परिभाषा – भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 124 के अनुसार “वह संविदा, जिसके द्वारा एक पक्षकार दूसरे पक्षकार को स्वयं वचनदाता के आचरण से या किसी अन्य व्यक्ति के आचरण से उस दूसरे पक्षकार को हुई हानि से बचाने का वचन देता है, क्षतिपूर्ति की संविदा (contract of indemnity) कहलाती है।”
सरल भाषा में कहा जा सकता है कि क्षतिपूर्ति की संविदा में एक पक्षकार दूसरे पक्षकार को स्वयं वचनदाता के आचरण से या किसी अन्य व्यक्ति के आचरण से उस दूसरे पक्षकार को हुई हानि से बचाने का वचन देता है।
उदाहरणार्थ – ‘क’ ऐसी कार्यवाहियों के परिणामों के लिए जो ‘ग’ 200 रुपये की अमुक राशि के सम्बन्ध में ‘ख’ के विरुद्ध चलाये, ‘ख’ की क्षतिपूर्ति करने की संविदा करता है। यह क्षतिपूर्ति की संविदा है।
सामान्यतः बीमा की संविदायें, अग्नि बीमा की संविदायें इसी प्रकार की संविदायें ‘स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया बनाम प्रेमदास (ए.आई.आर. 1998 दिल्ली 49) के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि किसी व्यक्ति द्वारा अर्थात गारन्टर द्वारा किसी ऋण के संदाय बाबत गारन्टी देकर गारन्टी – विलेख पर हस्ताक्षर करना क्षतिपूर्ति की संविदा (contract of indemnity) है।
‘न्यू इंडिया एश्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड बनाम स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन ऑफ इण्डिया’ (ए.आई.आर. 2007 एन.ओ.सी. 517 गुजरात) के मामले में गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि – जीवन एवं वैयक्तिक दुर्घटना बीमाओं की संविदाओं को छोड़कर शेष सभी प्रकार के बीमाओं की संविदाएँ क्षतिपूर्ति की संविदा हैं।
इनमें प्रतिवादी द्वारा क्षतिपूर्ति का वचन दिया जाना निरपेक्ष माना जाता है। ऐसे मामलों में वास्तविक क्षति नहीं होते हुए भी वचन का पालन करने में असफल रहने पर वाद लाया जा सकता है।
भारतीय विधि में आंग्ल विधि की अपेक्षा क्षतिपूर्ति की संविदा (contract of indemnity) को अत्यन्त सीमित रूप में परिभाषित किया गया है। इस धारा में केवल एक ही प्रकार की क्षतिपूर्ति का उल्लेख किया गया है जो क्षतिपूरक द्वारा की गई इस प्रतिज्ञा से उत्पन्न होती है कि वह दूसरे पक्षकार की रक्षा स्वयं अपने आचरण का किसी अन्य व्यक्ति के आचरण से हुई हानि से करेगा|
इसमें उन दशाओं का उल्लेख नहीं है, जिनमें हानि घटनाओं या दुर्घटनाओं द्वारा होती है जो क्षतिपूरक के आचरण या किसी अन्य व्यक्ति के आचरण पर निर्भर नहीं होती या जो क्षतिपूरित द्वारा क्षतिपूरक के अनुरोध पर कुछ करने से उत्पन्न हुए उत्तरदायित्व से होती है।
क्षतिपूर्ति की संविदा के आवश्यक तत्व –
क्षतिपूर्ति की संविदा में दो पक्षकार होते हैं क्षतिपूर्तिकर्ता (Indemnifier) तथा क्षतिपूर्तिधारी (Indemnity holder)। हानि की पूर्ति का वचन देने वाला व्यक्ति क्षतिपूर्तिकर्ता कहलाता है तथा जिसे वचन दिया जाता है वह क्षतिपूर्तिधारी कहलाता है।
