विद्युत जनरेटर क्या है यह किस सिद्धांत पर कार्य करता है? - vidyut janaretar kya hai yah kis siddhaant par kaary karata hai?

डीसी जनित्र किसे कहते है | डीसी जनित्र सिद्धांत | फ्लेमिंग के दाएँ हाथ का नियम क्या है | विद्युत वाहक बल समीकरण | स्व उत्तेजना के आधार पर जनित्र का वर्गीकरण | कम्यूटेशन किसे कहते है | डीसी जनित्र की हानियॉ | डीसी जनरेटर किस सिद्धांत पर कार्य करता है |

डीसी विद्युत जनित्र

प्रमुख बिंदु - देखे

1 डीसी जनित्र किसे कहते है ?

2 डीसी विद्युत जनित्र कौनसे सिद्धांत पर कार्य करता है ?

3 फ्लेमिंग के दाएँ हाथ का नियम क्या है ?

4 विद्युत वाहक बल समीकरण क्या है ?

5 स्व उत्तेजना के आधार पर जनित्र का वर्गीकरण :-

5.1 सीरीज जनित्र:-

5.2 शन्ट जनित्र:-

5.3 कम्पाउंड जनित्र:-

5.3.1 लॉग शन्ट:-

5.3.2 शॉर्ट शन्ट:-

5.4 कम्युलेटिव कम्पाउंड जनित्र:-

5.5 ओवर कम्पाउंड जनित्र:-

5.6 लेवल कम्पाउंड जनित्र:-

5.7 अण्डर कम्पाउंड जनित्र:-

5.8 डिफरेंशियल कंपाउंड जनित्र:-

6 आर्मेचर रिएक्शन क्या होता है ?

6.1 आर्मेचर रिएक्शन दो प्रकार का होता है-

6.1.1 आर्मेचर चुंबकीय प्रभाव :-

6.1.2 आर्मेचर विचुम्बकीय प्रभाव:-

7 कम्यूटेशन किसे कहते है ?

8 कम्यूटेशन कितने प्रकार का होता है ?

9 स्पार्किंग किसे कहते है ?

9.1 विधुत स्पार्किंग को कम कैसे करें

10 इन्टरपोल क्या है ?

11 डीसी जनित्र की हानियॉ ?

11.1 ताम्र हानि:-

11.2 लौह हानि:-

11.2.1 1. शैथिल्य हानि:-

11.2.2 2. भंवर धारा हानि:-

11.3 यांत्रिक हानि:-

11.4 जनित्र अधिकतम दक्षता कब होती है ?

डीसी जनित्र किसे कहते है ?

वह मशीन जो यांत्रिक ऊर्जा को डीसी प्रकार की विद्युत ऊर्जा में बदलती है उसे डीसी जनित्र करते है |

डीसी विद्युत जनित्र कौनसे सिद्धांत पर कार्य करता है ?

डीसी जनित्र फैराडे के विद्युत चुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है इसके अनुसार किसी धारावाही चालक द्वारा चुंबकीय क्षेत्र को काटा जाता है तो उसमें विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है |

फ्लेमिंग के दाएँ हाथ का नियम क्या है ?

विद्युत वाहक बल की दिशा ज्ञात करने के लिए फ्लेमिंग के दाएं हाथ का नियम का प्रयोग किया जाता है |
अंगूठा – गति
तर्जनी – चुंबकीय क्षेत्र की दिशा
मध्यमा – विद्युत वाहक बल की दिशा
इसमें अंगूठा तर्जनी व मध्यमा तीनों पर्सपर पर 90 डिग्री के कोण पर स्थित होते है |

विद्युत वाहक बल समीकरण क्या है ?

E = ZNP/60A

Z = चालकों की संख्या
N = घूर्णन गति (rpm) में
P= पोलो की संख्या
A = समांतर पोलो की संख्या
Note – DC जनित्र का छोटा भाग डायनेमो कहलाता है |

सिंगल फेज इंडक्शन मोटर – जानिए स्टार्टर, कनेक्शन, वाइंडिंग –

स्व उत्तेजना के आधार पर जनित्र का वर्गीकरण :-

सीरीज जनित्र:-

  • सीरीज जनित्र में आर्मेचर फील्ड वाइंडिंग तथा लोड तीनों श्रेणी क्रम में संयोजित होते होता है |
  • फील्ड वाइनिंग मोटे तार से बनाई जाती है जिससे लपेटे कम होते हैं अतः प्रतिरोध भी कम होता है |
  • इसका टर्मिनल वोल्टेज लोड परिवर्तन होने पर परिवर्तित होता है |
  • कभी भी सीरीज जनित्र को बिना लोढ के संयोजित किए चालू नहीं करना चाहिए |
  • इसका उपयोग डीसी पारेषण लाइनों में बूस्टर के रूप में किया जाता है |

