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आम के वृक्ष के सामने पीपल और बरगद के शरमाने का क्या कारण था?निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर प्रश्नों के उत्तर उपयुक्त विकल्पों के द्वारा दीजिये - राहे पर खड़ा है, सदा से ठूँठ नहीं है। दिन थे जब वह हरा भरा था और उस जनसंकुल चौराहे पर अपनी छतनार डालियों से बटोहियों की थकान अनजाने दूर करता था।पर मैंने उसे सदा ठूँठ ही देखा है। पत्रहीन, शाखाहीन, निरवलंब, जैसे पृथ्वी रूपी आकाश से सहसा निकलकर अधर में ही टंग गया हो। रात में वह काले भूत-सा लगता है, दिन में उसकी छाया इतनी गहरी नहीं हो पाती जितना काला उसका जिस्म है और अगर चितेरे को छायाचित्र बनाना हो तो शायद उसका-सा ‘अभिप्राय’ और न मिलेगा। प्रचंड धूप में भी उसका सूखा शरीर उतनी ही गहरी छाया ज़मीन पर डालता जैसे रात की उजियारी चांदनी में। जब से होश संभाला है, जब से आंख खोली है, देखने का अभ्यास किया है, तब से बराबर मुझे उसका निस्पंद, नीरस, अर्थहीन शरीर ही दिख पड़ा है। पर पिछली पीढ़ी के जानकार कहते हैं कि एक जमाना था जब पीपल और बरगद भी उसके सामने शरमाते थे और उसके पत्तों से, उसकी टहनियों और डालों से टकराती हवा की सरसराहट दूर तक सुनाई पड़ती थी। पर आज वह नीरव है, उस चौराहे का जवाब जिस पर उत्तर-दक्षिण, पूरब-पश्चिम चारों और की राहें मिलती हैं और जिनके सहारे जीवन अविरल बहता है। जिसने कभी जल को जीवन की संज्ञा दी, उसने निश्चय जाना होगा की प्राणवान जीवन भी जल की ही भांति विकल, अविरल बहता है। सो प्राणवान जीवन, मानव संस्कृति का उल्लास उपहार लिए उन चारों राहों की संधि पर मिलता था जिसके एक कोण में उस प्रवाह से मिल एकांत शुष्क आज वह ठूँठ खड़ा है। उसके अभाग्यों परंपरा में संभवतः एक ही सुखद अपवाद है – उसके अंदर का स्नेहरस सूख जाने से संख्या का लोप हो जाना। संज्ञा लुप्त हो जाने से कष्ट की अनुभूति कम हो जाती है।Question 1: आम के वृक्ष के सामने पीपल और बरगद के शरमाने का क्या कारण था?A. उसका अधिक हरा-भरा और सघन होना B. हवा की आवाज सुनाई देना Right Answer is: ASOLUTIONउपरोक्त विकल्पों में विकल्प उसका अधिक हरा-भरा और सघन होना ही सटीक विकल्प है। अतः स्पष्ट है कि उसका अधिक हरा-भरा और सघन होना विकल्प ही सही विकल्प है, अन्य विकल्प असंगत हैं। स्पष्टीकरण:- प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने अपनी सुललित, सारगर्भित पंक्तियों में एक ऐसे पेड़ का वर्णन किया है जो अपने यौवन काल में शायद बहुत हरा -भरा रहा होगा ,परन्तु आज वह ठूठ की भाँती खड़ा है, जब उसका समय था तब आम के वृक्ष के सामने पीपल और बरगद के शरमाने के लिए मजबूर हो जाते थे क्योंकि अपने यौवन काल में वह बहुत अधिक हरा-भरा और सघन होता था। आम के वृक्ष के सामने पीपल और बरगद के शरमाने का क्या कारण था? उसका अधिक हरा-भरा और सघन होना सभी पेड़ों की अपनी विशेषताएं हैं। आम बड़े फल देता है, बरगद लंबी जड़ें पैदा करता है, बांस एक घास का पौधा है जो लंबा होता
है। नारियल एक लंबा पेड़ है जो खोल से ढके गूदे और ताड़ी के पौधे पैदा करता है। प्रत्येक पौधा या पेड़ विभिन्न प्रजातियों से संबंधित हो सकता है। आम को आमतौर पर विशाल पत्तियों और बड़े फलों के साथ मैग्नीफेरा इंडिका के रूप में जाना जाता है। बांस एक पेड़ नहीं है, बल्कि एक घास का पौधा है जो लंबा होता है और फल नहीं देता है। बरगद के पेड़ बड़े पेड़ होते हैं जो वर्षों तक एक साथ रहते हैं और उनकी हवाई जड़ें होती हैं जो वर्षों में लकड़ी बन जाती हैं। पीपल भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश भाग में पाए जाने वाले
