आषाढ़ की परेवा कब है 2022? - aashaadh kee pareva kab hai 2022?

जुलाई महीने की शुरुआत में ही विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा भी शुरू हो रही है। जगन्नाथ रथ यात्रा के साथ-साथ इस महीने दो बार एकादशी का व्रत भी पड़ेगा। इसके साथ ही गुरु पूर्णिमा के बाद सावन मास के आरंभ के बाद सावन सोमवार के व्रत शुरू हो जाएंगे। ग्रह-नक्षत्र के लिहाज से भी जुलाई का महीना काफी महत्वपूर्ण होने वाला है, इस महीने कई बड़े ग्रह राशि परिवर्तन करने वाले हैं। आइए जानें इस महीने आने वाले प्रमुख त्योहारों की तिथि और उनका धार्मिक दृष्टि से क्या महत्व है।

जगन्नाथ रथ यात्रा (1 जुलाई, शुक्रवार)

आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलराम और छोटी बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के घर जाते हैं। हिंदू धर्म में जगन्नाथ रथ यात्रा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस रथ यात्रा में शामिल होने और रथ को खिंचने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस रथ यात्रा में शामिल होने के लिए देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग शामिल होते हैं।

हरिशयनी एकादशी, चातुर्मास शुरू (10 जुलाई, रविवार)

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवशयनी, हरिशयनी, विष्णु-शयनी एकादशी, आषाढ़ी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु चार माह के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं, जिससे चातुर्मास मास का प्रारंभ हो जाता है। चतुर्मास के दौरान कोई भी मांगलिक कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया जाता है। इसलिए हरिशयनी एकादशी का बड़ा महत्व है। इस एकादशी के व्रत करने से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।

बकरीद (10 जुलाई, रविवार)

मुस्लिम समुदाय का सबसे बड़ा त्योहार बकरीद 10 जुलाई को मनाया जाएगा। हालांकि ईद की तारीख चांद का दीदार करने के बाद तय होती है। बकरीद कुर्बानी को याद रखने और उसे सलामी देने का त्योहार है। यह मीठी ईद के ठीक 2 महीने बाद आती है। बकरीद इस्लामिक कैलेंडर के आखिरी महीने जु-अल-हिज्जा में मनाया जाता है।

श्री शिव शयनोत्सव (13 जुलाई, बुधवार)

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को भगवान विष्णु के बाद भगवान शिव योग मुद्रा में चले जाते हैं। इस तिथि श्री शिव शयनोत्सव के नाम से जाना जाता है। भगवान शिव शयन काल में जाने से पहले वह अपने अन्य अवतार रुद्र को सृष्टि का कार्यभार सौंप देते हैं। रुद्र का शासन राष्ट्रपति शासन की तरह माना गया है, जिसमें नियमों का पूरी तरह पालन करना होता है।

कोकिला व्रत (13 जुलाई, बुधवार)

आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि से लेकर सावन मास की पूर्णिमा तिथि तक कोकिला व्रत रखने का विधान है। इस बार यह शुभ तिथि 13 जुलाई दिन बुधवार को है। इस व्रत में माता पार्वती की कोयल रूप में पूजा की जाती है। इस व्रत को रखने वाली महिलाओं को आकारत्रय यानी सुत, सौभाग्य और संपदा की प्राप्ति होती है। ज्यादातर यह पर्व दक्षिण भारत में मनाया जाता है।

गुरु पूर्णिमा (व्यास जयंती) (13 जुलाई, बुधवार)

आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन अपने गुरुओं की पूजा का विधान है। इस दिन महाभारत के रचयिता का भी जन्मदिन है। उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस बार यह तिथि 13 जुलाई दिन बुधवार को है।

सावन सोमवार व्रत शुरू (18 जुलाई, सोमवार)

सावन और महादेव का बहुत गहरा रिश्ता है। इस बार सावन में चार सोमवार का व्रत रखेंगे। सावन सोमवार 18 जुलाई से शुरू हो रहे हैं और 8 अगस्त रहेंगे। सावन महीने में भगवान शिव को प्रसन्न करना ज्यादा आसान होता है इसलिए देशभर के शिवालयों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ पहुंचती है। शिवभक्त सावन के सभी सोमवार का व्रत रखते हैं।

