बेहतर है कि दूध को भोजन के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल न किया जाए। हालांकि, दूध शिशु को पोषक तत्व जैसे कि कैल्शियम प्रदान करता है, मगर यह संपूर्ण भोजन नहीं है।
आपके बच्चे को एक दिन में 350 मि.ली. से 400 मि.ली. दूध चाहिए होता है और इस अनुशंसित मात्रा से अधिक दूध देना सही नहीं है। अधिक मात्रा में दूध पी लेने से शिशु की अन्य भोजन खाने की भूख नहीं रहेगी। इन भोजनों में जरुरी पोषक तत्व जैसे कि आयरन और विटामिन आदि होते हैं।
अधिकांश बच्चे ऐसे चरण से गुजरते हैं जहां वे बहुत कम वैरायटी के भोजन खाते हैं। यह उनके विकास का एक सामान्य हिस्सा है, मगर यह समझना भी जरुरी है कि आपका बच्चा ठीक से खाना क्यों नहीं खाता।
बहुत से अन्य बच्चों कि तरह आपका बच्चा भी शायद खाने की बजाय खेलने में अधिक व्यस्त होगा। वह शायद एक जगह बैठकर अपना खाना चबाने में समय लगाने की बजाय दूध का गिलास फटाफट गटक कर खेलना ज्यादा पसंद करता है।
हो सकता है उसकी तबियत सही न हो या फिर गर्म व उमसभरे मौसम में उसे भूख कम लग रही हो। या फिर संभव है कि वह खाना इसलिए नहीं खाना चाहता क्योंकि उसे आपका ध्यान चाहिए या जबरदस्ती खिलाए जाने की वजह से वह इस तरह प्रतिक्रिया दे रहा है।
एक बार में या एक दिन में आपका बच्चा कितना खाना खा रहा है इसे लेकर अधिक परेशान न हो। इसकी बजाय यह देखें कि एक सप्ताह में वह क्या खा रहा है।
आपका बच्चा यदि ऐसे ही चिड़चिड़ा हो रहा है और आप जो खाना खिला रही हैं वह खाना नहीं चाहता तो उसे अपना खेल खेलने दें। जब वह भूखा होकर आपके पास खाने के लिए आए तो उसे वही खाना दोबारा खिलाएं।
यदि हर बार बच्चे के ठीक से खाना न खाने पर या खाना पसंद न आने पर आप उसे दूध पिलाएंगी तो आप उसमें खाने की गलत आदतें विकसित कर रही हैं। बच्चा जब भी कुछ खाना चाहे तो आप उसे हर बार खाना ही खिलाएं। इस तरह उसे प्लेट में दिए गए भोजन को खाना आएगा। बच्चे की पसंद-नापसंद के अनुसार चलने से आप बच्चे को केवल उसकी पसंद की सीमित चीजें खाने के लिए बढ़ावा दे रही हैं।
परिवार के अन्य सभी सदस्यों को और बच्चे को जो खाना खिलाता है उन सभी को यही तरीका अपनाने के लिए कहें।
अपने बच्चे को मुख्य भोजन समूहों में से विस्तृत भोजन देती रहें ताकि खाने की अच्छी आदतों को बढ़ावा मिले।
यदि आप अब भी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि आपका बच्चा कितना कम खाता है, तो डॉक्टर से बात करें। वे आपके बच्चे का वजन और कद देख सकते हैं और आमतौर पर आपको आश्वस्त करते हैं कि कोई समस्या नहीं है।
अंग्रेजी के इस लेख से अनुवादित: Is it okay to substitute proper meals with milk if my child isn't eating well?
