5 घंटा सोने से क्या होता है? - 5 ghanta sone se kya hota hai?

लंदन में हुए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि पांच घंटे से कम की नींद लेने से याददाश्त कमजोर हो सकती है. यह अध्ययन दिमाग के एक हिस्से हिप्पोकैम्पस में तंत्रिका कोशिकाओं के बीच जुड़ाव न हो पाने पर केंद्रित है. अध्ययन में पता चला कि कम सोने से हिप्पोकैम्पस में तंत्रिका कोशिकाओं के बीच जुड़ाव नहीं हो पाता है, जिससे याद्दाश्त कमजोर होती है.

ग्रोनिनजेन इंस्टीट्यूट फॉर इवॉल्यूशनरी लाइफ साइंसेज के असिस्टेंट प्रोफेसर रॉबर्ट हैवेक्स ने अध्ययन ने यह जानकारी दी. उन्होंने बताया कि, 'यह साफ हो गया है कि याद्दाश्त बरकरार रखने में नींद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. हम जानते हैं कि झपकी लेना महत्वपूर्ण यादों को वापस लाने में सहायक होता है. मगर, कम नींद कैसे हिप्पोकैंपस में संयोजन कार्य पर असर डालती है और याद्दाश्त को कमजोर करती है, यह स्पष्ट है.'

शोधकर्ताओं ने इसका परीक्षण चूहों के दिमाग पर किया. परीक्षण में डेनड्राइट्स के स्ट्रक्चर पर पड़ने वाले कम नींद के प्रभाव को जांचा गया. सबसे पहले उन्होंने गोल्गी के सिल्वर-स्टेनिंग पद्धति का पांच घंटे की कम नींद को लेकर डेन्ड्राइट्स और चूहों के हिप्पोकैम्पस से संबंधित डेन्ड्राइट्स स्पाइन की संख्या को लेकर निरीक्षण किया.

विश्लेषण से पता चला कि कम नींद से तंत्रिका कोशिकाओं से संबंधित डेन्ड्राइट्स की लंबाई और मेरुदंड के घनत्व में कमी आ गई थी. उन्होंने कम नींद के परीक्षण को जारी रखा, लेकिन इसके बाद चूहों को बिना बाधा तीन घंटे सोने दिया. ऐसा वैज्ञानिकों के पूर्व कार्यों का परीक्षण करने के लिए किया गया. पूर्व में कहा गया था कि तीन घंटे की नींद, कम सोने से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए पर्याप्त है.

पांच घंटे से कम नींद वाले परीक्षण के प्रभाव को दोबारा जांचा गया. इसमें चूहों के डेन्ड्रिक स्ट्रक्चर की निगरानी चूहों के सोने के दौरान की गई, तो डेन्ड्रिक स्ट्रक्चर में कोई अंतर नहीं पाया गया. इसके बाद इस बात की जांच की गई कि कम नींद से आण्विक स्तर पर क्या असर पड़ता है. इसमें खुलासा हुआ कि आण्विक तंत्र पर कम नींद का नकारात्मक असर पड़ता है और यह कॉफिलिन को भी निशाना बनाता है.

स्टोरी हाइलाइट्स

  • 8 घंटे से ज्यादा अच्छी नींद लेना है जरूरी
  • अच्छी नींद लेने वालों में न्यूरोलॉजिकल डिसीस का खतरा कम

सेहतमंद जीवन के लिए पर्याप्त नींद लेना बहुत जरूरी है. अक्सर आपने देखा होगा कि डॉक्टर लोगों को करीब 8 घंटे सोने की सलाह देते हैं. लेकिन एक स्टडी में खुलासा हुआ है कि इंसान के लिए सिर्फ 8 घंटे नहीं, बल्कि अच्छी नींद लेना भी बहुत जरूरी है. यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफॉर्निया के शोधकर्ताओं का कहना है कि अच्छी नींद लेने वाले ना सिर्फ मानसिक रूप से दुरुस्त रहते हैं, बल्कि वे न्यूरोडिजेनेरेटिव के प्रतिरोधी भी होते हैं जिससे न्यूरोलॉजिकल डिसीस का खतरा कम होता है. यह स्टडी 'आईसाइंस' नाम के जर्नल में प्रकाशित हुई है.

प्रसिद्ध न्यूरोलॉजिस्ट और स्टडी के प्रमुख लेखकों में से एक लुइस प्तासेक ने कहा, 'ऐसा कहा जाता है कि हर किसी के लिए रोजाना लगभग 8 घंटे की नींद लेना जरूरी है, लेकिन हमारी स्टडी बताती है कि हर इंसान की नींद आनुवांशिकी पर निर्भर करती है. इसे आप कद के रूप में समझ सकते हैं. कद का कोई परफेक्ट अमाउंट नहीं होता है. हर इंसान अलग है. हमने नींद के मामले में भी बिल्कुल यही पाया है.

