विरह का सर्प वियोगी की क्या दशा कर देता है ? - virah ka sarp viyogee kee kya dasha kar deta hai ?

कबीर ने प्रस्तुत साखियों में दैनिक जीवन के महत्त्वपूर्ण पहलुओं को अभिव्यक्त किया है । उन्होंने मधुर वचन के महत्त्व , मनुष्य की प्रवृत्ति , प्रेम के महत्त्व , आलोचकों की उपयोगिता आदि को विशेष रूप से उजागर किया है , साथ ही अहंकार के त्याग , प्राणी मात्र से प्रेम , सांसारिक सुखों और वासनाओं के त्याग पर भी बल दिया है ।

कबीर ने ईश्वर के प्रति प्रेम की उस प्रक्रिया को भी प्रदर्शित किया है , जिसके विरह में साधक का जीवन निरर्थक हो जाता है । उन्होंने स्पष्ट किया है कि सांसारिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए सांसारिक सुख – सुविधाओं का त्याग कर , प्राणी मात्र से प्रेम करना होगा । इस प्रकार , प्रस्तुत साखियों के माध्यम से कबीर ने जन – सामान्य को सीख देने का प्रयास किया है ।

कस्तूरी मृग की नाभि में होती है, पर मृग को इस विषय में ज्ञान न होने के कारण वो उसे पूरे वन में तलाशता है |

मीठी वाणी से सुनने वाले तथा बोलने वाले दोनों को ही सुख मिलता है इसलिए सदा मीठी वाणी बोलनी चाहिए |

कबीर की साखियाँ हमें जहाँ व्यावहारिक ज्ञान देती हैं, वहीं हमें जीवन मूल्यों से भी परिचित करवाती हैं | ईश्वर कहीं और नहीं बल्कि मनुष्य के ह्रदय तथा संसार के कण-कण में बसता है इसलिए उसकी प्राप्ति के लिए कर्मकांडों,आडम्बरों की नहीं , सच्ची भक्ति की आवश्यकता होती है | ऐसी जीवनोपयोगी शिक्षाएँ हमें कबीर की साखियों से मिलती हैं |

विरह एक ऐसे सर्प के सामान है जो अगर किसी को जकड ले,तो उसे कोई मात्रा भी मुक्ति नहीं दिला सकता | ईश्वर की विरह में भक्त भी या तो प्राण त्याग देता है या विक्षिप्त (पागल) हो जाता है |

कबीर कहते हैं कि निंदक को अपने आँगन में कुटिया बनवाकर रखना चाहिए |

Class 10 Hindi B - Kabir Ki Sankhiyan Questions - Answers 

कवि – कबीरदास

जन्म – 1938 (लहरतारा, काशी)

मृत्यु – 1518 मगहर, उत्तर प्रदेश

कबीरदास ने साखियों के माध्यम से सहज ,सरल और आडम्बर विहीन जीवन का सन्देश दिया है। इन साखियों में कबीर ईश्वर प्रेम के महत्त्व को प्रस्तुत कर रहे हैं। 

प्रश्न १ :  संसार में कौन दुखी है और कौन सुखी है?

उत्तर : संसार के विषय - विकारों में लिप्त मनुष्य ईश्वर को भूल, खाने और सोने में मस्त है, उसके लिए सांसारिक भोग विल्लास ही सत्य है | वह इसी को सुख मानकर खुश है जबकि कबीर को संसार की असारता का ज्ञान है, जिसकी वजह से वह संसार की दुर्दशा देखकर दुःखी होते हैं और रोते रहते है| 

प्रश्न २:  निंदक के समीप रहने से क्‍या लाभ होता है?

उत्तर : जिस तरह साबुन व पानी वस्त्र से सारे दाग निकल देते हैं,उसी तरह निंदक भी हमारी कमियों से अवगत करता है और यदि हम उन कमियों को दूर कर लें तो हमारा स्वभाव भी वस्त्र के सामान निर्मल हो जाता है | 

प्रश्न ३ : विरह का सर्प वियोगी की क्या दशा कर देता है?  