(i) क्षतिपूर्ति की संविदा में विधिमान्य संविदा के सभी आवश्यक तत्व विद्यमान रहते हैं, यथा(क) दो पक्षकार; (ख) प्रस्ताव; (ग) स्वीकृति; (घ) स्वतन्त्र सम्मति (ङ) वैध उद्देश्य; (च) वैध प्रतिफल, आदि।
(ii) इसमें एक पक्षकार द्वारा दूसरे पक्षकार को कुछ हानियों से बचाने का वचन दिया जाता है।
(iii) इसमें क्षतिपूर्तिधारी वास्तविक क्षति की पूर्ति कराने का हकदार होता है; न कि अनुबन्धित सम्पूर्ण राशि पाने का।
(iv) क्षतिपूर्ति की संविदायें लिखित, मौखिक अथवा आचरण द्वारा की जा सकती
(v) क्षतिपूर्ति की संविदा समाश्रित संविदायें (Contingent Contracts) होती है
(vi) ऐसी संविदायें सद्विश्वास पर आधारित होती हैं।
क्षतिपूर्ति की संविदा मै अधिकार –
क्षतिपूर्तिधारी के अधिकार – क्षतिपूर्तिधारी के अधिकारों को क्षतिपूर्तिकर्ता के दायित्व भी कह सकते है। संविदा अधिनियम की धारा 125 में क्षतिपूर्तिधारी के अधिकारों का उल्लेख किया गया है। इसके अनुसार क्षतिपूर्तिधारी, क्षतिपूर्तिकर्ता से निम्नांकित राशि वसूल करने का हकदार होता है
(i) वह सब नुकसानी जिसके संदाय के लिए वह ऐसे किसी वाद में विवश किया जायें;
(ii) वे सब खर्चे जिनको देने के लिए वह ऐसे किसी वाद में विवश किया जायें;
(iii) वे सब धनराशियाँ जो उसने ऐसे किसी वाद में समझौते के निबन्धनों के अधीन दी हो।
सम्पति के विक्रय के मामले में जहाँ सम्पति में विक्रेता का त्रुटिपूर्ण स्वत्व रहा हो और इसी आधार पर क्रेता को सम्पति से बेकब्जा कर दिया गया हो, वहाँ क्रेता, विक्रेता से बेकब्जा किये जाने की तारीख को सम्पति के बाजार मूल्य के अनुरूप क्षतिपूर्ति (Damages) पाने का हक़दार होगा; न कि विक्रय-विलेख के निष्पादन की तिथि से। (के.पी.एस. हुसैन साहेब बनाम जी.राज शेखर गौवड़ा, ए.आई.आर. 2006 एन.ओ.सी. 511 आंध्रप्रदेश)।
क्षतिपूर्तिकर्ता के अधिकार – क्षतिपूर्ति की संविदा में क्षतिपूर्तिकर्ता द्वारा क्षतिपूर्तिधारी की क्षतिपूर्ति करनी होती है। ऐसी क्षतिपूर्ति कर दिये जाने पर क्षतिपूर्तिकर्ता के क्या अधिकार होंगे, इस सम्बन्ध में संविदा अधिनियम में कोई प्रावधान नहीं किया गया है, लेकिन समय समय पर न्यायालयों द्वारा किये गये निर्णयों के अनुसार क्षतिपूर्तिकर्ता के निम्न अधिकार परिलक्षित होते हैं
(i) जब क्षतिपूर्ति की संविदा के अधीन क्षतिपूर्तिधारी को क्षतिपूर्ति कर दी जाती है तब क्षतिपूर्तिकर्ता को वे सारे अधिकार प्राप्त हो जाते हैं जो क्षतिपूर्तिधारी को प्राप्त थे।
(ii) क्षतिपूर्तिकर्ता द्वारा जिस सीमा तक क्षतिपूर्तिधारी की क्षतिपूर्ति की गई है उस सीमा तक वह तीसरे पक्षकार के विरुद्ध क्षतिपूर्तिधारी के नाम से वाद ला सकता है।
(iii) क्षतिपूर्तिकर्ता द्वारा जिस सीमा तक क्षतिपूर्तिधारी की क्षतिपूर्ति की गई है उस सीमा तक क्षतिपूर्तिकर्ता तीसरे पक्षकार से क्षतिपूर्ति की राशि प्राप्त करने का हकदार है।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि क्षतिपूर्तिकर्ता को ऐसी क्षतिपूर्ति के लिए क्षतिपूर्तिधारी को इन्कार करने का अधिकार है जो क्षतिपूर्ति की संविदा से बाहर कारित क्षति से उत्पन्न होती है।