आओ मिलकर बचाएं कविता में कवित्री ने बच्चों और बड़ों के लिए क्या बचाना चाहती थी? - aao milakar bachaen kavita mein kavitree ne bachchon aur badon ke lie kya bachaana chaahatee thee?

NCERT Solutions for Class 11th: पाठ 20 - आओ, मिलकर बचाएँ आरोह भाग-1 हिंदी (Aao milkar bachayein)

पृष्ठ संख्या: 183

कविता के साथ

1. ‘माटी का रंग’ प्रयोग करते हुए किस बात की ओर संकेत किया गया है?

उत्तर

कविता में ‘माटी के रंग’ का प्रयोग करते हुए झारखंड के संथाल परगना के लोगों की स्वभाविक प्रकृति की ओर संकेत किया गया है| कवयित्री चाहती हैं कि झारखंड के लोगों पर शहरी संस्कृति का प्रभाव न हो तथा उनके व्यवहार में प्रादेशिक गुण बने रहें| उनकी भाषा का झारखंडी स्वभाव नष्ट न हो|

2. भाषा में झारखंडीपन से क्या अभिप्राय है?

उत्तर

झारखंडीपन का अर्थ है झारखंड के लोगों की अपनी भाषा| झारखंड के लोगों की अपनी मूल भाषा है,जिसका विशिष्ट उच्चारण और स्वभाव है| यह उनकी संस्कृति को अलग पहचान प्रदान करता है|

3. दिल के भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी बचाने की आवश्यकता पर बल क्यों दिया गया है?

उत्तर

कवयित्री ने झारखंड के आदिवासियों के अक्खड़पन और जुझारूपन को बचाने की आवश्यकता पर बल दिया है| दिल का भोलापन उनके सरल तथा सहज स्वभाव को दर्शाता है| वे इतने भोले-भाले हैं कि शहरी संस्कृति उन पर गलत प्रभाव डाल सकती हैं| इसलिए कवयित्री चाहती हैं कि सरल स्वभाव के साथ-साथ उनमें अकड़पन भी हों जिससे कि उन्हें सही-गलत की समझ हो सके| कवयित्री उनके जुझारूपन या संघर्षशील स्वभाव को बचाना चाहती हैं ताकि वे कठिन परिस्थितियों में भी लड़ने के काबिल हों|

4. प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज की किन बुराइयों की ओर संकेत करती है?

उत्तर

प्रस्तुत कविता में आदिवासी समाज की कई ऐसी बुराइयों का उल्लेख किया गया है जो उनकी संस्कृति को धूमिल कर रहा है-
• उनके जीवन पर शहरी संस्कृति का प्रभाव पड़ रहा है जिसके कारण वे अपनी असली पहचान को भूलते जा रहे हैं|
• संथाली समाज अभी भी अशिक्षित है|
• उनका झुकाव शराब की ओर अधिक हो रहा है|
• उनके अंदर आत्मविश्वास की कमी है|
• धनुष-बाण संथाल परगना की पहचान है| लेकिन आदिवासियों की ये पहचान अब खो चुकी है|

5. इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है- से क्या आशय है?

उत्तर

कवयित्री ने आज के अविश्वास भरे दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है, इसलिए कहा है क्योंकि आज के युग में बढ़ती अविश्वास तथा एक दूसरे के बीच के ईर्ष्या और द्वेष की भावना आदिवासी समाज को पूरी तरह प्रभावित नहीं कर सकी है| इसलिए कवयित्री उनकी भाषा और संस्कृति के गुणों को बचाना चाहती हैं|

6. निम्नलिखित पंक्तियों के काव्य-सौन्दर्य को उद्घाटित कीजिए-

(क) ठंडी होती दिनचर्या में
जीवन की गर्माहट

उत्तर

• कवयित्री ने दिनचर्या में आई नीरसता को दूर करने के लिए ‘गर्माहट’ शब्द का लाक्षणिक प्रयोग किया है|
• छंदमुक्त पंक्तियाँ हैं|
• शब्द प्रतीकात्मक हैं|
• भाषा अत्यंत सरल एवं सहज है|

