्विंग से ताकत पैदा कर सकते हैं-ऐसा ही स्ट्रोक जैसे नेट किल, में बड़े खिलाड़ी 5 से.मी. से भी कम स्विंग कर सकते हैं। ऐसा स्ट्रोक जिसमें अधिक ताकत की जरुरत पड़ती है आमतौर पर लंबे स्विंग का इस्तेमाल किया जाएगा, लेकिन टेनिस स्विंग की तरह बैडमिंटन रैकेट बहत बिरला ही स्विंग होगा।

अक्सर यह कहा जाता है कि बैडमिंटन स्ट्रोक मुख्य रूप से कलाई से लगे जाती है। यह एक गलतफहमी है और दो कारणों से इसकी आलोचना की जा सकती है। पहली, इसे एकदम से वर्ग त्रुटि कहा जा सकता है-कलाई की एक जोड़ है, मांसपेशी नहीं, बांह की मांसपेशियां इसकी हरकत को नियंत्रित करती हैं। दूसरा, आगे की या ऊपरी बांह के हरकत की तुलना में कलाई की हरकत कमजोर होती है। बैडमिंटन जैव यांत्रिकी विस्तृत वैज्ञानिक अध्ययन का विषय नहीं है, लेकिन कुछ अध्ययन बिजली उत्पादन में कलाई की छोटी सी भूमिका की पुष्टि करते हैं और इससे संकेत मिलता है कि ऊपरी और निचली बांह के आंतरिक और बाह्य घूर्णन में ताकत की प्रमुख भूमिका होती है।

आधुनिक कोचिंग संसाधन जैसे बैडमिंटन इंग्लैंड तकनीक का इन विचारों को कलाई की हरकतों के बजाए अगली बांह पर जोर देने के द्वारा दर्शाते हैं।


शटलकॉक की खास विशेषताएं

गेंदों का इस्तेमाल होने वाले ज्यादातर दूसरे रैकेट के खेलों से शटलकॉक बहुत ही अलग है।


वायुगतिका ड्रैग और स्थिरता

पंख मजबूत ड्रैग प्रदान करता है इस कारण शटलकॉक जोर से काफी दूर गिरता है। शटलकॉक भी तेज वायुगतिका से स्थिर होता है प्रारंभिक रुख की परवाह किए बिना, यह कोर्क की ओर से पहले घूम कर उड़ेगा और कोर्क की ओर इसका रुख रहेगा।

शटलकॉक के ड्रैग का एक महत्त्व यह है कि कोर्ट की पूरी लंबाई में मारने के लिए इसमें पर्याप्त कौशल की जरुरत पड़ती है, जो ज्यादातर रैकेट वाले खेल के लिए नहीं है। ड्रैग शटलकॉक के ऊपर उठे हुए उड़न मार्ग (धीमे से ऊपर फेंका गया) को भी प्रभावित करता है-इसके उड़न का परवलय बहुत अधिक तिरछा होकर यह ऊपर उठने के बजाए एक ढलान वाले कोण से होकर गिरता है। बहुत ऊंचे सर्व के साथ भी शटलकॉक एकदम लंबरूप में गिर सकता है।


फिरकी (स्पिन)

अपनी उछाल में परिवर्तन के लिए गेंद घूम सकती है, (जैसे कि टेनिस में टॉपस्पिन और बैकस्पिन) और खिलाड़ी इस तरह के स्पिन के लिए स्लाइस कर सकता है (रैकेट से एक कोण के साथ सामना करते हुए स्ट्राइक करना), चूंकि शटलकॉक उछलने की अनुमति नहीं देता है, इसलिए यह बैडमिंटन में लागू नहीं होता है।

शटलकॉक को ऐसा स्लाइस करे कि वह घूम जाए, हालांकि यह प्रयोग है और कुछ खास रूप से बैडमिंटन के लिए हैं।

शटलकॉक को एक तरफ से स्लाइसिंग करने पर खिलाडी द्वारा रैकेट या शारीरिक हरकत से सुझायी गयी दिशा के बजाए, हो सकता है वह दूसरी दिशा में चला जाए। इसका इस्तेमाल विपक्ष को धोखा देने के लिए किया जाता है।

शटलकॉक को एक तरफ से स्लाइसिंग करने पर हो सकता है यह थोड़ा तिरछा हो कर निकले (जैसा कि ऊपर से दिखाया गया है) और स्पिन के कारण फांक से निकालने वाला स्ट्रोक ऊपर से उड़ते हुए जाने के रास्ते में अचानक ही अंत में और अधिक धीमा हो जाए। इसका इस्तेमाल ड्रॉपशॉट और स्मैश के लिए किया जाता है ताकि यह बहुत तेजी से गिरावट के बाद नेट से होकर गुजर सके।

जब नेटशॉट खेलते हैं, स्लाइसिंग शटलकॉक को नीचे की कर देता है, जिसके कारण यह नेट से होकर गुजरते हुए कई बार अपने आप ही (लुढ़क) घूम सकता है। इसे स्पिनिंग नेटशॉट या टम्बलिंग नेटशॉट कहते हैं। विपक्ष शटलकॉक को छूने को तैयार नहीं होगा, जब तक कि यह अपना रुख सही न कर ले।

उसके पंख परस्पर एक दूसरे पर इस तरह से लगे होते हैं कि शटलकॉक प्राकृतिक रूप से अपनी धुरी पर गोलाई में चक्कर लगते हुए घूमता है। जब शटलकॉक गिरता है तब यह घड़ी की विपरीत दिशा में जैसा कि ऊपर दिखाया गया है घूमता है। प्राकृतिक रूप से घूमने के कारण कुछ स्ट्रोक को प्रभावित होते हैं-अगर स्लाइसिंग एक्शन बाए से दाहिनी ओर के बजाए दाहिने से बायीं ओर हो तो टम्बलिंग नेटशॉट कहीं अधिक प्रभावी होता है।

बैडमिंटन रैकेट से खेला जाने वाला, एक अंतर्राष्ट्रीय खेल है। बैडमिंटन उत्साह और रोमांच का खेल है, क्योंकि एक छोटी-सी चिड़िया या शटलकॉक एक मैच में जीत या हार के बिंदु के लिए महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। ब्रिटिश छावनी शहर पूना में यह खेल खासतौर पर लोकप्रिय रहा, इसीलिए इस खेल को पूना अथवा पूनाई के नाम से भी जाना जाता है। बैडमिंटन तीन प्रकार से खेला जाता है

