स्वतंत्रता आंदोलनों में समाचार पत्रों ने प्रमुख भूमिका कैसे निभाई? - svatantrata aandolanon mein samaachaar patron ne pramukh bhoomika kaise nibhaee?

सत्य, तथ्य, धर्म, दायित्व, शोध, सुधार, नवाचार, गुणवत्ता, समस्या, समाधान, विश्वास, शिक्षा, सेवा, राष्ट्रधारा और कर्तव्य पथ का प्रार्थी बोल रहा हूं। मैं केजी सुरेश का विद्यार्थी बोल रहा हूं।

सत्य, तथ्य, धर्म, दायित्व, शोध, सुधार, नवाचार, गुणवत्ता, समस्या, समाधान, विश्वास, शिक्षा, सेवा, राष्ट्रधारा और कर्तव्य पथ का प्रार्थी बोल रहा हूं। मैं केजी सुरेश का विद्यार्थी बोल रहा हूं। वो भी उनके जन्मदिन पर। हालांकि ये कोई जन्मदिन भर नहीं है। यह KG यानी Knowledge Guru दिन है या KG दिवस। वह इसलिए क्योंकि KG हुआ जा सकता है, बना नहीं जा सकता। KG कोई व्यक्ति नहीं है। KG ज्ञान गुरु हैं।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित महाविद्यालय अम्बेडकर में 1999 में KG सर की कक्षा लगी। जिस दिन लगी, उसी दिन कक्षा का हर विद्यार्थी KG सर का शिष्य हो गया और उन्होंने अपने हर शिष्य को अपने गर्भ में धारण किया। यह भारतीय गुरुकुल प्रणाली है जब गुरू अपने शिष्य को गुरुकुल में लेते समय यह घोषणा करता है कि मैं तुम्हें अपने गर्भ रूपी गुरुकुल में धारण करता हूं। उस दिन KG सर ने ऐसा ही किया और अपने गुरुरूपी गर्भ से तरह-तरह के रत्नों का आविष्कार किया। सप्ताह में एक दिन KG सर की क्लास होती थी और क्लास पूरी ठस्सम ठस्स।

दरअसल, झगड़ा होता था कि कौन आगे बैठेगा। तो झगड़े को पहली बार उन्होंने दूर किया 1999 में रोटेशन पर आगे बैठने के नियम को लागू कर। और फिर शुरू होता था उनके धाराप्रवाह होने वाला लेक्चर, जिसे सुनकर हर विद्यार्थी रोमांचित हो उठता और समझने लगता था कि मैं स्वयं KG हूं। मैं भी खुद को KG मानता था। और सबसे बड़ा KG मैं ही था, क्योंकि उस कक्षा में मैं मॉनिटर नियुक्त था। जब भी KG सर की कक्षा होती, मेरे भीतर का KG उभरता जाता। इसलिए कहा मैंने KG हुआ तो जा सकता है परन्तु बना नहीं जा सकता। क्योंकि सप्ताह भर की कक्षा में वे जीवन भर का सबक दे जाते थे।

कक्षा का मॉनिटर होने के नाते मैं उनका पहला विद्यार्थी था और आज भी हूं। उन्होंने मेरे जैसे विद्यार्थियों को अपने उसी गर्भ में धारण किया जो ज्ञान से विशेष ज्ञान की धुरी है। निरंतर तराशते रहे। आज भी तराशते हैं। एक कुशल साध के रूप में जौहरी के रूप में नहीं। साध के रूप में इसलिए क्योंकि हीरा परखे जौहरी, शब्दहि परखे साध। कबीर परखे साध को, ताका मता अगाध। वे शब्द के पारखी हैं। भाव के निरूपक हैं। बात-बात में व्यक्ति के चरित्र में इनका निर्माण कर देते हैं।