(ख) थोड़ा-सा अविश्वास
थोड़ी-सी उम्मीद
थोड़े–से सपने
आओ, मिलकर बचाएँ

उत्तर

• भाषा सहज एवं सुबोध है|
• थोड़ा-सा, थोड़ी-सी, थोड़े–से तीनों शब्दों के प्रयोग से कविता में अभिव्यक्ति अच्छी बन पड़ी है|
• अच्छे भविष्य के लिए सभी को मिलकर चलने की प्रेरणा दी गई है|
• कविता प्रेरणादायक है|

7. बस्तियों को शहर की किस आबो-हवा से बचाने की आवश्यकता है?

उत्तर

आदिवासी बस्तियों या समाज को शहरी अपसंस्कृति के प्रभाव से बचाने की आवश्यकता है| शहरों की बढ़ती नग्नता और अश्लीलता आदिवासियों को भी मर्यादाविहीन बना रही हैं| शहरीकरण का प्रभाव बस्तियों को वृक्षविहीन बना रहा है| दिन-प्रतिदिन लोगों की बढ़ती व्यस्तता उनमें अलगावपन को बढ़ावा दे रहा है| इन बस्तियों की अपनी एक विशिष्ट पहचान तथा संस्कृति है जिसे कवयित्री शहर के गलत आबो-हवा से बचाना चाहती हैं|

कविता के आस-पास

1. आप अपने शहर या बस्ती की किन चीजों को बचाना चाहेंगे?

उत्तर

हम अपने शहर या बस्ती को निम्नलिखित चीजों से बचाना चाहेंगे:
• आधुनिक युग की बढ़ती व्यस्तता और जड़ता से बचाना चाहेंगे|
• महानगरों में व्याप्त स्वार्थ की भावना तथा ईर्ष्या-द्वेष से भी अपने समाज या बस्ती को बचाना चाहेंगे|
• शहर की अमर्यादित संस्कृति के कुप्रभाव से भी बचाना चाहेंगे|
• तनाव भरी जिंदगी से बचाना चाहेंगे|

2. आदिवासी समाज की वर्तमान स्थिति पर टिप्पणी करें|

उत्तर

आदिवासियों की वर्तमान स्थिति पहले की तुलना में बहुत हद तक सुधर चुकी है| सरकार ने इनके क्षेत्र में अनेक विकास के कार्यक्रम लागू किए हैं| इन्हें शिक्षित किया जा रहा है जिससे गरीबी और बेरोजगारी की समस्या दूर हुई है| इन्हें अपने अधिकारों के प्रति जागरूक किया जा रहा है| इन क्षेत्रों में यातायात के साधनों का विकास हो चुका है| पुराने रीति-रिवाज और आडंबरों का उन्मूलन किया जा रहा है| वे स्वयं को आधुनिकता के परिवेश में रूपांतरित कर रहे हैं|


‘आओ, मिलकर बचाएँ’ कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।


निर्मला पुतुल द्वारा रचित कविता ‘आओ, मिलकर बचाएँ’ में आदिवासी समाज के स्वरूप एवं समस्याओं को उकेरा गया है। कवयित्री संथाली समाज के साथ गहरे रूप से जुड़ी हुई है। उसने इस कविता में समाज में उन चीजों को बचाने की बात कही है जिनका होना स्वस्थ सामाजिक-प्राकृतिक परिवेश के लिए बहुत आवश्यक है। कविता का मूल स्वर है-प्रकृति के विनाश और विस्थापन के कारण आदिवासी समाज पर आया संकट। कवयित्री आदिवासी समाज के परिवेश को बचाए रखना और शहरी प्रभाव से मुक्त रखना चाहती है। वह झारखंडी स्वरूप की रक्षा चाहती है। संथाली समाज के ठंडेपन को दूर करना और उनमें उत्साह का संचार करना कवयित्री का लक्ष्य है। वहाँ के प्राकृतिक वातावरण के प्रति भी अपनी चिंता जाहिर करती है। वहाँ का राग-रंग उसकी नस-नस में समाया है, अत: इसके लिए उपयुक्त वातावरण की आवश्यकता महसूस करती है। कवयित्री आशावादी है, अत: बचे हुए स्वरूप में भी वह बहुत देख लेती है।

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‘माटी का रंग’ प्रयोग करते हुए किस बात की ओर संकेत किया गया है?


