बच्चेदानी में ट्यूमर होने से क्या होता है? - bachchedaanee mein tyoomar hone se kya hota hai?

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

नंदिनी 35 साल की हैं. दिल्ली की रहने वाली हैं. वो खुद को बहुत लकी मानती थीं क्योंकि उन्हें कभी भी पीरियड्स से जुड़ी कोई प्रॉब्लम नहीं हुई. वो अपनी उन दोस्तों की बातें सुनती थीं जिन्हें PCOS, PCOD या एंडोमेटरिओसिस जैसी हेल्थ प्रॉब्लम्स थीं. इनके कारण किसी-किसी को 3-4 महीने तक पीरियड्स नहीं होते थे. बहुत हैवी ब्लीडिंग होती थी. पीरियड्स के दौरान बर्दाश्त से ज़्यादा दर्द होता था.
पर पिछले एक साल पहले तक उन्हें कभी ऐसी कोई दिक्कत नहीं हुई. नंदिनी की टेंशन तब शुरू हुई जब उन्हें महीने में 3-3 बार पीरियड्स होने लगे. हैवी ब्लीडिंग होती, पीरियड्स लंबे समय के लिए चलते, बहुत दर्द रहता. नंदिनी ने डॉक्टर को दिखाया. उनका अल्ट्रासाउंड हुआ. पता चला उन्हें फाइब्रॉएड हैं.
फाइब्रॉएड यानी एक तरह का ट्यूमर. नंदिनी को डर था कि कहीं इन ट्यूमर के कारण उन्हें कैंसर न हो जाए. पर डॉक्टर ने उन्हें इस बात का आश्वासन दिया कि ये कैंसर वाला ट्यूमर नहीं है. फाइब्रॉएड महिलाओं में होने वाली एक आम दिक्कत है. फ़िलहाल दवाइयों की मदद से उनका इलाज चल रहा है. नंदिनी चाहती हैं कि हम फाइब्रॉएड पर एक एपिसोड बनाएं. ये क्या होते हैं, क्यों होते हैं, इनका क्या हेल्थ रिस्क है, इलाज क्या है, डॉक्टर्स से बात करके ये जानकारी लोगों को दें. तो सबसे पहले ये समझ लेते हैं फाइब्रॉएड होते क्या हैं?

फाइब्रॉएड क्या होता है?

ये हमें बताया डॉक्टर योगिता पराशर ने.

डॉक्टर योगिता पराशर, स्त्री रोग विशेषज्ञ, मणिपाल हॉस्पिटल, नई दिल्ली

-फाइब्रॉएड औरतों में पाई जाने वाली सबसे आम प्रॉब्लम है.
-फाइब्रॉएड यानी रसौलियां.
-रसौलियां मांस के छोटे-छोटे गोले होते हैं.
-जो बच्चेदानी में पाए जाते हैं.
-आमतौर पर इनसे कैंसर नहीं होता.
-इसलिए घबराने की बात नहीं है.
-लगभग 80 प्रतिशत महिलाओं में फाइब्रॉएड होते हैं.
-जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, 40 पार होती है तब तक 80 प्रतिशत महिलाओं को फाइब्रॉएड हो जाते हैं.
-लेकिन ज़रूरी नहीं है कि हर महिला में इसके लक्षण दिखें.
-केवल 20-30 प्रतिशत महिलाओं में इसके लक्षण दिखते हैं.

लक्षण

-आमतौर पर फाइब्रॉएड 3 तरह के होते हैं.
-अगर गर्भाशय में रसौलियों का मुंह अंदर की तरफ़ होता है तो उसे सबम्यूकोसल फाइब्रॉएड कहते हैं.
-इस तरह के फाइब्रॉएड में आमतौर पर ब्लीडिंग बढ़ जाती है.
-खून का रिसाव महीने के टाइम पर ज़्यादा होता है.
-बाकी दो रसौलियां या तो बच्चेदानी की मांसपेशियों की परत में मिलती हैं जिसको इंट्राम्यूरल फाइब्रॉएड कहते हैं.

जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, 40 पार होती है तब तक 80 प्रतिशत महिलाओं को फाइब्रॉएड हो जाते हैं

-या ये रसौलियां ऊपर और बाहर की तरफ़ होती है जिसे सबसेरोसल फाइब्रॉएड कहते हैं.
-तीनों टाइप के फाइब्रॉएड के अलग-अलग लक्षण होते हैं.
-अगर फाइब्रॉएड अंदर की तरह है तो ब्लीडिंग ज़्यादा होती है.
-बाकी दोनों फाइब्रॉएड का ब्लीडिंग पर कुछ ख़ास असर नहीं पड़ता है.
-लेकिन अगर इनका साइज़ ज़्यादा बढ़ जाए तो पेशाब की थैली पर प्रेशर पड़ता है.
-जिसके कारण बार-बार पेशाब आता है.
-अगर रसौलियों के कारण प्रेशर आंतों पर पड़ता है तो पेट में भारीपन और सूजन महसूस होती है.

डायग्नोसिस

-लक्षण महसूस होने पर स्त्री रोग विशेषज्ञ से मिलें.
-उसके बाद एक अल्ट्रासाउंड होगा.
-जिससे पता चलेगा कि ये रसौलियां शरीर में हैं या नहीं.

हेल्थ रिस्क

-आमतौर पर इन रसोलियों का कैंसर से लेना-देना नहीं होता.
-केवल 0.1 प्रतिशत रसौलियां आगे जाकर कैंसर में बदल सकती हैं.
-पर ज़्यादातर इनमें कैंसर का रिस्क नहीं होता.
-लेकिन अगर इनके कारण ब्लीडिंग ज़्यादा होती है तो अनीमिया हो सकता है.