अंजीर के पेड़ हैं। नारियल का पेड़ लंबा पेड़ होता है जिसमें लंबे पत्ते और खोल से ढका हुआ गूदा होता है। Students can access the CBSE Sample Papers for Class 10 Hindi with Solutions and marking scheme Course B Set 3 will help students in understanding the difficulty level of the exam. निर्धारित समय : 3
घंटे सामान्य निर्देश: खंड ‘अ’- वस्तुपरक प्रश्न (अंक 40) अपठित गद्यांश (अंक
10)
प्रश्न 1. राह पर खड़ा है, सदा से ढूंठ नहीं है। दिन थे जब वह हरा-भरा था और उस जनसंकुल चौराहे पर अपनी छतनार डालियों से बटोहियों की थकान अनजाने दूर करता था। पर मैंने उसे सदा ठूठ ही देखा है। पत्रहीन, शाखाहीन निरवलंब, जैसे पृथ्वी रूपी आकाश से सहसा निकलकर अधर में ही टॅग गया हो। रात में वह काले भूत-सा लगता है, दिन में उसकी छाया इतनी गहरी नहीं हो पाती,
जितना काला उसका जिस्म है और अगर चितेरे को छायाचित्र बनाना हो तो शायद उसका-सा ‘अभिप्राय’ और न मिलेगा। प्रचंड धूप में भी उसका सूखा शरीर उतनी ही गहरी छाया ज़मीन पर डालता जैसे रात की उजियारी चाँदनी में। जब से होश सँभाला है, जब से आँख खोली है, देखने का अभ्यास किया है, तब से बराबर मुझे उसका निस्पंद, नीरस, अर्थहीन शरीर ही दिख पड़ा है। पर पिछली पीढ़ी के जानकार कहते हैं कि एक जमाना था जब पीपल और बरगद भी उसके सामने शरमाते थे और उसके पत्तों से, उसकी टहनियों और डालों से टकराती हवा की सरसराहट दूर तक सुनाई पड़ती थी। पर आज वह नीरव है, उस चौराहे का जवाब जिस पर उत्तर-दक्षिण, पूरब-पश्चिम चारों ओर की राहें मिलती हैं और जिनके सहारे जीवन अविरल बहता है। जिसने कभी जल को जीवन की संज्ञा दी, उसने निश्चय जाना होगा कि प्राणवान जीवन भी जल की ही भाँति विकल, अविरल बहता है। सो प्राणवान जीवन, मानव संस्कृति का उल्लास उपहार लिए उन चारों राहों की संधि पर मिलता थाजिसके एक कोण में उस प्रवाह से मिल एकांत शुष्क आज वह लूंठ खड़ा है। उसके अभाग्यों परंपरा में संभवतः एक ही सुखद अपवाद है- उसके अंदर का स्नेहरस सूख जाने से संख्या का लोप हो जाना। संज्ञा लुप्त हो जाने से कष्ट की अनुभूति कम हो जाती है। (i) जनसंकुल का क्या आशय है? (ii) आम की छतनार डालियों के कारण क्या होता था? (iii) शाखाहीन, रसहीन, शुष्क वृक्ष को क्या कहा
जाता है? (iv) आम के वृक्ष के सामने पीपल और बरगद के शरमाने का क्या कारण था? (v) अधिक ऊँचा होना आम के अभागेपन में संभवतः एक ही सुखद अपवाद था अथवा आपको किसी महत्वपूर्ण परीक्षा की तैयारी में क्या कठिनाई हो रही है? क्या ऐसा करने में समय की कमी महसूस हो रही है? अगर आपका जवाब ‘हाँ’ है तो आपको समय-प्रबंधन सीखने की ज़रूरत है। समय प्रबंधन किसी भी परीक्षा की तैयारी का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। बहुत से परीक्षार्थी ऐसे हैं, जो परीक्षाओं की तैयारी देर से और बेहतरीन ढंग से शुरू करते हैं, जिससे उन्हें समयाभाव सबसे बड़े शत्रु की तरह दिखने लगता है। बिना समय-प्रबंधन के उस अनुपात में फायदा नहीं हो पाता, जिस अनुपात में आप मेहनत करते हैं। वास्तव में समय की गति को या उसके स्वभाव को मैनेज नहीं किया जा सकता, क्योंकि