उपनिवेशवाद को परिभाषित कीजिए तथा इसके भारतीय राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव की परिचर्चा कीजिए - upaniveshavaad ko paribhaashit keejie tatha isake bhaarateey raajaneetik arthavyavastha par prabhaav kee paricharcha keejie

उत्तर :

प्रश्न विच्छेद

♦ उपनिवेशवाद से औपनिवेशिक भारतीय समाज में होने वाले मौलिक परिवर्तनों को दिखाना है।
♦ किस प्रकार उपनिवेशवाद से पूंजीवादी व्यवस्था का अभिन्न अंग बना गया?

हल करने का दृष्टिकोण

♦ उपनिवेशवाद का संक्षिप्त परिचय दें।
♦ उपनिवेशवाद ने औपनिवेशिक भारतीय समाज को कैसे परिवर्तित किया?
♦ यह विश्व पूंजीवादी व्यवस्था का अंग कैसे बना?
♦ निष्कर्ष।


उपनिवेशवाद से तात्पर्य किसी शक्तिशाली एवं विकसित राष्ट्र द्वारा किसी निर्बल एवं अविकसित देश पर उसके संसाधनों को अपने हित में दोहन करने के लिये राजनीतिक नियत्रंण स्थापित करना है। इस क्रम में औपनिवेशिक शक्ति अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिये उपनिवेशों पर सामाजिक-आर्थिक एवं सांस्कृतिक नियंत्रण भी स्थापित करती है। इससे औपनिवेशिक समाज में मौलिक परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं।

जहाँ तक भारतीय औपनिवेशिक समाज की बात है तो उपनिवेशवाद ने इसे निम्नलिखित संदर्भो में मौलिक रूप से परिवर्तित किया जैसे:

राजनीतिक स्तर पर स्वतंत्रता, समानता एवं जनतंत्र के विचारों का प्रसार हुआ। फलत: भारतीयों ने भी परंपरागत वंशानुगत शासन प्रणाली के स्थान पर लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में अपनी आस्था व्यक्त की।

प्रशासन के स्तर पर भी वंशानुगत एवं कुलीन प्रशासक के स्थान पर योग्यता का महत्त्व स्थापित हुआ। शक्ति के पृथक्करण के सिद्धांत के आधार पर प्रशासन एवं न्याय को अलग-अलग देखा जाने लगा। विधि के शासन का महत्त्व स्थापित हुआ।

संचार एवं परिवहन के साधनों के विकास तथा प्रशासनिक एकरूपता के कारण एकीकरण एवं राष्ट्रवाद की भावना के विकास को बढ़ावा मिला, जो अंतत: भारतीय राष्ट्र बनने की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण सहायक सिद्ध हुआ।

उपनिवेशवाद से पाश्चात्य शिक्षा एवं चितंन का प्रचार-प्रसार हुआ, जिससे तार्किकता एवं मानवतावादी दृष्टिकोण का उदय हुआ। इसके आधार पर परंपरागत रूढ़ियों, धार्मिक एवं जातीय कुरूतियों में सुधार के प्रयास आरंभ हुए। इसी क्रम में राजा राममोहन राय, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, रमाबाई एवं सर सैबयद अहमद खाँ जैसे समाज सुधारक सामने आए।

जहाँ तक विश्व पूंजीवाद व्यवस्था के अंग बनने की बात है तो अंग्रेज़ों ने मातृ देश के हित में कई नीतियाँ लागू कीं, जैसे:

अंग्रेज़ों ने भारतीय कृषि को परिवर्तित करने के प्रयास में जमींदारी व्यवस्था का सूत्रपात किया जो मुगल काल में भारत में विद्यमान नहीं थी। ज़मीन को व्यक्तिगत संपत्ति बनाने से इसमें पूंजीवादी तत्त्व जुड़ गए, जो बड़े पैमाने पर स्वतंत्र रूप से खरीदी एवं बेची जाती थी।

कृषि के वाणिज्यीकरण से भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व अर्थव्यवस्था से जुड़ गई तथा कृषि का पूंजीवादी रूपातंरण हुआ। उदाहरण के लिये अमेरिकी क्रांति के दौरान भारत से कपास के निर्यात में वृद्धि हुई।

पूंजीवाद से ही प्रभावित होकर ब्रिटिश निवेशकों ने भारत में रेलवे, जूट उद्योग एवं चाय बगानों आदि में निवेश किया।

लेकिन पूंजीवाद का यह स्वरूप मुख्यत: औपनिवेशिक शक्ति के ही हित में था तथा यह उपनिवेश के विकास में सहायक की बजाय अवरोधक ही था। इसका कारण औपनिवेशिक शक्ति द्वारा अपने मातृ देश के हित में नीतियाँ बनाना था। इसी का परिणाम था कि भारत विश्व पूंजीवाद का अभिन्न अंग होते हुए भी अपनी स्वतंत्रता के समय विऔद्योगीकरण एवं कृषि में पिछड़े देश के रूप में सामने आया।

निष्कर्षत: कह सकते हैं कि उपनिवेशवाद ने औपनिवेशिक भारतीय समाज में राजनीतिक, प्रशासनिक एवं सामाजिक दृष्टि से मौलिक परिवर्तन किया तथा इसे विश्व पूंजीवादी व्यवस्था का अंग बना दिया। इस पूंजीवाद का स्वरूप औपनिवेशिक शक्ति के ही हित में था।

उपनिवेशवाद का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा?

उपनिवेशी कारकों ने भी कुछ संरचनात्मक एवं संस्थात्मक परिवर्तन किये। भारत में औद्योगीकरण की इस प्रक्रिया में कुछ प्रमुख उद्योगों का तेजी से विकास हुआ लेकिन कुछ अन्य क्षेत्र उपेक्षित रह गये। इसी प्रकार उद्योगों की स्थापना में भी देश के कुछ प्रमुख क्षेत्रों को ज्यादा महत्व दिया गया, जबकि अन्य क्षेत्रों की उपेक्षा की गयी।

उपनिवेशवाद से आप क्या समझते हैं इसके प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए?

उपनिवेशवाद एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत औपनिवेशिक राष्ट्र उपनिवेश के आर्थिक, प्राकृतिक तथा मानवीय संसाधनी का प्रयोग अपने हितों के लिए करता है और अपने इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए इन राष्ट्र पर अपना नियंत्रण स्थापित करता है । ये शक्तियां किस प्रकार इन क्षेत्रों में अपनी सर्वोच्चता स्थापित करती है ।

उपनिवेशवाद का भारतीय समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?

भारत में प्रारंभिक आक्रमणकारियों और ब्रिटिश साम्राज्यवादियों में मुख्य अंतर यह था कि अंग्रेजों के अतिरिक्त किसी अन्य प्रारंभिक आक्रमणकारी ने न ही भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचना में परिवर्तन किया और न ही धन की निरंतर निकासी का सिद्धांत अपनाया।

उपनिवेशवाद से आप क्या समझते हैं?

उपनिवेशवाद का अर्थ है - किसी समृद्ध एवं शक्तिशाली राष्ट्र द्वारा अपने विभिन्न हितों को साधने के लिए किसी निर्बल किंतु प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण राष्ट्र के विभिन्न संसाधनों का शक्ति के बल पर उपभोग करना।

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