-’माटी का रंग’ प्रयोग करते हुए कवयित्री ने संथाल क्षेत्र के लोगों की मूल पहचान की ओर संकेत किया है। वह माटी से जुड़ी संस्कृति को बचाए रखने की पक्षपाती है।

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प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज की किन बुराइयों की ओर संकेत करती है?


प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज की निम्नलिखित बुराइयों की ओर संकेत करती है-

1 यहाँ के लोग शहरी प्रभाव में आते चले जा रहे हैं।

2. उनके जीवन में उत्साह का अभाव झलकता है।

3. वे अपने अस्त्र-शस्त्रों को त्यागते चले जा रहे हैं।

4. उनके जीवन में अविश्वास की भावना भरती जा रही है।

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इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है-से क्या आशय है?


इस अविश्वास भरे दौर में बचाने को बहुत कुछ बचा है-इससे कवयित्री का आशय यह है कि यदि संथाली समाज अपनी बुराइयों को दूर कर ले तो उसका मूल स्वरूप बहाल हो सकता है। अभी उनका परिवेश, उनकी भाषा, संस्कृति में अधिक बिगाड़ नहीं आया है। शहरी सम्यता का प्रभाव भी अभी सीमित मात्रा में है। अत: यहाँ के मूल चरित्र को बचाए रखना पूरी तरह से संभव है। इसे बचाना ही होगा।

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भाषा में झारखंडीपन से क्या अभिप्राय है?


भाषा में झारखंडीपन से अभिप्राय भाषा के स्थानीय स्वरूप की रक्षा करना है। यह स्वरूप यहाँ की बोली में झलकता है। यह यहाँ की मौलिकता की पहचान है। यहाँ खड़ी बोली का प्रयोग तो बनावटीपन की झलक दे जाता है।

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दिल के भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी बचाने की आवश्यकता पर क्यों बल दिया गया है?


’दिल के भोलेपन’ में सहजता का भाव है। ‘अक्खड़पन’ से तात्पर्य अपनी बात पर दृढ़ रहने का भाव है और ‘जुझारूपन’ में संघर्षशीलता की झलक मिलती है। ये तीनों विशेषताएँ आदिवासी समाज की विशिष्ट पहचान हैं। इनको बचाए रखना आवश्यक है। इसीलिए कवयित्री ने इन पर बल दिया है।

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आओ मिलकर बचाए कविता में कवित्री ने बच्चों और बड़ों के लिए क्या बचाना चाहती है?

आदिवासियों की दिनचर्या का अंग धनुष, तीर, व कुल्हाड़ियाँ होती हैं। कवयित्री जंगलों की ताजा हवा, नदियों की पवित्रता, पहाड़ों के मौन, मिट्टी की खुशबू, स्थानीय गीतों व फसलों की लहलहाहट को बचाना चाहती है।

कवयित्री क्या क्या बचाना चाहती है?

कवयित्री क्या-क्या बचाना चाहती है? उत्तर: कवयित्री पर्यावरण, आदिवासियों की पौराणिक संस्कृति, उनके प्राकृतिक वास अर्थात बस्ती को शहरी अपसंस्कृति से बचाना चाहती हैं। 5. कवयित्री एकांत की इच्छा क्यों करती हैं?

कवयित्री कहाँ की बस्ती को डूबने से बचाना चाहती है?

कवयित्री आदिवासी संथाल बस्ती को शहरी अपसंस्कृति से बचाने का आहवान करती है। 2. संथाल परगना की समस्या है कि यहाँ कि भौतिक संपदा का बेदर्दी से शोषण किया गया है, बदले में यहाँ लोगों को कुछ नहीं मिलता। बाहरी जीवन के प्रभाव से संथाल की अपनी संस्कृति नष्ट होती जा रही है।