2014 के बाद भारतीय राजनीति में कौन से बड़े परिवर्तन आए व्याख्या कीजिए। - 2014 ke baad bhaarateey raajaneeti mein kaun se bade parivartan aae vyaakhya keejie.

2014 के बाद भारतीय राजनीति में कौन से बड़े परिवर्तन आए व्याख्या कीजिए। - 2014 ke baad bhaarateey raajaneeti mein kaun se bade parivartan aae vyaakhya keejie.

यदि सरकारें संगठन के बलबूते बनती-बिगड़ती हैं तो राजनीति के माध्यम से समाज और व्यवस्था में सरकारी प्रयत्नों द्वारा लाये जा रहे बदलाव को गति प्रदान करने, उसे और प्रभावी तथा स्थायी बनाने में पार्टी के आम कार्यकर्ता की भी महती भूमिका हो सकती है। हमारी लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली में इसकी व्यवस्था पूर्व से स्थापित है।

2014 के बाद भारत की राजनीति को यदि एक वाक्य में निरूपित करना हो तो कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में भारतवर्ष को उसका स्वाभाविक नेता मिल गया है। क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आचरण और व्यवहार भारत के सर्वदूर रहने वाले आम नागरिक के अत्यधिक मनोनुकूल है। इसीलिए नरेंद्र मोदी स्वतन्त्र भारत के अभी तक के सर्वाधिक लोकप्रिय एवं शक्तिशाली नेता बनकर उभर सके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मुस्लिम समुदाय द्वारा सम्मानित करने के एक सार्वजनिक कार्यक्रम में मुस्लिम टोपी पहनाने के प्रयास को अस्वीकार करने के प्रसंग पर उनके श्रीमुख से निकले एक वाक्य ‘मैं अपनी परम्परा का पालन करता हूं और दूसरों की परम्परा का सम्मान करता हूं’ ने सम्पूर्ण जगत को सम्प्रभु भारत राष्ट्र से रूबरू करा दिया।

15 दिसंबर 1950 को भारत के उपप्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री सरदार पटेल के देहांत के पश्चात पं. जवाहरलाल नेहरू भारत की राजनीति को अपनी इच्छानुसार हांकने के प्रयास में जुट गए थे। कृषि-प्रधान देश में किसान सरकारी उपेक्षा का सबसे ज्यादा शिकार हुआ। महात्मा गांधी के ग्राम-स्वराज्य की खिल्ली उड़ाई गयी। नतीजतन भारत में गरीबी पसरती चली गयी और दुनिया में स्वतंत्र भारत की छवि एक दरिद्र, कमजोर एवं पिछलग्गू देश की बन गयी। दूसरे, सदा सर्वदा सत्ता में बने रहने के लिए कुटिल धर्मनिरपेक्षता का जाल बिछाया गया। राष्ट्र की अंतर्भूत एकता को छिन्न-भिन्न करने वाली शक्तियों को बढ़ावा दिया गया। देश की अंतर्बाह्य सुरक्षा की अनदेखी की गयी। नेहरूवियन सोच के नाम पर उनके उत्तराधिकारी भी कमोवेश उसी नीति मार्ग पर चलते गए।

2013 में भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित होने पर नरेंद्र मोदी जी ने देश भर में ताबड़-तोड़ जनसभाएं कर जनता के मन को झकझोरना शुरू किया। पटना के गांधी मैदान से मोदी जी ने गर्जना की कि मैं हिन्दू-मुसलमान दोनों से पूछना चाहता हूं- मैं हिन्दुओं से पूछता हूं कि तुम्हें मुसलमानों से लड़ना है या गरीबी से लड़ना है? मैं मुसलमानों से पूछता हूं कि तुम्हें हिन्दुओं से लड़ना है या गरीबी से लड़ना है? और फिर आह्वान किया कि आओ, दोनों मिलकर गरीबी से लड़ें केवल चार वाक्यों से मोदी जी ने कुटिल धर्मनिरपेक्षता के नाम पर बने राजनीतिक दलों के महागठबंधन की चूलें हिला दी। देश की जनता ने भी पूरा प्रतिसाद दिया। जाति, धर्म, वर्गभेद से ऊपर उठकर वोट किया और न केवल 30 वर्ष बाद केंद्र में एनडीए की स्थिर सरकार बना दी, अकेले भारतीय जनता पार्टी को बहुमत से 10 ज्यादा, कुल 282 लोकसभा सीट दे दी।