न तो इसे धीमा किया जा सकता है और न ही रोका जा सकता है। आप स्वयं को मैनेज करते हुए सिर्फ इसका सही उपयोग कर सकते हैं। वास्तविकता यही है। सबसे पहले आप यह निर्धारित करें कि आपका वर्तमान समय कैसे व्यतीत हो रहा है। आप पिछले एक सप्ताह के अपने कार्यकलाप को एक पेपर पर लिखकर देखिए कि आपने टाइम-टेबल का कितना और कैसा अनुसरण किया है। पूरे सप्ताह में कितने घंटे सेल्फ-स्टडी की है और आपका निर्धारित सिलेबस का कितना हिस्सा नहीं हो पाया है। एक बार पूरा विश्लेषण करने के बाद आप स्वयं को समय के हिसाब से बदलना शुरू कर सकते हैं। समय बचाने के लिए किसी विशेषज्ञ की टिप्स काम आ सकती है परंतु सबसे अधिक प्रभाव आपके निश्चय, समर्पण और समय नियोजन का रहेगा। समय-प्रबंधन आपके आत्मविश्वास को बढ़ाएगा और यह सफलता की दिशा में निर्णायक होगा। (i) समय-प्रबंधन सीखने की ज़रूरत कब है? (ii) समय के बारे में सच है कि उसे (iii) समय का अभाव उन्हें शत्रु जैसा लगता है, जो (iv) समय-प्रबंधन से बढ़ सकता/सकती है (v) ‘सेल्फ-स्टडी’ शब्द है प्रश्न 2. मुझे पता है कि यहाँ जो लोग जुटते हैं वे गरीब लोग होते हैं। अपने काम-धाम के बीच रोटी खाने चले आते हैं और खाकर चले जाते हैं। ये आमतौर पर बिहार से आए गरीब ईमानदार लोग हैं जो हमारे इस परिसर के स्थायी सदस्य हो गए हैं। ये उन अशिष्ट अमीरों से भिन्न हैं, जो साधारण-सी बात पर भी हंगामा खड़ा कर देते हैं। लोगों के पास पैसा तो आ गया, पर धनी होने का शऊर नहीं आया। ‘अधजल गगरी छलकत जाए’ की तर्ज पर इनमें दिखावे की भावना उबाल खाती है। असल में यह ढाबा हमें भी अपने माहौल से जोड़ता है। मैं लेखक हूँ तो क्या हुआ? गाँव के एक सामान्य घर से आया हुआ व्यक्ति हूँ। बचपन में गाँव-घरों की गरीबी देखी है और भोगी भी है। खेतों की मिट्टी में रमा हूँ, वह मुझमें रमी है। आज भी उस मिट्टी को झाङझूडकर भले ही शहरी बनने की कोशिश करता हूँ, बन नहीं पाता। वह मिट्टी बाहर से चाहे न दिखाई दे, अपनी महक और रसमयता से वह मेरे भीतर बसी हुई है। इसीलिए मुझे मिट्टी से जुड़े ये तमाम लोग भाते हैं। इस दुनिया में कहा-सुनी होती है, हाथापाई भी हो जाती है लेकिन कोई किसी के प्रति गाँठ नहीं बाँधता। दूसरे-तीसरे ही दिन परस्पर हँसते-बतियाते और एक-दूसरे के दुख-दर्द में शामिल होते दिखाई पड़ते हैं। ये सभी कभी-न-कभी एक-दूसरे से लड़ चुके हैं, लेकिन कभी इसकी प्रतीत नहीं होती कि ये लड़ चुके हैं। कल के गुस्से को अगले दिन धूल की तरह झाड़कर फेंक देते हैं। (i) इस दुनिया में कहा-सुनी होती है- ‘इस दुनिया’- का संकेत है (ii) लोग लेखक से पूछते हैं कि क्या आपको बुरा नहीं लगता कि (iii) लेखक लोगों की शिकायतों को हल्के में लेता है, क्योंकि (iv) साधारण बात पर भी हंगामा कौन खड़ा कर देते हैं? (v) ‘गाँठ बाँधना’ का अर्थ है अथवा अधिकतर लोगों की यही शिकायत होती है कि उन्हें पनपने के लिए सटीक माहौल व संसाधन नहीं मिल पाए, नहीं तो आज वे काफी आगे होते और आज भी ऐसे कई लोग हैं, जो संसाधन और स्थितियों के अनुकूल होने के इंतज़ार में खुद को रोके हुए हैं। ऐसे लोगों के लिए ही किसी विद्वान ने कहा है- इंतज़ार मत कीजिए, समय एकदम अनुकूल कभी नहीं होता। जितने संसाधन आपके पास मौजूद हैं, उन्हीं से शुरुआत कीजिए और आगे सब बेहतर होता जाएगा। जिनके इरादे दृढ़ होते हैं, वे सीमित संसाधनों में भी सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर