“सिंधु-सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्य-बोध हैं जो राज-पोषित या धर्म-पोषित न होकर समाज-पोषित था।” ऐसा क्यों कहा गया?
सिंधु-सभ्यता के लोगों में कला या सुरुचि का महत्व अधिक था। यहाँ प्राप्त नगर-नियोजन, धातु व पत्थर की मूर्तियाँ, मृद्-भांड, उन पर चित्रित मनुष्य, वनस्पति व पशु-पक्षियों की छवियाँ, सुनिर्मित मुहरें, खिलौने, आभूषण तथा सुघड़ अक्षरों का लिपिरूप आदि सब कुछ इसे तकनीक-सिद्ध से अधिक कला-सिद्ध जाहिर करता है। यहाँ से कोई हथियार नहीं मिला। इस बात को लेकर
विद्वानों का मानना है कि यहाँ अनुशासन जरूर था, परंतु सैन्य सभ्यता का नहीं। यहाँ पर धर्मतंत्र या राजतंत्र की ताकत का प्रदर्शन करने वाली वस्तुएँ-महल, उपासना-स्थल आदि-नहीं मिलतीं। यहाँ आम आदमी के काम आने वाली चीजों को सलीके से बनाया गया है। इन सारी चीजों से उसका सौंदर्य-बोध उभरता है। इसी आधार पर कहा जाता है कि सिंधु-सभ्यता का सौंदर्य-बोध समाज-पोषित था।
सिंधु सभ्यता की खूबी उस का सौंदर्य बोध है जो राजपोषित या धर्म पोषित न होकर समाज पोषित था ऐसा क्यों कहा गया?
इस सभ्यता ने भव्यता को महत्व नहीं दिया है। यह कलात्मकता को महत्व देती है। अतः हम कह सकते हैं कि यहाँ के लोग बोध कला में रुचि रखते थे। यहाँ की नगर व्यवस्था, पत्थर तथा धातु से बनी मूर्तियाँ, पशु-पक्षियों की आकृतियाँ, सुंदर मुहरें, खिलौने, बालों को सवारने का कंघा, गहने इत्यादि इसके सौंदर्य बोध का प्रमाण देते हैं।
सिंधु सभ्यता की खूबी क्या है?
वास्तुकला या नगर-नियोजन ही नहीं, धातु और पत्थर की। मूर्तियाँ, मृद्-भांडे, उन पर चित्रित मनुष्य, वनस्पति और पशु-पक्षियों की छवियाँ, सुनिर्मित मुहरें, उन पर बारीकी से उत्कीर्ण आकृतियाँ, खिलौने, केश-विन्यास, आभूषण और सबसे ऊपर सुघड़ अक्षरों का लिपिरूप सिंधु सभ्यता को तकनीक-सिद्ध से ज्यादा कला-सिद्ध जाहिर करता है।
सिधं भ्यता साधन संपन्न थी पर उसमें भव्यता का आडम्बर नहीं था कैसे?
न ही ऐसे प्रमाण मिलते हैं, जिससे वहाँ किसी बड़े मंदिर का पता चले। वहाँ पर विकसित सभ्यता के चिह्न मिलते हैं। जहाँ पर सब साधन विद्यमान थे। इन्हीं सब पर दृष्टि डालने के बाद कहा गया है कि सिंधु-सभ्यता साधन-संपन्न थी, पर उसमें भव्यता का आडंबर नहीं था।
सिंधु सभ्यता के पतन को स्पष्ट करने के लिए कौन से साक्ष्य प्रस्तुत किए गए?
क्या आप जानते हैं हड़प्पा सभ्यता के पतन के क्या-क्या कारण थे.