अमरकांत एक सशक्त प्रगतिशील कथाकार है।

अमरकांत
जन्मश्रीराम
१ जुलाई १९२५
उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में नगरा के पास भगमल पुर गाँव
मृत्यु17 फ़रवरी 2014 (उम्र 88)
उपनामश्रीराम लाल, अमरनाथ
व्यवसायकहानीकार, उपन्यासकार
उल्लेखनीय सम्मान2007:साहित्य अकादमी पुरस्कार
: भारतीय ज्ञानपीठ

अमरकांत (1925 - 17 फ़रवरी 2014) हिंदी कथा साहित्य में प्रेमचंद के बाद यथार्थवादी धारा के प्रमुख कहानीकार थे। यशपाल उन्हें गोर्की कहा करते थे।[1]

जीवन वृत्त[संपादित करें]

अमरकान्त का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगरा कस्बे के पास स्थित भगमल पुर गाँव में हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. किया। इसके बाद उन्होंने साहित्यिक सृजन का मार्ग चुना। बलिया में पढ़ते समय उनका सम्पर्क स्वतन्त्रता आंदोलन के सेनानियों से हुआ। सन् १९४२ में वे स्वतन्त्रता-आंदोलन से जुड़ गए। शुरुआती दिनों में अमरकान्त तरतम में ग़ज़लें और लोकगीत भी गाते थे। उनके साहित्य जीवन का आरंभ एक पत्रकार के रूप में हुआ। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया। वे बहुत अच्छी कहानियाँ लिखने के बावजूद एक अर्से तक हाशिये पर पड़े रहे। उस समय तक कहानी-चर्चा के केन्द में मोहन राकेश, कमलेश्वर, राजेन्द्र यादव की त्रयी थी। कहानीकार के रूप में उनकी ख्याति सन् १९५५ में 'डिप्टी कलेक्टरी' कहानी से हुई।

अमरकांत के स्वभाव के संबंध में रवीन्द्र कालिया लिखते हैं- "वे अत्यन्त संकोची व्यक्ति हैं। अपना हक माँगने में भी संकोच कर जाते हैं। उनकी प्रारम्भिक पुस्तकें उनके दोस्तों ने ही प्रकाशित की थीं।...एक बार बेकारी के दिनों में उन्हें पैसे की सख्त जरूरत थी, पत्नी मरणासन्न पड़ी थीं। ऐसी विषम परिस्थिति में प्रकाशक से ही सहायता की अपेक्षा की जा सकती थी। बच्चे छोटे थे। अमरकान्त ने अत्यन्त संकोच, मजबूरी और असमर्थता में मित्र प्रकाशक से रॉयल्टी के कुछ रुपये माँगे, मगर उन्हें दो टूक जवाब मिल गया, ' पैसे नहीं हैं। ' अमरकान्तजी ने सब्र कर लिया और एक बेसहारा मनुष्य जितनी मुसीबतें झेल सकता था, चुपचाप झेल लीं।"[1] सन् १९५४ में अमरकान्त को हृदय रोग हो गया था। तब से वह एक जबरदस्त अनुशासन में जीने लगे। अपनी लड़खड़ाती हुई जिन्दगी में अनियमितता नहीं आने दी। भरसक कोशिश की, तनाव से मुक्त रहें। जवाहरलाल नेहरू उनके प्रेरणास्रोत रहे हैं। वे मानते थे कि नेहरू जी कई अर्थों में गांधीजी के पूरक थे और पंडित नेहरू के प्रभाव के कारण ही कांग्रेस संगठन प्राचीनता और पुनरुत्थान आदि कई प्रवृतियों से बच सका। 17 फ़रवरी 2014 को उनका इलाहाबाद में निधन हो गया।[2]

रचनाएँ[संपादित करें]

कहानी संग्रह[संपादित करें]

1. ‘जिंदगी और जोंक ’

2. ‘देश के लोग’

3. ‘मौत का नगर’

4. ‘मित्र मिलन तथा अन्य कहानियाँ’

5. ‘कुहासा’

6. ‘तूफान’

7. ‘कला प्रेमी’

8. ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’

9. ‘दस प्रतिनिधि कहानियाँ’

10. ‘एक धनी व्यक्ति का बयान’

11. ‘सुख और दुःख के साथ’

12. ‘जांच और बच्चे’

13. ‘अमरकांत की सम्पूर्ण कहानियाँ’ (दो खंडों में)

14. ‘औरत का क्रोध’।

15. ' लड़का - लड़की '

16.बहादुर

उपन्यास[संपादित करें]

1. ‘सूखा पत्ता’

2. ‘काले-उजले दिन’

3. ‘कंटीली राह के फूल’

4. ‘ग्राम सेविका’

5. ‘पराई डाल का पंछी’ बाद में ‘सुखजीवी’ नाम से प्रकाशित

6. ‘बीच की दीवार’

7. ‘सुन्नर पांडे की पतोह’

8. ‘आकाश पक्षी’

9. ‘इन्हीं हथियारों से’

10. ‘विदा की रात’

11. लहरें।

संस्मरण[संपादित करें]

1. कुछ यादें, कुछ बातें

2. दोस्ती।

बाल साहित्य[संपादित करें]

1. ‘नेऊर भाई’

2. ‘वानर सेना’

3. ‘खूँटा में दाल है’

4. ‘सुग्गी चाची का गाँव’

5. ‘झगरू लाल का फैसला’

6. ‘एक स्त्री का सफर’