लुइस और सहायक लेखक यिंग-हुई फू करीब एक दशक से UCSF वेइल इंस्टीट्यूट फॉर न्यूरोसाइंसेस के सदस्य हैं और फैमिलियल नेचुरल शॉर्ट स्लीप (FNSS) के लोगों पर अध्ययन कर रहे हैं जो रात में करीब चार से छह घंटे की नींद लेते हैं. उन्होंने बताया कि परिवारों में अक्सर ऐसा चलता है. अब तक ऐसे पांच जीनोम की पहचान की गई है जिनकी नींद में बड़ी भूमिका होती है. हालांकि, अभी भी ऐसे कई FNSS जीन्स खोजने बाकी हैं.

स्टडी में फू की हाइपोथीसिस को भी टेस्ट किया गया कि न्यूरोडीजेनरेटिव डिसीस के खिलाफ नींद एक रक्षा कवच हो सकती है. आम धारणा है कि नींद की कमी कई लोगों में न्यूरोडीजेनेरेशन को तेज कर सकती है. इस स्टडी के नतीजे इसके उलट हैं. फू ने कहा कि अंतर यह है कि FNSS के साथ दिमाग अपना स्लीप टास्क कम समय में पूरा करता है. दूसरे शब्दों में कहें तो थोड़े समय की पर्याप्त नींद को नींद की कमी के समान नहीं समझा जा सकता.

फू ने बताया कि उनकी टीम ने अल्जाइमर की बीमारी को समझने के लिए माउस मॉडल को देखा. उन्होंने ऐसे चूहों को चुना जिनमें कम नींद और अल्जाइमर के लिए पूर्वनिर्धारित जीन दोनों थे. शोधकर्ताओं ने पाया कि उनके दिमाग में हॉलमार्क एग्रीगेट्स बहुत कम मात्रा में विकसित हुआ जो कि डेमेंशिया से जुड़ा है. अपने निष्कर्षों की पुष्टि के लिए उन्होंने एक अलग शॉर्ट स्लीप जीन और एक अन्य डिमेंशिया जीन के साथ चूहों पर एक्सपेरीमेंट को दोहराया और यहां भी इसी तरह के परिणाम सामने आए.

फू और प्तासेक का कहना है कि दिमाग से जुड़ी तमाम कंडीशंस का इसी तरह की जांच से पता चलेगा कि अच्छी नींद जीन को कितनी सुरक्षा प्रदान करती है. इससे लोगों की नींद में सुधार से कई तरह की दिमागी बीमारियों से राहत मिल सकती है. प्तासेक ने कहा कि दिमाग से जुड़ी सभी बीमारियों में नींद की समस्या आम है. नींद एक जटिल गतिविधि है. आपके सोने और जगाने के लिए आपके दिमाग के कई हिस्सों को एकसाथ काम करना पड़ता है. जब दिमाग के ये हिस्से डैमेज हो जाते हैं तो इंसान के लिए अच्छी नींद लेना बहुत मुश्किल हो जाता है.

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5 घंटे सोने से क्या होता है?

शोधकर्ताओं ने रिसर्च में पाया कि नींद और इम्यून सिस्टम के बीच गहरा रिश्ता है। अगर आप रात में 5 घंटे से कम सोते हैं या 9 घंटे से ज़्यादा सोते हैं, तो इसका बुरा असर आपकी दिल की सेहत पर पड़ सकता है। कम नींद स्तन कैंसर, कोलोरेक्टल कैंसर और प्रोस्टेट कैंसर की उच्च दर से जुड़ी है।

क्या 5 घंटे की नींद पर्याप्त है?

अगर आपकी उम्र 50 से ज़्यादा है और आप कम से कम पांच घंटे भी नहीं सो रहे हैं तो इससे आपको कई गंभीर बीमारियां हो सकती हैं. एक स्टडी में यह बात सामने आई है कि कम से कम पांच घंटे की नींद लेने से 50 से ज़्यादा उम्र में स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का ख़तरा कम हो जाता है. स्वास्थ्य ठीक न हो तो नींद में ख़लल पड़ सकती है.

1 दिन में कितने घंटे सोना चाहिए?

9-12 साल के बच्चों को प्रतिदिन 9 से 12 घंटे तक सोना चाहिए. 13-18 साल के युवाओं को हर दिन 8 से 10 घंटे तक नींद लेनी चाहिए. 18-60 साल के लोगों के लिए प्रतिदिन 7 घंटे की नींद पर्याप्त मानी जाती है. 61-64 साल के लोगों के लिए हर दिन 7 से 9 घंटे सोना जरूरी होता है.

रात में कितने बजे तक सो जाना चाहिए?

कई रिसर्च बताते है की हमको रात को 9 या 10 बजे सो जाना चाहिए और 6 या 7 बजे वापस उठ जाना चाहिए। क्योंकि कई शोधकर्ताओं का मानना है की अलग-अलग व्यक्ति की नींद की जरूरतें कम या ज्यादा हो सकती हैं इसलिए कम से कम 6 घंटे और ज्यादा से ज्यादा 9 घंटे तक की नींद सही मानी जाती है।

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