पाते हैं। नारायणमूर्ति ने महज दस हजार रुपये में अपने छह दोस्तों के साथ इन्फोसिस की शुरुआत की और आज इन्फोसिस आईटी के क्षेत्र की एक बड़ी कंपनी है। करौली टैक्स, पहले अपने दाएँ हाथ से निशानेबाजी करते थे, मगर उनका वह हाथ एक विस्फोट में चला गया। फिर उन्होंने अपने बाएँ हाथ से शुरुआत की और 1948 व 1950 में ओलंपिक स्वर्ण पदक अपने नाम किया। लिओनार्दो द विंची, रवींद्रनाथ टैगोर, थॉमस अल्वा एडिसन, टेलीफोन के आविष्कारक ग्राहम बेल, वॉल्ट डिज्नी- ये सब अपनी शुरुआती उम्र में डिस्लेक्सिया से पीड़ित रह चुके हैं, जिसमें पढ़ने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, फिर भी ये सभी अपने-अपने क्षेत्र के शीर्ष पर पहुँचे। अगर ये लोग भी इसी तरह माहौल और संसाधनों की शिकायत और इंतज़ार करते, तो क्या कभी उस मुकाम पर पहुँच पाते, जहाँ वे मौजूद हैं? अगर हमने अपना लक्ष्य तय कर लिया है, तो हमें उस तक पहुँचने की शुरुआत अपने सीमित संसाधनों से ही कर देनी चाहिए। किसी इंतज़ार में नहीं रहना चाहिए। ऐसे में इंतज़ार करना यह दर्शाता है कि हम अपने लक्ष्य को पाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध नहीं हैं। इसलिए हमें अपनी इच्छाशक्ति को मजबूत कर जुट जाना होगा। इंतज़ार करेंगे, तो करते रह जाएँगे। (i) ‘समय एकदम अनुकूल कभी नहीं होता’ यहाँ ‘एकदम’ का अर्थ है (ii) ‘हमें अपनी इच्छाशक्ति को मजबूत कर जुट
जाना होगा।’ उपर्युक्त वाक्य से बना संयुक्त वाक्य होगा (iii) ‘ऐसे लोगों के लिए ही किसी विद्वान ने कहा है’- रेखांकित अंश का संकेत है (iv) नारायण मूर्ति, ग्राहम बेल आदि के उदाहरण क्यों दिए गए हैं? (v) ‘स्वर्ण’ का तद्भव शब्द है व्यावहारिक व्याकरण (अंक 16) प्रश्न 3. (ii) निम्नलिखित में से कौन-सा रेखांकित पदबंध क्रियाविशेषण पदबंध है? (iii) दिए गए विकल्पों में से क्रिया पदबंध कौन-सा है? (iv) मित्र मंडली के साथ मोहन घर पर बैठा है। रेखांकित पदबंध का भेद है (v) दीन-दुखियों पर करुणा दिखाने वाले आप महान हैं। रेखांकित पदबंध का भेद है प्रश्न 4. (i) ‘मयंक सुंदर है, वह हँसमुख भी है’, इस वाक्य का सरल वाक्य में रूपांतरण होगा (ii) निम्न वाक्यों में से संयुक्त वाक्य कौन-सा है? (iii) ‘उसने कुछ नहीं खाना खाया और सो गया।’ रचना के आधार पर वाक्य भेद है (iv) निम्नलिखित वाक्यों में मिश्रित
वाक्य है– (v) ‘वह कौन-सा व्यक्ति है, जिसने जवाहर लाल नेहरू का नाम न सुना हो।’ निम्नलिखित वाक्य है प्रश्न 5. (i) निम्नलिखित में से किस समस्तपद में अव्ययीभाव समास है? (ii) द्वंद्व समास का उदाहरण है (iii) ‘नवयुवक’ समस्तपद का विग्रह है (iv) निम्नलिखित में से किस समस्तपद में कर्मधारय समास है– (v) ‘यथाविधि’ किस समास का उदाहरण है? प्रश्न 6. (i) माली के हाथों में डंडा देखकर राजू के ………..” गए।
उपयुक्त मुहावरे से वाक्य पूरा करें। (ii) ‘दाँतों तले ऊँगली दबाना’ मुहावरे का अर्थ है___ (iii) दूसरों पर .. के बदले अपना काम जल्दी पूरा करो। वाक्य में उपयुक्त मुहावरे से रिक्त स्थान पूर्ण करें। (iv) ‘अक्ल पर पत्थर पड़ना’ मुहावरे का सही अर्थ है पाठ्यपुस्तक (अंक 14) प्रश्न 7. (i) उपर्युक्त पंक्तियों के माध्यम से कवि ने क्या प्रेरणा दी है? (ii) सैनिक देश को किसके हवाले छोड़कर जा रहे हैं? (iii) ‘सर हिमालय का’ से कवि का क्या अभिप्राय है? (iv) देश के सैनिकों ने मरते दम तक क्या किया? प्रश्न 