इन तीनों खेलों के लिए बैडमिंटन कोर्ट की नाप 11/2 (4 सेंटीमीटर) सफेद रंग या लाल रंग की रेखाओं से स्पष्ट की जाती है। युगल खेल के लिए 'कोर्ट' का आकार 44 फुट X 20 फुट तथा एकल खेल के लिए 44 फुट X 17 फुट होता है। नैट के दोनों ओर 61/2 फुट 'शार्ट सर्विस' रेखा खींची जाती है। कोर्ट को दो समान भागों में बाँटने के लिए 'साइड लाइन' के समानांतर एक रेखा खींची जाती है। कोर्ट का बायाँ आधा भाग 'बाँयी सर्विस कोर्ट' तथा दायाँ आधा भाग 'दाँयी सर्विस कोर्ट' कहलाता है। पीछे की 'गैलरी' 21/2 फुट तथा 'साईड गैलरी' 11/2 फुट होती है। भारत में प्रतिभावान बैडमिंटन खिलाड़ियों में प्रकाश पादुकोण, पुलेला गोपीचंद, अभिन 'याम गुप्ता, निखिल कानितकर, सचिन राठी, अपर्णा पोपट, साइना नेहवाल और नेहा अटवाल प्रमुख हैं।


सर्विस सम्बन्धी अन्य नियम

सर्विस वही खिलाडी प्राप्त करेगा, जिसे सर्विस दी जाती है। यदि शटलकॉक दूसरे खिलाडी को स्पर्श कर जाए या वह उसे मार दे तो, सर्विस करने वाले को अंक मिल जाता है। एक खिलाड़ी खेल में दो बार सर्विस प्राप्त नहीं कर सकता।

पहली पारी में खेल आरम्भ करने वाला केवल एक खिलाड़ी सर्विस करेगा। आगे की पारियों में प्रत्येक खिलाड़ी सर्विस कर सकता है। खेल जीतने वाला पक्ष ही पहले सर्विस करेगा। जीते हुए पक्ष का कोई भी खिलाड़ी सर्विस कर सकता है और हारे हुए पक्ष का कोई भी खिलाड़ी इसे प्राप्त कर सकता है।

यदि कोई खिलाड़ी अपनी बारी के बिना या गलत क्षेत्र से सर्विस कर दे और अंक जीत जाए तो, वह सर्विस 'लैट' कहलाएगी। परंतु इस 'लैट' की माँग दुसरी सर्विस शुरू होने से पहले की जानी चाहिए।


रैकेट


साधारण नियम

सर्विस करने वाला या सर्विस प्राप्त करने वाले खिलाड़ी, अपने-अपने क्षेत्र की सीमाओं में खड़े होगें तथा इनके दोनों पाँवों के कुछ अंग सर्विस प्राप्त होने तक भूमि से टिके रहेंगे।

सर्विस उस समय तक नहीं करनी चाहिए, जब तक कि विपक्षी तैयार नहीं होता, परन्तु यदि विपक्षी सर्विस प्राप्त करने की चेष्टा करता है तो, उसे तैयार माना जाएगा।


खेल में आराम

यदि बैडमिंटन की दोनों टीमें सहमत हो तो, खेल के मध्य में पाँच मिनट का आराम ले सकती हैं।


त्रुटियाँ

खेल रहे पक्ष के खिलाड़ी द्वारा त्रुटि होने पर उस पक्ष का सर्विस करने वाला खिलाड़ी आऊट हो जाएगा। यदि विपक्षी त्रुटि करता है तो, खेल रहे पक्ष को एक अंक प्राप्त होगा।

यदि सर्विस करते समय शटलकाँक खिलाडी की कमर से ऊँची हो या रैकट का अगला सिरा शटलकॉक को मारते समय सर्विस करने वाले रैकट वाले हाथ से ऊँचा उठा हो।

यदि सर्विस करते समय शटलकॉक गलत अर्द्धक्षेत्र में गिर जाए या छोटी सर्विस रेखा तक न पहुँचे या लम्बी सर्विस रेखा से पार जा गिरे या ठीक अर्द्धक्षेत्र की सीमा से बाहर जा गिरे।

यदि सर्विस करते समय खिलाड़ी के पांव ठीक अर्द्धक्षेत्र में न हों।।

यदि खिलाडी सर्विस करने से पहले या सर्विस करते समय जान बूझ कर विपक्ष के रास्ते में रुकावट डाले।

यदि सर्विस करते समय खेल के समय शटलकॉक सीमाओं से बाहर निकल जाए, जाल के बीच या नीचे से निकल जाए या जाल न पार कर सके या किसी खिलाडी के किसी कपड़े या छाती से छू जाए।

यदि खेल के समय जाल पर जाने पर पहले ही मारने वाले की ओर शटलकॉक टकरा जाए।

जब शटलकॉक खेल में हो और खिलाड़ी का रैकट शरीर या कपड़ों से जाल या बल्लियों को छू दे।

शटलकॉक रैकट पर रुक जाए, कोई खिलाड़ी शटलकॉक को लगातार दो बार मार दे या पहले वह और बाद में उसका साथी बारी-बारी लगातार मार दें।

विपक्षी तैयार माना जाएगा, यदि खेल के समय वह शटलकॉक को वापिस करता है या मारने की चेष्टा करता है, भले ही वह क्षेत्र की सीमा के बाहर खडा हो या भीतर।

यदि कोई खिलाड़ी, विरोधी खिलाड़ी के खेल में रुकावट डालता है।


विश्व बैडमिंटन संघ

विश्व बैडमिंटन संघ (अंग्रेजी: Badminton World Federation) (बीडब्ल्युएफ) बैडमिंटन के खेल के प्रबंधन के लिये अंतर्राष्ट्रीय संस्था है जिसे अंतर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक कमेटी से मान्यता प्राप्त है। इसकी स्थापना 1934 में इंटरनैशनल बैडमिंटन फेडरेशन के नाम से 9 सदस्य देशों (कनाडा, डेनमार्क, इंग्लैंड, फ्रांस, आयरलैंड, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स) के साथ हुई। तब से अब तक बीडब्ल्युएफ 176 देशों में अपने पाँव पसार चुका है। 24 सितम्बर 2006 को मैड्रिड में आयोजित एक सामान्य सभा में बैडमिंटन वर्ल्ड फेडरेशन नाम अपनाने का फैसला लिया गया।

