आंख का पर्दा कैसे ठीक होता है? - aankh ka parda kaise theek hota hai?

आंखों के पर्दे की सूजन को चिकित्सीय भाषा में मैक्युलर इडिमा कहते हैं। इसमें रेटिना के केंद्र वाले भाग, जिसे मैक्युला कहा जाता है, में फ्लुएड यानी तरल का जमाव हो जाता है। रेटिना हमारी आंखों का सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है, जो कोशिकाओं की एक संवेदनशील परत होती है। मैक्युला रेटिना का वह भाग होता है, जो हमें दूर की वस्तुओं और रंगों को देखने में सहायता करता है। जब रेटिना में तरल पदार्थ अधिक हो जाता है और रेटिना में सूजन आ जाती है तो मैक्युलर इडिमा की समस्या हो जाती है। अगर मैक्युलर इडिमा का उपचार न कराया जाए तो दृष्टि संबंधी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं या आंखों की रोशनी भी जा सकती है।  उम्र बढ़ने के साथ बुजुर्गों की आंखें कमजोर होने लगती हैं। पर्दे खराब होने की वजह से आंख कमजोर होने में मैक्यूलर डीजेनरेशन होना सबसे अहम है।सेंटर फॉर साइट के आई स्पेशलिस्ट डॉक्टर रीतेश नरूला ने बताया कि पर्दे के सेंटर को मैक्यूला कहा जाता है, यह तेज रोशनी का पॉइंट होता है। उम्र की वजह से धीरे-धीरे टिशू वीक होने लगता है, जिसकी वजह से रेटिना काम नहीं करने लगता और रोशनी कम हो जाती है। समय पर इसका इलाज कराने पर बीमारी से छुटकारा मिल सकता है, लेकिन समय पर इलाज नहीं कराने पर आंखों की रोशनी जा भी सकती है।डॉक्टर रीतेश नरूला ने बताया कि इसमें पर्दे की रोशनी वाला टिशू कमजोर हो जाता है, जिससे सूजन आ जाती है और कई बार इसकी वजह से ब्लीडिंग होने लगती है। इसकी वजह से नजर कमजोर पड़ जाती है। इसके शुरुआती लक्षण नजर कमजोर पड़ना है, ऐसे लोगों को पढ़ने-लिखने के लिए आम लोगों की तुलना में ज्यादा रोश्नी की जरूरत होती है। इसके सबसे कॉमन लक्षण आड़ा-तिरछा दिखना है। इसके डायग्नोसिस के लिए डॉक्टर ओसीटी या एंजियोग्राफी करते हैं और बीमारी का पता लगने पर इंजेक्शन के जरिए इसका इलाज किया जाता है। डॉक्टर ने कहा कि इस बीमारी की मुख्य वजह उम्र और जेनेटिक है। मगर, स्मोकिंग इस बीमारी के खतरे को और बढ़ा देता है। इससे बचाव के लिए एंटी ऑक्सीडेंट वाले फल और सब्जी का इस्तेमाल करें, ताकि इस बीमारी को टाला जा सके।आंखों की बीमारी को लेकर लोगों को जागरूक करने के लिए पूरे विश्व में वर्ल्ड साइट डे मनाया जाता है। अक्टूबर के दूसरे गुरुवार को यह हर साल मनाया जाता है। इस साल की थीम आई केयर एवरीवेयर थी। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); सेंटर फॉर साइट के चीफ डॉक्टर महिपाल सचदेव ने बताया कि आंखों की बीमारी लाइफ स्टाइल से भी जुड़ी होती है। लोग आंखों की बीमारी को समझें, इसके लक्षण पर गौर करें। समय पर इलाज से रिकवरी बेहतर होती है। जमशेदपुर, जेएनएन। ऑल इंडिया ओफ्थल्मोलॉजिकल सोसाइटी की एकेडमिक रिसर्च शाखा ने झारखंड के नेत्ररोग विशेषज्ञों के लिए आखों के पर्दे की बिमारियों की पहचान एवं इलाज पर कार्यशाला का आयोजन झारखंड नेत्र सोसाइटी एवं जमशेदपुर नेत्र सोसाइटी के संयुक्त तत्वाधान में किया। इस दौरान यह तथ्य सामने आए कि आंखों के पर्दे फटने पर तत्काल ऑपरेशन ही विकल्प है। इसके बगैर आंखों की रोशनी नहीं बचाई जा सकती।सेशन: Aमिक्स्ड बैग्स - केस बेस्ड सिनेरियो पर डॉ. अजय गुप्ता, डॉ. कुमार साकेत, डॉ. बी.एन. गुप्ता और डॉ. भारती कश्यप ने अपने-अपने रिसर्च पेपर प्रस्तुत किए। झारखंड की प्रख्यात नेत्ररोग विशेषज्ञ डॉ. भारती कश्यप ने मोतियाबिंद सर्जरी के बाद कभी-कभी हो जाने वाली आंखों में सूजन और इन्फेक्शन को किस प्रकार से पहचाने और उसका अलग – अलग तरीके से किस प्रकार से मैनेजमेंट करें ताकि मरीजों की आंखों की रौशनी वापस आ जाए इस पर अपने विचार रखें।सेशन: B  (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); डायबिटीज के अलावा अन्य कारणों से आंखों के पर्दे पर पैदा होने वाली खून की नयी नालियों और उनके द्वारा होने वाले सूजन के मैनेजमेंट पर पर डॉ. नितिन जी. धीरा और डॉ. संतोष कुमार महापात्र ने अपने-अपने रिसर्च पेपर प्रस्तुत किए।सेशन: Cरेटिनल वेन ओकुलेशन पर डॉ. पूनम सिंह, डॉ. विजय जोजो और डॉ. बी. पी. कश्यप ने अपने-अपने रिसर्च पेपर प्रस्तुत किए।