8. किसी तरह रात बीती। दोनों के हृदय व्यथित थे। किसी तरह आँचरहित एक ठंडा और ऊबाऊ दिन गुज़रने लगा। शाम की प्रतीक्षा थी। तताँरा के लिए मानो पूरे जीवन की अकेली प्रतीक्षा थी। उसके गंभीर और शांत जीवन में ऐसा पहली बार हुआ था। वह अचंभित था, साथ ही रोमंचित भी। दिन ढलने के काफी पहले वह लपाती की उस समुद्री चट्टान पर पहुँच गया। वामीरो की प्रतीक्षा में एक-एक पल पहाड़ की तरह भारी था। उसके भीतर एक आशंका भी दौड़ रही थी। अगर वामीरो न आई तो? वह कुछ निर्णय नहीं कर पा रहा था। सिर्फ प्रतीक्षारत था। बस आस की एक किरण थी जो समुद्र की देह पर डूबती किरणों की तरह कभी भी डूब सकती थी। वह बार-बार लपाती के रास्ते पर नज़रें दौड़ाता। सहसा नारियल के झुरमुटों में उसे एक आकृति कुछ साफ़ हुई… कुछ और… कुछ और। उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। सचमुच वह वामीरो थी। लगा जैसे वह घबराहट में थी। वह अपने को छुपाते हुए बढ़ रही थी। बीच-बीच में इधर-उधर दृष्टि दौड़ना नहीं भूलती। फिर तेज़ कदमों से चलती हुई तताँरा के सामने आकर ठिठक गई। दोनों शब्दहीन थे। कुछ था जो दोनों के भीतर बह रहा था। एकटक निहारते हुए वे जाने कब तक खड़े रहे। सूरज समुद्र की लहरों में कहीं खो गया था। (i) तताँरा के जीवन में पहली बार क्या घटित हो गया था? (ii) तताँरा किसकी प्रतीक्षा कर रहा था? (iii) तताँरा कब समुद्र के किनारे पहुँच गया? (iv) ‘खुशी का ठिकाना न रहना’ मुहावरे का अर्थ है___ (v) तताँरा को वामीरो की आकृति कहाँ नज़र आई? प्रश्न 9. पहले पूरा संसार एक परिवार के समान था, अब टुकड़ों में बँटकर एक-दूसरे से दूर हो चुका है। पहले बड़े-बड़े दालानों-आँगनों में सब मिल-जुलकर रहते थे अब छोटे-छोटे डिब्बे जैसे घरों में जीवन सिमटने लगा है। बढ़ती हुई आबादियों ने समंदर को पीछे सरकाना शुरू कर दिया है, पेड़ों को रास्तों से हटाना शुरू कर दिया है, फैलते हुए प्रदूषण ने पंछियों को बस्तियों से भगाना शुरू कर दिया है। बारूदों की विनाशलीलायों ने वातावरण को सताना शुरू कर दिया। अब गरमी में ज़्यादा गरमी, बेवक़्त की बरसातें, ज़लज़ले, सैलाब, तूफान और नित नए रोग, मानव और प्रकृति के इसी असंतुलन के प्रमाण हैं। नेचर की सहनशक्ति की एक सीमा होती है। नेचर के गुस्से का एक नमूना कुछ साल पहले बंबई (मुबई) में देखने को मिला था और यह नमूना इतना डरावना था कि बंबई निवासी डरकर अपने-अपने पूजा-स्थल में अपने खुदाओं से प्रार्थना करने लगे थे। (i) पहले पूरा संसार किसके
समान था? (ii) बढ़ती हुई आबादी ने क्या करना शुरू कर दिया? (iii) नेचर ने अपना नमूना किस शहर में दिखाया? (iv) प्रकृति के असंतुलन के क्या परिणाम दिख रहे हैं? (v) आज घर डिब्बे जैसे क्यों बन रहे हैं? (ख) खंड ‘ब’- वर्णनात्मक प्रश्न (अंक 40) पाठ्यपुस्तक एवं पूरक पाठ्यपुस्तक (अंक 14) प्रश्न 10. (ख) पहले पद में मीरा ने हरि को याद दिलाया है कि कैसे उन्होंने अपने कई भक्तों की मदद की थी। उन्होंने द्रौपदी, प्रह्लाद और ऐरावत के उदाहरण देते हुए हरि से विनती की है कि वे उसके दुख को भी दूर करें। (ग) सवार स्वयं वज़ीर अली था और अब तक उसे कोई पहचान नहीं पाया था। साथ ही, वह एक जाँबाज़ और बहादुर था। इसलिए उसने कहा कि वज़ीर अली की गिरफ्तारी बहुत मुश्किल है। प्रश्न 11. प्रश्न 12. (ख) इफ्फन की दादी की मौत का समाचार सुनकर टोपी का बालमन शोक से भर उठा। इफ्फन तो उसी समय घर चला