स्थापना के वक्त इसका मुख्यालय चेल्टेन्हैम, यूके में था लेकिन 1 अक्टूबर 2005 को इसे कुआलालम्पुर स्थानांतरित कर दिया गया। इसके वर्तमान अध्यक्ष पॉल-एरिक हौयर हैं।


अध्यक्ष

1934 के बाद से अभी तक के अध्यक्षों की सूची निम्नलिखित हैं-

YearsName1934-1955जॉर्ज ऐलन थॉमस1955-1957जॉन प्लंकेट-डिल्लौन1957-1959ब्रिगेडियर ब्रूस हे1959-1961एसीजे वैन वॉसन1961-1963जॉन मक्केल्लुम1963-1965निल्स पीडर क्रिस्टेन्सन1965-1969डैविड ब्लूमर1969-1971हम्फ्री चिल्टन1971-1974फैरी सोन्नेविल्ले1974-1976स्टुअर्ट व्याट1976-1981स्टैलन मोहिलन1981-1984क्रैग रीडाए1984-1986पौल-ऐरिक नील्सन1986-1990आइएन पाल्मर1990-1993आर्थर जोन्स1993-2001लू शैग्रॉन्ग2001-2005कोर्न डब्बरान्सी2005-2013कांग यंग-जूंग2013पौल-ऐरिक हौयर लार्सन


वरीयताएँ

बीडब्ल्युएफ विश्व वरीयता व बीडब्ल्युएफ विश्व कनिष्ठ वरीयता के माध्यम से खिलाड़ियों का स्तर व ताकत मापी जाती है। इसका उपयोग बीडब्ल्युएफ से मान्यता प्राप्त विभिन्न प्रतियोगिताओं में खिलाड़ियों को स्पर्धा स्तर की वरीयता व प्रवेश देने के लिये भी किया जाता है। पिछले 52 हफ्तों में आयोजित हुए प्रतियोगिताओं में खिलाड़ियों के अंतिम प्रदर्शन के आधार पर अंक दिए जाते हैं। कनिष्ठ वरीयताएँ 19 वर्ष से कम आयु के खिलाड़ियों को दी जाती हैं।


प्रतियोगिताएँ


अंतर्राष्ट्रीय

बीडब्ल्युएफ बराबर अंतराल पर 6 प्रतियोगिताएँ आयोजित करवाता रहता है-

  • अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक कमेटी के साथ मिलकर ओलम्पिक खेल
  • बीडब्ल्युएफ विश्व प्रतियोगिताएँ
  • विश्व कनिष्ठ बैडमिंटन प्रतियोगिता
  • थॉमस कप
  • उबर कप
  • सुदिरमान कप


दो प्रतियोगिताएँ बराबर अंतराल पर नहीं होती हैं-

बैडमिंटन विश्व कप 1997 के बाद से आयोजित नहीं होती है। बीडब्ल्युएफ ने इसे 2005 में फिर शुरु किया था लेकिन सिर्फ आमंत्रण के आधार पर भाग लेने की अनुमति थी। चीन ने इसे आयोजित किया व सभी 5 श्रेणीयों में स्वर्ण पदक जीते।

विश्व बैडमिंटन ग्रैंड प्रिक्स सन् 2000 के बाद से कभी-कभी आयोजित होती रहती है।


ओपेन प्रतियोगिताएँ

बीडब्ल्युएफ 7 श्रेणियों की ओपेन प्रतियोगिताएँ आयोजित करता है जिनसे खिलाड़ियों को वरीयता अंक मिलते हैं। वरीयता अंक देने के क्रमानुसार ये प्रतियोगिताएँ निम्नलिखित हैं-

  • सुपर सीरीज प्रीमियर
  • सुपर सीरीज
  • ग्रैंड प्रिक्स गोल्ड
  • ग्रैंड प्रिक्स
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा/इंटरनैशनल चौलेंज
  • अंतर्राष्ट्रीय श्रृंखला/इंटरनैशनल सीरीज
  • बीडब्ल्युएफ फ्यूचर सीरीज


पुरस्कार

बीडब्ल्युएफ खिलाड़ियों, अंपायरों, प्रायोजकों व अन्य व्यक्तियों को उनकी उपलब्धियों व बैडमिंटन खेल के प्रचार-प्रसार व अन्य महत्त्वपूर्ण योगदानों के लिये विभिन्न किस्म के परस्कार आवंटित करता है।

  • लाइफटाइम अचीवमेंट
  • बैडमिंटन हाल ऑफ फेम
  • हर्बर्ट 'कील ट्रॉफी
  • डिस्टिंग्विस्ड सर्विस
  • मेरिटोरिअस सर्विस
  • सर्टिफिकेट ऑफ कमेन्डेशन
  • एड्डी चूंग प्लेयर ऑफ द इयर (2008 से)
  • वर्ष के सर्वश्रेष्ठ महिला व पुरुष खिलाड़ी
  • एड्डी चूंग मोस्ट प्रॉमिसिंग प्लेयर ऑफ द ईयर
  • वूमेन इन बैडमिंटन


लोगों

संस्था का नया लोगो आधिकारिक तौर पर ग्लासगो में आयोजित 2007 सुदिरमान कप के दौरान सन् 2007 में जारी किया गया था। इसकी रूपरेखा का निर्माण इंडोनेशिया के अबोएब लुथ्फी ने तीन महीने चली लोगो डिजाइन प्रतिस्पर्धा के दौरान किया था। बीडब्ल्युएफ ने नया लोगो 2012 थॉमस और उबर कप के दौरान जारी किया।


बैडमिंटन के नियम (Badminton Rules in Hindi)

बैडमिंटन के नियम बहुत ही सख्त होते हैं जो की प्लेयर को अच्छे से फॉलो करने पड़ते है। खेल को शुरू करने से पहले ही टॉस किया जाता है। जिस खिलाड़ी की टीम टॉस जीत जाती है उसे सर्विस करने का मौका मिलता है और जो टॉस जीत नहीं पाता है उसे सर्विस का सामना करना पड़ता है।