उसी कक्षा की चारदीवारी में उन्होंने 1999 के उस बैच को साध के रूप में तराशने का काम किया था, जिसमें अधिकांश विद्यार्थियों ने राष्ट्रपटल पर पत्रकारिता के मूल्यों को स्थापित करने का कार्य किया। इसका मुख्य कारण मैं उनका प्रथम विद्यार्थी होते हुआ मानता हूं कि उन्हें कोई वहम नहीं है, क्योंकि उनमें अहम नहीं है। कभी स्वयं की तारीफ और भेंट उनसे ज्ञान पाने के लिए कारगर नहीं रही। विमर्श, विचार, शब्द, पड़ताल, भाव की पवित्रता उन्हें अधिक भाव-विभोर करती है।

कक्षा से बाहर वे खाटी पत्रकार और कक्षा में परिपाटी के गुरू दिखते हैं। आज भी उनका हर विद्यार्थी उनके संपर्क में है। जैसे भारतीय ज्ञान प्रणाली में गुरू जीवनपर्यंत शिष्य के कल्याण की कामना और आवश्यकता पड़ने पर उसका मार्गदर्शन करता है, उसी रूप में विद्यार्थी कल्याण उनकी कार्यसूची में शीर्ष पर रहा है। एक्सपीरियंशल लर्निंग का उदाहरण मुझे आज भी याद है। जब कक्षा में उन्होंने हरियाणा के चरखी-दादरी के विमान हादसे की रिपोर्टिंग का उदाहरण बताते हुए एक्सपीरियंशल लर्निंग और आपदा प्रबंधन की पत्रकारिता के गुर शिष्यों को सिखा दिए थे। उपहार कांड की रिपोर्टिंग कैसे की और कैसे नवपत्रकार खोज कर रिपोर्ट लिखे, उन्होंने उस घटना के वृतांत्त से रोम रोम को रोमांचित कर दिया था। कैसे उन्होंने एके47 के निर्माता रूसी वैज्ञानिक का मौका पाकर साक्षात्कार लिया और न्यूज ब्रेक की।

उन्होंने हर विद्यार्थी को फैक्टिविस्ट बनाया है न कि एक्टिविस्ट। वे आज भी बात-बात में सम्मुख बैठे विद्यार्थी में फैक्टिविजम जगा देते हैं। जो सत्य की डगर पर राष्ट्र के नवजागरण और पुनर्जागरण के भाव को कलम से कागद पर कुरेदता है। वे कहते हैं कि न्यूज कभी फेक हो ही नहीं सकती क्योंकि फेक पत्रकार होता है, फेक कलम की स्याही होती है, फेक धारणा है, फेक विमर्श होता है, फेक विचार होते हैं, फेक दृष्टि होती है क्योंकि इनके फेयर होने के कोई पैरामीटर नहीं होते परन्तु न्यूज के पैरामीटर होते हैं। पत्रकार जब-जब पैरामीटर पर सूचना या विचार का लेखन करता है वो फेयर होगा। फेक तो कंटेंट होता है।

अपने इस राष्ट्रीय विचार से KG सर राष्ट्र विरोधी विमर्श को लक्ष्य मानकर लिखने वाले पत्रकारों को आईना तो दिखाते ही हैं, साथ ही नवपत्रकारों को न्यूज पैरामीटर की सीख भी देते हैं। पत्रकारिता पेशे और पत्रकारिता शिक्षण की कई भ्रांतियों को KG सर ने राष्ट्रीय विमर्श के रूप में स्थापित किया है। अब नागरिक पत्रकारिता को ही ले लीजिए। KG सर अक्सर बोलते हैं कि जब सिटीजन डॉक्टर नहीं होता, सिटीजन इंजीनियर नहीं होता, सिटीजन वकील नहीं होता तो सिटीजन जर्नलिस्ट घातक व्यवस्था है। क्योंकि जर्नलिस्ट वही है जो प्रवीण है और राष्ट्र जिसके केंद्र में है। बाकी सब सिटीजन कम्युनिकेटर हैं, जर्नलिस्ट नहीं।