शन्ट जनित्र:-

  • इसमें फील्ड वाइनिंग आर्मेचर तथा लोड तीनों समांतर क्रम में स्थापित होते है |
  • शन्ट जनित्र को लोड से संयोजित कर चालू नहीं करना चाहिए क्योंकि लोड से सयोजित होने पर विद्युत धारा इससे अधिक प्रवाहित होती है तथा फील्ड वाइंडिंग में कम प्रवाहित होती है जिसके कारण शन्ट फील्ड वाइनिंग चुंबकीय क्षेत्र स्थापित नहीं कर पाती है |
  • इस जनित्र का उपयोग सेंट्रीफ्यूगल पंप, बैटरी चार्जिंग, इलेक्ट्रोप्लाटिंग, वेल्डिंग में किया जाता है |
  • लोड परिवर्तन होने पर टर्मिनल वोल्टेज इसमें लगभग स्थिर रहता है |

कम्पाउंड जनित्र:-

  • यह सीरीज तथा शन्ट जनित्र का मिश्रित रूप है |

कम्पाउंड जनित्र दो प्रकार के होते है- लॉग शन्ट तथा शॉर्ट शन्ट

लॉग शन्ट:-

  • इसमें शन्ट वाइनिंग आर्मेचर तथा सीरीज फील्ड वाइनिंग दोनों के समांतर क्रम में होती है |
  • इसमें टर्मिनल वोल्टेज लगभग स्थित रहता है अर्थात लोड परिवर्तन से प्रभावित नहीं होता है |

शॉर्ट शन्ट:-

  • इसमें शन्ट वाइंडिंग केवल आर्मेचर के समांतर क्रम में होती है |
  • इसमें सीरीज फील्ड वाइंडिंग द्वारा पैदा किया गया चुंबकीय क्षेत्र का मान पूर्ण लोड करंट पर निर्भर करता है अर्थात लोड शुन्य होने पर चुंबकीय क्षेत्र का मान भी शुन्य और लोड अधिक होने पर चुंबकीय क्षेत्र का मान भी अधिक होता है |
  • लोड परिवर्तन होने पर टर्मिनल वोल्टेज में परिवर्तन होता है |

डीसी विद्युत जनित्र

कम्युलेटिव कम्पाउंड जनित्र:-

इसमें सीरीज फील्ड तथा शन्ट फील्ड द्वारा उत्पन्न चुंबकीय फ्लक्स एक दूसरे का सहायक होता है |

ओवर कम्पाउंड जनित्र:-

  • इसमें लोड बढ़ने पर टर्मिनल वोल्टेज थोड़ा सा बढ़ता है |
  • इसमें सीरीज वाइंडिंग बड़ी रखी जाती है इस प्रकार के जनित्र का उपयोग स्ट्री ट लाइट तथा रेलवे में किया जाता है जहां पर लोड स्रोत से पर्याप्त दूरी पर हो |

CRO किसे कहते है – जानिए इसके कार्य, उपयोग, मुख्य भाग –

लेवल कम्पाउंड जनित्र:-

  • इसमें लोड बढ़ने पर टर्मिनल वोल्टेज लगभग स्थिर रहता है |
  • इसमें सीरीज फील्ड वाइनिंग को ओवर कम्पाउंड की तुलना में थोड़ा छोटा रखा जाता है |
  • इसका उपयोग लेथ मशीन में तथा नजदीक विद्युत सप्लाई प्रदान करने में किया जाता है |

अण्डर कम्पाउंड जनित्र:-

इसमें लोड बढ़ने पर टर्मिनल वोल्टेज घटता है इसका उपयोग इलेक्ट्रो प्लेटिंग तथा लाइटिंग में किया जाता है |

डिफरेंशियल कंपाउंड जनित्र:-

लोड बढ़ने पर इसमें टर्मिनल वोल्टेज एकाएक घटता है इस कारण इसका उपयोग आर्क वेल्डिंग में किया जाता है |

आर्मेचर रिएक्शन क्या होता है ?

आर्मेचर रिएक्शन आर्मेचर के द्वारा स्थापित चुंबकीय क्षेत्र का मुख्य चुंबकीय क्षेत्र में एक विक्षेप पैदा कर देता है |

आर्मेचर रिएक्शन दो प्रकार का होता है-

आर्मेचर चुंबकीय प्रभाव :-

  • आर्मेचर चालको द्वारा यदि स्थापित किया हुआ चुंबकीय क्षेत्र MNA के खिस्कने के कारण कही पर अधिक और कहीं पर कम हो जाता है जिससे चुंबकीय सामर्थ्य का मान घट जाता है |
  • मुख्य चुंबकीय क्षेत्र तथा आर्मेचर क्षेत्र के प्रभाव का संयुक्त रूप में यह LPT के पास कमजोर हो जाता है तथा TPT के पास अधिक मजबूत हो जाता है |
  • इस प्रभाव के निवारण के लिए कार्बन ब्रुशो को GNA स्थिति से MNA स्थिति में खिस्का दिया जाता है यह कार्य ब्रश होल्डर से जुड़े रॉकर आर्म की सहायता से किया जाता है |
  • कार्बन ब्रश या तो MNA पर या MNA के नजदीक रखा जाता है जहां पर विद्युत वाहक बल अधिक प्राप्त हो तथा ब्रुशो में स्पार्किंग कम हो |