जब सर्वर का काम शुरू होता है, तो खिलाड़ी को शार्ट सर्विस से गुजरना पड़ता है। सर्वर और रिसीवर को बीच में ही रहना पड़ता है।

सिवाय इसके कि बैडमिंटन में सर्व शटलक रैकेट के हिट होने के तुरंत बाद कोर्ट की सतह से 1.15 मीटर नीचे होना चाहिए, शटलकॉक को उछालने की अनुमति नहीं है और बैडमिंटन में, खिलाड़ी टेनिस के विपरीत, उनकी सेवा अदालतों के अंदर खड़े हो जाते हैं।

इस गेम में 21 पॉइंट्स तक की स्कोरिंग की जाती है। जो भी प्लेयर को ज्यादा पॉइंटस मिलते हैं घोषित कर दिया ज्याता है।

खिलाड़ी सर्विस दायें और बायें साइड से कर सकता है।

अगर खिलाड़ी शटलकॉक को लाइन के बाहर फेंक देता है तो उसे पॉइंट माना जाता है।

खिलाड़ी ने अगर लाइन से बाहर कदम रखा तो दूसरे खिलाड़ी को पॉइंट्स दिया जायेगा।

अगर नेट को शूटलकॉक लगकर गिर जाता है तो पॉइंट दिया जायेगा।

अगर मैच में सामान पॉइंट्स मिलेंगें तो मैच प्लेयर को एक-एक चांस देकर विजेता घोषित किया जायेगा।

अगर 21 पॉइंट्स से ज्यादा पॉइंट्स हुए तो मैच 29 पॉइंट्स तक जायेगा और गोल्डन पॉइंट्स भी दिया जायेगा।


बैडमिटन के बारे में 8 तथ्य जो आपके दिमाग को उड़ा देंगे

बैडमिंटन आधिकारिक रूप से दुनिया का सबसे तेज दौड़ने वाला खेल है, जिसमें त्वरित सजगता और शानदार कंडीशनिंग की आवश्यकता होती है। अदालत के चारों ओर घूमा हुआ शटल 300 किमी/घंटे से अधिक गति से यात्रा करता है। यहां बैडमिंटन के बारे में 8 तथ्य दिए गए हैं जो आपके दिमाग को उड़ा देंगे!


1. बैडमिंटन टेनिस की तुलना में बहुत अधिक गहन है

1985 की ऑल इंग्लैंड (टेनिस) चैंपियनशिप में, बोरिस बेकर ने केविन कुरेन को 6-3, 6-7, 7-6, 6-4 से हराया।

कनाडा के कैलगरी में 1985 विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप में, चीन के हान जियान ने डेनमार्क के मोर्टन फ्रॉस्ट को 14-18, 15-10, 15-8 से हराया। निम्नलिखित उन मैचों की एक सांख्यिकीय तुलना है।

  • समय : टेनिस-3 घंटे और 18 मिनट, बैडमिंटन-1 घंटा 16 मिनट
  • बॉल/शटल इन प्ले : टेनिस-18 मिनट, बैडमिंटन-37 मिनट
  • मैच की तीव्रता : टेनिस-9 प्रतिशत, बैडमिंटन-48 प्रतिशत
  • रैलियाँ : टेनिस-299, बैडमिंटन-146
  • शॉट्स : टेनिस-1, 004, बैडमिंटन-1,972
  • शॉट्स प्रति रैली : टेनिस-3.4, बैडमिंटन-13.5


2. खेल का एशियाई वर्चस्व

1992 में ओलंपिक में शामिल होने के बाद से, एशियाई खिलाड़ियों ने 103 ओलंपिक पदक में से 93 में शानदार जीत दर्ज की है।

दुनिया में सबसे सफल बैडमिंटन देश चीन और इंडोनेशिया हैं. जिन्होंने अपने बीच सभी बीडब्ल्यूएफ घटनाओं में से 70% जीते हैं।

पुरुषों की विश्व टीम चैंपियनशिप थॉमस कप 1948 में शुरू होने के बाद से केवल तीन देशों द्वारा जीती गई है-मलेशिया, इंडोनेशिया और चीन।

उबेर कप, महिला विश्व टीम चैंपियनशिप, एशिया के बाहर, केवल 1957, 1960 और 1963 में यूएसए द्वारा जीता गया थाय अन्य धारक चीन, इंडोनेशिया, जापान और हाल ही में दक्षिण कोरिया हैं।


3. बैडमिंटन दुनिया का दूसरा सबसे लोकप्रिय खेल है

यह दावा किया गया है कि बैडमिंटन फुटबॉल के बाद केवल दुनिया में दूसरा सबसे लोकप्रिय भागीदारी खेल है।

1992 में जब पहली बार बैडमिंटन को ओलंपिक में शामिल किया गया था, तब 1.1 बिलियन लोगों ने टेलीविजन पर बैडमिंटन प्रतियोगिता देखी थी।


4. एक बैडमिंटन मैच एक बार सिर्फ 6 मिनट तक चला

अब तक का सबसे छोटा बैडमिंटन मैच हांगकांग में 1996 के उबेर कप में हुआ था, जो छह मिनट तक चला था। रा क्यूंग-मिन (दक्षिण कोरिया) ने उस मैच में जूलिया मान (इंग्लैंड) को 11 2, 11-1 से हराया।

दूसरी ओर सबसे लंबा मैच 124 मिनट तक चला, और पीटर रासमुसेन (डेनमार्क) और सन् जून (चीन) के बीच मुकाबला हुआ। रासमुसेन ने वह मुकाबला 16-17, 18-13, 15-10 से जीता।


5. एक शटल एक हंस के बाएं पंख से बनाया गया है।

औसत शटलकॉक का वजन 4.74 से 5.5 ग्राम के बीच होता है, जिनमें से सबसे अच्छा एक हंस के बाएं पंख के पंख से बना होता है।

एक शटल के निर्माण में 16 पंखों का उपयोग किया जाता है। शीर्ष स्तर के मैच के दौरान 10 शटल का उपयोग किया जाता है, जिनमें से प्रत्येक को लगभग 400 बार हिट किया जाता है


