अपना सोना कोटा तो प्रक्रिया का कौन दोस्त से लेखक का क्या तात्पर्य है? - apana sona kota to prakriya ka kaun dost se lekhak ka kya taatpary hai?

''अपना सोना खोटा तो परखवैया का कौन दोस?'' से लेखक का क्या तात्पर्य है?

इसका तात्पर्य है कि यदि दोष हमारी वस्तु में है, तो हमें परखने वाले को दोष नहीं देना चाहिए। अर्थात परखने वाला तो वहीं दोष निकालेगा, जो उस वस्तु में होगा। अतः परखने वाले को किसी भी प्रकार से दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। लेखक पुरातत्व महत्व की वस्तु को देखते ही अपने साथ ले जाता था। उसकी इस आदत से सभी परिचित थे। अतः कहीं भी मूर्ति गायब हो जाती थी, तो लोग लेखक का नाम ही लेते थे। अतः लेखक कहता है कि इसमें दोष नाम लेने वाला का नहीं स्वयं उसका है।