सावन मास कालाष्टमी (20 जुलाई, बुधवार)

हर मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी का व्रत रखते हैं। वैसे प्रमुख कालाष्टमी मार्गशीर्ष के मास में आती है लेकिन सावन मास की कालाष्टमी का व्रत रखने से अमोघ फल की प्राप्ति होती है। यह मास भगवान शिव को समर्पित होता है, जिससे कालाष्टमी का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस दिन काल भैरव की पूजा-अर्चना और व्रत करना चाहिए। इस व्रत के करने से सभी नकारात्मक शक्तियों का अंत हो जाता है और जीवन में सकारात्मकता बढ़ती है।

कामिका एकादशी (24 जुलाई, रविवार)

सावन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को कामिका एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस साल यह व्रत 24 जुलाई दिन रविवार को रखा जाएगा। भगवान कृष्ण ने कामिका एकादशी के बारे में कहा है कि जो भी भक्त सच्चे मन से इस दिन एकादशी का व्रत रखता है और शंख, चक्र और गदा धारण करने वाले भगवान विष्णु के सामने घी या तिल का दीपक जलाता है, उसके पुण्यों की गिनती चित्रगुप्त भी नहीं कर पाते।

सावन शिवरात्रि (26 जुलाई, मंगलवार)

सावन मास में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को सावन शिवरात्रि का व्रत किया जाता है। इस तिथि की संध्याकाल में भगवान शिव का पूजन और जलाभिषेक किया जाता है। इस समय को प्रदोष काल कहा जाता है। इस समय भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, ऐसा शिव पुराण में बताया गया है। इस दिन भगवान शिव प्रसन्न मुद्रा में नृत्य करते हैं।

हरियाली अमावस्या (28 जुलाई, गुरुवार)

सावन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को हरियाली अमावस्या कहा जाता है। इस अमावस्या का संबंध, प्रकृति, पितृ देव और भगवान शिव से है। इस वजह से हरियाली अमावस्या का विशेष महत्व है। पितरों की आत्मा की शांति के लिए हवन, पूजा, श्राद्ध, तर्पण करने के लिए हरियाली अमावस्या सबसे बढ़िया तिथि है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की भी पूजा की जाती है।

मधुश्रावणी और हरियाली तीज (31 जुलाई, रविवार)

सावन मास के शुक्ल की तृतीया तिथि को मधुश्रावणी और हरियाली तीज का पर्व मनाया जाता है। मधुश्रावणी मुख्य रूप से बिहार के मिथिला क्षेत्र में प्रचलित त्योहार है। इस दिन सुहागिन महिलाएं गहरी आस्था से व्रत करती हैं। मान्यता है कि इस तिथि में व्रत और पूजन करने से वैवाहिक जीवन में स्नेह और सुहाग बना रहता है।

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आषाढ़ की परेवा कब है?

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन माह अंतिम माह होता है इसके बाद चैत्र माह वैशाख, ज्येष्ठ और फिर आषाढ़। इस बार आषाढ़ का प्रारंभ अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 25 जून 2021 शुक्रवार को प्रारंभ होगा और 24 जुलाई शनिवार 2021 गुरु पूर्णिाम तक रहेगा।

परेवा कब है 2022?

दशहरा 5 अक्टूबर 2022 को मनाया जाएगा

आषाढ़ की पूर्णिमा 2022 कब है?

आज 13 जुलाई दिन बुधवार को आषाढ़ पूर्णिमा (Ashadha Purnima 2022) के दिन स्नान और दान का विशेष महत्त्व है.

आषाढ़ की नवमी कब है 2022?

भड़ली नवमी 2022 डेट- आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 7 जुलाई को शाम 07 बजकर 28 मिनट से प्रारंभ हो गई है, जो कि अगले दिन 08 जुलाई को शाम 06 बजकर 25 मिनट तक रहेगी। उदयातिथि के कारण भड़ली नवमी 8 जुलाई, शुक्रवार को मनाई जाएगी।

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