6. बैडमिटन रैकेट के तार बिल्लियों के पेट से बने होते हैं।

जबकि कुछ वर्षों में, अधिकांश खिलाड़ियों ने सिंथेटिक स्ट्रिंग्स का उपयोग करना शुरू कर दिया है, कुछ खिलाड़ी अभी भी बिल्लियों या गायों जैसे जानवरों के सूखे पेट के अस्तर से बने हिम्मत का उपयोग करते हैं।


7. बैडमिंटन शुरू में खिलाड़ियों के पैरों से खेला जाता था।

टि जियान जी नामक एक खेल को मूल रूप से चीनी ने खेला था, जो बैडमिंटन का अग्रदूत है। इस खेल में, खिलाड़ियों ने शटलकॉक को मारने के लिए रैकेट के बजाय अपने पैरों का इस्तेमाल किया। खेल अभी भी चीन में खेला जाता है।


8. भारत ने खेल की खोज में अपनी भूमिका निभाई

भारत में, इस खेल का अस्तित्व 1500 ई.पू. से पहले था और “पूना" कहा जाता था। अपने मूल क्षेत्र के कारण इसे “पूना" नाम दिया गया था, जो शहर "पुणे" था। यह कहा जाता है कि "पूना" का अर्थ है "पुणे शहर का खेल"।

प्रारंभ में हथेली को रैकेट के रूप में इस्तेमाल करते हुए खेल को हाथ से खेला जाता था। बाद में, हाथों को पैरों से बदल दिया गया, कुछ ऐसा जिसने इस खेल को भारतीय पुरुषों के बीच लोकप्रिय बना दिया लेकिन भारतीय महिलाओं के लिए यह बेहद मुश्किल था। इस प्रकार, यह पुरुषों और महिलाओं के खेल में अलग हो गया था।

1870 में, भारत में सेवा करने वाले ब्रिटिश अधिकारी अपने साथ देश वापस खेल पूना ले आए। ड्यूक ऑफ ब्यूफोर्ट, बैडमिंटन के पिता, खेल के एक महान समर्थक थे, जो वह अक्सर खेला करते थे। हालांकि, यह खेल अंग्रेजी समाज के अभिजात वर्ग के लिए काफी आदिम था। इस प्रकार, वह ग्लूचेस्टर के बैडमिंटन गांव में अपने विला में अपने दोस्तों और अपनी बेटियों के साथ पूना के खेल के महिला संस्करण को खेलना पसंद करते थे।

एक दिन, जब वह अपने विला के बगीचे में खेल रहा था, बारिश होने लगी। बिना किसी हिचकिचाहट के, उन्होंने अपने भोजन कक्ष को खाली कर दिया ताकि खेल को जारी रखा जा सके। यह बैडमिंटन के रूप में जाने जाने वाले खेल की शुरुआत भी थी।


नाम

'कॉक' नाम की उत्पत्ति 1570 के दशक में इंग्लैंड में हुई, जब बैडमिंटन पहली बार लोकप्रिय हुआ। इसे अक्सर 'शटल ' जैसे छोटे नाम से जाना गया है। "शटल" को नाम, खेल के दौरान निरंतर आगे-पीछे दौडने की गति की वजह से मिला, जो 14 वीं शताब्दी के करघे के शटल से मिलता-जुलता है, जबकि कॉक को उसका नाम मुर्गे के समान पंखों के कारण मिला।


विशेष विवरण

एक शटलकॉक का वजन लगभग 4.75 से 5.50 ग्राम (0.168 से 0.194 औंस)। इसमें 16 पंख हैं और प्रत्येक पंख लंबाई में 70 मि.मी. (0.23 फीट)का होता है। कॉक का व्यास 25 से 28 मि.मी. (0.082 से 0.092 फीट) और सर्कल का व्यास जो बनाते हैं, वह लगभग 58 से 68 मि.मी. (0.190 से 0. 223 फीट) होता है।


पंख या सिंथेटिक शटलकॉक

पंखों से बनी शटल कॉक भंगुर हैं, और आसानी से टूट जाता है और अक्सर एक खेल के दौरान इसे कई बार बदलना पड़ता है। इस कारण से, सिंथेटिक शटलकॉक विकसित किए गए हैं जो पंखों को प्लास्टिक की स्कर्ट से बदल देते हैं। खिलाडी अक्सर सिंथेटिक शटलकॉक को प्लास्टिक और पंख वाले शटलकॉक को पंख के रूप में संदर्भित करते हैं।

उचित गति से सही दूरी पर उड़ान भरने और लंबे समय तक चलने के लिए खेलने के लिए कम से कम 4 घंटे पहले पंख के शटल को अच्छी तरह से नम किया जाना चाहिए। खेल के दौरान उचित रूप से नमी वाले पंख फ्लेक्स, शटल की गति परिवर्तन और स्थायित्व को बढ़ाते हैं। शुष्क पंख भंगुर होते हैं और आसानी से टूट जाते हैं, जिससे शटल खराब हो जाती है। संतृप्त पंख भावपूर्ण 'होते हैं, जिससे पंख शंकु बहुत अधिक संकीर्ण हो जाता है, जब जोरदार प्रहार होता है, जिससे शटल अत्यधिक दूर और तेजी से उड़ान भरती है। आमतौर पर एक आद्रीकरण बॉक्स का उपयोग किया जाता है, या बंद शटल ट्यूब कंटेनर के पंख के छोर में एक छोटा नम स्पंज डाला जाता है, जो शटल के कॉर्क के साथ किसी भी पानी के संपर्क से बचता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि उन्हें सही और उचित गति से उड़ना है, और उचित दूरी को कवर करने के लिए खेलने से पहले 'टल्स का परीक्षण किया जाता है। स्थानीय वायुमंडलीय स्थितियों की भरपाई के लिए विभिन्न वजनों की शटल्स का उपयोग किया जाता है। समुद्र तल से ऊपर नमी और ऊंचाई दोनों शटल उड़ान को प्रभावित करती हैं। वर्ल्ड बैडमिंटन फेडरेशन रूल्स का कहना है कि शटल को ट्राम की चौड़ाई से दोगुनी सर्विस लाइन प्लस या माइनस आधी तक पहुंचनी चाहिए। निर्माताओं के अनुसार उचित शटल आमतौर पर कोर्ट के पीछे की लाइन से नेट के विपरीत लंबी डबल सर्विस लाइन के पास तक जानी चाहिए केवल एक औसत खिलाड़ी के पूर्ण अंडरहैंड हिट के साथ।