सेशन: Dडायबिटिक रेटिनोपैथी पर डॉ. अंशुमन सिन्हा, डॉ. सुबोध, डॉ. पार्थो बिस्वास और डॉ. मनीषा अगरवाल ने अपने-अपने रिसर्च पेपर प्रस्तुत किए। एक्सपर्ट पैनल में मौजूद डॉ. बिभूति भूषण ने बताया कि डायबिटिक रेटिनोपैथी से बचाव के लिए रक्त के शुगर के स्तर को नियंत्रित रखना जरूरी है। साथ में हाई ब्लड प्रेशर और हाई कोलेस्ट्रॉल को भी नियंत्रित रखना जरूरी है। खून की कमी भी रेटिनोपैथी को बढ़ाती है। रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा को सही रखना आवश्यक है। साल में एक बार रेटिना की जांच अवश्य करानी चाहिए। साथ ही संतुलित आहार और प्रति दिन सुबह या शाम की 1 घंटे की सैर भी बहुत जरूरी है। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); जमशेदपुर में आयोजित कार्यशाला का उदघाटन करते अतिथि।सेशन: E आंखों के पर्दे अपनी जगह से खिसकने के अलग-अलग कारण होते हैं। उन कारणों पर आधारित सर्जिकल मैनेजमेंट एवं नॉन सर्जिकल मैनेजमेंट पर डॉ. राहुल डॉ. बिक्रमजीत और  डॉ. प्रशांत ने अपने विचार रखे। एक्सपर्ट पैनल में मौजूद सुप्रसिद्ध डॉ. बी.पी. कश्यप ने बताया कि आंखों के पर्दे की बीमारी और पर्दे का फटना एक इमरजेंसी है। ऐसे में ऑपरेशन जल्द से जल्द करना चाहिए। अचानक से रोशनी का जाना आंख के आगे मक्खियां मच्छर जैसा आना और परदे के आगे बिजली का चमकना यह सारे लक्षण होते हैं पर्दा फटने के। ऐसे में यदि सर्जरी जल्द नहीं कराया जाये तो आंखों की रोशनी हमेशा के लिए जा सकती है।आंख के पर्दे के खिसकने के ये होते कारण:  चोट लगने से, (अनुवांशिक रूप) खानदानी रूप से कमजोर होने की वजह से, ज्यादा पावर के चश्मे के कारण, Vitreous में खराबी या Vitreous में खून आने की वजह से, पर्दे के पीछे Choroid या उसके भी पीछे श्वेत पटल/sclera की खराबी से होने से, मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद कमजोर रेटिना की वजह से, लेंस के ऊपर कभी-कभी मोटी झिल्ली पड़ जाती है तो उसे याग लेज़र कैप्सूलोटमी द्वारा काटा जाता है तो इसकी वजह से भी रेटिनल डिटैचमेंट हो सकती है तथा आखों में इन्फेक्शन होने की वजह से।  (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); क्या-क्या सावधानियां बरतनी चाहिए : अगर आपके चश्मे का पॉवर ज्यादा है तो साल में एक बार पर्दे की जांच जरूर करायें। अगर आपकी आंखों के सामने काला धब्बा के सामान और कभी चिंगारी के तरह रौशनी नजर आये तो आंख की जरूर जांच कराएं। अगर आंख में चोट लगी हो तो जरूर जांच करा लें। आंख जांच के बाद अगर डॉक्‍टर बोलें कि आपकी आंख का पर्दा कमजोर हो गया है तो उसका ईलाज जरूर करवाना चाहिए। अगर आपके परिवार में किसी को रेटिनल डिटैचमेंट हुआ है तो आपको रेटिना जांच करवाना चाहिए।सेशन: Fमिक्स्ड बैग्स पर डॉ. प्रशांत बावनकुले, डॉ. पार्थो बिस्वास, डॉ. कृष्णेंदु नंदी और डॉ. मनीषा अगरवाल ने अपने-अपने रिसर्च पेपर प्रस्तुत किए।सेशन: G यंग नेत्ररोग विशेषज्ञों के सेशन में डॉ. गायत्री, डॉ. अनुजा, डॉ. अनिकेत, डॉ. स्नेह, डॉ. अंशुमन, डॉ. सुबोध और डॉ. दीपक ने अपने-अपने रिसर्च पेपर प्रस्तुत किए। ये रहे मौजूद:     इस कांफ्रेंस में झारखंड ओफ्थल्मोलॉजिकल सोसाइटी के चेयरमैन साइंटिफिक कमेटी डॉ. भारती कश्यप, सेक्रेटरी डॉ. बिभूति भूषण तथा लोकल आर्गेनाइजिंग कमेंटी के डॉ. एस. पी. जखंवाल, डॉ. जी. बी. सिंह, डॉ. बी. पी. सिंह, डॉ. सी. बी. पी. सिंह, डॉ. एस. बाजोरिया, डॉ. एस. के. मित्रा, डॉ. मोनिका होरो, डॉ. कुमार साकेत, डॉ. पी. कुंडू, डॉ. विजया जोजो, डॉ. पूनम सिंह, डॉ. आनंद सुश्रुत, डॉ. विवेक केडिया, डॉ. रवि दौलत बरभया, डॉ. नितिन जी. धीरा, डॉ. रश्मि मित्रा, डॉ. राजेश वर्मा, डॉ. मलय द्विवेदी और डॉ. आर. बी. सिंह मौजूद थे।ये भी जानेंएकेडकिम रिसर्च के प्रमुख डॉ. पार्थो बिस्वास, अतिथि वक्ता डॉ. प्रशांत बावनकुले, डॉ. कृष्णेंदु नंदी, डॉ. मनीषा अग्रवाल, डॉ. संतोष कुमार महापात्र, चैयरमेन साइंटिफिक कमेटी डॉ. भारती कश्यप, सेक्रेटरी डॉ. विभूति भूषण, संयोजक डॉ. एस पी. जखनवाल और पूर्व अध्यक्ष डॉ. बी.पी. कश्यप सहित सभी प्रमुख नेत्र चिकित्सकों को पुष्प गुच्‍छ देकर सम्मानित किया गया। स्वागत भाषण डॉ. एसपी. जखनवाल ने दिया। मुख्य अतिथि को स्मृति चिह्रन डॉ. भारती कश्यप, चैयरमेन साइंटिफिक कमेटी ने दिया। आंख का पर्दा कैसे खराब होता है?