प्रधानमंत्री पद के शपथ ग्रहण से पूर्व ही 20 मई 2014 को संसद के केन्द्रीय कक्ष में नवनिर्वाचित संसद सदस्यों के बीच अपने पहले सम्बोधन में मोदी जी ने गरीबी के विरुद्ध युद्ध का एलान कर दिया। और प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बाद गरीब को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए एक के बाद एक क्रमबद्ध ढंग से अनेक कार्यक्रमों की झड़ी लगा दी। सबसे पहले गरीब के मन में आत्मविश्वास एवं आत्मसुरक्षा का भाव भरने हेतु प्रधानमंत्री जनधन योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना व प्रधानमंत्री जीवन बीमा योजना शुरू की। उसके बाद गरीब को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए उन्हें रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने, स्वरोजगार को बढ़ाने तथा उसे और अधिक उन्नत बनाने हेतु स्टैंड-अप इंडिया, स्किल इंडिया, मुद्रा योजना आदि योजनाओं की शुरुआत की। साथ ही गरीब की जीवनशैली में बदलाव लाने के लिए उनके घर में पक्के शौचालय बनवाये, बिजली पहुंचाई और मुफ्त गैस कनेक्शन दिए। गरीबों के लिए यह सब दिवास्वप्न जैसा था। प्रधानमंत्री यहीं नहीं रुके। दिन-ब-दिन महंगे होते ईलाज के कारण गरीब को बीमार होने पर तिल-तिल कर मरने से बचाने के लिए उन्होंने भारत आयुष्मान योजना के तहत देश के 50 करोड़ लोगों को 5 लाख रूपये का प्रति परिवार प्रति वर्ष मुफ्त इलाज कराने की सुविधा भी प्रदान की। आज गरीबी से अभिशिप्त समाज का बड़ा वर्ग गरीबी के खिलाफ योद्धा बनकर देश की आर्थिक प्रगति में हिस्सेदार बन सहयोग कर रहा है।

इसके आलावा प्रधानमंत्री आवास योजना शुरू की, जिसमें 2022 तक जब देश आज़ादी की 75 वीं वर्षगांठ मना रहा होगा प्रत्येक गरीब परिवार को पक्का घर दिया जाना सुनिश्चित किया गया है। 2019 में बतौर प्रधानमंत्री दूसरा कार्यकाल प्रारम्भ होने पर 2024 तक प्रत्येक घर में शुद्ध पेयजल की आपूर्ति हेतु जल जीवन मिशन योजना शुरू की। अर्थात प्रधानमंत्री मोदी जी के 10 साल पूरे होते-होते भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में हरेक नागरिक के पास रोजगार होगा, अपना पक्का घर होगा जिसमें बिजली होगी, शुद्ध पेयजल होगा, शौचालय होगा और गैस कनेक्शन भी होगा। राजनीति जनसेवा के लिए है, राजनीति समाज परिवर्तन के लिए है, आज भारत की राजनीति में यह श्रेष्ठ विचार आकार लेता दिखाई देने लगा है। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 ने सिद्ध कर दिया है कि यदि मां-बहनों की जिन्दगी संवारने का प्रयास किया जाये तो वे न केवल अपना घर-परिवार बल्कि देश की राजनीति को भी संवारने का माद्दा रखती हैं। 2014 के बाद की भारत की राजनीति में एक सशक्त महिला वोट बैंक का उभार साफ-साफ दिखाई दे रहा है जिसे बहकाना, फुसलाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।
भारत की खोज नामक पुस्तक के रचियता पं. जवाहरलाल नेहरू कहते थे कि ‘इंडिया इज ए नेशन इन द मेकिंग।’ जबकि भारत इस धरा पर प्राचीनतम राष्ट्र है। लोकतन्त्र और धर्मनिरपेक्षता भारत की मिट्टी में रची-बसी है। ये जीवन-मूल्य हमारे संविधान की देन नहीं है। संविधान लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता दोनों का पोषण अवश्य करता है, उनका संरक्षण भी करता है। परन्तु खेद का विषय है कि कांग्रेस शासन के लम्बे कालखण्ड में लोकतन्त्र और धर्मनिरपेक्षता दोनों जीवन-मूल्यों का बेइंतहा क्षरण हुआ है। इन जीवन-मूल्यों के क्षरण के मूल में है कांग्रेस पार्टी का परिवारवाद अथवा वंशवाद के प्रति दुराग्रह। आज कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी परिवारवाद के आत्मघाती गड्ढे से किनारा करने में सफल हो पायी है। भविष्य में भाजपा का यह कदम भारत की राजनीति में मील का पत्थर साबित होगा; इसमें कोई शक नहीं। मोदी सरकार का ध्येय वाक्य है ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास।’ देश में कानून का राज है। देश के संसाधनों पर सभी का बराबर का अधिकार है। कारण है कि भाजपा विरोध में धर्मनिरपेक्षता के नाम पर विपक्षी दलों की गोलबंदी आज इतिहास की बात हो गयी है।