मलेशिया के पेनांग में बैडमिंटन कोर्ट में शटलकॉक

अच्छी गुणवत्ता वाले पंखों की लागत अच्छी गुणवत्ता वाले प्लास्टिक के समान होती है, लेकिन प्लास्टिक अधिक टिकाऊ होते हैं और आमतौर पर उनकी उड़ान में बिना कोई हानि के कई मैच देर तक चलते हैं। शटल आसानी से खराब हो जाते हैं और उन्हें हर तीन या चार गेम में बदल दिया जाना चाहिए, अन्यथा वे क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और सीधे उड़ान नहीं भरते हैं, ऐसा होना खेल के साथ हस्तक्षेप करता है, क्योंकि शटल की उड़ान की हानि शटलकॉक की दिशा को बदल सकती है।

अधिकांश अनुभवी और कुशल खिलाड़ी पंख पसंद करते हैं, और गंभीर टूर्नामेंट या लीग हमेशा उच्चतम गुणवत्ता के पंख शटलकॉक का उपयोग करके खेला जाता है।

प्लास्टिक और पंखों की खेलने की विशेषताएँ काफी भिन्न हैं। प्रारंभिक रूप में प्लास्टिक अधिक धीरे-धीरे उडते हैं, लेकिन उनकी उडान के अंत में। धीमा हो जाता है। जबकि पंख एक स्पष्ट शॉट पर सीधे नीचे गिरते हैं, प्लास्टिक कभी भी एक सीधी गिरावट पर नहीं लौटते हैं, एक विकर्ण पर अधिक गिरते हैं। पंख वाली शटल 320 किमी/घंटा से अधिक की गति से गिर सकते हैं, लेकिन जैसे-जैसे वे गिरते हैं, वैसे-वैसे धीमी होती जाती हैं।

पीवी सिंधु (PV Sindhu), साइना नेहवाल (Saina Nehwal) और बी साई प्रणीत (B Sai Praneeth) की वजह से भारत का नाम पूरी दुनिया में रोशन हो रहा है और भारत में बैडमिंटन का क्रेज भी लगातार बढ़ता जा रहा है।


बैडमिंटन के उपकरण

जैसे दूसरे खेलों में गेंद का इस्तेमाल होता है, वैसे ही बैडमिंटन में शटलकॉक का उपयोग किया जाता है। परंपरागत रूप से. इससे बनाने के लिए हंस के पंखों का उपयोग किया जाता है, जिसको 16 चमड़े की पतली परत से ढके एक कॉर्क बेस में डाले जाते हैं।

बाएं पंख की तरफ से इसका उपयोग ज्यादा किया जाता है, ताकि बेहतर नतीजे हासिल किए जा सके। पंखों की लंबाई 62 और 70 मिमी के बीच होती है और वजन 4.74 से 5.50 ग्राम तक होता है।

वही प्रोफेशनल गेम में करीब 20 से 25 शटलकॉक का इस्तेमाल किया जाता है, क्योंकि मैच के दौरान उसकी शेप बिगड़ जाती है। खिलाड़ी मैच के बीच में ही शटल को बदलने के लिए कह सकता है लेकिन केवल उसी कंडीशन में जब अंपायर और विरोधी भी इससे सहमत हों।


बैडमिंटन के नियम (Badminton Rules in Hindi)

आज के समय में बैडमिंटन तीन फॉर्मेट में खेला जाता है, सिंगल, डबल्स और मिक्सड डबल्स।

सिंगल्स गेम में खिलाड़ी को यह फायदा होता है कि कोर्ट का आधा हिस्सा उसका ही होता है। हां इतनी जगह के लिए उसका फिटनेस और खेल का स्तर बहुत अधिक होता है। इसके अलावा खिलाड़ी को आक्रमकता और पोजिशन के लिए भी रणनीति बनानी पड़ती है।

वहीं डबल्स की बात करें तो दोनों तरफ इतनी ही जगह दो खिलाड़ियों के लिए होती है। इसमें सिंगल गेम की तरह पोजिशन पर ज्यादा फोकस नहीं करना पड़ता। डबल्स गेम काफी आक्रामक माना जाता है, खासकर मेंस डबल्स में ज्यादा आक्रामकता देखने को मिलती है।

मिक्स्ड डबल्स इस मायने में अलग हैं क्योंकि महिला खिलाड़ी को आगे और पीछे पुरुष खिलाड़ी को पोजिशन लेनी होती है। ये मानते हुए कि पुरुष ज्यादा ताकतवर होते हैं और उनकी पहुंच और स्मैश बेहतर होते हैं। इसी को देखते हुए प्रतिद्वंदी हमेशा इस रणनीति के साथ खेलते हैं कि महिला खिलाड़ी को आगे लाया जाए, और यही स्टाइल दूसरे भी अपनाते हैं।

बैडमिंटन खेल एक समकोण कोर्ट पर खेला जाता है, जो एक नेट द्वारा विभाजित होता है। कोर्ट एकल और युगल दोनों के लिए चिह्नित है, लेकिन कुछ मामलों में केवल एकल के लिए चिह्नित किया जाने की अनुमति होती है।

शटलकॉक को नेट की दूसरी तरफ मारने के लिए केवल एक मौका दिया जाता है, अगर शटल नीचे या नेट पर लग जाए तो अंपायर इसे फॉल्ट कहेगा। गलती होने पर दूसरे पक्ष को एक पॉइंट मिलता है और जो खिलाड़ी 21 पॉइंट पहले हासिल करता है, वह जीत जाता है।

जब दोनों विरोधियों के स्कोर 20-20 हो तो कोई भी जब तक नहीं जीतता, जब तक वह 2 अंको की बढ़त ना हासिल कर लें। जब खेल 29-29 की बराबरी तक चला जाए तो जो गोल्डन पॉइंट हासिल करता है, वह विजेता बनता है।

बैडमिंटन के नियमों एक 'लेट्स' भी है, इस नियम में रैली रुक जाती है और दोबारा खेली जाती है लेकिन न तो स्कोर में बदलाव होता है और न ही सर्विस में कोई फेरबदल होता है। लेट्स का नियम तब पालन में आता है