उत्तर : विरह एक ऐसे सर्प के सामान है जो अगर किसी को जकड ले,तो उसे कोई मात्रा भी मुक्ति नहीं दिला सकता । ईश्वर की विरह में भक्त भी या तो प्राण त्याग देता है या विक्षिप्त (पागल्र) हो जाता है।

प्रश्न ४: “एके आषिर पीव का पढ़े सु पंडित होय” से कबीर क्या शिक्षा देना चाहते हैं ?  

उत्तर : कबीर कहते हैं कि मोटे-मोटे ग्रन्थ और ज्ञान की पुस्तकें पढ़कर भी यदि मनुष्य मैं जीवों के प्रति दया और प्रेम का भाव नहीं है तो वह ज्ञानी व विद्वान कहलाने योग्य  नहीं है, जबकि जो मनुष्य, भले ही अनपढ़ है, पर दया और परोपकार जैसे मानवीय गुणों से युक्त है, वहीं सच्चा पंडित है|

प्रश्न ५ : कबीर की भाषा पर प्रकाश डालिए |  

उत्तर : कबीर की भाषा को 'सधुक्कड़ी भाषा ' अर्थात साधुओं की भाषा कहा जाता है | घुमक्कड़ प्रवृत्ति के कारण साधुओं की भाषा में विभिन्‍न भाषाओं के शब्दों का समावेश स्वतः ही हो जाता था | इसे “खिचड़ी या पंचमेल खिचड़ी" नाम भी दिया जाता है |  कबीर की भाषा में भी पंजाबी, ब्रजभाषा, पूर्वी हिंदी, खड़ी बोली, भोजपुरी, राजस्थानी आदि भाषाओं के शब्द मिलते हैं | इसमें जहाँ संस्कृत के तत्सम शब्द मिलते हैं, वहीं अरबी-फारसी, उर्दू के शब्द भी मिल जाते हैं | यही विशिष्टता कबीर की भाषा को सरल, स्वाभाविक, बोधगम्य और लोकप्रिय बनाती है |

प्रश्न ६: निम्नलिखित का भावार्थ लिखिए | 

ऐसी बाँणी बोलिये, मन का आपा खोइ |
अपना तन सीतल करै, औरन कौं सुख होइ ||

उत्तर

भावार्थ -  प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि कबीर की साखी से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कबीर कहते हैं कि हमें सदैव दूसरों के साथ सद्व्यवहार करना चाहिए, जिससे उसे हमारी बातों या व्यवहार से किसी प्रकार का दुःख न पहुँचे | इससे हमारा मन भी शांत रहेगा और सुनने वाले को भी सुख और शान्ति की अनुभूति होगी | कबीर मीठी भाषा का प्रयोग करने की सलाह देते हैं ताकि दूसरों को सुख और और अपने तन को शीतलता प्राप्त हो।

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विरह रुपी सर्प के होने पर क्या स्थिति होती है?

Answer: इस कविता का भाव है कि जिस व्यक्ति के हृदय में ईश्वर के प्रति प्रेम रुपी विरह का सर्प बस जाता है, उस पर कोई मंत्र असर नहीं करता है। अर्थात भगवान के विरह में कोई भी जीव सामान्य नहीं रहता है। उस पर किसी बात का कोई असर नहीं होता है।

विरह रूपी साँप कहाँ छिपा बैठा है?

व्याख्या- विरह रूपी सर्प शरीर की बांबी में घुसा बैठा है, उसे कोई भी मंत्र (साधक) बाहर निकालने में समर्थ नहीं हो सकता । प्रभु का वियोगी तो जीवित ही नहीं रह सकता, वह जीवन मुक्त हो जाता है और यदि जीवित रहता है तो सांसारिक कर्तव्यों आदि से पूर्ण असम्पृक्त हो जाता है जिसे लोग पागल कहने लगते हैं।

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