यही नहीं बात-बात में KG सर ने सिखाया है की गूगल के बाद की पत्रकारिता नहीं गूगल से पहले की पत्रकारिता की संस्थापना ही उनका ध्येय है। जब पत्रकार को मिट्टी की समझ होती थी। गूगल के बाद चिट्ठी की समझ नहीं रही। ऐसे में शिक्षकों का दायित्व बढ़ जाता है उनके विचारों में अक्सर यह बल रहता है। इसी क्रम में शब्दों, विचारों, विमर्शों और व्यवस्थाओँ में व्याप्त विसंगतियों की खाल नोंचने के माहिर हैं KG सर। सबने माना फैक्ट चेक आज के दौर में जरूरी है। और लगभग हर पत्रकार बन बैठा फैक्टचेकर।

KG सर कहते हैं अगर कोई फैक्ट है तो उसे चेक करने की किसी की हिम्मत तक नहीं है। वे कहते हैं कंटेंट चेक हो सकता है परन्तु जो पहले से ही फैक्ट है, उसे चेक करने की कोई आवश्यकता नहीं। फैक्ट की रात के घनघोर अंधेरे के बाद भानू प्रकाशमान होगा। फैक्ट है। इसे चेक नहीं किया जा सकता। क्योंकि फैक्ट की कसौटी ही पूर्व में चेक किए गए सत्य से होकर साबित हुई है। वे जहां भी होते हैं, उस संस्था के विद्यार्थी और कर्मचारी उनकी वरीयता में होते हैं। छात्र कल्याण, कर्मचारी कल्याण उनका धर्म है। मैं स्वयं गवाह हूं कि किसी कर्मचारी की विषम स्थिति में उनके साथ KG सर के खड़े होने का। अभी हाल की घटना जरूर हम सबने उनकी एफबी वॉल पर देखी है।

सत्य, सनातन और मूल्याधिष्ठित शिक्षण प्रविधि उनकी कोर वैल्यू है। बात-बात में हर बात सिद्ध करती है इनकी शिक्षा। इसलिए वे क्रिकेट मैच के ऐसे कप्तान हैं, जिसमें उनका हर विद्यार्थी उनका बल्ला है जो चलेगा ही रुकेगा नहीं। मैंने जैसा कहा कि मैं स्वयं को KG मानता था और हूं अगर ऐसा हुआ तो मेरी कलम से KG सर क्या बोलेंगे। तो सुनें- 

सत्य की रचना। विश्वास की संरचना। मीडिया का धर्म। मीडिया शिक्षकों का कर्म। राष्ट्र विमर्श। निर्माणकारी परामर्श। कलम की सार्थकता और भारतीय व्रतधारी मीडिया का यशस्वी पत्रकार। यही विचार सर्वेश बोलता हूं। मैं KG सुरेश बोल रहा हूं।

फेक न्यूज नहीं। फेक कंटेंट। गूगल के बाद की पत्रकारिता नहीं गूगल से पहले की पत्रकारिता। घटना प्रधान लेखन नहीं। समस्या प्रधान लेखन बताने वाला सुलेख लिख रहा हूं। मैं KG सुरेश बोल रहा हूं।

नित नए प्रयोग। हर घड़ी सुयोग। नई रचनाएं। नई परिघटनाएं। नई विधियां, गतिविधियां। नए कीर्तिमान। पुराने प्रतिमान। नए लोग। सबका योग। मैं राष्ट्र का प्रलेख बोल रहा हूं। मैं KG सुरेश बोल रहा हूं।

एक मीडिया के छात्र की कलम से मीडिया गुरू के प्रति जन्मदिवस पर भाव चेतना। आप स्वस्थ रहें। व्यस्त रहें और मस्त रहें। आपका एक –एक शब्द राष्ट्र निर्माण करे। आपको जन्मदिवस की अनंतकोटि बधाई और शुभकामनाएं।     

डॉ. नीरज कर्ण सिंह, सहायक आचार्य,  हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय, महेंद्रगढ़।।

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

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