जब बगल में स्थित एक और कोर्ट पर मैच चल रहा हो और वहां से शटल कॉक इस कोर्ट पर आ जाए, और उस समय शटलर सर्विस लेने को तैयार न हो या शटल कॉक की वजह से उसका ध्यान भटक गया हो तो इसे लेट्स कहते हैं।


बैडमिंटन और ओलंपिक

बैडमिंटन को सबसे पहले साल 1972 म्यूनिख ओलंपिक में शामिल किया गया था, हालांकि साल 1992 तक इस खेल को पूरी तरह से ओलंपिक में शामिल नहीं किया गया था। इस दौरान केवल पुरुष और महिला एकल और युगल प्रतियोगिता शामिल थी।

इसके 4 साल बाद साल 1996 एंटलाटा ओलंपिक में मिक्सड डबल्स को भी शामिल किया गया और तब से लेकर अब तक ऐसा ही चल रहा है।


बैडमिंटन के महान खिलाड़ी

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध बैडमिंटन खिलाड़ियों में से, चीन के गाओ लिंग (Gao Ling), 2000-2004 के बीच चार ओलंपिक पदक के साथ, एक ऐसा नाम है जो किसी से भलाए नहीं भलता। वहीं दक्षिण कोरिया के गिल यंग-आह (Gil Young-ah) और किम डोंग-मून (Kim Dong-moon) का नाम भी इस लिस्ट में शामिल है, जिनके नाम 3 ओलंपिक पदक है।


चीन के लिन डैन भी दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में शुमार

लिन डैन (Lin Dan) एक ऐसा नाम जिन्हें सिंगल फॉर्मेट के महान खिलाडियों में शमार किया जाता है। वह अब इकलौते खिलाडी है, जिन्होंने 9 मेजर बैडमिंटन खिताब अपने नाम किए हैं। इस बात पर बिल्कुल भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि उनका निकनेम "सुपर डैन" है।


भारत का गर्व

प्रकाश पादुकोण (Prakash Padukone) एक ऐसा नाम जो सबसे पहले याद आता है, जिन्होंने इस खेल में भारत का नाम सबसे पहले रोशन किया। इस खिलाडी की सबसे बड़ी उपलब्धि साल 1978 कॉमनवेल्थ के सिंगल इवेंट में गोल्ड मेडल जीता है और इसके बाद वह साल 1980 में नंबर वन रैंकिंग हासिल करने वाले भारतीय बनें।

इस खिलाड़ी के पद चिन्हों पर चलते हुए सैयद मोदी (Syed Modi) और पुलेला गोपीचंद (Pullela Gopichand) ने भी देश का नाम रोशन किया। वहीं अगली पीढ़ी में सिंधु, नेहवाल और ज्वाला गुट्टा (Jwala Gutta) जैसी महिला खिलाड़ी ने देश का प्रतिनिधित्व किया।

भारत में बैडमिंटन की वैश्विक लोकप्रियता वास्तव में तब बढ़ गई जब उसने 1992 के बार्सिलोना में स्पेन के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में आधिकारिक खेल के रूप में अपनी शुरुआत की। दीपांकर भट्टाचार्य (Dipankar Bhattacharya) भाग लेने वाले भारत के पहले बैडमिंटन खिलाड़ी थे।

इसके बाद भारतीय खिलाड़ी लगातार ओलंपिक में हिस्सा लेते रहें। पीवी सिंधु और साइना नेहवाल ही ऐसी खिलाड़ी हैं, जिन्होंने ओलंपिक में पदक जीते हैं। साइना ने जहां 2012 लंदन ओलंपिक में तो सिंधु ने 2016 रियो ओलंपिक में पदक जीता।

पादुकोण की ओलंपिक गोल्ड क्वीस्ट (Olympic Gold iQuest) से लेकर पुलेला गोपीचंद की घर को गिरवी रख कर तैयार की गई गोपीचंद बैडमिंटन एकेडमी युवा खिलाड़ियों को तराश रहे हैं।

आज उनके ही प्रयासों से खेल की दुनिया में कई बड़े नाम भारत ने दिए और बैडमिंटन को और उच्च स्तर पर ले जाने में मदद मिली है।


बीडब्ल्युएफ विश्व प्रतियोगिताएँ

बीडब्ल्युएफ विश्व प्रतियोगिताएँ (पहले आईबीएफ विश्व प्रतियोगिताएँ, अन्य नाम विश्व बैडमिंटन प्रतियोगिताएँ) एक विश्व स्तरीय बैडमिंटन प्रतियोगिता है जो विश्व बैडमिंटन संघ/बीडब्ल्युएफ के द्वारा आयोजित करायी जाती है। ग्रीष्मकालीन ओलम्पिकों के साथ-साथ ये प्रतियोगिताएँ किसी अन्य प्रतियोगिता की तुलना में खिलाड़ियों को सर्वाधिक वरीयता अंक दिलाती हैं। विजेताओं को विश्व विजेता के खिताब से नवाजा जाता है और स्वर्ण पदक दिये जाते हैं। हालांकि इसमें कोई पुरस्कार राशि नहीं मिलती है।

प्रतियोगिता की शुरुवात 1977 में हुई और 1983 तक हर तीसरे साल आयोजित की जाती रहीं। आईबीएफ को पहले दो प्रतियोगिताओं को आयोजित करने में मशक्क्त करनी पड़ी क्योंकि विश्व बैडमिंटन संघ भी आईबीएफ प्रतियोगिताओं के एक साल बाद ही उसी मानदण्ड के अपने विश्व स्तरीय प्रतियोगिताएँ आयोजित करवाता था। बाद में आईबीएफ का विश्व बैडमिंटन संघ में विलय हो गया। 1985 से 2005 तक यह प्रतियोगिता हर दो साल पर होने लगी। 2006 से ज्यादा खिलाड़ियों को विश्व विजेता बनने का मौका देने के लिये यह प्रतियोगिता हर साल आयोजित की जाती है। हालांकि ओलम्पिक वर्षों में यह प्रतियोगिता नहीं होती है क्योंकि ओलम्पिक स्वयं में ही एक विश्व स्तरीय प्रतियोगिता है।