केवल 0.1 प्रतिशत रसौलियां आगे जाकर कैंसर में बदल सकती हैं

-ऐसे में बेहतर यही रहता है कि इनका इलाज करवाकर हटा दिया जाए.

इलाज

-लोगों को समझ में नहीं आता कि दवाइयों से इलाज करवाएं या सर्जरी करवाएं.
-अगर किसी भी कारण से उस समय सर्जरी नहीं करवा सकते तो दवाइयां दी जाती हैं.
-ताकि इलाज का समय बढ़ सके.
-ये फाइब्रॉएड हॉर्मोन्स पर निर्भर करते हैं.
-ये हॉर्मोन हैं एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरॉन.
-ये दोनों हॉर्मोन फाइब्रॉएड का साइज़ बढ़ाते हैं.
-जब मेनोपॉज़ का समय आता है तब ये फाइब्रॉएड अपने आप सिकुड़ जाते हैं.
-अगर मेनोपॉज़ के आसपास हैं तब दवाइयों की मदद से कुछ समय काटा जा सकता है, जब तक मेनोपॉज़ नहीं हो जाता.
-लेकिन अगर आपकी उम्र 40 साल के आसपास है और फाइब्रॉएड ज़्यादा परेशान करते हैं तो सर्जरी इसका उपाय है.
-इसमें दो तरह से सर्जरी की जा सकती है.

बचाव

-बचाव के बहुत सारे तरीके नहीं हैं, पर हेल्दी डाइट लें.

लोगों को समझ में नहीं आता कि दवाइयों से इलाज करवाएं या सर्जरी करवाएं

-अनीमिया से बचें.
-एक्सरसाइज करें.
-हेल्दी शरीर में फाइब्रॉएड के कम लक्षण दिखते हैं.

किन महिलाओं में ये ज़्यादा आम है?

-आमतौर पर फाइब्रॉएड का कोई पुख्ता कारण मिला नहीं है.
-लेकिन जो लोग ओवरवेट होते हैं, जिन लोगों ने बच्चे पैदा नहीं किए या अफ्रीकन रेस की महिलाओं में ये ज़्यादा आम है.
-साथ ही ये जेनेटिक भी हैं, जैसे अगर मां को है तो बेटी को भी हो सकते हैं.
-पीरियड्स जल्दी आ गए हैं
-ये वजहें हो सकती हैं, पर अभी तक कोई ख़ास प्रमाण नहीं मिला है.
आपने डॉक्टर योगिता की बातें सुनीं. अगर आपको फाइब्रॉएड की दिक्कत है तो डरने की ज़रूरत नहीं है. ये बहुत आम है. फाइब्रॉएड का मतलब ये हरगिज़ नहीं कि आपको कैंसर है. कई लोगों में तो इसके लक्षण दिखते भी नहीं. अगर आपको ज़्यादा लक्षण महसूस हो रहे हैं, इनसे दिक्कत हो रही है तो डॉक्टर से ज़रूर मिलें. दवाइयों और सर्जरी की मदद से इसे ठीक किया जा सकता है.


वीडियो

बच्चेदानी में ट्यूमर होने के लक्षण क्या है?

गर्भाशय में ट्यूमर होने की समस्या तेजी से बढ़ रही है।.
पेट में दर्द, थकान व कमजोरी होना।.
पीठ के निचले हिस्से में लगातार दर्द रहना।.
मोनोपाज के बाद अचानक ब्लीडिंग शुरू हो जाना।.
यूरिन के साथ खून आना, यूरिन पर बिल्कुल नियंत्रण न कर पाना।.
मल त्याग के समय दर्द होना, ट्यूटर छोटी आंत, पेट व मूत्राशय पर दबाव डालती है।.

क्या गर्भाशय का ट्यूमर खतरनाक है?

गर्भाशय की अंदरूनी परत को एंडोमेट्रियम कहते हैं। इसी एंडोमेट्रियम की कोशिकाएं जब असामान्य रूप से बढ़ने लगती हैं, तो ये एंडोमेट्रियल कैंसर का कारण बनती हैं। एंडोमेट्रियल कैंसर खतरनाक है क्योंकि इसके कारण महिलाओं में मां बनने की क्षमता हमेशा के लिए खत्म हो सकती है। इसके अलावा ये कई अन्य परेशानियों का भी कारण बन सकता है।

बच्चेदानी पेट में ट्यूमर कैसे होता है?

गर्भाशय कैंसर तब शुरू होता है जब गर्भाशय में स्वस्थ कोशिकाएं बदलकर नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं, जिससे एक ट्यूमर बन जाता है। एक ट्यूमर कैंसर या सौम्य हो सकता है। एक कैंसर युक्त ट्यूमर घातक होता है, जिसका मतलब है कि यह बढ़ सकता है और शरीर के अन्य भागों में फैल सकता है।

गर्भाशय में ट्यूमर क्यों होता है?

बिनाइन प्रॉलीफरेशन- इंज्यूरी के समय जब यूट्रस की कोशिकाएं बढ़ती हैं, तो कई बार वे ओवर ग्रो कर जाती हैं, जिससे ये ट्यूमर होने के खतरे बढ़ जाते हैं। इंफेक्शन- यूट्रस में इंफेक्शन के कारण भी यह ट्यूमर हो सकता है