7. ‘मँगरी’

8. ‘बाबू का फैसला’

9. दो हिम्मती बच्चे।

साहित्यिक वैशिष्ट्य[संपादित करें]

उनकी कहानियों में मध्यवर्गीय जीवन की पक्षधरता का चित्रण मिलता है। वे भाषा की सृजनात्मकता के प्रति सचेत थे। उन्होंने काशीनाथ सिंह से कहा था- "बाबू साब, आप लोग साहित्य में किस भाषा का प्रयोग कर रहे हैं? भाषा, साहित्य और समाज के प्रति आपका क्या कोई दायित्व नहीं? अगर आप लेखक कहलाए जाना चाहते हैं तो कृपा करके सृजनशील भाषा का ही प्रयोग करें।"[1] अपनी रचनाओं में अमरकांत व्यंग्य का खूब प्रयोग करते हैं। 'आत्म कथ्य' में वे लिखते हैं- " उन दिनों वह मच्छर रोड स्थित ' मच्छर भवन ' में रहता था। सड़क और मकान का यह नूतन और मौलिक नामकरण उसकी एक बहन की शादी के निमन्त्रण पत्र पर छपा था। कह नहीं कह सकता कि उसका मुख्य उद्देश्य तत्कालीन खुनिसिपैलिटी पर व्यंग्य करना था अथवा रिश्तेदारों को मच्छरदानी के साथ आने का निमंत्रण।"[3] उनकी कहानियों में उपमा के भी अनूठे प्रयोग मिलते हैं, जैसे, ' वह लंगर की तरह कूद पड़ता ', ' बहस में वह इस तरह भाग लेने लगा, जैसे भादों की अँधेरी रात में कुत्ते भौंकते हैं ', ' उसने कौए की भाँति सिर घुमाकर शंका से दोनों ओर देखा। आकाश एक स्वच्छ नीले तंबू की तरह तना था। लक्ष्मी का मुँह हमेशा एक कुल्हड़ की तरह फूला रहता है। ' ' दिलीप का प्यार फागुन के अंधड़ की तरह बह रहा था' आदि- आदि।[4]

आलोचना[संपादित करें]

रचनात्मकता की दृष्टि से अमरकांत को गोर्की के समकक्ष बताते हुए यशपाल ने लिखा था- "क्या केवल आयु कम होने या हिन्दी में प्रकाशित होने के कारण ही अमरकान्त गोर्की की तुलना में कम संगत मान लिए जायें। जब मैंने अमरकान्त को गोर्की कहा था, उस समय मेरी स्मृति में गोर्की की कहानी ' शरद की रात ' थी। उस कहानी ने एक साधनहीन व्यक्ति को परिस्थितियाँ और उन्हें पैदा करने वाले कारणों के प्रति जिस आक्रोश का अनुभव मुझे दिया था, उसके मिलते-जुलते रूप मुझे अमरकान्त की कहानियों में दिखाई दिये।"[1]

पुरस्कार / सम्मान[संपादित करें]

उनकी रचनाओं के लिए उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उत्तर प्रदेश संस्थान की ओर से भी उन्हें पुरस्कार प्रदान किया गया था।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. ↑ अ आ इ ई रविंद्र कालिया, नया ज्ञानोदय (मार्च २०१२), भारतीय ज्ञानपीठ, पृ-६
  2. "वरिष्ठ कथाकार अमरकांत का देहांत". बीबीसी हिन्दी. 17 फ़रवरी 2014. मूल से 6 मार्च 2014 को पुरालेखित.
  3. रविंद्र कालिया, नया ज्ञानोदय (मार्च २0१२), भारतीय ज्ञानपीठ, पृ-७
  4. रविंद्र कालिया, नया ज्ञानोदय (मार्च २0१२), भारतीय ज्ञानपीठ, पृ-८

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • अमरकांत की पुस्तकों के बारे में और अधिक जानें
  • आकाश पक्षी (गूगल पुस्तक ; लेखक - अमरकान्त)
  • अमरकांत की कुछ उम्दा कहानियाँ
  • अमरकांत की कहानियाँ[मृत कड़ियाँ]

लेखक अमरकांत का कहानी कौन सा है?

कहानीकार के रूप में उनकी ख्याति सन् १९५५ में 'डिप्टी कलेक्टरी' कहानी से हुई।

अमरकांत के व्यक्तित्व की तरह उनकी भाषा क्या है?

अमरकांत के व्यक्तित्व की तरह उनकी भाषा में भी एक ख़ास किस्म की फक्कड़ता है. लोक-जीवन के मुहावरों और देशज शब्दों के प्रयोग से उनकी भाषा में माटी का सहज स्पर्श तथा ऐसी सोंधी गंध रच-बस जाती है, जो पाठकों को किसी छदम उदात्तता से परे, बहुत ही निजी लोक में, ले जाती है.

अमरकांत का पूरा नाम क्या है?

मनोहर श्याम जोशी का जन्म 9 अगस्त 1933 को राजस्थान के अजमेर नामक शहर में एक कुमाऊँ परिवार में हुआ था | उनका परिवार मध्यवर्गीय किन्तु साहित्य एवं कला प्रेमी परिवार था | बचपन में ही उनके पिता तथा बड़े भाई का देहावसान होने के कारण उनका बचपन काफी कष्टों…

अमरकांत को कौन कौन से पुरस्कार मिले?

ज्ञानपीठ पुरस्कारअमरकांत / इनामnull