गया और टोपी जिमनेज़ियम में जाकर एक कोने में बैठकर रोने लगा। शाम को वह इफ्फ़न के घर गया, तो एक दादी के न रहने से उसे सारा घर खाली-खाली-सा लगा। इफ्फ़न की दादी के प्रति उसके मन में बहुत प्रेम था, बदले में ऐसा ही प्रेम उसे उनसे भी प्राप्त हुआ था, किंतु कभी ऐसी ममता उसे अपनी दादी से नहीं मिली थी। इस कारण उसने इफ्फ़न को यह कहकर सांत्वना दी कि ‘तोरी दादी की जगह अगर हमरी दादी मर गई होती, त ठीक भया होता’ अर्थात उसकी यानी इफ्फ़न की दादी की जगह उसकी दादी मर गई होती, तो ठीक होता। (ग) गरीब घरों के लड़कों को पढ़ने में रुचि नहीं थी क्योंकि उनके लिए स्कूल में कोई आकर्षण नहीं था। स्कूल उनके लिए भय का स्थान था। वे बस्ता तालाब में फेंक आते और फिर कभी स्कूल नहीं जाते। ऐसे बच्चों के अभिभावकों की रुचि भी पढ़ाई में बिलकुल नहीं होती थी। वे उन्हें पंडित घनश्याम दास से हिसाब-किताब की प्राचीन लिपि ‘लंडे’ पढ़वाकर दुकान का खाता लिखवाना ज्यादा
पसंद करते थे। यहाँ तक कि आढ़तिए और परचूनिए माँ-बाप भी पढ़ाई के बदले मुनीमी सिखवाते थे। ऐसे अभिभावकों का यह तर्क था कि बच्चों लेखन (अंक 26) प्रश्न 13.
(ख) सत्संगति
(ग) कंप्यूटर आज की आवश्यकता
उत्तर विज्ञापन की सहायता से उत्पाद की बिक्री बढ़ाकर लाभ कमाना ही इसका मुख्य उद्देश्य होता है। विज्ञापन की शुरुआत कब से हुई, इस संबंध में कुछ कहा नहीं जा सकता। माना जाता है कि सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए बड़ी-बड़ी शिलाओं पर बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को लिखवाया। समय और काल के अनुसार पुस्तकें, पत्रिकाएँ एवं समाचारपत्र विज्ञापनों के लिए प्रयोग किए गए। आज की दुनिया में रेडियो, दूरदर्शन तथा कंप्यूटर विज्ञापन के सशक्त माध्यम हैं, जिनमें आम आदमी भी वैवाहिक विज्ञापन या गुमशुदा के विज्ञापन देकर या नौकरी के विज्ञापन पढ़कर बहुत लाभ कमा सकते हैं। विज्ञापन भी एक कला है, जिसमें असल की बजाय नकल को ज्यादा बेचा जाता है, यह हमारे निर्णय को किसी-न-किसी रूप में अवश्य प्रभावित करता है, इसलिए हमें बुद्धिमत्तापूर्वक तथा सावधानी से निर्णय करना चाहिए क्योंकि हर चमकने वाली चीज़ सोना नहीं होती। (ख) सत्संगति दुर्जनों की संगति में रहने वाले रत्नाकर डाकू को संत देवर्षि नारद की संगति ने महर्षि बाल्मीकि बना दिया, जिन्होंने रामायण जैसे पवित्र ग्रंथ की रचना की। सत्संगति से मानव जीवन में सद्गुण आते हैं, वहीं बुरी संगत से विभिन्न प्रकार विकारों का समावेश होता है जो मनुष्य को असहनशील, अभद्र तथा अविवेकी बनाकर असत्य की राह पर ले जाते हैं, मानव ‘सत्य’ से भटककर असत्य का साथ देता है; जैसे-संत अजमिल ने एक वैश्या के संसर्ग में आकर असत्य का रास्ता अपनाया तथा माता कैकयी भी मंथरा की कुसंगति से अपना सम्मान खो बैठीं। अत: मानव जीवन को उत्तम बनाने के लिए श्रेष्ठ पुरुषों की सत्संगति आवश्यक है ताकि मनुष्य समाज में सच्चा आदर तथा सम्मान प्राप्त कर सके, जीवन का सच्चा अर्थ समझ सके तथा जीवन को सफल बना सके। (ग) कंप्यूटर : आज की आवश्यकता बार-बार करने पर यह थकता नहीं तथा न ही इसके परिणामों में कोई परिवर्तन आता है, यह कभी धोखा नहीं देता। कार्यालयों के प्रत्येक विभाग में कंप्यूटर अनिवार्य है। आज बिजली बिल, टेलीफोन बिल, पानी का बिल, गृहकर, रेलवे टिकट, बस टिकट आदि के विभाग कंप्यूटराइज्ड (कंप्यूटरीकृत) प्रतियाँ तैयार