2004 से 2014 के दौरान यूपीए शासनकाल में उच्च पदों पर बैठ अपनी पोजीशन का दुरूपयोग कर गैर क़ानूनी अकूत धन-सम्पत्ति बनाने के भ्रष्टाचार की खबरें आये दिन की बात हो चली थी। आज उस पर लगाम कसी जा चुकी है। आर्थिक भ्रष्टाचार को आपराधिक कृत्य घोषित कर दिया गया है। अब भ्रष्टाचारी के उत्तराधिकारी को गैर क़ानूनी हथकंडों से जोड़ी गयी धन-सम्पदा का उपयोग करने के अधिकार से वंचित कर दिया गया है। आवश्यक टैक्स रिफार्म लाकर ईमानदारी को बढ़ावा देने जैसे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने वाले सकारात्मक कदम भी उठाये गए हैं। आधार कार्ड और तकनीक का बेहतर उपयोग, पॉलिसी ड्राइविन स्टेट तथा योजनाओं के समयबद्ध क्रियान्वयन द्वारा भ्रष्टाचार का दंश कम करने में सफलता प्राप्त हुई है। अकेले प्रत्यक्ष लाभ हस्तान्तरण (डी.बी.टी.) द्वारा गत 6 वर्षों में 1.78 लाख रूपये सीधे लाभार्थी के खाते में जमा होने से गरीब की रीढ़ मजबूत हुई है। लगभग 1500 अनावश्यक कानून समाप्त किये जा चुके है। ‘ईज ऑफ़ डूइंग बिजिनेस’ में भारत ने ऊंची छलांग लगाई है। ख़ुशी की बात है कि पहली बार कृषि क्षेत्र सरकार की प्राथमिकता सूचि में शामिल हुआ है। केंद्र सरकार ने हाल ही में कृषि सुधार विधेयक लाकर किसान हित में 3 बड़े व्यापक और दूरगामी बदलाव किये हैं। अब किसान अच्छी कीमत मिलने पर अपने उत्पाद मण्डी से बाहर भी बेच सकता हैं। उसे अपना उत्पाद देश भर में बेचने के लिए सरकार ई-मार्केटिंग की सुविधा सुगम बनाने पर तेजी से काम कर रही है। किसान चाहे तो कॉर्पोरेट फार्मिंग का सहारा भी ले सकता है।

देश के आम नागरिकों के जान-माल की रक्षा की गारन्टी तथा देश की सीमाओं की पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था करना मोदी सरकार की प्राथमिकता सूची में है। पड़ोसी पाकिस्तान जैसे पिद्दी देश ने भारत जैसे पराक्रमी देश का जीना मुहाल किया हुआ था। देश में कहीं पर भी बम विस्फोट करा देना पाकिस्तान का शगल बन गया था। जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद का नंगा नाच चलाया जा रहा था। आतंकवादी सुरक्षा बलों के लिए अबूझ पहेली बने हुए थे। जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली संविधान की धारा 370 और 35ए हटाने के बाद आज अलगाववाद और आतंकवाद दोनों अपनी अंतिम घड़ियां गिन रहे हैं। एलओसी पर पाकिस्तान को अपनी हर हरकत की भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। विस्तारवादी चीन के एलएसी पर पहली बार कदम ठिठके हैं। चीन के साथ लगते बॉर्डर पर पुलों और सड़कों का निर्माण कार्य तेजी से किया जा रहा है। सीमा पर भारतीय सेना पूरे साजो-समान के साथ तैनात है। चीन की कुटिल चालें आज उसी के गले की हड्डी बन गयी हैं। समूची दुनिया पाकिस्तान और चीन दोनों देशों के खिलाफ भारत के साथ खड़ी है। भारत एक सम्प्रभु राष्ट्र है इसका सुखद एहसास देश-विदेश में बसे प्रत्येक भारतीय को हो रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी विजिनरी भी हैं और संकल्पवान भी हैं। वे जानते हैं कि भारत को यदि दुनिया का सिरमौर देश बनाना है तो देश में विश्वस्तरीय संरचना खड़ी करनी ही होगी। संसाधनों का रोना रोने से काम चलने वाला नहीं। दृढ इच्छाशक्ति और संकल्प के सामने कोई अभाव टिकने का साहस नहीं कर सकता। रिसर्च एवं इनोवेशन से क्या कुछ हासिल नहीं हो सकता? भारत दुनिया का सर्वाधिक युवा देश है। इसलिए एक सफल नेता की तरह मोदी जी ने अपनी इस जिजीविषा के साथ भारत के युवक/युवतियों को सम्बद्ध कर लिया है। परिणामस्वरूप भारत की युवाशक्ति मोदी सरकार की स्टार्ट-अप इंडिया तथा मुद्रा बैंक जैसी योजनाओं का लाभ उठाते हुए रिसर्च एवं इनोवेशन द्वारा विश्व स्पर्धा में नए-नए आयाम गढ़ नये भारत की उजली तस्वीर पेश कर रही हैं। भारत की इस युवाशक्ति के भरोसे कोरोना जैसी महामारी के संक्रमण काल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ बनाने के आह्वान ने दुनिया के सामने भारत की एकदम नई छवि प्रस्तुत की है। रक्षा क्षेत्र में लगभग 100 उत्पादों के आयात पर रोक लगा दी गई है। मोदी सरकार ने उन्हें भारत में ही बनाने का निर्णय किया है, जिससे आत्मनिर्भर भारत बनाने की मुहिम परवान चढ़ेगी। प्रधानमंत्री मोदी जी के ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘लोकल फॉर ग्लोबल’ की गूंज से भारत में बदलाव की बयार बह निकली है। आज ‘पॉलिटिक्स ऑफ़ परफॉर्मेंस’ भारत की राजनीति का आप्त वाक्य बन चुका है।