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बच्चों में अक्सर यह शिकायत देखने को मिलती है कि वह कुछ खाते नहीं। माताएं प्राय: डॉक्टर से यही बताती हैं कि उनके बच्चे की खाने में रुचि नहीं है व बच्चे का सही शारीरिक विकास नहीं हो रहा है। अलग-अलग उम्र में इसके अलग-अलग कारण होते हैं। इन्हें समझकर धैर्य के साथ इसका समाधान आसानी से संभव है।
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक जन्म से छह माह की उम्र तक हर शिशु को सिर्फ स्तनपान ही कराना चाहिए। इससे अतिरिक्त आहार की न तो शिशु को आवश्यकता होती है और न पचाने की क्षमता। पहले छह माह में दिए गए अनुपयुक्त ठोस आहार से बच्चे में विभिन्न प्रकार की एलर्जी हो सकती है।
छह माह पूर्ण होने के बाद धीरे-धीरे ठोस आहार देना शुरू करें। दलिया, खीर, हलवा, दाल आदि से इसकी शुरुआत करें। इनकी शुरुआत धीरे-धीरे एक-एक करके ही करें। शुरू से ही रोज खाद्य पदार्थ बदलने से बच्चा सब पदार्थ पलटने लगता है।
आठ-दस महीने की उम्र में बच्चा दांत निकलने व मसूढ़े सूजने की वजह से असहज महसूस करता है। इस समय बच्चों को मुलायम खाद्य पदार्थ खिलाने चाहिए। मसूढ़ों पर शहद मलने के साथ ही टीथर भी दे सकती हैं।
एक से डेढ़ साल के बीच बहुत से बच्चों में खाने में रुचि समाप्त हो जाती है, जिसका कोई कारण नहीं दिखता। बच्चा पहले जैसा नहीं खाता, पर उसका विकास फिर भी सामान्य रहता है। ऐसे में अभिभावकों को धैर्य बनाए रखना चाहिए व बच्चे को उसके स्वादानुसार खाना बदल-बदल कर खिलाएं।कभी भी खाना जोर जबरदस्ती से या मार-पीटकर न खिलाएं। ऐसा करने से आपका लाडला खाने से और दूर भागेगा।
खाना लेकर उसके पीछे भागने से बेहतर है कि आप खाना खाने को एक सुखद अहसास बनाएं। बच्चे को खेल-खेल में थोड़ा-थोड़ा खिलाएं। उसकी अलग आकर्षक थाली सजाएं व उसे स्वयं खाने के लिए प्रेरित करें। बच्चा थोड़ा खाना खाएगा, थोड़ा गिराएगा। इस तरह धीरे-धीरे खाने में उसकी रुचि बन जाएगी।
बड़े बच्चों में खाना न खाना अक्सर आदतन होता है। वे प्राय: अपनी भूख को बाजार के चिप्स, नूडल्स, बर्गर, कोल्ड ड्रिंक, बिस्कुट आदि से मिटाते हैं। ये पदार्थ चटपटे और कैलोरीज से भरे होते हैं। इसलिए थोड़ी मात्रा में खाने पर भी इनसे भूख मिट जाती है, लेकिन बच्चे को पोषण नहीं मिल पाता और वह कमजोर रह जाता है। यही नहीं आगे चलकर उनमें विभिन्न बीमारियां व शारीरिक कमियां जन्म लेती हैं। इसलिए आवश्यक है कि ऐसी सूरत में सख्ती बरती जाए व इन वस्तुओं का सेवन कम से कम किया जाए। बच्चों को सहज तरीके से इनके कुप्रभाव बताए जाएं व अच्छी सेहत की ओर प्रेरित किया जाए।
यदि उपरोक्त उपायों के बावजूद आपका बच्चा कुछ नहीं खाता या उसका वजन नहीं बढ़ता तो किसी अच्छे बालरोग विशेषज्ञ की सलाह लें। हो सकता है कि उसके शरीर में कुछ पोषक तत्वों की कमी हो, जिसे पूरा करके उसे अच्छी सेहत की राह पर पुन: लाया जा सके।
याद रखें एक सेहतमंद बच्चा ही विभिन्न बीमारियों से लड़ सकता है और तभी उसका संपूर्ण मानसिक विकास भी संभव है।
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Edited By: Babita kashyap