आंख के पर्दे के खिसकने के ये होते कारण: चोट लगने से, (अनुवांशिक रूप) खानदानी रूप से कमजोर होने की वजह से, ज्यादा पावर के चश्मे के कारण, Vitreous में खराबी या Vitreous में खून आने की वजह से, पर्दे के पीछे Choroid या उसके भी पीछे श्वेत पटल/sclera की खराबी से होने से, मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद कमजोर रेटिना की वजह से, ...
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आंख का पर्दा कमजोर होने पर क्या करें?

रेटिना को आंख की दीवार से चिपकाने की प्रक्रिया अपनाई जाती है। सिलिकॉन आईल इंजेक्शन- रेटिना बेहतर ढंग से चिपका रहे इसके लिये तरल सिलिकॉन को इंजेक्शन के जरिये आंख में प्रवेश कराया जाता है। लेंस प्रत्यारोपण- रेटिनल डिटैचमेंट सर्जरी के छह महीने बाद सिलिकॉन आईल को आंख से निकाल कर लेंस प्रत्यारोपित किया जायेगा।

आंख का पर्दा फटने से क्या होता है?

बीपी कश्यप ने कहा कि आंखों के पर्दे की बीमारी और पर्दे का फटना इमरजेंसी है। ऐसे में ऑपरेशन जल्द करना चाहिए। अचानक रोशनी का जाना, आंख के आगे मक्खियों व मच्छर जैसा आना और परदे के आगे बिजली का चमकना पर्दा फटने के लक्षण होते हैं। ऐसे में यदि सर्जरी जल्द नहीं की जाए तो रोशनी हमेशा के लिए जा सकती है।

रेटिना डैमेज होने पर क्या होता है?

रेटिनल में छेद Retinal tear :- एक रेटिना में छेद तब होता है जब आपकी आंख (कांच) के केंद्र में स्पष्ट, जेल जैसा पदार्थ सिकुड़ जाता है और आपकी आंख (रेटिना) के पीछे ऊतक की पतली परत पर टग जाता है, जिससे ऊतक में एक विराम होता है। यह अक्सर फ्लोटर्स और चमकती रोशनी जैसे लक्षणों की अचानक शुरुआत के साथ होता है।