लगभग ५०० ईसापूर्व यूनान के लोगों द्वारा वर्षा की मात्रा का व्यौरा (रेकार्ड) रखने की पुष्टि हुई है। उसके लगभग सौ वर्ष बाद भारत में भी कटोरा का प्रयोग करके वर्षा की मात्रा मापने के बारे में जानकारी है। इस तरह के आंकड़े का प्रयोग संभावित विकास के बारे में भविष्यवाणी करने एवं उसके अनुसार भू-कर लगाने के काम आता था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में इस तरह के प्रमान मौजूद हैं।
सन् १६६२ ई में ब्रिटेन के क्रिस्टोफर रेन (Christopher Wren) ने पहला टिपिंग बकेत वर्षामापी (tipping-bucket rain gauge) विकसित किया।
वर्षा की माप मिलीमीटर में की जाती है। इसका सिद्धान्त बहुत सरल है। इसके लिये एक चौड़े मुंह का बर्तन प्रयोग में लाया जाता है जिसका पेंदी से लेकर उपर तक का क्राससेक्शन समान हो। इसको ऐसी जगह पर रख दिया जाता है जहाँ वर्षा का जल बिना किसी व्यवधान के इसमें गिरता रहे। किसी निर्धारित समयावधि में इसमें एकत्र द्रव (पानी) की उँचाई ही उस अवधि में वर्षा की माप कहलाती है।
कई तरह के वर्षामापी उपयोग में आते हैं। इनमें चिन्हांकित बेलन (graduated cylinder), भाराधारित वर्षामापी (weighing gauges), टिपिंग बकेट वर्षामापी (tipping bucket gauges) तथा भूमिगत गड्ढे (buried pit collectors) शामिल हैं।
बारिश को कैसे मापा जाता है (Barish Ko Kaise Napa Jata Hai), बारिश/ वर्षा को मापने के लिए एक खास तरह का यंत्र इस्तेमाल किया जाता है जिसका नाम है रेन गेज मापन यंत्र (Rain gauge meter/ Symons rain gauge meter ) है। सामान्य तौर पर यह यंत्र खुले और ऊंचे स्थान पर लगाया जाता है। यंत्र को लगाने के लिए जो स्थान चुना जाता है उसमें इस बात का ध्यान रखा जाता है कि आस-पास कोई पेड़ ऊंची दीवार ना हो ऐसा करने के पीछे खास वजह यह है कि बारिश का पानी किसी वास्तु से टकराने के बजाय सीधे इस यंत्र में आकर गिरे। जिससे बारिश की मात्रा को सही तरह से मापा जा सके।
जानिए पोस्ट में क्या है
- बारिश को कैसे मापा जाता है (Barish Ko Kaise Napa Jata Hai)
- रेन गेज मापन यंत्र कैसा होता है?
- बारिश वर्षा को मापने का तरीका
- FAQ
बारिश को कैसे मापा जाता है (Barish Ko Kaise Napa Jata Hai)
रेन गेज मापन यंत्र कैसा होता है?
साल 1662 में क्रिस्टोफर ब्रेन ने पहला रेन गेज वर्षा मापी यंत्र बनाया था। रेन गेज मापन यंत्र सिलेंडर नुमा आकार का होता है जिसमें ऊपरी सिरे पर एक कीप लगी होती है। कीप की मदद से बारिश का पानी सीधा सिलेंडर नंबर यंत्र में गिरता है। वर्षा मापी यंत्र कई प्रकार के होते हैं इन्हें अधिकतर मिलीमीटर या सेंटीमीटर में मापा जाता है।
बारिश वर्षा को मापने का तरीका
कौन से इलाके में कितनी मात्रा में बारिश हुई है जब इसको मापना होता है तब बाहर के सिलेंडर को खोलकर बोतल में जमा पानी को कांच के बने एक बीकर में डाल दिया जाता है इस कांच के बीकर पर मिलीमीटर के नंबर अंकित रहते हैं।
जितना मिलीमीटर पानी बीकर में आता है वह बारिश का माप होता है इसका मतलब यह है कि जितना ज्यादा मिली मीटर में माप है बारिश उतनी अधिक हुई है। मानसून के समय दिन में दो बार बारिश को मापा जाता है। मापने का समय है सुबह के 8:00 बजे और शाम को 5:00 बजे।
बारिश मापने का यंत्र क्या है?
प्लविओमीटर वर्षा नापने का यंत्र हैं. यह वर्षा की मात्रा को मापने के लिए उपयोग में लाए जाने वाला एक साधन हैं. इसे इंग्लिश में Pluviometer कहते हैं.
आइये जानते हैं इनकी संरचना को.
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July 04, 2016Raj Kumarscienceअधिकतर रेन गॉग में वर्षा मिलीमीटर में ही मापी जाती है। 1662 में क्रिस्टोफर व्रेन ने ब्रिटेन में पहला रेन गॉग बनाया था। रेन गॉग यंत्र में एक फनल होती है जिसमें वर्षा जल के इकट्ठा होने से कितनी वर्षा हुई है इसका पता लगाया जाता है।
हालाँकि रेन गॉग हमेशा बारिश का सही जानकारी दे यह जरूरी नहीं है क्योंकि कई बार बहुत तेज तूफान के साथ बारिश होने पर जानकारी लेना असंभव हो जाता है। ऐसे में यंत्र में ही टूट-फूट होने की आशंका रहती है। इसके साथ रेन गॉग किसी एक निश्चित स्थान की वर्षा को मापने में ही प्रयोग किया जा सकता है, बहुत ज्यादा बड़े इलाके की वर्षा रेन गॉग से नहीं मापी जा सकती है।
रेन गॉग को पेड़ और इमारत से दूर रखा जाता है ताकि वर्षा का मापन ठीक-ठीक हो सके। ओले या बर्फबारी के समय भी रेन गॉग से वर्षा का मापन नहीं हो पाता है।
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अधिकतर रेन गॉग में वर्षा मिलीमीटर में ही मापी जाती है। 1662 में क्रिस्टोफर व्रेन ने ब्रिटेन में पहला रेन गॉग बनाया था। रेन गॉग यंत्र में एक फनल होती है जिसमें वर्षा जल के इकट्ठा होने से कितनी वर्षा हुई है इसका पता लगाया जाता है।
हालाँकि रेन गॉग हमेशा बारिश का सही जानकारी दे यह जरूरी नहीं है क्योंकि कई बार बहुत तेज तूफान के साथ बारिश होने पर जानकारी लेना असंभव हो जाता है। ऐसे में यंत्र में ही टूट-फूट होने की आशंका रहती है। इसके साथ रेन गॉग किसी एक निश्चित स्थान की वर्षा को मापने में ही प्रयोग किया जा सकता है, बहुत ज्यादा बड़े इलाके की वर्षा रेन गॉग से नहीं मापी जा सकती है।
रेन गॉग को पेड़ और इमारत से दूर रखा जाता है ताकि वर्षा का मापन ठीक-ठीक हो सके। ओले या बर्फबारी के समय भी रेन गॉग से वर्षा का मापन नहीं हो पाता है।