आर्मेचर विचुम्बकीय प्रभाव:-

  • LTP पर चुंबकीय फ्लक्स का मान कम तथा TPT पर चुंबकीय फ्लक्स का मान अधिक इसमे आर्मेचर के घूमने पर चुंबकीय फ्लक्स का मान घटता बढ़ता रहता है |
  • जिससे के कारण विद्युत वाहक बल भी कम ज्यादा होता है इसकी दोष के निवारण के लिए छोटी मशीन में सीरीज फील्ड वाइंडिंग में एंपियर टर्न की संख्या बढ़ा दी जाती है तथा बड़ी मशीनों में कम्पनसेटिंग वाइंडिंग का प्रयोग किया जाता है |
  • कम्पनसेटिंग आर्मेचर वाइंडिंग में उत्पन्न चुंबकीय फ्लक्स को समाप्त किया जाता है इसलिए कम्पनसेटिंग वाइनिंग सदैव आर्मेचर के श्रेणी क्रम में संयोजित होती है |

कम्यूटेशन किसे कहते है ?

जब कार्बन ब्रश कम्यूटेशन के एक सेगमेंट (खण्ड) से दूसरे खण्ड पर जाता है तो विद्युत धारा के प्रवाह की दिशा बदल जाती है जिसके कारण स्पार्किंग होती है |

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कम्यूटेशन कितने प्रकार का होता है ?

कम्यूटेशन दो प्रकार का होता है-

  1. रफ कम्यूटेशन 2. स्मूथ कम्यूटेशन

स्पार्किंग किसे कहते है ?

चालकों में विद्युत धारा के प्रवाह के एकाएक रुक जाने अथवा दिशा परिवर्तन करने से इलेक्ट्रॉन अनियंत्रित होकर बाहर की तरफ गिरते है इसे इस स्पार्किंग कहते हैं |

विद्युत जनरेटर क्या है या किस सिद्धांत पर कार्य करता है?

विद्युत जनित्र (इलेक्ट्रिक जनरेटर) एक ऐसी युक्ति है जो यांत्रिक उर्जा को विद्युत उर्जा में बदलने के काम आती है। इसके लिये यह प्रायः माईकल फैराडे के विद्युतचुम्बकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction) के सिद्धान्त का प्रयोग करती है। विद्युत मोटर, इसके विपरीत विद्युत उर्जा को यांत्रिक उर्जा में बदलने का कार्य करती है।

विद्युत जनरेटर क्या है यह किस सिद्धांत पर कार्य करता है इसके निर्माण और कार्यप्रनाली का वर्णन करें?

विद्युत जनित्र में एक घूर्णी आयताकार कुंडली ABCD होती है जिसे किसी स्थाई चुंबक के दो ध्रुवों के बीच रखा जाता है। इस कुंडली को दो सिरों दो वलयो R1 तथा R2 से संयोजित होते हैं। इन दोनों वलयों का भीतरी भाग विद्युत रोधी होता है दो स्थिर चालक ब्रुशो B1 तथा B2 को पृथक पृथक रूप से क्रमश वलयों R1 तथा R2 दबाकर रखा जाता है।

डायनेमो क्या है इसके सिद्धांत और क्रिया विधि का सचित्र वर्णन करें?

डायनेमो में घूर्णन करती हुई तारों की कुंडली और चुम्बकीय क्षेत्र का उपयोग करके यांत्रिक घूर्णन की ऊर्जा को फैराडे के नियम के अनुसार दिष्ट विद्युत धारा में रूपान्तरित किया जाता है। डायनेमो में एक स्थिर सरंचना होती है, जिसे 'स्टेटर' कहा जाता है, जो एक स्थिर चुम्बकीय क्षेत्र उपलब्ध कराती है।

विद्युत जनित्र कैसे कार्य करता है?

विद्युत् जनित्र का मूल सिद्धान्त- विद्युत् जनित्र का सिद्धान्त विद्युत् चुम्बकीय प्रेरण की परिघटना पर आधारित है जिसके आधार पर जब किसी कुण्डली के तल पर चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है तो उस कुण्डली में प्रेरित विद्युत् धारा प्रवाहित होती है और इस प्रकार यान्त्रिक ऊर्जा को विद्युत् ऊर्जा में परिवर्तित करने का कार्य ...

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