दुनिया की सारी भाग-दौड़ अपने परिवार और बच्चों के लिए होती है। तो फिर भला क्यों आज मुश्किल हो रहा है बच्चों को कुछ भी समझाना। बार-बार एक ही बात को समझाते रहना, संस्कारों की अहमियत बताते रहना। इसके बावजूद बच्चे हैं कि सुनते ही नहीं। कहां हो रही है कमी, क्या करें उपाय, जिससे जाना जाए बच्चों के मन की बात। बच्चों के इसी व्यवहार के बारे में बता रही हैं अनीता सहरावत।अगर आप किसी से भी पूछेगें कि इतनी दौड़भाग, मेहनत-मशक्कत भला किसलिए, तो उसका जवाब आपको एक ही मिलेगा कि यह सब मैं अपने परिवार और बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए कर रहा हूं। बेशक ये जवाब अपने आप में काफी है, लेकिन फिर बच्चों की बेहतर परवरिश अभिभावकों के सामने सवाल बन कर क्यों खड़ी है। इस सवाल के जवाब की तलाश में अभिभावक कार्यशालाओं, मनोवैज्ञानिकों, यहां तक कि कई बार साधु-महात्माओं, धर्मगुरुओं के चक्कर भी लगाते हैं। पर क्या बच्चों को समझना वाकई इतना कठिन है? आज हम इतना ध्यान दे रहे हैं तब भी बच्चों में नैतिक मूल्यों, संस्कार और सीख के बीज डालना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। भला क्यों? नजदीक और पास होने का फर्क बच्चे के नजरिए से समझें उसकी समस्या कभी दोस्त बनें तो कभी केवल
अभिभावक ही रहें पढ़ाई का हौवा भगाएं बच्चे को हर वक्त उसकी कमजोरियों का अहसास कराने के बजाय उसके व्यक्तित्व के सकारात्मक पहलू पर ज्यादा बात करें। बच्चों की जिज्ञासा भगाने की नहीं, सुलझाने की कोशिश करें। साथ ही इस बात को समझना होगा कि हर बच्चे की सीखने की क्षमता अलग होती है, कोई देख कर ज्यादा अच्छा सीखता है, किसी की सुन कर चीजें बेहतर याद रहती है, कई बच्चे व्यवहारिक चीजों में ज्यादा सक्रिय रहते हैं। ऐसे में आप तकनीक का सहारा ले सकते हैं। मोबाइल, गैजेट्स से नजदीकियां करें कम |