करते हैं। इसी तरह दुकान तथा होटलों में भी इसका प्रयोग होता है। इसी तरह बच्चे कंप्यूटर गेम’ खेल कर मनोरंजन करते हैं। कंप्यूटर की संख्या तथा उपयोग बढ़ने से फाइलों की संख्या घट रही है। कहीं-कहीं पर “बिना कागज वाले कार्य” (पेपर लैस वर्क) हो रहे हैं। इस तरह फाइलों की खरीद तथा रख-रखाव से छुटकारा मिल रहा है। कंप्यूटर सूचनाओं का आदान-प्रदान कर हजारों किलोमीटर दूर बैठे लोगों को परस्पर जोड़ रहा है। अतः कंप्यूटर का उपयोग हमें सफलता की नई ऊँचाइयों पर ले जाता है। इसके उपयोग के समय अन्य नियमों के साथ स्वास्थ्य संबंधी निर्देशों का पालन अनिवार्य है। प्रश्न 14. अथवा परीक्षा भवन देश की इस ऐतिहासिक राजधानी में असामाजिक तत्वों का भय तथा आतंक का वातावरण बना हुआ है। दिन-दहाड़े चेन खींचना, पर्स छीनना आम बात हो गई है। बसों में, बाजारों में, कॉलेजों में छेड़खानी की वारदातें बढ़ती जा रही हैं। दफ्तरों में काम करने वाली महिलाएं अपने सहकर्मियों के अश्लील कटाक्षों से परेशान हैं। अपहरण, बलात्कार तथा चोरी के समाचार सुनकर दिल दहल जाता है। आश्चर्य की बात यह है कि इन पर कार्यवाही नहीं होती, ना-ही हमारी पुलिस इतनी मुस्तैद है। इन सभी के कारण आम आदमी भय और असुरक्षा की भावना से जीवन काट रहा है। हमारे देश की छवि को भी ये घृणित कार्य धूमिल करते हैं। आपसे अनुरोध है कि इस पत्र को अपने अखबार में छापें ताकि संबंधित अधिकारी इसे पढ़कर जागरूक हों और इस पर उचित कार्यवाही करें। धन्यवाद। भवदीय क.ख.ग. एवं अन्य क्षेत्रवासी प्रश्न 15. दिनांक : 21 मार्च, 20xx अथवा सर्वोदय विद्यालय पंजाबी बाग, नई दिल्ली दिनांक : 7 प्रश्न 16. प्रश्न 17. वह कुछ देर यूँ ही शांत रहा और फिर कुछ सोचकर बोला, “देखो, मुझे जितना जीवन जीना था, मैंने जी लिया और अब मेरा मरना निश्चित है, लेकिन मरने से पहले मेरी एक आखिरी इच्छा है।” “बताओ अपनी इच्छा?” शिकारी ने उत्सुकता से पूछा। बाज ने बताना शुरू किया- “मरने से पहले मैं तुम्हें दो सीख देना चाहता हूँ, इसे तुम ध्यान से सुनना और सदा याद रखना। पहली सीख तो यह है कि किसी की बातों का बिना प्रमाण, बिना सोचे-समझे विश्वास मत करना और दूसरी ये कि यदि तुम्हारे साथ कुछ बुरा हो या तुम्हारे हाथ से कुछ छूट जाए तो उसके लिए कभी दुखी मत होना।” शिकारी ने बाज़ की बात सुनी और अपने रास्ते आगे बढ़ने लगा। कुछ समय बाद बाज ने शिकारी से कहा- “शिकारी, एक बात बताओ… अगर मैं तुम्हें कुछ ऐसा दे दूं, जिससे तुम रातों-रात अमीर बन जाओ तो क्या तुम मुझे आज़ाद कर दोगे?” शिकारी फ़ौरन रुका और बोला, “क्या है वो चीज़, जल्दी बताओ?” बाज़ बोला, “दरअसल, बहुत पहले मुझे राजमहल के करीब एक हीरा मिला था, जिसे उठाकर मैंने एक गुप्त स्थान पर रख दिया था। अगर आज मैं मर जाऊँगा तो वह हीरा ऐसे ही बेकार चला जाएगा, इसलिए मैंने सोचा कि अगर तुम उसके बदले मुझे छोड़ दो तो मेरी जान भी बच जाएगी और तुम्हारी गरीबी भी हमेशा के लिए मिट जाएगी।” यह सुनते ही शिकारी ने बिना कुछ सोचे-समझे बाज को आज़ाद कर दिया और वह हीरा लाने को कहा। बाज़ तुरंत उड़कर पेड़ की एक ऊँची साख पर जा बैठा और बोला, “कुछ देर पहले ही मैंने तुम्हें एक सीख दी थी कि किसी की भी बातों का तुरंत विश्वास मत करना, लेकिन तुमने उस सीख का पालन नहीं किया… दरअसल, मेरे पास कोई हीरा नहीं है और अब मैं आज़ाद हूँ। यह सुनते ही शिकारी मायूस हो पछताने लगा… तभी बाज़ फिर