लेकिन बड़ा सवाल ये है कि बदलाव की बयार की गति में तेजी लाने, उसे और अधिक प्रभावी बनाने एवं स्थायित्व देने में भारतीय जनता पार्टी के आम कार्यकर्ता की भी कुछ भूमिका हो सकती है क्या? होनी भी चाहिए या नहीं? निर्णय तो भाजपा नेतृत्व को ही लेना है। परन्तु एक कार्यकर्ता के नाते मुझे लगता है कि यदि सरकारें संगठन के बलबूते बनती-बिगड़ती हैं तो राजनीति के माध्यम से समाज और व्यवस्था में सरकारी प्रयत्नों द्वारा लाये जा रहे बदलाव को गति प्रदान करने, उसे और प्रभावी तथा स्थायी बनाने में पार्टी के आम कार्यकर्ता की भी महती भूमिका हो सकती है। हमारी लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली में इसकी व्यवस्था पूर्व से स्थापित है। केंद्र हो या राज्य दोनों में सरकारी योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन तथा प्रशासन को जनता के प्रति जवाबदेह बनाने के उद्देश्य से जनप्रतिनिधियों से विलग राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए कुछ संवैधानिक पद, बोर्ड, समितियां अदि बनाने का प्रावधान है। भाजपा समय-समय पर ऐसी राजनीतिक नियुक्तियां करती भी आ रही है। परन्तु अनुभव में आ रहा है कि किसी ज्ञात अथवा अज्ञात भय के कारण सरकार और संगठन दोनों ही ऐसी नियुक्तियों को निष्प्रभावी बनाये रखने में ही सबकी भलाई मानने लगे हैं, यह शुभ लक्षण नहीं है। भय निवारण के उचित तरीके खोजे जाने चाहिए। आंख बन्द करने से बिल्ली के प्राण नहीं बचते। भाजपा नेतृत्व को उक्त व्यवस्था यदि लोकहित में नहीं लगती तो आज अवसर है ऐसे प्रावधान समाप्त कर दिए जाएं।

2019 के लोकसभा चुनाव में 2014 से ज्यादा लोकसभा सीट पाकर तथा देश के आधे से अधिक राज्यों में भाजपा सरकारों के चलते आज भाजपा को भारत के सुस्थापित शासक दल का दर्जा प्राप्त हो गया। है। यह एक पड़ाव है, मंजिल नहीं। मंजिल पाने के लिए भारतीय जनता पार्टी को लम्बे कालखण्ड तक शासक दल का दर्जा बरकरार रखना होगा। ऐसे में जनप्रतनिधियों के अतिरिक्त अधिक से अधिक अन्यान्य भाजपा कार्यकर्ताओं, समाज के राष्ट्रीय विचार रखने वाले विविध विषय-विशेषज्ञों अदि को शासन/प्रशासन में योग्य दायित्व देना श्रेयस्कर रहेगा। इसके अनेक फायदे होंगे। भाजपा सरकारों की लोककल्याणकारी नीतियों व कार्यक्रमों का अधिक से अधिक लाभ समाज के लक्षित वर्ग को मिल सकेगा। भाजपा कार्यकर्ता को शासन-प्रशासन से व्यवहार करने का प्रशिक्षण प्राप्त होगा। समाज और भाजपा के आम कार्यकर्ता को भारतीय जनता पार्टी के शासक दल होने का एहसास हो सकेगा। समाज एवं भाजपा कैडर में नए उत्साह व उमंग का संचार होगा। कांग्रेस के ईको सिस्टम के दुष्प्रभावों को निष्प्रभावी किया जा सकेगा। फलस्वरूप जहां समाज में भाजपा का जन-समर्थन बढ़ेगा वहीं भारतीय जनता पार्टी की छवि जीवंत संगठन की बनेगी और लम्बे कालखण्ड तक भारतीय जनता पार्टी को देश की जनता का आशीर्वाद प्राप्त होगा।