2 यह दीप अकेला है पर इसको भी पंक्ति को दे दो के आधार पर व्यष्टि का समष्टि में विलय क्यों और कैसे संभव है? - 2 yah deep akela hai par isako bhee pankti ko de do ke aadhaar par vyashti ka samashti mein vilay kyon aur kaise sambhav hai?

यह दीप अकेला है 'पर इसको भी पंक्ति को दे दो' के आधार पर व्यष्टि का समिष्ट में विलय क्यों और कैसे संभव है?

प्रस्तुत कविता में दीप मनुष्य का प्रतीक स्वरूप है। इसमें विद्यमान पंक्ति शब्द समाज का प्रतीक स्वरूप है। दीप को पंक्ति में रखने का तात्पर्य समाज के साथ जोड़ना है। इसे ही व्यष्टि का समिष्ट में विलय कहा गया है। ऐसा होना आवश्यक है। समाज में रहकर ही मनुष्य अपना तथा समाज का कल्याण करता है। इस तरह ही समाज और मनुष्य का कल्याण होता है। जिस तरह दीप पंक्ति में स्थान पाकर अधिक बल से संसार को प्रकाशित करता है, वैसे ही मनुष्य समाज में एकीकार होकर समाज का विकास करता है। दोनों का विलय होना आवश्यक है। उनकी शक्ति का विस्तार है। अकेला व्यक्ति और दीप कुछ नहीं कर सकते हैं। जब वह पंक्ति तथा समाज में विलय होते हैं, तो उनकी शक्ति का विस्तार होता है। अन्य के साथ मिलकर वह अधिक शक्तिवान हो जाते हैं। 

यह दीप अकेला है पर इसको भी पंक्ति को दे दो के आधार पर व्यष्टि का समष्टि में विलय क्यों और कैसे संभव है?

एक दीपक अकेला है 'पर इसको भी पत्नी को दे दो' के आधार पर व्यष्टि का समिष्ट में विलय क्यों और कैसे संभव है? उत्तर: प्रस्तुत कविता में दीपकों मनुष्य के तथा पंक्ति शब्द को समाज प्रतीक के रूप में दर्शाया गया है। दीपकों पंक्ति में रखने का तात्पर्य है मनुष्य को समाज में सम्मिलित करना।

दीप अकेला के प्रतीकार्थ को स्पष्ट करते हुए यह बताइए कि उसे कवि ने स्नेह भरा गर्व भरा एवं मदमाता क्यों कहा है?

जलते हुए दीप की लौ इधर-उधर हिलती रहती है। कवि ने इसे ही मदमाती कहा है। मनुष्य भी मस्ती में इधर-उधर मदमाता रहता है। यही कारण है कि कवि ने उसे स्नेह भरा, गर्व भरा एव मदमाता कहा है।

यह दीप अकेला कविता में दीप किसका प्रतीक है?

> कवि ने अनेक उदाहरण देकर व्यक्ति की सत्ता का समाज में विलय आवश्यक बताया है। दीप मानव का प्रतीक हैं ।

यह दीप अकेला कविता का मूलभाव क्या है?

यह दीप अकेला कविता का सार ' यह दीप अकेला ' में अज्ञेय जी ने दीपक को मनुष्य के प्रतीक के रूप में लिया है। जिस प्रकार पंक्ति में शामिल हो जाने पर एक जगमगाते दीपक का सौंदर्य और महत्व बढ़ जाता है , उसी प्रकार एक व्यक्ति जो अपने आप में स्वतंत्र है प्रेम व करुणा से भरा हुआ है उसकी सार्थकता भी समाज के साथ जुड़कर रहने में है।

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