बोला, “तुम मेरी दूसरी सीख भूल गए कि अगर तुम्हारे साथ कुछ बुरा हो तो उसके लिए कभी पछतावा मत करना।” अथवा एक दिन एक शहर के एक नामी सेठ को पता चलता है कि उसका बेटा गलत संगत में पड़ गया है और उसका उठना-बैठना गलत लोगों के साथ हो गया है। सेठ के लाख समझाने और मना करने के बाद भी उसका बेटा उन्हीं लोगों के साथ उठता-बैठता था और कहता था कि किसी के साथ उठने-बैठने से कोई बिगड़ नहीं जाता है। एक दिन सेठ को ऐसे ही बैठे-बैठे अपने बेटे को सुधारने की एक युक्ति सूझी… वह बाज़ार गया और वहाँ से कुछ सेब खरीदकर ले आया। इन सब सेबों के साथ वह एक सड़ा हुआ सेब भी लेकर आया… सेठ ने उन सेबों को दो बराबर हिस्सों में बाँटकर दो अलग-अलग थैलों में डाल दिया। फिर उसने अपने बेटे को बुलाकर कहा कि इन दोनों थैलों को अलग-अलग जगह रख दो। बेटे को कुछ समझ नहीं आया। तभी सेठ ने अलग से लाया हुआ सड़ा हुआ सेब निकाला और एक थैले में डालते हुए कहा कि यह सेब थोड़ा-सा सड़ा हुआ है, लेकिन बाकी के सेब तो सही हैं… इस थैले में इसको डाल देता हूँ। अगले ही दिन सेठ ने अपने बेटे से सेब के दोनों थैले लाने को कहा… बेटा सेब का एक थैला तो आराम से लेकर आ गया, लेकिन जब दूसरा थैला लाने गया तो उसे बदबू आने लगी… उ सने देखा कि सड़े सेब वाले थैले के बाकी सेब भी सड़ने शुरू हो गए थे। सेठ ने कहा, “जिस तरह एक सड़ा हुआ सेब बाकी सेबों को भी सड़ा देता है, उसी तरह बुरी संगत अच्छे बच्चों को बिगाड़ देती है।” अब उस लड़के को सारी बात समझ में आ गई और उसी दिन से उसने बुरे लोगों के साथ उठना/बैठना बंद कर दिया। आम के वृक्ष के सामने पीपल और बरगद के जमाने का क्या कारण था?प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने अपनी सुललित, सारगर्भित पंक्तियों में एक ऐसे पेड़ का वर्णन किया है जो अपने यौवन काल में शायद बहुत हरा -भरा रहा होगा ,परन्तु आज वह ठूठ की भाँती खड़ा है, जब उसका समय था तब आम के वृक्ष के सामने पीपल और बरगद के शरमाने के लिए मजबूर हो जाते थे क्योंकि अपने यौवन काल में वह बहुत अधिक हरा-भरा और सघन ...
पीपल का पेड़ घर के सामने लगाने से क्या होता है?कहते हैं कि पीपल के पेड़ पर कई देवी-देवताओं का वास होता है. लेकिन घर में पीपल के पेड़ का होना शुभ नहीं माना जाता है Vastu Tips For Peepal: हिंदू धर्म में पीपल के पेड़ (Peepal Tree) को पवित्र और पूजनीय माना जाता है. कहते हैं कि पीपल के पेड़ (Peepal Tree) पर कई देवी-देवताओं का वास होता है.
थिम्मक्का और उनके पति ने बरगद का पेड़ क्यों लगाया?इसलिए अकेले जोड़े ने पेड़ लगाने का फैसला किया। थिम्मक्का का पति एक विकलांग व्यक्ति था, इसलिए उसे हर दिन एक मजदूर के रूप में काम करना पड़ता था और उसके पास ज्यादा समय नहीं होता था । लेकिन अपने दृढ निश्चय से उन्होंने सड़क के दोनों ओर गड्ढा खोदने में काफी मशक्कत की। उनका अगला काम उपयुक्त बरगद के पौधे चुनना था।
आम की छतनार गलतियों के कारण क्या होता था?सो प्राणवान जीवन, मानव संस्कृति का उल्लास उपहार लिए उन चारों राहों की संधि पर मिलता था जिसके एक कोण में उस प्रवाह से मिल एकांत शुष्क आज वह ठूँठ खड़ा है। उसके अभाग्यों परंपरा में संभवतः एक ही सुखद अपवाद है – उसके अंदर का स्नेहरस सूख जाने से संख्या का लोप हो जाना। संज्ञा लुप्त हो जाने से कष्ट की अनुभूति कम हो जाती है।
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