विश्व प्रतियोगिताओं के स्थान

नीचे तालिका सभी मेजबान शहरों व देशों की सूची है। देश और शहरों के सामने की संख्या यह बताती है कि इतनी बार यहाँ ये प्रतियोगिताएँ आयोजित हो चुकी हैं।


विश्व प्रतियोगिताओं के मेजबान शहर

वर्षमेजबान शहरदेश1977माल्मो (1)स्वीडन (1)1980जकार्ता (1)इंडोनेशिया (1)1983कोपेनहेगन (1)डेनमार्क (1)1985काल्गेरी (1)कनाडा (1)1987बीजिंग (1)चीनी जनवादी गणराज्य (1)1989जकार्ता (2)इंडोनेशिया (2)1991कोपेनहेगन (2)डेनमार्क (2)1993बर्मिंघम (1)इंग्लैण्ड (1)1995लुसाने (1)स्विट्जरलैंड (1)1997लासगो (1)स्कॉटलैण्ड (1)1999कोपेनहेगन (3)डेनमार्क (3)2001सेविले (1)स्पेन (1)2003बर्मिंघम (2)इंग्लैण्ड (2)2005एनाहेम (1)संयुक्त राज्य (1)2006मैड्रिड (1)स्पेन (2)2007कुआलाल्मपुर (1)मलेशिया (1)2009हैदराबाद (1)भारत (1)2010पेरिस (1)फ्रांस (1)2011लंदन (1)इंग्लैण्ड (3)2013वांगझोउ (1)चीनी जनवादी गणराज्य (2)2014कोपेनहेगन (4)डेनमार्क (4)2015जकार्ता (3)इंडोनेशिया (3)2017लासगो (2)स्कॉटलैण्ड (2)


पूर्व के विजेता

बीडब्ल्युएफ विश्व प्रतियोगिताओं के स्वर्ण पदक विजेता

बीडब्ल्युएफ विश्व प्रतियोगिताओं आजतक सिर्फ 20 देशों ने ही कम-से-कम एक पदक जीता है-एशिया के दस, यूरोप के आठ, उत्तरी अमेरिका में एक व ओसीनिया में एक। अफ्रीकी महाद्वीप के देशों ने आजतक कोई पदक नहीं जीता है।

18 वर्ष की उम्र में रत्चानोक इथेनॉन प्रतियोगिता के इतिहास में एकल खिताब जीतने वाली सबसे कम उम्र की खिलाड़ी हैं। रत्वानोक जांग ह्ये-ओक से 3 महीनों से भी कम छोटी थी जब उन्होंने 1995 प्रतियोगिताओं के महिला युगल का खिताब जीता था।


सफलतम खिलाड़ी व राष्ट्रीय टीमें

विभिन्न खिलाड़ीयों ने वैश्विक प्रतियोगिताओं में एक से ज्यादा श्रेणियों में स्वर्ण पदक जीते हैं, जैसे-

डेनमार्क लेन कोप्पेन, 1977, मिश्रित युगल व महिला एकल

इंडोनेशिया क्रिस्चियन हादीनाता, 1980, पुरुष युगल व मिश्रित युगल

दक्षिण कोरिया पार्क जू-बोंग, 1985, पुरुष युगल व मिश्रित युगल, 1991, पुरुष युगल व मिश्रित युगल

चीनी जनवादी गणराज्य हान ऐपिंग, 1985, महिला एकल व युगल

चीनी जनवादी गणराज्य Ge Fei, 1997, महिला युगल व मिश्रित युगल

दक्षिण कोरिया किम डोंग-मून, 1999, पुरुष युगल व मिश्रित युगल

चीनी जनवादी गणराज्य गाओ लिंग, 2001, महिला युगल व मिश्रित युगल

चीनी जनवादी गणराज्य झाओ यनलेई, 2014-2015, महिला युगल व मिश्रित युगल

1977 से 2011 तक, पदक अधिकतर पाँच मुख्य देशों चीन, कोरिया, डेनमार्क, इंडोनेशिया और मलेशिया के बीच में ही बंटते रहे। 2003 में यह संख्या बढकर 7 और 2005 में 10 हो गयी जब पाँच अन्य देशों को भी कोई-ना-कोई पदक मिला।

टोनी गुनावन ने पुरुष युगल में दो बार स्वर्ण पदक जीता है, 2001 में इंडोनेशिया के हलीम हर्यांतो और 2005 में अमेरिका के हॉवर्ड बॉक के साथ स्वर्ण जीतकर उन्होंने अमेरिका को प्रतियोगिता का पहला पदक दिलाया।

ओलंपिक में बैडमिंटन कब शामिल हुआ?

1992 में बार्सिलोना ओलंपिक खेलों में बैडमिंटन को आधिकारिक खेल के रूप में ओलंपिक में शामिल किया गया था। बैडमिंटन को पहली बार ओलंपिक खेलों में 1972 में एक प्रदर्शन खेल के रूप में और 1988 में एक प्रदर्शनी खेल के रूप में प्रदर्शित किया गया था।

बैडमिंटन की शुरुआत कब हुई थी?

नया खेल निश्चित रूप से सन् 1873 में ग्लूस्टरशायर स्थित ब्यूफोर्ट के ड्यूक के स्वामित्ववाले बैडमिंटन हाउस में शुरू किया गया था। उस समय तक, इसे "बैडमिंटन का खेल" नाम से जाना जाता था और बाद में इस खेल का आधिकारिक नाम बैडमिंटन बन गया। सन् 1887 तक, ब्रिटिश भारत में जारी नियमों के ही तहत इंग्लैंड में यह खेल खेला जाता रहा।

भारत में बैडमिंटन का खिलाड़ी कौन है?

साइना नेहवाल एक भारतीय पेशेवर बैडमिंटन एकल खिलाड़ी हैं। उन्हें पद्म भूषण, राजीव गांधी खेल रत्न और अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

बैडमिंटन के जनक कौन है?

बैडमिंटन खेल के अविष्कारक कौन है 1873 में ब्यूफोर्ट के ड्यूक ने इंग्लैंड में बैडमिंटन खेल की शुरुआत की इसलिए उन्हें बैडमिंटन का जनक कहा जाता है, खेल का नाम उसके निवास स्थान बैडमिंटन हाउस से प्राप्त हुआ।